ख़ौफ़नाक लम्हे
इन्स्पेक्टर फ़रीदी ने अपनी मौत की ख़बर छपवाने में बड़े एहितयात से काम लिया था। राजरूप नगर के जंगलों में दुश्मन से मुक़ाबला करते वक़्त अचानक उसके ज़ेहन में यह ख़याल आया था। वह इस तरह चीख़ कर भागा था जैसे वह ज़ख़्मी हो गया हो। वह हस्पताल गया और वहाँ उसने चीफ़ इन्स्पेक्टर को बुलवा कर उसे सारा हाल बताया और उससे माफ़ी माँगी। यह चीज़ मुश्किल न थी। चीफ़ इन्स्पेक्टर ने पुलिस कमिश्नर से राय करके पुलिस हस्पताल के इंचार्ज कर्नल तिवारी से सब मामले तय कर लिये, लेकिन उसे यह न बताया गया कि ड्रामा खेलने का असली मक़सद क्या है। सिविल हस्पताल से ख़ुफ़िया तरीक़े पर एक लाश हासिल की गयी। फिर उस पर इन्स्पेक्टर फ़रीदी का मेकअप किया गया। यही वजह थी कि सलीम आसानी से धोखा खा गया। इन सब बातों से फ़ुर्सत पाने के बाद इन्स्पेक्टर फ़रीदी ने भेस बदल कर अपना काम शुरू कर दिया।
तीसरे दिन अचानक कर्नल तिवारी के ट्रांसफ़र का हुक्म आ गया और उसे इतना ही टाइम मिल सका कि उसने डॉक्टर तौसीफ़ को एक ख़त लिख दिया। इन्स्पेक्टर फ़रीदी को अब तक सलीम पर महज़ शक था। उसकी तहक़ीक़ात का रुख ज़्यादातर प्रोफ़ेसर ही की तरफ़ रहा। इस सिलसिले में उसे इस बात का पता चला कि सलीम प्रोफ़ेसर को धोखे में रख कर अपना हथियार बनाये हुए है। प्रोफ़ेसर के सिलसिले में उसने एक बिलकुल ही नयी बात मालूम की जिसका पता सलीम को भी न था। वह यह कि प्रोफ़ेसर नाजायज़ तौर पर कोकीन हासिल किया करता था...जिस तरीक़े से कोकीन उस तक पहुँचा करती थी, वह बहुत दिलचस्प था। उसे एक हफ़्ते में एक पैकेट कोकीन मिला करती थी। कोकीन बेचने वालों के गिरोह का एक आदमी हर हफ़्ते एक पैकेट कोकीन उसके लिए ला कर पुरानी कोठी के बाग़ीचे में छुपा दिया करता था। वहीं उसके दाम भी रखे हुए मिल जाते थे। दो–एक बार उसे मालियों ने टोका भी, लेकिन उसने उन्हें यह कह कर टाल दिया कि वह दवा के लिए बीर बहूटी तलाश कर रहा है। फ़रीदी ने फ़िलहाल इस गिरोह को पकड़वाने की कोशिश न की, क्योंकि उसके सामने इससे भी ज़्यादा महत्वपूर्ण मामला था। डॉक्टर शौकत के राजरूप नगर जाने से एक दिन पहले ही उसने कोठी के एक माली को भारी रक़म दे कर मिला लिया था। इसलिए कोठी के लोगों के बारे में सब कुछ जान लेने में कोई ख़ास दिक़्क़त न हुई। ऑपरेशन वाली रात को