अजय दीवान पैलेस पहुंचा।
मेन गेट से पोर्च तक पहुंचने में वह देख चुका था जिस खिड़की के जरिए उस रात उसने सेंध लगाई थी उसकी मरम्मत की जा रही थी।
पोर्च में कार खड़ी करके वह प्रवेश द्वार पर पहुंचा।
डोरबैल के जवाब में जिस अधेड़ औरत ने दरवाजा खोला वह लिबास से ही नौकरानी नजर आ रही थी।
–""माफ कीजिए।" वह बिना कुछ पूछे धीमे उदास स्वर में बोली–"दीवान साहब घर में नहीं हैं।"
–"उनसे कहो अजय मिलने आया है।" अजय उसके कथन को नजरअंदाज करता हुआ बोला।
–"लेकिन जनाब...।"
–"ठीक है।" अजय प्रतिवाद की परवाह न करता हुआ बोला–"तुम तकलीफ न करो। मैं खुद ही जाकर मिल लेता हूं।" और उसकी बगल से गुजरकर प्रवेश हाल में आ गया।
वह स्टडी की ओर बढ़ गया।
अनिश्चित–सी नौकरानी भी पीछे आ रही थी लेकिन टोका नहीं।
स्टडी के अन्दर से आवाजें आ रही थीं।
अजय दरवाजे में जा खड़ा हुआ।
अन्दर मौजूद व्यक्ति अपने–आपमें इस कदर मसरूफ थे उनमें से किसी का भी ध्यान उसकी ओर नहीं जा सका।
अविनाश एक खिड़की के पास सीधा तना खड़ा था। उसके सुन्दर चेहरे पर क्रोधपूर्ण भाव थे उसका भाई हरीश एक बड़े डेस्क के कोने पर टिका–सा बैठा था। उसके चेहरे पर गहन उदासी के भावों से जाहिर था पत्नी रंजना की मौत का भारी सदमा उसे पहुंचा था।
डेस्क के पीछे ऊंची आरामदेह और कीमती कुर्सी पर एक करीब साठ वर्षीय आदमी मौजूद था। उसका लिबास मंहगा और शानदार था। चेहरा रुआबदार। गरदन यूं तनी हुई मानो अपने बड़प्पन का बड़ा भारी घमण्ड उसे था। उसकी आंखों में कमीनगी भरी चमक थी। अजय को उसमें एक भी ऐसा चिन्ह नजर नहीं आया जिसके आधार पर उसे 'गरीबों का मसीहा' तो दरकिनार एक भले आदमी की संज्ञा भी दी जा सके।
–"हम और कर भी क्या सकते हैं?" हरीश कह रहा था–"अगर अजय के बारे में इंस्पैक्टर अजीत सिंह को सच्चाई बताते हैं। तो हमें सब–कुछ बताना पड़ेगा और अब इस हालत में जबकि हम जानते हैं अंकल के पास चोरी के जवाहरात हैं...।"
–"मैं पूछता हूं, आखिर तुम्हें हो क्या गया है?" अविनाश ने तीव्र स्वर में पूछा–"तुम्हारी रगों में लहू की जगह पानी दौड़ रहा है? क्या तुम इतनी जल्दी भूल गए तुम्हारी पत्नी रंजना की हत्या की जा चुकी है? एक आदमी ने चाकू भौंककर उसे।"
–"बस करो!" हरीश चिल्लाया–"भगवान के लिए बार–बार इस बात को मत दोहराओ।"
–"इस बात को बार–बार दोहराना जरूरी है। तभी तुम्हारी समझ में आ सकेगा हमने क्या करना है।" कहकर अविनाश लम्बे–लम्बे डग भरता हुआ डेस्क की ओर बढ़ा–"अंकल, आप भी हालात की नजाकत को समझ सकते हैं...।"
–"माफ कीजिए।" अचानक अजय ने कहा–"लगता है मैं गलत वक्त पर पहुंचा हूं।''
और भीतर दाखिल हो गया।
अभी तक अलग खड़ी नौकरानी भी उसके पीछे झपटी।
–"मैंने इसे रोकने की कोशिश की थी, साहब। वह सफाई देती हुई बोली–"लेकिन यह जबरन घुसा चला आया।"
कमरे में पहले से मौजूद तीनों आदमियों ने मानो नौकरानी की बात सुनी ही नहीं थी।
वे आंखें फाड़े अजय को, अजूबे की भांति ताके जा रहे थे।
अन्त में सबसे पहले, दीवान सुमेरचन्द ने स्वयं को संयत किया। वह नौकरानी से बोला–"ठीक है, तुम जा सकती हो...।"
