देवराज चौहान उसी तरह उसे देखता रहा।
"तूने तो सोचा होगा कि मेरे को मार देगा मार भी देता अगर एक गोली और बची होती, परन्तु गोली कैसे बचती। मेरी लम्बी जिन्दगी को भगवान ही छोटी बना सकता है। तू नहीं।” दोसा मौत भरे स्वर में कहे जा रहा था - "जंग के मैदान में उतरने से पहले हथियारों को तैयार कर लेना चाहिये। तेरा तो चैम्बर ही खाली था। मैंने गिना। पांच गोलियां निकली तेरे रिवाल्वर से । मालखाना भरा नहीं था क्या?”
देवराज चौहान के चेहरे पर मौत भरी मुस्कान आई । “कभी-कभी हो जाता है ऐसा भी - ।”
“आज तेरे को जिन्दगी ने धोखा दे दिया।” दोसा हंसा- "बंसी भाई का क्या किया तूने?”
“मार दिया।”
“बढ़िया । बढ़िया किया। मेरे को फायदा मिलेगा। उसके कई धंधे मैं देखता हूं। वो सब मेरे हो जायेंगे। अब ।” -
ठीक उसी पल देवराज चौहान ने हाथ में पकड़ी रिवाल्चर दोसा पर दे मारी। इस वक्त अंधेरे का फायदा मिला देवराज चौहान को कि दोसा को उसकी हरकत का एहसास बाद में हो सका।
रिवाल्वर दोसा के गले में जा टकराई। दोसा चेहरे पर हाथ रखते हुए चीखा। एक कदम पीछे हुआ।
लड़खड़ाया ।
देवराज चौहान ने चील की तरह उस पर झपट्टा मारा। लेकिन ऐसा लापरवाह नहीं था। उसने गोली चला दी। देवराज चौहान ने भी उसकी हरकत देख ली थी। वो जरा सा टेढ़ा हुआ। इस पर भी उसे यकीन नहीं था कि गोली से बच जायेगा। लेकिन बच गया। तब तक वो दोसा के पास पहुंच चुका था। दोसा को पुनः रिवाल्वर इस्तेमाल करने का मौका नहीं मिला। देवराज चौहान ने अपनी दाईं हथेली उसकी रिवाल्वर पर जमा दी। जो उसके हाथ में दबा था और दूसरे हाथ से घूंसा उसके चेहरे पर मारा। दोसा लड़खड़ाया। लेकिन गिरा नहीं।
दोसा ने अपना हाथ देवराज चौहान की गर्दन पर जमा लिया। देवराज चौहान ने दांत भींचे उसके पेट में पुनः घूंसा मारा । घूंसा इतना तेज था कि अगर किसी इन्सान के पेट में लगता तो वो शायद दो-चार दिन हिलने के काबिल नहीं रहता। लेकिन दोसा पर घूंसे ने खास असर नहीं देखाया। न तो उसका हाथ देवराज चौहान की गर्दन से हटा और न ही उसने रिवाल्वर छोड़ी।
तभी दोसा ने अपना सिर देवराज चौहान की छाती पर वेग से मारा।
देवराज चौहान को इस बार से कोई खास फर्क नहीं पड़ा। परन्तु साथ ही ये बात भी समझ गया कि उसका वास्ता दमदार इन्सान से पड़ा है। जो हथियारों की लड़ाई ही नहीं। हाथों की लड़ाई भी जानता है। दोसा का पंजा उसके गले पर अवश्य था, लेकिन वो गले पर ज्यादा दबाव नहीं बना पा रहा था।
आसपास के घरों से लोग जितना हादसा देख सकते थे देख रहे थे।
तभी दोसा ने देवराज चौहान की टांगों में अपनी टांग फंसाकर, टांग को तीव्र झटका दिया तो देवराज चौहान लड़खड़ाकर नीचे जा गिरा। गिरते ही उसने दोसा की दोनों टांगें खींच लीं। दोसा झटके से नीचे गिरा। रिवाल्वर उसके हाथ में ही रही। देवराज चौहान ने उसके रिवाल्वर वाले हाथ पर वार किया। ।
हाथ पर ऊपर से वार और नीचे का हिस्सा सड़क से टकराया। उसी पल हाथ दर्द से भर गया और रिवाल्वर उसके हाथ से निकल गई। उंगलियां खुल गईं ।
देवराज चौहान ने बिना वक्त गंवाये रिवाल्वर झपट ली और उछल कर खड़ा हो गया ।
नीचे पड़ा दोसा संभला । धीरे-धीरे वो खड़ा हुआ। “तू तो वास्तव में बहुत खतरनाक है।” दोसा के होंठों से निकला। उसने सूख रहे होठों पर जीभ फेरी ।
देवराज चौहान ने बिना कुछ कहे, दांत भींचे ट्रेगर दबा दिया। लीवर की आवाज खड़क कर रह गई। दोसा की रिवाल्वर का चैम्बर भी खाली था।
फक्क पड़े दोसा के चेहरे का रंग लौटने लगा। वो हौले से हंसा । फिर हंसी तेज हो गई ।
“मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है।" दोसा अजीब-से ढंग से हंसा- “बच गया मैं मेरे रिवाल्वर में भी गोली नहीं थी। मेरे को नहीं पता था । बच गया मैं ।" इसके साथ ही दोसा ने फुर्ती से जेब से दूसरी रिवाल्वर निकली और मौत भरी हंसी हंस पड़ा- “क्या कहूं दूसरी रिवाल्वर रखना उस्ताद की सीख है । उस्ताद ने एक बार मुझे समझाया था कि एक वक्त ऐसा आता है जब जेब वाली रिवाल्वर ही काम आती है। हाथ में पकड़ी रिवाल्वर हमेशा धोखा ही देती है। मैंने उस्ताद की बात का हमेशा ध्यान रखा। आज तक तो हाथ वाली रिवाल्वर ही सारे काम निपटा देती थी। आज पहली बार जेब वाली रिवाल्वर काम आई।
तुम से मुकाबला करने में बहुत मजा आया। वो अपना बंसी भाई है ना, जिसे तुम टपका आये हो। वो अक्सर खेल-खेल में अपने शिकार को भौत देता था। देखकर मुझे बहुत अच्छा लगता था। लेकिन कभी किसी को खेल में मौत देने का मौका नहीं मिला। आज मौका है। वक्त है। तेरे से खेलूंगा मौत का खेल या सीधे-सीधे गोली मारूं?”
देवराज चौहान के चेहरे पर मौत से भरी खतरनाक मुस्कान उभर आई ।
देवराज चौहान कह उठा ।
“आज तुम खेल-खेल में मौत देने की शुरूआत कर ही लो।"
“ये तो बढ़िया बात हो गई. ।”
“कैसे खेलोगे- ?”
“ये छोटी सी गली है । तुम भागो। जब तक आधी गली पार नहीं कर जाओगे, मैं तुम्हारा निशाना नहीं लूंगा। आधी गली के पार होते ही मैं तुम्हें शूट करूंगा। तुम बचने की कोशिश करना। बचकर गली पार कर गये तो तुम बच गये। फिर तुम्हें नहीं मारूंगा। लेकिन ध्यान रखना कि मेरा निशाना बहुत पक्का है।"
“अंधेरे में अच्छे-से-अच्छे निशानेबाजों को निशाना चूक जाता है।” देवराज चौहान बोला ।
“मेरा नहीं चूकेगा।” दोसा खतरनाक स्वर में हंसा- “चूक गया तुम्हारा ही फायदा है।” तो
देवराज चौहान ने गहरी निगाहों से दोसा को देखा। वो दोसा की रिवाल्वर पर कब्जा पा लेना चाहता था, परन्तु दोसा के सावधान होने की वजह से उसे मौका नहीं मिल पा रहा था।
"बहुत ज्यादा विश्वास है तुम्हें अपने पर-1" देवराज चौहान के होंठ सिकुड़ चुके थे।
"खेल में शामिल है तो पलट कर भागना शुरू कर दे। वरना - ।” दोसा को घूरने के पश्चात् देवराज चौहान होंठ भींचे पलटा और गली में दौड़ा।
रिवाल्वर थामे फायर करने को तैयार था।
दोसा चार-पांच मकान पार करते ही एक मकान का दरवाजा खुला नजर आया और एक आदमी जरा-सा सिर बाहर निकाले देख रहा भीतर था। देवराज चौहान पलटा और उस व्यक्ति को धकेलते प्रवेश करके दरवाजा बंद किया और उससे बोला । ।"
“भीतर चलो।"
देवराज चौहान उसके साथ मकान के भीतर गया और भीतर से दरवाजा बंद कर लिया।
कमरे में रोशनी थी। वो पचास बरस के आसपास का व्यक्ति था। चेहरे पर दाढ़ी थीं। वो अकेला ही था घर में। वहां साधारणसा सामान रखा हुआ था ।
दोनों ने एक-दूसरे को देखा।
तभी बाहर से दरवाजा थपथपाने और दोसा के चिल्लाने की आवाज उसके कानों में पड़ी।
“वो बदमाश तुम्हें गोली मारने वाला था।" उसने कहा- "मैं सब देख-सुन रहा था।"
“वो भीतर भी आ सकता है।" देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा – “तुम्हारी जान भी खतरे में पड़ सकती है। "
“मेरे पास रिवाल्वर है।" उसने गम्भीर स्वर में कहा। देवराज चौहान की निगाह उसके चेहरे पर जा टिकी। “लेकिन मुझे रिवाल्वर चलानी नहीं आती।"
बाहर से दोसा के थपथपाने की, चिल्लाने की, गालियां देने की आवाजें आ रही थीं।
“फिर रिवाल्चर रखी क्यों?" देवराज चौहान ने कहा। वो कुछ नहीं बोला ।
“मुझे कुछ देर के लिये रिवाल्वर दे दो। जो भी पैसे मांगोगे, दे दूंगा।"
“पैसे की जरूरत नहीं है मुझे - 1" उसने देवराज चौहान को देखा।
“तो ?"
