“ये लो! ये रहा तुम्हारा राजदान !" कहने के साथ ठकरियाल ने काली- सफेद पट्टियों वाला नाइट गाऊन और नीले शनील से मंढ़ा डिब्बा डायनिंग टेबल पर डाल दिया । ऐसा करते वक्त उसके होंठों पर वह मुस्कान थी जो मैराथन की दौड़ जीतने वाले के चेहरे पर होती है ।


इस समय वे विला की लॉबी में थे। देवांश ने पूछा- "डिव्वे में क्या है?”


“खोलकर देखो ।”


- देवांश आगे बढ़ा | डिब्बा उठाया । खोला । और होंठों से सिसकारी निकल गई। थोड़ी दूर खड़ी दिव्या ने पूछा--- "क्या है उसमें ?”


जवाब में देवांश ने कुछ कहा नहीं। हाथ डालकर डिब्बे से राजदान का फेसमास्क निकाल लिया । उसे देखकर दिव्या के होंठों से भी सिसकारी निकल गई। आंखों में आश्चर्य मिश्रित खुशी थी । मुंह से निकला --- "हे भगवान! इससे डरा रहा था वह हमें?”


“गाऊन की जेब में राजदान के ब्राण्ड की सिगार की डिब्बी, म्यूजिकल लाइटर, उसके द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला परफ्यूम और आफ्टर शेव लोशन भी है।”


“यह सब कहां से मिला तुम्हें ? " देवांश ने पूछा ।


“जाहिर है --- सेन्टूर होटल के सुईट नम्बर छः सौ बारह से। मेरा अनुमान बिल्कुल ठीक निकला। अखिलेश ही कर रहा था यह सारा ड्रामा ।"


"और तुम इस सारे सामान को उठाकर यहां ले आये?”


“ताकि भविष्य में वह कभी इसके इस्तेमाल से तुम्हें डरा न सके।” @hindinovels


“ लेकिन जब वह इस सारे सामान को अपने कमरे से गायब पायेगा तो..


“तो?”


“क्या उसका सीधा शक हम ही पर नहीं जायेगा ?"


“केवल शक जायेगा | विश्वासपूर्वक कुछ नहीं समझ सकेगा वह । क्योंकि उसने मुझे देखा नहीं है। बहुत हलकान किया है हरामजादे ने हमें, थोड़ा हलकान तो वह भी होना चाहिए ।”


“मतलब?”


“ कल्पना करो उस सीन की जब वह इस सारे सामान को

वहां से गायब पायेगा जहां रखा था। किस कदर अवाक रह जायेगा वह ? खोपड़ी घूमकर रह जायेगी पट्ठे की। पैरों तले से जमीन सरक जायेगी। पहली बार एहसास होगा उसे--- --- हमला हम भी कर सकते हैं। "


“मगर..


“ अजीब आदमी हो यार तुम । कामयाबी पर भी डर रहे हो।"


“मैं सोच रहा हूं, इनके गायब होने पर कहीं वह इतना न बौखला जाये कि..


“कि?”


“फाइनल स्ट्रोक ही मार बैठे । ”


“फाइनल स्ट्रोक से मतलब?”


“अगर उसने मेरे फोटो को ही इस्तेमाल कर लिया तो खेल खत्म हो जायेगा ।”


“क्या खेल खत्म हो जायेगा ? ज्यादा से ज्यादा जेल चले जायेंगे हम तीनों । राजदान की हत्या का मुकदमा चलेगा| क्या फर्क पड़ता है तुम्हारे प्वाइंट ऑफ व्यू से? तुम तो शुरू से ही इस झमेले से निकलने के लिए जेल जाने की सलाह दे रहे हो । वह तो मैं और दिव्या ही हैं जिन्होंने तुम्हारे प्रस्ताव को नहीं माना और कदम-कदम पर हैरान होने के बावजूद जूझते रहे। और अब देख रहा हूं, जेल जाने के खौफ से सबसे ज्यादा तुम्हीं डरे हुए हो ।”


“यह वही स्थिति है इंस्पेक्टर !” दिव्या ने देवांश पर व्यंग्य किया---“कि जिन्दगी से आजिज आ चुका आदमी मौत मांगता तो रहता है मगर जब मौत झपटती है तो पूरे दमखम के साथ उससे दूर भागने की कोशिश करता है ।"


देवांश शिकायती अंदाज में दिव्या को देखता रह गया ।


“वैसे घबराओ मत | वैसा कोई इरादा नहीं है उसका । "


“कैसे कह सकते हो ?


