रुस्तम राव खुद को शून्य में महसूस कर रहा था । वो न तो कुछ सोचने-समझने के काबिल था और ना ही देख पाने में। खुद को वो हवा बना महसूस कर रहा था ।
ऐसी स्थिति तब तक रही, जब तक कि उसने अपने पांवों को जमीन पर महसूस नहीं किया । पैर जमीन पर लगते ही धीरे-धीरे वो शून्य से बाहर निकला । अपने शरीर को देखा फिर आसपास देखा । ये जगह किसी पहाड़ पर थी, जहां बीच में काफी बड़ा हिस्सा समतल था ।
इस वक्त वो वहीं था ।
दूर-दूर तक फैले बाग-बगीचे के बीच छोटा-सा सफेद रंग का मकान बना हुआ था, जहां नौकर वगैरह अपने कामों में व्यस्त दिखाई दे रहे थे ।
जहां वो था, उससे कुछ ही दूरी पर वो मकान था ।
रुस्तम राव ने गर्दन घुमाकर, पास खड़े फकीर बाबा को देखा ।
फकीर बाबा का नया रूप ही तो था उसके सामने । सफेद धोती-कुर्ता | गले में मालाएं। माथे पर तिलक और होठों पर शांत-धीर मुस्कान । इस वक्त भी वो मुस्कुराते हुए उसे देख रहे थे।
"बाबा।" रुस्तम राव की आवाज में उलझन थी--- "ये सब क्या हो रहा है । मैं समझ नहीं पा रहा हूं।"
"त्रिवेणी ।" फकीर बाबा के होठों पर बराबर मुस्कान छाई हुई थी--- "जानते हो इस वक्त तुम मेरी कैदी हो । तुमने मेरे बेटे कालूराम को तड़पा-तड़पा कर मारा था । उसकी सजा तो तुम्हें मिलनी चाहिए।"
"बाबा मैं तो आप के हवाले होएला हूं ।" रूस्तम राव ने शांत स्वर में कहा--- "आपुन को आपकी हर बात स्वीकार होएला । पैले की बात आपुन को नेई मालूम होएला बाबा ।" रुस्तम राव के स्वर में उलझन के भाव थे ।
"जानना चाहते हो ?"
"हां ।" रुस्तम राव के होठों से निकला |
"आओ ।" फकीर बाबा उसे लेकर मकान की तरफ बढ़ गया ।
"बाबा । एक बात आपुन को समझ में नेई आएला ।" रूस्तम राव बोला ।
"क्या ?"
"गुलाब लाल से बात होएला तो आपुन उससे ऐसे बात किएला जैसे बरसों से उसे जानेला है । "
"हां । ऐसा होना स्वभाविक है ।"
"काये को ?
"क्योंकि तुम उस धरती पर खड़े हो, उन लोगों में हो, जहां कभी मौत का तूफान उठा था । बीते दिनों की बात उछाल मारकर कभी-कभार तुम्हारे मस्तिष्क में घर कर बैठती है । ऐसा इसलिए हुआ...।"
रूस्तम राव सोचों में डूबा रहा ।
"गुलाबलाल जब तुम लोगों से सवाल कर रहा था, कि यहां तुम्हें कौन लाया, तो मैं तब हवा के रूप में मौजूद था और जब गुलाबलाल को तुम लोग बताने जा रहे थे तो, हवा के रूप में ही मैंने तुम्हारे मस्तिष्क के विचारों को बदला था।" फकीर बाबा ने शांत स्वर में कहा ।
"गुलाबलाल ने मुझे, कैदी के रूप में आपके हवाले किएला है।"
"हां । लेकिन तुम कैदी नहीं हो । मेरे बेटे हो ।" फकीर बाबा मुस्कुराया ।
"लेकिन गुलाब लाल का तो कहना है कि मैंने आपके बेटे कालूराम की हत्या की थी । " रुस्तम राव ने बाबा को देखा ।
"कालूराम ने अपने कर्मों का फल पाया है। मैंने उसे पहले ही आगाह कर दिया था कि, जिस रास्ते पर वो बढ़ रहा है, वो रास्ता उसके अंत का कारण बनेगा ।" लेकिन उसने मेरी। एक न सुनी। उसकी बुरी हरकतों से मैं खुद दुखी था । दूसरों के सामने उसकी हरकतों से मेरा सिर झुका रहा था और बहुत ठीक मौके पर वो तुम्हारे हाथों मरा, नहीं तो वो और जाने क्या मुसीबतें खड़ी करता । "
रुस्तम राव कुछ न कह सका ।
"तुमने कालूराम को एक नहीं दो जन्मों में मारा है।" फकीर बाबा ने शांत स्वर में कहा।
"दो जन्मों में ?''
