देवराज चौहान उस व्यक्ति के साथ रहा। उनमें कोई बात नहीं हुई थी। देवराज चौहान के मस्तिष्क में फकीर बाबा के शब्द और इस व्यक्ति के पास मोना चौधरी की रिवाल्वर । ये व्यक्ति उससे जुबान ले चुका था कि वो उसका कोई काम करेगा और देवराज चौहान को नहीं मालूम था कि वो क्या काम लेना चाहता है। अगर इसका काम मोना चौधरी से वास्ता रखता हुआ तो फकीर बाबा के शब्द सच हो जायेंगे।


दोनों पैदल चलते हुए काफी आगे आ गये थे। उनके कानों में पुलिस सायरन की आवाजें पड़ने लगी थीं।


उसने कहा-“वहां बात करेंगे?" देवराज चौहान ने हौले से सिर हिला दिया।


"किसी होटल में चलते हैं।"


सड़क से जाती टैक्सी को उन्होंने रुकवाया और कुछ ही देर बाद वो दोनों मध्यम वर्गीय होटल के कमरे में मौजूद थे। उस व्यक्ति के ऑर्डर पर वेटर दो चाय दे गया था। रात का एक बजने जा रहा था ।


“तुम्हारा नाम क्या है ?"


“राकेश नाथ- ।” उसने चाय का प्याला उठाकर घूंट भरा-वो गम्भीर था- “एक बात बताओ। मैं तुम्हें तो जानता नहीं कि तुम क्या हो । हिम्मत वाले हो या खतरा देखकर भागने वालों में से हो ।” 


“मैं भागता नहीं हूं।” देवराज चौहान ने उसे देखते सिगरेट सुलगा ली।


“चाय लो- ।”


“मैंने जो काम करवाना है, उसमें खतरा है। तुम्हारी जान भी जा सकती है।" राकेश नाथ ने उसे देखा ।


“तुम अपनी बात कहो।” देवराज चौहान की निगाह उस पर थी। “मैं ख़तरों से नहीं डरता - ।” 


“जान जाने की भी परवाह नहीं - ?"


“काम पूरा करते हुए मैं सिर्फ काम पूरा करने की परवाह करता हूं।" देवराज चौहान ने सपाट स्वर में कहा। राकेश नाथ ने पुनः चाय का घूंट भरा ।


कश लेते देवराज चौहान की निगाह उस पर ही थी । “मोना चौधरी को जानते हो?” राकेश नाथ ने उसकी आंखों में झांका ।


"हां - " कहते हुए देवराज चौहान ने मन ही मन गहरी सांस ली।


“कौन-सी मोना चौधरी ? कहीं तुम्हारे मोहल्ले- गली में तो कोई मोना चौधरी नहीं रहती, जिसे तुम- ।" 


“ मैं उस मोना चौधरी को जानता हूं, जिस मोना चौधरी की वात तुमने कही थी कि वो दिल्ली रहती है और वहां के अण्डरवर्ल्ड की खतरनाक शह है।" देवराज चौहान ने उसी लहजे में कहा। 


"कभी देखा है उसे ?"


"हां" देवराज चौहान की नजरें बराबर उसके चेहरे पर थीं। 


"भोना चौधरी को आनते हो तो फिर उसका मुकाबला नहीं करना चाहोगे तुम।" राकेश नाथ ने कहा।


"तुमने जो भी कहना है, सीधे-सीधे कहो।"


"मोना चौधरी को खत्म करना है।" कहते हुए राकेश नाथ के दांत भिच गये।


देवराज चौहान उसे देखता रहा।


"काम कर सकते हो तो 'हाँ' कह दो। तुम काम करने का वायदा कर चुके हो।" राकेश नाथ कहे जा रहा था- "अगर उस वक्त मैं तुम्हें रिवाल्वर न देता तो वो बदमाश तुम्हें अवश्य मार देता। तुम्हें मेरा अहसान भूलना नहीं चाहिये।"


