नागेश और सुधाकर जब लिफ्ट से ऊपर पहुँचे तब तक अबरार अपने आदमियों के साथ आठवें माले तक पहुँच चुका था। पैंट्री से होते हुए वे दोनों रेस्टोरेंट में पहुँचे। उस समय वहाँ पर स्टाफ से अलग पचास के आसपास लोग मौजूद थे। समय रहते सिक्योरिटी के आदमी रेस्टोरेंट और पैंट्री का दरवाजा बंद करने में कामयाब हो गए थे। बाहर से अबरार और उसके साथी लगातार गोलियाँ बरसा रहे थे जिसकी वजह से रेस्टोरेन्ट का दरवाजा ज्यादा देर तक टिकने वाला नहीं था। यही हाल जिम के दरवाजे का हो रहा था।

नागेश कदम ने पैंट्री में मची चीख-पुकार को कंट्रोल करने के लिए एक हवाई फायर किया जिससे सब सहम गए। इसके बाद उसने दोनों सिक्योरिटी वालों को अपने पास बुलाया।

“मुंबई पुलिस। अभी थोड़ी देर में और फोर्स भी आ जाएगी। तुम लोग होश से काम लो। मुझे यह बताओ कि यहाँ पर कुल कितने आदमी फँसे हुए हैं?” नागेश ने पूछा।

“स्टाफ और कस्टमर्स को मिला कर अस्सी के करीब लोग यहाँ पर हैं। पाँच या छह लोग फ़ायरिंग की चपेट में आ गए हैं और हमारे दो सिक्योरिटी गार्ड भी मारे गए।” एक सिक्योरिटी गार्ड हाँफती हुई आवाज में बोला।

“जिम में इस वक्त कितने लोग मौजूद हैं और तुम्हारे बाकी के सिक्योरिटी गार्ड कहाँ पर हैं?” सुधाकर ने उससे पूछा।

“हम दो गार्ड्स यहाँ पर मौजूद हैं। दो बाहर कॉरिडॉर में मारे गए। दो शायद जिम में मौजूद हैं।” गार्ड ने लड़खड़ाती आवाज में जवाब दिया।

“वहाँ जिम में गार्ड के अलावा कितने आदमी मौजूद हैं?” नागेश ने उससे बेसब्री से पूछा।

“जिम और रेस्टोरेन्ट के बीच में बार है जिसकी कनेक्टिविटी दोनों से है। बार से कुछ लोग इधर भाग आये हैं और कुछ लोग अभी भी जिम में मौजूद हैं। अंदाजन साठ के करीब लोग वहाँ फँसे हो सकते हैं।” गार्ड ने तेजी से बताया।

“क्या हम उन लोगों को यहाँ ला सकते हैं?” नागेश ने गार्ड से पूछा।

“अगर हम बीच का दरवाजा खोल दें तो वे लोग इधर आ सकते हैं। लेकिन हमने डर के मारे उसे बंद कर दिया है।” गार्ड बोला।

सुधाकर और नागेश की निगाहें मिली। तभी बाहर से गोलियाँ चलने की रफ्तार तेज हो गयी। वहाँ का दरवाजा कभी भी उनका साथ छोड़ सकता था।

सुधाकर की निगाहें पैंट्री में घूमने लगी। नागेश समझ गया कि वह क्या चाहता था। उसने दोनों गार्डों को वहाँ मौजूद स्टील सभी ट्रालियाँ दरवाजे के सामने लगाने के लिए कहा। कुछ नौजवान उनकी बात को समझ कर गार्डों को सहयोग देने लगे।

सुधाकर ने दोनों गार्डों को बुलाया और दोनों को दरवाजे के पास पोजीशन लेने के लिए कहा और दोनों को वहाँ मौजूद आदमियों को लिफ्ट से नीचे भेजने के लिए कहा। वो लिफ्ट एक बार में बीस आदमियों को ले जा सकती थी। इस व्यवस्था के बनाने के बाद अब उनका ध्यान दरवाजे पर था। किस्मत से पैंट्री का दरवाजा स्टील का था जिसकी वजह से उन्हें लोगों को निकालने का ज्यादा समय मिल सकता था।