नौकरानी चली गई।
अजय ने दरवाजा बंद कर दिया। की–हॉल में फंसी चाबी घुमाकर दरवाजा लॉक करके डेस्क की ओर बढ़ा।
अविनाश गुस्से में मुक्के ताने उसकी ओर झपटा।
–"तुमने यहां आने की जुर्रत कैसे की, हत्यारे! तूने मेरी भाभी की हत्या की है।" वह इस कदर गुस्से में था उसके मुंह से शब्दों के साथ झाग निकल रहे थे। उसने बारी–बारी से दोनों घूंसे अजय पर चला दिए।
–"अविनाश!'' दीवान सुमेरचन्द ने डांट लगाई।
हरीश उछलकर डेस्क से उतर गया।
अजय पहले घूंसे से तो खुद को साफ बचा गया था मगर बचने की कोशिश करने के बावजूद दूसरा घूंसा उसके कंधे पर पड़ ही गया।
–"तुम बहुत फसादी आदमी हो, अविनाश।" अजय ने कहा, उसकी कलाई पकड़ी और जोर से उमेठकर पीठ से पीछे ले गया।
अविनाश उस पकड़ से स्वयं को मुक्त नहीं कर सका।
अजय द्वारा दबाव बढ़ाने पर उसका जिस्म नीचे झुकता चला गया। क्रोध एवं पीड़ा के कारण उसका चेहरा विकृत हो गया था।
–"फिलहाल इतना ही काफी है।" कहकर अजय ने उसे एक तरफ धकेल दिया। फिर बोला–"लगता है इस कमरे में सब वे ही लोग मौजूद हैं जिन्होंने रंजना की हत्या नहीं की।"
अविनाश फौरन एक तरफ हट गया।
मगर, धीरे–धीरे सधे कदमों से चलकर हरीश इस ढंग से अजय के सामने आ खड़ा हुआ मानो जाहिर करना चाहता था वह अविनाश से ज्यादा खतरनाक है। वह क्रोध मिश्रित घृणापूर्वक अजय को घूर रहा था।
–"तुम यहां क्यों आए हो?" आशा के विपरीत उसने नर्म स्वर में पूछा।
–"यह जानने के लिए कि क्या हो रहा है।" अजय ने उसी के स्वर में जवाब दिया। फिर डेस्क पर पड़े बॉक्स से एक सिगार निकालकर उसका कोना दांत काटने के बाद बोला–"बेफिक्र रहिए दीवान साहब, मैं नहीं जानता आपके स्ट्रांग रूम में क्या कुछ भरा पड़ा है। हां, अगर पुलिस को उसके बारे में पता चल गया तो यकीनन बखेड़ा खड़ा हो जाएगा। वैसे उन लोगों को इस बारे में बताने का मेरा तो कोई इरादा फिलहाल है नहीं। अभी तो मैं आप लोगों को यह बताना चाहता हूं, रंजना की हत्या मैंने नहीं की थी।"
उन तीनों में से कोई कुछ नहीं बोला।
–"मैं काफी हद तक यकीन के साथ कह सकता हूं रंजना का हत्यारा अविनाश है।" अजय ने कहा–"क्योंकि उस वक्त यही इकलौता शख्स वहां मौजूद था।
इस दफा भी कोई नहीं बोला। यहां तक कि अविनाश भी नहीं।
–"मेरे विचार से आपके भतीजों को आपस में एक–दूसरे से ईर्ष्या नहीं है, दीवान साहब।" अजय नर्म लहजे में कहता चला गया–"लेकिन मैं समझता हूं रंजना के हरीश के प्रति लगाव में कुछ कमी आ गई लगती थी, अगर ऐसा था तो...।"
–"इसे उठाकर बाहर फेंक दो।" अविनाश विष भरे स्वर में बोला।
–"सीधी बात है, अगर भाइयों को एक–दूसरे से ईर्ष्या होती तो हत्या की वजह समझ में आ सकती थी।" अजय ने कहा–"या किसी और को अविनाश से ईर्ष्या रही होती तब भी बात ठीक हो सकती थी, क्योंकि रंजना की हत्या एकदम आवेश में आकर की गई थी। उसके चेहरे पर मुस्कराहट थी और वह प्रगट में लापरवाह प्रतीत होता था, लेकिन उसकी निगाहें उन तीनों की प्रत्येक हरकत पर जमी थीं–"इसलिए मैं जानना चाहता हूं अविनाश और रंजना के बीच किसी अफेयर से सबसे ज्यादा फर्क किसको पड़ना था?"
