तेईस जुलाई 2022

सुबह ग्यारह बजे।

पार्थ सान्याल अंबानी हाउस पहुँचा।

गार्ड से मालूम पड़ा कि आकाश और शीतल दोनों ही उस वक्त हॉस्पिटल में थे।

“और शुभांगी मैडम?” उसने पूछा।

“भीतर हैं, अभी थोड़ी देर पहले ही कहीं से लौटी हैं।”

“ठीक है, उन्हें खबर करो कि मैं मिलना चाहता हूँ।”

तत्पश्चात गार्ड ने इंटरकॉम पर इजाजत लेकर गेट खोल दिया।

पार्थ भीतर पहुँचा तो शुभांगी को ड्राइंगरूम में ब्रेकफॉस्ट करता पाया।

“आइए पार्थ साहब, बैठिए।”

“थैंक यू, लगता है मैंने आपको डिस्टर्ब कर दिया।”

“नो नेवर।”

“बहुत लेट नाश्ता करती हैं आप?”

“अरे नहीं, वो तो मैं अभी थोड़ी देर पहले ही अस्पताल से लौटी थी, इसलिए इतनी देर हो गयी, वरना तो आठ बजे ही मेरे पेट में चूहे दौड़ने लगते हैं।” कहकर उसने पूछा – “चाय लेंगे, या कहें तो नाश्ता ही मंगवा लूं। सुमन बहुत टैस्टी सांभर-बड़ा बनाती है, टेस्ट कर के देखिए।”

“जी नहीं, थैंक यू। अभी एक डेढ़ घंटा पहले ही खाना खाकर हटा था। अब और जगह नहीं है पेट में, आप आराम से ब्रेकफॉस्ट एन्जॉय कीजिए।”

“इतनी सुबह-सुबह खाना खा लेते हैं आप?” उसे कुछ हैरानी सी हुई।

“मजबूरी है मैडम, हमारा काम ही कुछ ऐसा है, जिसमें घर से निकलने के बाद कुछ खाने-पीने का वक्त मिल ही जायेगा, गारंटी नहीं की जा सकती। इसलिए सुबह जल्दी खाने की आदत डाल ली।” कहकर उसने पूछा – “आप क्या बीती रात अस्पताल में ही रही थीं?”

“हाँ, रात नौ बजे तक शीतल और आकाश वहाँ थे। उन्हें मैंने घर पर आराम करने भेज दिया था। मैं इस बात को लेकर बहुत डरी हुई हूँ पार्थ कि कहीं भैया पर फिर से कोई हमला न कर बैठे। शीतल हद दर्जे की लापरवाह है, कल दिन में ही वहाँ बैठी खर्राटे ले रही थी, इसलिए उस पर भरोसा नहीं कर सकती, और आकाश को तो मैं आज भी बच्चा ही समझती हूँ।”

“अंबानी साहब की हालत कैसी है अब?”

“कोमा में हैं तो हर रोज एक ही जैसी होनी है।” वह कांटे से उठाकर ‘बड़ा’ का एक पीस मुँह में रखती हुई बोली – “वैसे रात को मेरी डॉक्टर पुरी से लंबी बात हुई थी। वह कहता था कि पेशेंट की हालत अब पहले से कहीं ज्यादा स्टेबल है। मैंने तो उससे ये भी कहा कि भाई के चेहरे की प्लास्टिक सर्जरी करा दे, मगर वह कहता है कि उसके लिए कम से कम पंद्रह दिनों तक इंतजार करना पड़ेगा। हाँ, उससे पहले अगर वह कोमा से बाहर आ गये तो फिर कोई दिक्कत नहीं है। साथ ही अमेरिका के किसी ऐसे डॉक्टर के बारे में बता रहा था, जिसे प्लास्टिक और कॉस्मैटिक सर्जरी में महारत हासिल है। इसलिए सोच रही हूँ भैया ठीक हो जायें तो मैं उन्हें वहीं से लेकर अमेरिका ही निकल जाऊं।”

“चेहरा क्या बहुत खराब हो गया है? मैंने नजदीक से नहीं देखा था, इसलिए पूछ रहा हूँ।”

“कुछ जगहों पर हालत ज्यादा बद है। जैसे कि बाईं आँख के नीचे से हड्डी बाहर झांक रही है, ठुड्डी के ऊपर का भी बहुत सारा मांस गायब है और वहाँ एक छोटा सा गड्ढा नजर आने लगा है। नाक का भी काफी सारा हिस्सा जल गया है। शुक्र इस बात का है कि आँखों को कोई नुकसान नहीं पहुँचा वरना बड़ी प्रॉब्लम हो जाती।”

उसी वक्त एक ट्रे में पानी का गिलास रखकर सुमन वहाँ आ खड़ी हुई।

पार्थ ने गौर से उसे देखा।

खूबसूरत तो वह थी ही, मगर स्लीवलेस टॉप और कैप्री में तो जैसे कहर ही ढाये दे रही थी।

“नाम क्या है तुम्हारा?”

“जी सुमन।”

“कब से काम कर रही हो यहाँ?”

“तीन साल होने का आये हैं साहब जी।”

“तुम्हारे साहब और मैम साहब में कैसी बनती है?”

“ठीक-ठाक ही बनती है, कभी झगड़ा होते तो नहीं देखा मैंने।”

“झगड़े के अलावा भी बहुत सारी बातें होती हैं, जिससे हमें पता लग जाता है कि फलां इंसान फलां को पसंद करता है या नापसंद करता है। ऐसा ही कुछ कभी तुमने खुद महसूस किया हो उनके बारे में?”

“कोई बहुत बड़ी बात तो मैं नहीं बता सकती, लेकिन साहब को मैम साहब का छोटे-छोटे ड्रेस पहनना जरा भी पसंद नहीं था। बस उसी बात पर कभी-कभार गुस्से में आकर कुछ कह देते थे, वरना और कोई समस्या नहीं थी उनके बीच।”

“तुम भी तो इस वक्त वैसे ही ड्रेस पहने हुए हो, कल भी पहने थी। साहब तुम्हें कुछ नहीं कहते हैं?”

“ये तो टॉप और कैप्री है सर, छोटे कपड़ों से मेरा मतलब नेकर और बनियान जैसे दिखने वाले टॉप से था। मैडम अक्सर वैसी पोशाकें पहन लिया करती हैं। कई बार तो इतने छोटे जैसे कि स्विमिंग पूल वगैरह में नहाते वक्त विलायती लड़कियां पहना करती हैं।”

“स्विम सूट?”

“नाम मैं नहीं जानती, लेकिन अंडर गारमेंट से बस जरा ही बड़े हुआ करते हैं।” कहकर वह तनिक हिचकिचाती हुई बोली – “ये बात आप लोग मैडम को मत बताइएगा वरना फौरन मुझे नौकरी से निकाल बाहर करेंगी।”

“क्यों परेशान हो रही है।” शुभांगी बड़े ही प्यार से बोली – “हम क्यों कहने लगे उससे कुछ? और तू तो जानती ही है कि मैं शीतल को जरा भी पसंद नहीं करती, इसलिए खामखाह डरने की कोई जरूरत नहीं है।”

“और कुछ?”

“नहीं साहब, बाकी तो सब बढ़िया ही था उनके बीच।”

“कमाल है। तुम तीन सालों से यहाँ काम कर रही हो, और चौबीसों घंटे इस घर के अंदर ही रहती हो।” पार्थ ने अंधेरे में तीर चलाया – “ऐसे में ये क्या मानने वाली बात है कि कभी तुम्हें आकाश और शीतल के अफेयर की खबर ही न लगी हो।”

“कैसी बात कर रहे हो साहब जी?” सुमन चिहुंककर बोली।

“मिस्टर पार्थ?” शुभांगी के चेहरे पर गहरे अनिच्छा के भाव प्रगट हुए।

“मुझे अच्छी तरह से याद है मैडम कि आपने इस बात का जिक्र किसी के भी सामने करने से मना किया था, मगर मामले की तह तक पहुँचने के लिए इस लड़की के मुँह से सच्चाई उगलवाना बहुत जरूरी है।”

“अरे क्या अनाप-शनाप बोल रहे हो?” शुभांगी हकबकाई सी बोली।

“बस एक मिनट दीजिए प्लीज।” कहते हुए पार्थ ने अपने जाल को थोड़ा और फैल जाने दिया – “बस इतना जान लेने दीजिए कि इसका सच बोलने का इरादा है भी या नहीं। दोनों के अफेयर वाली बात पर अगर इंकार करेगी तो उसका साफ-साफ मतलब होगा कि किसी खास वजह से जुबान नहीं खोलना चाहती। और वह वजह एक ही हो सकती है कि इसे अंबानी साहब के ऊपर हुए हमले के बारे में सब-कुछ पता है। भला ये कैसे हो सकता है कि आकाश और शीतल के जिस अफेयर की खबर आपको ग्रेटर नॉएडा में रहते हुए भी लग गयी, उसकी इसे भनक तक न हो?”

