इंस्पेक्टर गरिमा देशपाण्डेय अपने कमरे में पहुँचकर ढंग से बैठने भी नहीं पाई

थी कि एक औसत कद बुत की, आधुनिक परिधानों में सजी धजी लड़की भीतर पहुँची और बिना कुछ कहे-सुने पूरी तरह धृष्टता का प्रदर्शन करती हुई उसके सामने मौजूद चेयर पर टांग पर टांग चढ़ाकर बैठ गयी।

गरिमा को उसका वह व्यवहार बड़ा ही अजीब लगा, अमूमन पुलिस के सामने वैसा कोई नहीं करता, जबकि वह तो यूँ जाहिर कर रही थी जैसे कहीं की महारानी हो। जवाब में उसने जान बूझकर लड़की की तरफ ध्यान नहीं दिया, उल्टा अपना मोबाइल उठाकर बेवजह उसमें निगाहें मारने लगी।

कुछ वक्त यूँ ही गुजर गया, कनखियों से गरिमा ने कई बार लड़की को पहलू बदलते देखा। कई बार उसने कुछ कहने के लिए मुँह भी खोला मगर फौरन बाद बंद कर लिया।

इंस्पेक्टर उसकी इस स्थिति का आनंद लेती रही। किसी का भी मनोबल गिराने का ये उसका अपना स्टाइल था कि सामने वाले को भाव ही मत दो। ऐसा ही वह अपराधियों के साथ भी करती थी, नतीजा ये होता था कि कुछ ही देर में वह बेचैन हो उठते थे।

लड़की भी बेचैन हो रही थी। गरिमा कुछ बोल नहीं रही थी इसलिए कुछ देर पहले तक उसके चेहरे पर दिखाई दे रहा रौब लगातार धूमिल पड़ता जा रहा था। असल में वह रास्ते भर तरह तरह के डॉयलाग सोचती हुई वहाँ पहुँची थी, मगर इंस्पेक्टर को चुप देखकर उसे अपनी भड़ास निकालने का मौका ही हासिल नहीं हो पा रहा था।

आखिरकार वह चुप्पी उसके बर्दाश्त से बाहर हो गयी।

“आप क्या बहुत ज्यादा बिजी हैं?” लड़की रूखे स्वर में बोली।

“नहीं, बिल्कुल भी नहीं। मैं तो फेसबुक पर टाइम पास कर रही हूँ। क्या करूं, कोई काम जो नहीं है इस वक्त मेरे पास।”

“कमाल है। मैं यहाँ पुलिस के बुलावे पर आपसे मिलने आई हूँ और आप फेसबुक चला रही हैं। ऐसे ड्यूटी करती हैं आप?”

“अरे तो पहले क्यों नहीं बताया?” वह मोबाइल रखती हुई बोली – “तुम चुपचाप बिना इजाजत लिए भीतर दाखिल हुईं और मेरे सामने आकर बैठ गयी, तो मैंने सोचा हमारे डिपार्टमेंट से ही कोई होगा, ऊपर से तुमने अपना परिचय भी तो नहीं दिया।”

“काव्या, काव्या अग्रवाल।”

तब पहली बार गरिमा ने ढंग से उसकी सूरत देखी। उम्र कोई बहुत ज्यादा तो नहीं लग रही थी, मगर चेहरे पर लीपा पोती खूब की गयी थी, जिसकी वजह से जो नजर आ रहा था, वह उसका मेकअप ही था। असल चेहरा तो उसके पीछे कहीं छिप गया मालूम पड़ता था। कोई बहुत ज्यादा खूबसूरत भी नहीं थी मगर अनंत गोयल की उम्र को देखते हुए उसके लिए तो हूर की परी ही थी।

“आपने क्या सोचा था?” लड़की झुंझलायी – “मुझे पुलिस हेडक्वार्टर बुलायेंगी तो मैं डर जाऊंगी, कहीं जाकर छिप जाऊंगी?”

“नहीं, ऐसा भला क्यों सोचने लगी मैं?”

“फिर भी बुलावा भेजा, जबकि चाहतीं तो हमारे बंगले पर भी आ सकती थीं।”

“देखो, आमतौर पर लड़कियां खुद नहीं चाहतीं कि पुलिस उनके घर पहुँचे, इसलिए खबर भेजी, ना कि लाव लश्कर के साथ खुद वहाँ आ धमकी। तुम्हें इसमें अपनी तौहीन महसूस हो रही है तो बेशक वापस जा सकती हो। वक्त निकालकर मैं खुद आ जाऊंगी तुम्हारे घर, आखिर ड्यूटी है मेरी।”

“अब क्या फायदा।” वह भुनभुनाई – “अब तो आ ही गयी हूँ मैं। अच्छा बताइए, क्या बात है? क्यों बुलाया है मुझे?”

“अनंत गोयल कहाँ है काव्या?”

“मुझे क्या पता कहाँ है साला, कमीना कहीं का। मुझे तो लगता है सारे मर्द एक ही जैसे होते हैं। पहले पुचपुच करते हैं, फिर कन्नी काटने लगते हैं, अधिकार जमाने लगते हैं, इंतजार कराना भी अपनी आदत में शुमार कर लेते हैं। कई दिनों से उसका मोबाइल ऑफ आ रहा है, फोन भी नहीं किया बहन चो... ने। ऐसे में मैं तो करने से रही उसके साथ मैरिज।”

“करनी भी नहीं चाहिए। जो आदमी शादी से पहले इतना गैरजिम्मेदार है, वह बाद में कैसा रवैया अपनायेगा, इसका अंदाजा लगाना कोई मुश्किल काम नहीं है। इसलिए मैरिज हमेशा सोच विचारकर, ठोंक बजाकर करनी चाहिए, आखिर जिंदगी का सबसे बड़ा फैसला होता है वह।” कहकर उसने पूछा – “बाई द वे, तलाक क्यों हुआ था तुम्हारा?”

