क़ातिल फ़रार

‘‘तो तुम नहीं खोलोगे मुझे...देखो, मैं कहे देता हूँ...!’’

‘‘बस-बस, ज़्यादा शोर मचाने की ज़रूरत नहीं। मुझे डॉक्टर शौकत का कारनामा देखने दो...!’’

‘‘देखो मिस्टर....!’’ सलीम तेज़ी से बोला। ‘‘पहली बात तो मुझे यक़ीन नहीं कि तुम सरकारी जासूस हो और अगर हो भी तो मुझे इससे क्या करना। आखिर तुमने मुझे किस क़ानून के तहत यहाँ बाँध रखा है।’’

‘‘इसलिए कि तुमने अपना जुर्म अभी-अभी क़बूल किया है। क्या यह तुम्हें बाँध रखने के लिए काफ़ी नहीं?’’

‘‘क्या बेवकूफ़ों की-सी बातें करते हो।’’ सलीम ने क़हक़हा लगा कर कहा। ‘‘क्या तुम उसे सच समझे हो।?’’

‘‘झूठ समझने की कोई वजह नहीं।’’ फ़रीदी ने दूरबीन पर झुकते हुए कहा।

‘‘होश की दवा लो, मिस्टर जासूस...!’’ सलीम बोला। ‘‘कुछ देर पहले मैं एक पागल आदमी से बात कर रहा था। अगर मैं उसकी हाँ-में-हाँ न मिलाता तो वह मेरे साथ न जाने क्या बर्ताव करता। मैं उसके ज़ुल्म अच्छी तरह जानता हूँ।

इसलिए जान बचाने के लिए और कोई चारा नहीं था। वाह, मेरे भोले जासूस, वाह....! ख़ैर, जो हुआ सो हुआ...मुझे फ़ौरन खोल दो। इन्सान ही से ग़लती होती है। मैं वादा करता हूँ कि तुम्हारे अफ़सरों से तुम्हारी शिकायत न करूँगा।’’

फ़रीदी उसे बेबसी से देख रहा था और सलीम के होंटों पर शरारत-भरी मुस्कुराहट खेल रही थी।

‘‘ख़ैर, ख़ैर, कोई बात नहीं।’’ फ़रीदी सँभल कर बोला। ‘‘लेकिन आज तुमने डॉक्टर शौकत को क़त्ल करने की जो कोशिशें की हैं, वे ख़ुद मैंने देखी हैं। डॉक्टर शौकत की कार मैंने बिगाड़ी थी। मैं यह पहले से जानता था कि इस वक़्त कोठी में कोई कार मौजूद नहीं थी। मैं दरअसल चाहता था कि वह पैदल आये। सिर्फ़ यह देखने के लिए कि असली साज़िश रचने वाला कौन है। क्या तुम कार का बहाना करके वहाँ से नहीं टल गये थे...क्या तुमने प्रोफ़ेसर को ज़हरीली सुई दे कर उसे शौकत से हाथ मिलाने के बहाने चुभो देने के लिए नहीं कहा था। जब तुमने उसके गले में रस्सी का फन्दा डाला था तब भी मैं तुमसे थोड़ी ही दूर के फ़ासले पर मौजूद था और मैंने ही शौकत को बचाया था।’’

‘‘न जाने तुम कौन-सी अली बाबा चालीस चोर की कहानी सुना रहे हो।’’ सलीम ने उकता कर कहा। ‘‘अक़्लमन्द आदमी, ज़रा सोचो तो आखिर मैं डॉक्टर शौकत की जान क्यों लेना चाहूँगा। जबकि वह मेरे लिए बिलकुल अजनबी है। तुम कहोगे कि मैंने ऐसा सिर्फ़ इसलिए किया कि चचा जान बच न सकें, लेकिन ऐसा सोचना बेवकूफ़ी होगी। अगर ऐसा होता तो मैं पहले ही उनको ख़त्म कर देता और किसी को ख़बर तक न होती।’’

‘‘क्या कहा? शौकत तुम्हारे लिए अजनबी है?’’ फ़रीदी ने मुस्कुराते हुए कहा। ‘‘तुम उसके लिए अजनबी हो सकते हो, लेकिन वह तुम्हारे लिए नहीं। क्या मैं बताऊँ कि तुम उसकी जान क्यों लेना चाहते हो?’’

