इश्क़ है धोखा

माधवी की शादी को कुछ ही दिन बचे थे। वीर और अजय, दोनों ने तय किया कि माधवी को शादी में स्कूटी गिफ़्ट करेंगे। दस दिन के अन्दर स्कूटी ख़रीदनी थी। उसके लिए तकरीबन सत्तर हज़ार रूपए की ज़रूरत थी। दोनों के पास इतने पैसे नहीं थे, फिर भी दोनों पैसे जुगाड़ करने की अपनी पूरी कोशिश कर रहे थे। अजय ने आधे पैसों का इंतज़ाम कर लिया था और वीर के पास भी बीस हज़ार रूपए हो गए थे, लेकिन वीर के पास अभी पन्द्रह हज़ार रूपए कम पड़ रहे थे।

वीर की माया से एक हफ्ते से ठीक से बात नहीं हो पाई थी। जब भी वीर माया को कॉल करता तो माया कहती कि वो बिज़ी है, बाद में बात करेगी। वीर ने माया को फिर कॉल किया।

“कहाँ बिजी रहती है, यार? हमारी बात भी नहीं हो पा रही है।” वीर ने झुंझलाहट से कहा।

“कुछ ख़ास नहीं। बस, घर के काम और कालेज में प्रैक्टिकल के कारण बिज़ी थी।” माया ने जवाब दिया।

“अच्छा सुन, मुझे कुछ पैसों की ज़रूरत है। तुम्हारे पास से जुगाड़ हो सकता है क्या?” वीर ने लड़खड़ाती जुबान से पूछा।

“कितने चाहिए?”

“चाहिए तो पन्द्रह हज़ार लेकिन जितने हो सके, उतने कर देना।” वीर ने कहा।

“ठीक है, मैं करती हूं कुछ। सुन, मुझे तुझसे कुछ urgent बात करनी है।” माया ने कहा।

“हाँ, बोल ना?”

“नहीं फ़ोन पर नहीं। मैं दिल्ली आती हूँ, फिर बताऊँगी।”  माया ने कहा।

“ठीक है दिल्ली तो आ जा, लेकिन घर पर क्या कहेगी?” वीर ने पूछा।

“वो मेरे रोहतक में पेपर है तो चार दिन रोहतक में ही रहना है, तो सोच रही हूँ कि दिल्ली होकर तुमसे मिलते हुए चली जाऊँ।” माया ने कहा।

“ठीक है, तो आजा दिल्ली फिर।” वीर ने कहा।

माया सुबह गुड़गांव के एम.जी. रोड़ मेट्रो स्टेशन पर पहुँच चुकी थी। वहाँ से दोनों मेट्रो से वीर के कमरे पर जाने के लिए निकल पड़े। रास्ते में माया ने वीर से कहा कि उसे फ़िल्म देखनी है। दोनों मेट्रो से उतरे और सीधे सिनेमाघर में पहुँच गए। वहाँ देखा कि ‘बर्फी’ फ़िल्म सिनेमाघरों में लगी हुई थी। वीर ने टिकट काउंटर से फ़िल्म की टिकट ली और दोनों सिनेमाघर के अन्दर चले गए।

फिल्म ख़त्म होने के बाद दोनों वीर के कमरे पर चले गए। माया ने वहाँ जाने के बाद अपने हैंड़बैग से 11,000 रूपए निकालकर वीर को दिए और कहा कि बस इतने ही पैसों का बन्दोबस्त हो पाया। वीर ने पैसे लिए और ‘थैंक्स’ कहा।

वीर ने माया से पूछा कि कल पेपर कितने बजे है? माया ने बताया कि पेपर सुबह 10:00 बजे है तो कल हमें सुबह जल्दी ही निकलना पडेगा।

“कुछ बात करनी थी न तुम्हें बता, क्या बात है? जो फ़ोन पर नहीं बता रही थी।” वीर ने पूछा।

