लिफ्ट दूसरी मंजिल पर आकर रुकी।


था। उसी मंजिल पर किसी और विंग में शबनम का कमरा


"आओ।" - योगिता लिफ्ट से बाहर कदम रखती हुई बोली ।


विकास चुपचाप उसके साथ हो लिया ।


एक लम्बा गलियारा पार करके वे योगिता के कमरे तक पहुंचे। उनके कमरे में दाखिल होने तक भी गलियारे में किसी तीसरे शख्स के कदम नहीं पड़े थे ।


कमरे में पहुंचकर योगिता ने शांति की सांस ली। उसके चेहरे पर से उत्कंठा के भाव धीरे-धीरे छंटने लगे ।


"तौबा !" - वह बोली- "यहां पहुंचने तक मुझे यूं लग रहा था जैसे पुलिस तुम्हारे नहीं मेरे पीछे पड़ी हुई थी । "


"सॉरी !" - विकास खेदपूर्ण स्वर में बोला ।


"बैठो !"


विकास एक कुर्सी पर बैठ गया ।


“काफी पियोगे ?”


"काफी !" - विकास ने भवें उठाई - "इस वक्त कहां से मिलेगी ?"


“यहीं बनेगी । लेकिन ब्लैक । दूध रखने की यहां सुविधा नहीं है । "


"तुम्हें नाहक तकलीफ होगी ।"


"कोई तकलीफ नहीं होगी ।"


"फिर ठीक है ।"


योगिता ने एक बिजली की केतली में पानी भरकर उसका सम्बन्ध करेन्ट से जोड़ दिया ।


विकास ने एक सिगरेट सुलगा लिया ।


काफी तैयार हो चुकने तक उन दोनों में कोई वार्तालाप नहीं हुआ ।


"कल” - विकास काफी की एक चुस्की लेता हुआ बोला- "मैं होटल का बिल नहीं अदा कर सका जाने से पहले । मैं बिल..." -


"बिल को छोड़ो" - वह विकास के सामने पलंग पर बैठती हुई बोली- "तुम पर कत्ल का इल्जाम है और तुम्हें बिल की पड़ी हुई है। तुम असल बात पर आओ जिसके लिए कि तुम यहां आये हो ।”


योगिता को उसने क्या बताना था, इस बारे में विकास वहां पहुंचने तक बहुत सोच-विचार कर चुका था । पहले उसकी मर्जी उसे अपनी ठगी की योजना के बारे में बताने की नहीं थी क्योंकि इससे उसका इमेज खराब हो सकता था लेकिन फिर उसने महसूस किया कि ठगी की योजना के बारे में बताये बिना वह योगिता को यह नहीं समझा सकता था कि आखिर उसके पापा के कार बाजार में वह करने क्या गया था । उसकी जगह कोई और कहानी घड़ कर सुनाने में वह खतरा था कि योगिता को उसकी सारी ही कहानी पर अविश्वास हो सकता था और फिर वह उसे हत्यारा समझ सकती थी । उसकी असली कहानी पूर्णतया विश्वसनीय थी, यह बात पहले ही तब साबित हो चुकी थी जब बख्तावर सिंह को उस पर विश्वास आ गया था ।


विकास ने बिना लाग-लपेट के उसे सब कुछ सच-सच बताने का फैसला कर लिया ।


"योगिता" - वह बोला- "अखबार वालों लिखा है कि मैं तुम्हारे पापा पर एक बोगस चैक थोपने की कोशिश कर रहा था । सबसे पहले मैं तुम्हें यही बताना चाहता हूं कि यह बात गलत है । जो चैक कार की पेमेंट के तौर पर मैंने तुम्हारे पापा को आफर किया था, वह बोगस नहीं था । तुम्हारी जानकारी के लिए यहां कमर्शियल स्ट्रीट में स्थित नेशनल बैंक में मेरे पचास हजार रुपये जमा हैं । "


"मुझे पहले ही अखबर में छपी इस बात का विश्वास नहीं हो रहा था " - योगिता बोली- "जो ऐसे ठग होते हैं उनकी सूरत से ही पता लग जाता है कि वे ठग हैं ।"


"मेरी सूरत से मैं तुम्हें ठग नहीं लगा ?"


