जीतसिंह को सकुशल लौटा पाकर ऐंजो ने चैन की सांस ली।


"क्या हुआ ?" - फिर वो उत्सुक भाव से बोला ।


"बढ़िया हुआ ।" - जीतसिंह टैक्सी में सवार होता हुआ बोला "हमारी फीस बढ़ गई है। अब वो हमें साठ लाख देगा ।”


"तो... वो मान गया ?"


"हां । मुश्किल से माना लेकिन मान गया ।”


"कमाल है। बॉस, तू तो कमाल किया ।"


"लेकिन हमें एक आदमी घटाना पड़ेगा। हमें कार्लो के बिना काम चलाना पड़ेगा । कार्लो की जरुरत मेरे साथ के लिए थी लेकिन मैं महसूस कर रहा हूं कि मैं अपने हिस्से का काम अकेले ही बखूबी कर सकता हूं।"


"आदमी घटाना जरूरी क्यों है ?"


"क्योंकि ऐसा किये बिना मेरा हिस्सा दस लाख नहीं बनता । छ: आदमियों में साठ लाख बटेंगे तो..."


"बॉस, तू हिस्से की फिक्र क्यों करता है ? मैं बोला न कि मेरा हिस्सा तेरा । तू समझता है मैं ऐसे ही बोला ? तेरे को मेरे पर एतबार नहीं ? "


" ऐंजो, मेरे भाई, मुझे तेरे पर पूरा एतबार है । मैं जानता हूं, अपना हिस्सा क्या, तू दोस्त के लिये अपनी जान भी दे सकता है। लेकिन तू मेरा यकीन मान, हमारा काम कार्लो के बिना बखूबी चल सकता है ।”


"हूं । और क्या बात हुई ?"


" और कोई बात नहीं हुई । रकम की अदायगी की बाबत जो बात करनी थी, वो नहीं हो सकी । उसके पास टाइम नहीं था |"


"ओह !"


"लेकिन कल सुबह हम उससे फिर मिल रहे हैं । यही बात करने के लिये । "


"फिर क्या वान्दा है ?" - ऐंजो कुछ क्षण खामोश रहा और फिर मन्त्रमुग्ध स्वर में बोला- "बॉस, तू कुछ भी बोल । आज तू कमाल किया । ऐसे कड़क आदमी को सैट करके दिखा दिया । पूरा एक मिलियन रूपीज बढ़वा लिया । काश, मैं उधर होता और देख पाता कि तू ऐसा कैसे किया ? कैसे तू उसको....


"रात क्या यहीं गुजारने का इरादा है ?"


ऐंजो हंसा । फिर उसने टैक्सी आगे बढ़ा दी ।


***

ठीक आठ बजे जीतसिंह और एडुआर्डो गाडगिल की कोठी पर पहुंच गए ।


"साहब सो रहे हैं ।" - पहले वाले नौकर ने ही उन्हें खबर दी ।


"हमारी उनसे अप्वायण्टमेंट है।" - जीतसिंह बोला- "हम उन्हीं के बुलावे पर यहां आए हैं ।”


" उन्होने आठ बजे आने को बोला था ? "


"हां" 


"मैं पता करता हूं।"


दरवाजा उनके मुंह पर बन्द हो गया ।


"जब" - एडुआर्डो भुनभुनाया - "आठ बजे तक उसका दिन नहीं शुरू होता तो बुलाया क्यों आठ बजे ?"


"रात यहां पार्टी थी ।" - जीतसिंह धीरज से बोला "देर से सोया होगा ।" -


" अब उठेगा भी या कहलवा देगा दोपहर को आना !"


पांच मिनट बाद दरवाजा फिर खुला और नौकर ने उन्हें भीतर आने को कहा । वो उन्हें स्टडी में छोड़ गया जहां कि एग्जीक्यूटिव चेयर पर ड्रैसिंग गाउन लपेटे गाडगिल बैठा था । उसने सिर पर एक बड़ी अजीब-सी शक्ल की टोपी पहनी हुई थी और वो बड़े अनमने भाव से सिगरेट के कश लगा रहा था ।


दोनों ने उसका अभिवादन किया ।


"बैठो।" - गाडगिल बोला ।


दोनों उसके सामने बैठ गए ।


" अब बोलो, क्या कहना चाहते हो ?"


