भुला देंगे तुमको सनम धीरे-धीरे
दिल जब टूट जाता है तो विरह की एक लम्बी अवधि बीत जाने पर भी पहले जैसा नहीं हो पाता। दिल एक सजीव पदार्थ है, क्षण में उसकी परिणति होती है और क्षण में ही परिवर्तन। वीर के भी दिल में अब दरारें पड़ चुकी थी। माया के द्वारा किया गया इस प्रकार का धोखा वीर की सहनशक्ति से आगे निकल चुका था। वीर का मन अब किसी चीज़ में नहीं लग रहा था। वह पागल-सा होता जा रहा था। माधवी का वीर को बहुत बार फ़ोन आया लेकिन, उसकी शादी के बाद वीर ने उससे बात तक नहीं की थी। आदि और नीलेश भी कभी-कभी बात करने के लिए फ़ोन करते थे, लेकिन वीर ने उनका फ़ोन भी उठाना बन्द कर दिया था। अजय से तो वीर की बातें होती रहती थीं, लेकिन अब वीर उससे भी थोड़ा-सा कटने लग गया था। वीर अब कुछ ज़्यादा ही सिगरेट पीने लग गया था। बीयर की जगह शराब ने ले ली थी।
वीर दिल्ली में था। अजय भी दो दिनों के लिए दिल्ली आया हुआ था। दोनों शराब पीने लग रहे थे।
“भाई, इतनी शराब ठीक नहीं है। कभी-कभी चल जाती है, लेकिन तेरा तो अब रोज़ का हो गया है। कल आदि का भी फ़ोन आया था। कह रहा था कि वीर फ़ोन नहीं उठाता है। कहाँ पर है वो? कैसा है वो? अब उसे तेरे हालात तो नहीं बता सकता न। अब माया को छोड़ ना यार, भूल जा उसको। जैसा करेगी वैसा भरेगी वो।” अजय ने कहा।
“दिन तो बुरे निकल ही रहे हैं, लेकिन रात इस शराब की वजह से मेहरबान हो जाती है मुझ पर। बेहोश होकर कम से कम सो तो जाता हूँ। माया के बारे में जब भी सोचता हूं तो ख़ुद पर हँसी आती है। उसके कहे एक-एक शब्द मुझे कांच की तरह चुभते हैं। ऐसा लगता है जैसे कि मेरा ख़ुद का खंजर आकर मुझे ख़ुद चुभा है। आंख बन्द करता हूँ तो उसका चेहरा नज़र आता है। इतना दुखता है न अन्दर से कि प्राण भी दर्द से बाहर आने के लिए दिल की दीवारों को खोदता है। मैं उसके बिना नहीं रह सकता हूँ, अजय मेरे भाई। मर जाऊँगा मैं उसके बिना।” वीर ने रोते हुए अपना एक पैग बनाया।
वीर वही बातें रोज़ शाम होते ही शुरू कर देता था। बातों के साथ-साथ शराब भी ज़्यादा हो जाती थी। वीर माया के दु:ख से उभर नहीं पा रहा था। अजय दोस्ती में बस बैठा सुनता रहता था और वीर को हमेशा की तरह समझाने की नाकाम कोशिश करता रहता था।
शराब पीने के बाद अजय खाना लेने के लिए नीचे गया हुआ था। तब वीर के पास माया का कॉल आया। वीर ने फ़ोन नहीं उठाया। माया ने वीर के पास मैसेज किया कि बहुत urgent काम है, प्लीज़ फ़ोन पिक करो। माया का जब दोबारा कॉल आया तो वीर ने फ़ोन उठाया।
“फ़ोन क्यूँ नहीं उठा रहा? कहाँ पर है?” माया ने पूछा।
“क्यों? तुझे क्या करना है? बता किस लिए फ़ोन किया है?” वीर ने पूछा।
“क्यूँ फ़ोन नहीं कर सकती क्या मैं?” माया ने कहा।
“एक हफ्ते से तो तूने मेरा हाल तक नहीं जाना और कह रही है कि फ़ोन नहीं कर सकती क्या? बता किसलिए फ़ोन किया है? नहीं तो मैं फ़ोन रख दूंगा।” वीर ने गुस्से से कहा।
“मैं Pregnant हूँ। कुछ दिन पहले जब दिल्ली मिले थे शायद तभी हुआ यह सब। अब बता क्या करना है?” माया ने कहा।