"कतई नहीं ।"


"लेकिन" - विकास जी कड़ा करके बोला - "मैं हूं।"


"क्या ?"


"ठग।"


"क्या ?" - योगिता सख्त हैरानी से बोली ।


“योगिता, मैं एक ठग हूं। मैं पेशेवर ठग हूं । जिस वक्त तुम्हारे पिता का कत्ल हुआ था, उस वक्त मैं उन्हें ठगने की ही कोशिश कर रहा था ।"


वह कई क्षण अपलक विकास को देखती रही और फिर धीरे से बोली- "मुझे विश्वास नहीं होता।"


उसने तीसरी बार अपनी ठगी की योजना दोहराई । जो कुछ वह पहले शबनम और बख्तावर सिंह को सुना चुका था, वह अब उसने योगिता को भी कह सुनाया ।


जब तक कहानी महाजन के कत्ल तक पहुंची थी तब तक योगिता यूं हक्की-बक्की हो चुकी थी जैसे कोई प्रेतलीला सुन रही थी, लेकिन गनीमत थी कि उसके चेहरे पर अविश्वास के भाव नहीं थे ।


विकास ने धीरे-धीरे कत्ल के बाद को भी सारी दास्तान कह सुनाई - बस केवल उसने शबनम और मनोहर लाल से हासिल हुई मदद का जिक्र नहीं किया। यह सुनकर कि वह बख्तावरसिंह के आदमियों के हाथों कत्ल होने से बचा था, योगिता के चेहरे पर गहरी संवेदना के भाव प्रकट हुए। अभी तक उसने उसे सुनयना के हत्यारी होने के अपने सन्देह के बारे में नहीं बताया था । यह बात वह योगिता का विश्वास और हमदर्दी पूरी तरह से जीत चुकने के बाद जुबान पर लाना चाहता था ।


उसके खामोश होने के बाद कितनी ही देर कमरे में सन्नाटा छाया रहा ।


"यह सब तुमने मुझे सुनाना क्यों जरूरी समझा ?" . अन्त में योगिता धीरे से बोली ।


“क्योंकि यह हकीकत है।" - विकास बोला ।


"वह तो हुआ लेकिन यह हकिकत तुमने मुझे बताना क्या जरूरी समझा ?"


"क्योंकि मैं तुम्हें विश्वास दिलाना चाहता था कि मेरे पास तो तुम्हारे पापा कि हत्या का कोई उद्देश्य तक नहीं था ।


अब तुम मुझे यह बताओ कि मैं अपनी इस कोशिश में कामयाब हुआ हूं या नहीं ?"


"मुझे तुम्हारी बात पर विश्वास है । लेकिन तुमने साथ दी यह भी साबित कर दिखाया है कि तुम दो बुराइयों में से छोटी बुराई के लिए जिम्मेदार हो, यानी कि तुम हत्यारे नहीं हो तो ठग हो ।”


वह चेहरे पर खेद के भाव लिए खामोश बैठा रहा ।


"मुझे हकीकत बताने के पीछे कोई और वजह ?"


"एक वजह और है ।" - विकास धीरे से बोला ।


"यह भी बता दो ।"


"मैं तुम्हें धोखे में नहीं रखना चाहता था। मैं चाहता था कि मेरी हकीकत तुम पर जाहिर होकर रहे ।”


"तुमने कहा कि तुम पेशेवर ठग हो ?"


"हां । "


" यानी कि तुम्हारा काम-धन्धा ही यही है ?”


“हां।" - विकास यूं बोला जैसे वह बात कबूल करते हुए शर्म के अहसास से मरा जा रहा हो ।


"कभी जेल गए हो ?"


"नहीं।"


"कभी गिरफ्तार हुए हो ?"


“कई बार । लेकिन मेरे खिलाफ कभी कुछ साबित न हो सका, इसलिए छोड़ दिया गया ।"


" यानी कि पुलिस तुम्हारी असलियत जानती है ?"