“आपका कोई ब्वॉयफ्रेंड है?”

“नहीं है यार।” गरिमा अफसोस भरे लहजे में बोली – “लेकिन बनाना जरूर चाहती हूँ।”

“मुझे यकीन नहीं आता। इतनी खूबसूरत हैं आप, फिर ये कैसे हो सकता है कि अभी तक सिंगल हों?”

“अरे मैं सच कह रही हूँ। जैसे ही किसी लड़के से मेल जोल बढ़ाने की कोशिश करती हूँ, उसे पता लग जाता है कि मैं पुलिस में हूँ। ऊपर से जाने कैसे कमीने ये भी जान जाते हैं कि अब तक दस एनकाउंटर कर चुकी हूँ। उसके बाद लड़के का फोन ऑफ आने लगता है, तुम्हारे अनंत गोयल की तरह।”

सुनकर काव्या ने जोर का ठहाका लगाया, फिर बोली- “आप तो बहुत इंट्रेस्टिंग बातें करती हैं, जबकि यहाँ आने से पहले मैं सोच रही थी कि जाने किस खड़ूस से पाला पड़ने वाला है।”

“इंट्रेस्टिंग तो मैं बराबर हूँ काव्या, बस किसी हैंडसम लड़के को मेरी इस खूबी की कद्र नहीं होती। जैसे पुलिस में नौकरी करती ना हो गयी, कोई बहुत बड़ा गुनाह कर दिया मैंने।”

“एक पर्सनल सवाल पूछूं, बुरा तो नहीं मानेंगीं?”

“जो मन आये पूछ लो, आज मैं बहुत अच्छे मूड में हूँ।”

“कभी सेक्स किया है, या वह भी नहीं?”

“एक बार कोशिश की थी। साल भर पहले की बात है, आयांश नाम था उसका, बड़ा ही हैंडसम लड़का था, देखते ही दिल में कुछ-कुछ होने लगता था। अपनी पहचान गुप्त रखते हुए दो बार उसके साथ डेट पर भी जाने में कामयाब हो गयी। और तीसरी बार जब उसने मुझे एक होटल में चलने को कहा तो लगा आज मन की मुराद पूरी हो जायेगी।”

“हुई?”

“कहाँ हुई यार। अभी होटल के गेट पर मैं उसकी कार से नीचे उतरी ही थी कि जाने कहाँ से दो सिपाही वहाँ पहुँच गये। दोनों मुझे पहचाने थे इसलिए देखते के साथ ही सेल्यूट कर बैठे।”

“फिर क्या हुआ?”

“मुझे कार का इंजन स्टार्ट होने की आवाज सुनाई दी, और इससे पहले कि उसे रोक पाती, वह अपनी गाड़ी भगा ले गया।”

सुनकर काव्या ने जोर का ठहाका लगाया।

“दिल हुआ वहीं दोनों सिपाहियों को सबक सिखा दूँ मगर किसी तरह जब्त कर के रह गयी, क्योंकि मेरी किस्मत ही फूटी थी तो उसमें भला उन दोनों का क्या कसूर था।”

“मैं जानती हूँ ये वाली बात आपने मजाक में कही है, बट इंट्रेस्टिंग था, सुनकर मजा आया। बहुत दिनों बाद मैं इतना खुलकर हँसी हूँ, थैंक यू मैम।”

जवाब में गरिमा बस मुस्करा कर रह गयी।

“एनी वे।” लड़की ने बताना शुरू किया – “मेरा जो हस्बैंड था ना, वह साला पूरा का पूरा सैडिस्ट था। बिस्तर पर ऐसे पेश आता था जैसे मैं उसकी जरखरीद गुलाम हूँ। मैं दर्द से तड़पती थी तो वह ठहाके लगाता था। आप बिलीव नहीं करेंगी, इंटीमेट होते वक्त वह मुझे जोर-जोर से चांटे मारा करता था, पता नहीं कहाँ से सीखकर आया था कमीना। ऐसे आदमी को तलाक नहीं दे देती तो और क्या

करती?”

“अच्छा किया, ऐसा आदमी तो किसी दिन तुम्हारी जान भी ले सकता था।”

“इतनी हिम्मत तो खैर नहीं थी बहन चो....में, लेकिन ज्यादतियां तो फिर भी झेल ही रही थी मैं, ये सोचकर कि कभी तो वह अपनी हरकतों से बाज आ जायेगा, मगर नहीं आया। आखिरकार शादी के तीन सालों बाद एक रोज मैंने हमेशा के लिए उसका घर छोड़ दिया। उसके बाद तलाक होते भी देर नहीं लगी।”

“कंप्लेन क्यों नहीं कर दी ऐसे आदमी की, जेल क्यों नहीं भिजवा दिया?”

“मैं पक्का वैसा ही करती, मगर माँ ने अपनी कसम दे दी, ये कहकर कि बात पुलिस और कोर्ट तक पहुँची तो हर किसी को खबर लग जायेगी। उसके बाद अच्छे परिवारों का कोई भी लड़का मेरा हाथ थामने को तैयार नहीं होगा। असल में ये जो मम्मियां होती हैं न मैडम, यही हम लड़कियों की सबसे बड़ी दुश्मन होती हैं, डरपोक बनाकर रख देती हैं हमें। कोई माँ अपनी बेटी से शायद ही कभी ये कहती होगी कि कोई तुम्हारे साथ ज्यादती करने की कोशिश करे तो साले का गला घोंट दो, नपुंसक बना दो मादर चो.. को,  उल्टा बचपन से ही ये समझाने में जुट जाती हैं कि जमाना खराब है, ज्यादा रात तक बाहर मत रहो, अकेले कहीं मत जाओ, वगैरह-वगैरह। सही मायने में देखा जाये तो हमारे पेरेंट्स ही हमारा मनोबल गिरा देते हैं। नतीजा ये होता है कि हर तरफ, हर वक्त एक अजीब सी असुरक्षा महसूस होने लगती है, जिससे हम बुढ़ापे से पहले तो क्या बाहर निकल पाते होंगे।”

