विराटनगर में ।
अपने डेस्क के पीछे मौजूद शमशेर सिंह के चेहरे पर गहरे सोच पूर्ण भाव थे । उसकी आँखों में चिंता भी स्पष्ट झलक रही थी ।
पिछली मीटिंग में जो दो हफ्ते का समय उसने दिया था । उसमें से तीन दिन गुजर चुके थे । हालांकि कोई ठोस नतीजा अभी सामने नहीं आया था । लेकिन अंडरवर्ल्ड में अपने कांटेक्ट्स के जरिए जो सूचना उसे प्राप्त हुई । वो इतनी उत्साहवर्धक थी उसे उम्मीद बंध चली थी कि जल्दी ही कारामद जानकारी हासिल हो जाएगा ।
उसे सूचना मिली थी शहरों में इस बात की अफवाहें थीं कि फिरौती की रकम विभिन्न ब्रोकर्स को ऑफर की गई थी । लेकिन यह पता नहीं लग पा रहा था असल में उस रकम को बेचने वाला कौन था । इसकी बड़ी वजह थी–नंबर दो की रकम की खरीद–फरोख्त करने वाले ब्रोकर्स । फिरौती या दूसरी किसी किस्म की हॉटमनी के लफड़ों से यथासंभव दूर ही रहा करते थे । और अगर कोई ऐसे लफड़ों में किसी वजह से पड़ भी जाता था तो वह हमेशा के लिए अपनी जुबान सी लिया करता था । लेकिन शमशेर ने अपने कांटेक्ट्स के जरिए ऐसे एक आदमी का न सिर्फ पता लगा लिया था बल्कि उसे, सहयोग करने के लिए भी तैयार कर लिया था ।
वह आदमी करीमगंज का मोती गिडवानी था । उसका कहना था वो रकम उसे भी ऑफर की गई थी और वह इस शर्त पर बातें करने के लिए रजामंद हो गया था कि अगर उसे कीमत सही लगी तो वह उस में से चौथाई रकम ख़रीद लेगा ।
मोती गिडवानी से शमशेर भी परिचित था । गिडवानी बतौर पेशेवर गनमैन ऑर्गेनाइजेशन के लिए काम किया करता था । लेकिन चंदेक साल पहले, उसकी सेवाओं और दूसरी खूबियों को देखते हुए करीमगंज ब्रांच में उसे एक महत्वपूर्ण पद सौंप दिया गया । ऑर्गेनाइजेशन के हितों की रक्षा करने के साथ–साथ वह स्वतंत्र रूप से अपना निजी कारोबार भी किया करता था । उसके कारोबार में ब्रोकर का काम करना भी शामिल था ।
सहसा, दरवाजे पर हौले से दस्तक दी गई । फिर शमशेर सिंह का बॉडीगार्ड करतार भीतर दाखिल हुआ ।
शमशेर सिंह ने प्रश्नात्मक निगाहों से उसे देखा ।
–'मोती गिडवानी आ गया है, बॉस ।' करतार बोला–'उसके साथ वह आदमी भी है । जिससे आप मिलना चाहते थे ।'
–'ठीक है । उन्हें अन्दर भेजकर तुम बाहर ही ठहरो ।'
–'ओके, बॉस ।'
करतार फौरन एड़ियों पर घूमकर वापस दरवाजे के पास पहुंचा और उसे खोलकर बोला–'आइए ।'
दो आदमी अन्दर आ गए ।
करतार बाहर जाकर खड़ा हो गया । दायां हाथ कोट की जैब में घुसेड़े वह पूर्णतया सतर्क था ।
शमशेर सिंह ने आगंतुकों को देखा । लेकिन उसके चेहरे पर दिलचस्पी का कोई भाव पैदा नहीं हुआ ।
मोती गिडवानी दोहरे बदन का सख्त मिजाज सा नजर आने वाला आदमी था । उसकी आंखों से हर वक्त बेचैनी सी झलकती रहती थी । उसके साथ औसत कद बुत वाले आदमी के चेहरे पर घबराहट भरे कुछ ऐसे भाव थे मानों उसे डर था जबरन गुनहगार साबित करके कड़ी सजा दी जाने वाली थी ।
–'बैठो ।' शमशेर सिंह ने कहा ।