"हां । अभी जो तुम्हें बताया, वो पहले जन्म की बात थी । उसके बाद तुमने दूसरा जन्म लिया था । अब ये तुम्हारा तीसरा जन्म चल रहा है और तीसरे जन्म में भी तुम कालूराम को मार चुके हो । पहले और तीसरे जन्म में कालूराम का नाम कालूराम था । और जब तुमने तीसरे जन्म में कालूराम को मारा, तब भी वो बुरी हरकतों का मालिक था । तब भी तुम उसे नहीं मारते तो वो जाने कितनों को खत्म कर देता । देवा और मिन्नो से में दुश्मनी की दीवारों को और भी बुलंद कर देता ।" यह जानने के लिए पढ़ें अनिल मोहन के दो पूर्व प्रकाशित उपन्यास देवराज चौहान और मोना चौधरी के (1) हमला (2) जालिम।
रुस्तम राव गहरी सांस लेकर कह उठा ।
"बाबा । इस जन्म में अगर मैं कालूराम को न मारेला तो वो इं. वानखेड़े और फिर मुझे खत्म करेला ।"
"मैं जानता हूं और मुझे तुम से कभी कोई भी कोई शिकायत नहीं रही ।" फकीर बाबा मुस्कुराया।
"ये दालूबाबा कौन होएला बाबा ?" रुस्तम राव ने पूछा ।
"इस वक्त तो इस सवाल के जवाब में इतना ही कह सकता हूं कि, वक्त ने उसे नगरी के जर्रेजर्रे का मालिक बना दिया है । जो वो चाहता है, वही करता है ।" फकीर बाबा गंभीर हो उठा।
"जगमोहन, महाजन और बांकेलाल राठौर को गुलाबलाल ने दालूबाबा के पास भेजेला है दालूबाबा उनके मुंह से जानेला कि इस नगरी में हमें कौन लाएला । उनके मुंह से आपका नाम निकेला बाप ।" कहने के साथ ही रुस्तम राम ने प्रश्न भरी निगाहों से फकीर बाबा को देखा ।
फकीर बाबा ने सहमति से सिर हिलाया ।
"यह ठीक है कि दालूबाबा के पास मुझसे ज्यादा शक्तियां है । लेकिन मेरे पास इस बात का इंतजाम है कि वो उनके मुंह से कुछ भी न निकलवा सके। इस बात का पूरी तरह एहसास है मुझे। मैं सब ठीक कर दूंगा ।"
रुस्तम राव ने यह नहीं पूछा कि उसके पास कैसा इंतजाम है ?
"देवराज चौहान और मोना चौधरी तिलस्म में होएला इस बख्त ?"
"हां । "
"गुलाबलाल बताएला कि दालूबाबा ने कुछ करेला तिलस्म में उनकी मौत के वास्ते । वो खतरे में होएला बाप ।"
फकीर बाबा के होठों पर मुस्कान उभरी ।
"तुम ठीक कहते हो । मुझे इस बात की जानकारी पहले ही मिल चुकी है। मेरी नजर इस नगरी में हर जगह पर मौजूद है। तिलस्म में भी । शायद ही ऐसी कोई खबर हो, जो मुझसे छिप सके । परंतु तुम निश्चिंत रहो । ये तो पुरानी बहुत पुरानी बात है, जो तुमने सुन रखी है कि मरने वाले 'बचाने वाला बड़ा होता है । "
"आपुन नेई समझेला बाप ?"
"इतना जान लो कि देवा और मिन्नो सुरक्षित हाथों में पहुंचने वाले हैं ।" फकीर बाबा ने विश्वास भरे स्वर में कहा ।
रुस्तम राव ने उलझन भरी निगाहों से फकीर बाबा को देखा ।
"बाबा । तिलस्म में उन्हें कौन बचाएला ?"