देवराज चौहान ने कश लेकर ठहरे-सपाट लहजे में कहा ।


"ये ठीक है कि शायद तुम्हारे रिवाल्वर देने से ही मैं उस बदमाश को मारकर खुद को बचा पाया। इस बात से भी मैं इन्कार नहीं करता कि मैंने तुम्हारा काम करने का वायदा किया है। लेकिन मैं नहीं जानता था कि तुम्हारा काम मोना चौधरी जैसी शह से वास्ता रखता है। अगर मालूम होता तो कह नहीं सकता कि तब मेरा फैसला क्या होता।"


"मतलब कि तुम मेरा काम करने से मना कर रहे हो।" राकेश नाथ की आंखें सिकुड़ीं।


"मैंने ऐसी कोई बात नहीं कही कि तुम्हें इन शब्दों का इस्तेमाल करना पड़े।"


“तो फिर क्या कहना चाहते हो ?”


“तुम्हारा काम करने में मुझे कोई एतराज नहीं। लेकिन इस बात की तसल्ली दिलानी होगी कि जो काम मुझसे करा रहे हो, उसमें तुम सही हो और मोना चौधरी गलत है। मैं किसी गलत आदमी का काम नहीं करता।” 


“मैं सही हूं। किसी की जान की कीमत समझता हूं।" सकेश नाथ दांत भींचकर गुर्रा उठा।


“मोना चौधरी से क्या बात हो गई थी तुम्हारी ?” देवराज चौहान गम्भीर था।


“मेरे बेटे ने कुछ भी नहीं कहा मोना चौधरी को वो तो कॉलेज के बाद दोस्तों के साथ फुटपाथ पर सैर कर रहा था ।” भरा पड़ा था जैसे राकेश नाथ - "इस दुनियां में मेरे बेटे के अलावा मेरा और कोई नहीं था। उसकी मां तो उसे जन्म देने के दस साल बाद ही चल बसी थी। मैंने ही दुनियां भर की तकलीफें उठाकर उसे पाला । बहुत प्यार करता था मैं उससे कभी बीमार हो जाता तो रात-रात भर जागकर उसकी देखभाल करता था। तब सोचता था कि अगर मेरा बेटा न होता तो कैसे जिन्दगी बिताता मैं। लेकिन अब देखो, बिता रहा हूं जिन्दगी, परन्तु हर वक्त मुझे लगता है, जैसे उसकी लाश का बोझ सीने पर उठा रखा हो।" उसकी आवाज में गुस्सा भी था। तड़प भी- "जब वो दोस्तों के साथ फुटपाथ पर जा रहा था तो अधानक ही गोलियां चलने लगीं। सब लोग भागने लगे। मेरे बेटे के दोस्त भी भागे, परन्तु मेरा बेवकूफ बेटा नहीं भागा। वो देखने में लग गया कि क्या हो रहा है।"


देवराज चौहान का पूरा ध्यान उस पर था ।


"तभी उसके पास ही एक कार रुकी। उस कार का टायर गोली लगने से फट चुका था। उसमें से रिवाल्वर पकड़े एक आदमी निकला कि तभी पास ही में एक और कार रुकी। उसमें से मोना चौधरी और उसका एक साथी बाहर निकला। दोनों ने रिवाल्वरें थाम रखी धीं। वो पागल हो रहे थे। उसका साथी कपड़ों में फंसा रखी बोतल निकालकर व्हिस्की के घूंट भर रहा था।"


