देवांश के दिमाग को हजारों शंकाओं ने घेर रखा था मगर, उसमें से कुछ भी नहीं हुआ जिसका उसे डर था ।


हुआ तो वह हुआ, जिसकी कल्पना वहीं नहीं - दिव्या और ठकरियाल भी स्वप्न तक में नहीं कर पाये थे। जिसने देवांश के होश उड़ा दिये ।


एक बार फिर उसे ऐसा लगा जैसे इस झमेले में पड़कर अपने जीवन की सबसे बड़ी भूल कर रहा है। विला से बाहर निकलने पर उसने देखा- - आकाश पर बादल छाये थे।


हर तरफ अंधकार ।


सन्नाटा ।


ठण्डी हवा भांय-भांय कर रही थी ।


वृक्ष झूम रहे थे ।


बावजूद इसके–देवांश पसीने से नहाया हुआ था।


उसने केवल सुना ही था, लोग रेन वॉटर पाईप पर चढ़ जाते हैं। कई फिल्मों में भी देखा था ऐसा दृश्य, परन्तु यह अनुमान बिल्कुल नहीं लगा सका था— - यह काम इतना कठिन होगा। इतना कठिन कि फर्स्ट फ्लोर पर पहुंचते-पहुंचते वह बुरी तरह थक गया। हांफने लगा।


बाकी जिस्म पर उभर आये पसीन को तो वह झेल सकता था परन्तु वर्तमान अवस्था में पसीने के कारण भीगी हुई हथेलियां उसकी सबसे बड़ी प्रॉब्लम थी ।


ग्लब्स पहने होने के बावजूद हाथ पाईप से फिसले जा रहे थे ।


लग रहा था- - अब गिरा, कि अब गिरा।


और यह सच है—एक बार में तो वह हरगिज थर्ड फ्लोर पर नहीं पहुंच सकता था। गनीमत रही—फर्स्ट से सैकिण्ड फ्लोर पर चढ़ते वक्त उसकी नजर सैकिण्ड फ्लोर की खिड़की के ऊपर बने ‘रेन शेड’ पर पड़ गई। पाईप ठीक उसकी बगल से गुजर रहा था । दिमाग में ख्याल आया— - उस शेड पर वह कुछ देर आराम कर सकता है । इस विचार ने काफी राहत पहुंचाई।


लक्ष्य फिलहाल थर्ड फ्लोर की खिड़की नहीं, सैकिण्ड फ्लौर की खिड़की के ऊपर बना शेड बन गया था । वही किया उसने, मगर वही जानता है वहां तक पहुंचते-पहुंचते क्या हालत हो गयी थी । पाईप से एक पैर हटाकर जब उसने शेड के किनारे पर रखा तो तेज हवा के बीच फंसे तिनके की तरह कांप रहा था ।


फिर, एक जम्प सी लेकर शेड पर पहुंच गया ।


कुछ ऐसी घुमेर सी आई कि लगा- -वह गिरने वला है । घबराकर शेड पर बैठ गया |


ग्लब्स उतारे ।


कमर दीवार से टिका दी ।


आंखें बंद कर लीं।


काफी देर तक उखड़ी सांसें को नियंत्रित करता रहा ।


सामान्य होने में करीब पांच मिनट लग गये। इस बीच कई बार अपनी हथेलियों को जींस पर रगड़कर शुष्क कर चुका था। 


नीचे झांका तो चक्कर सा आने लगा


नजर फर्स्ट फ्लारे की खिड़की के ऊपर बने शेड पर पड़ी ।


वह भी ठीक वैसा ही था जैसा इस वक्त वह बैठा था ।


उसे आश्चर्य हुआ। उस शेड पर पहले, अर्थात् ग्राउन्ड फ्लोर से फर्स्ट फ्लोर पर चढ़ते वक्त उसकी नज क्यों नहीं पड़ी? पड़ जाती तो जिस तरह वह इस वक्त यहां ‘सुस्ता’ रहा था, उसी तरह वहां भी सुस्ता सकता था। यह सफर शायद उतना कठिन न लगता नजर तो पड़ी थी मगर ख्याल नहीं आया था इस तरह सुस्ताने का ।


