घान पेड़
एकाएक मेजर बलवन्त को ख्याल आया कि शिवाजी पार्क के इलाके में तैनात पुलिस इन्स्पेक्टर दामले उसका गहरा मित्र था | मेजर को इस बात का पूरा एहसास था कि जिस मुहिम पर वह जा रहा था, खतरनाक भी सिद्ध हो सकती थी। पुलिस इन्स्पेक्टर दामले को इस विषय में सूचित करना हितकारी ही सिद्ध होगा कि वह भयानक अपराधियों पर झपटने के लिए जा रहा है। अगर पुलिस की सहायता समय पर पहुंच गई तो दोनों अपराधियों के भाग निकलने के रास्ते बन्द हो जाएंगे । मेजर चाहता था कि उन्हें जिन्दा पकड़ लिया जाए ताकि यह मालूम किया जा सके कि वे किसके कहने से यह सब कर रहे थे। यह सोचकर मेजर ने अपने बढ़ते हुए कदम रोक लिए और अशोक से कहा, "तुम इस जगह पर मेरा इन्तजार करो। मैं एक जरूरी फोन करके आता हूं।" मेजर दस मिनट में पुलिस इन्स्पेक्टर दामले को फोन करने के वाद लौट आया । दामले ने उसे विश्वास दिला दिया था कि वह पुलिस पार्टी के साथ तुरन्त वहां पहुंच रहा है !
क्रोकोडायल जमीन सूंघता हुआ आगे बढ़ने लगा । वह एक घने पेड़ के पास जाकर रुक गया और पेड़ के छतनारे की ओर थूथनी उठाकर जोर-जोर से भौंकने लगा । मेजर ने अशोक का बाजू पकड़कर उसे आगे बढ़ने से रोक लिया और दबी जबान में कहा, "ठहरो – तुम देख रहे हो कि क्रोकोडायल क्या कर रहा है ? मुझे ऐसा मालूम होता है कि इस पेड़ के पत्तों में कोई व्यक्ति छिपा हुआ है ।"
"हां, ऐसा ही मालूम होता है ।' अशोक ने पतलून की जेब से रिवाल्वर निकालते हुए कहा ।
" पेड़ की शाखाओं में कोई छिपा हुआ है— इसका क्या मतलब हो सकता है ? उन लोगों को पहले से खबर हो चुकी है कि उन पर हमला होने वाला है ? उनको पहले से यह खबर कैसे हो गई ?" मेजर ने मानो अपने आप से कहा, "संभव है क्रोकोडायल का पीछा करने पर उन्हें कुछ सन्देह हो गया हो ।” अशोक चोला ।
"हां, और यह भी संभव है कि उन्होंने मुझे प्रदीप के मकान में जाते देख लिया हो । उनका कोई न कोई आदमी जरूर प्रदीप के मकान की निगरानी कर रहा होगा। हमें अब और भी सावधानी से कान लेना होगा।"
कोकोडायल ने अब पेड़ के तने के साथ-साथ उछलना शुरू कर दिया था और वह पहले से अधिक ज़ोर से भौंकने लगा.. था । एकाएक क्रोकोडायल के 'च्याऊं- च्याऊँ' करने की आवाज आई और वह लंगड़ाता हुआ मेजर के पास आ गया। उसकी दाँयी टांग में एक चाकू का लम्बा फल गड़ा हुआ था। मेंजर ने जल्दी से वह चाकू खींचकर क्रोकोडायल की टांग में से निकाल लिया और जेब से रुमाल निकालकर घाव पर बांध दिया ताकि अधिक खून न बहने पाए ।
अशोक बौखला गया। उसने ताबड़तोड़ तीन गोलियां पेड़ की घनी शाखाओं में चला दी। पेड़ की घनी शाखाओं में से कोई उत्तर न आया।
"यह तुमने क्या किया अशोक !" मेंजर ने कहा |
