एक-दूसरे की तरफ यह पुष्टि करने के लिए देखा कि तूने भी वही सुना है न जो मैंने सुना क्योंकि इतनी मोटी रकम कमाने का तो हमने कभी ख्वाब तक नहीं देखा था ।
जब पुष्टि हो गई तो खाट पर सिकुड़ी पड़ी दरी दुरुस्त की ।
मोहतरमा से उस पर बैठने के लिए कहा मगर वह बैठी नहीं ।
हमने पूछा----‘करना क्या होगा मोहतरमा, किसी का कत्ल - वत्ल करना तो हमारे बूते से बाहर की बात है ।'
तब उसने कहा----'कत्ल करना नहीं है, वह हुआ हुआया है।'
हम दंग। बोले- 'कत्ल आलरेडी हुआ पड़ा है।'
उसने 'हां' कहा तो हमने पूछा---- 'फिर हमें क्या करना है ?”
उसने कहा ---- 'उस लाश के साथ खुद को पुलिस के चंगुल में फंसाना है और यह कहना है कि कत्ल तुम्हीं ने किया है।'
हमारी हवा शंट |
बोले---- 'कोई और घर देखो मोहतरमा, दिल्ली में अक्ल के इतने अंधे नहीं रहते कि दो लाख में किसी और के द्वारा किए गए कत्ल के इल्जाम में खुद को फांसी के फंदे पर चढ़ा लें ।'
तब उसने कहा----' इस बात की गारंटी मेरी है कि उस सबके बावजूद तुम्हारा बाल तक बांका नहीं होगा।'
हमने पूछा----‘वो कैसे?”
तब उसने वह सब बताया जो हम पहले ही आप लोगों को बता चुके हैं। जिसे सुनकर हमारे दिमागों के कलपुर्जे हिल गए थे और जिसके बारे में सवाल करने पर उसने हमें डपट दिया था।
कहा था कि कोर्ट में तुम अपने बयान पर डटे रहकर सरकारी गवाह बन जाओगे और जो भी सजा होनी होगी मुझे होगी ।
खोपड़ी तो खैर हमारी नाच रही थी लेकिन उससे दो लाख का लालच भी नहीं निकल पा रहा था ।
आंखों ही आंखों में एक-दूसरे से बातें कीं।
फिर लगा ----कोई रिश्क नहीं है, हत्या के इल्जाम में जेलयात्रा करेंगे तो अपनी बिरादरी में रुतबा भी बढ़ जाएगा ।
छोटे-मोटे गुंडे तो साले इस खौफ से थर्राए, दूर ही से सलाम ठोका करेंगे कि छंगा- भूरा लाश भी बिछा सकते हैं।
अखबार - शखबार में छपेगा, टी. वी. शी. वी. वाले हीरो बना देंगे, जो कि आजकल वे फ्री में करते हैं तो अपना भी नाम 'भाईयों' में शामिल हो जाएगा और उसके बाद तो सेठ लोग फोन पर ही हफ्ता पहुंचा दिया करेंगे । भविष्य में कुछ करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।
हकीकत ये है कि हमें लगा ---- हल्दी लग रही है न फिटकरी और रंग चोखा ही चोखा आने वाला है। सो, तैयार हो गए। तब उसने हमें ढाई लाख दिए । हजार हजार के सुर्ख नोटों की दो गड्डियां और गड्डी रहित पांच सौ के सौ करारे नोट । बोली----‘इन पचास को खोली में रख दो क्योंकि पुलिस को बरामद कराने हैं। दो लाख ऐसी जगह जहां पुलिस कभी न पहुंच सके।' हमें लगा----पुलिस को तो फ्री - फंड का पैसा मिलने वाला है, सो कहा'पुलिस को बरामद कराने के लिए पच्चीस काफी नहीं हैं!' उसने हमें फिर डपट दिया। उसके बाद वह हमें खोली के बाहर खड़ी इनोवा के पास ले गई । उस वक्त सड़क पर कोई नहीं था । डिक्की उठाकर उसमें ठुसी रतन बिड़ला की लाश दिखाई ।
“क्या उस वक्त लाश पर 'क्यों' लिखा था ?”
“हमने ध्यान नहीं दिया साब ।” छंगा बोला । भूरा ने कहा ---- “लिखा ही होगा क्योंकि हमने तो लाश ज्यों की त्यों पुलिस तक पहुंचा दी थी । उसे छेड़ा तक नहीं।”
“ उसके बाद ?” उसने कहा ---- 'तुम्हें इसे यहां से ठीक दो बजे लेकर निकलना है और ऐसे ड्रामें के साथ खुद को पुलिस के चंगुल में फंसा देना है जैसे भागने की कोशिश कर रहे हो ।” “ और उसके बाद तुमने वही किया ?”