“वेरी वैल सेड काव्या, मैं तुम्हारी बात से पूरी तरह सहमत हूँ, मगर अफसोस इस बात का है कि कल को जब हम खुद पेरेंट्स बनेंगे तो हम भी वही करने लग जायेंगे, जो हमारे माँ-बाप ने हमारे साथ किया। जानती हो क्यों? इसलिए क्योंकि औलाद को लेकर, स्पेशली बेटी को लेकर हर कोई इनसिक्योर ही फील करता है। अभी मुझे ही ले लो। मैं पुलिस डिपार्टमेंट में इंस्पेक्टर हूँ, मगर हर रात आठ बजे मॉम फोन कर के ये पूछना नहीं भूलतीं कि मैं घर पहुँच गयी या नहीं।”

“शायद ठीक कह रही हैं आप, मगर इतना तो तय है कि अगर मेरी बेटी हुई तो मैं उसे झांसी की रानी बनाऊंगी। एक ऐसी लड़की, जो लड़कों को छेड़ सके, उन पर फब्तियां कस सके और लड़के बेचारे उसे देखते ही दुम दबाकर निकल लें।”

सुनकर गरिमा ने जोर का ठहाका लगाया फिर बोली- “बाई द वे, अनंत के साथ तुम्हारी जुगलबंदी कैसी चल रही है?”

“अच्छा लड़का है, मुझे पसंद भी है, मगर तीन दिनों से हमारे बीच कोई बात नहीं हुई है। मैं उसके फ्लैट पर गयी थी, वहाँ भी नहीं पहुँचा वह। ऑफिस भी नहीं

जा रहा। मैं तो ये सोचकर परेशान हूँ कि कहीं किसी प्रॉब्लम में न फंस गया हो।”

“आखिरी बार कब मिली थी उससे?”

“उन्नीस तारीख को। उस रोज सत्यप्रकाश अंबानी की मैरिज एनिवर्सरी थी, जहाँ हम दोनों एक साथ पहुँचे थे।”

गरिमा सीधी होकर बैठ गयी।

“उसके बाद से उसकी शक्ल नहीं दिखाई दी मुझे।”

“पार्टी में इनवाईट थी तुम?”

“नहीं, मैं तो जबरन अनंत के साथ वहाँ चली गयी थी।”

“जबरन का मतलब?”

“उस रात आठ बजे के करीब मैं उसके फ्लैट पर थी, जब उसने मुझे बताया कि उसे अपने एम्प्लॉयर की पार्टी ज्वाइन करनी है, इसलिए जाना पड़ेगा। तब मैंने उससे कहा कि वह मुझे भी अपने साथ ले चले। जवाब में अनंत पहले तो मना करता रहा मगर जब मैं जिद पर ही उतर आई तो आखिरकार मान ही गया।”

“पार्टी से तुम दोनों वापिस भी एक साथ ही लौटे थे?”

“नहीं।”

“क्यों?”

“साढ़े ग्यारह के करीब वह गायब हो गया। यूँ हो गया जैसे अभी था और अभी नहीं था। मुझे बिना बोले ही कहीं चला गया। मैंने उसका मोबाइल ट्राई किया तो वह बंद मिला। फिर दस मिनट और उसका इंतजार करने के बाद पौने बारह के करीब मैंने ओला की एक कैब बुलायी और अपने घर चली गयी।”

“तुम्हें खबर है कि अंबानी साहब के साथ क्या हो गया है?”

“हाँ मालूम है।”

“कैसे?”

“अनंत के बारे में पूछने के लिए उसके ऑफिस फोन किया था तो रिसेप्शनिस्ट ने बताया कि मिस्टर अंबानी हॉस्पिटलाइज हैं, इसलिए हो सकता है कि अनंत उनके पास अस्पाल में ही मौजूद हो, जिसके बाद मैं अस्पताल पहुँची तो वहाँ आकाश से मेरी मुलाकात हुई, जिसने बताया कि अनंत सुबह तो वहीं था मगर अब कहाँ है, उसे पता नहीं। तभी मुझे ये भी मालूम पड़ा कि अंबानी साहब के साथ क्या हो गया था।”

“कोई ऐसी जगह बता सकती हो, जहाँ हम अनंत को तलाश करने की कोशिश कर सकें।”

“नहीं, मगर बात क्या है, आप लोगों का क्या इंट्रेस्ट है उसमें?”

“आकाश अंबानी ने उसकी मिसिंग रिपोर्ट दर्ज कराई है, जबकि हमें शक है,

सिर्फ शक है कि उसका कत्ल हो गया हो सकता है।”

“वॉट?”

“डोंट वरी, कहा न अभी महज शक भर है, ना कि उसकी लाश बरामद हो गयी है।”

“शक की भी तो कोई वजह होगी? ऐसे ही तो नहीं इतना कुछ सोच लिया होगा।”

“हाँ, वो तो बराबर है।”

“हे भगवान्!” काव्या ने जोर की सिसकारी भरी – “उसे सही सलामत रखना, वरना मुझे फिर से किसी को ढूंढना पड़ेगा।”

“पहले किसको ढूंढा था?” गरिमा ने हैरानी से पूछा।

“अनंत को, और अब उसे कुछ हो गया तो दूसरा लड़का ढूढना पड़ेगा न? आखिर शादी तो करनी ही है, जीवन भर सिंगल तो नहीं रह सकती मैं।”

“हाँ, शादी करना तो बहुत जरूरी काम है।”

काव्या जोर से हँस पड़ी।

“अब क्या हुआ?”