जवाब में फकीर बाबा मुस्कुराकर रह गया।
दोनों खामोशी से आगे बढ़ने लगे। परंतु उलझनों में घिरा, रूस्तम राव पुनः बोल पड़ा । "बाबा तुम कहेला की तुम्हें गुरुवर ने श्राप मिलेला है कि जब तक तुम देवराज चौहान और मोना चौधरी से दोस्ती नेई करवाएला तो, तब तक तुम्हें मुक्ति नेई मिलेला।" फकीर बाबा ने गंभीरता से सिर हिलाया ।
"हां। क्योंकि मैंने ही देवा और मिन्नो के बीच दुश्मनी की बुनियाद डाली थी । गुरुवर ने मुझे बहुत मना किया था कि मैं ये काम न करूं, परंतु वो शायद मेरा बचपना था । नादानी थी । कभी-कभी इंसान को बहुत देर बाद समझ में आता है कि उसने क्या गलत कर डाला । अब उसका अंजाम मेरे सामने हैं। चूंकि दुश्मनी का मामला मेरी वजह से ही शुरू हुआ था, इसलिए गुरुवर ने मुझे श्राप दे दिया कि मैं तब तक मृत्यु को प्राप्त होकर मुक्ति नहीं पा सकता, जब तक कि देवा और मिन्नो में पुनः दोस्ती नहीं करा देता । यही वजह थी कि मुझे पाताल नगरी छोड़कर, कई बार पृथ्वी पर जाना पड़ा। ताकि दोनों में दोस्ती करा सकूं । लेकिन मेरी कोशिश कामयाब नहीं हो पाई, बीते जन्म की दुश्मनी का असर, अगले जन्म में भी नजर आया और अब इस जन्म में भी । अब इन सबको यहां लाकर दोस्ती कराने की कोशिश कर रहा हूं कि शायद पूर्वजन्म की कुछ बातें इन्हें याद आ जाए। दुश्मनी छोड़कर, दोस्त बन जाएं और मैं अपने शरीर से मुक्ति पाकर, आगे जा सकूं । नया जन्म पा सकूं या फिर जो ऊपर वाले की इच्छा ।"
रूस्तम राव, फकीर बाबा को देखे जा रहा था ।
"देवा और मिन्नो में दोस्ती कराने की कोशिश मुद्रानाथ और बेला भी कर रहे हैं । "
"ये दोनों कौन होएला बाबा ?"
"मिन्नो का पिता और बहन बेला । तब मुद्रानाथ भी मिन्नो के साथ देवा से हो रही लड़ाई में साथ था । परंतु बाद में उसे भी मेरी तरह भूल का एहसास हो चुका है। मैं ही मुद्रानाथ को और देवा के पिता चौधरी विश्राम सिंह और उसके घरवालों को एक-दूसरे के खिलाफ भड़काता रहता था । या यूं कह लो कि दूसरों के घरों में आग लगाकर मजा लेता था । लेकिन ये सब करना मुझे बहुत महंगा पड़ा, जिसे आज मैं भुगत रहा हूं।" फकीर बाबा की आवाज में उदासी आ गई ।
"तब भी आपके पास येई सब शक्ति होएला बाबा ।"
"नहीं । मैं बहुत साधारण इंसान था पहले जन्म में। मैं नाई था । हजामत करता था, लोगों के घर-घर जाकर । लोग रोटी-पानी दे दिया करते थे । अनाज दे देते थे इसी तरह मेरा गुजारा चलता था । काम के दौरान लोगों का दिल लगा रहे । वो मेरे से खुश रहे, इसलिए इधर की बात उधर करना मेरी आदत बन गई । तब मुझे क्या मालूम था कि मेरी ये हरकत एक दिन कहर बरपा देगी ।"
"तो फिर ये शक्तियां आपको किधर से मिएला बाप ? "
"नगरी में उथल-पुथल के बाद जब हर तरफ शांति छा गई तो मेरे को तब तक गुरुवर का श्राप मिल चुका था । मैं मर नहीं सकता था । किसी भी प्रकार से अपने शरीर को त्याग नहीं सकता था । मेरे पास करने को कुछ भी नहीं था तो मैं गुरुवर की शरण में चला गया । उनके चरणों में बैठकर, उनके आशीर्वाद को पाकर तपस्या करने लगा । गुरुवर जो कहते। मैं वो ही करता | कठिन से कठिन समाधि और योग ध्यान लगाकर मैंने कठिन राहों से गुजरकर सिद्धि प्राप्त की। गुरुवर की कृपा से मैं कई तरह की शक्तियां प्राप्त करके असाधारण इंसान बन गया । तिलस्म विद्या का ज्ञान भी मैंने पा लिया । परंतु श्राप से मुक्ति नहीं पा सका । गुरुवर के आशीर्वाद के बाद भी, गुरुवर अपने दिए श्राप को वापस लेने को कभी तैयार नहीं हुए। हमेशा वो यही कहते हैं कि यही तेरी सजा है पेशीराम, कि जब वक्त तेरे हाथ में था तो मेरे समझाने पर भी तू नहीं समझा कि कितना बड़ा अनर्थ होने जा रहा है ।" फकीर बाबा की आवाज में थकान सी आ गई थी । चेहरा अफसोस से भर उठा था ।