“सिर्फ वही ।” भूरा ने तेजी से कहा ---- “एक बार फिर सुन लो, न गाड़ी चुराई। न किडनेप किया। न कत्ल ।” “खोली जलने का क्या चक्कर था?” “वह सब भी उसी मोहतरमा का खेल था । हमें तो बहुत 'घिसी हुई' लगी वह।
पट्ठी की किसी बात का मतलब ही समझ में आकर नहीं दे रहा था । उस रोज सुबह ही सुबह आई ।
बहुत घबराई हुई थी ।
बोली- -'लगता है मैं तुमसे किया गया वादा नहीं निभा सकूंगी।'
हमने पूछा-- -'कौनसा वादा?'
बोली- 'कोर्ट से तुम्हें बचाने का वादा ।'
हमने भी कच्ची गोलियां नहीं खेली थीं, बहुत सोच-समझकर उसका ऑफर कबूल किया था और उसमें यह बात तो सबसे पहले सोची थी कि अगर किसी स्पॉट पर उसने पैंतरा बदलने की कोशिश की तो हमें क्या करना है !
वही करने के लिए कुछ यूं कहा ---- 'अगर नहीं बचा सकोगी मोहतरमा तो हमारा हाजमा भी इतना दुरुस्त नहीं है। हम कोर्ट के सामने सच्चाई उगल देंगे।'
हमारे इतना कहते ही पट्ठी के पित्ते ढीले हो गए ।
लगी हमारे सामने गिड़गिड़ाने ---- 'मुझे गलत मत समझो, मैं तो चाहती हूं कि तुम बचे रहो बल्कि मेरा तो फायदा ही तुम्हारे बचे रहने में है लेकिन मेरे वकील का दावा है कि वह तुम्हें दो-तीन डेटों में ही तोड़ लेगा और साबित कर देगा कि तुम झूठ बोल रहे हो ।'
हमने ठस्के से कहा----‘अजी छोड़ो उसे, हम उसे भुगत लेंगे।'
मगर वह बहुत डरी हुई थी ।
हमारी बात पर यकीन नहीं किया ।
कहने लगी - - - - 'वकील से बचने का केवल एक ही तरीका है। यह कि दुनिया की नजर में तुम मर जाओ ।'
हमने कहा ---- 'ऐसा भला कैसे हो सकता है?'
वह बोली ---- 'अगर तुम्हारी खोली में आग लग जाए और यह उड़ जाए कि तुम उस आग में जलकर मर गए हो तो वकील अदालत में अपने सवालों से किसे तोड़ेगा ?"
मैंने हैरत से उसकी तरफ देखते हुए कहा ---- 'सठिया गई हो क्या मोहतरमा, ऐसा भला कैसे हो सकता है ?"
इस बार उससे पहले ये साला छंगा बोल पड़ा ---- 'हो क्यों नहीं सकता? नोट खर्च किए जाएं तो सबकुछ हो सकता है।'
मैं चौंका, इसकी तरफ देखा ।
इसने मेरी तरफ आंख मारी और मोहतरमा से मुखातिब होकर बोला ---- 'हो तो ठीक वही जाएगा मोहतरमा जो तुम चाहोगी मगर उसके अलग से दो लाख लगेंगे।'
मैंने भन्नाकर कहा- - 'अबे, ये क्या कह रहा है तू? आग तो चल मैंने मान लिया कि खोली में लग जाएगी लेकिन दुनियावाले बड़े सियाने हैं। जब उससे कोई डैड - शैड बॉडी नहीं मिलेगी तो फौरन समझ जाएंगे कि छंगा- भूरा ने कानून से बचने के लिए कोई चाल चली है ।'
छंगा ने कहा ---- 'खोपड़ी लेकर पैदा हुआ था बेटा, तेरी तरह ऊपर वाला माला खाली नहीं है। लोगों को हमारी लाशें भी मिलेंगी।'
मेरे यह पूछने पर कि ऐसा कैसे होगा?
इसने सीधे मोहतरमा से कहा कि दो लाख दो तो यह करिश्मा भी करके दिखाऊं? वह पट्ठी तो फौरन से भी पहले तैयार हो गई । और हमने वैसा ही किया । ”
“कैसा किया ?”
“उसी रात कब्रिस्तान में गए । कब्रें खोदकर दो लाशें निकालीं और झोंपड़ी में ले आए | आग लगी और दो लाशें पाई गईं । ”
“और तुम यहां आ गए ?”