“मुझे पता लग गयी?” शुभांगी चौंकी।

“मैं भी तो यही कह रहा हूँ मैडम कि यहाँ से दूर रहकर भी आपको वह बात पता लग गयी, तो क्या इसे नहीं मालूम होगा?” कहकर उसने सुमन की तरफ देखा – “ऐसी बात के बारे में छिपाने का क्या फायदा लड़की, जिसके बारे में मैं और शुभांगी मैडम पहले से ही जानते हैं। इसलिए सच बोलो वरना यही सवाल तुमसे पुलिस करेगी और वे लोग मेरी तरह तुम्हारा लिहाज भी नहीं करने वाले।”

“पार्थ...!” शुभांगी का चेहरा गुस्से से लाल हो उठा।

“मैडम प्लीज मुझे अपना काम करने दीजिए। और क्या हो जायेगा, जो ये आपके सामने उस बात को कबूल कर लेगी? वह भी उन हालात में, जब आप पहले से ही सब-कुछ जानती हैं।”

“अरे मुझे बोलने भी दोगे?” वह बुरी तरह झल्ला उठी।

“नहीं, अभी सिर्फ ये बोलेगी।”

“वॉट?”

“बोलो सुमन, सच्चाई अपने मुँह से कबूल करोगी या मैं पुलिस को कॉल करूं?”

“वो...वो...।” लड़की हकलाती सी बोली – “बात ऐसी है साहब जी कि मैंने कभी अपनी आँखों से कुछ नहीं देखा। हाँ, तीन चार बार मैडम को या आकाश साहब को एक दूसरे के लिए स्वीट हॉर्ट, डॉर्लिंग, या मेरी जान जैसे शब्दों का प्रयोग करते जरूर सुना था, मगर मैं ठहरी घर की नौकरानी, मेरे लिए इन बातों से दूर रहना ही ठीक होगा।” कहकर उसने दोनों हाथ जोड़ दिये – “प्लीज मैडम को मत बताइएगा।”

आखिरी बात कहते-कहते सुमन की आँखें डबडबा आयीं, जबकि गुस्से से उबलती शुभांगी हवा निकले गुब्बारे की तरह एकदम से पिचक कर रह गयी। वह कभी पार्थ की शक्ल देखती तो कभी सुमन की, जैसे अभी-अभी जो कुछ भी सुनकर हटी थी, उस पर यकीन ही नहीं कर पा रही हो।

“मैं किचन में जा रही हूँ।” सुमन धीरे से बोली।

“बैठ जा।”

“जी?”

“मैंने कहा बैठ जा, कम सुनती है?”

“सॉरी मैडम।” कहकर वह हिचकिचाती हुई उसके सामने सोफे पर बैठ गयी।

“कब से चल रहा है दोनों के बीच ये सब?”

“पक्का नहीं जानती मैडम, लेकिन साहब की शादी के कुछ महीनों बाद ही पहली बार मैंने शीतल मैडम के कमरे से आती आकाश साहब की आवाज सुनी थी। वह कह रहे थे कि तुम तो मेरी जान हो स्वीट हॉर्ट।”

“अच्छा सच-सच बता, कभी दोनों को गुत्थम-गुत्था होते भी देखा था?”

सुमन हिचकिचायी।

“बेफिक्र होकर बता, मैं या पार्थ किसी से भी जिक्र नहीं करेंगे।”

“देखा था।” वह सिर झुकाकर धीरे से बोली।

“कब देखा था?”

“साहब की पहली मैरिज एनिवर्सरी के अगले रोज दिन में।”

“क्या देखा था?”

“बड़े साहब के ऑफिस जाने के बाद छोटे साहब मास्टर बेडरूम में जा घुसे। मैडम पहले से ही भीतर थीं। दरवाजा बंद हो गया। मेरे को उत्सुकता हुई तो दरवाजे से अपने कान सटा दिये। फिर भीतर से ऐसी आवाजें आने लगीं, जैसे दो लोग एक-दूसरे को किस कर रहे हों।”

“देखा कैसे?”

“झपटती हुई किचन में गयी और खिड़की के रास्ते पीछे के कंपाउंड में उतर गयी। फिर साहब के बेडरूम की खिड़की के पास जाकर खड़ी हो गयी। वहीं से मैंने देखा कि मैडम बिना कपड़ों के बेड पर लेटी थीं और आकाश साहब...।”

“उसकी सवारी कर रहा था।” शुभांगी तिक्त लहजे में बोली – “है न?”

“जी मैडम।”

“ये बात तूने भाई साहब को क्यों नहीं बतायी?”

“कैसे बताती मैडम। आप तो जानती ही हैं कि बड़े साहब कितने गुस्से वाले हैं। मेरी बात पर उन्हें यकीन आ जाता तो फौरन दोनों को गोली मार देते, और नहीं आता तो मुझे उसी वक्त घर से निकाल बाहर करते।”

“ठीक है, मैं तेरी प्रॉब्लम समझ गयी। अब सच-सच बता कि जिस रात भाई पर हमला हुआ, तूने क्या देखा था? इस बात की मैं गारंटी करती हूँ कि तुझ पर कोई आंच नहीं आयेगी।”

“नहीं मैडम, मैं कसम खाकर कहती हूँ कि उस बारे में मैंने कोई झूठ नहीं बोला था। मैं सच में बिस्तर पर पहुँचते ही गहरी नींद सो गयी थी क्योंकि बुरी तरह थकी होने के साथ-साथ ड्रिंक भी कर रखी थी।”

अभी वह बातचीत चल ही रही थी कि पार्थ को अपने मोबाइल पर एक नोटिफिकेशन दिखाई दी, जो कि ‘द वॉचमैन’ के सॉफ्टवेयर पर कुछ अपलोड होने की सूचक थी।

पार्थ ने उसे क्लिक किया तो अमन सोनी का एक मैसेज दिखाई दिया।

‘मौर्या पर जिस गन से गोली चलायी गयी थी, वह आज सुबह उसके घर से थोड़ी दूरी पर मौजूद एक कूड़ेदान से बरामद हो गयी थी। आगे पुलिस ने जब उसका रजिस्ट्रेशन चेक किया, तो पता लगा कि वह पिस्तौल खुद सत्यप्रकाश अंबानी के नाम से रजिस्टर्ड है। अलबत्ता रिवॉल्वर के मेक और मॉडल के बारे में मेरा खबरी कुछ नहीं बता पाया।’

उस खबर ने पार्थ को बुरी तरह चौंकाकर रख दिया।

“हो सकता है न देखा हो, मगर कुछ सुना बराबर हो सकता है।” शुभांगी कह रही थी – “कई बार नींद में भी आवाजें हमारे कानों तक पहुँच जाती हैं। इसलिए भैया के कत्ल के मामले में अगर तुझे कुछ भी मालूम है तो मुझे बता दे। पार्थ के सामने मुँह नहीं खोलना चाहती तो कहीं और चल कर बोल दे। मैं वादा करती हूँ कि किसी भी हाल में तुझ पर आंच नहीं आने दूँगी।”

“नहीं मैडम, मैं नहीं जानती कि उस रात क्या हुआ था।”

“ठीक है, नहीं जानती तो ना सही।” शुभांगी ने एक गहरी सांस ली – “जाकर अपना काम देख, और भूल जाना कि तूने हमें क्या बताया था। इसी तरह हम भी भूल जायेंगे कि जो पता लगा वह तेरे जरिये लगा।”

“थैंक यू मैडम।” सुमन उठ खड़ी हुई।

“अंबानी साहब रिवाल्वर रखते हैं?”

“हाँ रखते हैं।” शुभांगी बोली – “क्यों?”

“एक ही है?”

“हाँ भाई, एक से ज्यादा पिस्टल का क्या काम है उनके पास? बल्कि एक भी

खामख्वाह ही खरीद ली थी, जिसकी कभी शायद ही जरूरत पड़ी हो उन्हें। काश वह पिस्टल उन्नीस की रात को उनके हाथों में रही होती तो आज हम ये नहीं सोच रहे होते कि उन पर हमला किसने किया था क्योंकि तब उस कमीने की या उन कमीनों की लाशें वहीं बेडरूम में पड़ी मिली होतीं।”

“इस वक्त वह रिवाल्वर कहाँ होगी?”

