पत्र हस्तलिखित था, लिखा था:
डियर मिस्टर सुनील,
मुझे दुख है कि मैं अपने वायदे के अनुसार आपको रुपया देने स्वयं नहीं आ सकी, लेकिन इस पत्र द्वारा आपको नौ बजे से पहले-पहले रुपये मिल जाएंगे। असुविधा के लिए क्षमा-प्रार्थी हूं।"
रमा खोसला
लिफाफे में सौ-सौ के पांच नोट और हजार रुपये का एक नोट मौजूद था ।
"इसमें सत्यानाश की कौन-सी बात है ?" - प्रमिला ने लिफाफा सुनील को लौटाते हुए कहा ।
" ऐसे ही एक पत्र के साथ पन्द्रह सौ रुपये मुझे कल मिले थे, एक हजार का और पांच सौ-सौ के नोट । अस्तर केवल इतना था कि पहला पत्र टाइप किया हुआ था, अर्थात उसके द्वारा यह जानने का कोई साधन नहीं था कि रुपया रमा ने भेजा था या किसी और ने।"
"रुपया किसी ने भेजा हो, तुम्हें क्या फर्क पड़ता है ?"
"फर्क पड़ता है, मुझे दस बजे अदालत में पेश होना है और यह सब कागज पत्र भी साथ ले जाने हैं जो रमा से मिले हैं। पहले मिले रुपयों में हजार का नोट चोरी का था और उसका नंबर पुलिस के पास है। यह बात मुझे समय पर पता लग गई कि मेरे पास चोरी के रुपये हैं और मैं उनसे छुटकारा पा गया वर्ना मैं रगड़ा जाता। मैं कभी भी सिद्ध नहीं कर पाता कि वे रुपये मुझे रमा से मिले हैं। "
"पहले पंद्रह सौ रुपये कहां हैं ?"
“कौनसे रुपये ? मैं किन्हीं पहले रुपयों के विषय में नहीं जानता। मुझे तो यही पन्द्रह सौ रुपये मिले हैं और ये मैं अदालत में हाजिर कर दूंगा।"
प्रमिला समझ गई कि सुनील पहले रुपयों का जिक्र भी नहीं करना चाहता ।
"सुनील" - प्रमिला ने कहा- "रमाकांत ने मुझे कल रात सारी घटना बताई थी । तुम्हारे विचार से जयनारायण के घर में कौन था जो राकेश को खिड़की पर दिखाई दिया था ?"
"ब्लास्ट का ईवनिंग एडिशन पढ़ लेना, जान जाओगी।"
उसी समय फोन की घंटी घनघना उठी ।
"हैलो" - उसने फोन उठाते हुए कहा- "सुनील स्पीकिंग।"
"मिस्टर सुनील" - दूसरी ओर से भारी सी आवाज आई- "मैं इन्स्पेक्टर प्रभुदयाल बोल रहा हूं। मैं आपसे कुछ बातें करना चाहता हूं। आप पुलिस स्टेशन आना पसन्द करेंगे या मैं आपके फ्लैट पर आ जाऊं ।"
"आई एम सारी, प्रभू" - सुनील ने उत्तर दिया- "मुझे टाइम नहीं है। साढे नौ बजने को है, दस बजे मेरी कोर्ट में पेशी है और मैंने तैयार होना है।"
"मैंने पता लगा लिया है, आपको लगभग बारह बजे बुलाया जाएगा। अगर आप चाहें तो थोड़ा समय हमें दे
सकते हैं । "
"अच्छा" - सुनील ने कुछ सोचकर कहा "मैं आ रहा हूं।"
लगभग सवा दस बजे सुनील अपने सबसे बढिया सूट में पुलिस स्टेशन पर प्रभूदयाल के सामने बैठा था।
"मिस्टर सुनील" दोनों ओर से औपचारिकता निभाई जा चुकने के बाद प्रभूदयाल ने कहा - "आप रमा के लिए काम कर रहे हैं ?"
“जी हां, कुछ विशेष स्थितियों में।" - सुनील ने उत्तर दिया।
" और वे विशेष स्थितियां क्या हैं ?"
"अगर रमा अपराधी या अपराध में सहायक सिद्ध होती है तो मैं उसका साथ नहीं दूंगा । ऐसी स्थिति में मैं स्वयं को कानून के लिए मुक्त समझंगा ।"
"पुलिस के लिये बड़ी ईमानदारी दिखाई आपने !"
"व्यंग्य की जरूरत नहीं है, इन्स्पेक्टर साहब, मैंने जो कुछ उचित समझा है किया है।"
"मैं व्यंग्य नहीं कर रहा हूं। मैं तो हैरान हो रहा हूं कि आप नैतिक रूप से इतने ऊंचे कब से उठ गए हैं।"
"क्या मतलब ?"
"अगर रमा आपको दुगनी फीस देती तो भी क्या पुलिस की सहायता करने का विचार आपके दिमाग में आता ?"