“रकम की अदायगी कैसे होगी ?" - जीतसिंह बोला ।


"कैसे होगी क्या मतलब ?" - गाडगिल हकबकाया-सा बोला "वैसे ही जैसे होती है । "


"कैसे होती है ?"


'भई, तुम हमें माल ला के दोगे, हम तुम्हें वो पैसा देंगे जिसका हमने तुम से करार किया है । "


“साठ लाख ?"


“हां । अब साठ लाख । कल तुमने हद कर दी दुकानदारी की जो हमसे रकम बढ़वा ली । हमें अभी तक अफसोस है कि हम मान गए । हमारे पास वक्त की कमी न होती, हमें मेहमानों को अटेण्ड न करना होता तो... खैर, अब जो बोल दिया, बोल दिया । हां, साठ लाख ।"


"जो कि आप हमें फौरन देंगे। इस हाथ ले, उस हाथ दे की तरह ?"


" ऐसा तो नहीं हो सकता ।"


जीतसिंह ने एडुआर्डो की तरफ देखा ।


"लेकिन, सर" - एडुआर्डो बोला- "मेरी तो आपसे ये ही बात हुई थी ?"


"क्या बात हुई थी ?"


"कि आप रकम फौरन अदा करेंगे।”


"वहम है तुम्हारा । ऐसा हमने कभी नहीं कहा था । ऐसा हो भी नहीं सकता ।"


"क्यों नहीं हो सकता ?"


"क्योंकि वो मूर्तियां हमने आगे किसी को सौंपकर उससे रकम हासिल करनी है। जब हमें रकम हासिल होगी तो ही हम तुम्हें आगे रकम अदा करेंगे ।"


"जो रकम आपको हासिल होगी, जाहिर है, कि वो हमें हासिल होने वाली रकम से कई गुणा ज्यादा होगी !"


"जाहिर है । व्यापार ऐसे ही होता है । "


"आपका ग्राहक कौन है ? "


"ये हम तुम्हें कैसे बता सकते हैं ?"


"क्या हर्ज है ?"


"हर्ज ही हर्ज है। एक तो इस बात से तुम लोगों को कोई मतलब ही नहीं होना चाहिए । दूसरे ग्राहक पता लग जाने पर तुम लालच में पड़ सकते हो और माल हमारे पास लाने की जगह उससे सीधे सौदा कर सकते हो ।"


"हमारी ऐसी कोई मंशा नहीं । "


" अब नहीं होगी लेकिन माल हाथ में आ जाने के बाद हो सकती है ।"


"नहीं होगी ।"


"फिर तुम हमारे ग्राहक का पता क्यों जानना चाहते हो ?" 


" ताकि हम तसदीक कर सकें कि ऐसा कोई ग्राहक सच में है ।”


"क्यों ? क्यों तसदीक कर सकें ?"


"साहब, ये ये पैसे का मामला है । पैसे का हमें कहीं वजूद दिखाई देगा तो तभी तो हमारी जान में जान आएगी और हमें यकीन होगा कि वो हमें मिल जाएगा।"


"तुम्हारे यकीन के लिए हम जो बैठे हैं । "


"फिर आपको हाथ के हाथ नकद भुगतान करने से क्या एतराज है ? आपकी इतनी बड़ी हस्ती है। आपके लिए साठ लाख रुपया क्या बड़ी रकम है !"


"अरे, रकम कहीं भागी जा रही है ? या तुम्हें हमारे पर बेएतबारी है ?"


"सवाल बेएतबारी का नहीं, साहब" - जीतसिंह विनयशील स्वर में बोला- "दस्तूर का है । हम पहले तो इसी बात से आपसे दबे हुए हैं कि हमें आपसे कोई एडवांस हासिल नहीं हो रहा । ऊपर से काम हो जाने के बाद भी अदायगी का अभी इन्तजार ही करना पड़ा तो ये तो उधार में डकैती डालने वाला काम हो गया ।”


"तुम खामखाह बात का बतंगड़ बना रहे हो । जब मैं कह रहा हूं...."