अभी मेजर के मुंह से ये शब्द निकले ही थे कि सामने की बिल्डिंग की ऊपरी मंजिल की रोशनी बुझ गई और दो गोलियां मेजर के कान के पास से सनसनाती हुई निकल गई । मेंजर तुरन्त जमीन पर लेट गया। उसने अपने रिवाल्वर से उस बिल्डिंग की ऊपरी मंजिल की खिड़कियों पर गोलियां बरसाई | अशोक ने मेंजर का साथ दिया । वह भी जमीन पर लेट चुका था । उस बिल्डिंग से फिर गोलियां चलाई गई। मेजर ने महसूस किया कि उस बिल्डिंग की ओर से जो गोलियां आ रही थीं, अब वह केवल एक आदमी चला रहा था। मेजर को एक तरकीब सूझी। वह उठा और जमीन पर झुकता हुआ उस बिल्डिंग की ओर बल खाकर दौड़ने लगा । उधर से दो गोलियां और आईं और फिर गोली चलने की आवाज बन्द हो गई। मेजर ने अब अपनी रफ्तार तेज कर दी। चारों ओर शोर-गुल मच गया । कुछ लोग उस ओर आ रहे थे जहां गोलियां चली थीं, लेकिन कोई भी निकट आने की कोशिश नहीं कर रहा था ।
सामने की बिल्डिंग के लोग शायद सहम गए थे । किसी ने भी अपने कमरे की बत्ती नहीं जलाई थी । मेजर बिल्डिंग तक पहुंच चुका था । अशोक उसके पीछे था मेजर सीढ़ियां चढ़ता हुआ ऊपर पहुंच गया | मेजर ने सामने के दरवाजे पर हाथ रखा तो वह खुल गया । वह ऐसी परिस्थितियों से पूरी तरह परिचित था । उसे मालूम था कि दुश्मन ऐसे अवसर पर जान-बूझकर दरवाजा खोल देता है, वह दरवाजे के पीछे छिपा होता है। मेजर ने अपने बायें हाथ में टार्च जलाकर पकड़ ली और दायें हाथ में रिवाल्वर थाम लिया, जिसमें केवल दो गोलियां बाकी रह गई थीं। यह तैयारी कर चुकने के बाद उसने ठोकर मारकर पूरा दरवाजा खोल दिया । अब अशोक भी निचली सीढ़ी पर कदम रख चुका था । दरवाजा खुलने पर मेजर की आंखों में चमक-सी पैदा हुई वह विजली की-सी तेजी के साथ झुक गया और जोर से आवाज दी, "अशोक ! चाकू | एक तरफ हट जाओ।" ।
अशोक भी टार्च लिए हुए ऊपर आ रहा था । सचमुच एक चाकू उसके पैरों के पास आ गिरा। अशोक ने वह चाकू उठा लिया ।
मेजर समझ गया कि शत्रु के रिवाल्वर की गोलियां समाप्त हो चुकी थीं अन्यथा वह उस पर वार करने के लिए चाकू इस्तेमाल न करता । इस विचार के आते ही मेजर छलांग लगाकर कमरे में दाखिल हो गया। दरवाजे से छलांग लगाकर कमरे में दाखिल होने का यह फायदा होता है कि अगर कोई दरवाजे के पीछे हमला करने का इरादा रखता हो तो सफल न हो सके । मेजर कूदकर कमरे में दाखिल तो हो गया लेकिन तभी एक जोरदार मुक्का उसकी कनपटी पर पड़ा । वह चकराकर फर्श पर गिर पड़ा, लेकिन फिर तुरन्त ही उठकर खड़ा हो गया। एक विशालकाय व्यक्ति उसकी ओर बढ़ता हुआ रुक गया। मेजर ने अपना रिवाल्वर जेब में डाल लिया और टार्च एक और फेंक दी | अशोक भी कमरे में दाखिल हो चुका था ।