देवराज चौहान समझ गया कि नीलू महाजन का जिक्र कर रहा है।


“पहले जो आदमी कार से बाहर निकला था। वो घबराया हुआ था। शायद वो जानता था कि मोना चौधरी उसे मार देगी। मेरा बेटा पास ही हक्का-बक्का खड़ा था। उस आदमी ने मेरे बेटे को पकड़ लिया। उसकी आड़ ले ली । मेरे बेटे ने उसकी पकड़ से निकलना चाहा। लेकिन उसकी पकड़ मजबूत थी। नहीं निकल सका। ये सब बातें मैंने बाद में वहां के लोगों-दुकानदारों से मालूम की, जो सब कुछ देख रहे थे। पुलिस से मालूम किया। जिन्होंने इस मामले की तफ्तीश की थी।" कहते हुए वो लम्बी-लम्बी सांसें लेने लगा- “मोना चौधरी ने चिल्लाकर मेरे बेटे को उसके सामने से हटने को कहा तो मेरे बेटे ने कहा कि उसे पकड़ रखा है। तभी उस पकड़ने वाले ने मोना चौधरों पर गोली चलाई। मोना चौधरी बच गई। इसी के साथ ही मोना चौधरी और उसके साथी ने अपने रिवाल्वर से गोलियां चलानी शुरू कर दीं। पहले मेरे बेटे को गोलियां लगीं फिर उस आदमी को । देखते ही देखते मिनटों में दोनों नीचे गिर गये तो मोना चौधरी पास आकर अपने दुश्मन के सिर में गोलियां मारीं । रिवाल्वर खाली हो गई तो उसे पुनः भरा। तभी नीचे पड़े मेरे बेटे के शरीर में हरकत हुई। उसने हाथ बढ़ाकर मोना चौधरी की बांह पकड़ ली ओर कहा कि उसे हस्पताल ले जाये। लेकिन वो मेरे बेटे को हस्पताल क्यों ले जाती। उसे क्या परवाह थी मेरे बेटे की जिन्दगी-मौत से। वो जाने लगी तो उसके हाथ में दबी रिवाल्वर मेरे बेटे के हाथ में आ गई।


उसने रिवाल्वर भी वापस लेने की कोशिश नहीं की और अपने साथी के साथ कार में बैठकर चली गई। मेरे बेटे को दो गोलियां लगी थीं। एक पेट में, एक कंधे पर उसने हिम्मत नहीं हारी। जैसे-तैसे वो खड़ा हुआ। मोना चौधरी वाली रिवाल्वर जेब में डाल ली। जाने कितने लोग ये सब देख रहे थे। उसने बहुतों से कहा कि उसे डॉक्टर के पास ले जाये। लेकिन किसी ने उसकी सहायता नहीं की। फिर वो कुछ दूर खड़ी अपनी मोटरसाइकिल पर सवार हुआ। और घर आ गया। उसकी हिम्मत थी कि इतना घायल होने पर भी उसने मोटरसाइकिल चला ली। मेरे को सारी बात बताई। जेब में रखी मोना चौधरी की रिवाल्वर भी मुझे दी। मैं जल्दी से उसे हस्पताल ले गया। लेकिन वो नहीं बच सका। बहुत कोशिश की मैंने कि वो पौधा, जिसे मैंने कठिनता से पेड़ बनाया है बच जाये। लेकिन मोना चौधरी की क्रूरता की भेंट चढ़ गया।" देवराज चौहान उसे देख रहा था । उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे। चेहरे पर गुस्सा था। बदन रह रहकर गुस्से से कांप-सा रहा था। कुछ अजीब स्थिति में वो खुद को महसूस कर रहा था।


“पुलिस आई। अपनी कार्यवाही पूरी की। पोस्टमार्टम करके, मेरे बेटे का चीरा-फाड़ा शरीर मेरे हवाले करके जैसे अपने फर्ज से मुक्ति पा ली। मैं ही थानों के चक्कर लगाता रहा। अपने बेटे के हत्यारे के बारे में पूछता रहा। पुलिस से इतना ही पता चला कि मोना चौधरी जैसी खतरनाक शह ने मेरे बेटे की हत्या की है। जब वो पकड़ी जायेगी तो मुझे खबर कर दी जायेगी। होते-होते एक बरस बीत गया। मेरे मन में लगी आग बुझने की अपेक्षा भड़कती चली गई। मैं अपने बेटे की मौत नहीं भूल सकता था। उसके बिना मेरी जिन्दगी बेमानी सी हो गई थी। वही तो सहारा था, मेरी सांसों का। मोना चौधरी वाली रिवाल्वर जेब में रखकर अक्सर मोना चौधरी की तलाश में निकल जाता। लेकिन उसने कहां मिलना था मुझे। इस बीच मैंने कई बदमाशों से बात की कि वो मोना चौधरी को खत्म कर दें तो मैं अपनी सारी दौलत उन्हें दे दूंगा। लेकिन मोना चौधरी का नाम सुनते ही वो पीछे हट जाते। मैं समझ गया कि मोना चौधरी को खत्म करवाने के लिए दिल्ली के बाहर से मुझे किसी को लाना होगा। ये सोचकर मैं मुम्बई आ गया और किसी ऐसे इन्सान को ढूंढने लगा जो मोना चौधरी से डरे नहीं। ऐसे में तुमसे मुलाकात हो गई।"


