विक्रम ने नोट किया । संभवतया लीना को जीवन से लगाव होने की असल वजह यह थी कि दोनों ही एक जैसी घटिया किस्म की जिन्दगी जी रहे थे । उनकी हालत एक ही नाव में सवार उन दो यात्रियों जैसी थी जो मझधार में थे और जिन्हें किनारे पर पहुंचने की कोई उम्मीद नजर नहीं आती थी ।
"य...यह सच है ?" लम्बी खामोशी के बाद सहसा लीना ने पूछा ।
विक्रम ने सहमतिसूचक सिर हिला दिया ।
लीना की आंखों में पुनः आंसू छलक आए और ढुलक कर गालों पर बहने लगे ।
"वो कैपसूल जीवन ने एमरजेंसी के लिए रख छोड़ा है ।" वह विवश स्वर में बोली ।
विक्रम ने मन-ही-मन बड़ी भारी राहत महसूस की । फिर उत्सुकतापूर्वक पूछा-"कहां ?"
"शायद उस जगह पर जहां वह अब नहीं जा सकता ।"
"यानी अपने घर ?"
"हां । मगर तुम्हें कैसे पता चला ?"
"मैं जानता हूं, आफताब आलम का एक आदमी बाहर रहकर उसके घर को वाच कर रहा है ।" कहकर विक्रम ने पूछा-"तुम्हें पता है अपने घर में जीवन ने वो कैपसूल कहां रखा है ?"
लीना ने बोतल उठाकर व्हिस्की का तगड़ा घूंट लिया और बोतल वापस मेज पर रख दी ।
"मैं तो यह भी नहीं जानती कि वो उसने अपने घर में ही रखा होगा ।" वह हिचकी लेकर बोली-"मुझे तो उसने सिर्फ इतना बताया था कि तुम्हारी जेब से बरामद होने के बाद ही उसने वो कैपसूल एमरजेंसी इस्तेमाल के लिए छुपा दिया था ।"
विक्रम ने नोट किया, व्हिस्की का प्रभाव उस पर बढ़ता जा रहा था ।
"जीवन मिलेगा कहां ?" उसने पूछा ।
"पता नहीं...वह जसपाल के ठिकाने पर सेंध लगाने गया था...उसे पता है, जसपाल हेरोइन का अपना स्टॉक कहां रखता है...तुम जसपाल को जानते हो ?"
"हां, वह भी निहायत कमीना आदमी है ।" उसके जबड़े कस गए ।
"विक्रम...!" वह बोली, फिर रुक गई और कुछ कहने से पहले उसने दोबारा सोचा और फिर खोखली-सी आवाज में बोली-"जीवन के लिए...वह बादशाह है...उसे हेरोइन सप्लाई करता है...सबसे खतरनाक और गंदा ड्रग ।"
"जीवन ने तुम्हें बताया कि जसपाल का वो ठिकाना कहां है ?"
लीना ने पुनः बोतल से तगड़ा घूंट लिया । बोतल में अब ज्यादा व्हिस्की नहीं बची थी । और नशे की वजह से लीना की हालत ऐसी हो चली थी कि वह किसी भी क्षण आउट हो सकती थीं ।
मिलन रेस्टोरेंट में...जीवन ने एक बार जसपाल की चाबियां चुरा ली थी और उनकी नकल तैयार करा ली थी-ऐसे ही किसी आड़े वक्त की जरूरत के लिए वह उन्हें हमेशा पास रखा करता है ।"
"वह पागल है ! जसपाल के साथ कोई ऐसा स्टंट कामयाब नहीं होगा । जसपाल को शक भी हो गया तो वह जीवन को कच्चा चबा जाएगा ।"
लीना ने एकदम से जवाब नहीं दिया । अब तक व्हिस्की उस पर पूरी तरह हावी हो चुकी थी । उसका चेहरा तमतमा रहा था और आखें रह-रहकर मुंदने लगती थी । उसने पलंग से उठने की कोशिश की मगर कामयाब नहीं हो सकी । उसने अपने जिस्म का ऊपरी हिस्सा तो पलंग से ऊपर उठा लिया था लेकिन अत्यधिक नशे के कारण टांगें साथ नहीं दे सकी । फलस्वरूप इस प्रयास में वह आगे की ओर फर्श पर गिरने लगी ।
विक्रम फौरन कुर्सी से उठा और उसे बांहों का सहारा देकर सम्भाल लिया ।