उस वक्त तो उसे सिर्फ और सिर्फ थर्ड फ्लोर की खिड़की नजर आ रही थी ।


शायद वहां तक पहुंचता-पहुंचता वह इतना थका भी नहीं था, इसीलिए सुस्ताने का ख्याल नहीं आया । इसी को कहते हैं- आवश्यकता आविष्कार की जननी है।


अब जब वह उतरेगा तो दोनों शेड्स पर सुस्ताना हो जायेगा । तब उतना नहीं थकेगा जितना 'यहां' तक पहुंचता थक गया था। फिर अचानक दिमाग में ख्याल उभरा — 'अगर इस वक्त मुझे यहां कोई देख ले । इस सवाल के जवाब में, जितने जवाब दिमाग में घुमड़े उन्होंने अंदर ही अंदर हिलाकर रख दिया देवांश को । वे जवाब कम, शंकाएं ज्यादा थीं और उन सभी शंकाओं का केवल एक ही समाधान सूझा उसे—जो कर रहा है, उसे जितनी जल्दी निपटा ले उतना अच्छा है। किसी की नजर पड़ गई तो हंगामा मच जायेगा। 


वह उठा एक बार फिर दोनों हाथ जींस पर रगड़े। ग्लब्स पहने और पाईप पर जमा दिये ।


बंदर की तरह उछलकर एक बर फिर पाईप के इर्द-गिर्द सिमट गया।


सफर शुरू हुआ।


पहले जितना कठिन नहीं था वह ।


मगर खिड़की के नजदीक पहुंचते-पहुंचते एक और ख्याल दिमाग में उभरा जिने उसे बेचैन कर दिया।


वह ख्याल था- खिड़की अंदर से बंद हुई तो?


कैसे करेगा वह काम जिसकी लिए इतने पापड़ बेल रहा है ?


यह बात गारंटी से दिव्या ने कही थी कि बबलू के कमरे की खिड़की खुली हुई होगी ।


उसका दावा था—एक बार उसने बबलू को राजदान से कहते सुना था— 'चाचू, मैं अपने कमरे की खिड़की हमेशा खोलकर सोता हूं। नींद ही नहीं आती बंद करके । दम सा घुटने लगता है।'


बस दिव्या के इसी दावे के आधार बनाकर सारा प्लान बनाया गया था । और ।


दिव्या का दावा शत-प्रतिशत सही निकला।


पाईप पर लटके ही लटके जब उसने खिड़की के जाली वाले पल्ले पर हाथ रखा तो वह इस तरह खुलता चला गया जैसे मारबल के फर्श पर रुकी पड़ी कांच की गोली हवा के नामालूम से झोंके से ‘चलायमान' हो जाती है।


रबर की गेंद की मानिन्द उछलते दिल पर काबू पाने का असफल प्रयार करने के साथ बहुत आहिस्ता से कमरे में झांका। ग्रीन कलर के नाईट बल्ब का प्रकाश बिखरा हुआ था ।


बैड पर सोया पड़ा बबलू साफ दिखाई दिया । केवल चेहरा चमक रहा था उसका। बाकी जिस्म चादर से ढका हुआ था। नाक बज रही थी ।


जैसे हौले-हौले खर्राटे ले रहा हो।


उस दृश्य को देखकर देवांश के हौसले में कई गुना ज्यादा वृद्धि हो गयी।


आत्मविश्वास से भरकर एक हाथ जेब में डाला ।


अगले पल हाथ में कांच का एक गोल पेपरवेट नजर आ रहा था। पेपरवेट पर लेटर लिपटा हुआ था जिसे ठकरियाल ने तैयार किया था ।


लेटर के ऊपर दो रबर-बैंड कसे हुए थे ।


एक बार उसने पेपरवेट को अपने हाथ में तोला और फिर... निशाना ताककर बैड की तरफ उछाल दिया।


पेपरवेट बबलू के पेट से जाकर टकराया।


बबलू को उसे हड़बड़ाकर उठते देखा।


और बस तेजी से पाईप के सहारे नीचे उतरना शुरू कर दिया।


ऐसी आवाज हुई जैसे कोई छोटा सा पत्थर पक्के फर्श पर लुढ़कता चला गया हो।


बरबस ही उसका चेहरा इमारत के टैरेस की तरफ उठ गया।


आवाज उसी तरफ से उभरक देवांश के कानों से टकराई थी ।


उसी क्षण, टैरेस की बाउन्ड्रीवॉल के नजदीक एक इंसानी साया नजर आया।


देवांश अभी कुछ समझ भी नहीं पाया था कि वातावरण में 'क्लिक' की आवाज उभरी । क्षण के सौवें हिस्से के लिए तेज फ्लश लाईट से आंखें चुंधिया गईं उसकी ।


