इमरान ने बारतोश को हैरत से देखा जो ज़मीन पर घुटनों के बल बैठा, एक नन्हे-से पौधे पर झुका हुआ था; शायद उसे सूँघ रहा था।

फिर शायद बारतोश ने भी इमरान को देख लिया। उसने सीधे खड़े हो कर अपने कपड़े झाड़े और मुस्कुरा कर बोला—

‘मुझे ज़डी-बूटियों का बेहद शौक़ है।’

‘अच्छा!’ इमरान ने हैरत ज़ाहिर की, ‘तब तो आप उस बूटी से ज़रूर वाक़िफ़ होंगे जिसे खा कर आदमी कुत्तों की तरह भौंकने लगता है।’

बारतोश मुस्कुरा पड़ा। उसने कहा, ‘मेरा ख़याल है कि मैंने किसी ऐसी बूटी के बारे में आज तक नहीं सुना।’

‘नहीं सुना होगा...लेकिन मैंने सुना है। मुझे जड़ी-बूटियों से इश्क़ है।’

‘ओहो!’ बारतोश ने आश्चर्य व्यक्त किया। ‘अगर यह बात है तो आप ज़रूर मेरी मदद करेंगे।’

‘मदद?’ इमरान उसे टटोलने वाली नज़रों से देखने लगा।

‘हाँ! एक बूटी की तलाश ही मुझे सोनागिरी लायी है।’ बारतोश बोला। ‘अगर वह मिल जाये...’

इमरान ने पहली बार उसके चेहरे से गम्भीरता को छँटते देखा। उसकी सपाट आँखों में हल्की-सी चमक आ गयी थी और एक पल के लिए ऐसा मालूम हुआ जैसे वह किसी बच्चे का चेहरा हो।

‘अगर वह बूटी मिल जाये!’ बारतोश ने गला साफ़ करके कहा, ‘मैंने सुना है कि वह यहाँ किसी जगह पर ख़ूब मिलती है।’

‘लेकिन उसकी ख़ासियत क्या है?’ इमरान ने पूछा।

‘अभी नहीं...अभी नहीं, मैं फिर बताऊँगा!’

‘ख़ूब!’ इमरान कुछ सोचने लगा। फिर उसने कहा, ‘क्या सोना बनता है उससे?’

‘ओह...तुम समझ गये!’ बारतोश ने क़हक़हा लगाया।

‘बूटी की पहचान क्या है?’ इमरान ने पूछा।

‘पूरे पौधे में सिर्फ़ तीन पत्तियाँ होती हैं...गोल-गोल-सी!’

‘हम ज़रूर तलाश करेंगे।’ इमरान ने सिर हिला कर कहा।

वे कर्नल की कोठी से ज़्यादा फ़ासले पर नहीं थे। बारतोश ने एक फ़रलाँग लम्बी ढलान की तरफ़ इशारा करके कहा, ‘हमें वहाँ से अपनी तलाश शुरू करनी चाहिए। लम्बी पत्तियों वाली काँटेदार झाड़ियाँ वहाँ बड़ी तादाद में दिखाई दे रही हैं।’

‘मगर अभी तो गोल पत्तियों की बात थी।’ इमरान बोला।

‘ओह...ठीक है! वह बूटी दरअस्ल ऐसी ही झाड़ियों के क़रीब उगती है!’ बारतोश ने कहा।

वे दोनों ढलान में उतरने लगे।

‘अनवर साहब कहाँ हैं?’ बारतोश ने पूछा।

‘मैं नहीं जानता!’