अविनाश मुट्ठियां भींचकर अजय की ओर लपकने ही वाला था कि उसने फौरन अपना इरादा बदल दिया।
–"यह झूठ है, हरीश! एकदम बकवास है।" वह बड़े ही याचनापूर्ण ढंग से अपने भाई से यूं बोला मानो अपनी ओर से पूरा यकीन दिलाना चाहता था।
–"मैं जानता हूं।" हरीश ने कहा।
लेकिन अजय को लगा इस बिनाह पर शक की स्थिति पहले भी उनके बीच आ चुकी थी।
–"भाई को भाई पर बड़ा भरोसा है।" वह धीमी आवाज में बोला–"मैं भी मान लेता हूं यह सच था। लेकिन अगर अविनाश और रंजना के बीच कुछ भी नहीं था। फिर भी किसी ने समझ लिया हो सकता है उनके बीच अफेयर था। मुमकिन है ऐसा सोचने वाले को शक का तगड़ा आधार नजर आ गया था। जिसने उसे यकीन ही दिला दिया। तुम्हारे विचार से ऐसा व्यक्ति कौन हो सकता है, अविनाश? लीना हो सकती है?"
अविनाश फौरन उसकी ओर पलट गया।
–"तुम जैसा कोई पागल ही ऐसा सोच सकता है।" वह तड़प कर बोला।
–"मेरी पत्नी की हत्या तुमने की है, अजय।" हरीश शांत स्वर में बोला। उसकी निगाहों में गुस्सा नहीं नफरत थी और एक दिन मैं तुम्हारी जान ले लूंगा। जानना चाहते हो आज या अभी मैं ऐसा क्यों नहीं करूंगा? इसलिए कि मैं तुम्हें तब मारना चाहता हूं जब तुम इस तरफ से बेफिक्र हो जाओगे। जब तुम्हारे विचार से उस ओर से कोई खतरा तुम्हारे लिए नहीं रहेगा...।"
–"मैं जान सकता हूं, तुमने कैसे सोच लिया कि हत्या मैंने की थी?" अजय ने पूछा–"तुम्हारे विचार से मेरे पास रंजना की हत्या का मोटिव क्या था?"
–"सीधी–सी बात है, तुम यहां चोरी करने आए थे।" हरीश सर्द लहजे में बोला–"और रंजना ने तुम्हें चोरी करते पकड़ लिया था...।"
–"या उसे पता चल गया था कि तुम्हारे अंकल चोरी के जवाहरात के संग्रहकर्ता हैं।" अजय ने उसकी बात काटते हुए पूछा–"क्या तुम्हें इस बात की जानकारी है?"