राकेश नाथ रुका और लम्बी सांस ली। देवराज चौहान गम्भीर था आंखों में सोच के भाव नज़र आ रहे थे।


"अब तुम ही फैसला कर लो कि मोना चौधरी ठीक है या मैं।" राकेश नाथ ने देवराज चौहान को देखा।


देवराज चौहान ने सिग्रेट ऐशट्रे में डाली।


“तो अपने बेटे का हत्यारा तुम मोना चौधरी को मानते हो।" स्वर शांत था देवराज चौहान का ।


"मतलब कि तुम नहीं समझते ?” राकेश नाथ ने एकाएक तीखे स्वर में कहा ।


देवराज चौहान ने उसे देखा।


“मोना चौधरी उस वक्त अपने किसी दुश्मन को मारने जा रही थी।"


“तब मेरा बेटा सामने था। पहले गोली मेरे बेटे को लगी। मोना चौधरी भी तब जानती थी कि ऐसा ही होगा।” राकेश नाथ कड़वे स्वर में कह उठा- "मेरा बेटा भीड़ में खड़ा होता और उसे गोली लग जाती तो तब सोचा जा सकता था कि गलती से उसे गोली लगी। लेकिन तब तो मेरा बेटा सामने था। मोना चौधरी जानती थी कि वो गोली चलायेगी तो पहले मेरे बेटे को लगेगी, फिर भी उसने गोली चलाई।"


"तब गोली चलाना मोना चौधरी की मजबूरी रही होगी।” “मजबूरी ?"


“हां।” देवराज चौहान शांत स्वर में कह रहा था- “तुमने अभी बताया कि उस व्यक्ति ने तुम्हारे बेटे की आड़ ले ली और मोना चौधरी पर गोली चलाई। वो तुम्हारे बेटे की आड़ लेकर मोना चौधरी को खत्म भी कर सकता था। अपनी जान बचाने की खातिर ही मोना चौधरी को गोलियां चलानी- ।” -


“मैं इस बात को नहीं मानता।” वो दांत भींचकर कह उठा - "मोना चौधरी को ऊगर जान का खतरा था तो पास में कारें थीं, वो कारों की ओट में लिप सकती थी। मेरे बेटे की आड़ लेकर वो व्यक्ति आखिर कब तक बचता। कुछ इन्तजार के बाद वो निशाने पर आ ही जाता। मोना चौधरी को कुछ देर रुक जाना चाहिये था | लेकिन उसने तो एक पल भी गंवाना ठीक नहीं समझा और गोलियां चलानी शुरू कर दीं।"


