देर से सोने के कारण मैं सुबह आठ बजे उठा। शुक्र था कि अमित ने हमारे बीच जो बात हुई पापा-मम्मी को नहीं बताई। पापा के पास गुप्ता अंकल का फोन आया। उन्होंने कहा कि वो दस बजे आ जाएँगे, इसलिए पापा ने मुझे जल्दी तैयार होने को कहा। मैंने उन्हें कोई जवाब नहीं दिया। इसी बीच मैंने सुबह की चाय भी पी और सर्दी के कारण रजाई में लेट गया। मैंने सोच लिया मैं अभी शादी के ना करने के बारे में किसी से नहीं कहूँगा। जब गुप्ता अंकल आ जाएँगे तो सभी के सामने ना कर दूँगा या कह दूँगा अभी शादी नहीं करना चाहता हूँ। मम्मी ने एक घंटे बाद नहाकर तैयार होने को कहा। इसलिए मैं तैयार हो गया और घर के सामान्य कपड़े पहन लिए।

ठीक दस बजे घर की घंटी बजी। मम्मी ने दरवाजा खोला। गुप्ता अंकल आ गए थे, साथ में आंटी भी थी जिन्हें देखकर मेरी मम्मी खिसिया गई। वजह थी कि घर में पहले आदमी ही रिश्ता लेकर आते हैं। वो इसे अपशगुन मान रही थी। पर अमित ने मम्मी को शांत रहने और चाय-पानी पूछने को कहा। मम्मी ने सबका स्वागत किया। 

बात पहले आंटी ने शुरू की, “आज ज्यादा ही ठंड है।” 

पापा ने कहा, “हाँ ठंड कुछ ज्यादा है आज कोहरा भी है।” 

धीरे-धीरे बातें चलने लगी। गुप्ता अंकल ने जल्द ही रिश्ते की बात करनी शुरू की।

“हम अपनी बेटी के लिए आप के लड़के का रिश्ता चाहते हैं। निधि ने बताया ही होगा।” पापा ने मुस्कराते हुए अंकल की तरफ देखा, “हाँ हमें मालूम है।”

अंकल ने कहा, “तो हम रिश्ता पक्का समझें?” 

पापा ने कहा, “हाँ बिल्कुल, पक्का समझें।” पापा के हाँ करते ही घर में रौनक आ गई सभी ने पहले मुँह मीठा किया। निधि की मम्मी ने मेरी मम्मी को गले लगाया। गुप्ता अंकल ने पापा से हाथ से हाथ मिलाया। सभी बहुत खुश लग रहे थे। अमित ने मेरी तरफ आँख मारी। 

निधि की मम्मी ने कहा, “हम डेस्टिनेशन मैरिज करना चाहते हैं, हमारी बेटी गोवा में शादी करना चाहती है।”

मम्मी ने कहा, “आप जैसे चाहें पर ऐसी शादी हमने नहीं देखी है। खर्च वगैरह आप ही बता दें।”

गुप्ता अंकल ने कहा, “आप चाहें तो ये सारा खर्च लड़की वालों की तरफ से ही करवा सकते हैं। हमारी एक ही लड़की है, हम आपके आभारी रहेंगे।”

“पर भाई साहब, हमारे भी कुछ अरमान हैं। मतलब कि‍ हम नहीं चाहते हैं कि सारा बोझ आप पर पड़े।” 

मैं ये सब सुन रहा था। मैं सोच रहा था कि मेरी शादी कर रहे हैं और मेरे से ही कुछ पूछा नहीं जा रहा है। और ये भी कि मुझे शादी करनी है या नहीं। मैं उठकर उनके पास जाना ही चाहता था कि‍ अमित ने कहा, “भाई चाय भी ले जा।” 

ये सुनकर मुझे गुस्सा आया। मैं अमित को मारने चला पर मुझे याद आया मुझे शादी के लिए मना करना है। मैं हॉल की तरफ बढ़ा पर आमित ने मुझे खींचकर वहीं बैठा लिया। 

“भाई नासमझ मत बनो। बातें होने दो भाई।” 

तभी निधि की मम्मी ने कहा, “समधन जी, आप शायद नहीं जानती हमारे बच्चों का प्यार तो बारह-तेरह साल से चल रहा है। निधि तो सारे टाइम छत पर ही रहती थी।” ये सुनकर सब हँसने लगे। 

मम्मी ने कहा, “हमारा बेटा तो स्कूल से आते ही छत पर चढ़ जाता था।”