“आप खामखाह फिक्र कर रही हैं मैडम, कुछ नहीं हुआ है उसे। देख लीजिएगा, एक दो दिनों में लौट आयेगा। छ: महीना पहले भी एक बार ऐसे ही बिना बताये हरिद्वार निकल गया था, कहता था मन अशांत हो गया था इसलिए शांति की तलाश में गया था। वैसे भी उसकी भला किसी के साथ क्या दुश्मनी हो सकती है, जो कोई उसका कत्ल कर दे।”

“हाल फिलहाल कहीं अनंत ने तुमसे कोई ऐसी बात तो नहीं कही थी, जिससे लगता हो कि वह कुछ दिनों के लिए कहीं बाहर जाने वाला है? इसीलिए तुम इस वक्त हँसकर दिखा रही हो।”

“ऑनेस्टली कहती हूँ मैम।” वह अपने गले की घंटी को छूती हुई बोली – “ऐसी कोई बात नहीं कही थी उसने। हाँ, एक रोज इस बात का जिक्र जरूर किया था कि कहीं से उसके पास कोई मोटी रकम आने वाली है, जिसके हासिल होते ही वह शादी की बात करने मेरे घर पहुँच जायेगा।”

“कितनी मोटी रकम?”

“पचास-साठ लाख बताया था उसने, साथ में ये भी कहा था कि कंपनी उसकी सेलरी में पचास फीसदी का इजाफा भी करने वाली है। असल में मेरे डैड उसके साथ मेरी शादी को तैयार नहीं हैं, क्योंकि औकात में अनंत उन्हें अपनी बराबरी का नहीं लगता, ऊपर से रहता भी किराये के फ्लैट में है। इसी कारण वह चाहता था कि कहीं से कोई मोटी रकम हासिल हो जाये तो कम से कम एक

फ्लैट खरीद ले ताकि डैड को शादी वाली बात के लिए मनाया जा सके।”

“रकम हासिल हो गयी थी उसे?”

“पता नहीं, उस बारे में दोबारा हमारे बीच कोई बात नहीं हुई। बल्कि उस वक्त तो मुझे यही लगा था कि झूठी तसल्ली दे रहा था। उसे डर था कि कहीं मैं उसे छोड़ न दूँ, जबकि मैं ऐसा हरगिज भी नहीं करने वाली। जानती हूँ, सच में छोड़ दिया तो मेरे जैसी लड़की उसे ढूंढे भी नहीं मिलेगी।”

“हाँ ये तो एकदम सही कहा तुमने। बाई द वे, उसको खोज निकालने का कोई जरिया सुझा सकती हो? कोई रिश्तेदार, माँ-बाप, या कोई और, जिसके पास वह जा सकता हो?”

“नहीं, मुझे नहीं मालूम, मगर इतना जरूर पता है कि रहने वाला हिसार का है।”

“हिसार में कहाँ?”

“नहीं जानती, आप लोग उसका फ्लैट क्यों नहीं चेक कर लेते? क्या पता कोई ऐसा कागज-पत्तर बरामद हो जाये, जिससे उसके किसी होते-सोते की जानकारी आपके हाथ लग जाये। बल्कि उसके मोबाइल की कॉल डिटेल्स से भी वह बात जानी जा सकती है, क्योंकि घर पर फोन तो जरूर करता होगा वह।”

“आज भर और इंतजार करेंगे। लौट आया तो ठीक, वरना वही सब करेंगे, जिसका जिक्र तुम अभी-अभी कर के हटी हो।”

“अगर कोई खबर लग जाये उसकी तो प्लीज मुझे इंफॉर्म जरूर कीजिएगा।”

“कर दूँगी प्रॉमिस।”

“थैंक यू, अब जा सकती हूँ मैं?”

“ऑफ़कोर्स।”

सुनकर काव्या मुस्कराती हुई उठ खड़ी हुई।

*****

पार्थ और वंशिका एडवोकेट विक्रम राणे के घर पहुँचे।

वह इतने प्रेम भाव से मिला कि पार्थ को ये सोचकर हैरानी हुई कि वैसे इंसान की भी किसी के साथ रंजिश हो सकती है। या फिर उसका वह व्यवहार महज दिखावा था, जो जरूरत के मुताबिक अपने चेहरे पर चढ़ा लेता था।

“कहिए पार्थ साहब, क्या सेवा की जाये आप लोगों की, चाय कॉफी मंगाऊं?”

“शुक्रिया वकील साहब। नहीं, उसकी कोई जरूरत नहीं है।”

“ये तो नहीं सोच रहे कि मैंने यूँ ही पूछ लिया?”

“अरे नहीं साहब, कैसी बात करते हैं।”

“फिर ठीक है। बताइए, कैसे आना हुआ?”

“अंबानी साहब पर हुए जानलेवा हमले की तो खबर लग ही गयी होगी आपको?”

“जी हाँ, अगले ही दिन लग गयी थी। सुनकर बहुत अफसोस हुआ, मगर वही बात अब मेरे लिए बड़ी मुसीबत बन गयी है। दो बार पुलिस यहाँ का फेरा लगा चुकी है, एक बार हेडक्वार्टर भी तलब कर चुके हैं वे लोग, जैसे अंबानी साहब के साथ जो कुछ हुआ, उसके लिए मैं ही जिम्मेदार हूँ।”

“कहीं उनका सोचना सही तो नहीं है वकील साहब?” पार्थ ने मुस्कराते हुए सवाल किया।

“अगर सच होता भी तो क्या आपके पूछने भर से बता देता मैं?”

“नहीं, ऐसा तो कोई नहीं करता, जबकि आप तो बड़े ही फेमस लॉयर हैं।”

“लीजिए जवाब तो आपने खुद ही दे दिया।” कहकर वह हो-हो करके हँस पड़ा।

“अच्छा ये बताइए कि उन्नीस जुलाई को अंबानी साहब की पार्टी में शिरकत के लिए आपको किसी ने इनवाईट किया था, या यूँ ही पहुँच गये थे उनका हाल-चाल लेने?”