देवराज चौहान की निगाह उस पर रही।


“आपसी लड़ाई में मेरे बेटे की जान क्यों ली गई।" राकेश नाथ जैसे देवराज चौहान पर गुस्सा उतार रहा था - "अगर उसे गोलियां चलानी ही थीं तो टांगों पर चलाती पहले। कम से कम मेरा वेटा जान से तो ना जाता। अगर उसे लगा होता कि उससे गलती हो गई है तो मेरे बेटे के कहने पर उसे किसी डॉक्टर तक पहुंचा सकती थी। परन्तु उसने तो कीड़ा समझा मेरे बेटे को तड़पता छोड़कर चली गई। अगर मोना चौधरी मेरे बेटे को डॉक्टर के पास ले गई होती। उसके बाद भी वो न बचता तो मेरे मन में मोना चौधरी के लिए आग न लगती। यही सोचता मैं कि मोना चौधरी ने गोली अवश्य मारी और अपनी गलती सुधारने के लिए मेरे बेटे को डॉक्टर के पास ले गई थी। परन्तु वो ही न बच सका। ये सब तो सिरे से ही नहीं हुआ ।” देवराज चौहान की निगाह राकेश नाथ पर थी !


“सुनो।” एकाएक राकेश नाथ सिर आगे करके बेहद सामान्य स्वर में कह उठा - " ये ठीक है कि तुमने मेरा काम करने का वायदा किया था। वैसे तो आजकल लोगों में बारदों की जरा भी अहमियत नहीं होती। हो सकता है कि वायदा करके, वावदा निभाने की आदत हो तुममें, परन्तु मोना चौधरी को खत्म करने का हौसला न कर पा रहे हो तो मुझसे साफ-साफ कह दो। मैं तुम्हें वायदे से मुक्त कर दूंगा। तुम्हें एक शब्द भी नहीं कहूंगा। खुशी-खुशी चले जाओ तुम। तब मैं किसी और को ढूंढने की कोशिश करूंगा जो मोना चौधरी को खत्म कर सके ।"


देवराज चौहान ने गहरी सांस ली और चेहरे पर अजीब मुस्कान बिखर गई। ऐसी मुस्कान जिसका अर्थ समझ पाना कम से कम राकेश नाथ के बस का नहीं था।


"मैंने ऐसी कोई बात नहीं कही कि तुम मुस्कराने लगो ।” “तुम्हारे इस तर्क को मैं मानता हूं कि वो टांगों पर गोलियां

चला सकती थी या बाद में उसे डॉक्टर के पास ले जा सकती थी।” 


“इसका मतलब तुम मानते हो कि मैं ठीक हूं। मोना चौधरी गलत है।”


“हां ।”


"तुम मोना चौधरी को खत्म करोगे ?” राकेश नाथ की आंखों में आवेश और खुशी की चमक भर आई।


“ये बात तुम भी जानते हो कि मोना चौधरी का खत्म करना आसान नहीं।" देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा- "इस बारे में मैं इतना ही कह सकता हूं कि मोना चौधरी को खत्म करने की पूरी कोशिश करूंगा।”


“दिल से कोशिश करोगे ना ?" उसकी आंखों में पानी चमक उठा।


“हां। दिल से।”


"इस काम के लिए तुम्हें दिल्ली जाना होगा। मैं तुम्हारे साथ दिल्ली- ।"


"तुम्हारी कोई जरूरत नहीं तुम्हें मेरे साथ रहने की जरूरत नहीं। मैं खुद कर लूंगा, जो करना होगा।"


"मुझे कैसे पता चलेगा कि मोना चौधरी खत्म हो गई।" “अखबारों में ये खबर छपेगी। मालूम हो जायेगा।" “कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम मुझे बेवकूफ बना रहे हो। यहां से जाते ही मुझे भूल जाओगे। और-।"


“ऐसी कोई बात नहीं।" देवराज चौहान ने कहा- 'मोना चौधरी जिसे मारना चाहती थी, वो कौन था ?”


“वो - उसका नाम जवाहर चावला था। वो दिल्ली का बहुत बड़ा दादा था।” राकेश नाथ ने फौरन कहा।


देवराज चौहान ने चेहरे पर कर रखा मेकअप उतारना शुरू कर दिया। उसका ये मेकअप पहचाना हुआ था। हो सकता है बंसीलाल के अन्य आदमी या पुलिस ही उसे ढूंढ रही हो। किसी की निगाहों में इत्तफाक से वो आ सकता था। यहां से बाहर निकलने से पहले मेकअप उतार लेना जरूरी था।