फ़रीदी के शब्दों का असर ज़बर्दस्त था। सलीम फ़िर सुस्त पड़ गया। उसकी आँखों से ख़ौफ़ झलकने लगा। लेकिन थोड़ी देर बाद उसने ख़ौफ़ पर क़ाबू पा लिया।

‘‘आखिर तुम क्या चाहते हो...?’’ उसने फ़रीदी से कहा।

‘‘तुमको क़ानून के हवाले करना।’’

‘‘लेकिन किस जुर्म में?’’

‘‘तुमने अभी-अभी जो अपने जुर्म क़बूल किये हैं।’’

‘‘अच्छा, चलो, यही सही।’’ वह बोला। ‘‘लेकिन तुम्हारे पास क्या सुबूत है कि मैंने इक़बाले-जुर्म किया है। अदालत में तुम किसे गवाह की हैसियत से पेश करोगे जबकि यहाँ मेरे और तुम्हारे सिवा कोई तीसरा नहीं है। देखो मिस्टर फ़रीदी, मुझे झाँसा देना आसान काम नहीं। तुम इस तरह अदालत में मेरे ख़िलाफ़ मुक़दमा चला कर कामयाब नहीं हो सकते।’’

‘‘तब तो मुझसे बड़ी ग़लती हुई।’’ फ़रीदी ने हाथ मलते हुए बेबसी से कहा। ‘‘काश, मैं सार्जेंट हमीद को भी यहाँ लाया होता।’’

सलीम ने ज़ोरदार क़हक़हा लगाया और बोला। ‘‘अभी कच्चे हो, मिस्टर जासूस।’’

‘‘उफ़, मेरे ख़ुदा।’’ फ़रीदी ने बौखला कर कहना शुरू किया। ‘‘लेकिन तुमने अभी मेरे सामने इक़बाले-जुर्म किया है कि...तुम...क़ क़ क़... क़ातिल हो...!

‘‘हकलाओ नहीं प्यारे।’’ सलीम हँसता हुआ बोला। ‘‘लो, मैं एक बार फिर इक़बाले-जुर्म करता हूँ कि मैंने ही शौकत को क़त्ल करने या कराने की कोशिश की थी। मैंने ही नेपाली को भी क़त्ल किया था। मैंने तुम पर भी गोलियाँ चलायी थीं। लेकिन फिर क्या? तुम मेरा क्या कर सकते हो। मैं एक ऊँचे ख़ानदान का आदमी हूँ। राजरूप नगर का होने वाला नवाब...तुम्हारी बकवास पर किसे यक़ीन आयेगा।’’

‘‘बहुत अच्छे बरख़ुरदार...! फ़रीदी ने हँसते हुए कहा। ‘‘बहुत अक़्लमन्द हो, लेकिन साफ़ है कि अब तुमने जो इक़बाले-जुर्म किया है, वह पागल प्रोफ़ेसर के सामने नहीं, बल्कि डिपार्टमेंट ऑफ़ इनवेस्टिगेशन के इन्स्पेक्टर फ़रीदी के सामने किया है।’’

‘‘तो फिर उससे क्या...मैं हज़ार बार इक़बाले-जुर्म कर सकता हूँ। क्योंकि यहाँ हम दोनों के सिवा और कौन है। कहो तो एक बार फिर दोहरा दूँ।’’ सलीम ने क़हक़हा लगा कर कहा।