मेजर ने उसे आवाज दी, "अशोक, इस कमरे की बत्ती जला दो और एक तरफ हटकर खड़े हो जाओ । कोई दूसरा आए तो उससे तुम निबट लेना ।" उस विशालकाय व्यक्ति का ख्याल था कि उसके मुक्के की चोट कोई भी व्यक्ति सहन नहीं कर सकता । मेजर संभलकर उसके सामने खड़ा हो गया तो उस विशालकाय व्यक्ति के होश उड़ गए । यह अभी सोच ही रहा था कि किस पहलू से मेजर पर हमला करे कि अशोके ने कमरे की बत्ती जला दी । बत्ती जली तो उस विशालकाय व्यक्ति ने जरा-सा आगे आकर अपने बायें पैर के पंजे पर जोर डालकर मेजर के मुंह पर मुक्का दिया । मेजर तेजी से उस मुक्के की जद से एक ओर को हट गया।
विशालकाय व्यक्ति आगे की ओर झुककर लड़खड़ा गया। मेजर ने अपनी दायीं टांग का घुटना जोर से उसकी पिछाड़ी पर मारा और वह व्यक्ति औंधे मुंह फर्श पर गिर पड़ा । उसका सिर एक कुर्सी से जा टकराया । एक छोटी-सी मेज पर पीतल का लंम्बा-सा फूलदान पड़ा था। विशालकाय व्यक्ति ने पीतल का फूलदान उठा लिया और बड़े भयानक अन्दाज में मेजर की ओर बढ़ा | उसके होंठों से खून बह रहा था और उसका चेहरा बहुत भयंकर हो रहा था। अशोक से रहा नहीं गया। उसने रिवाल्वर से उस पर गोली चला दी । विशालकाय व्यक्ति के हाथ से फूलदान छूटकर फर्श पर गिर पड़ा और उसके साथ ही वह स्वयं भी ।
"अशोक ? य़ह तुमने दूसरी मूर्खता की है । मैं इस आदमी को जिन्दा पकड़ना चाहता था। इसके पास कोई खतरनाक हथियार नहीं था । क्या तुम्हें मुझ पर यह भरोसा नहीं था कि मैं इस व्यक्ति पर काबू पा सकता हूं ?"
अशोक ने पश्चात्ताप के रूप में सिर झुका लिया ।
बाहर लोगों के शोर में वृद्धि हो गई। सीढ़ियों पर भारी कदमों की आवाजें सुनाई दीं। इन्स्पेक्टर दामले छः सात पुलिस कांस्टेबलों के साथ ऊपर आया । उसके पीछे बहुत से लोग थे और उचक-उचककर कमरे में झांक रहे थे । इन्स्पेक्टर दामले ने कमरे में कदम रखते हुए मेजर और अशोक को देखा तो उसके चेहरे पर मुस्कराहट फैल गई। फिर उसकी नजर फर्श पर चारों खाने चित गिरे उस विशालकाय व्यक्ति पर पड़ी । वह बोला, "ऐसा मालूम होता है हमारे आने से पहले ही खेल खत्म हो चुका है।"
"हां ।” मेजर बोला, "लेकिन जिस ढंग से यह खेल खत्म होना चाहिए था, उस ढंग से नहीं हुआ ।”
"और क्या हो सकता है ! दुश्मन मारा जा चुका है ।"
इनमें से कम से कम एक व्यक्ति जिन्दा पकड़ा जाना चाहिए था। ” मेजर मे कहा ।
और फिर जब उस दरवाजे में काफी लोग नजर आए और नीचे लोगों के भारी हुजूम का शोर-गुल सुनाई दिया तो उसने इन्स्पेक्टर दामले से कहा, "आप लोगों को दरवाजे पर से हटा दीजिए।"
इन्स्पेक्टर दामले ने एक पुलिस कांस्टेबल को संकेत किया और वह पुलिस कांस्टेबल लोगों को खदेड़कर नीचे ले जाने लगा।
कुछ क्षणों के बाद इन्स्पेक्टर ने मेजर से पूछा, "ये कौन लोग हैं ?