राकेश नाथ अजीब-सी निगाहों से उसे देखने लगा।


"तुमने तो नकली दाढ़ी लगा रखी है।" वो कह उठा । देवराज चौहान कुछ नहीं बोला। मेकअप उतारने के बाद बाथरूम में गया और चेहरा धोकर वापस आया। काली- सफेद दाढ़ी में वो पचास बरस का लग रहा था। अब वापस अपनी उम्र में आ गया था।


“तुम - तुम तो जवान हो।" राकेश नाथ के होंठों से निकला। “कुछ लोगों से बचने के लिए चेहरा बदल रखा था।" देवराज चौहान ने कहा। -


"तुम-तुम कौन हो? मैं-मैं तो तुम्हें पहचानता ही नहीं। तुम्हारा नाम भी नहीं जानता।" वो कह उठा । "तुम्हें अपने काम से मतलब होना चाहिये। मेरा नाम जानने की तुम्हें क्या.... ।”


“अगर बताने में कोई हर्ज न हो तो बता दो।" देवराज चौहान ने उसे देखा। वो आशा भरी निगाहों से उसे "देख रहा था ।


"मैं तुम्हें अपनो नाम इसलिए बता रहा हूं कि तुम्हारे रिवाल्वर देने की वजह से मैं खुद को बचा पाया हूं।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा - "ये तुम्हारा एहसान है मुझ पर। देवराज चौहान नाम है मेरा।"


"देवराज चौहान ?" उसके होठों से निकला- "हां, यही नाम तुमने पहले बताया था: देवराज चौहान | जानते हो दिल्ली में मैंने जब मोना चौधरी को खत्म करने की बात कही तो एक ने मुझसे कहा कि देवराज चौहान से मिलो। देवराज चौहान ही मोना चौधरी को खत्म कर सकता है। अब अब मुझे पूरा यकीन हो गया है कि तुम मोना चौधरी को खत्म कर दोगे ।”


“वहम में मत रहना।”


"क्या मतलब ?”


“मोना चौधरी कोई खिलौना नहीं है कि उसकी गर्दन पकडूं और तोड़ दूं। वो किसी भी तरफ से मुझसे कम नहीं है। फिर भी मैं कोशिश करूंगा कि उसे खत्म कर सकूं।" देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा ।


“तुम तुम डकैती मास्टर देवराज चौहान हो ना ?”


देवराज चौहान ने उसे देखते हुए हौले से सिर हिला दिया। 


“भगवान भी जरूरत पड़ने पर कैसी-कैसी मुलाकातें करा देता है।” राकेश नाथ कह उठा ।


देवराज चौहान की आंखों के सामने मोना चौधरी का चेहरा नाच उठा ।


“अपना पता- फोन नम्बर दे दो। ताकि तुमसे बात कर सकूं।" राकेश नाथ ने जल्दी से बोला ।


“मैं जा रहा हूं।”


“मेरे नाम-पते की जरूरत नहीं। दोबारा हम कभी मिलें, ये भी जरूरी नहीं।"


राकेश नाथ ने गम्भीरता से सिर हिलाया। “अच्छी बात है। मैं यहीं इसी होटल में रहूंगा। जाने कब तक यहां रहता हूं। शायद कभी मेरी जरूरत पड़ जाये तुम्हें तो यहां आकर देख लेना।” राकेश नाथ गम्भीर स्वर में कह उठा।


देवराज चौहान दरवाजे की तरफ बढ़ा। 


“ये भी ले लो।”


देवराज चौहान ने पलटकर पीछे देखा।


राकेश नाथ के हाथ में रिवाल्वर थी।


“मोना चौधरी की ही रिवाल्वर है ये।” आगे बढ़कर राकेश नाथ ने रिवाल्वर देवराज चौहान के हाथ में थमा दी - “अगर इस रिवाल्चर से, मोना चौधरी को गोली मारोगे तो मेरे बेटे की आत्मा को और भी ज्यादा अवश्य शान्ती मिलेगी।"


