“देवा -- !"


देवराज चौहान के नींद से भरे मस्तिष्क से फकीर बाबा की आवाज टकराई तो उसकी आंखें फौरन खुल गईं। दूसरे ही पल वो उठ बैठा। बगल में नगीना लेटी हुई थी। कमरा खाली था । लेकिन देवराज चौहान जानता था कि उसे धोखा नहीं हुआ। मस्तिष्क से टकराने वाला स्वर पेशीराम का ही था ।


उसे उठा पाकर नगीना भी उठ बैठी।


“क्या हुआ ?" नगीना ने पूछा- "नींद नहीं आ रही ?" 


देवराज चौहान ने नगीना पर निगाह मारी। जीरों वॉट की रोशनी में सब कुछ साफ नजर आ रहा था।


“पेशीराम ।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा और इधर-उधर देखने लगा।


“पेशीराम-मतलब वो फकीर बाबा जो - ।" 


“हां। वो पास ही हैं। उसने मुझे पुकारा था।"


नगीना की निगाह कमरे में घूमने लगी। 


“देवा!" इस बार फकीर बाबा की गम्भीर आवाज स्पष्ट तौर पर दोनों ने सुनी।


“पेशीराम।" देवराज चौहान के होंठों से निकला। 


“तुमने मेरी बात नहीं मानी देवा!" फकीर बाबा का स्वर पहले जैसा ही था - "अगर मान लेते तो इसमें मेरी भी 

भलाई थी और तुम्हारी और मिन्नो की भी सब कुछ ठीक रहता।"


"सब ठीक ही है पेशीराम।"


"कुछ भी ठीक नहीं। अब जो मैं देख रहा हूं, वो मुझे नजर नहीं आ रहा।" फकीर बाबा के सुनाई देने वाले स्वर में व्याकुलता के भाव थे- "बहुत ही बड़ा अनर्थ होने जा रहा है।" 


“कैसा अनर्ध ?” देवराज चौहान की आंखे सिकुड़ीं। 


“राकेश नाय नाम के व्यक्ति से तू वायदा कर आया है कि उसके लिए मिन्नो को खत्म करेगा।” फकीर बाबा के स्वर में दुःख के भाव थे- “अब तेरा मिन्नो से झगड़ा होगा। मैं सब देख रहा हूं। और इस बार मिन्नो के साथ लड़ाई में तेरी मौत हो जायेगी। तेरे इस जन्म का अंत हो जायेगा देवा। ये सब सितारों का खेल है। तेरे भाग्य का खेल अब ज्यादा दिनों का नहीं है।"


“नहीं बाबा नहीं।” नगीना का स्वर कांप उठा- “ऐसा नहीं हो सकता।”


“ऐसा ही होगा नगीना बेटी।" फकीर बाबा का स्वर व्याकुल था- "मैंने सबको समझाया। कहा कि बंसीलाल के पीछे देवा मत जाये वरना मिन्नो से टकराव हो जायेगा और वो ही होने जा रहा है।" 


"देवराज चौहान को बचा लीजिये बाबा इनके बिना मेंरी जिन्दगी बेकार हो जायेगी।" नगींना तड़प उठी थी।


“तेरी तो एक जिन्दगी बेकार होगी बेटी। मैं तो इनके तीन जन्मों से भटक रहा हूं। देवा की मौत के बाद अब मुझे मिन्नों की मौत का इन्तजार होगा और उसके बाद पुनः दोनों के जन्म लेने का इन्तजार होगा। फिर इनके बड़े होने का इन्तजार होगा। उसके बाद इनके चौथे जन्म में मेरी कोशिश पुनः जारी हो जायेगी कि दोनों में दोस्ती कराकर गुरुवर के श्राप से मुक्त हो सकूं। जाने इनके चौथे जन्म में भी मुझे श्राप से मुक्ति मिल पायेगी या ये सिलसिला पांचवें जन्म तक चलेगा ।"