यह समझ में आते ही देवांश के देवता कूच कर गये कि उसका फोटो खींच लिया गया है।


फोटो खींचने के बाद वह बान्उड्रीवॉल के नजदीक से इस तरह गायब हो गया जैसे कभी था ही नहीं । मारे घबराहट क देवांश का जी चाहा चीख पड़े — “कौन है वहां?”


परन्तु ऐसा कर कैसे सकता था।


भला चोर भी कहीं शोर मचाता है?


मारे पसीने के ऐसी हीलत हो गयी जैसे अभी-अभी स्वीमिंग पूल से बाहर निकला हो । पलक झपकते ही दिमाग शून्य में जा फंसा। कुछ समझ में नहीं आया उसकी ।


इतना ज्यादा आतंकित हो उठा कि... कि पाईप पर फिसलता हुआ कब और जमीन पर जा टकराया, खुद न जान सका। वह तो यह भी नहीं जानता था, पाईप पर फिसलकर जमीन पर पहुंचता था अथवा वहीं से जमीन पर टपक पड़ा था जहां फोटो खींचा गया था।


आंधी-तूफान की तरह उसने खुद को विला की तरफ दौड़ते पाया था।


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“क-क्या हुआ? क्या हुआ देव? तुम कुछ बताते क्यों नहीं?” बुरी तरह अधीर दिव्या ने उसे झंझोड़ते हुए तीसरी बार पूछा । देवांश अभी तक खुद को जवाब देने की पोजीशन में नहीं ला पाया था।


बुरी तरह हांफ रहा था वह ।


चेहरा ऐसा नजर आ रहा था जैसे किसी अज्ञात ताकत ने हल्दी पौत दी हो।


कुछ ऐसे अंदाज में भागता-दौड़ता पहुंचा था वहां मानो अंसख्य भूत पीछे लगे हों।


चौंका ठकरियाल भी था। कम से कम दो बार वह भी पूछ चुका था ‘आखिर हो क्या गया है?'


जब इस बार भी देवांश कोशिश के बावजूद मुंह से आवाज न निकाल सका तो ठकरियाल ने शंका व्यक्त की – “बबलू ने तुम्हें देख लिया क्या?”


देवांश ने इंकार में सिर हिलाया ।


“पेपरवेट उसे लगा था या नहीं?” दिव्या ने पूछा । वह इशारे से 'हां' कह सका । “उसकी चोट ने उसे जगा दिया था । "


देवांश का सिर पुनः ‘हां' में हिला ।


“तो फिर बात क्या है?” ठकरियाल गुर्रा उठा—— -


“बकते क्यों नहीं?”


“क-किसी ने मेरा फोटो खींच लिया है ।” हलक सूखा होने के कारण वह बड़ी मुश्किल से कह सका । “फ-फोटो?” दोनों के हलकों से एक साथ चीख निकल गई।


वह पुनः बड़ी मुश्किल से कह सका — “हां ।”


“क-किसने?” अब जैसे ठकरियाल के भी होश फाख्ता हुए– “कहां खींचे लिया तुम्हारा फोटो?” “ज-जब मैं रेन वाटर पाईप पर लटका हुआ था। ठीक उसके कमरे की खिड़की के नजदीक।” “क-क्या बकवास कर रहे हो? भला वहां कौन तुम्हारा फोटो खींच लेगा?”


“मुझे नहीं मालूम वह कौन था, मगर था । बिल्डिंग टैरेस पर मैंने पत्थर लुढ़कने की आवाज सुनी । उस तरफ देखा और ... उसी वक्त टैरेस से फोटो खींच लिया गया। अब तो... अब तो मुझे ऐसा लग रहा है जेसे वह आवाज जानबूझकर पैदा की गई थी ताकि चौंककर उस तरफ देखूं और मेरे चेहरे का साफ फोटो लिया जा सके । यदि वह आवाज नहीं हुई होती तो मैं उस तरफ देखता ही क्यों? उस अवस्था में, फोटो लिया भी जाता तो चेहरा साफ नहीं आता मेरा । यकीनन उसने साफ फोटो लेने के लिए...


“तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है देवांश । वहम हो गया लगता है तुम्हें । मुमकिन है बिजली चमकी हो । आकाश पर बादल छाये हुए हैं। भला रात के इस वक्त वहां तुम्हारा फोटो कौन लेगा? कोई कैसे अनुमान लगा सकता है तुम उस वक्त वहां होंगे?” “व-वही। वही कह रहा हूं मैं।” अभी तक डरा हुआ देवांश कहता चला गया— “ऐसा लगता है जैसे टैरेस पर छुपा वह, काम निपटाकर मेरे उस प्वाईट पर पहुंचने की प्रतीक्षा कर रहा था । जैसे ही उपयुक्त मौका मिला। उसने आवाज पैदा की और ... मेरे ऊपर देखते ही फोटो खींच लिया।"


“अब तक तो मुझे केवल शक था मगर अब यकीन हो गया है ।" ठकरियाल की बात पर जरा भी ध्यान दिये बगैर देवांश कहता चला गया—“मरने से पहले हमारे चारों तरफ कोई बहुत ही गहरा जाल बिछा गया है राजदान | और... और दिव्या, वह जाल ठकरियाल पर खत्म नहीं हो जाता। हम जो यह सोच रहे थे वह ठकरियाल को हमें सताने, डराने, जलील और आतंकित करके जेल में ठूंसने का काम सौंपकर मरा है, गलत है । उसका प्लान इससे आगे, शायद बहुत आगे तक कुछ और है ।”


“कहना क्या चाहते हो तुम” ठकरियाल की पेशानी पर बल पड़ गये— “क्या यह कि राजदान पहले ही बयान कर चुका था एक स्पॉट विशेष पर आकर मैं उसका काम पूरा करने की जगह तुम लोगों से मिल जाऊंगा?” “क-क्यों नहीं हो सकता ऐसा ? बल्कि... मुझे तो पूरा विश्वास है — ऐसा ही है।”


“कौड़ी जरा दूर की है।”


“पिछली घटनाओं पर गौर करें तो राजदान के लिए जरा भी दूर की नहीं लगती।” 


“मतलब?”


“याद करो! तुम्हीं ने बताया था।” देवांश बोला— “इन पांच लाख से पहले वह तुम्हें एक मोटी रकम देकर, कोई काम करा चुका था। उसी के कारण उसे विश्वास था पांच लाख रुपये की खातिर तुम हमारे साथ वह करोगे जो वह चाहता था । अर्थात्...वह जानता था तुम एक ऐसे पुलिसिये हो जो पैसों की खातिर गैर-कानूनी काम भी कर सकतें हो । अब सोचो—क्या उसने यह कल्पना नहीं कर ली होगी कि पांच करोड़ की ‘अर्निंग' की सम्भावना कर सकता है । तुम्हारा रुख क्या होगा? मैं दावे से कह सकता हूं ठकरियाल, जैसे वह यह बात अच्छी तरह जानता था हम पांच करोड़ की खातिर आत्महत्या को हत्या बनाने की कोशिश जरूर करेंगे वैसे ही यह भी जानता था तुम वह शख्स नहीं हो जो पांच करोड़ का लालच छोड़कर केवल इसिलये हमें जेल में ठूंसने की बेवकूफी करो क्योंकि ऐसा करने के लिए उसने अपने लेटर में लिखा था। उसे अच्छी तरह मालूम था— बीमे की रकम से हिस्सा हथियाने की खातिर तुम वही करोगे जो कर रहे हो ।”


“अर्थात् वह जानता था मैं भी तुम्हारी राहों का राही बन जाऊंगा?”