गार्डों की मदद से बीस लोगों की पहली खेप लिफ्ट से निर्विघ्न नीचे चली गयी। ऐसी तीन खेप और नीचे जानी बाकी थी और उस वक्त तक मौत को उन लोगों से दूर रखना नागेश और सुधाकर का मकसद था। तभी बाहर से रेस्टोरेन्ट का दरवाजा टूटने की आवाज आयी। आतंकवादी पहली मंजिल पार कर चुके थे और अब वे पैंट्री के मुहाने पर खड़े थे। गोलियों की बौछार स्टील के दरवाजे पर टकरायी।

सुधाकर ने गार्ड से उसका फोन लिया और जिम में मौजूद गार्डों में से एक समर सिंह का नंबर मिलाया। दूसरी बेल जाने के बाद दूसरी तरफ से फोन उठाया गया।

“बोल!” एक हाँफती हुई आवाज सुनाई दी।

“समर! मैं इंस्पेक्टर सुधाकर बोल रहा हूँ। मेरी बात ध्यान से सुनो। हम रेस्टोरेन्ट के बीच के दरवाजे से बार वाली साइड तुम्हारी तरफ आ रहें हैं, तुम वह दरवाजा खोल दो।” सुधाकर ने जल्दी से कहा।

दूसरी तरफ से कोई आवाज नहीं आयी। शायद समर विश्वास नहीं कर पा रहा था। सुधाकर ने फोन गार्ड को दिया ताकि वह अपने साथी समर से बात कर सके।

“नागेश, मैं जिम की तरफ जाकर वहाँ से लोगों को भेजता हूँ ताकि लिफ्ट से उन्हें भी बचाया जा सके। तुम यहाँ पर संभालो।”

इतना कहकर सुधाकर उस दरवाजे की तरफ भागा जो बार की तरफ खुलता था और वैसा ही एक दरवाजा जिम से भी उस लॉबीनुमा गलियारे में खुलता था जो मेन कॉरीडोर के समानान्तर थी जिसमें अबरार, सन्नी, बट्ट और मुशी काल बने हुए मौजूद थे और जिम का दरवाजा तोड़ने की कोशिश कर रहे थे।

सुधाकर के वहाँ पहुँचने से पहले समर जिम वाली साइड का दरवाजा खोल चुका था। सुधाकर जिम में घुसा तो उसने पाया कि गार्ड का अंदाजा सही था तकरीबन पचास के करीब लोग अलग-अलग जगह आड़ लिए छुपे हुए थे और अपने भगवान को याद कर रहे थे। समर और उसके साथी दरवाजे की तरफ निशाना लगाए पोजीशन लिए हुए थे।

“समर...” सुधाकर ने फुसफुसाती हुई आवाज में पूछा।

समर ने हामी में गर्दन हिलाई।

“तुम चुपचाप अपने आदमियों समेत इस दरवाजे से लोगों को पैंट्री में भेजो, जहाँ से लिफ्ट से इन्हें नीचे भेजा जा सके।” सुधाकर ने समर से कहा।

सुधाकर के ये शब्द समर से पहले वहाँ मौजूद लोगों के कानों में पहुँचे। वे सभी उकड़ू होकर उस समानान्तर कॉरीडोर से होकर पैंट्री की तरफ भागे। तभी जिम के दरवाजे का लॉक टूटकर एक तरफ झूल गया।

माधव अधिकारी ने नीचे बताया था कि दो सिक्योरिटी गार्ड एक्स-आर्मीमैन थे। किस्मत से वे दोनों, समर और उसका साथी जगत, जिम में मौजूद थे। जगत ने अपनी गन से दरवाजे की तरफ फायर झोंका। जिससे दरवाजे के बाहर होने वाली हलचल कुछ देर के लिए रुकी।