हरीश ने जवाब नहीं दिया।
–"नहीं।" दीवान सुमेरचन्द शांत गम्भीर स्वर में बोला–"हरीश को आज से पहले इस बात की कोई जानकारी नहीं थी कि मैं जवाहरात का संग्रहकर्ता हूं। मगर मैं कबूल करता हूं जवाहरात इकट्ठा करने का मुझे पागलपन की हद तक शौक है। मुझ पर हर वक्त अपने इसी शौक का भूत सवार रहता है। लेकिन साथ ही मैं तुम्हें यह भी बता देना चाहता हूं अगर तुम किसी के सामने यह बात दोहराओगे कि हर पसन्द आ जाने वाले जवाहरात को मैं हर कीमत पर हासिल कर सकता हूं तो कोई भी तुम्हारी इस बात पर यकीन नहीं करेगा। वैसे तुम्हारी जानकारी के लिए अर्ज है कीमत मुनासिब होने पर चोरी के जवाहरात खरीदने में कोई परेशानी मुझे नहीं होती है। मगर शर्त यही है कीमत मुनासिब हो। वह मुस्कराया। उसकी वो मुस्कराहट कुटिलतापूर्ण थी और आँखों में व्याप्त कमीनगी के भावों से पूरी तरह मेल खा रही थी–"तुम यहां भीतर आते वक्त ही काफी कुछ सुन चुके हो। मैं भी तुमसे कुछ नहीं छुपाना चाहता। ''कनकपुर कलैक्शन' मेरे पास था। लेकिन न जाने कैसे अविनाश को उस बारे में पता चल गया और...।"
–"क्या रंजना को भी उसका पता था?" अजय ने तीव्र स्वर में पूछा।
–"मैं ऐसा नहीं समझता।" दीवान साहब ने जवाब दिया।
लेकिन अजय जानता था रंजना को इस बात की जानकारी थी और उसे शक था उसका पति हरीश चोर है, जबकि असल में उसका यह शक बेबुनियाद था।
हकीकतन सारे फसाद की जड़ दीवान सुमेरचन्द था। धन्ना सेठ जैसी हैसियत वाला बेहिसाब दौलतमंद वह आदमी इतना कमीना और बेशर्म है कि बड़े फख के साथ खुलेआम कबूल कर चुका है चोरी के जवाहरात का संग्रहकर्ता है। दूसरी दिलचस्प बात थी, उसके एक भतीजे हरीश को तो इस बारे में कतई कोई जानकारी नहीं थी, जबकि दूसरा भतीजा अविनाश खतरनाक, निडर और शौहरत का भूखा है। अगर लीना की बात पर यकीन किया जाए तो अविनाश को भी किसी ऐसे सही मौके की तलाश थी कि वह स्ट्रांग रूम में सेंध लगाकर, जवाहरात चुराकर उन्हें बेचकर गरीबों को दान दे सके।
–"अविनाश, तुम्हें किसने बताया?" अजय ने विचारपूर्वक पूछा–"मैं यहां आने वाला हूँ?"
–"अंकल ने विराट नगर से मुझे फोन किया था।" अविनाश ने जवाब दिया।
अजय दीवान सुमेरचन्द की ओर पलट गया।
–"आपको इस बात का कैसे पता चला, दीवान साहब?"
–"विराट नगर में उस रात तुमसे मिलकर लौटने के बाद रंजना ने ऐसी सम्भावना के बारे में बताया था।" सुमेरचन्द मुस्कराता हुआ बोला।
–"लेकिन आपको यह कैसे पता चला कि वह उस रात मुझसे मिली थी?"
–"मैंने उसे अपने होटल के सामने टैक्सी से उतरते देखा था, तुम हालांकि टैक्सी में ही रहे मगर तुम्हें भी मैंने देख लिया था। जब तुम उसे ड्रॉप करके चले गए और वह अपने कमरे में लौटी तो मेरे घुमा–फिराकर पूछने और थोड़ा दबाव डालने पर उसने सब बता दिया। इसलिए मैंने फोन करके अविनाश को चौकस रहने के लिए बोल दिया था। मगर वह पूरी तरह चौकस नहीं रह सका और तुम 'कनकपुर कलैक्शन' चुरा ले जाने में कामयाब हो गए। मेरा वो कलैक्शन कहां है अजय?"
–"इस बात से अब क्या फर्क पड़ता है?" हरीश ने चीखकर पूछा–"सवाल तो यह है रंजना की हत्या किसने की? उसका हत्यारा कौन है...?"