“नहीं, कोई urgent बात नहीं है। बाद में बताती हूँ।” माया ने कहा।

“अरे बता न। अब इतना suspense क्यों बना रही है?” वीर ने फिर पूछा।

“नहीं, बाद में बता दूंगी।” माया ने अपना सिर वीर की गोद में रखते हुए कहा।

“ठीक है, जब मन करे तब बता देना।” वीर ने माया के चेहरे पर आए बालों को ठीक करते हुए कहा।

वीर और माया, दोनों ने सुबह कश्मीरी गेट से रोहतक के लिए बस पकड़ी। रास्ते में वीर ने अपनी एक फ्रेंड़ को फ़ोन कर दिया था कि वो एम.डी.यू. यूनिवर्सिटी के मेन गेट पर मिले। वीर को उसकी स्कूटी चाहिए थी ताकि माया को परीक्षा केन्द्र तक छोड़ कर आ सके। दो घंटे के बाद दोनों रोहतक पहुँच चुके थे। वहाँ से वीर यूनिवर्सिटी तक गया और स्कूटी पर माया को परीक्षा केन्द्र पर छोड़ दिया। थोड़ी देर बाद वीर वापिस यूनिवर्सिटी आया और अपनी फ्रेंड़ को स्कूटी रिटर्न कर वापिस दिल्ली आ गया था।

माया चार दिन के बाद परीक्षाएं देकर दिल्ली वापिस आई। रात को वीर और माया ने एक साथ खाना बनाया। माया ने वीर के लिए रोटियाँ सेंकीं तो वीर ने भी माया के लिए अंडा करी की सब्जी बनाई। दोनों एक-दूसरे का साथ पाकर बहुत खुश थे। वीर ने बताया कि परसों माधवी की शादी है तो उसे भी कल नारनौल जाना है। माया ने कहा कि यह तो बहुत अच्छा है, दोनों साथ ही चलते हैं। थोड़ा तुम्हारा साथ और मिल जाएगा मुझे। वीर ने माया के हाथों को अपने हाथ मे लिया और उसके नाखूनों को देखा। माया के नाखून छोटे थे। यह देखकर वीर और माया, दोनों हँसने लगे। वीर ने माया को अपने करीब खींचा और पूछा कि यह नाखून क्यों नहीं बढा रही हो? तब माया ने कहा कि तुम्हें पसन्द नहीं है न, इसलिए। तुम्हें जो पसन्द नहीं है वो मैं कभी नहीं कर सकती। यह सुनते ही वीर ने माया को अपनी बाँहों में ले लिया। दोनों अपलक एक-दूसरे को देखे जा रहे थे। दोनों ने एक-दूसरे को महसूस करना शुरू किया और अपनी ही कल्पना में खो गए। वीर ने अपने हाथ की अँगुलियाँ माया के चेहरे पर घुमाईं और उसके होंठों के नीचे तिल के पास ले जाकर रोक दिया।

“तुम्हारा तिल कितना ख़ूबसूरत है, माया? दिल करता है इसे चूम लूँ।” वीर ने शरारती लहजे में कहा।

“अच्छा! कितनी बार चूमोगे इसे?”

“अनगिनत बार, जब तक मेरे सीने में दिल धड़कता रहेगा तब तक तुम्हें, तुम्हारे तिल, होंठ, जिस्म सभी को चूमता रहूँगा।” वीर ने माया के कान में धीरे से कहा।

“बस-बस हो गया तुम्हारा मक्खन लगाना। अब छोड़ो मुझे, कल घर भी जाना है।” माया ने वीर की मजबूत बाँहों की जकड़ से छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा।

“नहीं, प्लीज़ अब यह दूरी बर्दाश्त के बाहर है।” वीर ने उसे अपने ओर करीब लाकर कहा।

“बर्दाश्त के बाहर तो मेरे भी है, मगर समझा करो।” माया ने कहा।

लेकिन वीर उसे छोड़ना नहीं चाहता था। वो चाहता था कि माया उसकी बाँहों में जीवन भर ऐसे ही रहे। वो बस उसे देखता रहे, महसूस करता रहे, प्यार करता रहें।