‘मैं जानता हूँ!’ बारतोश मुस्कुरा कर बोला,‘वे कर्नल ज़रग़ाम की गुमशुदगी की रिपोर्ट करने गये हैं।’

‘क्या?’ इमरान चलते चलते रुक गया।

‘हाँ! उन्होंने मुझसे यही कहा था।’

‘बेड़ा ग़र्क हो गया!’ इमरान अपने माथे पर हाथ मार कर बोला।

‘आख़िर इसमें हर्ज ही क्या है? मैं नहीं समझ सकता।’

‘आप कभी नहीं समझ सकते मिस्टर बारतोश!’ इमरान ज़मीन पर उकड़ूँ बैठता हुआ बोला। फिर उसने दोनों हाथों से अपना सिर पकड़ लिया। किसी ऐसी विधवा औरत की तरह जिसकी बीमा की पॉलिसी ज़ब्त कर ली गयी हो।

‘आप बहुत परेशान नज़र आ रहे हैं।’ बारतोश बोला।

‘रंग में भंग हो गया...प्यारे मिस्टर बारतोश!’

‘क्या हुआ?’

‘कुछ नहीं...’ इमरान बोला, ‘अब यह शादी हरगिज़ न हो सकेगी।’

‘कैसी शादी?’

‘कर्नल ज़रग़ाम की शादी?’

‘साफ़-साफ़ बताइए!’ बारतोश उसे घूरने लगा।

‘वे अपनी लड़की से छुपा कर शादी कर रहे हैं।’

‘ओह...तब वाक़ई...’ बारतोश कुछ कहते कहते रुक गया। वह चन्द लम्हे सोचता रहा फिर हँस कर बोला, ‘मेरा ख़याल है कि कर्नल काफ़ी बूढ़ा होगा...बुढ़ापे की शादी बड़ी बेमज़ा चीज़ है...मुझे देखिए, मैंने आज तक शादी ही नहीं की...’

‘यह बहुत अच्छी बात है!’ इमरान सिर हिला कर बोला, ‘हम शायद किसी बूटी की तलाश में नीचे जा रहे थे।’

‘ओह...हाँ!’ बारतोश ने कहा और फिर वे ढलान में उतरने लगे। नीचे पहुँच कर उन्होंने बूटी की तलाश शुरू कर दी। इमरान बड़े ध्यान से काम में लगा था। ऐसा मालूम हो रहा था जैसे वह ख़ुद ही बारतोश को उस काम के लिए अपने साथ लाया हो। वे कोठी से काफ़ी दूर निकल आये थे और कुछ इस क़िस्म की चट्टानें बीच में यकायक आ गयी थीं कि कोठी भी नज़र नहीं आ रही थी।

‘मिस्टर बारतोश!’ इमरान एकाएक बोला, ‘अभी तो हमें एक भी ख़रगोश नहीं दिखाई दिया...मेरा ख़याल है कि इस तरफ़ ख़रगोश पाले ही नहीं जाते।’

‘ख़रगोश!’ बारतोश ने हैरत से कहा।

‘बेकार है! वापस चलिए!’ इमरान बोला, ‘मुझे पहले ही सोचना चाहिए था। यहाँ ख़रग़ोश बिलकुल नहीं हैं।’

‘हम बूटी की तलाश में आये थे!’ बारतोश ने कहा।

‘ओह...लाहौल विला क़ूवत...मैं अभी तक ख़रगोश तलाश करता रहा।’ इमरान ने बुरा-सा मुँह बनाया।

लेकिन वह वास्तव में अपने आस-पास से बेख़बर नहीं था। उसने दायीं हाथ वाली चट्टान के पीछे से तीन सिर उभरते देख लिये थे।

बारतोश की नज़र पौधों में भटक रही थी।

अचानक पाँच-छ: आदमियों ने चट्टानों की ओट से निकल कर उन्हें घेर लिया। उन्होंने अपने चेहरे नक़ाबों से छुपा रखे थे। उनमें दो के हाथों में रिवॉल्वर थे।

‘यह क्या है?’ बारतोश ने बौखला कर इमरान से पूछा।

‘पता नहीं!’ इमरान ने लापरवाही से अपने ही कन्धे हिलाये।

‘क्या चाहते हो तुम लोग?’ अचानक बारतोश चीख़ कर उन लोगों की तरफ़ झपटा। लेकिन दूसरे ही पल एक आदमी ने उसके माथे पर मुक्का रसीद कर दिया और बारतोश इस तरह गिरा कि फिर न उठ सका। शायद वह बेहोश हो गया था।

‘चलो, बाँध लो उसे!’ एक ने इमरान की तरफ़ इशारा करके अपने साथियों से कहा।

‘एक मिनट!’ इमरान ने हाथ उठा कर कहा। वह कुछ देर उन्हें घूरता रहा फिर बोला, ‘मैं झूठ बोल रहा था। यहाँ ख़रग़ोश पाये जाते हैं।’

‘क्या बकवास है?’