"आप हमें आधी रकम एडवांस दे दीजिए, फिर बाकी रकम का आप जब तक कहेंगे, हम इन्तजार कर लेंगे । "


"अच्छा ! एडवांस दे दें तुम्हें ! वो भी तीस लाख की रकम । ताकि तुम्हें डकैती डालना ही गैरजरूरी लगने लगे । इतनी बड़ी रकम फोकट में हाथ आ जाने पर हमें जरुर ही दोबारा कभी तुम्हारी सूरत देखने को मिलेगी ।"


"हम बेईमान नहीं ।”


" तो क्या हम बेईमान हैं ?"


"साहब जब आपको हमारा एतबार नहीं तो हम क्योंकर आपका एतबार कर पाएंगे ?"


"क्या !"


“गुस्ताखी की माफी के साथ अर्ज कर रहा हूं, साहब, कि जो बात हमारे पर लागू होती है, वो आप पर भी तो लागू होती है । आप भी तो एक बार मूर्तियां हाथ आ जाने के बाद हमारी सूरत पहचानने से इन्कार कर सकतें हैं । हम... "


"तुम" - गाडगिल आंखें निकालता हुआ बोला- "हमारी और अपनी औकात को एक करके आंक रहे हो ?"


"... थाने में रिपोर्ट लिखाने तो नहीं जा सकते" - जीतसिंह यूं कहता रहा जैसे उसने गाडगिल की बात सुनी ही न हो कि हमने आपको चोरी का माल सौंपा जिसे कि आप फोकट में डकार गए ।'


"शट अप !"


जीतसिंह विचलित न हुआ, अलबत्ता एडुआर्डो ने बेचैनी से पहलू बदला |


"जानते हो कहां बैठे हो और किससे बात कर रहे हो ! ज्यादा उल्टी-सीधी हांकोगे तो गिरफ्तार करा देंगे।"


"गिरफ्तार करा देंगे ?" - जीतसिंह बोला - "क्या किया है हमने ?"


"करने तो जा रहे हो ?"


"कौन कहता है ?"


गाडगिल हड़बड़ाया । "ओह ! तो ये पैंतरे हैं । " जीतसिंह खामोश रहा ।


"तुम तो हमारी उम्मीद से कहीं ज्यादा पहुंचे हुए निकले । लेकिन तुम अभी मुकर सकते हो । कैसीनो लूट चुकने के बाद नहीं मुकर पाओगे । तब सिर्फ हमें मालूम होगा कि किन लोगों ने मार्सेलो के कैसीनो को लूटा था ।"


"आप समझते हैं कि मार्सेलो उस लूट की पुलिस में रिपोर्ट लिखाएगा ?"


"क्यों नहीं लिखवाएगा ?"


"हरगिज नही लिखाएगा ! लिखाएगा तो उसका धन्धा चौपट हो जाएगा । इतने पैसे वाले लोग कैसीनो के क्लायन्ट हैं । वो क्या ऐसी जगह अपनी जान और माल को महफूज समझेंगे जहां कि डाका पड़ सकता हो ? वो क्या ऐसी जगह दोबारा कदम रखेंगे ?"


गाडगिल हकबकाया ।


“साहब, मार्सेलो का कितना भी नुकसान क्यों न हो जाए, वो डाके की बात अपनी जुबान पर लाना अफोर्ड नहीं कर सकेगा ।"


"हम मार्सेलो को डाके की बाबत खबरदार कर सकते हैं।"


"जरूर कर सकते हैं। लेकिन उससे आपका ही नुकसान होगा ।"


"हमारा नुकसान !'