“क्या पता कहाँ होगी।” कहकर उसने किचन की तरफ बढ़ती सुमन को वापिस बुलाकर सवाल किया – “भैया के रिवाल्वर के बारे में कुछ पता है तुझे?”

“बेडरूम की आलमारी में होगी। दो तीन महीने पहले एक बार मैडम के कहने पर उनकी ड्रेस निकालने गयी थी तो गन उस वक्त वहीं रखी हुई थी।”

सुनकर शुभांगी ने पार्थ की तरफ देखा तो वह जल्दी से बोल पड़ा- “चेक करवाइए प्लीज।”

“सुमन!”

“जी मैडम।”

“देखकर आ।”

“ठीक है।” कहकर वह बेडरूम की तरफ बढ़ गयी।

“रिवाल्वर के बारे में सवाल क्यों?” शुभांगी ने पूछा।

“निशांत मौर्या के कत्ल की खबर लगी आपको?”

“हाँ, आज न्यूज में देखा था। बहुत बुरा हुआ बेचारे के साथ, जबकि मैं ये तक सोचने लगी थी कि उसी ने पार्टी वाली रात भैया को मार गिराने की कोशिश की थी।”

“जिस रिवाल्वर से मौर्या को गोली मारी गयी थी मैडम, वह अंबानी साहब के नाम से रजिस्टर्ड है। इसलिए ये हो ही नहीं सकता कि गन अभी भी बेडरूम में मौजूद हो। चेक करने के लिए ये सोचकर कहा कि क्या पता अंबानी साहब के पास एक की बजाय दो रिवाल्वर हों, जिनमें से दूसरी की खबर आपको नहीं लग पाई हो।”

“हो सकता है, लेकिन ये कैसे मुमकिन है कि उसी रिवाल्वर से मौर्या का कत्ल भी कर दिया गया?”

“कातिल अगर इस घर का ही कोई सदस्य है मैडम तो क्यों नहीं हो सकता?”

सुनकर शुभांगी के चेहरे पर पहली बार हबड़ाहट के भाव उभरे। फिर कुछ क्षण उसके कहे पर विचार करने के बाद बोली- “खबर कब लगी तुम्हें?”

“अभी-अभी मेरे एक कलीग ने जानकारी दी है।”

“यकीन नहीं आ रहा।”

“करना पड़ेगा मैडम। इतना तो अब तय समझिए कि अंबानी साहब पर

हमला आपकी भाभी या भाई में से ही किसी ने किया या करवाया हो सकता है। वैसे दोनों के रिश्तों को देखते हुए इस बात की संभावना ज्यादा है कि जो भी हुआ उनकी मिली भगत का नतीजा था।”

“आप तो मुझे डरा रहे हैं पार्थ साहब।”

“जबकि मैंने पहले दिन ही इसकी संभावना जाहिर कर दी थी।”

“अरे उस वक्त मुझे क्या पता था कि यूँ ही कही गयी तुम्हारी कोई बात बाद में सच साबित होती दिखाई देने लगेगी, इसलिए डर बराबर लग रहा है मुझे।”

“जबकि वक्त की मांग ये है मैडम कि डरने की बजाय खुद को एक बड़ा झटका झेलने के लिए तैयार कर लीजिए। वैसे आपके पास अभी भी वक्त है। हम क्योंकि हमलावरों के बारे में अभी हंड्रेड परसेंट श्योर नहीं हैं, इसलिए आप के कहने पर केस छोड़ सकते हैं, जो कि बाद में किसी भी हाल में मुमकिन नहीं हो पायेगा।”

शुभांगी ने कुछ क्षण उस बात पर विचार किया फिर बोली- “नहीं, अपराधी जो भी हो, उसे सजा मिलनी ही चाहिए, भले ही वह कोई मेरा छोटा भाई ही क्यों न हो। आप अपना काम कीजिए पार्थ साहब। रही बात झटके झेलने की, तो बहुत दम खम है मुझमें, बड़े से बड़ा शॉक भी हँसकर झेल सकती हूँ।”

“जैसी आपकी मर्जी।”

तभी सुमन लौट आयी।

“क्या हुआ?”

“आलमारी में तो नहीं है। क्या पता शीतल मैडम ने निकाल कर कहीं और रख दिया हो।”

“ठीक है, जाकर अपना काम कर।”

सुनकर वह किचन की तरफ बढ़ गयी।

“एक बात बताइए।” उसके जाने के बाद शुभांगी ने पूछा – “अगर दोनों के बीच कोई अफेयर चल भी निकला था तो उसमें भाई साहब पर जानलेवा हमला करने की नौबत क्योंकर आ गयी? दोनों उस सिलसिले को बिना खून खराबे के भी तो चलते रहना दे सकते थे?”

“डर होगा कि एक ना एक दिन उनका भांडा फूट जायेगा।”

“बेशक फूट सकता था, मगर उससे क्या हो जाता? दोनों अगर वाकई एक-दूसरे को पसंद करने लगे थे, तो शादी कर लेते। भाई साहब कोई सच में थोड़े ही उन्हें गोली मार देते, जैसा कि थोड़ी देर पहले सुमन अंदेशा जताकर हटी है।”

“किसी शॉर्ट टेंपर्ड इंसान के बारे में प्रिडिक्शन बहुत कठिन है मैडम, क्षणिक आवेश में वो क्या कर गुजरे इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता। भाई और बीवी के अफेयर की खबर सुनकर या सच्चाई अपनी आँखों से देख चुकने के बाद अंबानी साहब उस पर कैसा रियेक्ट करते, ये तो वैसा वक्त आने पर ही पता लग सकता था।”

“नहीं, असली वजह कुछ और है पार्थ। मैं अब ये नहीं कहूँगी कि भाई पर अटैक उनमें से किसी एक ने, या दोनों ने मिलकर नहीं किया हो सकता, लेकिन मर्डर अटेम्प्ट का कारण महज उनके रिलेशन नहीं रहे हो सकते हैं। इसलिए मुझे लगता है कि उस रात यहाँ कुछ ऐसा हुआ था, जिसकी तरफ अभी हमारा ध्यान नहीं जा रहा। और वही बात भैया पर जानलेवा हमले की वजह बनी थी।”

“ऐसा नहीं हो सकता मैडम। कत्ल की नौबत अचानक आई होती तो मर्डर वैपन सिर्फ एक होता। मत भूलिए कि मिस्टर अंबानी के चेहरे पर डाला जाने वाला तेजाब उस तरह का नहीं था, जिसका इस्तेमाल आम घरों में वॉशरूम वगैरह को साफ करने के लिए किया जाता है। जिस छुरे से उनका गला रेता गया, वह भी बेहद शॉर्प था, जिसका इस घर में पहले से रखा होने का कोई मतलब नहीं बनता था। फिर एक बड़ा छुरा उनकी छाती में भी घुसेड़ा गया था। और गोली जिस पिस्टल से चलायी गयी, उसके चोरी का निकल आने के चांसेज भी पूरे-पूरे है, जबकि हमला करने की नौबत अगर अचानक आई होती तो बड़ी हद किचन नाइफ का इस्तेमाल किया जा सकता था, या कोई सरिया वगैरह घर में होता तो उसका। बल्कि ऐसे ज्यादातर मामलों में कत्ल गला घोंटकर किया जाता है, इसलिए जो कुछ भी उन्नीस की रात को यहाँ घटित हुआ था वह बेशक योजनाबद्ध था।”

“ये भी तो हो सकता है पार्थ कि पहली बार हमला किसी एक ही हथियार से किया गया हो, फिर जब अपराधियों को लगा कि भैया मर चुके हैं, तो उन लोगों ने जानबूझकर केस को उलझाने के लिए खामख्वाह कुछ और हथियार इस्तेमाल कर डाले, जिसका इंतजाम करने के लिए उनके पास वक्त की कोई कमी नहीं थी। बाकी की चीजें रात को यहाँ से बाहर निकलकर अरेंज की गयी होंगी। और बाद में उनके आवागमन को साबित न किया जा सके, उसके लिए सावधानी ये बरती कि सर्विलांस रूम के कंप्यूटर की हॉर्ड डिस्क गायब कर दी।”

“कब? अगर वारदात को अंजाम देने से पहले किया था, तो जाहिर है सब-कुछ प्री प्लांड था।”

“बाद में किया होगा।”

“अगर ऐसा था तो कंपाउंड में मौजूद गार्ड्स ने उन्हें सर्विलांस रूम में आते जाते क्यों नहीं देखा?”

“क्या पता देखा हो, मगर सुमन की तरह वे लोग भी अपना मुँह बंद कर के

बैठ गये हों, ताकि कल को पुलिस के सवालों का सामना न करना पड़े। खामखाह की मुसीबत अपने सिर कौन लेना चाहता है पार्थ?”