"ऐसा न कहो बाबा।" नगीना के होंठों से हक्का-बक्का स्वर निकला - "मैं इन्हें मोना चौधरी के सामने से रोक लूंगी। ये मोना चौधरी का मुकाबला नहीं।"


“चुप रहो नगीना।” एकाएक देवराज चौहान ने सख्त स्वर में टोका।


नगीना ने देवराज चौहान को देखा। “आप मेरी ये छोटी सी बात नहीं मान सकते।" नगीना की आंखों में पानी चमक उठा- "मेरे दिल की हालत को समझिये। मैंने जिन्दगी में किसी मर्द को स्वीकारा है तो वो सिर्फ आप ही हैं। मैंने आपसे प्यार किया है। मेरी जान तक आप पर कुर्बान हैं। आपको कुछ हो गया तो -।"


"मौत के डर से मैं खामोश नहीं बैठ सकता।" देवराज चौहान ने सपाट स्वर में कहा- “राकेश नाथ को मैंने वचन दिया है कि उसके लिए मैं मोना चौधरी को खत्म करने की कोशिश - ।”


“मेरी खातिर - अपनी नगीना की खातिर आप उस वचन को भूल नहीं सकते ?”


“तुम्हें अच्छी तरह याद होगा नगीना कि हममें ये बात तय हुई थी कि तुम कभी भी मेरे रास्ते में अड़चन पैदा नहीं करोगी। जरूरत पड़ने पर मेरी सहायता अवश्य करोगी।” देवराज चौहान के संयत स्वर में गम्भीरता थी— “और तुम नाजायज दबाव डालकर मुझे, मेरे काम से रोकने की कोशिश कर रही हो ।”


“मैं तो आपकी जिन्दगी चाहती हं।" नगीना की आंखों में पानी था- “ और आप इस वक्त जिस रास्ते पर जाने की तैयारी कर रहे हैं, वो रास्ता आपकी जान ले लेगा।"


“मैं सिर्फ कर्म में विश्वास रखता हूं। आने वाले वक्त में क्या होता है, ये सोचना मेरा काम नहीं। मैंने तो सिर्फ ये हीं जाना है कि सच्चे मन से किये गये कर्म इन्सान की जिन्दगी की राहें खुद-ब-खुद बदल देते हैं। अगर इस काम में मेरी जान जायेगी तो ऊपर वाले की इच्छा से ही ऐसा होगा। मां वैष्णो की मर्जी से ही ऐसा होगा। किसी इन्सान की मर्जी से किसी की जान नहीं जाती। अगर मेरी जिन्दगी का अन्तिम समय आ गया है तो खुद को कमरे में बंद भी कर लूं, तब भी मौत से बच नहीं सकता।”


नगीना देखती रही देवराज चौहान के गम्भीर चेहरे को । 


“तो आप मोना चौधरी के रास्ते पर जरूर जायेंगे।” नगीना ने चिन्ता भरे स्वर में कहा । 


“हां। बेहतर होगा कि दोबारा मुझे रुकने के लिए मत कहना ।” देवराज चौहान के स्वर में पक्कापन था । 


नगीना बैड से उतरी और बड़ी लाईट ऑन कर दी।


दोनों ने भरपूर निगाहों से एक-दूसरे को देखा। 


अब नगीना के चेहरे के भाव बदलने लगे थे।


“तो आपको मेरी एक बात माननी होगी।” नगीना ने देवराज चौहान की आंखों में झांका । ?"


“क्या " इस काम में मैं आपके साथ कदम से कदम मिलाकर चलूंगी। आप इन्कार नहीं करेंगे।"


"तुम मेरे साथ रहोगी ?" देवराज चौहान के होंटों से निकला। 


"क्या आपको मेरी लड़ाई की कला पर शक है?”