“जी हां । अब हम इस बात को बखूबी समझते हैं कि उन मूर्तियों की आपको हमसे ज्यादा जरूरत है।"


"हूं।"


"और फिर आप सिर्फ मार्सेलो को खबरदार कर सकते हैं, उसे ये नहीं बता सकते कि डकैती कैसे पड़ेगी। क्योंकि ये बात आप खुद नहीं जानते । "


"तुम.... तुम चाहते क्या हो ?"


“हम चाहते हैं कि ये बात एडवांस में स्थापित हो कि हमें अदा करने के लिए रकम आपके पास है।"


"क्या ! यानी कि अब तुम्हारी हमारी हैसियत को ललकारने की मजाल हो रही है !"


"हैसियत वाले लोगों के ढोल में ही अमूमन पोल निकलती है, साहब ।"


वो सकपकाया, उसने घूरकर जीतसिंह को देखा और उसे विचलित होता न पाकर बोला- "लगता है किसी ने तुम्हें हमारी बाबत भड़काया है।"


" ऐसी कोई बात नहीं ।"- जीतसिंह सहज भाव से बोला ।


"तुम क्या चाहते हो कि तुम्हारी तसल्ली के लिये हम अभी साठ लाख के नोट तुम्हारे सामने मेज पर रखें ?"


"सच पूछिए तो ऐसा ही कुछ चाहते हैं हम ।”


"रकम का नजारा कर लेने से रकम तुम्हारी हो जाएगी ।" 


"नहीं ।"


"तो ?"


“आप रकम हमारी अमानत के तौर पर किसी के पास रखवाएंगे।"


" किसके पास ?"


"किसी बिचौलिये के पास ।”


 "और वो बिचौलिया" - गाडगिल व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला . "तुम्हारा चुना हुआ होगा !"


“जी नहीं । वो बिचौलिया हम दोनों का चुना हुआ होगा । वो बिचौलिया कोई शख्स नहीं, कोई लोकल बैंक होगा ।"


"क्या मतलब?"


“आप बैंक में अपने नाम से एक बड़ा-सा लॉकर लेंगे जिसमें आप हमारे सामने साठ लाख रुपया बन्द करेंगे और लॉकर की चाबी हमें सौंप देंगे।"


"ताकि हमारे पीठ फेरते ही तुम लॉकर खोलकर रकम निकाल लो ।”


"ऐसा हम कैसे कर सकेंगे ? लॉकर तो आपके और सिर्फ आपके नाम होगा । बैंक वाले हमें तो उसके करीब भी नहीं फटकने देंगे लेकिन" - जीतसिंह एक क्षण ठिठका और फिर बड़े अर्थपूर्ण स्वर में बोला - "जब चाबी हमारे पास होगी तो उसे आप भी नहीं खोल सकेंगे ।"


“हम कह सकते हैं कि हमारे से चाबी गुम हो गई थी इसलिए हमें डुप्लीकेट चाबी दरकार थी । "


" बैंक के लॉकर की डुप्लीकेट चाबी नहीं मिलती।”


"लेकिन भई, चाबी सच में गुम हो सकती है। ऐसे में..."


"ऐसे में बैंक वाले लॉकर सप्लाई करने वाली कम्पनी को बुलाते हैं जो कि लॉकर को तोड़कर खोलती है और उस पर नया ताला फिट करके नई चाबी लॉकर के मालिक के लिये मुहैया करती है ।"


"तुम तो बहुत कुछ जानते हो इस बारे में।"


"उस सारे काम में बहुत वक्त लगता है, साहब । आपको नई चाबी हासिल होने से बहुत पहले मूर्तियां हमारे पास होंगी । तब आप ही ऐसी कोई हरकत करना जरूरी नहीं समझेंगे । "


"हूं । अगर हम ऐसा करने से इन्कार करें तो ?"


"तो आपका और हमारे सौदा कैन्सल ।”


"तुम मूर्तियों का क्या करोगे ? समझते हो कि सौदा कहीं और कर लोगे ?"


"वो जब वक्त आएगा तो हम देख लेंगे । "


"तुम्हें ग्राहक नहीं मिलने का । मूर्तियों को पिघलाकर सोने के भाव बेचने की कोशिश करोगे तो जितनी रकम मेरे से मिल रही है, उससे आधी भी नहीं मिल पाएगी ।”


“वो हमारा सिरदर्द है । आप फिलहाल ये बताइये कि अब आपका जवाब क्या है ?"