“पक्की बात है ठकरियाल । पक्की बात है ये । आदमी की बहुत अच्छी पहचान थी उसे । भगवान की तरफ से हर आदमी को कोई न कोई ‘गॉड गिफ्ट’ होती है। उसे यही गॉड गिफ्ट थी। आदमी को बहुत अंदर तक बहुत जल्दी पहचान लेता था वह । अपने इसी गुण के कारण फुटपाथ से उठकर राजदान ऐसोसियेट्स जैसी जागीर खड़ी कर सका । बबलू के बारे में जब एक बार मैंने और दिव्या ने कहा- -'यह चोरी कर सकता है।' तो बड़ी दृढ़ता के साथ कहा था उसने किसी हालत में यह लड़का चोरी नहीं कर सकता। आदमी को पहचानने का गुण पैदा करो अपने अंदर । जिसमें यह गुण होता है वह आश्चर्यजनक रूप से तरक्की करता है। यकीनन वह समझ गया होगा—तुम जैसा दौलत का दीवाना शख्स किसी हालत में इतनी आसानी से मिलती नजर आने वाली दौलत का लालच छोड़कर वह करने वाला नहीं जो उसने लेटर में लिखा है। अपना आगे का जाल उसने इस बात को अच्छी तरह समझने के बाद ही बिछाया होगा।”


“बड़ी आश्चर्यजनक और दिलचस्प बात कह रहे हो तुम ।” ठकरियाल के होठों पर अजीब मुस्कान उभरी थी – “हालांकि मुझे बिल्कुल विश्वास नहीं है राजदान ऐसा सोच पाया होगा मगर, यदि सचमुच इसने यह सब सोच लिया था तो... “तो?”


“मजा भी आयेगा इस मरे हुए आदमी से टकराने में।” कहने के साथ उसने सोफा चेयर पर लुढ़की पड़ी राजदान की लाश की तरफ देखा। एक और सिगरेट सुलगाई। चहलकदमी सी करता उसकी तरफ बढ़ता बोला – “यह! सोचने ही में मजा आ रहा है। इस बार मेरी टक्कर एक लाश से हैं उस शख्स के दिमाग से जो मर चुका है। अपनी अब तक की जिन्दगी में ठकरियाल जिन्दा लोगों से बहुत टकराया है और ... कभी किसी से शिकस्त नहीं खाई। लाश से टकराने का यह पहला मौका है । बल्कि... मैं तो कहूंगा — हमसे पहले दुनिया का कोई भी शख्स किसी लाश के दिमाग से नहीं उलझा होगा।”


“पता नहीं तुम क्या बके चले जा रहे हो । हमारी समझ में कुछ नहीं आ रहा ।”


“सबसे पहले अपने खोपड़े से खौफ नाम के कीड़े को निकालकर फैंको मिस्टर देवांश, उसके बाद समझ सकोगे मेरी बात। ये कीड़ा आदमी के सोचने-समझने की सभी शक्तियों को 'चट्ट' कर जाता है । मैं ये कह रहा हूं – अगर तुम्हारी बात सच है, यानि—यदि यह शख्स मरने से पहले न केवल यह समझ चुका था तुम क्या करोगे बल्कि यह भी समझ चुका था ठकरियाल क्या करेगा और उसी के आधार पर अपना जाल बिछा गया है तो वास्तव में कमाल करके मरा है ये आदमी । इस कमाल को मुझे देखना होगा। घुसना पड़ेगा इसके चक्रव्यूह में ताकि देख सकूँ—कितनी दूर तक सोच चुका था ये करामाती शख्स।”


“त- तुम – तुम ।” देवांश हकला उठा


“तुम पागल हो गये लगते हो।”


बड़ी ही मोहक मुस्कान उभरी ठकरियाल के होठों पर—“इस खुशफहमी की वजह?” 


“वही करते चले जाना पागलपन नहीं तो और क्या है जो ये मरा हुआ शख्स चाहता था कि हम करें।"


“अगर तुम्हारी नजर में यह पागलपन है तो ऐसे पागलपन ठकरियाल ने हमेशा पसंद किये हैं।” “यानी तुम अब भी इस आत्महत्या को हत्या साबित करने की कोशिश करोगे?” “बढ़े हुए कदम न मैंने पहले कभी वापस लिए है, न अब लूंगा । बहरहाल, तुम इतनी मेहनत करके वहां पेरपरवेट फेंककर आये हो ।”


“नहीं।...हम इस पागलपन में तुम्हारे साथ नहीं दे सकते।” कहने के साथ देवांश ने समर्पण की उम्मीद में दिव्या की तरफ देखा। उस दिव्या की तरफ जो काफी देर से खामोश खड़ी उनकी बहस सुन रही थी । चुप्पी का राज था — वह फैसला नहीं कर पा रही थी, आगे क्या करे? देवांश ने कहा – “तुम चुप क्यों हो दिव्या, बोलतीं क्यों नहीं कुछ?”