“मैं समझा नहीं।”


“सारी बातें सुनकर आया हूं उनकी ।”


“ब बात?”


“समरपाल भी उनसे मिला हुआ है । "


“समरपाल?


" हां ! समरपाल ।” एक - एक शब्द पर जोर देता ठकरियाल कहता चला गया - -- “अखिलेश, भट्टाचार्य, वकीलचंद और समरपाल। चारों मिलकर काम कर रहे हैं। खुशी की बात ये है अब उन्होंने अवतार को भी अपने में शामिल कर लिया है । मुझे नहीं पता तुम्हें यह जानकर कैसा लगेगा कि तुम्हारा फोटो समरपाल ने ही खींचा था।"


“अ-आज फिर क्या पता लगाकर लाये हो तुम? पूरी बात क्यों नहीं बताते ?” 


“कोशिश तो वही कर रहा हूं मगर तुम बताने ही नहीं दे रहे। बार-बार बीच में टपक पड़ते हो ।”


“देव ! अब तुम बीच में बिल्कुल नहीं बोलोगे।" दिव्या ने देवांश को चेतावनी सी देने के बाद ठकरियाल से कहा---“हां इंस्पेक्टर, बताओ - - तुम्हें कैसे-कैसे, क्या पता लगा?”


दिव्या की अधीरता को समझकर होठों ही होठों में मुस्करा उठा ठकरियाल। बोला--- "अखिलेश के सुईट की तलाशी लेकर चुका ही था कि वकीलचंद, भट्टाचार्य और समरपाल के साथ वह अखिलेश भी सुईट में आ धमका। मैं फुर्ती से

रेफ्रिजरेटर के पीछे छुप गया। उनकी बातें सुनने लगा। बातें अभी अधूरी ही थीं कि अवतार पहुंच गया। जाहिर है--- उसे देखकर वे झूम उठे। पागल से हो गये खुशी से कुछ औपचारिक बातें होती रहीं। वे लोग उससे पृछते रहे--- आजकल कहां है, क्या कर रहा है? अवतार ने कहा--- "कुछ दिन पहले तक एक प्राइवेट फर्म में काम करता था, फिलहाल बेरोजगार हूं।"


“यानी उसने उन्हें अपना असली परिचय नहीं दिया ?”


“देव ।” दिव्या गुर्राई --- “तुम फिर बीच में बोले ?” उन दोनों के बीच छत्तीस के आंकड़े को महसूस करके ठकरियाल मुस्करा उठा। बोला--- "मैंने पहले ही कहा था, वह उनका साथ नहीं देगा क्योंकि हमारा साथ देने पर मजबूर है। उसके द्वारा उन्हें अपना असली परिचय न देने से जाहिर है --- भविष्य में भी वह हमारा साथ देगा । और उसके साथ देने का मतलब है --- कामयाबी बहुत जल्द हमारे कदम चूमने वाली है।”


“वैरी गुड | " पहली बार देवांश के चेहरे पर जोश, खुशी और उम्मीद नजर आई।


दिव्या ने पूछा- “ बातें क्या कर रहे थे वे ?”


“ठीक उस वक्त मेरी मौजूदगी कारगर साबित हुई जब वहां अवतार पहुंचा। वह न पहुंचता तो आपस में उन्हें उतनी डिटेल में बात करने की जरूरत ही नहीं थी। औपचारिक बातों के बाद जब अवतार ने पूछा वे किस चक्कर में उलझे हुए हैं तो उसे समझाने के लिए उन्हें वह सब डिटेल में बताना पड़ा जो हुआ था और राजदान के निर्देश पर जो कुछ वे कर रहे हैं। तभी तो यह पता लगा कि तुम्हारा फोटो खींचने वाला समरपाल था । ”


“ और क्या पता लगा ?”


“हमें जेल भेजने का उनका कोई इरादा नहीं है, अपने ही स्तर पर बदला लेना चाहते हैं वो ।”


“वही तो पता होना चाहिए हमें, उनके दिमाग में किस किस्म का बदला लेने की बात है ?”