‘जी हाँ।’

‘पकड़ो इसे!’ उसने फिर साथियों को ललकारा।

‘बस एक मिनट!’ इमरान ने कहा, ‘मैं ज़रा वक़्त देखलूँ...मुझे डायरी लिखनी पड़ती है।’

उसने अपनी कलाई पर बँधी हुई घड़ी की तरफ़ देखा और फिर मायूस अन्दाज़ में सिर हिला कर बोला, ‘मुझे अफ़सोस है कि घड़ी बन्द हो गयी। अब आप लोग फिर कभी मिलिएगा!’

तीन आदमी उस पर टूट पड़े। इमरान उछल कर पीछे बैठ गया। वह तीनों अपने ही ज़ोर में एक-दूसरे से टकरा गये। फिर एक ने सँभल कर इमरान पर दो बार छलाँग लगायी।

‘अरे-अरे...यह क्या मज़ाक़ है!’ इमरान ने कहते हुए झुक कर उसके सीने पर टक्कर मारी और वह चारों खाने चित गिरा।

‘ख़बरदार...गोली मार दूँगा!’ इमरान ने जेब से फ़ाउण्टेनपेन निकाल कर बाक़ी दो आदमियों को धमकी दी जो उसकी तरफ़ बढ़ रहे थे। उनमें से एक को हँसी आ गयी।

‘हाथ उठाओ अपने!’ रिवॉल्वर वाला गरजा।

इमरान ने चुपचाप अपने दोनों हाथ ऊपर उठा दिये।

उसकी तरफ़ बढ़ते हुए आदमियों में से एक ने अपनी जेब से रेशम की डोर का लच्छा निकाला और जैसे ही उसने इमरान के हाथ पकड़ने की कोशिश की, इमरान ने फ़ाउन्टेनपेन उसके दाहिने बाज़ू पर रख दिया।

वह एकदम चीख़ कर न सिर्फ़ पीछे हट गया, बल्कि उछल कर उन दोनों की तरफ़ भागा जिनके पास रिवॉल्वर थे और फिर उसने एक के हाथ से रिवॉल्वर छीन कर बेतहाशा इमरान पर फ़ायर कर दिया।

फिर उन्होंने इमरान की चीख़ सुनी। वह ज़मीन पर गिर कर ढलान में लुढ़क रहा था।

‘यह क्या किया तूने,’ वह आदमी चीख़ा जिसके हाथ से रिवॉल्वर छीना गया था। फिर वह फ़ायर करने वाले को एक तरफ़ धकेल कर तेज़ी से आगे बढ़ा।

चट्टान के सिरे से आ कर उसने नीचे देखा। उसे इमरान की टाँगें दिखाई दीं। बाक़ी जिस्म एक बड़े से पत्थर की ओट में था। वह तेज़ी से नीचे उतरने लगा।

फिर जैसे ही वह पत्थर पर हाथ टेक कर इमरान की लाश पर झुका, लाश ने दोनों हाथों से उसकी गर्दन पकड़ ली।

हमलावर ने बड़ा ज़ोर मारा मगर उसकी गर्दन इमरान की गिरफ़्त से न निकल सथी अब इमरान उठ कर बैठ गया था। ऊपर दूसरे हमलावर भी चट्टान के सिरे पर आ गये थे।

