उसी शाम इमरान फिर प्लाज़ा जा पहुँचा....लेकिन आज उसके साथ उसका दोस्त प्रोफ़ेसर भी था। वही जिससे इमरान ने सिगरेट के पैकेट पर पेन्सिल से किये हुए दस्तख़त पढ़वाये थे।
आर्केस्ट्रा के टिकटों का इन्तज़ाम पहले ही से कर लिया गया था....और इस बात का ख़ास ख़याल रखा गया था कि पिछली सीटों की लाइन में जगह मिले।
‘‘मगर आज डांस नहीं होगा।’’ प्रोफेसर ने कहा। ‘‘वही आग वाला।’’
‘‘परवाह नहीं!’’ इमरान सिर हिला कर बोला। ‘‘बस, जैसे ही मैं रेडी कहूँ, अपने होश और हवास सँभाल लेना.... समझे!’’
‘‘लेकिन आख़िर इस हरकत से फ़ायदा ही क्या....अगर पकड़े गये तो....तुम ख़ुद सोचो, मेरी कितनी बदनामी होगी। एक नहीं, मेरे दर्जनों स्टूडेन्ट हॉल में मौजूद होंगे।’’
‘‘इस सूरत में क़तई यह न ज़ाहिर होने पायेगा कि तुम मेरे साथ हो। बस प्यारे....!’’
‘‘तुमसे पीछा छुड़ा लेना आसान काम नहीं है।’’ प्रोफ़ेसर ने बेबसी से कहा। डांस शुरू हुआ, वह बड़े सुकून के साथ मज़े लेते रहे।
चौथे दौर का आग़ाज़ होते ही इमरान ने प्रोफ़ेसर की तरफ़ झुक कर धीरे से रेडी कहा और प्रोफ़ेसर सँभल कर बैठ गया। मोरीना स्टेज पर एक डांस पेश कर रही थी। अचानक एक चमगादड़ उसके चेहरे से टकराया और वह बेतहाशा चीख़ मार कर पर्दे के पीछे उलट गयी। चमगादड़ पहले तो नीचे गिरा फिर स्टेज से उड़ कर ‘‘टचक-टचक’’ करता हुआ हाल के अँधेरे कोने में चक्कर लगाने लगा। पर्दा फ़ौरन ही गिरा दिया गया और सारा हाल दर्शकों के शोर से गूँजने लगा। उधर प्रोफ़ेसर इमरान से कह रहा था।
‘‘तुम आदमी हो या जादूगर.... तुमने आख़िर उसे किस तरह फेंका कि मुझे भी एहसास न हो सका।’’
‘‘उसे छोड़ो।’’ इमरान बोला। ‘‘यह बताओ कि वह किस भाषा के शब्द थे।’’
‘‘जर्मन!’’ प्रोफ़ेसर ने कहा। ‘‘और उर्दू में इनका मतलब ‘ ख़ुदा ग़ारत करे’ के अलावा और किन्हीं दूसरे शब्दों में नहीं अदा हो सकता?’’
‘‘तुम्हें यक़ीन है कि जर्मन ही के शब्द थे?’’
‘‘सौ फ़ीसदी।’’ प्रोफेसर बोला।
‘‘शुक्रिया! दोस्त तुम्हें मेरी वजह से ख़ासी तकलीफ़ उठानी पड़ी।’’
‘‘मगर आख़िर इसका मक़सद क्या था?’’
‘‘कुछ नहीं; बस एक तजरुबा....और अब यह हक़ीक़त मुझ पर साफ़ हो गयी है कि हर आदमी बेख़बरी और ख़ौफ़ की हालत में हमेशा अपनी मादरी ज़ुबान बोलता है....सुबहान अल्लाह....क्या कुदरत के कारख़ाने हैं....कुर्बान जाइए....!’’
‘‘मैं अब भी नहीं समझा!’’
‘‘यह बेचारी हक़ीक़त में जर्मन है मगर ख़ुद को इटली की ज़ाहिर करती है।’’
‘‘ओ हो! अच्छा!’’ प्रोफ़ेसर ने हैरत से कहा। ‘‘तब तो तजरुबा वाक़ई बहुत कामयाब रहा। मैं समझा था कि तुम पर वही स्टूडेन्ट के ज़माने वाला लफ़ंगापन सवार हो गया है....मगर इमरान क्या चक्कर है। कोई ख़ास बात....ओ हो, मैं तो यह भूल ही गया था कि तुम आज कल सी.बी.आई. में काम कर रहे हो....!’’
‘‘कभी कर रहा था। अब इस्तीफ़ा दे दिया है। नहीं, इस तजरुबे का ताल्लुक़ किसी अहम बात से नहीं था! बस, यूँ ही ख़याल पैदा हुआ था, क्योंकि उस औरत के नाक-नक़्श इतालवी नहीं हैं। इसलिए मैंने कहा ये तजरुबा भी हो जाये।’’
‘‘मगर फिर आख़िर उसने ये ढोंग क्यों रचाया है।’’ प्रोफ़ेसर कुछ सोचता हुआ बड़बड़ाया।
‘‘यह भी कोई ख़ास बात नहीं।’’ इमरान ने लापरवाही से कहा। ‘‘दूसरी बड़ी जंग के बाद से यूरोप में जर्मनों की तरफ़ से नफ़रत पायी जाती है। इसलिए ख़ुद को जर्मन ज़ाहिर करके वह इतनी ज़्यादा मशहूर न हो सकती।’’
प्रोफ़ेसर कुछ न बोला....इमरान ने बड़ी ख़ूबसूरती से बात बनायी थी।
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