पापा सुनकर मुस्कुराए और गुप्ता अंकल भी। आंटी ने कहा, “बड़ा ही होनहार दामाद मिला है। कहाँ से कहाँ पहुँचा दिया है आप लोगों को। कुछ ही समय में समधन जी आप राघव से कहकर मछली मारने का काम बंद करवा दें।”

“हाँ समधन जी, मैंने भी उसे जीव हत्या के काम को बंद करने को कहा है पर आजकल के लड़के सुनते कहाँ हैं।” 

बातें चलती रहीं। मैं और अमित सुन-सुन कर कमरे में हँसते रहे, पर मैं भी अपने को तैयार कर रहा था शादी के ना कहने के लिए। तभी अमित ने कहा, “भाई चाय घूँघट में लेकर जाना।” ये कहकर वो हँसने लगा। 

तभी मम्मी ने आवाज लगाई, “अमित, जरा शरबत रसोई से ले आ।” 

मैंने अमित से कहा, “जरा घूँघट खोलकर जाना, जिससे तुम्हारा चेहरा तो दिखे।” अमित ने सड़ी-सी सूरत बनाई। 

दोनों परिवारों के बीच काफी देर तक बातें होती रहीं। अमित भी अब जाकर हॉल में बैठ गया। तभी गुप्ता अंकल ने कहा, “ये राघव क्यों अंदर शरमा के बैठा है, जरा उसे भी बुलाओ।” 

मैं अपने आप ही हॉल में आ गया। मैंने सबको नमस्ते कहकर बैठ गया। थोड़ी देर हाल-चाल लेने के बाद मैंने अपनी बात सब के सामने रखी।

“अंकल, मैं दो साल शादी नहीं करना चाहता हूँ।” ये सुनकर पूरे हॉल में सन्नाटा छा गया। सब चुप हो गए। अमित की आँखों में आँसू आ गए। गुप्ता अंकल ने कहा, “बेटा, इस साल शादी नहीं करना चाहते हो तो सगाई कर लो। अगले साल शादी कर लेना।”

“नहीं अंकल, ऐसी बात नहीं है। मैं सगाई भी नहीं करना चाहता हूँ।”सभी ने मेरी बात ध्यान से सुनी मेरी मम्मी ने मेरी तरफ आँख निकाली जैसे वे मेरे साथ जब करती थी जब वे मेरे से खुश नहीं होती थी पर मैं जब बच्चा था। मैंने निधि की मम्मी के सामने हाथ जोड़े पर उन्होंने मुझे नजरअन्दाज कर दिया। निधि के पापा ने कहा 

“पर बेटा इतनी देर से तुमने ये बात क्यों नहीं बताई? तुम पहले भी ना कर सकते थे या हमारी तरफ से कोई गलती हो गई है।”

“नहीं अंकल, ऐसा कुछ नहीं है और मुझसे किसी ने पूछा ही नहीं मुझे शादी करनी भी है या नहीं। आप जो भी समझें। मैं ये शादी नहीं कर सकता हूँ।” 

निधि की मम्मी की आँखों में आँसू आ गए। मेरी मम्मी ने बात को सँभालते हुए कहा, “निधि और इसके बीच शायद झगड़ा हो गया होगा। हम इसे मना लेंगे, आप फिक्र ना करें।”

मैंने कहा, “नहीं आंटी, हमारे बीच ऐसी कोई बात नहीं हुई है। आप निधि से पूछ सकती हैं और जहाँ तक शादी की बात है मैं उसे बस एक दोस्त मानता हूँ। हमारे बीच प्यार जैसा कोई रिश्ता नहीं है।” 

ये सुनते ही निधि की मम्मी रोते हुए वहाँ से चली गई। निधि के पापा भी धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए चले गए। मुझे उनका दिल टूटने से ज्यादा निधि की चिंता थी कि ये सुनकर वो क्या करेगी।

जैसे ही अंकल बाहर गए, पापा मेरी तरफ बढ़े। मैं उन्हें कुछ कहना ही चाहता था कि‍ उन्होंने तेज थप्पड़ मुझे मारा। मैं सोफे पर जा गिरा, “कमीने, शादी करनी ही नहीं थी तो उन्हें बुलाया ही क्यों था? पहले मना नहीं कर सकता था? इतनी बेइज्जती क्यों की उनकी और किस टाइप की लड़की चाहिए तुम्हें? कोई नई ढूँढ ली है गाँव की घाघरे वाली? कमीने, मेहमानों का अपमान नहीं किया जाता और क्या कह रहा था तुझसे शादी के लिए पूछा नहीं गया? एक हफ्ते से क्या चल रहा था तुझे नहीं पता था? बता नहीं सकता था कि‍ अभी शादी नहीं करनी है और शहर के इतने अच्छे लोगों को कौन ना करता है? देखा नहीं शादी का सारा खर्च करने को तैयार थे, ऐसे भले लोग मिलते हैं? आवारा कहीं के!” ये कहते हुए वो दोबारा मुझे थप्पड़ मारने को बढ़े। लेकिन मम्मी और अमित ने उन्हें रोक दिया।