“तुम्हारे कहने का मतलब है— फोटो खींचने वाला जो भी था, उसे राजदान ने अपनी मौत से पहले ही इस काम पर नियुक्त कर दिया था ?”


“हन्डरेड परसेन्ट। राजदान उसे भी ठीक उसी तरह खास काम पर नियुक्त करने के बाद मरा है जिस तरह ठकरियाल को हमें आतंकित आदि करने का काम सौंपा था।”


“अर्थात् राजदान जानता था— हम हत्या के जुर्म में किसी और को नहीं बल्कि सिर्फ और सिर्फ बबलू को फंसाने की कोशिश करेंगे?” 


“हकीकत यही है ।”


“यानी राजदान यह भी जानता था – तुम उसके कमरे में लेटर फैंकने जाओगे?”


“लेटर की कल्पना भले ही न कर सका हो मगर इतना तो वह समझ ही गया होगा कि बबलू को फंसाने के लिये हममें से किसी को एक बार उस खिड़की पर पहुंचना होगा। लेटर फैंकने न जाता तो जेवर और रिवाल्वर प्लान्ट करने जाता।”


देवांश कसमसा रहा था— “कौड़ी देखने-सुनने में भले ही दूर की लग रही है। लेकिन असल में राजदान के लिये जरा भी दूर की नहीं थी। सोचो—‘यह’ जानता था हम बबलू से चिड़ते हैं। हमें शक रहता है बबलू मौका लगते ही लॉकर पर हाथ साफ कर सकता है। ऐसी अवस्था में इसने बड़ी आसानी से अनुमान लगा लिया होगा, जब हम आत्महत्या को हत्या साबित करने पर आमादा होंगे तो हत्यारे के रूप में स्वाभाविक रूप से दिमाग में बबलू का नाम आयेगा। रही टैरेस पर फोटोग्राफर की जरा भी अस्वाभाविक नहीं रहा होगा क्योंकि वह जानता था – तुम जानती हो कि बबलू अपने कमरे की खिड़की खोलकर सोता है। उसने सोच लिया होगा—अपनी इसी जानकारी का लाभ उठाती हुई तुम रिवाल्वर या ज्वेलरी को उसी रास्ते से बबलू के कमरे में पहुंचाने की कोशिश करोगी। जैसा कि पहले हमारा प्लान था भी । ”


“बात में जान है।” दिव्या ठकरियाल की तरफ पलटती हुई बोली— “बात में वाकई जान है ठकरियाल । देव की बातें सुनने के बाद लगता है—राजदान के लिये इन सब घटनाओं का पूर्वानुमान लगा लेना उतना ही आसान था जितना दो और दो को जोड़ना।” 


“क्या तुम भी यही कहना चाहती हो कि हम इस सिलसिले को यहीं रोक दें? आगे न बढ़ें?” 


“फायदा क्या बढ़ने से?”


“मतलब?”


“जिस प्लान के तहत हमने बबलू को राजदान का हत्यारा सिद्ध करने के मंसूबे बनये हैं वह उस फोटो के कोर्ट में पहुंचते ही धराशाही हो जायेगा।”


“उत्साहित देवांश ने कहा- -“न केवल प्लान धराशाही हो जायेगा बल्कि यह भी सिद्ध हो जायेगा बबलू को फंसाने की कोशिश हमने की है ।”


“फोटो अगर खींचा ही गया है तो उसे अब वैसे भी किसी ऐसी जगह पहुंचना ही है जहां हमारे लिए मुसीबत बन सके।” ठकरियाल बोला— “लिहाजा, हमें घबराकर अपने कदम वापस खींचने की जगह उस फोटो और फोटो खींचने वाले से निपटने के बारे में सोचना चाहिये।”


“जब हम कानून के समक्ष ‘एक्सेप्ट' ही कर लेंगे की— 'हां, हमने आत्महत्या को हत्या और बबलू को हत्यारा सिद्ध करने की कोशिश की है।’ तो...उसके बाद, हमारा वहां क्या बिगाड़ लेगा वह फोटो? रास्ता यही ठीक है दिव्या — हमें अपना गुनाह कुबूल करके शांति के साथ जेल चले जाना चाहिये । बेटे अभी भी बाप के घर है। हमारे किसी कृत्य से किसी का कुछ बिगड़ा नहीं है। यदि लालच में घुसे रहे, आत्महत्या का हत्या सिद्ध करने के इस मिशन पर काम करते रहे तो मुझे विश्वास हो गया है— ऐसे फसेंगे कि निकलते न बन पड़ेगा ।”