दोनों डेस्क के संमुख पड़ी कुर्सियों पर बैठ गए ।
–'आपका मैसेज मुझे मिल गया था, बॉस ।' गिडवानी बोला–'इसलिए मैं अकेला नहीं आया ।' उसने अपने साथ बैठे आदमी की ओर इशारा किया–'यह पीताम्बरदास है । मुझे बताया गया था आप उस आदमी से मिलना चाहते हैं । जिससे मैंने धंधे की बातें की थीं । यह वही है ।'
पीताम्बरदास अपने खुश्क होठों पर जुबान फिराता हुआ मुस्कराने का असफल प्रयत्न कर रहा था ।
शमशेर की निगाहें उसके चेहरे पर जमी थीं ।
–'चंदन मित्रा की फिरौती की रकम तुमने बेची थी ?' उसने पूछा ।
–'ज...जी नहीं ।' वह हकलाता सा बोला–'म...मैं तो बस...।' और अचानक खामोश हो गया ।
गिडवानी ने उसे घूरा ।
–'झूठ, मत बोलो ।' वह कठोर स्वर में बोला–'तुम मेरे पास सौदा करने आए थे । तुमने कहा था पचास पैसे फी रुपए के हिसाब से वो सारी रकम दिला सकते हो ।'
पीताम्बरदास ने बेचैनी से पहलू बदला ।
–'म...मुझे याद है । और पचासों बार तुम्हें बता चुका हूँ कि मैं सिर्फ एक दलाल के तौर पर तुम्हारे पास सौदा करने, आया था ।'
–'तो तुम उस सौदे में दलाली कर रहे थे ?' शमशेर सिंह ने पूछा ।
–'जी हाँ।'
–'किसके लिए ?'
–'उस आदमी को मैं नहीं जानता ।' वह शमशेर सिंह से निगाहें चुराता हुआ बोला–'मैं एक जनरल स्टोर चलाता हूं । करीमगंज में हर किस्म के लोगों से मेरा परिचय है । और इस तरह के कामों में भी कई साल से दलाली कर रहा हूं । जिस आदमी की बात आप कर रहे हैं । वह एक रोज मेरे पास आया । उससे पहले या बाद में कभी मैंने उसे नहीं देखा । रोजमर्रा के इस्तेमाल की दो–चार चीजें खरीदने के बाद उसने मेरे सामने इस सौदे का प्रस्ताव रख दिया । बीस लाख रुपये के नोटों के बदले में वह दस लाख रुपये चाहता था । उसका कहना था अगर मैंने उसे सही खरीदार दिला दिया और सौदा सही सलामत हो गया तो मेरी सेवाओं के बदले में वह मुझे बीस हजार रुपये देगा । हालांकि वह मेरे लिए बिल्कुल अजनबी या फिर भी मैंने उसका नाम–पता नहीं पूछा । क्योंकि अपने तजुर्बे की वजह से मैं जानता हूँ, ऐसे मामलों में अपना सही नाम–पता लोग नहीं बताया करते । मैं जानता था गिडवानी साहब को अगर सौदा सही जंचा तो सिर्फ यह ही उस रकम को खरीद सकते थे । इसलिए मैं इनके पास गया और बता दिया कि आधी कीमत पर फिरौती की रकम मिल सकती है ।'
–'तुम्हें कैसे पता चला कि वो फिरौती की रकम थी ?' शमशेर सिंह ने पूछा ।
–'उसी आदमी ने बताया था कि वो चंदन मित्रा अपहरण काण्ड की फिरौती की रकम थी ।
–'उसने खुद बताया था या तुमने पूछा था ?'
–'मैंने पूछा था । इस धंधे में यह पूछना और बताना जरूरी होता है । ताकि मेरे साथ खरीदार को भी पता रहे वह किस तरह की रकम का सौदा कर रहा है ।'
–'जानता हूँ ।' शमशेर सिंह बोला–'लेकिन गिडवानी ने वो रकम खरीदने से इन्कार कर दिया था ?'
–'जी हाँ ।'
–'फिर तुमने उस आदमी को कैसे बताया कि सौदा नहीं पट सका ?'