सुनकर पार्थ का दिल हुआ कि शुभांगी को पार्टनरशिप अनुबंध के बारे में बता दे, ताकि उस औरत की समझ में ये बात आ सके कि जो हुआ वह प्री प्लांड था ना कि अचानक उसकी वजह पैदा हो गयी थी, मगर अभी अपने सारे पत्ते खोलने से उसने परहेज ही बरतना ठीक समझा।

“बात चाहे जो भी रही हो मैडम।” प्रत्यक्षतः वह बोला – “मगर उन हालात में भी तो स्थिति जस की तस है, बल्कि एक कारण ये भी हो सकता है कि अंबानी साहब को उन दोनों के अफेयर के बारे में पता लग गया होगा, और उन्हें पता लग जाने की भनक किसी तरह आपकी भाभी को भी लग गयी, जिसके बाद दोनों बुरी तरह भयभीत हो उठे, और डर के उसी आलम में अंबानी साहब पर हमला कर बैठे, बल्कि अपनी तरफ से तो खत्म ही कर दिया था।”

“नहीं हो सकता पार्थ। पार्टी में भैया बहुत खुश दिखाई दे रहे थे। और दिखावा करना उनकी फितरत में नहीं है। कहने का मतलब ये है कि अगर उन्हें आकाश और शीतल के अफेयर के बारे में पता लग गया होता तो उनका मूड वैसा नहीं होता जैसा कि दिखाई दे रहा था। और इस बात की भी गारंटी समझो कि उन्होंने कम से कम मुझसे तो वह बात शेयर जरूर की होती।”

“ऐसी बातें भी?”

“ऑफ़कोर्स। हम दोनों एक दूसरे के बहुत क्लोज हैं, इसलिए ये हो ही नहीं सकता कि आकाश और शीतल के अफेयर की बात वह मुझसे छिपा ले गये हों।”

“चलिए आप कहती हैं तो यकीन किये लेता हूँ।”

“एक बात और, गुस्सा भले ही हर वक्त भाई साहब की नाक पर रहता है, मगर बीवी के अफेयर के बारे में जानकर वह इस हद तक भड़क जाते कि दोनों का कत्ल ही कर देते, ऐसा सोचना भी मूर्खतापूर्ण होगा। सही मायने में कहूँ तो ऐसे बेवकूफ या तो लोअर क्लास में पाये जाते हैं या फिर मिडिल क्लास में, हाई सोसाइटी में लोग बाग अपने अफेयर पर पर्दा डालने की बजाय, जीवन साथी के साथ आमने-सामने बैठकर बात करते हैं कि ‘बस अब और नहीं रह सकते एक साथ।’ यानि नौबत हर हाल में तलाक तक पहुँचती है ना कि खून खराबे की वजह बन जाती है।”

“और क्या कारण रहा हो सकता है?”

“मेरे ख्याल से लालच।” वह विचारपूर्ण ढंग से बोली – “अगर सब किया धरा शीतल का है तो समझ लो वह जल्द से जल्द भाई की जायदाद पर अपना कब्जा देखना चाहती थी। और आकाश के साथ बन गये उसके संबंधों पर मुझे आश्चर्य भले ही हो रहा है, मगर वह कोई इतनी बड़ी बात नहीं है, जिस पर यकीन ही न किया जा सके। एक जवान लड़की को दूसरा जवान लड़का जो सुख दे सकता है, खुशी दे सकता है, वह अड़तालिस साल का मर्द वियाग्रा की गोली गटक कर भी नहीं दे सकता क्योंकि उसका चेहरा, उसकी स्टाइल, उसके हाव-भाव, उसकी उम्र सब ज्यों की त्यों रहते हैं। एक अरूचि सी हो आती है ऐसी औरत के दिल में अपने पति के लिए। खासतौर से तब, जबकि विकल्प सामने मौजूद हो। उम्मीद है मेरी बात समझ गये होगे?”

“जी समझ गया, लेकिन हमला अगर जायदाद के लालच में किया गया था, तो सवाल ये है कि आकाश ने अपनी भाभी का साथ क्यों दिया? उसे तो अलग से कुछ भी हासिल नहीं होने वाला था।”

“इसलिए दिया होगा क्योंकि शीतल उसे अपने खूबसूरत जिस्म की सवारी करने का मौका दे रही थी।” इस बार शुभांगी बड़े ही तिरस्कृत लहजे में बोली – “पागल हो गया होगा, सनक गया होगा, उलझ कर रह गया होगा उसके हुस्न जाल में। ऐसे ही थोड़े कहा गया है कि खूबसूरत औरत मर्द की मति भ्रष्ट कर के रख देती है। और शीतल कितनी खूबसूरत, हॉट और सेक्सी है, ये बात तुम उससे मिलकर जान ही चुके होगे। अभी तो आकाश ने उसके कहने पर सिर्फ अपने भाई पर हमला किया था, मगर कल को अगर वह कहे कि उसे दस लोगों का खून पीना है तो शायद आकाश वह भी करने से बाज न आये। हुस्न का जादू इसी को कहते हैं मिस्टर पॉर्थ, जो हमेशा सिर चढ़कर बोलता है, जिससे बच निकलना आसान नहीं होता, आकाश जैसे लड़के के लिए तो हरगिज भी नहीं, जिसकी कोई गर्लफ्रेंड तक न रही हो।” कहकर उसने एक अफसोस भरी सांस खींची – “बेचारा मेरा भाई, डायन के चंगुल में फंस गया।”

“वेरी वेल सेड मैम।” वह बोला, जबकि मन ही मन सोच रहा था कि कैसे वह औरत अपने भाई को यूँ प्रेजेंट कर रही थी, जैसे शीतल ने उसे बलि का बकरा बना दिया हो। इतना भी बेवकूफ नहीं होता कोई इस दुनिया में, फिर वह तो करोड़ों का वारिस था, देश दुनिया देख चुका था।

“इसलिए ये कोई हैरानी की बात नहीं है।” शुभांगी कह रही थी – “अगर उसने बहला फुसला कर आकाश को भाई के कत्ल में साथ देने के लिए तैयार कर लिया हो। बावजूद इसके, मैं ऊपर वाले से यही दुआ करती हूँ कि आपकी सोच गलत हो, असल में सारा किया धरा किसी और का निकल आये। वरना हमारा तो पूरा परिवार ही बिखर जायेगा।”

“माफी के साथ कहता हूँ मैडम कि आप अपने छोटे भाई को कुछ ज्यादा ही

नन्हा-मुन्ना और सीधा सादा साबित करने पर तुली हुई हैं, जबकि वह तीस साल का है, खूब पढ़ा लिखा भी है। कैसे वह इस हद तक अपनी भाभी के जाल में उलझ सकता था, जब तक कि उसकी खुद की मंशा भी अंबानी साहब के कत्ल की न रही हो?”

“तो कोई दूसरा हथकंडा अपनाया होगा कमीनी ने, जार-जार होकर रोते हुए, आँखों में मगरमच्छी आंसू भरकर कोई कहानी सुना दी होगी आकाश को, जिसके बाद वह पिघल गया होगा, उसे तरस आने लगा होगा उस औरत पर।”

“कैसी कहानी?”

“भाई साहब को विलेन साबित कर दिया होगा, जो उस पर जुल्म करते थे, उसे यातनाएं देते थे। इनह्यूमन सेक्स की भी कथा कहने बैठ गयी हो तो कोई बड़ी बात नहीं होगी, जिसे सुनकर आकाश को अपना बड़ा भाई राक्षस नजर आने लगा होगा।”

“कोई तजुर्बा किया लगता है मैडम?”

“भगवान् बचायें ऐसे तजुर्बों से पार्थ, लेकिन दुनिया का सच यही है। अपना उल्लू सीधा करने के लिए कौन किस हद तक गिर जायेगा, अंदाजा लगाना आसान काम नहीं होता। फिर जुबानी कुछ कह देने या किसी पर गलत आरोप लगा देने में हमारा जाता भी क्या है? आकाश क्या उसकी बात सुनकर सत्य भाई से ये पूछने चला जाता कि वह क्यों उसकी भाभी के साथ इतनी बेरहमी से पेश आते हैं?”