“मुझसे क्या पूछ रही है? Engagement करी जब मुझसे पूछा था या बताया था? धोखेबाज है तू समझी ना? दोस्त हमेशा कहते थे कि तेरा प्यार में कटेगा, लेकिन मैं मानता ही नहीं था और देख, तूने आखिरकार वो कर दिया जो वो कहते थे।” वीर ने सिगरेट जलाकर कहा।
“बकवास न कर। बता क्या करना है Pregnancy का? मैं कोई बच्चा नहीं चाहती। बहुत दिक्कत हो जाएगी अगर किसी को पता चल जाएगा तो।” माया ने कहा।
“तो मैं क्या करूं? गिरा दे बच्चे को। कम से कम तेरी लाइफ़ में तो आगे कोई प्रॉब्लम नहीं होगी।” वीर ने कहा।
“तो मुझे गोली लाकर दे बच्चा गिराने की और तुझसे मिलना भी है। प्लीज़ मना मत करना, तुझे मेरी क़सम है।” माया ने कहा।
“ये क़सम का ड्रामा मत कर। तुझे इन सब से कोई घंटा फर्क नहीं पड़ता है, समझी ना। और मैं क्यूँ लाकर दू तुझे गोली? अपने नए आशिक से मंगवा ले, जिसके साथ घर बसाने के सपने बुन रही है।” वीर ने कहा।
“तुझे तो पड़ता है ना फर्क, तो मान जा मेरी बात, एक बार मिल ले।” माया ने कहा।
वीर ने आगे बिना कुछ कहें फ़ोन काट दिया। वीर ने बोतल मे बची शराब को गिलास में डाला और पी गया। वीर चुपचाप बैठा था। उसका चेहरा भावहीन था, लेकिन उसके दिल किस स्थिति से गुजर रहा था वो ख़ुद ही जानता था। अजय जब खाना लेकर आया तो वीर ने अजय से कहा कि तेरे एक दोस्त की मेडिकल शॉप है न, उससे बच्चा गिराने की पिल चाहिए कल।
“अबे, तुझे क्या करना है उसका?” अजय ने पूछा।
“वो माया का कॉल आया था। जब कुछ दिन पहले हम दिल्ली मिले थे तो उसे अब पता चला है कि वो Pregnant हो गई है। अब उसे बच्चा गिराने की गोली चाहिए।” वीर ने कहा।
“और तू क्या चाहता है?” अजय ने पूछा।
“मेरे चाहने और न चाहने से क्या होता है? मैं तो माया को भी चाहता हूं, लेकिन क्या हुआ? अब माया जब यह सब पहले से ही तय कर चुकी है तो यही ठीक रहेगा उसके लिए।” वीर ने कहा।
“भैंचो, हद है यार तुम्हारी भी। कोई शर्म ही नहीं है तुम दोनों को। ये साला रण्डी रोने के चक्कर में मारी जा रही है तेरी और तू हँस कर मरवाए जा रहा है।” अजय ने गुस्से से कहा।
“अब ज्ञान मत पेल। दवाई लाकर देगा या नहीं, बस ये बता।” वीर ने पूछा।
“मिल जाएगी। अब मरा साले अपनी।” अजय ने सिगरेट सुलगाते हुए कहा।
वीर ने माया को मैसेज किया कि कल 10:00 बजे नारनौल आ जाना।
अगले दिन सुबह वीर माया से मिलने के लिए नारनौल चला गया। वीर बस-स्टैण्ड पर माया का इन्तज़ार कर रहा था। जब माया आई तो वीर ने उसके आते ही दवाई दी और वहाँ से जाने के लिए मुडा।
“सुनो, कुछ बात करनी है।” माया ने पीछे से आवाज़ दी।
“लेकिन मुझे कोई बात नहीं करनी।” वीर ने कहा।
“प्लीज़ थोड़ी देर, कुछ urgent काम है।” माया ने कहा।
“इस urgent बात से मुझे इतना ड़र लगने लग गया है कि अब तो तुझ पर भरोसा भी नहीं है। और वैसे भी अब कहाँ इतनी हिम्मत है कि तेरी कोई urgent बात सहन कर सकूं? ख़ैर, अब तुम्हारी जुदाई से बड़ी क्या बात हो सकती है? चल, वो भी बता अब।” वीर ने कहा।
“यहाँ नहीं। कहीं बाहर चलते है।” माया ने चलते हुए कहा।
वीर और माया, दोनों सुभाष पार्क के पीछे बने रास्ते पर खड़े थे। वीर ने माया से कहा कि अब बताओ क्या बात है?