"ज...जीवन का...कोई भी कुछ नहीं...बिगाड सकता ।" नशे की झोंक में लीना बड़बड़ा रही थी-"अगर किसी ने...उंगली भी लगाई...तो मैं...उसको...हरगिज जिंदा नहीं छोडूंगी ।"
विक्रम ने उसे बांहों में उठाकर पलंग पर लिटा दिया ।
चन्द पल अस्पष्ट स्वर में वह न जाने क्या बड़बड़ाती रही, फिर खामोश हो गई ।
वह अपने होश गंवा बैठी थी ।
विक्रम बिस्तर से अलग हट गया । वहां रुके रहने की अब कोई तुक नहीं थी ।
वह दरवाजे के पास पहुंचा । उसमें दोहरा लॉक लगा था जिसे एक ही चाबी से, बाहर-भीतर, दोनों ओर से खोला और बन्द किया जा सकता था ।
उसने चाबी घुमाकर लॉक खोला, की होल से चाबी निकालकर दरवाजा खोला, और बाहर आ गया ।
दरवाजा पुनः बन्द करके लॉक किया और दरवाजे के नीचे बनी झिरी से चाबी अन्दर कमरे में फेंक दी ।
वह पलटकर अन्धकारपूर्ण गलियारे में चल दिया ।
गलियारे के सिरे पर बने दरवाजे के पास पहुंचते ही उसे बाहर सड़क पर आकर रुकी कार का इंजन बन्द किए जाने की फिर दरवाजा बन्द होने की आवाजें और फिर कदमों की आहट सुनाई दीं ।
उधर से अन्दर आने के बाद सिर्फ लीना के कमरे तक पहुंचा जा सकता था । इसलिए जाहिर था कि आगंतुक लीना से ही मिलने आया था ।
विक्रम का उत्सुक होना स्वाभाविक ही था । उसने सतर्कतावश कोट की जेब से अपना रिवॉल्वर निकाला और दरवाजे की बगल में दीवार से चिपककर खड़ा हो गया । अन्धेरा इतना ज्यादा था कि उसकी वहां मौजूदगी का पता आगंतुक को नहीं चल सकता था ।
वह दम साधे इंतजार करने लगा । किसी भी अप्रत्याशित घटना से निपटने को वह पूरी तरह तैयार था ।
तभी भड़ाक से दरवाजा खुला ।
जाहिर था कि आगंतुक किसी चोर की तरह नहीं बल्कि अधिकारपूर्वक भीतर आ रहा था ।
सहसा विक्रम चौंका ।
सडक से आती स्ट्रीट लाइट की धूमिल-सी रोशनी में, दरवाजे में खड़े आगंतुक को तो वह अपने खड़े रहने की उस स्थिति में साफ नहीं देख पा रहा था । लेकिन उसके दायें हाथ में थमी चीज अस्पष्ट प्रकाश में जिस ढंग से चमकी थी, उससे विक्रम उसे पहचान गया-वो किसी चाकू या छुरे का चमकीला फल था ।
जाहिर था कि आगंतुक के इरादे नेक नहीं थे ।
आगंतुक गलियारे में आकर ज्योंही दरवाजा बन्द करने के लिए पलटा, विक्रम ने अपने रिवॉल्वर की नाल का तगड़ा वार अनुमान-मात्र से उसकी खोपडी पर कर दिया ।
आगंतुक के कंठ से घुटी-सी कराह निकली और उस का जिस्म लहराकर नीचे गिरने लगा ।
लेकिन विक्रम ने बीच में ही उसे सम्भाला और धीरेसे फर्श पर डाल दिया । उसकी भारी सांसों और निश्चल पड़े शरीर से स्पष्ट था कि वह अपनी चेतना गंवा बैठा था ।
उसके पास ही चमकदार फल वाला चाकू पड़ा था ।
विक्रम ने चाकू उठाकर बन्द करके अपनी जेब में डाला फिर वह आगंतुक की जेबों की तलाशी लेने लगा ।
रिवॉल्वर, पर्स, माचिस, सिगरेट का पैकेट, रूमाल, ड्राइविंग लाइसेंस, चाबियां वौरा ।
विक्रम ने दरवाजा बन्द करके माचिस की एक तीली जलाई और पीली मरियल रोशनी, बेहोश पड़े आदमी पर डाली । उसका चेहरा बाज जैसा था । अनुमानतः वह वही आदमी होना चाहिए जिसने टैक्सी से विक्रम पर गोलियां चलाई थीं ।