"दिल्ली की पुलिस जानती है। खूब अच्छी तरह से ।"


"फिर तो तुम कामयाब ठग हुए ।"


“यही समझ लो ।”


"तुम्हारी अन्तरात्मा तुम्हें कभी कचोटती नहीं ?"


"किस बात के लिये ?"


"कि तुम लोगों को ठग कर अपनी रोजी-रोटी कमाते हो ?" 


"मैंने आज तक कभी किसी ऐसे आदमी को नहीं ठगा, मेरे द्वारा ठगे जाने पर जिसकी जिन्दगी किसी ट्रेजेडी का शिकार हो सकती हो। मैंने हमेशा उन लोगों को ठगा है जिन्होंने खुद दुनिया को ठग कर दौलत हासिल की है। मैंने आज तक कभी किसी ऐसे आदमी को नहीं ठगा जो मेरी ठगी की वजह से हुई आर्थिक हानि अफोर्ड न कर सकता हो । मैंने हमेशा अपने से बड़े ठगों और उठाईगीरों के घड़े में से एकाध बून्द निकाली है । "


"तुम तो यूं कह रहे हो जैसे ठगी करके तुम कोई इनाम हासिल होने लायक काम कर रहे हो ।”


"गलत । मैं सिर्फ यह कहना चाहता हूं कि अपने धन्धे को और लोगों के मुकाबले में मैं शराफत का पुतला हूं । मैंने ऐसे ठग देखे हैं जो अपनी सगी मां की आंखों से सुरमा चुराने से नहीं हिचकते, जो छः बच्चों की विधवा मां की सारी जमा-पूंजी झटक लेने के बाद यह सुनकर भी नहीं पसीजते कि उस विधवा के बच्चे फाकाकशी से जान दे रहे हैं, जो किसी अन्धे मोहताज की लाठी छीन सकते हैं, जो किसी... }}


"गलत काम तो गलत ही है। कानून किसी विधवा की कमाई छीनने वाला भी उतना ही गुनहगार है जितना किसी धनवान की जेब काटने वाला । "


"तुम ठीक कहती हो लेकिन मेरे कुकर्म मेरी अन्तरात्मा पर बोझ तो नहीं बनते न । मैं चैन की नींद तो सो सकता हूं न|"


उसने उत्तर न दिया ।


फिर कितनी ही देर कमरे में एक बोझिल-सा सन्नाटा छाया रहा ।


"क्या सोच रही हो ?" - अन्त में खामोशी से उकताकर विकास बोला ।


"तुम्हारे ही बारे में कोई फैसला करने की कोशिश कर रही हूं ।" - वह बोली ।


"फिर ठीक है । "


"तुमने मेरे से झूठ नहीं बोला, मैं महसूस करती हूं कि इसका क्रेडिट तुम्हें मिलना चाहिये । "


"शुक्रिया । "


" यानी कि ठग होने के साथ-साथ तुम में थोड़ा-बहुत जज्बा राबिन हुड और सखी हातिम वाला भी है।"


वह मुस्कराया ।


"कभी किसी औरत को भी ठगा है तुमने ?”


"न कभी नहीं ।”


"चाहे वह धनवान हो ?"


"चाहे वह धनवान हो । "


"वैसे तुम जानते तो होगे कि अगर तुम चाहो तो तुम औरतों को ज्यादा सहूलियत से ठग सकते हो । तुम्हारे व्यक्तित्व में औरतों का मन मोह लेने वाली कोई बात है।"


"गलत । अगर ऐसी कोई बात मेरे व्यक्तित्व में होती तो तुम क्या मुझसे दूर बैठी हुई होतीं ?"