तभी ठकरियाल का मोबाइल बज उठा।


इस वक्त मोबाइल का बजना न दिव्या को अच्छा लगा न देवांश को ।


ठकरियाल ने उसे जेब से निकाला। स्क्रीन पर नजर आ रहा नम्बर पढ़ा और ऑन करने के साथ 'हैलो' कहा। दूसरी तरफ से उभरने वाली आवाज को सुनते ही बोला --- “हां अवतार, मिले उनसे?”


यह महसूस करते ही दिव्या और देवांश के दिल व्यग्रता की ज्यादती के कारण जोर-जोर से धड़कने शुरू हो गये कि दूसरी तरफ अवतार है। ठकरियाल ने मोबाइल पर अभी-अभी पूछा था --- “क्या रिपोर्ट है?" दूसरी तरफ से कुछ कहा जाने लगा। दिव्या और देवांश उसे नहीं सुन सकते थे। मारे बेचैनी के कान गर्म हो गये थे उनके । ठकरियाल 'हां' 'हूं' कर रहा था। वे उसकी भाव-भंगिमाओं से पता लगाने की कोशिश कर रहे थे दूसरी तरफ से क्या कहा जा रहा है ? मगर, ज्यादा सफल नहीं हो पा रहे थे। अचानक ठकरियाल हंसा । हंसी थोड़ी खिसियानी सी थी । बोला--- "इसलिए नहीं बताया था क्योंकि जानता था --- वहां पहुंचने पर उन्हीं के मुंह से तुम्हें सब कुछ पता लग जायेगा। अब तो ये बताओ सबकुछ जानने के बाद तुम्हारा क्या इरादा है?” जवाब में पुनः दूसरी तरफ से कुछ कहा जाने से लगा। 


ठकरियाल ध्यान से सुनता रहा । सुनने के बाद बोला--- "मुझे तुम्हारा फैसला सुनकर खुशी हुई " ।


दूसरी तरफ से पुनः कुछ कहा गया ।


ठकरियाल बोला--- "वैरी गुड गिल ! वैरी गुड ! इसी तरह तुम अपना काम करते रहो, समझ लो कानून तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता । हां! हां! फिक्र मत करो, मैं तुम्हारा साथ दूंगा। अब ये बताओ, उनका प्लान क्या है ?”


दूसरी तरफ से फिर कुछ कहा जाने लगा । दिव्या और देवांश की व्यग्रता चर्म पर पहुंचने लगी थी। उन्होंने देखा --- सुनते-सुनते गंभीर हो गया ठकरियाल | थोड़ा फिक्रमंद भी नजर आने लगा । एक बार मरी सी आवाज में कहा गया --- “हां! हां! सुन रहा हूं। तुम कहते रहो।” दूसरी तरफ से फिर कुछ कहा गया सुनने के बाद ठकरियाल ने कहा--- "बड़े कमीने हैं साले । मैं सोच भी नहीं सकता था कि वे इतने नीचे गिर जायेंगे... । हां! हां! वो मैं समझता हूं । कोशिश करूंगा... | अच्छा बाबा! पक्का होगा ऐसा । अभी तो मजबूर हूं मैं। एक बार सुबूत हाथ लग जाये । तब बताऊंगा ठकरियाल क्या चीज है। तुम जल्दी से जल्दी सबूतों तक पहुंचने की कोशिश करना।”


सुना उसके बाद पुनः उसने दूसरी तरफ से कहा जाने वाला कुछ और फिर, 'ओ. के.' कहकर सम्बन्ध विच्छेद कर दिया । एक सेकण्ड भी तो जाया नहीं किया दिव्या ने पूछा--- "क्या । कह रहा था ?”


“हम सफलता के बहुत नजदीक हैं।”


"म-मतलब?” देवांश रोमांचित नजर आया।


ठकरियाल ने कहा--- "यह पूछो मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ?"


“क्यों कह रहे हो ?” दिव्या ने पूछा ।


“क्योंकि हमारा अवतार नाम का मोहरा बिल्कुल सही पारी पर चल रहा है । "


“प्लीज ! खुलकर समझाओ।"


“हालांकि उसने ऐसी कोई बात नहीं बताई जो मुझे पहले से मालूम न हो। रेफ्रिजरेटर के पीछे छुपा हुआ था मैं। सब कुछ अपने कानों से सुना है! मगर, अवतार को क्या मालुम गैं कहां था? उसने वही सब बातें बताईं जो वहां हुई हैं। कुछ छुपाया, न झूठ बोला । इससे जाहिर है - वह हमारे साथ है, वही कर रहा है जो हम चाहते हैं। मैंने पहले की कहा था - - - उसे हमारा ही साथ देना पड़ेगा। मगर, थोड़ी नाराज भी था मुझसे । "


“नाराज क्यों?”