"मैं आपको सारा किस्सा वाद में सुनाऊंगा । पहले मैं इनके फ्लैट की तलाशी, लेना चाहता हूं। मेरा ख्याल है कि साथ के कमरे में खिड़की के करीब एक और व्यक्ति की लाश मिलेगी, क्योंकि मैं जानता हूँ कि इस फ्लैट से दो आदमी हम पर गोलियां चला रहे थे। बाद में केवल एक ही आदमी हमारे मुकाबले पर रह गया था ।"
यह सुनकर इन्स्पेक्टर दामले फ्लैट के दूसरे कमरे में चला गया। मेजर अपनी नाक के नथुने फुलाने लगा। उसे कागजों में लगी हुई आग की बू आ रही थी। वह तेजी पिछले कमरे की ओर बढ़ा। वहां सचमुच कुछ कागज जल रहे थे । मेजर ने देखा कि अब आग बुझाना बेकार था । केवल एक गुलाबी-सा कागज आधा जलना शेष था। मेंजर ने लपककर उस अधजले कागज को पूरा जलने से बचा लिया । वह एक टेलीग्राम था। मेजर ने जल्दी से उसे अपनी जेब में डाल लिया ।"
“मेजर, आप कहां हैं ? आपका अन्दाजा बिल्कुल ठीक था । दूसरे कमरे में खड़की के नीचे वाकई एक मुर्दा पड़ा है ।" इन्स्पेक्टर दामले ने दूर से कहा । वह शायद पिछवाड़े के कमरे की ओर आ रहा था । इन्स्पेक्टर दामले ने पिछवाड़े के कमरे में प्रवेश किया। उसने मेजर को सीटी
बजाते हुए देखा तो पूछा, "आप क्या सोच रहे हैं ?'
"मैं यह सोच रहा हूं कि अब यह बात मेरी समझ में आई है कि जब हम दौड़ते हुए इस बिल्डिग की ओर बढ़ रहे थे तो गोलियां चलनी क्यों बन्द हो गई थीं। एक तो इन लोगो की गोलियां समाप्त हो गई थीं। दूसरे यह आदमी सारे जरूरी कागजात जला देना चाहता था।"
"क्या सब कागजात जला दिये गये हैं ? " इन्स्पेक्टर ने
पूछा।
“जी हां - अब मुझे सूटकेस वगैरह की तलाशी लेनी होगी। आप तब तक फोन करके फोटोग्राफर, डाक्टर और दूसरे लोगों को बुलवा लीजिए। अपनी जरूरी कार्यवाही पूरी कर लीजिए | लेकिन मैं आपसे एक प्रार्थना भी करूंगा। अखबारों में अभी इस घटना की खबर इस ढंग से छपनी चाहिए कि किसी को यह पता न लग सके कि ये लोग कौन थे और किन परिस्थितियों में मारे गए।" मेजर ने कहा ।
"कुछ विवरण तो देना ही पड़ेगा।” इन्स्पेक्टर ने कहा ।
"आप इन लोगों का वही नाम दे सकते हैं जिन नामों से इन्होंने यह प्लॅट किराये पर लिया था— वैसे मुझे विश्वास है कि इन लोगों का नाम कुछ और ही है। आप अखबार वालों को केवल इतना बता सकते हैं कि इन लोगों को भयानक अपराधों के सिलसिले में पुलिस गिरफ्तार करने गई थी, लेकिन मुठभेड़ में ये लोग मारे गए ।”
“अखबार वालों से पीछा नहीं छुड़ाया जा सकता।"
"आप इतना और कह सकते हैं कि इन्होंने एक स्थानीय इंजीनियर को तेजाब फेंककर अंधा कर दिया था। पुलिस इनकी तलाश में थी । जो हो, आप इन लोगों को गिरफ्तारी के लिए कोई और बहाना बना सकते हैं।"
“आप इनके असली नाम जानते हैं ?" इन्स्पेक्टर ने पूछा।
"अभी नहीं । मैं समझता हूं कि मैं दो दिन में इस योग्य हो जाऊंगा कि आपको न केवल इनके नाम बल्कि हत्या की एक भयानक वारदात से इनके सम्बन्ध की कहानी बता सकूं ।"