–"शांत हो जाओ, दोस्त!" अजय ने कहा–"इस तरह आपे से बाहर होने से कोई फायदा नहीं होने वाला। हमने बिना कोई बखेड़ा खड़ा किए रंजना के हत्यारे का पता लगाना है। इसलिए बेहतर होगा आपस में कोई फसाद किए बगैर हम मिलकर काम करें।" उसने रुककर हाथ में पकड़ा सिगार सुलगाया, फिर बोला–"रंजना को मैं न सिर्फ जानता था बल्कि पसन्द भी करता था। उसका पहला पति भी मेरा दोस्त था। बदकिस्मती से उन दोनों की ही हत्या की जा चुकी है और दोनों हत्याएं एक ही व्यक्ति ने की हो सकती हैं। अनुमानतः लीना भी संदिग्ध खूनी हो सकती हैं। अविनाश पर भी निश्चित रूप से शक किया जा सकता है। हरीश भी प्लेन द्वारा यहां पहुंचकर रंजना की हत्या करके इसी तरह वापस लौट सकता था। इसी प्रकार आप भी रंजना की हत्या कर सकते थे, दीवान साहब। वह तनिक रुका फिर बोला–"ये सब मैं पुलिस के सोचने के ढंग के मुताबिक बता रहा हूं। आप लोग शायद नहीं जानते जितना ज्यादा पुलिस को इस ढंग से सोचने दिया जाएगा उतना ही ज्यादा चांस इस बात का है कि वे लोग पता लगाना चाहेंगे आखिर इस घर में कौन–सी खूबी है। यानी आप लोग यहां क्या रखते हैं। मेरा कहने का मतलब है, अगर आप तीनों एक जुट होकर और मेरे साथ मिलकर रंजना के हत्यारे का पता लगाने का काम करते हैं तो आप लोगों की प्रतिष्ठा भी बनी रहेगी और हम किसी सही नतीजे पर भी पहुंच सकेंगे।"
सुमेरचन्द ने प्रशंसापूर्वक उसकी ओर देखा।
–"मैं तुम्हारी बात से काफी हद तक सहमत हूं।" उसने कहा। वह अचानक बहुत ज्यादा थक गया नजर आने लगा था–"मैं इस बात को काफी हद तक सही मानता हूं हमने यह सोच कर कि तुम हत्या के बारे में कुछ नहीं जानते, बड़ी गलती की है।"
–"आप इसकी बातों में मत आइए।" अविनाश गुर्राता–सा बोला।
–"या तो दोनों हत्याओं का आपस में गहरा रिश्ता था और एक ही वजह से ही दूसरी हत्या की गई थी, या फिर रंजना की हत्या की वजह काशीनाथ की हत्या की वजह से सरासर अलग थी, दीवान साहब।" अविनाश के हस्तक्षेप की ओर ध्यान न देकर अजय ने कहा–"अगर हमें मोटिव का पता लग जाए तो हत्यारे का पता आसानी से लगाया जा सकता है।" वह सिगार का कश लेकर धुएं का गुब्बार छोड़ने के बाद बोला–"मैं काशीनाथ के असली हत्यारे का भी पता लगाना चाहता हूं क्योंकि उसकी हत्या के अपराध में एक बेगुनाह को मौत की सजा सुना दी गई है और हफ्ते बाद उसे फांसी के फंदे पर लटका दिया जाएगा। जहां तक काशीनाथ की हत्या का सवाल है उसकी हत्या की वजह उस वक्त प्रत्यक्षतः रॉबरी विद वायलैंस थी। आपको याद होगा, हत्यारे ने कनकपुर कलैक्शन चुराया था। मैं जान सकता हूं, आपने कनकपुर कलैक्शन किस से खरीदा था, दीवान साहब?
–"विशालगढ़ के ही एक जौहरी से।" सुमेरचन्द ने सामान्य ढंग से उत्तर दिया–"जवाहरात हासिल करने के बारे में मैं या वह किसी भी उसूल के पाबंद नहीं हैं। हमें सिर्फ जवाहरात हासिल करने से ही मतलब है। मगर हत्या मैंने नहीं की। मेरे विचार से तो यह साबित करने की कोशिश करना, कि दोनों हत्याओं के मोटिव का आपस में रिश्ता है, सिर्फ वक्त बर्बाद करना है। अगर तुमने रंजना की हत्या नहीं की...।" उसने बारी–बारी से अपने दोनों भतीजों की ओर देखा. फिर बोला–"मैं सिर्फ इतना जानता हूं हत्या मैंने नहीं की।"
मदन मोहन सेठी को बेगुनाह साबित करने के लिए यह जानना बेहद जरूरी था सुमेरचन्द ने कनकपुर कलैक्शन किससे खरीदा। लेकिन सुमेरचन्द आसानी से यह बताने वाला नहीं था। और उस पर दबाव डालने का मुनासिब वक्त वो नहीं था।
कमरे में देर तक खामोशी छाई रही। अन्त में हरीश ने मौन भंग करते हुए पूछा–"अविनाश, तुमने लीना से इस बारे में बातें की थी?"