रुस्तम राव के चेहरे पर गंभीरता थी ।
"लेकिन बाबा । आपको तो गुरुवर से श्राप मिएला तो आप जिंदा होएला । लेकिन गुलाबलाल के बारे में मेरे को लगेला कि वो भी पैले वैसे ही होएला जब...।"
"तू ठीक कहता है त्रिवेणी ।" फकीर बाबा ने सिर हिलाया--- "मिन्नो ने अपने अंतिम वक्त में अपनी हुकूमत बांट दी । दालूबाबा, मिन्नो का सलाहकार हुआ करता था और तिलस्म का विद्वान था । तब मिन्नो नगरी की देवी बन चुकी थी और महल में रहती थी। आखिरी वक्त में कुछ आदेश देकर मिन्नो ने दालूबाबा की निगरानी में दे दिया और नगरी को संभालना अपने पिता मुद्रानाथ और बहन बेला के हवाले कर दी । लेकिन बाद में दालूबाबा ने षड्यंत्र करके, सब कुछ अपने हाथों में ले लिया और मुद्रानाथ-बेला को आज भी दालूबाबा से छिपकर रहना पड़ रहा है, क्योंकि वो, इन दोनों को खत्म कर देना चाहता है । दालूबाबा ने अपने हाथों में हुकूमत लेते ही, सबसे पहले ताज पर कब्जा किया । "
"ताज ?"
"हां । तिलस्मी ताज। जिसे लेने देवा और मिन्नो आए हैं। देवी के रूप में वो ताज मिन्नो सिर-माथे पर होता था । वो ताज, मामूली ताज न होकर, तिलस्म की बहुत बड़ी चाबी है । हमारे पुरखों ने बहुत यज्ञ और सिद्धियां करके, उस ताज में अमर शक्तियां भर दी थी । उसमें से एक ही शक्ति ऐसी थी कि अगर उसका इस्तेमाल किया जाए तो कोई चीज नष्ट नहीं हो सकती । कोई चीज पैदा नहीं हो सकती । जो इंसान जैसा है, वैसा ही रहेगा । उसकी उम्र नहीं बढ़ेगी। यानी उम्र का बढ़ता जीवन वहीं रुक जाएगा । दालूबाबा ने ताज में मौजूद उसी शक्ति का इस्तेमाल करके, नगरी के वक्त को वहीं रोक दिया । इसलिए डेढ़ सौ बरसे बीत जाने पर भी सब कुछ वैसा ही, वही है जैसा उस वक्त था । दालूबाबा ने बहुत गलत किया । सृष्टि की रचना में उसने बाधा डाली है, जिसने दुनिया बनाई, दालूबाबा ने उसी के खिलाफ कदम उठा दिए । शक्ति को हमेशा अच्छे काम के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए । तभी वो पूरक होती है । लेकिन दालूबाबा ने ताज में मौजूद शक्ति का इस्तेमाल सृष्टि के खिलाफ कर डाला । मात्र इस लालच में की नगरी उसके अधीन रहे । वो ज्यादा देर जी सके और हर वक्त मौज-मस्ती करता रहे ।"
फकीर बाबा के चेहरे पर उखड़ेपन के भाव थे ।
रूस्तम राव ने गंभीरता से सिर हिलाया ।
"तो क्या इस नगरी का रोका हुआ समय चक्र ठीक नेई होएला बाबा ?"
"ठीक हो सकता है, अगर वो तिलस्मी ताज हाथ आ जाए । परन्तु उस ताज को दालूबाबा ने किस कदर सख्त पहरे में रखा है, इन बातों को सुनकर, पहरे की सख्ती का अनुमान तो लगा ही सकते हो। बड़े से बड़ा तिलस्म का ज्ञाता भी दालूबाबा के तिलस्म को काट नहीं सकता । सिर्फ एक-एक ही शख्स है जो उस ताज पहुंचने का हौसला जुटा सकता है । उस तिलस्मी पेहरे को काट सकता है।"
"वो कौन होएला बाबा ?"
"मिन्नो ?"