सार्जेंट हमीद भी वहाँ आ गया... फ़रीदी ने उसे प्रोफ़ेसर को बहला-फुसला कर माली के झोंपड़े तक लाने के लिए तैनात कर दिया। इसके लिए पूरी स्कीम पहले ही बन चुकी थी। हमीद प्रोफ़ेसर को कोकीन देने का लालच दिला कर माली के झोंपड़े तक लाया। यहाँ उसे कोकीन में कोई तेज़ क़िस्म की नशीली चीज़ दी गयी जिसके असर से प्रोफ़ेसर बहुत जल्द बेहोश हो गया। उसके बाद इन्स्पेक्टर फ़रीदी ने उसके कपड़े ख़ुद पहन लिए और ट्रांसमीटर को गठरी में बाँध कर झोंपड़े से निकल गया। झोंपड़े से बाहर जिसने उछल– कूद मचायी थी, वह इन्स्पेक्टर फ़रीदी ही था।
जब फ़रीदी को गये हुए काफ़ी समय बीत गया तो हमीद का दिल घबराने लगा। उसने सोचा कि कहीं कोई हादसा न पेश आ गया हो। फ़रीदी ने उसे बेहोश प्रोफ़ेसर को सोता छोड़ कर कहीं जाने की इजाज़त न दी थी, लेकिन उसका दिल न माना। वह प्रोफ़ेसर को सोता छोड़ कर पुरानी कोठी की तरफ़ रवाना हो गया। मीनार में वह उस वक़्त दाख़िल हुआ जब सलीम जा चुका था। ट्रांसमीटर चूर–चूर हो कर फ़र्श पर बिखरा हुआ पड़ा था और फ़रीदी अभी तक उसी तरह पड़ा था। हमीद वहाँ का नज़ारा देख लगभग चीख़ते-चीख़ते रुक–सा गया। उसने दौड़ कर फ़रीदी को उठाने की कोशिश की। वह बेहोश था...बाहर से कहीं कोई चोट न मालूम होती थी। थोड़ी देर बाद कराह कर उसने करवट बदली। हमीद उसे हिलाने लगा...वह चौंक कर उठ बैठा।
‘‘तुम...!’’ उसने आँखें मलते हुए कहा। ‘‘वह मरदूद कहाँ गया....?’’
‘‘कौन...?’’
‘‘वही सलीम...!’’ फ़रीदी ने हाथ मलते हुए कहा। ‘‘अफ़सोस, हाथ में आ कर निकल गया।’’ फिर उसने जल्दी-जल्दी सारी बातें हमीद को बताना शुरू की।
‘‘उसने तो अपने हिसाब से मुझे मार ही डाला था।’’ फ़रीदी ने कहा। ‘‘लेकिन जैसे ही उसने गोली चलायी...मैंने फिर एक बार उसे धोखा देने की कोशिश की। लेकिन बुरा हो इस दूरबीन का जिसकी वजह से सब किया-धरा ख़ाक में मिल गया। अगर मेरा सिर उससे न टकरा जाता तो फिर मैंने पाला मार लिया था। अरे! इस ट्रांसमीटर को क्या हुआ...तोड़ दिया कमबख़्त ने। ऐसा बहादुर अपराधी आज तक मेरी नज़रों से नहीं गुज़रा...!
‘‘आइए...तो चलिए, उसे तलाश करें।’’ हमीद ने कहा।
‘‘पागल हो गये हो...अब तुम उसकी परछाईं को भी नहीं पा सकते। वह मामूली दिमाग़ का आदमी नहीं।’’ फ़रीदी ने उठते हुए कहा। ‘‘देखूँ तो ऑपरेशन का क्या रहा...!’’