‘ख़बरदार!...छोड़ दो! वरना गोली मार दूँगा।’ ऊपर से किसी ने चीख़ कर कहा।

इमरान के शिकार पर क़रीब-क़रीब बेहोशी-सी छाने लगी थी, लिहाज़ा उसने यही उचित समझा कि अब उसे अपनी ढाल ही बना ले।

‘मार दो गोली।’ इमरान ने कहा, ‘मगर शर्त ये है कि गोली इसका सीना छेदती हुई मेरे कलेजे के पार हो जाये। या फिर अपने दोनों रिवॉल्वर यहाँ मेरे पास फेंक दो। वरना मैं इसे जन्नत की तरफ़ रवाना कर दूँगा।’

उसकी गिरफ़्त में जकड़े हुए नक़ाबपोश के हाथ-पैर ढीले हो गये थे। ऊपर से किसी ने कोई जवाब न दिया।

इमरान ने फिर हाँक लगाई, ‘तो मैं ख़त्म करता हूँ क़िस्सा।’

‘ठहरो!’ ऊपर से आवाज़ आयी।

‘कितनी देर ठहरूँ? मैंने ऐसा वाहियात बिज़नेस आज तक नहीं किया। भई, इस हाथ ले, उस हाथ ले।’

‘मार दो गोली, परवाह न करो।’ किसी दूसरे ने कहा।

अचानक एक फ़ायर हुआ और वे सब बौखला गये। सामने वाली चट्टानों से किसी ने दो फ़ायर उन पर किये।

उन्होंने भी एक बड़े पत्थर की आड़ ले ली और सामने वाली चट्टानों पर फ़ायर करने लगे। इमरान ने बेहोश आदमी को तो वहीं छोड़ा और ख़ुद एक दूसरे पत्थर की ओट में हो गया जो दोनों तरफ़ के मोर्चों की पहुँच से बाहर था। वह सोच रहा था कि आख़िर दूसरी तरफ़ से फ़ायर करने वाला कौन हो सकता है। क्या कोठी तक इस हंगामे की ख़बर पहुँच गयी। फिर उसे बारतोश का ख़याल आया जिसे वह ऊपर ही छोड़ आया था।

काफ़ी देर तक दोनों तरफ़ से गोलियाँ चलती रहीं। इमरान वैसे ही पत्थर की ओट में छुपा रहा। अगर वह ज़रा भी सिर उठाता तो किसी भी तरफ़ की गोली उसके सिर के परख़चे उड़ा देती। उसके हाथ में अब भी फ़ाउन्टेनपेन दबा हुआ था, लेकिन उसमें निब की बजाय एक छोटा-सा चाक़ू था। इमरान ने जेब से उसका ढक्कन निकाल कर उस पर फ़िट किया और फिर उसे जेब में डाल लिया। अचानक फ़ायर की आवाज़ें बन्द हो गयीं। शायद तीन-चार मिनट तक सन्नाटा रहा। फिर सामने से एक फ़ायर हुआ। लेकिन नक़ाबपोशों की तरफ़ से इसका जवाब नहीं दिया गया। थोड़े-थोड़े अन्तराल से दो-तीन फ़ायर हुए मगर नक़ाबपोशों की तरफ़ ख़ामोशी ही रही।

इमरान रेंगता हुआ पत्थर की ओट से निकला और फिर उस तरफ़ बढ़ा जहाँ उसने बेहोश नक़ाबपोश को छोड़ा था। मगर वह अब वहाँ नहीं था।

उसने अपने पीछे क़दमों की आवाज़ सुनी। वह तेज़ी से मुड़ा। लेकिन दूसरे ही लम्हे उसके होटों पर मुस्कुराहट फैल गयी, क्योंकि आने वाला इन्स्पेक्टर ख़ालिद था।

‘कहीं चोट तो नहीं आयी?’ ख़ालिद ने आते ही पूछा। फिर वह ऊपर की तरफ़ देखने लगा।

‘आयी तो है!’ इमरान ने बिसूर कर कहा।

‘कहाँ?’