"मोना चौधरी ?" रूस्तम राव चौंका ।
"हां । तब इस नगरी में मिन्नो से बड़ा तिलस्म का ज्ञाता नहीं था । मिन्नो के पास हर तरह के तिलस्म की काट थी और अब वो फिर आ गई है। परंतु वक्त का इंतजार करना होगा।"
"कैसा वक्त ?"
"मिन्नो को सब कुछ याद आ जाने का वक्त । पूर्वजन्म की बातें, जब उसे याद आएंगी, तभी तो उसके मस्तिष्क में तिलस्म की सारी विद्या याद आएगी। उसके बाद ही वो दालूबाबा के षड्यंत्र को समाप्त कर सकेगी ।"
रुस्तम राव को यह सब सुनकर बहुत अजीब सा लग रहा था ।
"बाबा । आप क्या आपुन को बताएला कि पहले जन्म में क्या हुआ था । कैसे झगड़ा होएला और...।"
"हां जरूर बताऊंगा । लेकिन अभी ये सब बताने का वक्त नहीं आया। धीरे-धीरे सब सामने आएगा।"
"बाबा, तुम आपुन को बताने जाएला पीछे जन्म की बातें ?"
"हां । उस जन्म का थोड़ा सा नजारा, तुम्हें अवश्य कराऊंगा कि, जान सको तुम क्या थे और हो सकता है उस जन्म कि यादें तुम्हारे सामने शायद ताजा भी होने लगी । तुम्हें कुछ याद आ जाए ।"
रूस्तम राव को रोमांच सा महसूस हुआ यह सोच कर कि वो बीते जन्म की बातें जानने वाला है।
मकान आ गया था ।
फकीर बाबा और रुस्तम राव ने मकान के भीतर प्रवेश किया ।
मकान में सेवक अपने कामों में व्यस्त थे। जिनमें पुरुष भी थे और स्त्रियां भी। फकीर बाबा जिसके पास से गुजरा, उसने आदर भाव से नमस्कार किया ।
मकान के गेट के भीतर, दोनों तरफ बाग था । फूलों की क्यारियां सजी-संवरी बहुत अच्छी लग रही थी। जिधर घास बढ़ी हुई थी, वहां से घास को काटा जा रहा था । एक तरफ बड़ा सा झूला लटक रहा था । दीवार के साथ कतार में छायादार वृक्ष खड़े थे।
हर तरफ खुशनुमा माहौल था ।
प्रवेश दीवार पर फकीर बाबा ठिठका और पलटकर रुस्तम राव को देखा । जो कि हर तरफ निगाहे घुमाता, वहां की चीजों को देख रहा था ।
"आओ त्रिवेणी ।"
रूस्तम राव ने फकीर बाबा को देखा ।
"बाबा । आप तो जानेला कि आपुन का नाम रुस्तम राव होएला । तो फिर...।"
"ये बात किस-किस से करते रहोगे ।" फकीर बाबा ने मुस्कुरा कर कहा--- "जो भी तुम्हें पहचानता है, वो तेरे को त्रिवेणी ही कहेगा । सूरत तो तेरी, त्रिवेणी की ही है। आ।"
रुस्तम राव फकीर बाबा के साथ भीतर प्रवेश कर गया ।
"तुम सब मुझे बाबा कहते हो ।" फकीर बाबा ने कहा--- "अब मैं तुम्हें कितना भी कहूं कि मुझे पेशीराम कहो, लेकिन ये नाम तुम्हारे मुंह से नहीं निकलेगा, क्योंकि बाबा नाम तुम्हारे दिलो-दिमाग में घुसा हुआ है । बस, यही बात मुझ पर भी लागू होती है त्रिवेणी।"
रुस्तम राव ने देखा, ये सामान्य साइज की बैठक की। सोफा भी मौजूद था और कुर्सीयां भी। उसकी नजरें हर तरफ घूम रही थी ।
"बैठो त्रिवेणी ।" फकीर बाबा ने कहा ।
रूस्तम राव आगे बढ़ कर बैठ गया।
"कायदे से तो मुझे पहले तुमसे जलपान के बारे में पूछना चाहिए। लेकिन इस वक्त उसे से भी जरूरी लग रहा है, लाडो को तुम्हारे साथ मिलवाना ?" फकीर बाबा ने कहा ।
"लाडो ?" रुस्तम राव की प्रश्न भरी निगाह फकीर बाबा के चेहरे पर गई । "कुछ याद नहीं आया ?"