“नहीं, उसकी उम्मीद तो ना के बराबर है।” कहता हुआ पार्थ उठ खड़ा हुआ – “अब इजाजत दीजिए।”

“कोई नयी बात पता लगे तो फौरन बताना मुझे।”

“ये भी कोई कहने की बात है मैडम।”

अंबानी हाउस से निकलकर वह अपनी कार में सवार हुआ ही था कि मोबाइल पर बार-बार बीप की ध्वनि सुनाई देने लगी। पैटर्न लॉक हटाकर देखा तो पाया कि वॉचमैन के एप्प की नोटिफिकेशन थी, जिस पर क्लिक करते ही एक ऐसी तस्वीर पर उसकी निगाह पड़ी, जिसमें एक उम्रदराज मर्द अपने से बेहद कम उम्र लड़की के साथ बिस्तर पर लेटा था। दोनों की स्थिति देखकर लगता था जैसे अभी-अभी इंटीमेट होकर हटे हों।

मर्द सत्यप्रकाश अंबानी था, जबकि लड़की की शक्ल पर निगाह पड़ते ही पार्थ सान्याल बुरी तरह से चौंक उठा। उसके दिमाग में एक साथ कई तरह के भयानक ख्याल उमड़ने लगे।

तस्वीर के नीचे एक कैप्शन थी:

‘ये टाइमबम शीतल अंबानी के मोबाइल से उड़ाया है मैंने।’

ये कोई कम हैरानी की बात थी कि शीतल को वैसी किसी बात की पहले से खबर थी।

‘तो क्या अंबानी पर हुए हमले की वजह आकाश और शीतल के संबंध नहीं थे?’

‘क्या सत्यप्रकाश के अफेयर के कारण उसकी जान लेने की कोशिश की गयी थी?’

बुरी तरह उलझ कर रह गया पार्थ सान्याल।

*****

“किसने मारा होगा निशांत और अनंत को?” शीतल ने बहुत ही धीमे लहजे में अपने सामने बैठे आकाश से सवाल किया, जबकि वह अच्छी तरह से जानती थी कि जवाब नहीं मिलने वाला।

दोनों इस वक्त अंबानी नर्सिंग होम के रेस्टोरेंट में बैठे कॉफी पी रहे थे। मरणासन्न अवस्था में पड़े सत्यप्रकाश की उन्हें कोई परवाह तो नहीं थी, मगर शुभांगी के घर पहुँच जाने के बाद बात करने का मौका हासिल नहीं होने वाला था, इसलिए अस्पताल चले आये थे।

“क्या पता किसने मारा, और किसी ने भी मारा हो, हमें क्या फर्क पड़ता है?” कहकर उसने संदेह भरी निगाहों से भाभी को देखा- “कहीं तुमने ही तो ठिकाने नहीं लगा दिया दोनों को? कल घंटों तक बंद भी रही थी अपने कमरे में, वहीं थी? या पीछे वाली खिड़की से निकलकर कत्ल करने पहुँच गयी थी?”

“क्या बात है।” शीतल मुस्कराई – “मेरा बाबू तो अब दिमाग भी चलाने लगा है।”

“जवाब दो प्लीज।”

“तुम पागल तो नहीं हो गये हो? वह दोनों हमारी तरफ थे, ऐसे में उनका कत्ल क्यों करने लगी मैं? फिर ये क्यों भूल जाते हो कि मौर्या का कत्ल सुबह दस बजे हुआ बताया जाता है, और वह वही वक्त था, जब पार्थ हमसे मिलने आया था।”

“तो फिर इतनी चिंतित क्यों दिखाई दे रही हो?”

“उसके ढेर सारे रीजन हैं इडियट। जरा सोचकर देखो कि पूरे मामले में हमने मौर्या और अनंत को क्यों शामिल किया था? इसलिए किया था न कि सस्पेक्ट्स बढ़ जायेंगे, और वह काम तब होता जब आगे हम चारों पुलिस को तरह-तरह के शकउपजाऊ बयान देते। उन्हें टुकड़ों में राणे और मजूमदार के बारे में बताते। और जब एक ही बात चार लोगों के मुँह से सुनने को मिलती तो कोई मतलब ही नहीं बनता था कि पुलिस का खास ध्यान उनकी तरफ नहीं जाता, मगर अभी का हाल देखो; दोनों ही हमारे किसी काम के नहीं रहे। यानि आगे जो कुछ भी करना है वह हमें ही करना है, जिसका कोई ज्यादा असर पुलिस पर नहीं होने वाला। बल्कि जल्दी ही उन्हें ये भी लगने लग सकता है कि मौर्या और अनंत को हम लोगों ने ही मार गिराया था।”

“हम कोशिश करेंगे कि ऐसा न हो।”

“यही तो समझ में नहीं आ रहा कि कैसे करें।”

“राणे और मजूमदार की तरफ उनका ध्यान तो पहले ही डाइवर्ट कर चुके हैं हम लोग, ये कहकर कि दोनों को पार्टी के लिए इनविटेशन नहीं भेजी गयी थी। बस उसी बात को किसी दूसरे तरीके से थोड़ा और पुख्ता कर के दिखाना होगा।”

“वह तो मैं भी समझ रही हूँ बेबी, मगर होगा कैसे?”

“देखो, मौर्या और अनंत के बारे में पुलिस हमसे सवाल जवाब जरूर करेगी। उसी दौरान हम उन्हें बता देंगे कि मौर्या की राणे के साथ काफी दिनों से अनबन चल रही थी, जो कि कुछ हद तक सच भी है, इसलिए पुलिस जब जांच पड़ताल करना शुरू करेगी तो हमारी बात साबित होकर रहनी है। फिर उनके सवालों का रूख हम किसी तरह अनंत की तरफ घुमायेंगे और कह देंगे कि मजूमदार की उसके साथ किसी बात को लेकर तगड़ी रंजिश थी। जब हमारी कही एक बात सच साबित हो जायेगी तो दूसरी पर भी वे लोग सहज ही यकीन कर लेंगे।”

“पुलिस ऐसी बातों से नहीं बहला करती बच्चे, उन्हें रोज ऐसी कहानियां सुनने को मिलती रहती हैं, इसलिए कुछ बड़ा सोचना होगा। कुछ ऐसा, जो एक ही झटके में केस का रूख पलट कर रख दे।”

“फिर तो तुम ही सोचो, मेरा दिमाग इससे आगे काम नहीं करने वाला।”

तत्पश्चात थोड़ी देर की चुप्पी के बाद शीतल बोली- “सोच लिया।”

“क्या सोच लिया?”

“तुम्हारे भाई का अफेयर चल रहा था।”

“पूछ रही हो या बता रही हो?”

“बता रही हूँ।”

“किसके साथ?”

“विक्रम राणे की बीवी के साथ।”

“वॉट?”

“बहुत पहले एक बार देखा था मैंने आयशा को, एक नंबर की मर्दमार औरत दिखाई दे रही थी। ऐसी औरत, जिसको देखते ही मर्द उस पर टूट पड़ें। साथ में भूखी भी बराबर थी, आस-पास खड़े मर्दों को ललचाई निगाहों से देख रही थी। हालांकि पहन उसने साड़ी रखी थी, ऊपर से पल्लू भी डाल रखा था सिर पर, मगर खूबसूरती थी कि छिपाये नहीं छिप रही थी।”

“और भूखी भी थी, ये कैसे ताड़ लिया तुमने?”

“कहा न, पार्टी में मौजूद हैंडसम मर्दों को ललचाई निगाहों से देख रही थी।”

“पहले तुमने हैंडसम वाली बात नहीं कही थी।”

“अरे बात का मर्म समझ बेटा।”

“बेटा?” आकाश बड़े ही कुत्सित भाव से हँसा।

“मैं तेरा सिर फोड़ दूँगी, वरना मुझे अपनी बात पूरी करने दे।”

“ठीक है, बोलो।”

“राणे उस पर किस तरह लगाम लगाकर रखता है, इसका पता इसी बात से चल जाता था कि वह औरत मॉर्डन लोगों की पार्टी में सिर पर पल्लू डाले खड़ी थी। असल में वही बात तुम्हारे भाई की उसके साथ अफेयर की वजह बनी थी। आयशा की सादगी पर मर मिटा था वह।”

“मैं समझा नहीं।”

“राणे उस पर सख्ती करता था, जबकि तुम्हारा भाई पुच-पुच करने लगा। फिर भूखी तो वही थी ही, लिहाजा दोनों के बीच अफेयर होते देर नहीं लगी। वैसे भी तुम्हारे भाई को मॉडर्न लड़कियां बिल्कुल भी पसंद नहीं हैं, ऐसे में उसका पूरी तरह से तन को ढककर रखने वाली आयशा पर दिल आ गया। उधर वह भी अपने पति द्वारा लगाई गयी पाबंदियों से आजिज आ चुकी थी, लिहाजा मौका मिलते ही उड़ने लगी, आसमान में परवाज करने लगी।”

“कहानी अच्छी सोची है तुमने। तुम्हें तो फिल्मों की स्क्रिप्ट लिखनी चाहिए।”

“मैं फिल्मों की स्क्रिप्ट लिखने लगूंगी साले तो तेरी कलम का क्या होगा? तू कहाँ जाकर अपनी स्क्रिप्ट लिखेगा?”