“नहीं। ये बात नहीं। मैं - "


“फिर आगे कुछ मत कहिये। मैं आपके साथ रहूंगी।" नगीना की आवाज में दृढ़ता आ गई ।


“अगर इस काम में तुम्हारी जरूरत न हो तो....।” “मेरी जरूरत तो सबसे ज्यादा है।" नगीना का स्वर एकाएक कांप सा उठा ।


“मैं समझा नहीं।”


"जब आप जीवन की अन्तिम सांसें गिन रहे होंगे तो आपका सिर मैं अपनी गोद में रखूंगी।" कहते हुए नगीना की रुलाई फूट पड़ी - “आपके चेहरे को, आपके सिर के बालों को प्यार से सहलाऊंगी। नगीना आपके पास है। ये महसूस करके आपको कितना हौसला मिलेगा। सांसों की डोर टूटने में जो तकलीफ होती है, वो तकलीफ आपको महसूस नहीं होगी।" इसके साथ ही नगीना रोते हुए, दौड़ती हुई बाहर निकलती चली गई ।


देवराज चौहान बुत की तरह बैठा, दरवाजे को देखता रहा। चेहरे पर कई तरह के भाव आ ठहरे थे। कुछ पलों बाद बेचैनी भरे अंदाज में बैड से उतरा और सिग्रेट सुलगाकर टहलने लगा। 


"देवा - " 


देवराज चौहान ठिठका । मस्तिष्क को तीव्र झटका लगा। नगीना से बातों के दौरान फकीर बाबा को भूल ही गया था। उसने इधर-उधर देखा ।


“ मेरे साथ-साथ तुम अपनों को भी तकलीफ दे रहे हो देवा । " फकीर बाबा का गम्भीर स्वर उसे सुनाई दिया- “नगीना बेटी को कितनी तकलीफ हुई, तुम्हारी मौत के बारे में जानकर ।” 


देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।


“जग्गू जब सुनेगा तो उसके दिल पर क्या बीतेगी ?" 


देवराज चौहान फिर भी कुछ नहीं बोला ।


"गुलचंद ( सोहनलाल ) क्या तुम्हारी मौत को सहन कर पायेगा ?" 


“पेशीराम !” देवराज चौहान के चेहरे पर सख्त-सी मुस्कान उभरी – “अपने शब्दों के जाल में मुझे फंसाने की कोशिश मत करो। मैं तुम्हारी बातों का मतलब - ।”


“ मैं तुम्हें फंसा नहीं रहा। समझा रहा हूं देवा।" फकीर बाबा का स्वर उसे सुनाई दे रहा था - "इन सब बातों में मेरा भी तो फायदा है। तुमने हमेशा मेरी इज्जत रखी है। हर जन्म में बहुत सोच-समझ कर हर काम को अंजाम देते हो। मिन्नो की तरह जल्दबाजी नहीं करते। इस बार सिर्फ इस बार अपने पर काबू पा लो। ये बुरा वक्त निकल जाने दो। दो महीने बाद बुरे सितारे कुछ दिन के लिए शून्य में खो जायेंगे। तब अच्छे ग्रह सामने आ जायेंगे। उस वक्त में तुम्हारी और मिन्नो की दोस्ती हो सकती है।”


देवराज चौहान के चेहरे पर वैसी ही मुस्कान उभरी रही। 


"मेरी बात मान जाओ देवा ।”


“मेरे मुकाबले पर कोई दूसरा होता तो तुम्हारी बात पर मैं गम्भीरता से अवश्य विचार करता। लेकिन मोना चौधरी के सामने होने पर मैं सोचने की जरूरत नहीं समझता।” देवराज चौहान ने कहा- “राकेश नाथ से जो वायदा किया है वो मुझे पूरा करना है। उसके बेटे को मोना चौधरी ने मार-।"