“क्यों भाई, मुझे क्या मुफ्तखोरा समझ रखा है, जो दावत उड़ाने के लिए एक ऐसे आदमी के घर पहुँच जाता, जो मुझे फूटी आँखों से भी नहीं देखना चाहता?”

“यानि न्योता बराबर आया था?”

“ऑफ़कोर्स आया था।”

“किसने भेजा था?”

“आकाश ने, वह खुद यहाँ आया था मुझे इनविटेशन देने।”

“आपको हैरानी नहीं हुई?”

“बहुत हुई थी भई, कुछ देर तक तो मैं यकीन ही नहीं कर पाया उसकी बात पर, मगर आकाश कहने लगा कि उसके भाई का दिल अब मेरी तरफ से साफ हो गया है, इसलिए पुराने बैर भाव को हमेशा के लिए भुला देना चाहता है। उसने ये भी कहा कि मेरे पास उसे सत्यप्रकाश ने ही भेजा था। साथ में मुझे समझाकर भी गया कि आपसी वैमनस्य दूर करने का इससे अच्छा मौका मुझे नहीं मिलने वाला था।”

“कमाल है, वह तो साफ इंकार करता है ऐसी किसी बात से।”

“यही तो समझ में नहीं आ रहा साहब कि लड़का इतना बड़ा झूठ क्यों बोल रहा है। उसके उस झूठ की वजह से ही तो पुलिस ने मेरा जीना हराम कर रखा है। आप समझदार आदमी हैं, जरा खुद सोच कर देखिए कि अगर मेरा कहा सच न होता तो मैं ये क्यों कहता कि आकाश खुद चलकर यहाँ आया था? झूठ ही बोलना था तो ये क्यों नहीं कह दिया कि उसने मुझे फोन कर के इनविटेशन दिया था?”

“मैं नहीं जानता वकील साहब कि आप दोनों में से सच कौन बोल रहा है, मगर दोनों के पास ही फोन पर इनविटेशन देने की बात ना कहने की कम से कम एक वजह तो साफ दिखाई दे रही है मुझे।”

“अच्छा, वो क्या?”

“अगर आप ये कहते कि आपको आकाश ने कॉल कर के इनवाईट किया था और झूठ बोल रहे होते तो आपकी कॉल रिकार्ड ही आपका भंडा फोड़ कर देती। ऐसा ही आकाश के साथ भी है, अगर उसने आपको फोन किया होता और बाद में झूठ बोल देता कि नहीं किया था, तो भी कॉल रिकार्ड से उस बात की पोल खुल कर रहनी थी।”

“हे भगवान्!” राणे लंबी आह भर कर बोला – “प्लीज अपनी ये दलील पुलिस को मत सुना बैठना पार्थ साहब, क्योंकि उन्हें मैं इसी बात पर कंविंस करने में सफल हुआ हूँ कि मैं झूठा होता तो ये कहता कि आकाश ने मुझे फोन किया था, जबकि आपकी बात सुनकर तो उन्हें मैं अव्वल दर्जे का चालाक और झूठा दिखाई देने लगूंगा। नतीजा ये होगा कि दायें-बायें देखे बिना सीधा मुझी पर चढ़ दौड़ेंगे।”

“इत्मिनान रखिए साहब, पुलिस को मैं कुछ नहीं बताने वाला, मगर बदले में सच बोल कर तो दिखाइए। हाँ, इतना मैं अभी माने लेता हूँ कि बिना इनविटेशन के आप वहाँ नहीं गये हो सकते, इसलिए नहीं गये हो सकते क्योंकि आप वकील हैं। और इतनी सी बात तो बच्चा भी समझ सकता है बिन बुलाये किसी की पार्टी में पहुँचकर उसका कत्ल करने की कोशिश करेगा तो बाद में पुलिस का ध्यान उसकी तरफ जाकर रहेगा।”

“थैंक यू।” वह राहत की सांस लेता हुआ बोला – “चाहें तो गेट पर मौजूद गार्ड से भी दरयाफ्त कर सकते हैं। आकाश जब यहाँ आया था तो गार्ड ने ही फोन कर के मुझे उसके आगमन की खबर दी थी।”

“क्या फायदा सर, गार्ड आपसे बाहर थोड़े ही जायेगा।” कहकर पार्थ ने पूछा – “बाई द वे, उस रात आप घर कब लौटे थे? अगर साबित कर देते हैं कि एक बजे से पहले यहाँ पहुँच गये थे तो भी आप शक मुक्त हो जायेंगे।”

“अफसोस कि नहीं कर सकता, क्योंकि उन्नीस की रात दो बजे के कहीं बाद जाकर मेरा घर पहुँचना हो पाया था।”

“वजह?”

“कार ब्रेक डाउन हो गयी थी, जिसके बाद मैंने उस कंपनी को फोन लगाया, जिसकी ऑन रोड सर्विसेज के लिए हर साल पंद्रह हजार रूपये भरता हूँ, जबकि जरूरत उस रात पहली बार पड़ी थी। बावजूद इसके मैकेनिक को आने में पूरे दो घंटे लग गये। तब तक मैं वहीं सड़क किनारे खड़ी अपनी कार में बैठा रहा था।”

“एग्जैक्ट लोकेशन बताइए, ब्रेक डाउन कहाँ हुआ था?”

“नेहरूप्लेस के फ्लाईओवर को पार करने के बाद दाईं तरफ को एक होटल दिखाई देता है, शायद रॉल्स रॉयल नाम है, उसी के सामने कार एकदम से बंद हो गयी थी।”

“हुआ क्या था गाड़ी में?”

“पता नहीं क्या हुआ था, बस इंजन बंद हो गया, और दोबारा स्टार्ट होकर ही राजी नहीं हुआ। उस दौरान मैं बार-बार उसका ऑन ऑफ बटन ट्राई करता रहा, जिसके कारण आखिरकार बैटरी भी लो हो गयी।”

“मैकेनिक के आने के बाद तो नुक्स सामने आया होगा?”