"अच्छी बात है ।" इन्स्पेक्टर दामले ने कहा और फोन करने के लिए चला गया ।
मेजर और अशोक आधे घंटे तक उन लोगों के सूटकेस और उनका दूसरा सामान छानते रहे लेकिन कोई भी मतलब की चीज हाथ न लगी । एक सूटकेस में डेढ़ हजार रुपए के करेंसी नोट मिले |
पुलिस विभाग का डाक्टर आ गया और दोनों लाशों का निरीक्षण करने लगा जो एक साथ रख दी गई थीं । मेजर उन लोगों का हुलिया दिमाग में बिठाता रहा । फिर उसने इन्स्पेक्टर दामले की ओर मुंह फेरकर कहा, "मैं समझता हूं कि हमें अभी एक लाश और मिलेगी। तीन बड़े-बड़े सूटकेस हैं और इनके तीन भिन्न-भिन्न साइज के कपड़े हैं।"
"तीसरा आदमी कहां है ? " इन्स्पेक्टर ने पूछा।
"मेरे साथ चलिए । शायद हम उसे या उसकी लाश ढूंढ़ने में सफल हो यह कह्कर मेजर दरवाजे की ओर बढ़ा । सीढ़ियों में बहुत से लोग खड़े थे। पेड़ की ओर बढ़ा जिस पर से किसी ने क्रोकोडायल पर चाकू फेंका था। ठीक उसे मेजर को क्रोकोडायल का ख्याल आया जिसको वह इस हंगामे में भूल गया था। क्रोकोडायल कहीं नजर नहीं आ रहा था। मेजर परेशान हो गया। उसने अशोक को क्रोकोडायल की तलाश में जाने को कहा।
मेजर उस पेड़ की घनी शाखाओं पर टार्च की रोशनी फेंक रहा था।
इंस्पेक्टर दामले कह उठा — "वह मोटे तने पर कोई लेटा हुआ है।"
मेजर की नज़र भी उस तने पर पड़ी और उसने कहा, "यही आपकी तीसरी लाश है।" मेजर ने टार्च बुझा दी और इन्स्पेक्टर से कहा, "आओ वापस चलें । तीन चार कांस्टेबल भेजकर वह लाश भी पेड़ से उतरवा लीजिए।"
मेजर ने रास्ते में इन्स्पेक्टर को यह किस्सा सुनाया कि इन लोगों से किन परिस्थितियों में उसकी भेंट हुई थी और उसने क्यों उनका पीछा किया था । मेजर ने उसे दिल्ली में दीवान, सुरेन्द्रनाथ की हत्या और दीवान साहब की बेटी कामिनी के लापता हो जाने की बात नहीं बताई। उसने अपनी कहानी को प्रदीप और उसकी बहन शुभदा की मुसीबत तक सीमित रखा । इन्स्पेक्टर उस कहानी से सन्तुष्ट न हुआ तो मेजर ने कहा, "मैं आज रात वापस दिल्ली चला जाऊंगा | सावधानी के लिए मैं अभी आपको बस इतनी ही बातें बता सकता हूं | दो या तीन दिन के बाद मैं वापस बम्बई आ जाऊंगा । उस समय आप मुझसे जो कहानी सुनेंगे वह बड़ी भयानक होगी।"
इसके बाद मेजर ने इन्स्पेक्टर को यह परामर्श दिया कि वे प्रदीप और उसकी बहन को शिवाजी पार्क वाले मकान से निकालकर ४३ ए, वार्डन रोड पहुंचा दें ताकि वे 'स्वतन्त्रता का अनुभव कर सकें । उनको यह भी विश्वास दिला दें कि अब उनको कोई परेशान नहीं करेगा।
मेजर को उस समय एक और बात याद आ गई । वह सोचने लगा कि कुछ मिनट में पुलिस का फोटोग्राफर भी पहुंच जाएगा। क्यों न वह उन लोगों के फोटो की फिल्म अपने साथ दिल्ली ले जाए जो अशोक की गोलियों से हलाक हो चुके थे। दिल्ली में फिल्म डेवलप करवाने के बाद प्रिण्ट निकलवा लिए जाएंगे। उसने अपना यह प्रस्ताव इन्स्पेक्टर दामले के सम्मुख रखा। इन्स्पेक्टर ने उसकी बात मान लो ।