योगिता का चेहरा कानों तक लाल हो गया ।


विकास अपने स्थान से उठा । वह उसके समीप पहुंचा । उसने अपनी एक उंगली योगिता की ठोड़ी के नीचे लगा कर उसका मुंह ऊंचा किया । योगिता ने एतराज नहीं किया उसके उसकी आंख से आंख न मिलाई । विकास ने नीचे झुककर हौले से उसके होठों पर एक चुम्बन जड़ दिया । योगिता पत्ते की तरह कांप गई । फिर उसने उसे परे धकेल दिया ।


"देखो" - वह गम्भीरता से बोली- "मुझसे मिलने से पहले तुम क्या करते थे, इस बात को मैं नजरअन्दाज कर सकती हूं । लेकिन मुझसे मिलने के बाद भी अगर तुम वही कुछ करते रहोगे तो इसे नजरअन्दाज करना मेरे लिये मुमकिन नहीं होगा। तुमने अभी मुझे किस किया, मैंने एतराज नहीं किया लेकिन दोबारा ऐसी कोई कोशिश करने से पहले यह सोच लेना कि मुझे यह तभी मंजूर होगा जब कि तुम मुझसे वादा करोगे कि तुम अपना यह बेहूदा धन्धा छोड़ दोगे।"


जवाब में विकास ने जो कहा उस पर उसे खुद बहुत हैरानी हुई ।


"मैं वादा करता हूं" - वह बोला - "तुम्हारे लिये मैं कुछ भी करने करने को तैयार हूं।"


“शुक्रिया ।" - वह बोली । "


विकास पलंग पर उसकी बगल में बैठ गया। उसने उसे अपनी बांहों में भर लिया और फिर धीरे से उसे पीछे पलंग पर लिटा दिया ।


***


सुबह जब विकास की नींद खुली तो उसने पाया कि आठ बज चुके थे । उसने अपने पहलू में लेटी योगिता को हौले से हिला कर जगाया । योगिता ने आंखें खोलीं और जोर से अंगड़ाई ली ।


"गुड मार्निंग !" - विकास बोला ।


वह मुस्कराई । फिर उसकी निगाह घड़ी पर पड़ी तो वह हड़बड़ाकर बोली- "अरे बाप रे, आठ बज गये ।" H


विकास खामोश रहा ।


"जरा परे देखो।" - वह बोली ।


विकास परे देखने लगा ।


योगिता बिस्तर में से निकली और लपक कर बाथरूम में जा घुसी।


विकास ने एक सिगरेट सुलगा लिया ।


औरत भी अजीब पहेली थी ।


रात भर निर्वस्त्र उसके पहलू में लेटी रहने के बाद अब उसे उससे शर्म आ रही थी ।


लेकिन योगिता की उस हरकत में ऐसी मासूमियत थी कि वह उसे बहुत अच्छी लगी ।


उसने बड़ी संजीदगी से सोचा कि अगर योगिता के साथ जीवन भर का साथ बन जाता तो क्या वह उसे अपने लिए कोई उपलब्धि मानता ?


आधे घंटे बाद योगिता पूरी तरह से तैयार होकर बाहर निकली । 


फिर उसने अपने कमरे में ही ब्रेकफास्ट मंगवाया ।


फिर विकास बाथरूम में घुस गया ।


जब वह बाहर निकला तो उसने पाया कि ब्रेकफास्ट कमरे में पहुंच चुका था ।


“मैंने ज्यादा कुछ नहीं मंगवाया" - योगिता संकोचपूर्ण स्वर में बोली- "क्योंकि तब फिर किसी को शक हो जाता कि ब्रेकफास्ट एक जने के लिए नहीं था ।"


"यह बहुत काफी है।" - विकास बोला ।


दोनों ब्रेकफास्ट करने लगे ।


"आज पता नहीं क्यों मुझे बहुत ज्यादा भूख लगी है । " योगिता बोली ।


"मुझे पता है।" - विकास एक धूर्ततापूर्ण निगाह उस पर डाल कर बोला ।


“चलो हटो ।" - योगिता बुरी तरह शर्माई ।


"योगिता" - वह बड़ी संजीदगी से बोला- "एक बात जानती हो ?"


"कौन सी बात ?"


"कल रात हम दोनों के बीच में जो कुछ गुजरा उसकी वजह से असल बात कहनी तो मैं भूल ही गया ।”


“असल बात कह तो दी तुमने । तुमने मुझे बता तो दिया था कि तुम कातिल नहीं हो । और कौन-सी बता रह गई ?"