“नहीं आया। उन लोगों ने वहाँ पहुँचकर गाड़ी को धक्का लगाया और मैंने स्टार्ट करने की कोशिश की तो फौरन स्टार्ट हो गयी। फिर भी इंजन की वायरिंग और सेंसर वायर कस गये कि कहीं कार्बन न आ गया हो।”

“तब आपके मोबाइल की क्या पोजीशन थी, क्या वह ऑन था उस दौरान?”

“और क्या बंद कर के बैठ जाता मैं?”

“फिर तो नाहक ही चिंता कर रहे हैं। उसकी लोकेशन से भी तो साबित किया जा सकता है कि मिस्टर अंबानी पर हुए हमले के वक्त आप उनके बंगले से एक-डेढ़ किलोमीटर दूर खड़े थे।”

“आप सोचते हैं मुझे या पुलिस को इस बारे में नहीं सूझा होगा?”

“सूझ गया तो पीछा क्यों नहीं छोड़ देते वे लोग आपका?”

“कहते हैं मोबाइल की लोकेशन क्योंकि दो घंटों तक एक ही जगह पर स्थिर रही थी, इसलिए ये भी हो सकता है कि उसे कार में छोड़कर मैं किसी और वाहन से वापिस अंबानी के घर पहुँच गया होऊं, और गाड़ी बंद करने की नौटंकी इसलिए की ताकि बाद में कालकाजी के आस-पास रुके रहने की कोई सजती सी वजह बयान कर पाता।”

“स्थिति तो सच में विकट है आपकी राणे साहब। खैर, ये बताइए कि जिस वक्त आपने पार्टी से क्विट किया था, उस वक्त क्या अजीत मजूमदार साहब वहाँ मौजूद थे?”

“हाँ।”

“कोई और, जिसे आप पहचानते हों?”

“कई लोग थे, जैसे कि अनंत गोयल, निशांत मौर्या, प्रकाश जिंदल, शरद आर्या।”

“प्रकाश और शरद की अंबानी साहब के साथ कैसी बनती है?”

“बनने और ना बनने जैसी कोई बात नहीं है क्योंकि दोनों ही बुजुर्ग लोग हैं, जो कि सत्य के डैडी जब जिंदा थे तो उनके अभिन्न मित्र हुआ करते थे।”

“कोई ऐसी बात बता सकते हैं, जिसके बारे में पुलिस को बताना भूल गये हों, या जानबूझकर उनसे छिपा लिया हो?”

“है तो सही एक बात, जो मैंने उन लोगों को इसलिए नहीं बताया क्योंकि खुद दुविधा का शिकार हूँ। ऐसे में मैं नहीं चाहता कि कल को अनंत गोयल मेरी वजह से किसी प्रॉब्लम में पड़ जाये।”

“हमें बता दीजिए, हम किसी से नहीं कहेंगे, पुलिस से तो हरिगज भी नहीं।”

“जिस वक्त मैं नेहरूप्लेस में अपनी खराब हुई कार के भीतर बैठकर मैकेनिक का इंतजार कर रहा था, उसी वक्त मुझे अनंत की कार वहाँ से गुजरती दिखाई दी थी, या यूँ कह लीजिए कि मुझे वह कार अनंत के कार जैसी लगी थी, और आखिर के न्युमेरिकल नंबर तो सेम थे ही।”

“अगर कार उसकी थी भी तो उसमें खास बात क्या है?”

“ये कि अनंत मेरी आँखों के सामने साढ़े ग्यारह से थोड़ा पहले पार्टी से निकल गया था, जबकि नेहरूप्लेस में मुझे उसकी कार डेढ़ बजे के बाद दिखाई दी थी और रूख वही था, यानि कालकाजी से ग्रेटर कैलाश की तरफ वाला।”

वह जानकारी बेहद चौंकाने वाली थी।

“अच्छा ये बताइए कि मजूमदार साहब की क्या रंजिश थी सत्यप्रकाश के साथ?”

“वह आप मजूमदार से पूछ लेना, मैं नहीं बता सकता।”

“लेकिन जानते बराबर हैं?”

“हाँ जानता हूँ, क्योंकि उस मामले में मध्यस्थता मैंने ही निभाई थी।”

“अगर मैं खुद आपको उस बारे में बता दूँ तो क्या हामी भर पायेंगे?”

“हाँ, फिर क्या प्रॉब्लम है, जो बात आपको पहले से पता है, उसके बारे में कुछ छिपाकर भी क्या हासिल हो जायेगा मुझे?”

“शुभांगी ने मुझे बताया था कि वह बखेड़ा घर की मेड सुमन की वजह से खड़ा हुआ था जो ‘अंबानी हाउस’ से पहले मजूमदार के यहाँ काम करती थी।”

“एकदम सही बताया था।” राणे ने कबूल किया – “अंबानी साहब तो उस वक्त इतने गुस्से में थे कि मजूमदार को जेल भिजवाकर ही मानते, मगर नुकसान उसमें सुमन का भी था, जिसे कोर्ट कचहरी का सामना करना पड़ गया होता, इसलिए लड़की रिपोर्ट दर्ज कराने से हिचकिचा रही थी। उसी का फायदा उठाते हुए मैंने मजूमदार को समझाया, जिसने आखिरकार सुमन से माफी मांग ली और मामला आया गया हो गया।”

“आपको ये हैरानी की बात नहीं लगती कि सत्यप्रकाश जैसा दौलतमंद और रूतबे वाला आदमी ना सिर्फ अपनी मेड के फेवर में उतर आया बल्कि मजूमदार को उसके किये की सजा दिलाने के लिए भी कमर कसकर खड़ा हो गया था?”