दोनों एक बार फिर उसी बिल्डिंग की ओर चल पड़े जिसको ऊपर की मंजिल वाले फ्लैट में दो लाशें पड़ी थीं| अशोक उन्हें रास्ते में मिला । उसने क्रोकोडायल को गोद में उठा रखा था। क्रोकोडायल 'कूं-कूं' कर रहा था और भौंक नहीं रहा था ।
"यह तुम्हें कहां मिला ? " मेजर ने पूछा।
"बिल्डिंग के पीछे एक कोने में दुबका बैठा था...।" अशोक ने उत्तर दिया, "कुछ ज्यादा ही घायल हो चुका है।"
मेजर के मन में एक ख्याल उभरा। जिस चाकू से क्रोकोडायल पर हमला किया गया था कहीं वह विषैला न हो। इस ख्याल के साथ ही मेजर कांप उठा । उसे क्रोकोडायल बहुत प्रिय था। उसने अशोक से कहा, "तुम टैक्सी में क्रोकोडायल को अभी हार्नबी रोड पर कुत्तों के मशहूर डाक्टर आहूजा के पास ले जाओ! मैं आधे घण्टे तक अपने दफ्तर पहुंच जाऊंगा। वहां मैं तुम्हारे फोन का इन्तजार करूंगा कि डाक्टर आहूजा ने क्रोकोडायल के निरीक्षण के बाद क्या राय दी है। तुम्हारा फोन आने पर ही मैं यह फैसला कर सकूंगा कि मुझे आज रात दिल्ली वापस जाना चाहिए या नहीं।"
अशोक के जाने के बाद मेजर भी फोटो-फिल्म लेकर अपने दफ्तर पहुंच गया उसने कुछ चीजें, जो, दिल्ली जाकर काम आ सकती थीं, अपने सूटकेस में रख लीं । फिर वह बड़ी अधीरता के साथ फोन का इंतजार करने लगा। फोन की घण्टी बजी तो मेजर ने कांपते हुए हाथों से रिसीवर उठाकर कान से लगा लिया।
"हैलो" और फिर मेजर ने वेचैनी से पूछा, "अशोक, क्रोकोडायल की तबीयत कैसी है ? "
दूसरी ओर से अशोक की आवाज आई, "घबराने की कोई बात नहीं। चाकू विषैला नहीं था । डाक्टर साहब ने मरहम-पट्टी कर दी है। कुछ दिनों में ही क्रोकोडायल बिल्कुल ठीक हो जाएगा।"
मेजर का बाई काउंट जहाज सुबह पांच बजे दिल्ली के पालम हवाई अड्डे पर उतरा । जब वह साउथ एक्सटेंशन पहुंचा तो सुबह के पौने छः बजे थे । लाला केदारनाथ ने मेजर के लिए दरवाजा खोला । मेजर मेहमानखाने की ओर बढ़ा, सोनिया उसके लिए पहले ही दरवाजा खोल चुकी थी । मेजर ने कमरे में पहुंचकर सूटकेस पलंग के निकट रख दिया। कुछ देर के बाद मेजर ने सोनिया से कहा, "सोनिया, मैं समझता हूं कि मैं बम्बई से सफल लौटा हूं । आज दिन निकलने के बाद हम सब एकदम व्यस्त हो जाएंगे । तुम्हें किसी फोटोग्राफर के पास जाकर फिल्म डेवलप करवानी होगी और एक बजे से पहले मुझे इण्टरनेशनल म्यूजियम में पहुंचा देनी होगी।" मेजर ने अपने सूटकेस से फिल्म निकालकर सोनिया को दे दी।
“यह किनकी तस्वीरें हैं ?"
“अगर ये तस्वीरें गलत नहीं हैं तो दीवान सुरेन्द्रनाथ की हत्या की पहेली हल हो जाएगी । लक्ष्मी से तुम्हारी मुलाकात बहुत ही ठीक रही । सोनिया, मनुष्य बड़ा अत्याचारी जीव है । उसके प्रेम और प्रतिशोध की कोई सीमा नहीं होती । कामिनी के प्रेमी से किसी ने भयानक बदला लिया है— प्रेम करने वाले को अन्धा कर दिया है।"
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