“गाली मत दो यार प्लीज।”

“बुरी लगती है?”

“नहीं, अमूमन तो तुम्हारे मुँह से गाली सुनकर मजा ही आता है, लेकिन ये तो सोचो कि हम दोनों इस वक्त कहाँ बैठे हैं?”

“ये भी ठीक कहा तुमने, मगर क्या करूं जब भी स्टोरी टेलिंग शुरू करती हूँ खो सी जाती हूँ, आस पास का ख्याल ही नहीं रहता। खैर आगे की कहानी ये है कि असल में वह औरत ही तुम्हारे भाई और राणे के बीच दुश्मनी की बुनियाद बनी थी। वह क्योंकि तुम्हारे भाई के लिए काम करता था, इसलिए सत्य की पहुँच उसके घर तक हो जाना स्वाभाविक बात थी। वह अक्सर राणे के घर पर ना होने के दौरान वहाँ जाने लगा। आगे दोनों को नजदीक आने में जरा भी देर नहीं लगी, क्योंकि तुम्हारा भाई आये दिन उसे महंगे-महंगे तोहफे देने लगा था, जिसके लालच में वह फंसकर रही थी।”

“अभी-अभी तुमने कहा था कि भूखी थी इसलिए वैसा कर बैठी, ये भी कहा था कि पति की लगाई पाबंदियों से तंग आ चुकी थी इसलिए मौका मिलते ही उड़ने लगी।”

“याद दिलाने के लिए थैंक यू। समझ लो तीनों ही बातें जिम्मेदार थीं उनके अफेयर के लिए। याद रखना पुलिस को इस बारे में बताते वक्त जगह-जगह शायद का प्रयोग करना है। जैसे कि शायद वह अपने पति से खुश नहीं थी क्योंकि वह उस पर पाबंदियां लगाकर रखता था, शायद भाई साहब की दौलत के चकाचौंध में फंसकर वह उनके साथ संबंध बना बैठी थी, वगैरह-वगैरह।”

“और तुम्हें उस बात की खबर कैसे लगी?”

“एक रात सत्य ने नशे के आलम में सब-कुछ बक दिया था।”

“और मुझे कैसे पता लगा?”

“ओह, ये तो गड़बड़ हो जायेगी। नहीं, तुम रहने देना। इस बारे में पुलिस को जो भी बताना होगा, मैं खुद बताऊंगी क्योंकि तुम्हारे लिए ये कहना ठीक नहीं होगा कि भाभी ने बताया था। ऐसी बातें भला मैं तुम्हारे साथ क्यों शेयर करने लगी?”

“दिमाग एकदम लोमड़ी वाला पाया है तुमने, जरा-जरा से प्वाइंट भी नजरअंदाज नहीं करतीं।”

“थैंक यू स्वीट हॉर्ट।”

“शी...।”

“क्या हुआ?”

“धीरे बोलो यार।” आकाश आस-पास सावधान निगाह डालता हुआ बोला – “कोई सुन लेगा तो आफत आ जायेगी।”

“ज्यादा लाउड बोल गयी थी?”

“अभी नहीं, लेकिन तुम्हारी आवाज लगातार ऊंची होती जा रही थी।”

“ओह!” इस बार शीतल अपनी आवाज को थोड़ा दबाकर बोली – “ये तो हुई विक्रम राणे को शक के एक मजबूत दायरे में खड़ा करने की योजना, जो कि पार्टी में शिरकत के कारण पहले से ही पुलिस की निगाहों में है। अब मजूमदार के बारे में सुनो।”

“और मैं क्या कर रहा हूँ?”

“सुमन के बारे में तुमने ही मुझे बताया था कि...।”आकाश की बात को

नजरअंदाज कर के वह बोली – “हमारे यहाँ आने से पहले वह मजूमदार के घर में काम किया करती थी।”

“बहुत पुरानी बात है, मेरे ख्याल से तीन साल बीत चुके होंगे।”

“नौकरी क्यों छोड़ी थी उसने?”

“बताया तो था।”

“फिर से बता दो, ताकि कोई बात छूट न जाये।”

“एक रात शराब के नशे में धुत्त मजूमदार उसके साथ जबरदस्ती पर उतर आया। उस वक्त सुमन किचन में काम कर रही थी। कमीने ने उसे वहीं फर्श पर पटका और बलात उसके साथ मुँह काला करने की कोशिशों में जुट गया, मगर तभी सुमन के हाथ में जाने कैसे एक फ्राईपैन आ गया, जिसे उसने पूरी ताकत से मजूमदार के सिर पर मारा और उसी वक्त उसका घर छोड़ दिया।”

“मजूमदार ने क्या शादी नहीं की है?”

“की क्यों नहीं है। सुमन से उम्र में कहीं बड़ी उसकी एक बेटी भी है, मगर जिस रात वो घटना घटित हुई, माँ अपनी बेटी के साथ मायके में थी। तभी तो मजूमदार की हिम्मत हो गयी वैसा कुछ करने की।”

“सुमन मान क्यों नहीं गयी उसकी बात?”

“कमाल करती हो। वह साला पचपन साल का था, जबकि सुमन मुश्किल से बाईस की रही होगी। क्या मतलब बनता था ऐसी बातों का? ऊपर से वह कुछ ज्यादा ही शरीफ लड़की है, इसलिए भी उसे गुस्सा आ गया हो सकता है।”

“तुमने कभी ट्राई नहीं किया सुमन को आखिर हॉट है, सेक्सी है?”

“हे भगवान्! अरे मेरे मन में ख्याल तक नहीं आया होगा।”

“फिर कैसे जानते हो कि वह शरीफ लड़की है?”

“हाव-भाव से अंदाजा लग ही जाता है।”

“थोड़ी देर वेट करो बेबी, उसकी शराफत ऐसा जनाजा निकालूंगी कि होश उड़ जायेंगे तुम्हारे?”

“तुम चाहे जो उल्टा सीधा कह लो उसके बारे में, मगर मैं यकीन नहीं करने वाला।”

“मैं करा कर रहूँगी डॉर्लिंग, मगर उससे पहले तुम मुझे ये बताओ कि मजूमदार के यहाँ से नौकरी छोड़कर वह अंबानी हाउस कैसे पहुँच गयी? या किसी को पहले से जानती थी हमारे यहाँ, जैसे कि किसी नौकर को?”

“हाँ जानती थी। एक बुजुर्ग रसोइयां हुआ करता था उन दिनों हमारे यहाँ, जो कि अब अपने गांव में रहता है। उसी की दूर की भतीजी लगती है सुमन। एक रोज भाई साहब से बात कर के उसने सुमन को बंगले पर बुलाया, जिसके बाद ये सुनते ही भैया ने उसे काम पर रख लिया कि वह मजूमदार के यहाँ नौकरी कर चुकी थी, क्योंकि उन दिनों भाई साहब की मजूमदार से बहुत अच्छी निभती थी।”

“सत्य ने मजूमदार से नहीं पूछा कि सुमन ने वहाँ से नौकरी क्यों छोड़ी?”

“ना तो उससे पूछा, ना ही सुमन से पूछा क्योंकि रसोइयां हमारे यहाँ बहुत सालों से काम कर रहा था, मैं तो उसे बचपन से देखता आया था। और ऐसा इंसान जब सुमन को अपनी भतीजी बता रहा था तो कुछ और पूछताछ करने की जरूरत ही क्या थी।”

“अगर ऐसा था तो फिर बाद में बवेला क्यों मच गया? उसी बात को लेकर मजूमदार और सत्य में ठन क्यों गयी?”

“सच पूछो तो जो हुआ उसके होने की कोई वजह नहीं थी। भैया आमतौर पर नौकरों से बातचीत नहीं करते हैं, उनके पर्सनल मामलों के बारे में सवाल तो हरगिज भी नहीं, मगर एक रोज जाने क्या सूझा कि नाश्ता करते हुए उससे पूछ बैठे कि उसने मजूमदार के यहाँ से नौकरी क्यों छोड़ी थी। तब तक सुमन को हमारे घर में काम करते दो या तीन महीने बीत चुके थे।”

“फिर क्या हुआ?”