"अगर तुम लोग पकड़े गए तो ?"


"तो आपका क्या जाएगा ? आपका पैसा आपके पास होगा । सिर्फ नई चाबी हासिल करने की थोड़ी जहमत आपको करनी पड़ेगी ।”


" यानी कि हमारा नाम जुबान पर नहीं लाओगे ?"


"हरगिज नहीं लाएंगे।"


'लाएंगे भी" - मौन श्रौता एडुआर्डो ने मुंह खोला - "तो कौन हमारी बात पर विश्वास करेगा।"


"हूं।"


" यूं ही किसी का नाम ले देने से क्या होता है ?" - जीतसिंह बोला - “कोई सुबूत भी तो होना चाहिये ।”


“जो कि नहीं हैं।" - एडुआर्डो बोला ।


" बैंक में लॉकर मिलना आसान काम नहीं होगा ।" - गाडगिल बोला ।


"आप बाहैसियत आदमी हैं।" - जीतसिंह बोला - "आप जरुर कोई न कोई जुगाड़ कर लेंगे । "


"बाम्बे मार्केटाइल बैंक का मैनेजर दोस्त तो है हमारा । " "फिर क्या बात है !"


"ठीक है। आज हम लॉकर का इन्तजाम करते हैं, फिर परसों तक हम रुपये का इन्तजाम भी कर लेंगे ।"


"परसों तक ?"


" साठ लाख की रकम कोई जेब में तो नहीं रखी होती । इन्तजाम करने में टाइम लगता है। फिर ये न भूलो कि कल इतवार की छुट्टी है !"


"ठीक है । परसों ।”


"तुम लोग अपना कदम कब उठाओगे ?"


"जिस रोज लॉकर में साठ लाख रुपये होंगे और लॉकर की चाबी हमारे हाथ में होगी, उसी रात को ।”


"ऐसा सोमवार हो जाएगा। कोई बहुत ही दिक्कत आन पड़ी तो मंगलवार यकीनन हो जाएगा।"


"ठीक है । हम सोमवार आप से फिर मिलेंगे।"


गाडगिल ने सहमति में सिर हिलाया, वो कुछ क्षण खामोश रहा और फिर बोला - "एक बात तो माननी पड़ेगी, बद्री कि तुम किसी बहुत ही शातिर उस्ताद के पढ़ाए हुए शागिर्द हो ।”


"मेरा उस्ताद कोई एक नहीं, कई हैं, साहब | "


"मसलन कौन ?"


"मसलन गरीबी । मजबूरी | बुरा वक्त | बेकाबू ख्वाहिशात । बेहिसाब जहमतें ।"


"छोड़ो, छोड़ो। तुम तो शायरी करने लगे ।"


फिर एकाएक वो उठ खड़ा हुआ ।


जो कि मीटिंग के समापन का संकेत था ।


"तुमने तो कमाल कर दिया।" - बाहर सड़क पर आकर एडुआर्डो प्रशंसात्मक स्वर में बोला- "बातों में इतने बड़े आदमी को पानी पिला दिया । रकम की अदायगी का ऐसा अनोखा तरीका सोच लिया जोकि मुझे तो सालोंसाल न सूझ पाता । न सिर्फ सोच लिया, उसे मनवा भी लिया।"


"वो जरूरी था ।" - जीतसिंह गम्भीरता से बोला - "बकौल धनेकर, अगर उसकी माली हालत आजकल सच में खराब थी तो हमें धोखा हो सकता था। धोखा न भी होता तो रकम की अदायगी में बहुत देर लग सकती थी जबकि अगले इतवार से पहले मुझे हर हाल में दस लाख रुपये चाहिए ।”


"जोकि तू बताएगा नहीं कि क्यों चाहिएं ?"