तब तक वहाँ मौजूद लोग पैंट्री में जा चुके थे। सुधाकर ने दोनों गार्डों के साथ दरवाजे पर निशाना साध लिया। अब मौत से उनका आमना-सामना होना तय था।

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नैना दलवी जब भायखला की चंड़ूवाड़ी चाल पहुँची, तब तक मुंबई पुलिस की टीम ने, जो सादे कपड़ों में वहाँ पर मौजूद थी, उस चाल को पूरी तरह से घेर लिया था। वो चाल मुंबई के कुख्यात गेंगस्टर दिलावर का ठिकाना बनी हुई थी।

राजीव जयराम से मिली सूचना के आधार पर वहाँ की दूसरी मंजिल से लगातार सीमा पार से संपर्क किये जा रहे थे। राजीव जयराम को उम्मीद थी कि मुंबई के ‘पर्ल रेसीडेंसी’ होटल में घुसे आतंकवादियों का हैंडलर उसी जगह छिपा हुआ था।

नैना उस वक्त एक मराठी कामवाली वाली बाई की वेषभूषा में थी जिसके हाथ में एक मैले कपड़ों की टोकरी थी। वह दो सादे कपड़ों में पुलिस वालों के साथ दूसरी मंजिल की उस खोली की तरफ बढ़ी जहाँ पर उनका टारगेट के मौजूद होने का अंदेशा था।

उसका इशारा पाते ही सभी टीम मेंबर सतर्क हो गए। तभी अचानक कहीं से एक ज़ोर की सीटी की आवाज आयी, जैसे किसी को वार्निंग दी गयी हो। नैना और उसके साथ जा रहे दोनों पुलिस कर्मियों का ध्यान उस सीटी की आवाज से भटका। वे तीनों अपने वेश की परवाह न करते हुए उस तेजी से उस खोली की तरफ भागे जहाँ पर वह तथाकथित हैंडलर छुपा हुआ हो सकता था। उनके हाथ में अब रिवॉल्वर दिखाई देने लगे थे।

चाल में अभी तक जो शांति थी, अचानक वो भंग हो गयी। चाल की ऊपर की किसी मंजिल से गोली चलने की आवाज आयी। वो गोली नैना के सिर के ऊपर से निकल गयी। ग्राउंड फ्लोर पर तैनात मुंबई पुलिस की टीम अब हरकत में आयी और जवाबी गोली चली तो ऊपर की मंजिल से कोई ज़ोर से चिल्लाया। तब तक नैना अपने साथियों के साथ दूसरी मंजिल पर पहुँच चुकी थी।

उनका मिशन अब छुपा नहीं रहा था। उनके सामने खूँखार से दिखने वाले कई आदमी दिखाई देने लगे जो कि हथियार बंद थे।

“थांबा, तुम्ही कोण आहात? आपण कुठे प्रवेश करणार आहात? मी पुढे गेलो तर गोळी घालेन। हे दिलावरचे घर आहे, हे तुला माहीत नाही।” एक तवे जैसी रंग की शक्ल का आदमी बोला। (रुको, कौन हो तुम लोग! कहाँ घुसे चले आ रहे हो? आगे बढ़े तो गोली मार दूँगा। तुम्हें पता नहीं ये दिलावर का घर है।)

“जितना जल्दी रास्ते से हटेगा, फायदे में रहेगा। सारी चाल पुलिस के घेरे में है। तुझसे हमें कोई मतलब नहीं। अपनी जान बचा और एक तरफ हो। अगली बार यह बात बताऊँगी नहीं, गोली सीधा तेरे भेजे के पार होगी। समझा। चल हट।” नैना ने जहर भरे लहजे में कहा।

सामने एक काम वाली जैसी लगने वाली औरत की जुबान से ऐसा कड़क लहजा सुन कर वो मवाली सकपकाया। तब तक बाकी पुलिस के आदमी चाल में दिखाई देने लगे। उस आदमी को एक तरफ हटने में ही अपनी भलाई नज़र आयी। उसके हाथ एक इशारा करने वाले अंदाज में हिले। नैना की आँखों से छुपा न रह सका कि सबसे ऊपर की मंजिल पर एक स्नाइपर छुपा हुआ था। वह इशारा समझ गया और उस जगह से ओझल हो गया।