“नहीं लगती अगरचे कि सुमन उसके घर में सालों से काम कर रही होती, मगर तब तक तो अभी दो महीना ही बीता था। और इसे एक बड़ा इत्तेफाक ही समझिए कि अंबानी साहब उस लड़की से ये पूछ बैठे कि उसने मजूमदार की नौकरी क्यों छोड़ दी थी, वरना तो बात सामने आई ही नहीं होती। सच पूछिए तो सत्यप्रकाश अंबानी का मिजाज कभी मेरी समझ में आया ही नहीं, पल में तोला पल में माशा वाला हाल है उनका। कब कौन सी बात उन्हें बुरी लग जायेगी, और कब वे भड़क उठेंगे, इसका अंदाजा लगाना सरल बात नहीं है।”

“आपके साथ क्या हुआ था?”

“बहुत मामूली बात थी। हुआ ये कि अंबानी नर्सिंग होम के पीछे की बाउंड्री वॉल पांच फीट के करीब सरकारी जमीन पर चली गयी थी, कैसे चली गयी इस बात पर कंस्ट्रशन के वक्त किसी ने ध्यान नहीं दिया, मगर जब एमसीडी ने अस्पताल को नोटिस भेजा तो अंबानी साहब ने मुझसे कहा कि किसी भी हाल में वहाँ तोड़-फोड़ की नौबत नहीं आनी चाहिए, जबकि सच्चाई ये थी कि उस मामले में मेरे लिये कुछ भी कर पाना संभव नहीं था। नतीजा ये हुआ कि हम केस हार गये, जिसका ठीकरा सत्य ने मेरे सिर फोड़ा और उसी वक्त मुझे डिसमिस कर दिया।”

“फिर तो सच में तुनकमिजाज आदमी ही हुए।”

“बेशक।”

“एक आखिरी सवाल और।”

“पूछिए।”

“आपने कई सालों तक सत्यप्रकाश के लिए काम किया था इसलिए बहुत सारी जानकारियां भी रखते होंगे उनके और उनकी कंपनी के बारे में। उसी को ध्यान में रखते हुए जवाब दीजिए कि हमला क्यों किया गया होगा अंबानी साहब पर?”

“मैं इस बात का जवाब बतौर एडवोकेट देता हूँ आपको।” विक्रम राणे बोला – “मेरा तजुर्बा कहता है कि वहाँ जो कुछ भी हुआ, घर के लोगों की रजामंदी से हुआ, या करने वाले ही वही लोग थे। इस तरह से देखो तो हमलावर आकाश या शीतल में से कोई भी रहा हो सकता है। बल्कि शीतल पर ज्यादा ऐतबार है मेरा।”

“वजह?”

“पता नहीं क्यों मुझे उस औरत के लक्षण शुरू से ही ठीक नहीं लगते थे। साल डेढ़ साल पहले एक बार मैं अंबानी साहब के बुलावे पर उनके घर पहुँचा तो क्या देखता हूँ कि शीतल अंबानी अपने तन को रूमाल से ढके बैठी थी।”

“रूमाल से?” तब वंशिका पहली बार बोली – “सिर्फ रूमाल से? इतना बड़ा बेशर्म तो कोई नहीं होता वकील साहब।”

“मेरे कहने का मतलब है कि जो कपड़े शीतल उस वक्त पहने हुए थी, वह साइज़ में रूमाल के बराबर ही रहे होंगे, या बड़ी हद दो इंच ज्यादा मान सकते हैं।”

“हद करते हैं आप भी। इतने से वह अपराधी हो गयी, उसके लक्षण गलत हो गये?”

“नहीं, लेकिन अपराधी औरतें भी तो उसी की तरह होती हैं। बिंदास, बेशर्म, किसी बात की परवाह न करने वाली। बाकी अंबानी पर सच में किसने हमला किया था, मैं नहीं जानता।”

“ठीक है सर।” पार्थ उठ खड़ा हुआ – “वक्त देने के लिए थैंक्स।”

राणे ने हौले से गर्दन हिला दी।

पार्थ और वंशिका बाहर खड़ी कार की तरफ बढ़ गये।

“साला ठरकी कहीं का।” भीतर बैठते के साथ ही वह बोल पड़ी – “मॉर्डन ड्रेस रूमाल दिखाई देते हैं साले को। मैं तो उससे कहने ही लगी थी कि जाकर अपनी आँखों का इलाज कराये, कहीं मोतियाबिंद न हो गया हो।”

पार्थ हँसा।

“ये उन्हीं लोगों में से दिखता है, जो जनरेशन गैप और आधुनिकता को पचा न पाने के कारण हर वक्त मन ही मन कुढ़ते रहते हैं। मैं पूछती अगर उसकी कोई लड़की होगी तो वह क्या साड़ी पहनकर कॉलेज जाती होगी?”

“सूट पहन कर तो जा ही सकती है।”

“मैं मान ही नहीं सकती। किसी भी कॉलेज के बाहर जाकर खड़े हो जाओ, अस्सी फीसदी लड़कियां जींस में दिखाई देंगी। और जो बीस परसेंट सूट में होंगी, अगले दिन वह भी जींस में नजर आने लगेंगी। फिर साड़ी और सूट के मुकाबले जींस कहीं ज्यादा सेफ होता है। जरूरत पड़ने पर जितनी फुर्ती जींस पहनकर दिखाई जा सकती है, वह सूट या साड़ी में नहीं। और ये कैसे संभव है कि उसकी बेटी ने कभी जींस-टॉप पहना ही न हो। असल प्रॉब्लम ऐसे लोगों की सोच में है पार्थ। मॉडर्न कपड़ों में लड़कियों को देखकर मन ही मन आहें भरते हैं, उन्हें पा लेने के सपने भी देखते हों तो कोई बड़ी बात नहीं होगी, मगर मौका मिलते ही उनकी बुराई शुरू कर देते हैं, इसलिए कर देते हैं ताकि कोई उनकी ठरक को पकड़ न ले। मतलब कि अंगूर खट्टे हैं वाली मसल पूरी करते हैं।”