“एक बात रह गई है । कल मैंने तुम्हें फोन पर यह भी तो कहा था कि मैं जानता हूं कि तुम्हारे पापा का कत्ल किसने किया हो सकता है।'


"हां यह बात तो मैं भी पूछना चाहती थी तुमसे। लेकिन मैं भूल ही गई।”


"क्यों भूल गई ?"


योगिता का चेहरा कानों तक लाल हो गया ।


"तुम्हारे ख्याल में" - एक क्षण बाद वह बदले स्वर में बोली- "कौन है कातिल मेरे पापा का ?"


"मेरा तो ख्याल ही है, लेकिन बख्तावर सिंह को पूरा विश्वास है कि यह काम सुनयना का है ।"


"सुनयना का ?" - योगिता हैरानी से बोली- "मेरी सौतेली मां का ?"


“यही बात युक्तिसंगत मालूम होती है। बख्तावर सिंह कहता है कि तुम्हारे पापा को कत्ल की धमकी उसने नहीं भेजी थी ।"


"वह झूठ बोल रहा होगा ।"


"नहीं, वह झूठ नहीं बोल रहा था । यह बात उसने मुझे तब बताई थी जब उसकी निगाह में मैं और एकाध घंटे में भगवान को प्यारा होने वाला था । ऐसी स्थिति में उसने मुझसे झूठ बोला हो, यह बात कुछ जंचती नहीं।"


"तुम्हारा मतलब है कि वह कत्ल की धमकी वाली चिट्ठी सुनयना ने खुद ही अपने मेल बाक्स में डाली थी ?"


"हां । इतनी अक्ल तो सुनयना में भी जरूर होगी कि जब किसी नौजवान बीवी का अधेड़ पति कत्ल हो जाता है तो सबसे पहले पुलिस जिस पर शक करती है, वह बीवी ही होती है। जरूर इसीलिए सुनयना ने उस धमकी भरी चिट्ठी की पृष्टभूमि तैयार की थी जो कि साफ-साफ बख्तावर सिंह की तरफ उंगली उठाती थी । इस शहर में हर कोई जानता है कि अपराध निरोधक कमेटी के चेयरमैन के रूप में तुम्हारे पिता बख्तावर सिंह के पीछे पड़े हुए थे इसलिए उस धमकी भरी चिट्ठी के पीछे बख्तावर सिंह का हाथ होने की बात बड़ी सहूलियत से हर किसी के गले उतर सकती थी ।”


"लेकिन सुनयना को पापा का कत्ल करने की जरूरत क्या थी ? उसके पास उद्देश्य क्या था ?"


“उद्देश्य तो तुम्हें मालूम होना चाहिए।"


"मुझे नहीं मालूम । मालूम होता तो मैं तुमसे पूछती ?"


“इसका मतलब यह हुआ कि अपनी सौतेली मां की करतूतों की तुम्हें कोई खबर नहीं है । "


"कैसी करतूतें ? क्या कह रहे हो तुमे ? मैं अपनी सौतेली मां की सिर्फ एक करतूत से वाकिफ हूं, वह यह है कि उसने दौलत की खातिर मेरे पापा से शादी की। इसके अलावा उसकी और किस करतूत की तरफ इशारा है तुम्हारा ?"


"योगिता, क्या वाकई तुम्हें मालूम नहीं कि तुम्हारी सौतेली मां एक चरित्रहीन औरत है और तुम्हारे पापा इसी बिना पर उससे तलाक हासिल करने वाले थे ?”


योगिता ने इन्कार में सिर हिलाया ।


"लेकिन यह हकीकत है। यह बात तो इस शहर में हर किसी की जुबान पर है। लगता है किसी ने इसका तुम्हारे सामने जिक्र इसलिए नहीं किया कि तुम्हें बुरा लगेगा ।”


" हो सकता है । "


"तुम एक बात बताओ। तुम इतने रईस बाप की बेटी होकर नौकरी क्यों कर रही हो ?”