“वह सवाल सुनते ही सुमन ने रोना शुरू कर दिया। भैया चाहे कितने भी सख्त दिल क्यों न हों, अपने सामने एक बच्ची को रोते देखकर द्रवित हो उठे, जिसके बाद उन्होंने बार-बार उससे सवाल किया, तब आखिरकार सुमन ने असली बात बता दी। सुनकर वह यूँ भड़के कि मैं तो एकदम हैरान ही रह गया। उतना गुस्से में उन्हें पहले कभी नहीं देखा था।”

“फिर क्या हुआ?”

“उसी वक्त सुमन को लेकर मजूमदार के क्लिनिक पहुँच गये, और पेशेंट्स से खचाखच भरे क्लिनिक में ही उसकी जमकर लानत-मलानत कर डाली। उस दौरान मजूमदार से गलती ये हुई कि उसने पुलिस बुलाने की धमकी दे डाली। तब भाई भी इस जिद पर अड़ गये कि वह जिसको चाहे बुला ले। करीब आधे घंटे तक वहाँ बहसबाजी होती रही, फिर गुस्से में आकर भैया ने मजूमदार को एक कस का चांटा जड़ा और ये कहकर बाहर निकल गये कि वह उसे जेल की हवा खिलाकर रहेंगे।”

“कमाल है एक नौकरानी के लिए इतना कुछ?”

“मेरे ख्याल से भैया को ज्यादा गुस्सा इस बात पर आया था कि सुमन की उम्र बहुत कम थी, एकदम बच्ची दिखाई देती थी वह। आज भले ही उसका बदन भरा-भरा लगता है, मगर उन दिनों बहुत पतली दुबली हुआ करती थी।”

“बच्ची?” शीतल बड़े ही कुत्सित ढंग से हँसी।

“हाँ बच्ची, बल्कि वह आज भी वही है। बस तुम औरतें इस बात को पचा नहीं पाती हो कि कोई मर्द किसी चौबीस-पच्चीस साल की लड़की को बच्ची का संबोधन दे, क्योंकि उससे तुम्हें खुद की उम्र अचानक बढ़ सी दिखाई देने लगती है।”

“अरे ट्रैक पर बना रह यार, क्यों खामख्वाह की पैरवी कर रहा है?”

“आगे ये हुआ कि भाई की धमकी सुनकर मजूमदार बौखला उठा। उसकी विक्रम राणे के साथ गहरी दोस्ती थी, सो फौरन उसे अपने क्लिनिक बुला लिया और किसी भी तरह भाई को शांत करने की रिक्वेस्ट की, जिसके बाद कुछ कोशिशें उसने की और कुछ सुमन ने, जो कि हरगिज भी रिपोर्ट दर्ज नहीं कराना चाहती थी। फिर राणे ने मजूमदार को बुलवाकर सुमन को सॉरी बुलवाया और मामला खत्म हो गया, मगर उस दिन के बाद भैया ने मजूमदार के साथ तमाम रिश्ते तोड़ लिए।”

“मैं समझ नहीं पा रही हूँ कि दोनों के बीच कोई रिश्ता बना ही कैसे? जबकि तुम कहते हो कि वह महज एक क्लिनिक चलाता था। ऐसे में ऊंची नाक और रूतबे वाले तुम्हारे भाई की उससे पहचान क्योंकर बन गयी?”

“अरे क्लिनिक इसलिए कहा क्योंकि ‘मजूमदार क्लिनिक’ उसका रजिस्टर्ड नेम है, जबकि असल में तो वह हमारे नर्सिंग होम से भी कहीं बड़ा और शानदार अस्पताल है, मगर उस घटना के बाद सालों तक मजूमदार को मंदी की मार झेलनी पड़ी थी, पेशेंट्स ने यूँ किनारा किया कि आमदनी ही खत्म होकर रह गयी थी। हाँ, आजकल सुनने में आता है कि फिर से पहले जैसा चल निकला है।” कहकर उसने सवाल किया – “अब बताओ, आगे हम क्या करने वाले हैं?” 

“हम नहीं सुमन करेगी।”

“क्या?”

“वह पुलिस को ये बतायेगी कि उस घटना के बाद दोनों पार्टियों में सुलह हो गयी और सब-कुछ ठीक ठाक चल निकला था, मगर अभी चार-पांच रोज पहले जब वह मार्केट गयी थी तो अचानक उसका आमना-सामना मजूमदार से हो गया, जिसने कहा कि वह उसके कारण हुई अपनी बेइज्जती को भूला नहीं है। एक ना एक दिन बदला लेकर रहेगा, और ऐसा बदला लेगा कि किसी को मुँह दिखाने के काबिल नहीं रह जायेगी वह। सुनकर सुमन रोती हुई घर पहुँची, तब सत्य ड्राइंगरूम में ही बैठा था। लड़की ने उन्हें मजूमदार की धमकी के बारे में बताया तो तीन साल पहले की ही तरह इस बार भी उनका खून खौल उठा। उसने उसी वक्त फोन कर के मजूमदार को खरी खोटी सुनाई और ये धमकी दी कि पिछली बार भले ही वह बच गया था मगर इस बार उसे जेल भिजवाकर मानेगा।”

“नहीं चलने वाला।”

“क्यों?”

“पुलिस सिर्फ सुमन के कहने भर से थोड़े ही यकीन कर लेगी। देख लेना वह भाई साहब के मोबाइल की कॉल डिटेल्स जरूर चेक करेंगे, ये देखने के लिए कि उन्होंने हाल-फिलहाल मजूमदार को कोई फोन किया भी था या नहीं।”

“वह कॉल सत्य ने अपने मोबाइल से नहीं बल्कि घर के लैंडलाइन फोन से किया था इडियट, जिसका रिकॉर्ड चेक करने पर उन्हें कोई कमी नहीं मिलेगी।”

“कैसे?”

जवाब में शीतल ने बड़ी स्टाइल से मुस्करा कर दिखाया।

“तुमने कॉल किया था उसे?”

“ऑफ़कोर्स किया था।”

“कब?”

“सत्य पर हमले से चार दिन पहले।”

“वह ये नहीं कहेगा कि कॉल सत्य ने नहीं बल्कि तुमने की थी?”

“पड़ा कहता रहे, मेरा क्या बिगाड़ लेगा। वह भी तब, जबकि मैंने मुँह से कोई आवाज निकाली ही नहीं थी। और वह इतना बड़ा गधा था कि बहुत देर तक हैलो-हैलो करता रहा था। तब मैंने टाइम भी देखा था, पूरे तीस सेकेंड तक चली थी वह कॉल और किसी को धमकी देने के लिए उतना वक्त पर्याप्त होता है।”

“चलो मान लिया, मगर हासिल क्या होगा ये सब कर के?”

“वही, जो कि हम चाहते हैं। पुलिस ये सोचने पर मजबूर हो जायेगी कि कहीं मजूमदार सत्य की धमकी से डरकर ही तो उनका कत्ल करने पार्टी वाले दिन यहाँ नहीं पहुँच गया था? यह हमारी दोहरी मार होगी उस पर। जेल भले ही न जाये, लेकिन पुलिस उसको लेकर उलझन का शिकार बराबर होगी। ऐसी उलझन, जो कभी सॉल्व नहीं होगी।”

“अब लगे हाथों ये भी बता दो कि सुमन इतना बड़ा झूठ क्यों बोलेगी?”

“बड़ा झूठ कहाँ है, आधी बात तो सच ही है। उसने करना बस ये है कि पिछली बातें दोहराते हुए एक हालिया घटना का जिक्र भर कर देना है। उससे क्या बिगड़ जायेगा तुम्हारी ‘बच्ची’ का?”

“ना, वह हरगिज भी नहीं तैयार होगी। और जब हम उससे ऐसा करने को कहेंगे तो क्या उसकी समझ में नहीं आयेगा कि हम मजूमदार को फंसाने की प्लानिंग कर रहे हैं?”

“बेशक आ जाये, मगर करेगी वही, जो मैं चाहती हूँ।”

“तुम सोचती हो उसे नौकरी से निकालने की धमकी दोगी तो वह तुम्हारी

बात मान जायेगी, है न?”

“नहीं, उसके बिना भी मान जायेगी। इधर मैं उससे वह बात कहूँगी, उधर वह झट हामी से हामी भरती हुई बोलेगी- ‘ठीक है मैडम, मुझे कोई ऐतराज नहीं है’।”

“बड़े यकीन के साथ कह रही हो?”

“हाँ, कह रही हूँ।”

“वजह?”