“मैं जानता था कि तू मेरी बात नहीं मानेगा। बुरे सितारे तुझे मेरी बात मानने ही नहीं देंगे। दुनियां में झगड़ा कायम रखकर बुरे सितारे अपना वजूद हैं। ये सब करना तो उनका काम बनाये है। तुम या मिन्नो कुछ नहीं कर रहे अपनी मर्जी से। ये सब तो बुरे सितारे तुम दोनों से करा रहे हैं। मिन्नो से तुम्हारा झगड़ा हो । इसके लिए पहले बुरे सितारों ने थापर और फिर बंसीलाल को माध्यम बनाकर, घटनाक्रम को जन्म देते हुए तुम्हें, उस राकेश नाथ तक पहुंचा दिया। जहां से सीधा रास्ता मिन्नो तक जाता है।” 


"मैं जा रहा हूं देवा।" फकीर बाबा का परेशान-सा स्वर अब देवराज चौहान को सुनने को मिला- “अभी भी वक्त तुम्हारे हाथ में है। भविष्य की छोटी सी झलक तुम्हें दिखा दी है कि जिस रास्ते पर तुम चल रहे हो, इसमें आगे जाकर क्या होगा। बहुत समझदार हो तुम अपना अच्छा-बुरा सोच लेना। मैं तो चाहता हूं कि तुम में के और मिन्नो में दोस्ती हो जाये और तीन जन्मों पूर्व मिले गुरुवर श्राप से मुझे मुक्ति मिल जाये। बुरे सितारों की धोखेबाजी में, उनकी चालों में मत फंसो | लेकिन तुम इन्सान हो। इंद्रियों पर काबू पा लेना इन्सान के लिए असम्भव हो जाता है, जब बुरे सितारे इन्सान को अपने प्रभाव में ले लेते हैं- " 


देवराज चौहान के पास कहने को कुछ नहीं था.


देवराज चौहान कुछ नहीं बोला।


कई पलों की लम्बी खामोशी छा गई।


“पेशीराम!” कुछ देर बाद देवराज चौहान बोला। लेकिन कोई जवाब नहीं आया। जा चुका था फकीर बाबा । चेहरे पर गम्भीरता समेटे देवराज चौहान धीमे-धीमे कमरे में

टहलने लगा। वो जानता था कि उसकी मौत के बारे में पेशीराम बहुत खतरनाक बात कह गया है और मौत के डर से कदम वापस उठाना उसने नहीं सीखा था ।


***

देवराज चौहान की आंख देर से खुली। 

जब नहा-धोकर तैयार हुआ तो दिन के ग्यारह बज रहे थे। इस बीच नगीना कई बार सामने पड़ी, परन्तु उसके चेहरे पर सामान्य भाव ही रहे ।

“तैयार हो गये आप।" नगीना कमरे में प्रवेश करते हुए कह उठी- "मैं नाश्ता तैयार कर देती हूं।" 

“बाकी लोग कहां है ?"

“हाल में है। नाश्ता कर चुके हैं सब।" कहने के साथ ही नगीना बाहर निकल गई।

देवराज चौहान हॉल में पहुंचा।

वहां जगमोहन, सोहनलाल के अलावा बांकेलाल राठौर और रुस्तम राव भी थे।

देवराज चौहान उन्हें देखकर मुस्कराया। 

“देवराज चौहान!" बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर पहुंचा- “रात तो तन्ने बंसीलाल को 'वड' ही दयो ।”

देवराज चौहान सोफा चेयर पर बैठते हुए बोला ।

"रेस्टोरेंट से जब मैं बाहर निकला तो गोलियां कैसे चलीं ?” 