जीतसिंह खामोश रहा ।


"अगर उसकी माली हालत खराब है" - एडुआर्डो बोला "तो साठ लाख का आनन-फानन इन्तजाम वो कैसे करेगा ?" -


" जैसे भी करेगा, करेगा । वो उसकी सिरदर्द है। हो सकता है कि जो एडवांस हमें उससे हासिल नहीं हो रहा, वो उसे अपने ग्राहक से हासिल हो । "


“न हुआ तो ?”


"तो क्या ?"


"तो क्या हम अपनी स्कीम पर अमल करेंगे ?"


"हर हाल में करेंगे। उसके इन्तजाम का या उसकी हां न का हम मंगलवार से आगे इन्तजार नहीं करेंगे। उसकी कोई टालमटोल भी हम आगे नहीं सुनेंगे । बहरहाल अपने खुदा से दुआ मांगो कि हमें वाल्ट से नाउम्मीद न होना पड़े।”


" यानी कि कामयाबी की दुआ मांगने की कोई जरूरत नहीं । वो तो हम होंगे ही !”


"होना पड़ेगा । न तो पाये तो और किसी का कुछ जाए या न जाए, मेरा सर्वनाश जरूर हो जाएगा ।"


"ऐसा नहीं होगा, बेटा ।" - एडुआर्डो भर्राए कंठ से बोला - "सेंट फ्रांसिस तेरी लाज रखेगा। हम जरूर कामयाब होंगे । मैं आसमानी बाप से दुआ करूंगा कि तेरी हर ख्वाहिश पूरी हो - वो खासतौर से जिसके लिए तुझे दस लाख की जरूरत है।"


जीतसिंह जज्बाती हुए बिना न रह सका । उसकी आंखें नम हो गई और गला भर आया। उसने जानबूझकर एडुआर्डो की तरफ से मुंह फेर लिया ।


***

सहर एयरपोर्ट पर प्लेन से उतरते ही गाडगिल सबसे पहले एक पब्लिक टेलीफोन पर पहुंचा। वहां से उसने एक लोकल नम्बर डायल किया और जवाब मिलने की प्रतीक्षा करने लगा ।


बड़ी मुश्किल से वो पणजी से बम्बई की हवाई जहाज की रिटर्न टिकट का इन्तजाम कर पाया था ।


उस घड़ी ढाई बजने को थे और उसके सामने अहमतरीन सवाल ये था कि जहांगीर ईरानी से उसकी वो उम्मीद पूरी होगी या नहीं जिसे लेकर वो आनन-फानन गोवा से बम्बई आया था ।


तभी दूसरी तरफ से फोन उठा लिया गया ।


"गाडगिल बोल रहा हूं।" - वो बोला । "गाडगिल !" - जवाब मिला- "कहां हो ?" "आपके शहर में । एयरपोर्ट पर । अभी पहुंचा हूं।" "फोन कैसे किया ?"


"फोन कैसे किया ! आपसे मिलने आया हूं । खास... खास आपसे मिलने आया हूं।"


"आई सी । कोई खास बात ?"


"हां । खास ही है बात। मैं सीधा आपके पास आ रहा हूं । घर पर ही रहना । कहीं चले न जाना । इसीलिये फोन किया ।”


"ठीक है ।"


लाइन कट गई ।


गाडगिल एयरपोर्ट से एक टैक्सी पर सवार हुआ और सीधा गोखले रोड पहुंचा जहां की एक चौदहमंजिली इमारत के टॉप फ्लोर पर ईरानी का फ्लैट था ।


कालबैल की आवाज में दरवाजा खुद ईरानी ने खोला ।


वो एक कोई साठ साल का लम्बा ऊंचा, हट्टा-कट्टा आदमी था जो उस घड़ी घर में भी यूं सजा-धजा मौजूद था जैसे किसी पार्टी पर रवाना होने वाला हो ।


"आओ, बिरादर ।" - वो जबरन मुकराता हुआ बोला "इतनी जहमत करके आए हो तो... खुशामदीद ।"


“आना जरूरी था ।" - गाडगिल फ्लैट में कदम रखता हुआ बोला - " बात ऐसी थी कि फोन पर नहीं की जा सकती थी ।”