वो सोफे पर सर पकड़कर बैठ गए और कहने लगे, “क्या तुम्हें अच्छे लोगों की समझ नहीं है? तेरे जैसा बदचलन नहीं देखा। गोवा में भी तुम एक ही रूम में रुके थे, तब समझ में नहीं आया कि वो तेरी दोस्त है या महबूबा? वहाँ तो तुझे कोई फर्क नहीं पड़ा।” मेरी आँखों में भी पानी आ गया। मैंने नहीं सोचा था कि ना कहने से इतना बड़ा बवाल हो जाएगा। मैं तो सोच रहा था सब मेरी बात को सुन कर मेरे फैसले की कदर करेंगे। पापा अभी सर पकड़े ही बैठे थे

मम्मी ने भी अब मोर्चा सँभाल लिया, “ऐसा रिश्ता लाखो में भी नहीं मिलता है। अगर दहेज भी तुम्हें चाहिए था तो मिल जाता। शादी भी गोवा में होती, दो-चार पैसे कमाकर कोई अरबपति नहीं हो जाता है। कोई गुण नाम की चीज नहीं है तुम में जो मुँह काला करने में भी तुझे शर्म नहीं आई? कितनी प्यारी लड़की है। लड़के आगे-पीछे घूमते हैं उसके। ऐसा रिश्ता नहीं मिल सकता है तुझे। तेरह साल से उसकी भावना से खेलता रहा है तू।” 

पापा ने कहा, “अभी भी मान जाए तो देर नहीं हुई है। हाथ-पैर जोड़कर मना लेंगे उन्हें। सोचकर बता दे।”मेरे भी अन्दर भावनाओं का ज्वार उमड़ रहा था पर मैं सोच रहा था की पापा-मम्मी का गुस्सा थोड़ी ही देर में शान्त हो जाएगा। पर मैं गलत था। मम्मी ने कहा “ये क्या बोलेगा, मैं ही उनके घर जाकर माफी माँग लूँगी। तेरे मम्मी-पापा का कोई ऐसा अपमान करे, तो पता चले। तुझे अगर शादी नहीं करनी थी तो प्यार क्या उसे बहन बनाने को किया था? बेटा, बुढ़ापे में इतना बड़ा बोझ बेइज्जती का मैंने कल्पना भी नहीं की थी अपने बच्चों से। मैं तो कहती थी मेरे बच्चे औरों जैसे नहीं हैं, वे अपने सभी फैसले अपने माँ-बाप पर छोड़ते हैं। भगवान हमें नरक में भी जगह नहीं देगा। उस लड़की में कुछ कमी हो तो मना भी करता। सुंदर वो, संस्कारी वो, तुझसे ज्यादा पढ़ी-लिखी वो और प्यार भी तुझसे ही करती है वो। अगर रास्ते से निकल जाए तो लोगों की आँखें फटी रह जाएँ। तूने तो एक मकान ही बनाया है, उसकी तो कई कोठियाँ हैं दिल्ली में। रंग भी देख इससे ज्यादा गोरी लड़की नहीं मिलेगी। अगर तेरी दुल्हन बने तो रुतबा बढ़ जाएगा तेरा। तेरे जैसे आगे-पीछे घूमते हैं उसके।”

मैं सुनकर अब रोने लगा और सिसकियाँ लेता रहा। अमित ने भी मुझे सुनाया, “तेरे से ज्यादा अच्छी है वो। क्यों शादी नहीं करना चाहता है उससे भाई? किसी और से प्यार है तो बता अब भी समय है। मम्मी उनके घर जाकर माफी माँग लेगी।”