“माया, तुम बहुत ख़ूबसूरत हो। दिल करता है, तुम हमेशा मेरी बाँहों में ऐसे ही रहो। ऐसे ही हम एक-दूसरे को देखते रहें। डर लगता है यह सोचकर कि अगर मैंने पकड़ ढीली की तो तुम दूर न हो जाओ मुझसे और मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। आई लव यू यार, माया।” वीर ने अपना हाथ माया की कमर से नीचे ले जाते हुए कहा।

“आई लव यू टू बाबा, पर अब छोड़ो मुझे.......”

लेकिन माया अपनी बात पूरी कह पाती, उससे पहले ही वीर ने अपने होंठों से माया के होंठो को सिल दिया। माया अब वीर की बांहो में पिघल रही थी। वीर का स्पर्श माया को बहका रहा था। दोनों एक-दूसरे को किस करते हुए बिस्तर तक जा पहुंचे। अब बिस्तर पर सिलवटें पड़ रही थीं और कमरे में पिन ड्रॉप ख़ामोशी ने अपने पैर पसार लिए थे।

सुबह 07:00 बजे सराय रोहिल्ला रेलवे स्टेशन से ट्रेन थी। वीर और माया जब रेलवे स्टेशन पहुंचे तब ट्रेन ने पहली सीटी मार दी थी। तब वीर और माया, दोनों ट्रेन की तरफ़ दौड़े और ट्रेन में चढ गए। लेट होने के कारण वीर टिकट नहीं ले पाया था। बिना टिकट ट्रेन का सफर करना, यह दोनों के लिए एक नया experience था।

“टिकट तो ली नहीं है। अब अगर टिकट चेक करने आ गए तो क्या करेंगे?” माया ने अपना हैंड़बैग सीट पर रखकर कहा।

“अब लेट हो गए थे तो क्या कर सकते हैं? अब कोई जानबूझ कर तो टिकट ली नहीं है। देखते हैं, अगर कोई आता है तो। वैसे इस ट्रेन के जनरल डिब्बे में टिकट कम ही चेक होती है।” वीर ने कहा।

​ “अब अपनी यह मजबूरी तो वो समझेंगे नहीं।” माया ने कहा।

​ “टेंशन मत ले। मैं हूँ ना।”  कहकर वीर ने पानी की बोतल बैग से निकाली।

​ हालांकि दोनों 09:00 बजे रेवाड़ी पहुँच चुके थे। उस दिन टिकट चेक नहीं हुई थी तो दोनों बच गए थे। उसके बाद वीर और माया ने रेवाड़ी से नारनौल के लिए बस पकडी। एक घंटे के बाद दोनों नारनौल पहुँच गए थे। दोनों ने वहाँ पहुँचकर जूस पिया और माया बस से अपने घर के लिए निकल गई। 

माया के जाने के बाद वीर ने अजय को कॉल किया। जब अजय आया तो वीर ने उसे तीस हज़ार रूपए दिए और कहा कि बस, इतने का ही जुगाड़ हो पाया है बाकी के तुम adjust कर लेना और स्कूटी ख़रीद लेना। अजय ने वीर के कंधे पर हाथ रखा और कहा कि बेटा, स्कूटी ख़रीदने के लिए तुझे भी साथ चलना पडेगा। अजय ने बाइक स्टार्ट की और वीर ने पीछे बैठते हुए अजय से कहा कि यार, मेरा जाने का मन नहीं है तो तू मुझे घर पर छोड़ दे। अजय ने वीर को घर पर छोड़ा और कहा कि ठीक है, स्कूटी तो मैं खरीद कर ले आऊँगा। बस, तू कल शादी में जाने के लिए टाइम पर तैयार रहना। वीर ने हामी भरी और अजय वहां से निकल गया।