“मैंने तुम्हें अब तक जो भी दिया है वो वापिस चाहिए।” माया ने कहा।
“क्या वापिस चाहिए, मैं समझा नहीं?” वीर ने अचंभे से कहा।
माया की बात सुनकर वीर थोड़ा असहज और अचंभित हुआ। वह सोच रहा था कि माया के पास इतना दिल कहाँ से आया होगा जो वो मुझसे सब लौटाने को कह रही है। वीर ने माया की तरफ़ देखा और उसे वो सब लौटाने से मना कर दिया, जो माया वीर से लौटाने को कह रही थी।
“प्लीज़, वीर मुझे वो सब वापिस चाहिए जो मैंने तुम्हें दिया था।” माया ने गुस्से से कहा।
“वो सब क्या, क्या दिया है तुमने मुझे? मेरे पास तो तुम्हारा केवल प्यार है और वो भी अब मुझसे दूर जा रहा है जानबूझ कर। कहाँ है तुम्हारा प्यार, जो मैं तुम्हारी आँखों में देख नहीं पा रहा हूँ? कहीं खो गया है या तुमने ही उसे बाहर निकाल कर फेंक दिया है? कहाँ निकाल कर फेंक दिया किसी कचरे के ड़ब्बे में या अपने पैरो से रौंद दिया? ज़रा दिखाओं तो अपने कठोर पैर, जिनसे तुमने मेरे नाजुक प्यार को चींटी की तरह मसल कर रख दिया।” वीर ने माया की आखों में अपने उस खोए हुए प्यार को ढूंढ़ते हुए कहा।
वीर अब थोड़ा भावुक हो चला था।
“मुझे तुम्हारी कोई बकवास नहीं सुननी। मैं इसके लिए तुमसे मिलने नहीं आई हूँ, मुझे वो सब वापिस चाहिए, बस।”
“अपने पाँच साल के रिलेशन में तुम्हारी यादें हैं केवल मेरे पास, तुम्हारा स्पर्श है, तुम्हारी ख़ुशबू है और तुम्हारे अनगिनत किस हैं, अगर इन्हें मेरे से जुदा कर सकती हो तो ले जाओ, लेकिन तुम इन सब यादों और पलों को मुझसे छीनकर क्या करोगी? फिर इन्हें भी रौंद दोगी तुम।”
“वीर, प्लीज़ मुझे ज़्यादा गुस्सा मत दिलाओ। ये यादें, पल और किस तुम अपने पास रखो, मुझे इनमें से कुछ भी नहीं चाहिए। मुझे अपनी तस्वीरें, लव लैटर और गिफ़्ट चाहिए, जो मैंने तुम्हें इन पाँच सालों में दिए हैं। मैं तुम्हारे पास अपना कुछ भी नहीं छोड़ना चाहती, कुछ भी नहीं।” माया ने अपनी आवाज़ को थोड़ा तेज़ करते हुए कहा।
“नहीं, वो सब तो मैं तुम्हें नहीं दे सकता। इन सब पर तो केवल मेरा ही हक़ है। यहीं कहा था न तुमने जब मुझे यह सब दिया था। फिर आज तुम क्यों इन्हे मुझसे वापस करने को कह रही हो?” वीर ने सड़क की दूसरी तरफ़ देखते हुए कहा।
दोनों सड़क के एक तरफ़ खडे होकर कभी धीमे तो कभी चिल्लाकर बातें कर रहे थे। वीर से बार-बार न सुनने पर माया का गुस्सा तेज़ होता जा रहा था और उसने अचानक वीर का कॉलर पकड़ लिया।
“मुझे अपना सब कुछ वापिस चाहिए, बस। मुझे तुम पर अब बिल्कुल भी यक़ीन नहीं है। मेरी आगे की जिंदगी में तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं है और उसे तुम बर्बाद कर सकते हो। वो सब मुझे लौटा दो, नहीं तो मैं कुछ भी कर सकती हूँ।” माया का गुस्सा अब अपनी पराकाष्ठा पर था।
वीर माया को अचंभित होकर देख रहा था। उसे बिल्कुल भी यक़ीन नहीं हो रहा था कि माया उसके साथ इस तरह का बर्ताव करेगी। उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। अब वीर को भी गुस्सा आने लगा था, लेकिन उसने अपने गुस्से पर कण्ट्रोल किया। वीर ने माया का हाथ अपने कॉलर से हटाया और अपनी कमर के दोनों तरफ़ हाथ रखकर सड़क की दूसरी तरफ़ किनारे पर लगे पेड़ को देखने लगा, जिसके सुखे पत्ते पेड़ से अलग होकर नीचे ज़मीन पर गिर रहे थे। वो सोच रहा था कि इस पेड़ और उन पत्तों को भी तकलीफ़ होती होगी जो एक-दूसरे से जुदा हो रहे है।
कुछ सोचने के बाद वीर ने माया की तरफ़ देखा और वो सब कुछ देने से मना कर दिया, जिसके लिए माया उससे मिलने आई थी। माया ने गुस्से से वीर की तरफ़ देखा और कहा कि ठीक है, रखो तुम अपने पास उन्हे, लेकिन अब जो होगा, उसके ज़िम्मेदार तुम ख़ुद होगे। इतना कहते ही माया वहाँ से जाने लगी।
माया जब भी मुलाकात के बाद बस स्टॉप तक जाती थी तो वीर हमेशा उसके साथ जाता था, लेकिन आज वो नहीं गया और न ही उसने जाती हुई माया को देखना चाहा। वीर माया को रोक लेना चाहता था। वो उसे कह देना चाहता था कि मत जाओ, मेरी धड़कन हो तुम, लेकिन अब उसे ये नहीं मालूम था कि वो माया को किस हक़ से रोकता? वो सड़क के दूसरे किनारे लगे उस पेड़ के पास गया और उसने ज़मीन पर गिरा एक सूखा पत्ता उठाया और पेड़ की तरफ़ देखने लगा। प्रेमी जब दिल तोड़कर जा रहा होता है तो उसे रोकना नहीं चाहिए क्योंकि जब वह जा रहा होता है तो दरअसल दिल से प्रेम पहले ही जा चुका होता है।
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