मैंने कहा, “पापा, इतनी अच्छी नहीं है वो। मैंने गोवा में एक रूम नहीं बुक किया था। मुझे तो मालूम ही नहीं था एक ही रूम में रहेंगे हम दोनों। ये उसी का काम था। शराब पीती है वो, मांस खाती है, भोली नहीं है वो। पर मैं उसके रूम में साथ रहकर भी करीब नहीं गया उसके।” पर पापा ने मेरी बात को ज्यादा तूल नहीं दिया मैं सोच में डूब गया की ये मेरे ही परिवार के लोग है जो सब उस निधि की तरफ हो गए हैं। मेरी किसी को परवाह ही नहीं है जैसे। मैं अपनी शादी किसी से भी करूँ ये मेरा मैटर है ये सब क्यों मेरे ऊपर दबाव डाल रहे हैं। मैं किसी से भी शादी करूँ मैं बच्चा नहीं हूँ मेरे अन्दर भावनाओं का ज्वार उमड़ रहा था।

“तो ये कहना चाहते हो कि तेरे काबिल नहीं है? मैंने दुनिया देखी है, उसमें खोट है तो तेरी माँ में भी खोट है और मुझ में भी है। और जहाँ तक शराब की बात है, तू भी शराब पीता है और मांस खाता है।”

“अगर वो घर पर भी शराब पीती तो आप क्या करते? वो मुझसे भी ज्यादा पीती है। पापा, लोग हम पर हँसते कि कैसी शराबी बहू लाए हैं आप।”

“जानता हूँ, एक अकेली संतान है वो पर थोड़ी बिगड़ गई होगी और मांसाहारी है तो तुम कौन से कम हो? मछलियों की हत्या तो तुम भी करते हो। शायद उन मछलियों की ही हाय लगी है तुम्हें जो अपना अच्छा-बुरा नहीं समझ आ रहा है। अगर तुम अब भी हाँ कर देते हो तो उन्हें मनाकर फिर से तुम्हारा रिश्ता जोड़ दूँगा।” पर इतने कलेश होने पर भी मैं अपनी बात पर अड़ा रहा।

“नहीं पापा, मैं नहीं कर सकता उससे शादी।”

“तो फिर क्या चाहते हो?”

“कुछ नहीं। आ पमेरा रिश्ता कहीं भी कर दो, निधि को छोड़कर, मैं हाँ कर दूँगा। निधि से शादी नहीं करूँगा।”

“कमीने अब भी सोच ले।”

“नहीं पापा, मैं सोचकर ही बोल रहा हूँ।”

“ठीक है मेरे बेटे, मेरे से ही भूल हो गई थी तुम्हें समझने में। पर बता रहा हूँ ऐसी लड़की फिर नहीं मिलेगी।” वो सर पकड़कर बैठ गए, “भगवान माफ करना, अतिथि अपमान के लिए। देखता हूँ कैसी लड़की से तुम्हारी शादी होती है। मैं कब से समझा रहा हूँ कि अभी देर नहीं हुई है। मैं उनके घर जाकर उनसे माफी माँग लूँगा।”

“नहीं मैं हाँ नहीं कर सकता। अगर फिर भी आपको लगता है मेरी शादी मेरी मर्जी से ना हो, तो उन्हें हाँ करके आ जाओ। आप समझ नहीं रहे हो, कोई तो दोष होगा उस में जो मैं ना कर रहा हूँ।” ये कहकर मैं कमरे में चला गया। 

करीब एक घंटे तक रोता रहा। पापा के थप्पड़ का निशान मेरे गाल पर था। मैंने अमित को आवाज लगाई पर वो मेरे पास नहीं आया। मैं उसे अपनी सफाई देना चाहता था पर वो नहीं आया। 

अगले दिन तक मेरे घर में सन्नाटा छाया रहा। मेरे से कोई बात नहीं कर रहा था पर मैं निधि से शादी करूँ मुझे कबूल नहीं था। मैंने सोचा पापा-मम्मी और अमित दो दिन में सब भूल जाएँगे। अगर शादी की तो सारी उम्र जलन और तड़प झेलनी पड़ेगी। अगले दिन जब मैं गाँव गया तब तक निधि का कोई फोन मेरे पास नहीं आया। तीन-चार दिन बाद निधि का फोन आया। फोन उठाते ही उसने कहा, “तुम क्या समझते हो मेरी शादी तुमसे नहीं होगी तो क्या मेरी शादी ही नहीं होगी? मेरे घर पर किसी और लड़के की बात चल रही है, पर राघव तुमने मुझे ना क्यों कहा, ये मैं जानना चाहती हूँ।” मेरे समझ में नहीं आ रहा था उसे क्या जवाब दूँ।