–"नहीं, और न ही करूंगा।"
–"अगर तुम्हें यकीन है रंजना की हत्या से किसी नौकर का किसी भी प्रकार का कतई कोई ताल्लुक नहीं है।" अजय ने कहा–"तो फिर अविनाश और लीना ही दो ऐसे व्यक्ति बचते हैं जो हत्या की रात यहां मौजूद रहे थे।"
–"पुलिस को पूरा यकीन है नौकरों का हत्या से कोई सम्बन्ध नहीं था।" सुमेरचन्द ने कहा।
–"तुम भी तो खुद को बहुत बड़ा तीसमारखां समझते हो, अजय!" अविनाश उपहासपूर्वक बोला–"क्या तुम साबित कर सकते हो हत्या तुमने नहीं की?"
–"हां अब मैंने यही करना है।" अजय ने कहा–"सुनो, रंजना की हत्या तो तुम तीनों में से किसी ने की है या लीना ने या फिर और किसी अज्ञात व्यक्ति ने। हत्यारा जो भी है मैं उसका पता लगाकर ही रहूंगा।" वह पलटकर दरवाजे की ओर बढ़ा और उसे खोलकर बाहर निकल गया।
वह प्रवेश हाल में पहुंचा ही था वहां मौजूद नौकरानी ने प्रवेश द्वार खोला। फिर आगंतुक पर निगाह पड़ते ही अजय ठिठककर रुक गया।
आगंतुक कोई और न होकर इंस्पैक्टर अजीत सिंह था।
अजय को न तो डोर बैल की आवाज सुनाई दी थी और न ही यह सोचने की कोई वजह उसके सामने थी कि उस वक्त पुलिस वहां आ पहुंचेगी।
वह किंकर्त्तव्य–विमूढ़–सा खड़ा रह गया।
अपने दो मातहतों सहित इंस्पैक्टर उसकी ओर बढ़ा।
–"अरे, अजय कुमार तुम!" उसने कहा और उसकी बगल से आगे गुजर गया।
उसके दोनों मातहतों ने भी उसका अनुकरण किया।
मन–ही–मन बुरी तरह चकराता हुआ अजय भी उनकी दिशा में पलट गया।
इंस्पैक्टर और उनके मातहत स्टडी की ओर जा रहे थे।
अजय की असमंजसता एवं उत्सुकता अपनी चरम सीमा पर थी। अन्य किसी भी फेर में पड़ने की बजाय वह लपकता हुआ स्टडी में जा पहुंचा।
तब तक पुलिस भी स्टडी में पहुंच चुकी थी।
–"दीवान साहब, मुझे अफसोस है आपके सामने इस ढंग से पेश आना पड़ रहा है।" इंस्पैक्टर कह रहा था–"काश मेरी ड्यूटी इस कदर बदमजा नहीं होती।" उसके संकेत पर एक पुलिस मैन हथकड़ियां लेकर अविनाश की ओर बढ़ा–"मैं मि० अविनाश दीवान को गिरफ्तार करने आया है। श्रीमती रंजना दीवान की। हत्या के अपराध के संदेह में अविनाश दीवान के एक परिचित ने हमें इत्तला दी है हत्या की रात उसने अविनाश दीवान को यहां से जाते देखा था। अविनाश का वह परिचित उस वक्त एक पार्टी से अपनी पत्नी सहित घर लौट रहा था। मैं चैक कर चुका हूँ उस रात दो बजे के बाद तक अविनाश की कार गैराज से बाहर रही थी। लेकिन पूछताछ के दौरान अविनाश ने बताया था उस रात वह घर से कहीं नहीं गया।"
–"आपका मतलब है, उस रात मैं अपनी कार में बाहर घूमता रहा था?" अविनाश ने पूछा।
–"नहीं, तुम्हारे परिचित ने तुम्हें मोटर साइकिल पर भागते देखा था–" इंस्पैक्टर ने कहा–"तुम्हारी कार उस रात किसने क्यों इस्तेमाल की थी? यह तो तुम्हीं बताओगे। नाऊ यु आर अण्डर अरैस्ट।" फिर अपने मातहतों से बोला–"अरैस्ट हिम।"