"नेई याद आएला ।"
तभी एक नौकरानी वहां पहुंची ।
"मालिक कोई सेवा ?"
"लाडो को भेजो।" फकीर बाबा ने शांत स्वर में कहा । "जी मालिक ।" इसके साथ ही नौकरानी वहां से चली गई । रुस्तम राव उलझन भरी निगाहों से फकीर बाबा को देख रहा था ।
"लाडो कौन होएला बाबा ?"
"मेरी बेटी । कालूराम की बहन।"
"आपकी बेटी होएला।" रूस्तम राव चौंका--- "पण आपुन का उससे वांदा होएला ?"
"वो डेढ़ सौ बरस से तुम्हारा इंतजार...।" फकीर बाबा कहते-कहते ठिठका ।
तभी पन्द्रह बरस की खूबसूरत युवती ने भीतर प्रवेश किया । उसने चोली- घाघरा पहन रखा था । उसकी लंबी चुटिया झूल रही थी । आंखों में मासूमियत थी । रुस्तम राव को देखते ही वो ठिठक गई। आंखों में अविश्वास के भाव उभरे । उसके होठों से थरथराहट पैदा हो गई ।
"देख बेटी ।" फकीर बाबा की आवाज में अजीब सी भर्राहट थी--- "मैं किसे लेकर आया हूं
रुस्तम राव और युवती की निगाहें मिली ।
उसी पल रूस्तम राव को लगा, जैसे उसके मस्तिष्क में सुइयां चुभ रही हों । छोटे-छोटे धमाके होने लगे थे । चेहरे पर अजीब से भाव फैलते चले गए। एकाएक उसे लगा, जैसे वह गहरी घाटियों में घूम-घूम होता जा रहा हो । मस्तिष्क में कभी रोशनी चमकती तो कभी अंधेरा सा छाने लगता।
"त्रिवेणी ।" उस युवती के होठों से कांपता स्वर निकला ।
"लाडो ।" रूस्तम राव के चेहरे पर खुशी नाची ।
"तू कहां चला गया था रे ।" लाडो आगे बढ़ी और करीब पहुंचकर उसने रूस्तम राव के पांव छुए । उसके बाद वो वैसे ही बैठी रही । खड़ी नहीं हुई । रुस्तम राव को खामोश पाकर
लाडो झल्लाकर कह उठी--- "अब मेरे सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद भी देगा कि नहीं।" रुस्तम राव ने हंसकर उसके सिर पर हाथ रखा ।
"ले।"
"क्या ले ।" लाडो मुंह बना कह उठी --- "सुहागन रहने का भी तो आशीर्वाद दे । दो बोल बोलने से तेरा मुंह तो नहीं फूट जाएगा। जल्दी कर, बैठे-बैठे मैं थक गई हूं "
"तू सुहागन बने तो आशीर्वाद दूंगा। पहले ब्याह तो कर ले ।" रूस्तम राव हंसा ।
"देख त्रिवेणी । मजाक मत कर । तेरे को पता ही है, मेरा ब्याह तेरे साथ तय हो चुका है और...।"
"तय ही हुआ है । अभी हुआ तो नहीं । जब हो जाएगा आशीर्वाद भी दे दूंगा।"
"ठीक है । मैं बापू से कह कर, जल्दी भी कोई शुभ मुहूर्त निकलवाती हूं।" तीखे स्वर में कहती लाडो खड़ी हो गई। चेहरे पर गुस्सा आ गया ।
रूस्तम राव खिलखिला कर हंस पड़ा।
"तू बापू से कहेगी ?"
"हां । "
"बापू को क्या कहेगी, मेरा ब्याह करवा दे । बापू के सामने मुंह खोलने की हिम्मत है तेरी?"
"देख त्रिवेणी अब तू मुझे छेड़ने लगा है।" लाडो ने शिकायती लहजे में कहा ।
"मैं तो छेडूंगा । तेरे को जो करना है, कर ले ।" रूस्तम राव ने चिढ़ाया ॥
"ठीक है। ब्याह के बाद तो मैं इन बातों का बदला लिया करूंगी।" कह कर लाडो ने अंगूठा दिखाया।
"कैसे लेगी बदला ?"