मैंने साँस ली और कहा, “अब मैं तुम्हें क्या बताऊँ। मुझे तुमसे प्यार नहीं है अगर तुम मुझसे दोस्ती रखना चाहती हो तो मैं तैयार हूँ, पर तुम इस रिश्ते को शादी तक बढ़ाना चाहती हो तो मेरे लिए यही रास्ता है 'ना' का।” मैंने एक ही साँस में ये सब कह दिया पर मैं उस का और दिल नहीं दुखाना चाहता था। मैं भी इस सब में ज्यादा नहीं पड़ना चाहता था।

“तुम से दोस्ती रखे मेरी जूती और मैं एक बात बताना चाहती हूँ। मैं इस सर्दी में शादी करने जा रही हूँ। लड़कों की कमी नहीं है मेरे पास, मुझे कोई भी मिल सकता है।”

“मुझे माफ कर देना निधि। तुम्हें लड़कों की क्या कमी है, सही कह रही हो निधि। मैं तुम्हारा दिल नहीं दुखाना चाहता था पर क्या करता, मेरे अंदर तुम्हारे लिए वो प्यार नहीं रहा जो पहले था।”

“हाँ मैं जानती हूँ कोई और मिल गई होगी, नहीं तो तुम मना नहीं करते। एक बात मैं तुझे बता रही हूँ, अगर शादी से पहले मैं मर जाऊँ तो भगवान तुम्हें मेरी मौत का कारण समझे। अब मैं जीना नहीं चाहती। मैंने तुम्हारे साथ जाने कितने सपने सजाए थे। मैं तेरी दुल्हन बनना चाहती थी पर राघव, मेरे प्यार में क्या कमी रह गई थी जो तुमने ना का ऐसा थप्पड़ मुझे और मेरे पेरेंट्स को मारा है? मैं सोच रही थी कि तुम मेरे घर दुबारा हाँ करने आओगे, पर तुम नहीं आए।” उसने रोते हुए कहा मुझे अपराध बोध हुआ पर मैं अपनी बात पर कायम था।

“निधि भगवान के लिए मुझे माफ कर देना। मैं तुम्हारे मम्मी-पापा का अपमान नहीं करना चाहता था पर मैं ऐसी हालत में पड़ा था कि अगर मैंने तुमसे शादी की हाँ की होती तो सारी उम्र उस शादी को ढोता रहता।” मेरी ये बात पूरी होने से पहले ही उसने फोन काट दिया।

मैं भारी मन से पशुओं को देखता रहा। सोचने लगा कि‍ मैंने सही किया या गलत। मैं उससे नफरत तो हरगिज नहीं करता था, पर वंश से तो करता था। मैं जिंदगी भर वंश के कारण जलता रहूँ, मैं ये हरगिज नहीं चाहता था। मैंने फिर अपने ऑफिस के काम निपटाए और पैसों का हिसाब किया पर बार-बार निधि पर ध्यान चला जाता था।

एक हफ्ता बीत चुका था मुझे महरौली से गाँव आए हुए। ये एक हफ्ता बड़े दुख से गुजरा था। मैंने शादी से इनकार करके सही किया या गलत, समझ में नहीं आ रहा था। कभी लगता सही किया तो कभी लगता गलत। मैंने मना करके अपने बचपन के प्यार को खो दिया था। कई बार लगता शायद मेरी शादी निधि से होनी ही नहीं थी। मैं निधि से प्यार तो अब भी करता था, नहीं तो हफ्ता इतना बुरा नहीं गुजरता। एक बार सोचा हर प्यार शादी के लिए नहीं होता है। कुछ प्यार तो महीने में ही टूट जाते हैं, पर मेरा प्यार तो तेरह साल तक चला। फिर भी वंश को सोचकर हमेशा जलने से अच्छा था कि मैंने पहले ही मना कर दिया। कई बार ये सोचता था कि‍ शादी के बाद मैं वंश को भूल भी गया होता पर लगता था इतने साल नहीं भूला तो अब कैसे भूल जाता उस कमीने वंश को। इसलिए मैंने जो किया वो सही था।

मैं जब से महरौली से आया था मेरा खाना-पीना आधा भी नहीं रह गया था। मैंने सुबह खाना नहीं खाया था, पर अब मुझे भूख लग रही थी। रहीम और उसकी बीवी गाँव में किसी की शादी में गए थे, तो खाना कौन बनाता। रहीम ने सत्ते को फोन कर दिया था कि दो दिन मेरा खाना पहुँचा दे। सत्ते खाना लेकर आया था। आलू के पराठे थे। मैंने अब खोलकर देखे थे पर ये अब खाने लायक नहीं बचे थे इसलिए मैंने नहीं खाए। रात को भी सत्ते को खाना लाना था पर मुझे पता था वो दस-ग्यारह बजे से पहले नहीं आने वाला था। वो रघुवीर के साथ कहीं दारू पी रहा होगा इसलिए मैंने अपने लिए चाय बनाई, नमकीन भी कमरे में थी ही तो चाय के साथ मैं नमकीन खाने लगा।

मैं रात को ही खेत में घूमने लगा। वहाँ बहुत-सा गोबर इकट्ठा हो गया था जिससे गोबर की बदबू आ रही थी। मैंने अपने यहाँ काम कर रहे लड़के से कहा, “इस गोबर को कहीं दूर क्यों नहीं फेंका?”