विक्रम ने माचिस की दूसरी तीली जलाकर ड्राइविंग लाइसेंस पर निगाह डाली । उस पर उसी आदमी की फोटो मौजूद थी । उसके मुताबिक उसका नाम जगतार सिंह था और वह कंचनगढ़ का रहने वाला था । यानी वह वही आदमी था जिसे आफताब आलम ने खास तौर पर उसे ठिकाने लगवाने के लिए बुलाया हुआ था । और वह आदमी भी वही था जिसने लीना के साथ कुकर्म किया था ।
विक्रम के लिए इतना ही काफी था । जगतार अब लीना की जान लेने आया था या उसके आने का मकसद कुछ और था । विक्रम को इस बारे में सिर खपाने में कोई अक्लमंदी नजर नहीं आई ।
रिवॉल्वर, चाबियां, रूमाल और माचिस के अलावा उसने बाकी तमाम चीजें वापस उसकी जेबों में डाल दी । फिर उसके जूते उतारकर नाइलोन की लम्बी-लम्बी जुराबें भी उतारी । नंगे पैरों में जूते पहनाने के बाद एक जुराब से, उसने जगतार के दोनों हाथ पीठ के पीछे ले जाकर कलाइयां मजबूती से आपस में बांध दी । दूसरी जुराब से उसके टखने उसने परस्पर कसकर बांध दिए । फिर जगतार के रूमाल को गोले की शक्ल में उसके मुंह में ठूसने के बाद ऊपर से अपना रूमाल बांध दिया ।
उसकी तरफ से बेफिक्र होकर विक्रम ने सावधानीवश धीरे-धीरे दरवाजा खोलकर बाहर झांका ।
दायीं ओर मुश्किल से पांच-सात गज के फासले पर एक टैक्सी खड़ी थी । उसके तमाम खिड़कियां और दरवाजे बन्द थे । और उसके अन्दर या आस-पास कोई नहीं था ।
विक्रम ने बाहर जाकर, चाबी की मदद से, टैक्सी का उसी तरफ वाला पिछला दरवाजा खोला । वापस आकर जगतार को उठाकर कन्धे पर लादा और पुन: बाहर जाकर टैक्सी में पिछली सीट के नीचे फर्श पर डाल दिया ।
दरवाजा लॉक करके वह ड्राइविंग सीट पर जा बैठा । और इंजन स्टार्ट करके टैक्सी को मिलन रेस्टोरेंट की ओर ड्राइव करने लगा ।
उसने मन-ही-मन जगतार को धन्यवाद दिया । जगतार ने आकर उसकी सवारी की समस्या सुलझा दी थी । हालांकि मिलन रेस्टोरेंट ज़्यादा दूर नहीं था । फिर भी वहां पहुंचने के लिए सवारी का होना जरूरी था । क्योंकि पैदल जाने में किसी के भी द्वारा पहचान लिए जाने का बड़ा पूरा खतरा था । और उस इलाके में सुबह-सुबह के वक्त सवारी मिलना बड़ा ही मुश्किल था ।
वह अपेक्षाकृत निश्चिततापूर्वक टैक्सी ड्राइव करता रहा ।
मिलन रेस्टोरेंट, मेन रोड की बजाय, एक साइड रोड पर था । हालांकि रेस्टोरेंट तो वो औसत दर्जे का ही था मगर अपने स्वादिष्ट चाइनीज फूड की वजह से खासी शोहरत उसे हासिल थी ।
लेकिन विक्रम को उसकी जानकारी शोहरत की वजह से न होकर उसके मालिक सरदारी लाल की वजह से थी । वह बड़ा ही कांईया किस्म का आदमी था । उसे दो बार इस आरोप में गिरफ्तार किया गया था कि वह नौजवान लड़के-लड़कियों को ड्रग सप्लाई किया करता था । मगर उसके खिलाफ एक बार भी ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं मिला था जिससे वो आरोप सच साबित हो सके ।
लेकिन अगर लीना द्वारा दी गई सूचना, कि जसपाल ने मिलन रेस्टोरेंट को अपना स्टोर हाउस बना रखा था, सही थी तो जाहिर था कि सरदारी लाल ड्रग्स के धन्धे में गले तक फसा हुआ था ।
मुश्किल से दस मिनट बाद विक्रम ने रेस्टोरेंट से कुछेक गज आगे ले जाकर टैक्सी रोकी ।