कुछ पल चुप रहकर वो कह उठा । “एक काम है मेरा। उसे करोगे तो मैं अपना सब कुछ तुम्हें दे दूंगा।"
“कैसा काम ?” तब तक दोसा बाहरी दीवार फांद कर भीतर इस कमरे के बंद दरवाजे के पास आ पहुंचा था। उसने दरवाजा तोड़ने वाले अंदाज में जोर से दरवाजा भिड़भिड़ाया और गुस्से से भरी आवाज आई। “कमीने तेरे को छोडूंगा नहीं मैं मैं तेरे को-।" दोसा की आवाज आती रही । दोनों ने दरवाजे को देखा। फिर एक-दूसरे को। “मुझे रिवाल्वर दो।" देवराज चौहान ने कहा। .“वायदा करो कि मेरा काम करोगे।* “काम जाने बिना मैं - 1” “बाहर वो बदमाश है। कभी भी दरवाजा तोड़कर भीतर आ जायेगा। ऐसे में तुम्हें - "
तभी बाहर से दोसा ने फायर किया। गोली दरवाजे में से छेद बनाती भीतर आ गिरी ।
देवराज चौहान का चेहरा और भी कठोर हो गया। दांत भिंच गये।
मैं तुम्हारा काम करूंगा। लाओ - रिवाल्वर दो।" "वायदा करते हो। बाद में पीछे तो नहीं हट जाओगे कि- " “देवराज चौहान नाम है मेरा। जो जुबान देता हूं। पूरा करके रहता हूं।" देवराज चौहान ने सपाट स्वर में कहा।
वो दूसरे कमरे में गया। फौर्न वापस आया। हाथ में रिवाल्वर थी। रिवाल्वर उसने देवराज चौहान को थमा दी। देवराज चौहान ने रिवाल्वर चैक की । वो विदेशी थी। कीमती थी। चार गोलियां बाकी थी उसमें । देवराज चौहान की आंखों में मौत के भाव नाच उठे ।
दोसा अभी भी दरवाजे के बाहर था और भीतर आने की कोशिश कर रहा था !
देवराज चौहान ऐसी कुर्सी पर बैठा जो दरवाजे के ठीक सामने थी।
“दरवाजा खोलो।" देवराज चौहान की आवाज में मौत के ठण्डे भाव थे ।
“वो - वो तुम्हारे साथ-साथ मुझे भी गोली मार देगा।" उसने जल्दी से कहा ।
देवराज चौहान ने हाथ में दबी रिवाल्वर का मुंह दरवाजे की तरफ किया।
दोसा दरवाजा तोड़ने पर आमादा था। और दरवाजा अब टूटने जैसा हो भी रहा था ।
“दरवाजा खोल दो। देर मत लगाओ। दरवाजा कभी भी टूट सकता है। तब हालात बदल भी सकते हैं।" देवराज चौहान ने एक-एक शब्द पर जोर देकर कहा-“वो पागल हुआ पड़ा है।"
उसने देवराज चौहान की आंखों में देखा। चेहरे पर फैसले के भाव उभरे। वो दरवाजे की तरफ बढ़ा।
“एक तरफ हटकर दरवाजा खोलना। वरना गोलियां तुम्हें भी लग सकती हैं। "
उसने दरवाजे के पास पहुंच कर सिटकनी को हटाया और जल्दी से दीवार से सट गया।
बाहर से दरवाजे को धक्का मारते दोसा सिटकनी हटते ही बुरी तरह लड़खड़ा कर भीतर आ पहुंचा।
इससे पहले कि वो संभल पाता- देवराज चौहान के हाथ में दबी रिवाल्चर से एक के बाद तीन गोलियां निकलीं और दोसा के शरीर के कई हिस्सों में जा धंसीं । दोसा गला फाड़कर चीखते हुए इस तरह नीचे गिरा, जैसे किसी ने उसे धक्का दे दिया हो। उसके हाथ में दवी रिवाल्वर दीवार से टकराती हुई जाने किधर जा गिरी थी ।
कुछ पल तड़प कर दोसा का शरीर शांत पड़ गया।
देवराज चौहान का चेहरा सपाट था। मौत के सर्द भाव खुद में समेटे आंखें दोसा की लाश पर टिकी थीं। दोसा ने डटकर उससे मुकाबला किया था। इस मुकाबले में वो अवश्य जीत जाता अगर इस घर में रहने वाले व्यक्ति के पास रिवाल्वर न होती। दोसा वास्तव में खतरनाक लड़ाका था ।