उसने कहा, “भईया जी, रहीम घर पर नहीं है और आपने भी इसे नहीं बेचा इसलिए।” 

“हम ये गोबर खाद के लिए गाँव वालों को बेच देते थे जिसके बदले में हमें पैसे मिल जाते थे। तो फिर दूर क्यों नहीं फेंका?

“वो भईया गलती हो गई, कल या तो इसे बेच देंगे या दूर फेंक देंगे।” 

मैंने कहा, “ठीक है, कल इसे यहाँ से हटा देना।” 

रात के दस बज रहे थे। सत्ते और रघुवीर मेरे पास आ गए। रघुवीर ने मेरे से बात करनी छोड़ दी थी तो उसने एक हफ्ते बाद मेरे से हाथ मिलाया। वो मेरे से इसलिए बात नहीं कर रहा था कि मैंने निधि का मन दुखाया था। 

सत्ते और रघुवीर के जाने के बाद मैंने खाना खाया लेकिन कम ही खा पाया। मैं प्यार में तड़प रहा था। मैं अपने आपको निधि के बारे में सोचने से रोक रहा था पर मेरा दिमाग उसी पर लगा रहता। मैं तेरह साल के रिश्ते से बाहर नहीं निकल रहा था। मेरा अपने काम में बिल्कुल मन नहीं था। मैंने टीवी चालू किया और निधि को भुलाने के लिए फिल्म देखने लगा पर मुझे फिल्म समझ नहीं आ रही थी। मुझे निधि के अलावा कुछ समझ नहीं आ रहा था। झल्लाकर मैंने टीवी को बंद कर दिया।

मैं सोने की कोशिश करने लगा पर नहीं सो पाया। मेरा दिमाग प्यार की टेंशन से निकल नहीं पा रहा था। मैंने सारी रात जागकर काटी। एक बार तो लगा मैं निधि के घर पर जाकर उससे माफी ही माँग लूँ। पर दिमाग ने फिर से जलन बढ़ा दी। वंश मुझे चिढ़ा रहा था हँस-हँसकर। कोई सुबह चार बजे मेरी आँख लगी।

सुबह के छह बज रहे थे जब रहीम ने मुझे उठाया, “भईया, रात को भी आप ने कम खाया और सुबह भी आप ने कुछ नहीं खाया है।” मैंने उसे कुछ नहीं कहा। उसने सुबह के पराठे और रात का खाना देखकर कहा था। 

“भईया कहो तो अब जल्दी खाना बना दूँ।” 

“नहीं रहीम, मुझे अभी कुछ नहीं खाना है। भूख नहीं लग रही है।”

“भईया, आप निधि के प्यार में इतनी तकलीफ क्यों सह रहे हो? आप जाकर उनके घर निकाह की बात क्यों नहीं करते? नहीं तो आप किसी मानसिक बीमारी में पड़ सकते हो।”

“नहीं रहीम, मैं अब उसके घर नहीं जा सकता, मैं अब दूर निकल चुका हूँ।”

“भईया, आप कोशिश तो कर ही सकते हो, अगर वो ना कहें तभी आगे की सोचना। ये प्यार है भईया, सारी उम्र की तड़प सहन करना आप के लिए आसान नहीं होगा।”

“रहीम, अगर मैं उससे शादी करता हूँ तो इससे भी ज्यादा तड़पना होगा।” 

“ठीक है भईया, आप नहीं चाहते हो तो उससे शादी ना करें पर मैं ये जानता नहीं हूँ उसने ऐसा क्या कर दिया जिसका बोझ आप नहीं उठा पाएँगे।”

“रहीम, बहुत बड़ी बात है, इसलिए शादी नहीं करना चाहता हूँ। शादी ना करने का तो मैं बोझ झेल सकता हूँ, पर शादी के बाद मैं रोज क्यों जलता रहूँगा, मैं ये नहीं बता सकता।