पीताम्बर ने पुन: अपने होठों पर जुबान फिराई ।
–'उसने मुझे एक फोन नम्बर दिया था । सौदा पट जाने की सूरत में मैंने उसी शाम छह से साढ़े छह बजे के बीच उसे उस नम्बर पर फोन करना था । और अगर सौदा न पटे तो मुझे फोन करने की जरूरत नहीं थी ।
–'यानी तुमने उसे फोन नहीं किया ?'
–'जी नहीं । ये बातें मैंने गिडवानी साहब को उसी वक्त बता दी थी ।'
–'फोन नम्बर भी ?'
–'वो बाद में बताया था ।
शमशेर सिंह ने गिडवानी की ओर गरदन घुमाई ।
–'तुमने वो फोन नम्बर चैक कराया था ?'
–'यस, बॉस ।' गिडवानी बोला–'वो रेलवे स्टेशन के एक पब्लिक कॉल बूथ का नम्बर था ।'
शमशेर सिंह पुन: पीताम्बर से मुखातिब हुआ ।
–'उस आदमी का हुलिया बताओ ।'
पीताम्बर के चेहरे पर ऐसे भाव उत्पन्न हो गए मानों वह याद करने की कोशिश कर रहा था ।
–'वह चालीस–बयालीस साल का लम्बा–चौड़ा आदमी था ।' कई सैकेंड तक खामोश रहने के बाद वह बोला–'कान मुड़े–तुड़े से थे और नाक पिचकी हुई । चेहरे पर जगह–जगह पुरानी चोटों के जख्मों के निशान थे । वह बॉक्सर रह चुका सा लगता था ।'
कोई और खास बात उसमें नोट की ?'
–'ज्यादा होशियार वह नहीं लगता था । उसकी बातों से यूं लगा मानों वह किसी और के लिए सौदा कर रहा था ।'
शमशेर सिंह का चेहरा पूर्णतया भावहीन था ।
–'मुझे वह आदमी चाहिए ।' वह कुर्सी में पहलू बदलता हुआ बोला–'जल्दी और इस हालत में कि उससे बातें की जा सके ।'
पीताम्बर असहाय सा नजर आने लगा ।
–'लेकिन मैं बता चुका है ।' वह विवशतापूर्वक बोला–'उस रोज से पहले या बाद में कभी उसे मैंने नहीं देखा ।'
–'दोबारा देखने पर उसे पहचान सकते हो ?' शमशेर सिंह ने कुछ सोचते हुए पूछा ।
–'जी हां ।'
–'और उसकी फोटो देखने पर ?'
–'उम्मीद तो है पहचान लूंगा ।'
शमशेर सिंह ने गिडवानी की ओर देखा ।
–'इसे प्रोफेशनल स्पोर्टस क्लब ले जाओ । अगर वह आदमी वाकई बॉक्सर रह चुका है तो वहां ईशर सिंह के पास उसका रिकॉर्ड जरूर होगा । इसे सभी पुराने बॉक्सरों की तस्वीरें दिखाओ । और तब तक दिखाते रहो जब तक कि उस आदमी का नाम पता नहीं लग जाता ।'
–'ओके, बॉस ।'
पीताम्बर एतराज करना चाहता था । लेकिन फिर कुछ सोचकर इरादा बदल दिया ।
शमशेर सिंह ने मानों उसके विचार पढ़ लिए थे ।
–'अगर तुम फोटुएँ देखते–देखते अंधे हो जाते हो तो भी मुझे परवाह नहीं है ।' वह बोला–'तुम्हें उसको पहचानना ही होगा ।' अचानक उसका लहजा सर्द हो गया–'आई वांट हिम फास्ट !'
–'हम अपनी ओर से पूरी कोशिश करेंगे, बॉस ।' गिडवानी ने कहा–'और पता लगते ही आपको सूचित कर देंगे । फिर, पीताम्बर से बोला–'चलो ।'
दोनों उठकर दरवाजे की ओर बढ़ गए । पीताम्बर का मुंह लटका हुआ था और वह यूं चल रहा था मानों चलने में बड़ीभारी तकलीफ हो रही थी ।
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