देवराज चौहान के हाथ में दबी रिवाल्वर को देखा फिर कुर्सी से उठकर उसके पास पहुंचा।
“मेहरबानी। बहुत-बहुत शुक्रिया देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा - "तुम्हारी दी रिवाल्वर से ही मैं बच सका।" “मैंने तुम्हें रिवाल्वर इसलिये नहीं दी कि तुम मुझे मेहरबानी या शुक्रिया कहो।” गम्भीर स्वर में कहते हुए उसने देवराज चौहान के हाथ से रिवाल्वर ले ली- “मैंने तुम्हें इसलिये दी कि तुम मेरा काम करोगे।"
“हां । तुम्हारा काम पूरा करने का मैं वायदा कर चुका हूं-।" देवराज चौहान ने कहा।
“चार गोलियां थीं इस रिवाल्वर में और तुमने तीन खर्च कर दीं। अब सिर्फ एक बची है । " देवराज चौहान ने उसके हाथ में दबी रिवाल्वर पर निगाह मार कर कहा ।
“ये विदेशी और महंगी रिवाल्वर है। इसे खरीदना आसान नहीं सकता और तुम्हें तो चलानी भी नहीं आती।" देवराज चौहान के स्वर में किसी तरह का भाव नहीं था- “कहां से ली ये रिवाल्वर ?” “मेरी नहीं है।” उसकी आवाज में हल्की-सी सख्ती आ गई। “किसी से ली है?"
“ये रिवाल्वर मोना चौधरी की है। "
“मोना चौधरी ?” देवराज चौहान जोरो से चौंका। इसके साथ ही फकीर बाबा का चेहरा आंखों के सामने नाच उठा और वो शब्द याद आये जो फकीर बाबा ने कहे थे ।
“हां । मोना चौधरी की रिवाल्वर है ये।" उसके स्वर की कठोरता और भी बढ़ गयी थी- “दिल्ली में रहती है वो । दिल्ली अण्डरवर्ल्ड में उसकी हैसियत है। वो बहुत खतरनाक शह है।"
देवराज चौहान देखता रहा उसे। वो गुस्से में नजर आ रहा था। तभी बाहर से लोगों की आवाजें कानों में पड़ने लगी थीं। "यहां इस बदमाश की लाश पड़ी है। पुलिस आयेगी।" देवराज चौहान कह उठा- “लोगों को क्या जवाब देंगे कि ये सब तुम्हारे घर पर कैसे हुआ। अगर ये रिवाल्वर तुम्हारे पास से पुलिस ने बरामद कर ली तो बदमाश की हत्या तुम्हारे सिर पर - ।”
“मुझे कुछ नहीं होगा।"
“क्यों?”
“मैं यहां से अभी चला जाऊंगा।"
“अपना घर छोड़कर ?” - “ये मेरा घर नहीं है। महीना भर पहले किराये पर यहां आया हूँ। कोई नहीं जानता मुझे। मैं किसी से ज्यादा बात नहीं करता। यहां से चला जाऊंगा तो कोई मुझे ढूंढ नहीं पायेगा।” उसने शांत स्वर में कहा।
देवराज चौहान ने उसके चेहरे के भाव देखते हुए सिग्रेट सुलगाई “तुम मुझसे क्या काम करवाना चाहते हो?" देवराज चौहान ने पूछा।
जवाब में उसने बाहरी दरवाजे की तरफ देखा ।
“पुलिस आ सकती है। बाहर से लोगों की आवाजें आ रही हैं। मुझे यहां से निकल चलना चाहिये।”
"जैसा तुम समझो । ”
“मैं अभी आया।” कहने के साथ ही वो दूसरे कमरे में चला गया ।
देवराज चौहान कश लेता रहा। तीसरे मिनट ही वो वापस आया। उसके हाथ में ब्रीफकेस था।
“पीछे से निकल जाते हैं। आगे की तरफ लोग हैं।"
देवराज चौहान उसके साथ उसी रास्ते से बाहर निकल गया। जिधर से आया था।
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