एकाएक ठकरियाल का लहजा थोड़ा कठोर हो गया— “निकल तो तुम अब भी नहीं सकते।”


“म-मतलब?” देवांश हकला गया ।


“अब भी, और आगे भी- - केवल दो रास्ते हैं तुम पर ।" ठकरियाल एक-एक शब्द पर जोर देता कहता चला -समाज के सामने सम्बन्धों का खुलासा करके जेल चले जाओ | दूसरा — मेरे साथ पांच करोड़ कमाने के मिशन पर आगे बढ़ो । काम करो ।”


दिव्या ने कहा—“तुम हमें जेल भेज दोगे। उसेक लिए हम तैयार हैं। इसमें समाज के सामने सम्बन्धों का खुलासा होने की बात कहां से आ गई?” 


“मैं करूंगा ऐसा।”


“त-तुम?”


“जी।”


“क्यों?”


“क्योंकि तुम मेरा साथ नहीं दे रहे। ।


“त-तुम्हारा साथ?”


“अब ये मिशन तुम्हारा नहीं, मेरा है मिस्टर देवांश । पर्सनल मेरा ।” ठकरियाल कहता चला गया — “ और मैंने आज तक जिन्दा लोगों के सामने घुटने नहीं टेके।... इस लाश के पैंतरों के सामने टेकूंगा क्या?”


सन्नाटा छा गया दिव्या और देवांश के दिमांगो पर । एक नजर एक-दूसरे को देखा, फिर देवांश ने कहा – “मुझे लगता है, बीमे की रकम हमें कम —तुम्हें ज्यादा आकर्षित कर रही है । "


“ये सच तो है, मगर पूरा नहीं—आधा सच है।” 


“मतलब?”


“आकर्षित तो यह रकम तुम्हें भी उतना ही कर रही है जितना मुझे। फर्क केवल ये है, एक तो तुम पहले ही से डरे हुए थे—ऊपर से फोटोग्राफर ने रहे-सहे हौसले भी पस्त कर दिये है जबकि मैं ।” कहने के बाद वह थोड़ा ठिठका, पुनः बोला— “मैं जानता हूं, मरे हुए इस शख्स द्वारा खड़ी की जाने वाली सभी बाधाओं को तोड़ता हुआ बीमे की रकम तक पहुंच जाऊंगा।” 


“लेकिन जब हम ही प्लान पर काम करने के लिए तैयार नहीं है तो कैसे बीमे की रकम तक पहुंच जाओगे तुम?” देवांश ने कहा- -“बहरहाल, नोमिनी दिव्या है। किसी भी हालत में रकम अगर मिली भी तो दिव्या को मिलेगी ।”


“इसीलिए तो मजबूर हूं तुम्हें अपने साथ चिपकाये रखने पर ।”


“नहीं... अब हम हरगिज इस प्लान पर काम नहीं करेंगे” 


“करना पड़ेगा।”


एकदम से जवाब नहीं दे सका देवांश | घूरता रह गया उसे । फिर बोला— “जबरदस्ती है कोई?"


“यूं भी कह सकते हो। मगर... कोशिश करो समझने की। अहम् बात ये है— कोर्ट में मुजरिम द्वारा खुद किसी जुर्म को कुबूल करने अथवा किसी दूसरे माध्यम से साबित होने पर कोई फर्क नहीं पड़ता। सजा वही होती है जो उस जुर्म के करने पर भारतीय दंड विधान में लिखी है। अर्थात् तुम्हारे द्वारा अपने कृत्य को आज ‘एक्सेप्ट' कर लेने या कल किसी और माध्यम से साबित हो जाने से स्थिति पर बाल बराबर फर्क पड़ने वाला नहीं है । ऐसी अवस्था में घबराकर आज ही घुटने टेक देने से कोई फायदा होने वाला नहीं है। कल हम अपने प्रयासों से इस मरे हुए आदमी के जाल को तोड़ भी सकते है। उस अवस्था में एक तरफ हमारा बाल तक बांका नहीं होगा। दूसरी तरफ पांच करोड़ हमारे कदम चूम रहे होंगे।”