“तुम्हें तो खबर तक नहीं है बेबी कि जो सुमन मजूमदार की जरा सी बद्तमीजी नहीं झेल पाई थी, वह बाद में तुम्हारे भाई पर दिल खोलकर अपनी नवाजिशें लुटाने लगी थी, ऐसे लुटाने लगी कि क्या मैंने कभी लुटाया होगा। और वह सिलसिला सत्य के हॉस्पिटल पहुँचने तक निर्बाध गति से जारी रहा था।”

“बकवास।”

“अरे मैंने अपनी आँखों से देखा था। दोनों का पोज इतना शानदार था कि अब क्या कहूँ। और तुम्हारा भाई, जो हर वक्त मुझे काट खाने को दौड़ता रहता है, यूँ दुलार रहा था सुमन को कि क्या कोई माँ अपने नवजात शिशु को दुलारती होगी।”

“मैं नहीं मानता।”

“मैं जानती थी तुम यही कहोगे, मगर मैं भी तुम्हारी अम्मा हूँ, अभी साबित कर के दिखाती हूँ।” कहकर उसने मोबाइल में एक पिक्चर ओपन कर के आकाश के सामने टेबल पर रख दिया।

उसने बड़ी हैरानी के साथ वह तस्वीर देखी, जैसे यकीन ही नहीं कर पा रहा हो, फिर बोला- “ये सुमन का कमरा है न?”

“और क्या नौकरानी को लेकर वह मास्टर बेडरूम में चला आता?”

“मगर ऐसी कोई तस्वीर लेने में कामयाब कैसे हो पाई, दरवाजा खुला तो नहीं छोड़ दिया होगा दोनों ने?”

“नहीं, खुला नहीं छोड़ा था मगर दोनों ये भूल गये थे कि हमारे घर के हर एक कमरे में एक खिड़की भी है, जिस पर पर्दा न पड़ा हो तो कम से कम रात के वक्त बाहर से भीतर देखने में कोई समस्या नहीं होती। उस रोज हुआ ये कि मैं तभी अपने घर से होकर लौटी थी। ड्राइंगरूम में कदम रखते ही मुझे सुमन के कमरे में दाखिल होते सत्य की हल्की सी झलक मिली। बस मेरे मन में कुछ खटक सा गया। आगे जब दरवाजा भी बंद हो गया तो समझते देर नहीं लगी कि माजरा क्या था। तब मैं बेडरूम की खिड़की के रास्ते बाहर निकली और उसके कमरे के पीछे पहुँच गयी हालांकि पर्दा तो पड़ा ही था, वहाँ मगर फिर भी एक हिस्सा थोड़ा सा खुला रह गया था। वहीं से मैंने तीन-चार तस्वीरें क्लिक कीं और वापिस खिड़की

के रास्ते अंदर आ गयी।”

“सच बताओ ये कहीं किसी ट्रिक फोटोग्राफी की तो देन नहीं है?”

“तुम समझते हो झूठी तस्वीर से वह लड़की हमारे काबू में आ जायेगी?”

“नहीं।”

“तो फिर यकीन क्यों नहीं कर लेते?”

“बात ही ऐसी है। मैं तो कभी सोच तक नहीं सकता था कि भाई इतने रंगीन मिजाज भी हो सकते हैं।” कहकर उसने पूछा – “पहले क्यों नहीं बताया?”

“बस ऐसे ही नहीं बताया। सोचा वक्त आने पर तुम्हें चौंकाने में मजा आयेगा। और देख लो तुम चौंक उठे। फिर हम कौन से दूध के धुले हैं, जो सत्य और सुमन के संबंधों पर उंगली उठाते फिरें।”

“उसके लिए तो खैर भैया ने तुम्हें मजबूर किया था।”

सुनकर शीतल पहले तो समझ ही नहीं पाई कि उसका इशारा किस बात की तरफ था, मगर अगले ही पल उसे याद आ गया कि कौन-कौन से झूठ बोलकर उसने लड़के को भाई के खिलाफ खड़ा किया था।

“ठीक कहते हो।” प्रत्यक्षतः वह बोली – “मगर आज मुझे उस बात का दुःख नहीं बल्कि खुशी है। तुम्हारे भाई ने मुझे मजबूर न कर दिया होता तो मेरा तुम्हारा साथ कभी नहीं बन पाया होता।”

“हाँ ये तो एकदम सही कहा तुमने। हैरानी की बात है कि तीन सालों में मुझे कभी इस बात की भनक तक नहीं लग पाई, जबकि मेरा ज्यादातर वक्त घर के भीतर ही गुजरा होगा।”

“इसलिए नहीं लगी क्योंकि तब तुम बच्चे थे, जवान तो मुझसे मिलने के बाद हुए हो स्वीटहॉर्ट। तराश-तराशकर मर्द बनाया है मैंने तुम्हें।”

“हाँ उस बात में तो कोई शक नहीं है।” आकाश मुस्कराता हुआ बोला।

“अब जरा सोचकर देखो कि पुलिस जब सुमन के मुँह से ये सब सुनेगी तो क्या मजूमदार की तरफ उनका ध्यान नहीं जायेगा?”

“जायेगा, लेकिन बाद में जब भैया कोमा से बाहर आयेंगे और उन्हें इस बारे में पता लगेगा, तो वह हैरान नहीं होंगे सुनकर?”

“आकाश मेरे बच्चे, इतना पापड़ क्या हम इसलिए बेल रहे हैं कि तुम्हारा भाई हमारी जिंदगी को नरक बनाने के लिए बिस्तर से उठकर खड़ा हो जाये?”

“मतलब?”

“वही, जो तुम समझ रहे हो। बस उस काम को फौरन नहीं किया जा सकता। पहले जाल बिछाना होगा, कईयों की तरफ शक भरी उंगली उठानी होगी, तब हम आखिरी और सशक्त वार करेंगे। उसके बाद पुलिस ढूंढती ही रह जायेगी कि सत्य

प्रकाश अंबानी को मारा तो आखिर मारा किसने।”

“एक नंबर की कुत्ती चीज हो तुम।”

“हाँ, वो तो मैं बराबर हूँ।” बुरा मानने की बजाय शीतल हौले से हँस दी।

“अब चलें?”

“नहीं, एक आखिरी बात सुन लो।”

“कौन सी बात?”

“मौर्या और अनंत के जाने के बाद हमारे लिए खतरा पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गया है।”

“मतलब?”

“पार्टनरशिप डील के कागज़ात को क्यों भूल जाते हो, जो कि आज नहीं तो कल पुलिस के हाथ लगकर रहने हैं। खासतौर से मौर्या के घर से, क्योंकि कत्ल जैसी वारदातों के बाद घटनास्थल की भरपूर तलाशी उनकी रूटीन में शामिल होता है।”

“फिर तो ये भी मुमकिन है कि पहले ही लग गये हों?” आकाश हड़बड़ाकर बोला।

“बिल्कुल मुमकिन है। नहीं लगे तो आगे लग जायेंगे, जिन्हें पढ़ते के साथ ही असल माजरा फौरन उनकी समझ में आ जायेगा। तभी मैं कहकर हटी थी कि मौर्या की हत्या के मामले में हमसे सवाल-जवाब होकर रहेगा।”

“तुम तो डरा रही हो मुझे। इस तरह तो अनंन गोयल के इंक्रीमेंट लेटर तक भी उनकी पहुँच बन सकती है। ऐसे में आगे कोई योजना बनाने से क्या हासिल होगा, गिरफ़्तार तो हम होकर ही रहेंगे।”

“नहीं, मैं वैसा वक्त नहीं आने दूँगी।”

“क्या करोगी, मौर्या और अनंत के घर में घुसकर डील के पेपर्स तलाशोगी?”

“कर सकती थी, अगर इस बात की गारंटी हो जाती कि पहले ही वह कागजात पुलिस के हाथ नहीं लग गये हैं। ऐसे में सिर्फ होपफुल थिंकिंग के भरोसे उसके घर में घुसने का रिस्क लेना गलत होगा। पता लगा पेपर्स तो हमें मिले नहीं, उल्टा किसी नये झमले में जरूर फंस गये। और वही स्थिति अनंत के फ्लैट की तलाशी के दौरान भी सामने आ सकती है।”

“फिर?”

“उसका एक तोड़ है मेरे पास, जिससे सौ फीसदी का फायदा तो हमें नहीं पहुँचेगा, मगर इतने की गारंटी फिर भी कर सकती हूँ कि कम से कम उन पेपर्स की वजह से हमारी गिरफ्तारी की नौबत नहीं आने वाली।”

“मुझे बताओ उस बारे में प्लीज।”

“बताती हूँ, ध्यान लगाकर सुनना। बाद में पूछताछ की नौबत आने पर हमारे जवाबों में बाल बराबर का भी अंतर नहीं आना चाहिए।”

“मेरी तरफ से निश्चिंत रहो।”

“गुड।” कहकर शीतल धीरे-धीरे उसे सब-कुछ समझाती चली गयी।

*****