"मिस्टर प्रभूदयाल" - सुनील क्रोधित होकर बोला "मेरे पास ऐसी फिजूल बातों के लिए समय नहीं है, मैं यहां पर निरर्थक बातें सुनने के लिए नहीं आया हूं, मुझे मालूम होता कि आपको मुखसे कोई काम नहीं है और हमेशा की तरह इस बार भी मुझे ट्विस्ट करने कई लिए ही बुलाया है। अगर आपने ऐसी ही उल्टी-सीधी बातें करनी हैं तो मैं जा रहा हूं। आप कानूनी तौर पर मुझे यहां रोककर नहीं रख सकते ।"
"मुझे कानून पढाने की जरूरत नहीं है।" - प्रभूदयाल ने क्रोधित होकर कहा ।
"लेकिन आपको इन्सान की तरह बात करने का ढंग सिखाने की जरूरत है, न जाने हमारी पुलिस की समझ में कब यह बात आएगी कि अपने को धौंस दिए बिना भी कोई काम हो सकता है। "
"देखिए मिस्टर सुनील।" - प्रभूदयाल भी कुछ शांत हो गया था - "हम आपसे कुछ सवाल पूछना चाहते हैं, आप यहां उत्तर नहीं देंगे तो अदालत में देंगे, अब यह आप पर निर्भर करता है कि आपको क्या पसन्द है ?"
"मैंने एक नागरिक का कर्तव्य समझकर अपने आपको यहां प्रस्तुत किया है, यदि आप उचित प्रश्न पूछें तो मैं एक हजार प्रश्नों का भी उत्तर देने के लिए तैयार हूं लेकिन यदि आप मुझ पर आक्षेप करेगे या मेरे निजी मामले के बखिये उधेड़ने की कोशिश करेंगे तो मैं आपकी कोई सेवा नहीं करूंगा।"
"आपको रमा खोसला ने कोई धन दिया है ?"
" जी हां, पन्द्रह सौ रुपये, एक हजार रुपये का नोट और पांच सौ-सौ के ।”
"रमा के पास इतना रुपया कहां से आया ?"
"यह जानना मेरा काम नहीं है । "
"जरा वे नोट दिखाइये ।"
सुनील ने नोट निकालकर दे दिए ।
प्रभूदयाल ने नम्बर लिखकर नोट वापिस कर दिये ।
"आप जयनारायण को जानते हैं ?"
"जी हां । "
"आप कल रात अपनी कार पर उसे उसकी कोठी पर छोड़कर आए थे ?”
"जी हां । "
"आपने रमा से कहा था कि आप उसे जयनारायण की कोठी पर मिलेंगे और वह भी वहां आ जाए ?"
"मैंने ऐसी कोई बात नहीं कही ।"
"नहीं !" - प्रभूदयाल ने आश्चर्य प्रदर्शित करते हुए कहा ।
"नहीं।" - सुनील ने शांत स्वर से उत्तर दिया।
"क्या आपने जयनारायण को इस बात के लिए उकसाया नहीं था कि वह आपकी कार में कोठी जाए ?"
"नहीं, उसने खुद मुझसे लिफ्ट मांगी थी।'
प्रभूदयाल क्षण भर रुका और फिर बोला "जयनारायण की कोठी में जाने के बाद आपने किसी को इशारा करने के लिए खिड़की के रोलर को एक बार नीचे खींचा था और फिर ऊपर कर दिया था, यह ठीक है ?"
"नहीं।"
"आप इन्कार करते हैं ?" - प्रयूदयाल ने तीव्र स्वर में कहा।
“जी हां, इन्कार करता हूं, मैंने किसी को इशारा नहीं किया था । "
“आप रमा को इशारा कर रहे थे ?"
"यह सत्य नहीं है । "
"रमा को नहीं तो किसी और को। आप जरूर किसी को सिगनल दे रहे थे । "
सुनील ने चुप रहना ही उचित समझा।
“मिस्टर सुनील, मैं आपसे फिर पूछता हूं।"
"फिर पूछने की जरूरत नहीं है। मैंने जो कहा है ठीक
कहा है। मैं अपनी स्टेटमैंट बदलने वाला नहीं हूं। यदि आप खामखाह समय बरबाद करना चाहते हैं तो आपकी इच्छा ।"
प्रभूदयाल क्षण भर कुर्सी पर कसमसाया, फिर उसने कोई कठिन बात कहने के लिये मुंह बनाया, लेकिन फिर संयत स्वर में बोला "जयनारायण की हत्या के समय किसी ने खिड़की का ड्रेप नीचे खींचा था और फिर ऊपर कर दिया था, हम इसे सिद्ध कर सकते हैं।" -
"तो किया कीजिए, मेरा इससे क्या सम्बन्ध है ?"
"मैं कहता हूं, आपने खिड़की को ऊपर नीचे करके किसी को सिगनल किया था।"
" मैंने नहीं किया था।"
" आप झूठ बोल रहे हैं ?"
"बस" - सुनील झटके से कुर्सी से उठता हुआ बोला - "बहुत हो चुका मैं आपके किसी प्रश्न का उत्तर देने के लिये तैयार नहीं हूं। आप शौक से यहां बैठे कहानियां कह सकते हैं, मैं जा रहा हूं। अगर आप रोक सकते हैं तो रोक लीजिये । नमस्कार ।"
प्रभूदयाल सुनील को खा जाने वाली नजरों से घूरता ही रह गया था। सुनील बाहर आ गया। बाहर आकर वह चौंक गया। बाहर बैंच पर राकेश बैठा था।
" तुम्हें भी प्रभूदयाल ने बुलाया है ?"
" जी हां, और मेरे नाम अदालत से भी सम्मन जारी किए हुए हैं।"
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