"क्योंकि मेरी सुनयना से बनती नहीं । पहले ही दिन से मेरी उससे नहीं पटी थी । वह मेरे साथ यूं पेश आती थी जैसे पापा उसी के सब कुछ थे और मेरे कुछ नहीं थे । पापा भी हमेशा उसी की बात मान जाते थे और मुझे डांटने लगते थे कि मैं अपनी सौतेली मां के साथ अदब से पेश नहीं आती थी । सुनयना मेरे साथ ऐसा व्यवहार करती थी जैसे मैं घर की कोई नौकरानी थी और हमेशा मेरी तौहीन करने की कोशिश करती थी। हालात से तंग आकर कोई एक साल पहले मैंने अपने पिता का घर छोड़ दिया था और यह नौकरी कर ली थी ।"


"तुम्हारे पिता ने इस बारे में तुमसे कभी कुछ नहीं कहा ?"


"कहा । लेकिन ऐसा नहीं कहा जिसकी बिना पर मैं घर वापिस लौट पाती । उन्होंने तो इस बात के लिए भी मुझे डांटा कि मैं यूं नौकरी करके उनकी इज्जत खराब कर रही थी और यह कि मैं सुनयना से जलती थी और खामख्वाह उसमें नुक्स निकालने की कोशिश करती थी । जब मेरे पिता को ही मुझसे हमदर्दी नहीं रही थी तो मैं घर कैसे लौट सकती थी ? मैंने घर लौटने से इन्कार कर दिया । फिर उन्होंने मुझे कुछ रुपया पैसा देने की कोशिश की जो मैंने लिया नहीं। बाद में भी मेरे पिता कभी मुझसे मिले तो उन्होंने मुझे शर्मिन्दा करने की ही कोशिश की, कभी प्यार से गले लगा कर यह दम नहीं भरा कि मैं घर लौट चलूं और वे इस बात की गारण्टी नहीं करते थे कि मेरी सौतेली मां घर में मेरा अपमान नहीं करेगी ।”


"आई सी !"


"उस घर में मेरी क्या पूछ है, यह बात तुम्हें इससे नहीं सूझी कि कल मेरे पिता की चिता की आग लगी है और मैं अपने बाप के घर में मौजूद होने की जगह यहां होटल में बैठी हूं।"


"तुम्हारा यहां होना मुझे अजीब तो लगा था, मैं इस बारे में तुमसे पूछना भी चाहता था लेकिन सोचा शायद मेरा ऐसी बातें पूछना तुम्हें अच्छा न लगे ।”


"अपने पापा की मौत की खबर सुनते ही मैं वहां गई थी" - वह धीरे से बोली- "लेकिन सुनयना मेरे साथ ऐसी बुरी तरह पेश आई थी कि वहां टिकने की कोशिश करने में जलालत ही हाथ लगी थी। कल पापा के क्रियाकर्म के बाद भी मैं इखलाकन कोठी में गई थी लेकिन सुनयना ने मुझे डांट कर भगा दिया था।"


"ओह !"


“जो औरत मेरे पिता के होते मेरी दुर्गति करने से बाज नहीं आती थी, उनकी मौत के बाद तो उसका और भी शेर हो जाना स्वाभाविक ही था ।"


"लेकिन आखिर तुम भी तो अपने पिता की वारिस हो


" पता नहीं हूं या नहीं हूं । यह तो वसीयत सामने आने पर ही पता लगेगा ।"


"तुम्हारे पापा ने कोई वसीयत वगैरह तो की ही हुई होगी।"


"हां, वह तो है ।"


"उस वसीयत में तुम्हारा जिक्र किस रूप में है ?"


"मुझे नहीं मालूम ।"


“तुम्हारे पापा ने इस बारे में तुमसे कभी कोई बात नहीं की ?"


"जब मैं कोठी में रहती थी तब एक बार उन्होंने कहा था कि मुझे और सुनयना को वे अपनी जायदाद का बराबर का हकदार मानते थे। लेकिन यह तब की बात है जब सुनयना से मेरी अनबन इतनी नहीं बढ़ी थी और न मेरे पापा मेरे इतने खिलाफ हुए थे कि मैं घर छोड़कर चली जाती ।


बाद में तो मेरे पापा ही मेरे खिलाफ हो गये थे। तब से लेकर आज तक क्या पता सुनयना ने सब कुछ अपने नाम ही लिखवा लिया हो ।"