अगले दिन माया का वीर के पास कॉल आया। माया ने कहा कि तुमसे कुछ ज़रूरी बात करनी है।

“बात तो तुम्हें दिल्ली भी करनी थी, लेकिन वहाँ तुमने कुछ बताया ही नहीं।” वीर ने कहा।

“हाँ, बस तब मैं नहीं बता पाई। पहले सोचा था कि तुम्हें मिल कर बताऊँगी, लेकिन मिलने पर हिम्मत ही नहीं हुई तुमसे कहने की।” माया ने कहा।

“तो अब बता दो। ऐसी भी क्या बात है, जो हिम्मत ही नहीं हो पा रही।” वीर ने गंभीरता से पूछा।

“वो मैं तुमसे दिल्ली मिलने आई थी तब उससे पहले एक हफ़्ते बिज़ी थी। मैं बिजी इसलिए थी कि मेरी engagement हो गई है।” माया ने लड़खड़ाती जुबान से कहा।

“वेरी गुड़.....मैं ही मिलता हूँ तुम्हें फूल बनाने के लिए? सही है।” वीर ने हँसते हुए कहा।

“मज़ाक़ नहीं है ये और न ही मैं कोई तुमको इस बार फूल बना रही हूँ। तुम्हारी क़सम, यही सच है कि मेरी engagement हो गई है और कुछ महीनों के बाद शादी भी है।” माया ने कहा।

फ़ोन पर ख़ामोशी छा गई। जब माया ने चुप्पी तोड़ते हुए ‘हैलो’ कहा तब वीर ने फ़ोन काट दिया। वीर ने सोचा कि अगर माया ने क़सम खाकर बात कही है तो वो झूठ नहीं हो सकती है। वीर के पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई थी। वीर ने जैसे ही माया की बात सुनी, वह एकाएक सुन्न पड़ गया था और नसों में बहता रक्त जम-सा गया था। उसे महसूस हुआ कि आस-पास सब कुछ थम-सा गया था, उसे ऐसा लगा कि जैसे किसी ने उसे ऊँचे पहाड़ से नीचे धकेल दिया हो और जिस्म के सैकड़ों टुकडे हो गए हों। वीर कमरे में वहीं नीचे बैठ गया। उसके दिमाग़ ने काम करना बन्द कर दिया था। दिल तो बुरी तरह घायल ही हो गया था। वह बस बार-बार यही सोच रहा था कि यह एकदम से उसके रिश्ते में कैसी प्रलय आई है? यह किस तरह का प्यार माया ने उसके साथ किया है, जो उसे बताना तक जरुरी नहीं समझा। माया के इस तरह के व्यवहार के कारण वीर को बहुत गुस्सा आ रहा था। उसे माया से ऐसी उम्मीद बिलकुल भी नहीं थी।

रात अपनी दस्तक दे चुकी थी। कमरे में अँधेरा बिखर चुका था, लेकिन वीर काफ़ी देर से वहीं गुमसुम बैठा था। चुपचाप अकेला। उसे पता नहीं क्यूँ यक़ीन नहीं हो रहा था, लेकिन कुछ अजीब-सा ज़रूर लग रहा था जो उसे ख़ुद समझ नहीं आ रहा था कि माया उसके साथ ऐसा कैसे कर सकती है?