"सब्जी में नमक तेज कर दूंगी ।" लाडो मुंह बना कर बोली ।
"कोई बात नहीं।" रुस्तम राव पुनः चिढ़ाने वाले स्वर में बोला--- "मैं खा लूंगा।"
"मिर्ची भी तेज कर दूंगी ।"
"वो भी खा लूंगा ।"
"रोटियां जला-जला कर तेरे सामने खाने को रखूंगी।" लाडो ने जीभ निकाली।
"मैं वो भी खा लूंगा।"
"देख । अगर तू ऐसे ही बोलता रहा तो मैं खाना बनाऊंगी ही नहीं ।" लाडो ने उंगली उठाकर कहा ।
"तो क्या हो गया। मैं देवा के घर से खा भी आया करूंगा और तेरे लिए भी ले आया करूंगा लेकिन याद रख लाडो, मैं तेरे से हारने वाला नहीं। हां।" रुस्तम राव ने अंगूठा दिखाया ।
"मैं बापू से तेरी झूठी शिकायत कर दूंगी कि तू मुझे मारता है।"
"कर देना। मुझे क्या । तब वापस अपने घर आकर बैठ जाना । लोग भी बातें कहेंगे कि त्रिवेणी को छोड़कर लाडो घर आ बैठी है। सब ताने मारेंगे। तेरा घर से निकलना बंद हो जाएगा। अब बोल । करेगी अपने बापू से झूठी शिकायत ।" रूस्तम राव चिढ़ाने वाले स्वर में कह रहा था ।
"ठीक है। मैं भइया को बोल कर, तेरे को एक-आध हाथ ठुकवा दूंगी।"रुस्तम
राव के माथे पर क्रोध के बल उभरे ।
"देख लाडो । अपनी बात में कालूराम को मत ला । ये ठीक है कि मैं, तेरे को पसंद करता हूं और तेरे बापू के कहने पर, तेरे से ब्याह को भी राजी हो गया। लेकिन तेरे भाई को मैं पसंद नहीं करता । दोबारा तूने कालूराम का नाम लिया तो तेरे बापू का लिहाज छोड़कर, ब्याह तोड़ दूंगा।"
"मैं तो मजाक कर रही थी त्रिवेणी । तू तो बुरा मान गया ।" कहते हुए लाडो ने उसका हाथ पकड़ लिया--- "कालूराम तो हमारे ब्याह को मना कर रहा था लेकिन बापू ने उसे डांट दिया। बोला कि...।"
तभी रुस्तम राव के मस्तिष्क में आंधी-सी चली जो पल भर में ही शांत हो गई। अगले पल ही वो चौंका ।
लाडो उसके पास खड़ी थी और उसका हाथ थाम रखा था । गर्दन घुमा कर देखा तो कुछ ही कदमों की दूरी पर खड़ा फकीर बाबा गम्भीर निगाहों से उसे देख रहा था ।
रुस्तम राव ने जल्दी से लाडो के हाथ से अपना हाथ छुड़ा लिया। उसके और लाडो के बीच जो बातें हुई थी, वो सब याद थी उसे। वह समझ नहीं पाया कि उसने जो कहा, वो कैसे कह दिया । लाडो के चेहरे को देखा तो लगा । जैसे वो चेहरा उसका बरसों पुराना देखा-भाला हो। C
एकाएक लाडो की आंखों में आंसू बह निकले ।
"क्यों रे । तू तो बहुत डरपोक निकला । ब्याहू के फेरे भी पूरे नहीं लिए और भाग गया । एक घंटा और रुक गया होता। फेरे पूरे होते ही मैं तेरी सुहागन तो बन जाती । फिर चला जाता ।" लाडो के होठों से थरथराता स्वर निकला ।
"लाडो ।" रुस्तम राव के होठों से निकला--- "उस वक्त मेरा जाना बहुत जरूरी था।"
"मुझसे भी ज्यादा जरूरी था ।" लाडो की आंखों में बराबर आंसू बह रहे थे ।
"हां लाडो । नहीं तो कालूराम देवा की जान ले लेता। वो...।"
"मुझे फेरों पर छोड़कर, मेरे ही भाई की जान लेने चला गया तू । मैं...।"
"मैं कालूराम की जान लेने नहीं गया था ।" रुस्तम राव के होठों से खुद-ब-खुद ही ये शब्द निकल गए रहे थे--- "मैं तो उसे समझाने गया था कि वो गलत काम कर रहा है । लेकिन मुझे देखते ही वो भड़क उठा। मेरी भी जान लेने लगा था, लेकिन मेरे हाथों मारा गया ।"
"उसके बाद---फिर वापस क्यों नहीं लौटा तू मेरे से ब्याह के लिए ?"