“अंम थे वां पे ।” बांकेलाल राठौर कह उठा- “बंसीलालो की फौज थारे पीछे जाने को हौवे कि अंमने उनो की कारों की फूंक निकालो दी, टायर 'वड' के ।”

"लेकिन बाद एक कार बाहर को खिसकेला ।” रुस्तम राव बोला। 

"हां । शायद उन्हीं लोगों से मुझे मुकाबला करना पड़ा।" देवराज चौहान ने गहरी सांस ली - "उस कार में चार लोग थे। दो तो जल्दी ही मेरी गोलियों का निशाना बन गये। बाकी दो से मुझे मुकाबला करना पड़ा। एक से निपटने में तो मुझे भारी दिक्कत का सामना करना पड़ा।" 

“जो भी हौवो, मैदान तो मार लयो ।” 

“किस्सा खत्म हो गया बंसीलाल का।"

तभी नगीना देवराज चौहान का नाश्ता ले आई।

बातों के दौरान चौहान नाश्ता करने लगा। इस बीच वो महसूस कर रहा था कि जगमोहन और सोहनलाल खामोश से, व्याकुल से हैं।

"तुम दोनों किस सोच में हो?" देवराज चौहान ने उन्हें देखा। 

दोनों ने देवराज चौहान को देखा फिर आपस में । सोहनलाल ने गोली वाली सिग्रेट सुलगा ली 

"तुम मोना चौधरी को खत्म करने जा रहे हो ।” जगमोहन ने असहज स्वर में कहा।

देवराज चौहान की निगाह फौरन नगीना पर गई । जवाब में नगीना मुस्कराई और सहमति में सिर हिला दिया। यानि कि नगीना ने इन्हें रात वाली बात बता दी है। देवराज चौहान समझ गया कि इसी वजह से बांके और रुस्तम
राव यहां हैं ।

“हां ।” देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा। 

"पेशीराम ने तुमसे कहा कि अब की बार के टकराव में तुम्हारी जान चली जायेगी।"

“हां ।” देवराज चौहान के होंठों पर शांत मुस्कान उभरी । 

“पेशीराम ने ये भी कहा कि अगर मोना चौधरी को खत्म करने का विचार छोड़ दो तो ये वक्त टल जायेगा।"

“हां ।”

“तो तुम्हें मोना चौधरी से टकराव का ख्याल छोड़ देना चाहिये।” जगमोहन गुस्से से कह उठा ।

“क्यों ?" देवराज चौहान के चेहरे पर मुस्कान बराबर कायम थी। 

“छोटा-सा बच्चा भी समझ सकता है कि क्यों ?” जगमोहन का स्वर उखड़ा हुजा था- “जब पहले ही मालूम हो कि इस रास्ते पर आगे खाई पड़ेगी और उसमें गिरकर जान चली जाती है तो उस रास्ते पर जाने का क्या फायदा। इस बार मोना चौधरी के रास्ते पर जाने का विचार तुम्हें फौरन छोड़ देना चाहिये ।" 

“जगमोहन ठीक ही कहेला बाप ।" रुस्तम राव कह उठा- “फिर कभी देखेला मोना चौधरी को।" 

“अंम तो मोना चौधरी को 'वड' के रख दयो ।" बांकेलाल राठौर कह उठा - “पर म्हारे को 'वडने' की जल्दी का हौवे। दो-चार महीनो ठहरो के 'वडो' उसे को। वो भागो तो न जावे कई पे ।” 

देवराज चौहान की निगाह उन दोनों पर गई।

“ मैं दो-चार महीने का इन्तजार करना ठीक नहीं समझता।" देवराज चौहान बोला।

“जब तुम्हें मालूम है कि इस वक्त मोना चौधरी की तरफ बढ़ने से, तुम्हारी जान जायेगी तो तुम्हें रुक जाना चाहिये।” सोहनलाल गम्भीर स्वर में बोला- “पेशीराम का कहना कभी भी झूठ नहीं होता। ये तुम भी जानते हो। इस तरह आत्महत्या करना कहां की समझदारी है।"

- "मैं रात को भी अपनी जिन्दगी से हाथ धो सकता था।" देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा- "मेरे रिवाल्वर की गोलियां खत्म हो गई थीं और हालात ऐसे थे कि बचने का कोई रास्ता नहीं था। ऐसे बुरे वक्त पर राकेश नाथ ने मुझे रिवाल्वर देकर मुझ पर एहसान किया। लेकिन रिवाल्वर देने से पहले उसने मुझसे वायदा ले लिया था कि मैं उसका कहा काम करूंगा।"