नैना अपने आदमियों के साथ सतर्क कदमों से आगे बढ़ी। जब वह उनकी सूचना के अनुसार उस तथाकथित खोली में पहुँची तो वहाँ कोई नहीं था। इतने हंगामें के बाद कोई हो भी कैसे सकता था! खाली कमरा उनका इंतजार कर रहा था। उस कमरे की स्थिति बता रही थी कि कुछ देर पहले कोई वहाँ पर था जरूर। उस पूरे इलाके में तलाशी का अभियान शुरू किया गया।

नैना उस पूरे कमरे में किसी सूत्र की तलाश में बारीकी से तलाशी लेने लगी। वहाँ पर कुछ हाथ नहीं लगा। उसका ध्यान तभी दीवार पर लगी एलईडी स्क्रीन पर गया। उस पर कोई गेम चल रहा था। तभी एक मैसेज के रिसीव होने की साउंड कमरे में गूँजी। स्क्रीन पर एक नामालूम भाषा में कोई मैसेज आया। इससे पहले वो मैसेज वहाँ से गायब हो जाता, नैना ने अपने मोबाइल से स्क्रीन शॉट ले लिया।

‘किसी आतंकवादी का वीडियो गेम में इतना इंटरेस्ट।’

नैना को कुछ सुझाई नहीं दिया तो उसने ‘ओके’ का बटन दबा दिया और वह सारा कंप्यूटर सिस्टम अपने कब्जे में कर लिया।

तभी उसके फोन पर राजीव जयराम का फोन आया।

“कुछ हाथ लगा, नैना?” राजीव जयराम की आवाज में एक अजीब सी उत्कंठा थी।

“नो सर, हमारे आने से पहले वे लोग अलर्ट हो चुके थे।” नैना ने निराशा भरे स्वर में कहा।

“ओह! पर्ल रेसिडेंसी की खबर उन तक पहुँच गयी शायद। एनी वे। गो बेक टू यूअर बेस। आई विल बी देयर इन ए शॉर्ट वाइल।” इसी के साथ फोन की लाइन कट गयी।

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जब तक एसीपी आलोक देसाई और एटीएस की टीम ‘पर्ल रेसीडेंसी’ पहुँची वहाँ पर पूरी तरह से अफरा-तफरी का माहौल था। आलोक देसाई अपनी बोलेरो से उतरकर हवा के बगोले की तरह तुरंत होटल के रिसेप्शन पर पहुँचा। वहाँ पर माधव अधिकारी और उसके स्टाफ के लोग फर्स्ट फ्लोर और ऊपर के फ्लोर से नीचे आने वाले लोगों को सुरक्षित दूसरी बिल्डिंग में पहुँचा रहे थे।

संजय चुटानी बाकी स्टाफ के साथ पैंट्री तक जाने वाली लिफ्ट के पास मौजूद था। वे लोग नागेश और सुधाकर के द्वारा आठवीं मंजिल से निकाले गए लिफ्ट से आने वाले लोगों को जल्दी से बेसमेंट से बाहर भेज रहे थे।

माधव अधिकारी ने आलोक देसाई को बताया कि नागेश और सुधाकर बेसमेंट की लिफ्ट से ऊपर गए हैं। आलोक ने तुरंत अपनी टीम को तीन भागों में बाँटा।

उसने छह कमांडो सीढ़ियों से ऊपर श्रीकांत की बैक-अप के लिए भेजे। वह खुद चार जवानों के साथ पैंट्री की तरफ जाने के लिए बेसमेंट की लिफ्ट की तरफ बढ़ा। बाकी की फोर्स ने होटल ‘पर्ल रेसीडेंसी’ को चारों तरफ से घेर लिया।