जगतार के जल्दी होश में आने की कोई सम्भावना नहीं थी । इसलिए उसे उसी तरह पड़ा छोड़कर वह नीचे उतरा और ड्राइविंग सीट वाला दरवाजा, लॉक करके रेस्टोरेंट की ओर बढ़ गया ।
रेस्टोरेंट का प्रवेश-द्वार लॉक्ड था और अन्दर कहीं से रोशनी या किसी की मौजूदगी का कोई आभास नहीं मिल रहा था ।
विक्रम प्रवेश-द्वार से पहले ही वाली गली से होता हुआ पिछले बन्द दरवाजे पर जा पहुंचा ।
उसने दायें-बायें निगाहें दौड़ाईं । गली में कोई दिखाई नहीं दिया ।
उसने दरवाजे के पल्ले पर दबाव डालते हुए उसे भीतर धकेला तो वो खुलता प्रतीत हुआ ।
विक्रम तुरन्त पूर्णतया सतर्क हो गया । उसने जेब से जगतार वाली रिवॉल्वर निकाली और बहुत ही धीरे-धीरे इंच-इंच करके दरवाजा खोलने लगा ।
रेस्टोरेंट के भूगोल से भली-भांति परिचित विक्रम जानता था कि उस तरफ से गलियारे से गुजरने के बाद वह ऑफिस में जा पहुंचेगा । अगर जसपाल रेस्टोरेंट को वाकई स्टोर हाउस के रूप में प्रयोग कर रहा था तो उस के लिए सबसे ज्यादा मुनासिब जगह ऑफिस वाला कमरा ही होनी चाहिए थी ।
दरवाजा इतना खुल चुका था कि वह उससे गुजरकर अन्दर जा सके ।
उसने सावधानीवश, भीतर झांका । मगर अन्धेरे के अलावा कुछ भी नजर नहीं आ सका ।
इस पूरे दौर में उसके कान अन्दर से आने वाली जरा-सी भी आहट को सुनने के लिए पूरी तरह तैयार रहे थे लेकिन उसे कुछ भी सुनाई नहीं दिया ।
दरवाजा लॉक्ड न पाए जाने से, अन्दर किसी की मौजूदगी से इन्कार नहीं किया जा सकता था । जोकि विक्रम के हक में खतरनाक था । लेकिन विक्रम के पास इस खतरे को उठाने के अलावा और कोई चारा नहीं था ।
उसने पुन: आहट लेने की कोशिश की फिर भूत की तरह निःशब्द भीतर दाखिल होकर धीरे-से दरवाजा बंद कर दिया ।
वह चन्द क्षण चुपचाप खड़ा अन्धेरे में ताकता रहा फिर दबे पांव गलियारे में आगे बढ़ा ।
अब तक उसे लगभग यकीन हो चुका था कि वहां उसके अलावा कोई नहीं था । मगर उसकी सतर्कता में जरा भी कमी नहीं आई थी । किसी भी अप्रत्याशित घटना से निपटने के लिए अपनी ओर से वह पूरी तरह तैयार था ।
उसी तरह चलता हुआ, अन्धेरे में, वह ऑफिस के दरवाजे पर जा पहुंचा ।
ऑफिस का दरवाजा खुला पाकर वह कई पल हिचकिचाता सा खड़ा रहा फिर अन्दर प्रवेश कर गया ।
उसने पुनः कई क्षण तक आहट लेने की कोशिश की फिर अपनी जेब से, जगतार से प्राप्त, माचिस निकालकर एक तीली जलाई ।
पीली मरियल रोशनी में उसने देखा । ऑफिस के आधे से ज्यादा भाग की हालत जो बतौर स्टोर इस्तेमाल होता था, कबाड़ी की दुकान जैसी बनी हुई थी । लगभग प्रत्येक वस्तु, अपनी सही जगह पर मौजूद होने की बजाय, फर्श पर फैली हुई थी ।
उन्हीं के बीच अजीब-सी हालत में जीवन पड़ा हुआ था । उसफी गर्दन बड़े ही असामान्य ढंग से मुड़ी हुई थी । गर्दन की साइड में गहरा नीला निशान उभरा हुआ था । वो निशान उसकी गर्दन पर किए गए उस तगड़े वार की निशानी थी जिसने उसकी गर्दन तोड़ दी थी । उसकी खुली आंखें एकटक एक ही दिशा में ताक रही थीं । और उनमें जीवन ज्योति बुझ चुकी थी ।
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