“और वो काम मोना चौधरी को खत्म करने का है।" जगमोहन तीखे स्वर में कह उठा ।

“हां।”

“गलत कह रहे हो तुम। वो काम मोना चौधरी को खत्म करने का नहीं, बल्कि तुम्हारे आत्महत्या करने का है।" जगमोहन तेज स्वर में कह उठा- "पेशीराम ने तुमसे जो कहा है तुम्हें अच्छी तरह याद है।” “मौत के डर से मैं वायदे को नहीं तोड़ -।" 

"तुम वायदे को नहीं तोड़ सकते।" तेज स्वर ही था जगमोहन का- “लेकिन हमारे दिलों को तोड़ सकते हो। सारी जिन्दगी तुम हमारे लिए सपना बनकर रह जाओ और हम खुद को बिना हाथों के महसूस करते रहे। रातों को नींद न ले सके। दिन में कुछ करने का मन न करे। हम क्या तुम्हारी जुदाई सह सकते हैं। तुम हर बार अपनी मर्जी करते हो। मैंने तुम्हें कभी कुछ नहीं कहा। लेकिन इस बार तुम्हारी मर्जी नहीं चलने देंगे। क्योंकि तुम्हारी जिन्दगी का सवाल है । हमारा भी तो हक है तुम पर । कम से कम इतना तो हक है ही कि तुम कुएं में गिरने लगो तो तुम्हें बचा सकें।" 

जगमोहन को देखते हुए देवराज चौहान के चेहरे पर मुस्कान फैल गई।

“जगमोहन ठीक कह रहा है।" सोहनलाल ने व्याकुलता से कहा - "जान से ज्यादा कीमती कुछ नहीं होता। वायदा किया है तो उसे वहीं तक निभाना चाहिये, जहां तक अपनी जान सलामत रहे ।” 

“सोहनलाल बिल्कुल फिट कहेला बाप ।" रुस्तम राव ने कहा - "पहले जान, फिर जहान होएला ।”

“म्हारे को कुछ कहने को इजाजत दयो ।” बांकेलाल राठौर गम्भीर स्वर में कह उठा- “अंम थारे को नेई रोको । थारे से एक कदम आगे चल्लो हो । मोना चौधरी की तरफ तंम देखो अंम मोना चौधरी को 'वडो' हो । बस, अंम तो सिर्फ यो ही कहो कि दो-चार महीनो के सब्र के बादों ये सबो कर लयो ।”

"महज मौत के डर से रुकना मैं पसन्द नहीं करता।" देवराज चौहान ने शब्द चबाकर गम्भीर स्वर में कहा- "किसी और काम में पहले से ही व्यस्त होता तो जुदा बात थी। तुम लोग बार-बार एक ही बात दोहरा कर मुझे यहां से उठने पर मजबूर मत कर देना।"

“मतलब कि तुम अपनी मर्जी करोगे।" जगमोहन के चेहरे पर गुस्सा दिखाई देने लगा- “तुम्हें अपनी जान की परवाह नहीं लेकिन, हमें तो तुम्हारी जान की जरूरत है। हमारे लिए ही कुछ देर के लिए ये रास्ता छोड़ दो।”

तभी सोहनलाल कह उठा।

“ये राकेश नाथ है कौन? तुम्हें कहां मिला था? उसके बारे
में हम कुछ भी नहीं जानते।" 

“राकेश नाथ सुसरा होवे कौन। काहे मोना चौधरी को 'वडना' चाहो हो ।”

देवराज चौहान कल रात, रैस्टोरैंट से निकलने के बाद जो हुआ, वो बताने लगा। राकेश नाथ से हुई मुलाकात के बारे में बताने लगा।

***