उसने दूरबीन के शीशे से आँख लगा दी। थोड़ी देर तक ख़ामोश रहा।
‘‘अरे...!’’ वह चौंक कर बोला। ‘‘यह पाइप के सहारे दीवार पर कौन चढ़ रहा है? सलीम...इसका क्या मतलब...अरे, वह तो खिड़की के क़रीब पहुँच गया...यह उसने जेब से क्या चीज़ निकाली...हैं...यह नलकी कैसी...अरे लो, ग़ज़ब! वह नलकी को होंटों में दबा रहा है... क़त्ल-क़त्ल...हमीद अब डॉक्टर शौकत इतनी ख़ामोशी से क़त्ल हो जायेगा कि उसके क़रीब खड़ी नर्स को भी इसकी ख़बर न होगी। उफ़ क्या किया जाये...जितनी देर में हम वहाँ पहुँचेंगे, वह अपना काम कर चुका होगा। कमबख़्त पिस्तौल भी तो अपने साथ लेता गया।’’
‘‘पिस्तौल मेरे पास है...! हमीद ने कहा।
‘‘लेकिन बेकार...इतनी दूर से पिस्तौल किस काम का...ओह! क्या किया जाय। उसकी नलकी में वह ज़हरीली सुई है। अभी वह एक फूँक मारेगा और सुई निकल कर डॉक्टर शौकत के जा लगेगी। उफ़, मेरे ख़ुदा...अब क्या होगा। वह शायद निशाना ले रहा है। ओह! ठीक याद आ गया...मैंने वह राइफ़ल नीचे देखी थी। ठहरो...मैं अभी आया!’’ फ़रीदी यह कह कर दौड़ता हुआ नीचे चला गया। वापसी पर उसके हाथ में वही छोटी–सी हवाई राइफ़ल थी जो उसने प्रोफ़ेसर के हाथ में देखी थी। उसने उसे खोल कर देखा। उसकी मैगज़ीन में कई कारतूस बाक़ी थे।
‘‘हटो...हटो...खिड़की से जल्दी हटो।’’ उसने खिड़की से निशाना लिया। बीमार के कमरे से आती हुई रोशनी में सलीम का निशाना साफ़ नज़र आ रहा था। फ़रीदी ने राइफ़ल चला दी। सलीम उछल कर एक धमाके के साथ ज़मीन पर आ गिरा...
‘‘वह मारा...!’’ उसने राइफ़ल फेंक कर ज़ीने की तरफ़ दौड़ते हुए कहा। हमीद भी उसके पीछे था। ये लोग उस वक़्त पहुँचे जब बेगम साहिबा, नजमा, डॉक्टर तौसीफ़ और कई कर्मचारी वहाँ इकट्ठे हो चुके थे। औरतों की चीख़–पुकार सुन कर डॉक्टर शौकत भी नीचे आ गया था।
फ़रीदी ने उसके कन्धे पर हाथ रख कर पूछा। ‘‘कहो डॉक्टर, ऑपरेशन कैसा रहा...’’
शौकत चौंक कर दो क़दम पीछे हट गया।
‘‘तुम...!’’ उसने मुँह फाड़े हुए हैरत से कहा।
‘‘हाँ–हाँ, मैं भूत नहीं। बताओ, ऑपरेशन कैसा रहा।’’
‘‘कामयाब...!’’ शौकत ने बौखला कर कहा। ‘‘लेकिन... लेकिन...!’’
‘‘मैं सिर्फ़ तुम्हारे लिए मरा था, मेरे दोस्त...और यह देखो आज जिसने तुम्हारे गले में फ़ाँसी का फन्दा डाला था, तुम्हारे सामने मुर्दा पड़ा है।’’
अब सारे लोग फ़रीदी की तरफ़ देखने लगे।
‘‘आप लोग मेहरबानी करके लाश के क़रीब से हट जाइए।’’ फ़रीदी ने कहा। ‘‘और हमीद, तुम डॉक्टर शौकत की कार पर थाने चले जाओ।’’
‘‘तुम कौन हो...!’’ बेगम साहिबा गरज कर बोलीं।
‘‘मोहतरमा, मैं डिपार्टमेंट ऑफ़ इनवेस्टिगेशन, या यूँ समझ लीजिए, जासूसी विभाग का इन्स्पेक्टर हूँ।’’ फ़रीदी ने कहा। ‘‘और मैं सर्कस वाले नेपाली के क़ातिल और डॉक्टर शौकत की जान लेने की कोशिश करने वाले की लाश थाने में ले जाना चाहता हूँ।’’
‘‘न जाने तुम क्या बक रहे हो।’’ नजमा ने आँसू पोंछते हुए तेज़ी से कहा।
‘‘जो कुछ मैं बक रहा हूँ, उसका ख़ुलासा क़ानून करेगा।’’
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