शाम को अजय ने वीर के कमरे की लाइट जलाईं तो उसने देखा कि वीर वहीं नीचे बैठा था और पसीने से तर-ब-तर था।

“भैंचो, यहां अँधेरे में अकेले क्या कर रहा है? चल, हाथ दिखा अपना।” अजय ने वीर के करीब आकर कहा।

वीर ने अजय की तरफ़ देखा और कुछ नहीं कहा। 

“चल, खड़ा हो न। शादी में नहीं चलना क्या?” अजय ने वीर के कंधे को हिलाकर कहा।

“तू चल। मैं थोड़ी देर में आता हूँ।” वीर ने कमरे से बाहर निकलते हुए कहा।

अजय के जाने के बाद वीर नीचे आया और बिना तैयार हुए घर से निकलकर सीधा राधा-कृष्ण मंदिर पहुँचकर बाहर सीढ़ियों पर बैठ गया। अजय बार-बार वीर के पास फ़ोन कर रहा था, लेकिन वीर किसी का भी फ़ोन उठाने की स्थिति में नहीं था। इसी बीच दो बार माधवी का भी फ़ोन आया, लेकिन वीर ने उसका भी फ़ोन नहीं उठाया।

रात के 03:00 बज रहे थे। वीर वहीं पर बैठा माया के बारे में सोच रहा था। उसे अब पक्का यक़ीन हो गया था कि माया ने यह जानबूझ ही किया है क्योंकि माया से दिन में बात न हो तो चल जाता था, लेकिन माया रात को जरुर फ़ोन करती थी। लेकिन आज माया का फ़ोन नहीं आया था।

वीर के पास अजय का फ़ोन आया। वीर ने फ़ोन उठाया तो अजय ने पहले उसे दो-चार गालियाँ दी और पूछा कि कहाँ पर है? वीर ने बताया कि वो शाम से ही यहीं मंदिर के बाहर बैठा है। इतना कहकर वीर ने फ़ोन काट दिया।

थोड़ी ही देर में अजय वीर के पास पंहुच गया था। वीर ने जब अजय को देखा तो सीढ़ियों से उठकर सीधा उसके गले लग गया। वीर की आँखों से आंसू गिर रहे थे।

“अबे, क्या हुआ? क्या बात है? बोल ना, भाई” अजय ने पूछा।

“लुट गए, भाई। अब कुछ नहीं बचा मेरी लाइफ़ में। सब कुछ ख़त्म हो गया है।” वीर ने आँसू पोंछते हुए कहा।

“अब बताएगा भी कि क्या हुआ?” अजय ने गुस्से से पूछा।

“माया ने engagement कर ली है। अब सब ख़त्म हो गया है।” वीर ने कहा।

“यार, कौन से ग्रह से आते हो तुम दोनों? दो दिन पहले तुझसे बात हुई तो तूने कहा था कि माया तेरे साथ दिल्ली में है और आज तू कह रहा है कि उसने engagement कर ली है। जब उसने engagement कर ली है तो वो तेरे पास क्या कर रही थी?” अजय ने सिगरेट सुलगाकर कहा।

“ये तो मुझे भी समझ में नहीं आ रहा है कि उसने प्यार दिल से किया था या सगाई अपनी मर्ज़ी से की है? साला एक हफ्ते में दो बार दिल्ली आकर मिल चुकी है। पूरी रात मेरे साथ बिताई है। वहाँ उसके चेहरे पर ऐसे भाव ही नहीं थे कि वो ऐसा कांड़ कर के बैठी है।” वीर ने सिगरेट अजय से लेकर कहा।

“अब जो हो गया हैं, वो तो हो गया। छोड़ न उसे अब। मैंने कहीं पढ़ा है कि पुरुषों में अनेक दोष होते है, लेकिन लड़कियों में केवल दो, जो भी वो कहती हैं और जो भी वो करती हैं। मैंने तो तुझे पहले ही कहा था कि वो तेरे लिए सही नहीं है, तेरे प्यार के लायक नहीं थीं वो। और एक बात बता कि तेरा प्यार हमारी दोस्ती से भी बड़ा हो गया जो तू माधवी की शादी में भी नहीं आया?” अजय ने कहा।