बेसमेंट की लिफ्ट लोगों की तीसरी खेप को लेकर नीचे आई। संजय चुटानी तेजी से उन लोगों की तरफ लपका। ऊपर मचे आतंक के चलते डरे हुए लोग लिफ्ट से बाहर निकलते ही बदहवासी में गिरते पड़ते उससे बाहर निकल कर भागे। संजय चुटानी ने एक बुजुर्ग को सहारा दिया और उसको बेसमेंट से बाहर की तरफ लेकर चल दिया।

तभी उसकी निगाह एक नीले रंग का कोट-पेंट पहने आदमी पर पड़ी जो अपने बाजू को थामे बेसमेंट में दाखिल हो रहा था।

“अरे! आप यहाँ कहाँ चले आ रहें हैं? आप बेसमेंट से बाहर चलिए। सभी लोगों को यहाँ से बाहर भेजा जा रहा है।” संजय बुजुर्ग को सहारा दिये हुए चिल्लाया।

उस आदमी ने अपने हाथ से बाथरूम जाने का इशारा किया। संजय ने उसे वाशरूमों की तरफ इशारा किया।

“वाशरूम्स उधर हैं। आप जल्दी से वापस आइये, यहाँ पर बहुत खतरा है।” संजय चुटानी ने उस आदमी से कहा।

वह आदमी सिर हिलाता हुआ बेसमेंट में आगे बढ़ गया।

कुछ दूर आगे जाने के बाद संजय चुटानी ने अनायास ही पीछे मुड़कर देखा तो वह आदमी वाशरूमों की तरफ न जाकर कार पार्किंग की तरफ जा रहा था। वह अपने साथ थामे हुए बुजुर्ग को एक दूसरे आदमी के सहारे छोडकर उस नीले रंग का कोट पहने हुए आदमी की तरफ लपका।

“अरे! सर! आप को उधर नहीं जाना है। वाशरूम दूसरी तरफ है, आपको सुनाई नहीं देता।” संजय चुटानी गला फाड़ कर चिल्लाया।

नीले कोट वाला एक पल के लिए अपनी जगह पर ठिठका। संजय की आवाज सुनकर वह उसकी उसकी और मुड़ा तो उसकी आँखों में वहशत चमक रही थी। उसके चेहरे को देख संजय एक पल के लिए चौंका और फिर हैरत और आतंक से उसकी आँखें फट पड़ी।

उस आदमी के हाथ में रिवॉल्वर झाँक रही थी और उसका मुँह संजय की तरफ था। असल में वह ऑलिवर का खास आदमी था जिसे उन लोगों ने श्रीकांत और मिलिंद की आँखों में धूल झोंक कर सीढ़ियों से नीचे भगा दिया गया था। उसकी रिवॉल्वर ने आग उगली जिसमें संजय चुटानी की जिंदगी भस्म हो गयी। वह कटे पेड़ की तरह नीचे गिरा।

उस फायरिंग से बेसमेंट से बाहर आते लोगों में भगदड़ मच गयी। तभी एक बाद एक कई फायर हुए जिसकी जद में आकर बेसमेंट से बाहर भागते हुए कई लोग गंभीर रूप से घायल हो गए।

बेसमेंट में गूँजी गोली चलने की आवाज सुनकर आलोक देसाई के कदम और भी तेज हो गए। वह चारों कमांडो के साथ बेसमेंट की तरफ लपका। बेसमेंट में घुसते ही उसे फायरिंग करते हुए नीले कोट वाले की झलक मिल गयी। वह हाथ में अपनी गन लिए उसकी तरफ लपका।

नीले कोट वाला अब कारों की पार्किंग के नजदीक पहुँचने वाला था। अगर वह उन कारों के बीच पहुँच जाता तो उस पर काबू पाना और मुश्किल हो जाता। आलोक ने उसकी तरफ एक साथ दो फायर झोंके लेकिन तब तक वह एक कार की आड़ में पहुँच चुका था। उसकी गन से निकली गोली कार के इस्पात से कहीं टकरायी। नीले कोट वाला झुक कर किसी कार के पीछे ओझल हो चुका था।

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