"आ नहीं सका । देवा का साथ, मैं छोड़ नहीं सका । तब हालात ही ऐसे हो गए थे तुम्हें सब मालूम हो गया होगा। बरसों बाद तो लौटा हूं मैं।" । अब तो
"हां । पूरे डेढ़ सौ बरस हो गए तेरे इंतजार को । बापू कभी-कभी तेरा हाल बता देते हैं कि तू पृथ्वी पर मजे से है। क्या तेरे को अपनी लाडो की याद भी नहीं आई ?"
"नहीं । शायद दोबारा जन्म लेने पर मैं सब कुछ भूल गया था ।" रुस्तम राव के होठों से निकला।
"अब तो याद आ गई ना, तुझे अपनी लाडो ।"
"हां । नहीं ।" रूस्तम राव के चेहरे पर परेशानी नजर आने लगी--- "मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा ।"
तभी फकीर बाबा करीब आए और रुस्तम राव के कंधे पर हाथ रखा ।
रुस्तम राव के शरीर को करंट के सामान तीव्र झटका लगा फिर सब कुछ सामान्य नजर आने लगा । बातें सब उसके मस्तिष्क में थी, परंतु आंखों में पहले वाले भाव नजर आने लगे थे ।
रूस्तम राव ने फकीर बाबा के चेहरे पर निगाह मारी ॥
"ये सब क्या हो रहा है बाबा । आपुन... | "
"जो बातें हुई वो तेरे को याद है ?" फकीर बाबा ने गंभीर स्वर में पूछा ।
"हां । पूरा याद होएला बाबा ।"
"ये तेरे पहले जन्म की बातें थी | मेरी बेटी लाडो से तेरा ब्याह हो रहा था । तब तूने ब्याह के मंडप में आधे फेरे ही लिए थे कि फेरों को छोड़कर तू देवा को कालूराम से बचाने भाग खड़ा हुआ और ऐसा गया कि समय के चक्र ने तुझे वापस न आने दिया। अब आया है तू।"
रुस्तम राव ने लाडो को देखा फिर, फकीर बाबा को ।
"लेकिन आपुन को कुछ याद क्यों नेई आएला बाबा ।"
"उसके बाद तुम दो बार जन्म ले चुके हो त्रिवेणी । तुम्हारे मस्तिक पर जो दो जन्मों की छाया मौजूद है। धीरे-धीरे ही तुम उसके पास देख सकोगे ।" फकीर बाबा ने गंभीर स्वर में कहा--- "अभी जलपान कर लो । उसके बाद तुम्हें, पहले जन्म की कुछ और बातें याद दिलाऊंगा।"
रूस्तम राव कुछ कह न सका ।
"लाडो । जा त्रिवेदी के लिए खाने-पीने का इंतजाम कर ।"
लाडो ने आंसू भरी आंखों से त्रिवेणी को देखा ।
"त्रिवेणी ।" लाडो का स्वर कांप सा रहा था--- "अब तो तू मुझे छोड़कर नहीं जाएगा। उन फेरों को पूरा करेगा ना, जो तू बीच में ही छोड़कर चला गया था। वायदा कर नहीं जाएगा ।"
रुस्तम राव ने व्याकुल और उलझन भरी निगाहों से फकीर बाबा को देखा।
फकीर बाबा ने गंभीर स्वर में लाडो से कहा ।
"जा बेटी, जलपान की तैयारी कर । त्रिवेणी से कोई वायदा मत ले । जाने भविष्य के गर्भ में क्या है। तेरी किस्मत में होगा तो अधूरे फेरे अवश्य पूरे होंगे। नहीं किस्मत में होगा तो कोई भी शक्ति उन अधूरे फेरों को पूरा नहीं करा सकती । ये बातें समय चक्र पर छोड़ दें।" अपने आंसुओं को रोकती लाडो पलटी और भागती हुई बाहर निकलती चली गई ।
रुस्तम राव ने फकीर बाबा को देखा ।
"बाबा आप एक ही बार में क्यों नहीं बताएला कि पहले जन्म में क्या होएला...।"
"इससे कोई फायदा नहीं होगा।" फकीर बाबा ने गंभीर स्वर में कहा --- - "धीरे-धीरे बातें सामने आने पर ही, बीता वक्त याद आएगा और जब याद आने लगेगा, तो तब मेरा बताना फायदेमंद रहेगा कि मेरा कहा समझते जाओगे। मत करो त्रिवेणी ।"
रुस्तम राव की आंखों में परेशानी के निशान स्पष्ट नजर आ रहे थे।
******
0 Comments