“हाँ, मेरा प्यार सबसे बड़ा है।” वीर ने कहा।

“’है’ मत कह अब ‘था’ हो गया है और वैसे भी हर चूतिए की लाइफ़ में एक ऐसा समय आता है कि उसे अपने किए हुए चुतियापे का अहसास होने लगता है। तू भी अभी अहसास करले तो अच्छा रहेगा वरना आगे इससे भी ज़्यादा पछताएगा। जिस मंदिर के बाहर बैठा है ना इन्हें ही अपना प्रेम नसीब नहीं हुआ तो तू क्या है बे? साला एक टुच्ची-सी लड़की के चक्कर में देवदास बनकर बैठा है। काट गई तेरा, समझा?” अजय ने गुस्से से कहा।

“चल जा यहाँ से तू। नहीं तो क़सम से कुछ ग़लत हो जाएगा मुझसे। निकल यहाँ से।” वीर ने अजय पर चिल्ला कर हाथ से जाने का इशारा करते हुए कहा।

अजय वहाँ से चला गया था। वीर वहीं पर बैठा रहा। उसे लगा, जैसे माया के जाने से अब उसके पास कुछ नहीं बचा है। वह मर जाना चाहता था, लेकिन जिस प्रकार का वीर का व्यवहार था, अपना जवाब लिये बिना तो वो मरने वाला भी नहीं था।

सुबह से वीर लगातार माया को कॉल किए जा रहा था, लेकिन माया फ़ोन नहीं उठा रही थी। वीर ने माया को मैसेज भी किए, लेकिन माया से किसी भी मैसेज का जवाब नहीं आया। वीर का गुस्सा तेज़ हो रहा था। वीर ने अजय को कॉल किया, लेकिन कल की नाराज़गी के कारण अजय ने भी फ़ोन नहीं उठाया। तब वीर सीधा माया के कालेज पहुँच गया। कालेज के बाहर से वीर ने माया को मैसेज किया कि वो उसके कालेज के बाहर है और वो आकर उससे मिले, लेकिन माया ने कोई जवाब नहीं दिया। वीर लगातार माया को फ़ोन किए जा रहा था। काफ़ी देर बाद माया ने परेशान होकर वीर को मैसेज किया कि वो कालेज के बाहर कोई सीन क्रिएट नहीं करना चाहती, इसलिए वो वहाँ से चला जाए। वीर को माया के इस तरह के व्यवहार पर गुस्सा आ रहा था। वीर ने भी पक्का सोच लिया था कि आज माया से मिलकर अपना जवाब लेकर ही जाना है। वीर वहीं कालेज के बाहर बैठकर माया के बाहर आने का इन्तज़ार करने लगा।

चार घंटे के बाद माया कालेज से बाहर आई और उसने वहाँ वीर को देखा। वीर को देखते ही माया का चेहरा सफ़ेद पड़ गया था। उसे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि वीर अभी तक बाहर ही होगा। वीर ने माया को देखा और सीधा उसके पास आया और माया से कहा कि कुछ बात करनी है। माया ने वीर की तरफ़ देखा, जिसमें गुस्से का ज्वालामुखी दहक रहा था। माया ने वीर से कहा कि यहाँ बात नहीं कर सकते है। तुम मेरे साथ चलो। दोनों बस में बैठकर माया के घर की तरफ़ निकल गए। दोनों माया के घर से एक किलोमीटर दूर उतरे और वहाँ से पैदल घर की तरफ़ चल पडे। 

रास्ते में वीर ने माया से पूछा कि तुमने ऐसा क्यों किया? लेकिन माया बिना कोई जवाब दिए चलती ही जा रही थी। वो शायद यही सोच रही थी कि जल्द ही उसका घर आ जाएगा और वीर वहाँ से चला जाएगा।

“मैंने तो तुम्हें बहुत बार शादी के लिए कहा था, लेकिन तुम तो सुनते ही नहीं थे। शायद तुम्हें शादी करनी ही नहीं थी। अब मेरे घरवाले तो मुझे घर पर बैठाकर नहीं रख सकते हैं। उन्हे तो वैसे ही मुझपर शक़ हो गया था कि मैं रात भर तुमसे बात करती हूँ तो जो भी उन्हे मिला, बस उससे मेरी engagement कर दी।” माया ने कहा।