“बता ही चुके हैं, यहां का पता और चाबी भी चांदनी मोहतरमा ने ही दी थी। सख्ती से कहा था कि यहां से बाहर बिल्कुल न निकलें ।”
“लेकिन इस तरह तुम यहां कब तक रह सकते थे ?”
“यही सवाल हमने मोहतरमा से किया था ।
कहने लगी - - - - 'अब तुम्हें फॉरेन में रहना है।'
हमारे तो दिमाग ही अमेरिका जाने वाले हवाई जहाज की तरह उड़ने लगे। सोचने लगे कि यह मोहतरमा हमारी लाइफ में करिश्मे की देवी बनकर आई है ।
अमेरिका तक घुमाने को तैयार है।
हम फौरन तैयार हो गए।
उसने कहा- - 'तुम्हें विदेश भेजने के लिए पासपोर्ट और वीजा आदि की जरूरत पड़ेगी जो कि तुम्हारे नाम से नहीं बन सकते । तुम्हें नकली नाम, फोटो और पासपोर्ट के साथ भेजा जाएगा। उस सबका इंतजाम करने में दस-पंद्रह दिन लग सकते हैं। तब तक यहीं रहोगे।'
हमें भला क्या दिक्कत हो सकती थी !
सो, पड़े थे लेकिन उससे पहले ही आप लोग आ गए ।”
मैंने खामोश बैठी पारो की तरफ देखते हुए पूछ ---- “पारो का इस सारे मामले से क्या संबंध है ? "
“पारो का संबंध इस मामले से नहीं साब, गधे के इस बच्चे से है।" भूरा ने छंगा की तरफ इशारा करके कहा----“मैंने इससे पहले ही कहा था कि बड़े बड़े भाई लोग अगर पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ते तो उसका राज यही है कि वे किसी एक लौंडिया के चक्कर में नहीं पड़ते । पैसा फेंकते हैं और रोज नई लौंडिया को अपने चक्कर में फांसते हैं इसलिए तू भी पारो को भूल जा । अपनी खोपड़ी से उसके इश्क के भूत को उतार फेंक । और वैसे भी अब जब हम अमेरिका जा ही रहे हैं तो उससे मतलब ही क्या रहना है। अब तो टीना- क्रिस्टीना से खेलेंगे।
मगर ये उल्लू का पट्ठा नहीं माना।
कहने लगा----‘पारो के बगैर तो मैं एक सांस तक नहीं ले सकता। मोहतरमा से कहूंगा कि हमारे टिकट के साथ-साथ अमेरिका के लिए उसका टिकट भी कटा दे।'
मैंने समझाया कि मोहतरमा इस बात के लिए राजी नहीं होगी ।
तब बोला ---- 'अच्छा ठीक है, एक बार फोन तो कर लेने दे उसे । बेचारी यह सोच-सोचकर हलकान हो रही होगी कि उसका छंगा परलोक सिधार गया है। कहीं आत्महत्या ही न कर ले वह । एक दिन कह भी रही थी कि अगर तुम न रहे छंगा तो मैं अपनी जान दे दूंगी।'
मैंने बहुत समझाया... बहुत समझाया इसे कि----‘यार ये सब कहने की बातें होतीं हैं, कोई किसी के लिए नहीं मरता ।'
लेकिन यह नहीं माना और किसी भी तरह नहीं माना ।
'मरता क्या न करता' वाली पोजीशन में मैंने इसे परमीशन दे दी।
मुंह पर ढाटा - शाटा लपेटकर पहुंच गया नजदीक के पी सी ओ पर और घुमा दिया उस मोबाइल का नंबर जो इसने पहले ही खरीद कर पारो को दे रखा था ।
पहले तो पारो बेचारी मरे हुए छंगा की आवाज सुनकर इस तरह कांपने लगी जैसे भूत के सामने खड़ा आदमी कांपता है किंतु जब इसने यकीन दिलाया कि मैं जिंदा हूं तो मारे खुशी के बल्लियों कूदने लगी।
मिलने को कहने लगी।
जब इसने कहा मैं मिल नहीं सकता, किसी से कहियो भी मत कि मैं जिंदा हूं तो बोली---- 'मिलने नहीं बुलाएगा तो सबसे कह हूं दूंगी।'
इसकी हवा शंट हो गई ।
या यूं भी कह सकता हूं कि इस साले का मन भी मिलने को कर रहा होगा। सो, उसे यहां का पता बता दिया और कहा कि सावधानी से छुपती - छुपाती आए ताकि किसी को पता न लगे लेकिन ... मुझे पक्का यकीन है कि आप लोग उसी के जरिए वहां पहुंचे होंगे।”
“तुम्हारा यकीन बिल्कुल दुरुस्त है।" मुस्कराती हुई विभा जिंदल ने कहा था ---- “जैसे ही मुझे यह पता लगा कि जब चांदनी और अशोक जली हुई खोली पर पहुंचे थे तो पारो वहां दहाड़े मार-मारकर रो रही थी और दूसरी खोली वालों ने यह बताया था कि वह छंगा से मुहब्बत करती थी, मेरा आदमी तभी से पारो पर नजर रखे हुए था।”
बुरी तरह हैरान और उलझे हुए - से नजर आ रहे गोपाल मराठा -से ने पूछा ---- “आपको यह सब कहां से पता लगा ?”