“भईया, न बताना चाहते हों तो ना बताएँ पर अगर बता देते तो हलके जरूर हो जाते। सुकून भी मिलता। आप शायद प्यार को नहीं जानते, जितना ये प्यार खुशी देता है, उतना ही न मिलने पर दुख भी देता है।” वो बिलकुल सही कह रहा था शायद वो उस प्यार की तड़प जानता था जो मुझे हो रही थी पर मैं उसकी बात ही सुन सकता था मुझे एक बात पर ज्यादा डर था वो थी कहीं वो जल्दी ही शादी ना कर ले पर मैंने रहीम को ये सब नहीं बताया।

“पर रहीम, मैं उसे दो महीने में ही भूल जाऊँगा। मेरा मन मुझे धीरे-धीरे बदल देगा। जाओ और सभी को काम पर लगा दो नहीं तो कोई बीड़ी पीता रहेगा या कोई खैनी रगड़ता रहेगा। मेरी फिक्र मत करो।” 

“ठीक है भईया।” ये कहकर वो अपने काम को देखने लगा। 

दो दिन बाद मेरे पास सत्ते का फोन आया। उसने कहा, “राघव, तुमने बताया नहीं निधि अगले हफ्ते शादी कर रही है?”

“क्या बकवास है! ऐसा कुछ नहीं है, नहीं तो मुझे जानकारी नहीं होती? तुम्हें किसने बताया?” ये सब सुनकर मेरे ऊपर बिजली-सा प्रहार हुआ। 

“राघव, मेरे पास निधि का कार्ड आया है। उस में रविवार की तारीख में शादी लिखी है। साथ में निधि ने फोन भी किया है।” 

“सच में ऐसा है?”

“हाँ भाई सच कह रहा हूँ।”

“उसने मेरे पास शादी का कार्ड नहीं भेजा है। हमारे रिश्ते बेशक खत्म हो गए हैं पर दोस्त के नाते ही कार्ड भेज देती। तुम्हें कार्ड किसने दिया है?”

“कूरियर से आया था। लड़का वसंत कुंज का है। भाई, अगर तुम चाहो तो एक बार फिर से उससे बात करके देखो।”

“नहीं सत्ते, मैं बहुत आगे आ गया हूँ। अब देर हो चुकी है।”

“पर भाई तुम्हारा क्या होगा, ये सोचो।” 

“क्या होगा? मुझसे वो शादी नहीं करती तो करने दो उसे शादी। एक ना एक दिन तो होती ही उसकी शादी कहीं न कहीं।”

“पर भाई...”

“पर-वर छोड़ो...मेरा तो उससे पीछा छूटेगा।” मेरा डर सच साबित हुआ। वो शादी करने जा रही थी और मैं हाँ-ना पर अटका पड़ा था।

“पर भाई, तुम्हारा हाल क्या हो गया है, दस दिन में तुम सूखी-सी लकड़ी लगते हो! चेहरा पिचक गया है! अगर तुम अपनी शादी की बात नहीं कर पा रहे हो तो पापा-मम्मी से कहूँ तुम्हारी शादी की बात करने के लिए?”

“नहीं सत्ते, अब इसकी जरूरत नहीं है।”

“पर भाई, अभी तो समय है। एक बार बात करके देख लेते हैं।” 

“मैं उससे प्यार नहीं करता और तुम मेरी फिक्र मत करो। मैं बिलकुल ठीक हूँ। वजन तो मैंने अपने आप घटाया है।”

“ठीक है भाई। मैं फोन रखता हूँ।” 

उसके फोन के बाद रघुवीर का फोन आ गया। मैं फिर से निधि के बारे में दोबारा बात नहीं करना चाहता था पर उसने मेरे पास तीन फोन कर दिए। मैंने हारकर फोन उठा लिया। उससे भी अंत में यही कहा कि मैं उससे प्यार नहीं करता। उसके बारे में मेरे से बात नहीं किया करो। वो मुझे दोस्त तक नहीं मानती है नहीं तो कार्ड भेज देती। बात करके मैं उखड़ गया। मैं अपने को असुरक्षित महसूस करने लगा। मैंने सर पर रजाई डाली और रोने की कोशिश करने लगा। मुझे रोना आ रहा था पर मैं नहीं रो पाया। आँसुओं ने मेरा साथ छोड़ दिया। जब निधि मेरे से ऐसे बिछड़ने लगी तब मेरी समझ में आया कि मैं तो उसके बगैर नहीं रह सकता हूँ। मैंने फोन को उठाया और देखने लगा कोई मिस कॉल निधि की आई हो, पर उसका कोई फोन नहीं आया था। तभी व्हॉट्सएप पर निधि का मैसेज आया। जिसमें एक शादी का कार्ड था। कार्ड को अंदर और बाहर से चार फोटो में दिखाया था।