‘‘बस-बस, काफ़ी है।’’ फ़रीदी ने जले हुई सिग्रेट का टुकड़ा फेंकते हुए कहा। ‘‘तुम फ़रीदी को नहीं जानते। इधर देखो, इस अलमारी में....लेकिन नहीं, तुम्हें नहीं दिखायी देगा। ठहरो, मैं मोमबत्ती उठाता हूँ। देखो बेटा सलीम...यह एक बेहद ताक़तवर ट्रांसमीटर है और अभी हाल ही की ईजाद है। एक छोटी-सी बैटरी इसे चलाने के लिए काफ़ी होती है। क्या समझे ? इसके ज़रिये मेरी और तुम्हारी आवाज़ें धीरे-धीरे डिपार्टमेंट ऑफ़ इनवेस्टिगेशन के दफ़्तर तक पहुँच रही होंगी और इनको रिकॉर्ड कर लिया गया है। मैं अच्छी तरह जानता था कि तुम मामूली मुजरिम नहीं हो। इसलिए मैंने पहले ही इसका इन्तज़ाम कर लिया था। अब कहो, कौन जीता...?’’ फ़रीदी ने क़हक़हा लगाया और सलीम निढाल हो कर रह गया। उसके चेहरे पर पसीने की बूँदें थीं। उसे अपना दिल सिर के उस हिस्से में धड़कता महसूस हो रहा था, जहाँ चोट लगी थी। लेकिन उसके ज़ेहन ने अभी तक हार क़बूल न की थी। सिग्रेट का जलता हुआ टुकड़ा उसके क़रीब ही पड़ा था। उसने फ़रीदी की नज़र बचा कर उसे पैर से धीरे-धीरे अपनी तरफ़ खिसकाना शुरू किया। अब सिग्रेट का जलता हुआ हिस्सा रस्सी के एक बल से लगा हुआ उसे धीरे-धीरे जला रहा था। सलीम ने अपने दोनों पैर समेट कर रस्सी के सामने कर लिये। रस्सी सूखी थी और आग ने अपना काम शुरू कर दिया था। फ़रीदी इस बात से बेख़बर दूरबीन पर झुका हुआ था। अचानक सलीम सोफ़े समेत दूसरी तरफ़ पलट गया। फ़रीदी चौंक कर उसकी तरफ़ झपटा। लेकिन इससे पहले कि फ़रीदी कुछ कर सके सलीम रस्सी की गिरफ़्त से आज़ाद हो चुका था।

फ़रीदी उस पर टूट पड़ा, लेकिन सलीम को हराना आसान काम न था...थोड़ी देर बाद दोनों गुथे हुए हाँफ रहे थे। सलीम को सुस्त पा कर फ़रीदी को जेब से पिस्तौल निकालने का मौक़ा मिल गया। लेकिन सलीम ने इस फुर्ती के साथ उससे पिस्तौल छीन लिया जैसे वह इसका इन्तज़ार ही कर रहा था। इसी कशमकश में पिस्तौल चल गया। फ़रीदी ने चीख़ मारी और गिरते-गिरते उसका सिर दूरबीन से टकरा गया। वह लगभग बेहोश हो कर ज़मीन पर औंधा पड़ा था। सलीम खड़ा हाँफ रहा था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करे। अचानक वह ट्रांसमीटर के सामने खड़ा हो कर बुरी तरह खाँसने लगा। ऐसा मालूम होता था जैसे उस पर खाँसी का दौरा पड़ा हो। फिर भर्रायी हुई आवाज़ में बोलने लगा।

‘‘मैं इन्स्पेक्टर फ़रीदी बोल रहा हूँ। अभी सलीम मेरी गिरफ़्त से निकल गया था। काफ़ी जद्दो-जेहद के बाद मैंने उसके पैर में गोली मार दी। अब वह फिर मेरी क़ैद में है। मैं उसे पुलिस के हवाले करने जा रहा हूँ। बाक़ी रिपोर्ट कल आठ बजे सुबह।’’

अब सलीम ने ट्रांसमीटर का तार बैटरी से अलग कर दिया। उसके पुर्ज़े-पुर्ज़े इधर-उधर बिखर गये। वह तेज़ी से सीढ़ियाँ तय करता हुआ नीचे उतर रहा था।