“मेरे अपने सूत्र होते हैं।" वह बात को घुमा गई ।
“लेकिन विभा।” मैंने कहा- - - - “यह पता लगने पर भी कि पारो छंगा से मुहब्बत करती थी, तुम्हारे दिमाग में यह ख्याल क्यों आया कि उस पर नजर रखी जानी चाहिए, क्या तुम्हें इस बात का शक हो गया था कि छंगा-भूरा जिंदा हो सकते हैं?”
“इनके रतन मर्डर केस में इन्वॉल्व होने के केवल एक हफ्ते बाद खोली में लगी आग संदेह पैदा करती थी । खासतौर पर यह बात कि आग केवल इन्हीं की खोली में लगी । उस वक्त मुझे यह इल्म तो नहीं हुआ था कि ये जिंदा हो सकते हैं लेकिन इतना जरूर लगा था कि उस आग के पीछे कोई भेद जरूर है और उस भेद तक पारो के जरिए पहुंचा जा सकता है। एकमात्र वही थी जो इनके नजदीक थी । इसलिए श्रीकांत को उस पर नजर रखने का काम सौंपा। परिणाम सामने है।”
“लेकिन इन सब बातों का आखिर मतलब क्या हुआ?” मेरी समझ में अब भी ठीक से कुछ नहीं आ रहा था ---- “चांदनी से ठीक ही तो कहा था छंगा-भूरा ने, रतन बिड़ला की हत्या के इल्जाम में अगर उसे खुद ही को फंसाना था तो कान को इतना घुमाकर क्यों पकड़ा उसने ? छंगा- भूरा को इन्वॉल्व क्यों किया? लाश लेकर सीधी थाने ही क्यों नहीं पहुंच गई? वहां जाकर सीधे-सीधे क्यों नहीं कहा कि..
“तुम मुझे जादूगरनी समझते हो ?” उसने मेरी बात काटी।
शगुन ने तुरंत कहा----“वो तो तुम हो ही आंटी। अब देखिए न, खुलते-खुलते किस्सा वही खुल गया जिसकी आपने पहले ही संभावना व्यक्त कर दी थी । यह कि छंगा - भूरा ने सिर्फ..
“गलतफहमी है बच्चे। तेरी भी और तेरे इस पप्पूजान की भी । ” वह अपनी सदाबहार मुस्कान के साथ कहती चली गई ---- “ये अपने उपन्यासों में जब मेरे बारे में लिखता है तो नमक-मिर्च का छौंक लगा देता है। हकीकत ये है कि मेरे पास कोई जादू नहीं है। पेचीदा सवालों के जाल में मेरा दिमाग भी उसी तरह उलझता है जिस तरह तुम्हारा उलझता है और उन सवालों के जवाब मैं भी नहीं दे सकती जिनका जवाब देने का कोई बेस नहीं होता। वैसा ही यह सवाल भी है कि चांदनी ने वैसा क्यों नहीं किया? छंगा- भूरा वाला खेल क्यों खेला ?”
“इस सवाल का जवाब चांदनी ही दे सकती है ।”
“वही कहना चाहती हूं।"
“तो चलें चांदनी के पास ?" शगुन ने पूछा ।
“चलो ।” विभा तुरंत खड़ी हो गई ।
विभा ।” मराठा ने कहा“वजह ?” विभा के चेहरे पर चौंकने के भाव उभरे । “मुझे कोई जरूरी काम है।" -“मैं वहां नहीं जा सकूंगा ।"
“सॉरी जी
“ओ. के. ।” कहने के बाद विभा दरवाजे की तरफ बढ़ गई ।
मैं और शगुन उसके पीछे लपके ।
मेरे दिमाग में यह सवाल जरूर कौंध रहा था कि जिन सवालों के जवाब पाने के लिए हम इतने उतावले थे, उनके जवाब पाने में गोपाल मराठा ने जरा भी दिलचस्पी क्यों नहीं दिखाई ?
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