“ कहने लगा - - - बड़े घुटे हुए हो इंस्पेक्टर । दिव्या और देवांश के साथ मिलकर खुद ही सब कुछ किये बैठे हो और मुझे भनक तक नहीं लगने दी । बगुला भगत बने बात कर रहे थे। अब मेरी समझ में वह असली कारण आया जिसकी वजह से तुमने मुझे इनके बीच भेजा है। इनके और तुम्हारे बीच तो बाकायदा जंग चल रही है । ”


“ओह !” देवांश के मुंह से निकला |


“मालूम था, यह सब तो होगा ही। जब मैं उसे उनके बीच भेजूंगा तो सबकुछ पता तो लगेगा ही उसे । हंसकर यही कह दिया - - - 'क्या बताता ? जानता ही था --- अब उनके पास जा रहे हो तो खुद ता लग जायेगा ।'


“ सब कुछ पता लगने के बाद भी वह..


“वही पूछा मैंने 1... दरअसल उसके पास हमारा साथ देने के अलावा कोई रास्ता नहीं है। दो कारण हैं, पहला --- कानून से उसे सिर्फ मैं बचा सकता हूं। दूसरा उसकी नजर तुम पर और तुम्हारी दौलत पर है।” कहते वक्त उसने अपनी आंखें दिव्या पर जमा दीं - -- “बड़ा कारण यही है ।”


“ठकरियाल !” देवांश ने शंका व्यक्त की --- “कहीं ऐसा न हो, हम आसमान से गिरकर खजूर में अटक जायें ।”


“मतलब?”


“आगे चलकर अवतार के इरादे हमारे लिए मुसीबत बन

सकते हैं । "


"वक्त आने पर उससे भी निपट लिया जायेगा। फिलहाल उन चारों से निपटना जरूरी है।"


देवांश ने पुनः कुछ कहना चाहा मगर ठकरियाल ने उसे मौका दिये बगैर कहना शुरू कर दिया "पता नहीं किस बेवकूफ ने निगेटिव अंदाज में कहा है इस कहावत को मेरे ख्याल से तो आसमान से गिरकर खजूर में अटकना अच्छा ही होता है। जरा सोचो आदमी अगर आसमान से सीधा जमीन पर आ sports बचेगा क्या? केवल ये नश्वर शरीर । वह भी अंजर पंजर हुआ पड़ा । आत्मा तो साली अंतरिक्ष की तरफ कूच कर जायेगी। खजूर में अटकने का मतलब है आदमी जिन्दा बच जायेगा और फिर वह वहां से गिरा भी तो मरेगा नहीं। मरहम पट्टी के बाद चंगा होने के चांस हैं। एक बार गिरकर मरने से बेहतर है किश्तों में गिरकर से जिन्दा बच लिया जाये ।” -


“मैं तुमसे सहमत हूं इंस्पेक्टर ।" दिव्या ने कहा "अवतार जो भी हालात क्रियेट करेगा उनसे उसी वक्त निपट लिया जायेगा। उसके बारे में हमें अभी से सोचकर हलकान नहीं होना चाहिए। फिलहाल हमारे लिए 'उनका प्लान जानना और उससे निपटना जरूरी है। तुमने अभी तक वे बातें कहीं बताईं जो उनके बीच हुईं, जिन्हें तुमने रेफ्रिजरेटर के पीछे छुपकर सुना ।"