“उफ्फ!” कसमसाता सा देवांश दांत भींचकर कह उठा – '  -“तुम लोग समझ क्यों नहीं रहे । असल में यही लालच हमारा बंटाधार करने वाला है।”


“दूसरा फायदा।” ठकरियाल उसके शब्दों पर जरा भी ध्यान दिए बगैर कहता चला गया- -“कल किसी और माध्यम से कलई उतरी तो केवल इतनी उतरेगी कि तुमने आत्महत्या को हत्या सिद्ध करने और उस जुर्म में बबलू को फंसाने की कोशिश की जबकि आज ‘एक्सेप्ट’ करके मेरी नाराजगी खरीद बैठोगे । जिसका सीधा नुकसान यह होगा कि — मैं तुम्हारे सम्बन्धों को सार्वजनिक कर दूंगा। लोगों को बता दूंगा तुम कैसे देवर-भाभी हो।”


यूं — समझाते-समझाते उसने अपनी बात ‘धमकी' के नोट पर समाप्त की। यह धमकी ऐसी थी कि दोनों में से कोई पलटकर तुरन्त कुछ न कह सका। उस वक्त वे एक-दूसरे को देख रहे थे जब ठकरियाल ने गर्म लोहे पर चोट की— “अब सबसे बड़ी बात — सोचो, मैं क्यों हाथ डाल रहा हूं इस काम में? जाहिर है— बेवकूफ नहीं हूं। अभ्यस्त हूं इस किस्म की पैंतरेबाजियों का। मुझे साफ नजर आ रहा है — जरा सी मेहनत के बदले पांच करोड़ कमाये जा सकते हैं।”


“बात में दम है देव।” सारी स्थिति पर गौर करने के बाद दिव्या कह उठी — “जो आज होना है, वही कल होना है। फिर क्यों न एक चांस लिया जाये? मुमकिन है कामयाब हो ही जायें, जैसी कि ठकरियाल को उम्मीद है। न भी हो सके तो कम से कम ठकरियाल की नाराजगी तो मोल नहीं लेंगे जिसका हमें फायदा मिलेगा।"


“समझने की कोशिश करो दिव्या । यह आदमी यह सब इसलिये कह रहा है क्योंकि हमारे साथ काफी हद तक खुद भी फंस चुका है।” देवांश ने कहा—“हमारे इस वक्त सरेन्डर कर देने का मतलब है — उस लेटर का सामने आ जाना जिसे मैं बबलू के कमरे में फैंककर आया हूं। राजदान के नाम से उसे इसने लिखा है। सोचो— वह इसके अफसरों को बता देगा, बीमा कम्पनी की रकम हड़पने पर हम ही नहीं यह भी काम कर रहा था ।”


“सोहल आने सही बात मिस्टर देवांश ।” दिव्या के कुछ कहने से पहले खुद ठकरियाल कह उठा — -“इस स्टेज पर तुम्हारा टूट जाना मेरे लिये भी मुसीबत का वायस बन जायेगा। इसलिये, तुम्हें टूटने नहीं दूंगा मैं । टूटे... तो मेरा चाहे जो हो, तुम्हें लम्बा लाद दूंगा। असल पूछो तो अब कदम वापस खींचने की स्टेज ही नहीं रही । बीच रास्ते पर हिम्मत हारने वाले मर भी सकते हैं और मंजिल को पा भी सकते हैं। मंजिल पाने की कोशिश करने के अलावा अब हमारे पास कोई रास्ता नहीं है।” 


दोनों चुप रहे गये।


चेहरे के भाव साफ बता रहे थे – वे कोई फैसला नहीं कर पा रहे हैं । “बबलू आने वाला होगा।” चुप्पी का लाभ उठाते ठकरियाल ने अपनी रिस्टवॉच पर नजर डाली – “हमें उसके स्वागत की तैयारी कर लेनी चाहिये।”


दिव्या और देवांश अब भी कुछ न बोल सके। उनकी परवाह किये बगैर ठकरियाल ने लाईट के स्वीच ऑफ करने शुरू कर दिये। दिलो-दिमाग में तो पहले ही अंधेरा छा चुका था, कमरे में भी छा गया।


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