कार्ड देखकर मेरी आँखों में आँसुओं का सैलाब ही आ गया। मैं देर तक रोता रहा। मैंने निधि से ऐसी उम्मीद हरगिज नहीं की थी कि वो शादी कर ले। पर अब कर भी क्या सकता था। मुझे लगा अब देर हो चुकी है। मैंने कार्ड को ध्यान से देखा। इस कार्ड में नीरज नाम के किसी लड़के की शादी निधि से हो रही थी। कार्ड के बाहर गणेश के साथ दूल्हा-दुल्हन की फोटो माला पहनाते हुए थी। 

मैं रजाई में पड़ा-पड़ा कई घंटे रोता रहा। उसके बाद कब मैं सो गया मुझे पता नहीं था। रात को मेरे फोन पर एक मैसेज आया तो मेरी नींद खुल गई। मैसेज निधि का था। लिखा था- ‘कमीने शादी कर रही हूँ।’ उसके बाद गंदी गाली थी। फिर लिखा था- ‘मेरी शादी से जलन हुई या अभी रो रहे हो या खुश हो? जानती हूँ आँख तुम्हारी भी भारी ही हो गई होगी। शादी के बाद देश छोड़कर जा रही हूँ। नीरज कनाडा में रहते हैं। आगे मैं जिंदगी भर वहीं रहूँगी। जानते हो नामी डॉक्टर है वो। रात में जापान तो दिन में अमेरीका में रहते हैं, तुम्हारी तरह गाय-भैंस का तबेला नहीं चलाते हैं। क्या सोच रहे हो मैं ये सब तुम्हें क्यों बता रही हूँ, इसलिए कि तुम्हें भी पता चले कितना अच्छा रिश्ता मिला है। तुम अपना जलना जारी रखो। एक और बात बड़ा ही ध्यान रखने वाला है, वो तुम्हारे मम्मी-पापा को भी शादी में बुलाया है और हाँ शादी भी गोवा में नहीं हो रही है। मम्मी-पापा के पैसे भी बच गए हैं। पापा कह रहे थे तेरे जैसे कमीने से अच्छा है शादी नहीं हुई। कहाँ तबेला चलाने वाला और कहाँ सर्जर डॉक्टर! अगर तुम्हें अब भी जलन ना हो रही है तो पूरा जानवर है जिसे प्यार की समझ नहीं है।’

मैसेज यहीं तक था। एक बार पढ़कर लगा हँसूँ या रोऊँ। तभी उसका एक और मैसेज आया। लिखा था- ‘मैसेज पढ़ने के लिए धन्यवाद। मुझे तो लगा तुम ये मैसेज सुबह पढ़ोगे राघव, अगर तुम मान जाओ तो मैं ये शादी नहीं करूँगी। पर एक बार नीरज से शादी कर ली तो हरगिज तुम्हारी नहीं बनूँगी। मैं तुमसे शादी के लिए अपने पापा को मना लूँगी। सोचकर सही फैसला करना। मैं जानती हूँ तुम सही निर्णय नहीं ले पाते हो। फैसला सही लेना, नहीं तो एक नहीं तीन जिंदगी खराब हो जाएगी। एक तुम्हारी, साथ में नीरज से प्यार नहीं कर पाने के कारण उसकी और तीसरी मैं जो अपने प्यार से शादी नहीं कर पाने से परेशान रहूँगी। फैसला तुम्हारे हाथ में है, सोचकर सही निर्णय लेना।’ इस मैसेज के बाद एक स्माइली थी।

मैंने मैसेज डिलीट कर दिए ताकि कोई मैसेज दोबारा ना पढ़ सके। मैंने निधि के बारे में ज्यादा नहीं सोचा। ये सोचकर कम से कम उसका मैसेज तो आया। एक हफ्ते बाद मैं उसको फोन भी करना चाहता था पर मेरी हिम्मत नहीं हुई। मैं सोचने लगा मुझे क्या करना चाहिए।

मैं उससे शादी करने की बात करूँ या नहीं। मैं सोने की कोशिश करने लगा ये सोचकर कि कल ही इस बारे में सोचेंगे। फिर सोचा कि अभी कुछ वक्त है मेरे पास या उसे कोई जवाब ही नहीं दूँ। इसी उधेड़बुन में मेरा दिमाग घूमता रहा।