क्या एस्ट्ले लौटेगा?
उस घर को अंडरक्लिफ कहा जाता था, क्योंकि वह वहीं स्थित था—एक चोटी के नीचे। जो आदमी गया था—उस घर का मालिक—रॉबर्ट एस्ट्ले था। और जो आदमी पीछे रह गया था—घर का पुराना रखवाला—प्रेम बहादुर था।
एस्ट्ले बहुत साल पहले चला गया था। वह चालीस के आस-पास की उम्र तक कुँवारा था जब उसने अचानक एक दिन निर्णय लिया कि वह रोमांच, रूमानी प्रेम और दूरस्थ जगहों की चाह रखता है और उसने अपने घर की चाभी प्रेम बहादुर को दे दी—जो उसके परिवार की सेवा तीस साल से कर रहा था—और यात्रा पर निकल पड़ा।
किसी ने उसे श्रीलंका में देखा। किसी से सुना गया कि वह बर्मा में मोगोक के माणिक की खान में है। फिर वह जावा के संडा जलडमरुमध्य को पार करते दिखा। फिर उसके निशान मिलने बन्द हो गये। सालों बीत गये। हिलस्टेशन पर बना वह घर खाली रहा।
लेकिन प्रेम बहादुर अब भी वहीं था, आउटहाउस में रहता हुआ।
हर दिन वह अंडरक्लिफ खोलता, सभी कमरों के फ़र्नीचर को झाड़ता, पोंछता, यह निश्चित करता कि बिस्तर की चादरें और तकिये के गिलाफ़ साफ़ हों और एस्ट्ले के ड्रेसिंग गाउन और चप्पलों को जगह पर रखता।
पहले जब एस्ट्ले यात्रा के बाद या पहाड़ियों पर एक लम्बी सैर के बाद घर लौटता था तो वह नहाना पसन्द करता और अपना गाउन और चप्पलें बदलता था, चाहे कोई भी पहर हो। प्रेम बहादुर अब भी उन्हें तैयार रखता था। वह इस बात के लिए निश्चित था कि एक दिन रॉबर्ट लौटेगा।
एस्ट्ले ने खुद उससे ऐसा कहा था।
“मेरे लिए सब कुछ तैयार रखना, प्रेम, पुराने दोस्त। मैं शायद एक साल, या दो साल या उससे भी देर से लौटूँ, लेकिन मैं लौटूँगा ज़रूर, मैं तुमसे वादा करता हूँ। हर महीने की पहली तारीख को मैं चाहता हूँ कि तुम मेरे वकील, मिस्टर कपूर के पास जाओ। वह तुम्हें तुम्हारा वेतन और मरम्मत या अन्य कामों में खर्च करने के लिए जितने पैसों की ज़रूरत होगी, देंगे। मैं चाहता हूँ कि तुम इस घर को चुस्त-दुरुस्त रखो!”
“क्या आप वापस आते हुए पत्नी को लायेंगे, साहिब?”
“ईश्वर, नहीं! यह विचार किसने तुम्हारे दिमाग़ में भरा?”
“मैंने सोचा, शायद—क्योंकि आप चाहते थे कि घर तैयार रहे…”
“मेरे लिए तैयार, प्रेम। मैं नहीं चाहता कि मैं घर वापस लौटूँ और यह पुराना घर मुझे ढहता हुआ मिले।”
और इसलिये प्रेम घर की देखभाल करता रहा—हालाँकि एस्ट्ले की कोई खबर नहीं थी। उसे क्या हो गया? यह रहस्य लोगों के बीच एक चर्चा का विषय बन गया था, जब भी वे मॉल में मिलते और बाज़ार में दुकानदार एस्ट्ले को याद किया करते, क्योंकि वह एक ऐसा आदमी था जो आज़ादी से खर्च करता था।
उसके सम्बन्धियों को अब भी उसके ज़िन्दा होने का भरोसा था। कुछ ही महीने पहले एक भाई आया था—एक भाई जिसकी फ़र्म कनाडा में थी और वह भारत में बहुत दिन नहीं रहने वाला था। उसने वकील के पास थोड़ी और राशि रखवा दी और प्रेम से कहा कि वह पहले की तरह पैसे लेना जारी रखे। वेतन से प्रेम की कुछ ज़रूरतें पूरी होतीं। इसके अलावा वह इस बात के लिए निश्चिंत था कि रॉबर्ट लौटेगा।