देवराज चौहान ने उसे देखा। रिवाल्वर जेब में डाली और दरवाजा खोलते हुए बाहर निकल गया।


देवराज चौहान बंगले पर पहुंचा तो सुबह के चार बजने जा रहे थे। जगमोहन, सोहनलाल और नगीना बंगले पर मौजूद थे और उसके इन्तजार में जाग रहे थे।


“आ गये आप ?” नगीना का चेहरा खुशी से चमक उठा। देवराज चौहान ने हौले से सिर हिलाया।


“इतनी देर कहां लगा दी ?" जगमोहन ने पूछा। 


"सुबह, नींद से उठने पर बताऊंगा।” चौबीस घंटे से भागदौड़ कर रहे, देवराज चौहान ने कहा- “मैं सोने जा रहा हूं।” 


"चाय बना दूं ?" नगीना ने पूछा- “खाना भी तैयार रखा है।” 


“नहीं।” कहने के साथ ही देवराज चौहान बंगले के भीतरी हिस्से की तरफ बढ़ता चला गया।


"बंसीलाल बच गया था ?" पीछे से जगमोहन ने कहना चाहा। 


“नहीं बचा वो ।” देवराज चौहान चलते-चलते बोला। नगीना, देवराज चौहान के पीछे-पीछे चली गई।


“मैं यहीं नींद ले लेता हूं सुबह जाऊँगा।" सोहनलाल बोला। जगमोहन ने सोहनलाल को घूरा ।


“ और सुबह क्या होती है। हो तो गई सुबह ।" 


“अभी नहीं हुई।” सोहनलाल ने मुस्कराकर गोली वाली सिग्रेट सुलगा ली।


“तो कब होगी ? " जगमोहन का स्वर व्यंग्य से भर गया। 


“तगड़ी नींद लूंगा। सोया उठूगा । भाभी के हाथ का नाश्ता करूंगा। तब पता चलेगा कि सुबह हो गई।"


“बहुत कमीना है तू। नाश्ता भी करेगा।”


“खाली पेट यहां से जाऊंगा तो क्या तेरे को अच्छा लगेगा ? मेहमान को खिला-पिलाकर भेजना।"


“मेहमान ।” जगमोहन भड़क उठा- “तेरे को बुलाया किसने है जो मेहमान बन बैठा है। तेरी जान बचा दी, ये क्या कम है। बंसीलाल ने तो तेरे को साफ करा देना था ।”


“तो क्या हो गया। मैंने कई बार तेरी जान बचाई है।” “मेरी जान - तूने बचाई है कब-कहाँ ?"


“नींद लेने के बाद बता दूंगा।” सोहनलाल ने गहरी सांस ली - “मेरा तो मूड ही खराब हुआ पड़ा है। बंसीलाल के यहां तिजोरी में बहुत तगड़ा माल था । कीमती हीरे थे। वापसी में ध्यान ही नहीं रहा कि वो लेता चलूं । खरा नुकसान हो गया ।” 


“पहले बताता।" जगमोहन के होंठों से निकला- “कम से कम हीरे तो ले ही आते ।”


"तूने पूछा ही कहां जो मैं बताता तगड़ा खतरा लेकर वहां गया था। कुछ भी हाथ नहीं लगा।" 


जगमोहन के चेहरे पर सोच के भाव नजर आने लगे। 


"सोहनलाल !"


"हाँ।"


"देवराज चौहान जब आया तो वो कुछ उलझन में लग रहा था।" जगमोहन कह उठा। 


"मुझे तो ऐसा कुछ नहीं लगा।" सोहनलाल ने कश लिया। 


"जाने क्यों मुझे ऐसा महसूस हुआ।" 


“सो जा। अभी तक जगा पड़ा है। तभी ऐसी बात कर रहा है। देवराज चौहान भागदौड़ से थका हुआ है।”सोहनलाल ने लापरवाही से कहा- “यूं ही तेरे को ऐसा लगा ।” जगमोहन गहरी सांस लेकर रह गया।


***