"वही बताने वाला था कि फोन आ गया ।" टकरियाल ने कहा --- " बातें तो खैर बहुत लम्बी हैं मगर निचोड़ यही निकला - - - वकीलचंद, भटूटाचार्य और समरपाल राजदान के प्लान पर कंधे से कंधा मिलाये काम कर रहे हैं। अखिलेश उन्हें लीड कर रहा है । मरने से पहले राजदान ने अखिलेश को एक लम्बा लेटर लिखा था । तुम्हारे और उसके बीच कब, क्या, क्यों और कैसे हुआ तथा बदला लेने के लिए उन्हें क्या करना है, सब विस्तारपूर्वक लिखा है। बस यूं समझ सकती हो- वही सब राजदान के लेटर में लिखा है। अब तक उन्होंने जो भी कुछ किया है, वही सब उन्होंने अवतार को बताया जो मैंने भी सुना । हैरत की बात केवल यह है कि कम से कम अब तक कदम-कदम पर वही हुआ है जो राजदान पहले ही सोच चुका था या निर्धारित कर चुका था । परन्तु अब मेरी गारन्टी है, सबकुछ उसकी सोचों के उलट होने वाला है। कारण है ---अवतार नाम के हमारे मोहरे का दुश्मन की सेना में घुस जाना । राजदान द्वारा बिछाई गई शतरंज की बिसात में वह कहीं था ही नहीं । जरूर होता --- बशर्ते राजदान को उसका एड्रेस मिल जाता ।"


"मैंने पूछा था, वे हमसे किस किस्म का बदला लेना चाहते हैं?” दिव्या बोली |


“हां । यही है महत्वपूर्ण बात ।” कहने के बाद चुप हो गया ठकरियाल । जेब से निकालकर एक सिगरेट सुलगाई। उन्हें भी ऑफर की। दिव्या ने इंकार कर दिया, देवांश ने ले ली। 


काफी देर तक बेचैनी के साथ उसके आगे बोलने का इंतजार करते रहे मगर वह नहीं बोला । किसी बहुत ही गहरे सोच में डूबा नजर आ रहा था वह ।


दिव्या जब सस्पैंस को झेल न सकी तो बोली --- “अटक क्यों गये इंस्पेक्टर ? बोलो!”


“केवल इसलिए हिचक रहा हूं क्योंकि तुम्हें शॉक लगेगा।”


"म- मुझे ?” दिव्या का दिल धाड़-धाड़ करने लगा।


“हां!” ठकरियाल ने उसकी आंखों में झांका-“तुम्हें!”


“बोलते क्यों नहीं?” वह चीख पड़ी - - - "बोलो तो सही !” ठकरियाल ने बहुत आहिस्ता से कहा- - - “आज रात वे यहां आयेंगे।”


"यहां?”


"हां |"


“चारों?”


“पांचों । अवतार भी होगा।”


“अवतार ?... उसे तो यही मालूम है न कि हमारी नॉलिज के मुताबिक वह हवालात में है ?”


“अब उसकी नॉलिज में मैंने तुम्हें बता दिया है कि वह जमानत पर छूटकर अपने दोस्तों से जा मिला है।”


“ओह !” दिव्या "यहां आकर क्या चाहेंगे वे ?”


“तुम्हें नंगी नचाना ।”


“क- क्या ?” दिव्या के हलक से चीख निकल पड़ी ।


देवांश के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं ।


“बकौल अखिलेश, राजदान ने अपने लेटर में यही लिखा है।" ठकरियाल कहता चला गया --- “यह कि कैबरे डांस कराना है तुम्हें दिव्या से। कैबरे भी वह नहीं जो अच्छे होटलों में होता है। बल्कि वह जो भाई लोगों के घटिया और तीसरे दर्जे के होटलों में होता है। वह, जिसमें डांसर एक-एक करके अपने सारे कपड़े उतार देती है। बचे-कुचे दर्शक उतारते हैं। राजदान ने अपने लेटर के जरिए उन्हें हिदायत दी है --- 'एक भी रेशा... कपड़े का एक भी रेशा बाकी नहीं बचना चाहिए दिव्या के जिस्म पर ! नितांत नंगी नाचनी चाहिए वह तुम्हारी महफिल में चारों तरफ तुम होगे। तुम ! मेरे दोस्त । अगर वह खुद कपड़े न उतारे तो तुम सबको नोंच डालने हैं। डांस के दरम्यान अश्लील हरकतें तक करने पर मजबूर करना है उसे ठीक उसी तरह ---जैसे थर्ड क्लास होटलों की कैबरे डांसर्स फ्लोर पर करती हैं। यही ! यह सजा है उस वेश्या की । जिसने मेरी वफाओं की धज्जियां उड़ाईं, उसे मेरे दोस्तों की महफिल में नंगी नाचना होगा ।”