दोनों पुलिस मैन अविनाश की ओर बढ़े।
लेकिन ऐन उस वक्त, ज्योंहि वे अविनाश के पास पहुंचे, अचानक और सर्वथा अप्रत्याशित रूप से अविनाश ने उन दोनों को एक तरफ धकेला और इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता वह दरवाजे से बाहर दौड़ गया।
–"ठहरो।" इंस्पैक्टर चिल्लाया–"रुक जाओ।" और उसके पीछे लपका।
उसके दोनों मातहतों ने भी उसका अनुकरण किया।
सुमेरचन्द और हरीश भी बाहर दौड़ गए।
अजय बाहर जाने की बजाय खिड़की के पास जा खड़ा हुआ। उसने देखा अविनाश तेजी से गार्डन में भागा जा रहा था और इंस्पैक्टर और उसके मातहत उसके पीछे दौड़ रहे थे उसे पकड़ने के लिए।
अजय के देखते–ही–देखते वह एक चट्टान के पीछे जाकर गायब हो गया।
पुलिस भी उसके पीछे लगी रही।
चन्द क्षणोपरांत सुमेरचन्द और हरीश वापस लौटे।
–"हमें पुलिस को सब–कुछ बताना पड़ेगा, अंकल!" हरीश ने कहा–"वरना हो सकता है अविनाश रंजना की हत्या के अपराध में वाकई उलझकर रह जाए।" फिर उसने नफरत से जलती निगाहों से अजय को घूरा–"अब तुम ज्यादा देर नहीं बच सकोगे, अजय! हमने हर कीमत पर अविनाश को बचाना है। इसके लिए चाहे अपने अंकल की आजादी और खानदान की इज्जत भी दांव पर क्यों न लगानी पड़े।"
अजय कुछ नहीं बोला। वह खिड़की के बाहर ही देखे जा रहा था।
पुलिस अविनाश को पकड़कर ला रही थी। उसके हाथों में हथकड़ियां लगी हुई थीं।
उसके देखते–ही–देखते पुलिस उसे लेकर बाहर चली गई फिर एकाएक जीप का इंजन स्टार्ट हुआ और फिर इंजन की आवाज धीरे–धीरे दूर होती चली गई।
अजय खिड़की से अलग हट गया।
–"अविनाश की गिरफ्तारी ने हालात बिल्कुल बदल दिए हैं, अजय।" हरीश कह रहा था–"तुम्हारे पास वक्त बहुत ही कम है। अगर रंजना की हत्या तुमने नहीं की है तो भी तुम्हारी खैरियत इसी में है हत्यारे का जल्दी से जल्दी पता लगाओ। तुम नहीं जानते इस घर के नौकर अविनाश को अपना भगवान मानते हैं। उसे बचाने के लिए वे बेहिचक कसम खाकर कहने के वास्ते तैयार हो जाएंगे कि हत्या की रात उन्होंने तुम्हें यहां देखा था।"
अजय चुपचाप खड़ा रहा।
–"हमारे और हमारे नौकरों के बयान के सामने तुम्हारी कोई दलील नहीं चल पाएगी, अजय! सुमेरचन्द ने कहा–"तुम्हारी ठोस से ठोस बात भी बिल्कुल बेअसर साबित होगी। यहां तक कि 'कनकपुर कलैक्शन' भी जिसे तुमने कहीं छुपा दिया है। मैं हरीश की बात से सहमत हूँ। अविनाश को बचाने के लिए हम कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।"
अजय ने बारी–बारी से उन दोनों की ओर देखा, फिर स्टडी से बाहर आ गया।
किसी ने उसका पीछा करने की कोशिश नहीं की।
वह इमारत से बाहर आ गया।
पोर्च में खड़ी अपनी कार में सवार होकर वह शहर की ओर ड्राइव करने लगा।
* * * * * *
0 Comments