जवाब में इमरान ने सीने पर हाथ रखते हुए कहा, ‘यहाँ...क्योंकि मुक़ाबला चन्द पर्दानशीन औरतों से था।’

खालिद हँसता हुआ ऊपर चढ़ने लगा। इमरान उसके पीछे था।

ऊपर उन्हें बेहोश बारतोश के अलावा और कोई दिखाई न दिया। क़रीब ही रिवॉल्वर के बहुत-से ख़ाली कारतूस पड़े हुए थे। ख़ालिद चट्टानें फलाँगता हुआ काफ़ी दूर निकल गया था। इमरान बारतोश पर नज़र जमाये खड़ा रहा।

‘इतनी लम्बी बेहोशी, प्यारे बारतोश!’ इमरान बड़बड़ाया और उसके क़रीब ही इस अन्दाज़ में बैठ गया जैसे कोई औरत अपने शौहर की लाश पर बैन करते-करते थोड़ी देर के लिए खामोश हो गयी हो।

खालिद हाँफता हुआ वापस लौट आया।

‘भाग गये!’ उसने इमरान के क़रीब बैठते हुए कहा। फिर थोड़ी देर बाद बोला, ‘अब आप इनकार नहीं कर सकते।’

‘किस बात से?’ इमरान ने गम्भीर लहजे में पूछा।

‘इसी से कि आप इनसे वाक़िफ़ नहीं हैं।’

‘ओह...मैंने बताया न कि चन्द औरतें...!’

‘इमरान साहब!’ ख़ालिद एतराज़ में हाथ उठा कर बोला, ‘आप क़ानून से टकराने की कोशिश कर रहे हैं। हमें मजबूर न कीजिए कि हम आपके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई कर बैठें।’

‘यार, अक़्ल पर नाख़ून मारो...या जो कुछ भी मुहावरा हो।’ इमरान बेज़ारी से बोला, ‘अगर मैं उन्हें जानता ही होता तो वे पर्दानशीन बन कर क्यों आते? वाह ख़ूब, अच्छा पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं।’

ख़ालिद किसी सोच में पड़ गया।

‘तुम यहाँ तक पहुँचे किस तरह?’ इमरान ने पूछा।

आप की तलाश में कोठी की तरफ़ गया था। वहाँ मालूम हुआ कि आप इधर आये हैं। यहाँ आया तो यह मामला पेश आया। मजबूरन मुझे भी गोलियाँ चलानी पड़ीं।’

‘शुक्रिया!’ इमरान ने संजीदगी से कहा। ‘लेकिन एक बात समझ में नहीं आयी?

‘क्या...’ ख़ालिद उसे घूरने लगा।

‘कोठी यहाँ से बहुत फ़ासले पर नहीं है कि वहाँ तक फ़ायरों की आवाज़ें न पहुँची होंगी।’

‘ज़रूर पहुँची होंगी।’

‘लेकिन फिर भी कोई इधर न आया...हैरत की बात है या नहीं!’

‘है तो।’ ख़ालिद बोला और उसे सन्देह की नज़रों से देखने लगा।

बारतोश दो-तीन बार हल्के से हिला और फिर हड़बड़ा कर उठ बैठा। चारों तरफ़ फटी-फटी आँखों से देख कर उसने आँखें मलनी शुरू कर दीं। फिर उछल कर खड़ा हो गया।

‘वो...वो...लोग...!’ वह इमरान की तरफ़ देख कर हकलाया।

‘वो लोग सारी बूटियाँ खोद कर ले गये।’ इमरान ने गम्भीर लहजे में कहा फिर उठता हुआ बोला, ‘अब हमें वापस चलना चाहिए।’

वे कोठी की तरफ़ चल पड़े। बारतोश सहारे के लिए इमरान के कन्धे पर हाथ रखे लँगड़ाता हुआ चल रहा था।

‘इन्हें क्या हुआ था?’ ख़ालिद ने पूछा।

‘इन्हें बूटी हो गया था।’ इमरान बोला।