कोई और आदमी होता तो उसने घर और ज़मीन की उपेक्षा की होती, लेकिन प्रेम बहादुर ने नहीं। घर के अनुपस्थित मालिक के लिए उसके मन में सच्चा आदर था। प्रेम उम्रदराज था—अब लगभग साठ का हो गया था और बहुत मज़बूत नहीं रह गया था, साँस की बीमारी और छाती की अन्य समस्याओं से पीड़ित था—लेकिन वह रॉबर्ट को एक लड़के और एक जवान व्यक्ति दोनों रूपों में याद रखे हुए था। वे पहाड़ों पर कई बार शिकार और मछली मारने के लिए साथ गये थे। वे सितारों के नीचे सोये, सर्द पहाड़ी धाराओं में नहाये और एक ही खाना पकाने के बर्तन में खाना खाया। एक बार, एक छोटी नदी पार करते हुए, अचानक आयी बाढ़ में वे धारा के साथ नीचे बहा लिये गये, वर्षा ऋतु के दौरान बिना किसी चेतावनी के पानी का रेला जो गरजते हुए नीचे घाटियों में आया। साथ मिलकर उन्होंने खुद की सुरक्षा के लिए संघर्ष किया। वापस हिल-स्टेशन लौटकर रॉबर्ट एस्ट्ले ने सबसे कहा कि प्रेम ने उसकी जान बचायी जबकि प्रेम भी इस बात पर उतना ही दृढ़ था कि वह अपने जीवन के लिए रॉबर्ट का ऋणी है।
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इस साल मानसून जल्दी आया और देर से खत्म हुआ। यह पूरे सितम्बर जारी रहा और प्रेम बहादुर की खाँसी बढ़कर बदतर हो गयी और साँस लेना और भी ज़्यादा मुश्किल हो गया।
वह बरामदे में अपनी चारपाई पर लेटा बगीचे को देखता रहता जो उसके नियन्त्रण से बाहर होने लगा था। उलझे हुए डेहलिया, सर्प गेंदा और कॉन्वोवलस के फूल। सूरज आखिरकर निकल आया। हवा दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर स्थानान्तरित हो गयी थी और बादलों को उड़ा ले गयी थी।
प्रेम बहादुर ने अपनी चारपाई उठाकर बगीचे में डाल ली और धूप में लेटा, हुक्का फूँक रहा था, जब उसने रॉबर्ट एस्ट्ले को गेट पर खड़ा देखा।
उसने उठना चाहा लेकिन उसके पैरों ने उसका साथ नहीं दिया। हुक्का उसके हाथ से छूटकर गिर गया।
एस्ट्ले बगीचे को पार करता हुआ आया और बूढ़े रखवाले के सामने खड़ा हो गया, उसे देखकर मुस्कुराता हुआ। वह उस समय से एक दिन भी उम्रदराज नहीं दिख रहा था, जब प्रेम बहादुर ने उसे अन्तिम बार देखा था।
“तो आखिरकार आप आ गये,” प्रेम ने कहा।
“मैंने कहा था, मैं लौटूँगा।”
“बहुत साल बीत गये लेकिन आप बदले नहीं हैं।”
“तुम भी नहीं, बूढ़े दोस्त।”
“मैं बूढ़ा, बीमार और कमज़ोर हो गया हूँ।”
“तुम अब ठीक हो जाओगे, इसलिये मैं आया हूँ।”
“मैं घर खोल देता हूँ,” और उसने पाया कि वह बहुत आसानी से उठ पा रहा है।
“यह ज़रूरी नहीं,” एस्ट्ले ने कहा।
“लेकिन आपके लिए सब तैयार है!”
“मैं जानता हूँ। मैंने सुना है कि तुमने सब कुछ कितनी अच्छी तरह से सँभाला। आओ फिर, एक साथ चलकर सब कुछ अन्तिम बार देखते हैं। हम रुक नहीं सकते, तुम जानते हो।”
प्रेम थोड़ा उलझन में पड़ गया, लेकिन उसने सामने का दरवाज़ा खोला और रॉबर्ट को बैठक से होते हुए सीढ़ियों से ऊपर शयन कक्ष तक ले गया। रॉबर्ट ने ड्रेसिंग गाउन और चप्पलें देखीं और बूढ़े आदमी के कन्धे पर सौहार्द से अपना हाथ रखा।
जब वह नीचे लौटे और धूप में गये तो प्रेम खुद को देखकर आश्चर्यचकित रह गया—या यूँ कहें कि अपने ठठरी शरीर को—चारपाई पर पड़े हुए। हुक्का वहीं ज़मीन पर था, जहाँ वह गिरा था।
प्रेम ने चकित होकर एस्ट्ले को देखा।
“लेकिन वह कौन है—वहाँ लेटा हुआ।”
“यह तुम हो। अब सिर्फ़ एक खोल, खाली आवरण। वास्तविक तुम मेरे साथ खड़े हो।”
“आप मेरे लिए आये हैं?”
“मैं नहीं आ सका जब तक तुम तैयार नहीं थे। जहाँ तक मेरी बात है मैंने अपना आवरण काफ़ी पहले छोड़ दिया, लेकिन तुम यहाँ टिकने के लिए दृढ़ थे, इस घर को सलामत रखने के लिए। क्या अब तुम तैयार हो?”
“और यह घर?”
“यहाँ दूसरे लोग रहेंगे। लेकिन आओ, यह मछली मारने जाने का समय है…”
एस्ट्ले ने प्रेम की बाँह पकड़ी और वे दोनों देवदार के नीचे छनकर आती सूरज की रोशनी को पार करते हुए हमेशा के लिए उस जगह को छोड़ गये।
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