“क्या यही प्यार था हमारे बीच? इस धोखे की उम्मीद नहीं थी तुमसे। मैंने कभी भी शादी के लिए तुम्हें मना नहीं किया। बस, यही कहता था कि अभी शादी नहीं कर सकते है, लेकिन तुमने तो मेरे प्यार की बलि चढ़ा दी और engagement ही कर ली। वैसे चिल्लाती रहती थी कि शादी करनी है तो जब लड़का फाइनल हुआ और सगाई हुई तब क्यूँ नहीं बताया मुझे? तब मैं ज़रुर कुछ करता। तू एक कदम तो बढ़ती मै दौड कर सब कुछ ठीक कर देता, लेकिन तुमने तो बात छुपाई और मुझे बताना तक ज़रूरी नहीं समझा।” वीर ने गुस्से से कहा।

“अब जैसा तुम्हें समझना है, वो समझ लो, लेकिन अब मेरा पीछा छोड़ो। घर नज़दीक है मेरा।” माया ने झुंझलाकर कहा।

यह सुनकर वीर का गुस्सा तेज़ हो गया और उसने वहीं पर माया को थप्पड़ लगा दिया और कहा कि तू बहुत बडी धोखेबाज़ है। जब तेरी engagement ही हो गई थी तो मेरे पास दिल्ली क्यूँ आई? वहाँ तो प्यार की बड़ी-बड़ी बातें कर रही थी, लेकिन वो तो सब तेरे लिए ड्रामा था ना?

“मैं तो अब भी तुमसे ही प्यार करती हूँ और हमेशा करती रहूँगी, लेकिन तुम मेरे प्यार को समझ ही नहीं सकते।” माया ने कहा।

“हाँ, सही कहा। मैं नहीं समझ सकता। साला तेरा प्यार तो उर्दू की लिखावट-सा निकला मुझे तो वाक़ई में देर से समझ में आया।” वीर ने कहा।

वीर के गुस्से की आग इतनी तेज़ थी कि आज कोई भी सामने होता तो शायद जल ही जाता। वीर का गुस्से और दिमाग़ ख़राब का ऐसा मिश्रण हुआ कि उसने फिर माया के दो-तीन थप्पड़ लगा दिए और कहा कि आज तेरे घर पर ही चल और अपने घरवालों से कह कि तू मुझसे प्यार करती है और उससे शादी नहीं कर सकती।

वीर माया के साथ उसके घर पर चला गया। वहाँ ऊपर माया की माँ और भाई थे। वहाँ पहुँचकर माया ने अपनी माँ से कहा कि वो यह engagement तोड़ना चाहती है और वीर से प्यार करती है। माया की माँ ने वीर की तरफ़ देखा और माया को थप्पड़ लगा दिया। अब वहाँ कुछ ही देर में स्थिती गंभीर हो गई थी। माया की माँ वीर को धमकी भरे डायलॉग फेंक रही थी। वीर ने माया की तरफ़ देखा, जिसकी आँखों से आंसुँओं की धार बह रही थी। माया ने वीर की तरफ़ देखा और उसे वहाँ से जाने का इशारा किया। माया की आंखों में आँसू देखकर वीर थोड़ा शान्त हो गया और वहाँ से चुपचाप निकल आया।

वीर के दिल को बहुत बड़ा धक्का लगा था। उसने कभी भी माया से इस तरह का धोखा मिलने का कभी सपने में भी expect नहीं किया था। वह गंभीर और शान्त हो गया था। वीर ने सोच लिया था कि वह अब कभी भी माया से बात नहीं करेगा और न ही उसके रास्ते मे कभी आएगा। जब माया ने ख़ुद उसे इतना बड़ा दर्द दिया है तो आगे अब किस चीज की उम्मीद की जा सकती थी?