"यहां पहुंचकर फोन किया । रवानगी से पहले फोन करना चाहिए था । हो सकता था मैं बम्बई से कहीं बाहर गया हुआ होता ।"


"शुक्र है ऐसा नहीं हुआ है । " "मैं अभी लंच करके हटा हूं।"


"ये आप मुझे इसलिए बता रहे हैं कि आप मुझे लंच ऑफर नहीं कर सकते तो खातिर जमा रखिए, मुझे उसकी जरूरत नहीं ।"


"गुड । फिर तो आओ बाल्कनी में बैठते हैं और समुद्र का नजारा करते हैं । "


ड्राइंगरूम लांघकर वो उसके साथ विशाल बाल्कनी में पहुंचा जहां कई तरह के पौधे और फूलों के गमले सजे हुए थे । ईरानी एक ईजी चेयर पर ढेर हो गया और दूसरी की तरफ इशारा करता हुआ बोला - "बैठो।”


"शुक्रिया ।"


"अब बोलो क्या बात है जो तुम फोन पर नहीं कर सकते थे ?"


"मुझे पैसे की जरूरत है ।”


"किसको नहीं है ? सारी दुनिया को है । "


" सारी दुनिया की मुझे खबर नहीं लेकिन मेरी जरूरत आप पूरी कर सकते हैं।'


"नहीं कर सकता । इसीलिये आये हो तो बेकार आये हो । बहरहाल आमद का शुक्रिया । जाती बार दरवाजा बन्द करते जाना । मेरे से बार-बार नहीं उठा जाता ।"


"बड़े बेमुरव्वत यार हैं आप !"


"यार !"


"पैसा मुझे मूर्तियों के लिए चाहिए । हालत ऐसा पैदा हो गए हैं कि पैसे बिना मूर्तियां नहीं मिल सकतीं ।"


"वो तुम्हारी प्रॉब्लम है । इस बाबत जो भी बात जरूरी थी, वो हमारे में पहले ही हो चुकी है। भूल गए हो तो याद दिला देता हूं । मूर्तियां लाओ । पैसा ले जाओ ।”


"वो क्या है कि जिन लोगों ने मूर्तियों पर हाथ डालना है वो....'


"वो कौन हैं, क्या चाहते हैं, मैं नहीं सुनना चाहता । मेरा उन बातों से कोई लेना-देना नहीं । जब मूर्तियां तुम्हारे पास होंगी तो मैं तुमसे सवाल नहीं करूंगा कि तुमने वो कैसे हासिल कीं, किससे हासिल कीं ।”


“मिस्टर ईरानी, जो अड़ंगा एकाएक आन खड़ा हुआ है, उनका जिक्र मौजूदा हालात में जरूरी है। वो लोग इस बात का सुबूत चाहते हैं कि मूर्तियों की एवज में उन्हें देने के लिये मेरे पास रुपया है । मैं ये सुबूत पेश नहीं करूंगा तो वो काम नहीं करेंगे ।"


"बड़े अफसोस की बात है । "


"मेरा उनसे करार हुआ है कि सोमवार या बड़ी हद मंगलवार तक मैं उनके सामने पणजी के किसी बैंक के लॉकर में रकम बन्द करूंगा और चाबी उन्हें सौंप दूंगा ।"


"वैरी क्लैवर ।"


"लेकिन मेरे पास रकम नहीं है । "


"वैरी बैड ।"


"रकम की बाबत जो मैं कर सकता था, कर चुका हूं । सी बी आई की मेरे पर नजर है। उनकी दहशत में मैं वो माल नहीं निकाल सकता जो मैंने अंडरग्राउंड किया हुआ है और उसे आनन-फानन औने-पौने में बेचना शुरू कर देने का हौसला नहीं कर सकता । जो कुछ मैं कर सकता था, वो मैंने किया है और कुछ रकम खड़ी की है लेकिन वो काफी नहीं । मुझे अभी भी कम-से-कम पैंतीस लाख रुपया और चाहिये ।"