“तुम तो बेचारे राणे के पीछे ही पड़ गयी।”

“वह कमीना है ही इसी काबिल। ऐसे ही लोगों को अपनी बीवियां शादी के कुछ सालों बाद बासी भात लगने लगती हैं। क्यों लगती हैं, क्योंकि उन पर बंदिशें लगाते हैं। ये मत पहन, वह मत पहन, ऐसे मत चल, वैसे मत चल। कमीनों का बस चले तो किसी बोरे में ठूंसकर रख दें ताकि दूसरों की नजर न पड़ने पाये। और जब कुछ दिखाई ही नहीं देगा, बीवी सज संवर कर रहेगी ही नहीं तो आकर्षण का सवाल ही कहाँ उठता है, बोर तो हो ही जायेंगे। बस ये नहीं दिखाई देगा कि गलती उनकी खुद की है।”

“अब बस भी कर यार।” कहते हुए पार्थ ने गाड़ी आगे बढ़ा दी।

*****

रात्रि नौ बजे।

‘द वॉचमैन’ की पूरी टीम कॉन्फ्रेंस हॉल में एकत्रित थी। डिस्कशन की शुरूआत उन दो मामलों से की गयी, जिन पर एजेंसी पहले से काम करती आ रही थी। आपस में नोट एक्सेंज किये गये, अलग-अलग निष्कर्ष निकाले गये, और सबसे खास बात ये रही कि उस तर्क-वितर्क के दौरान कुछ ऐसी बातें सामने आ गयीं, जिनकी वजह से दो में से एक मामला वहीं का वहीं सॉल्व हो गया।

तत्पश्चात अंबानी के केस की बारी आई।

पार्थ ने उन्हें निशांत मौर्या के कत्ल और मर्डर स्पॉट की तब की स्थिति के बारे में विस्तृत जानकारी दी फिर उन्हें अंबानी की वंशिका द्वारा हासिल की गयी मेडिकल रिपोर्ट के बारे में सब-कुछ कह सुनाया।

“रिपोर्ट फैब्रिकेटेड जान पड़ती है सर। आपने जब उसे हमारे एप्प पर अपलोड किया था तभी पढ़ लिया था मैंने। उसी वक्त से मेरा ध्यान वहीं टिका हुआ है और मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि वह जेन्युइन नहीं हो सकती, जरूर कोई हेर फेर की गयी है उसमें।” आदर्श पाण्डेय बोला – “भला हमलावरों को क्या पड़ी थी, जो इतना सोच समझकर उस पर वार करते? या फिर समझ लीजिए कि उन लोगों का इरादा उसकी जान लेने का रहा ही नहीं होगा।”

“एग्जैक्टली।” पार्थ बोला – “सच पूछो तो उस रिपोर्ट को देखने के बाद मेरे जेहन में पहला ख्याल यही आया था कि उस पर किये गये चारों हमले बेहद नपे तुले थे। वरना गोली पेट के बायें हिस्से पर चलाने की बजाय सीधा उसके दिल में या फिर खोपड़ी में उतारी जा सकती थी। ऐसे ही छुरे को साढ़े तीन इंच तक छाती में घुसाने की बजाय और गहरा घोंपा जा सकता था। गला रेतकर उसकी गर्दन की नस तक काटी जा सकती थी, मगर हमलावर ने बस चमड़ी काटकर ही संतोष कर लिया। और तेजाब को यूँ उड़ेला जा सकता था कि कम से कम उसकी आँखें तो हमेशा-हमेशा के लिए खत्म हो गयी होतीं, मगर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। बावजूद इसके नहीं हुआ कि उस पर एक नहीं चार हथियारों से प्रहार किये गये। मगर रिपोर्ट पर शक नहीं किया जा सकता, क्योंकि हॉस्पिटल में पड़े अंबानी को मैं और वंशिका अपनी आँखों से देखकर आ रहे हैं, जहाँ उसकी हालत केस हिस्ट्री से मैच करती दिखाई दी थी।” कहकर उसने पूछा – “किसी की समझ में इसके अलावा कोई वजह आ रही है कि हमलावरों का इरादा उसकी जान लेने का नहीं रहा हो सकता?”

“मुझे तो लगता है कि हमला करने वाला शख्स बहुत हड़बड़ी में था, डरा हुआ था, इसीलिए उसने गड़बड़ कर दी, करारे वार नहीं कर सका। ऐसे वार, जो एक ही झटके में अंबानी को मौत के घाट उतार देते।” कबीर दुग्गल ने अपनी राय पेश की।

“हद करते हैं साहब आप भी।” पार्थ मुस्कराकर बोला – “अपराधी डरा हुआ था तो चार हथियारों का इस्तेमाल किया, ना डरा होता तो जरूर तोप ही दाग देता उस पर, नहीं?”

“ये भी तो हो सकता है सर कि वहाँ सच में चार लोग ही रहे हों।” वंशिका बोली।

“उसके बावजूद अंबानी को ठिकाने नहीं लगा पाये, कैसे बेवकूफ थे वे लोग? कातिल थे या मसखरे थे? ऐसे हत्यारों को तो शर्म से डूब मरना चाहिए।”

इस बार किसी ने जवाब में कुछ कहने की कोशिश नहीं की।

“आप ही क्यों नहीं बता देते सर?” युग ने पूछा।

“जैसे मुझे पता ही है।” पार्थ हँसा – “एनी वे, आप लोगों के पास कोई नयी जानकारी है इस केस से रिलेटेड? या मौका हासिल नहीं हुआ इस पर वक्त देने का?”

“मौका निकालना पड़ता है पार्थ।” दुग्गल बोला – “हालांकि मैं इस केस में बस अजीत मजूमदार से ही मिल पाया हूँ, मगर उसके जरिये जो बातें सामने आयीं, उससे यही लगता है कि मौर्या और राणे की तो ढंग की दुश्मनी तक नहीं थी अंबानी के साथ। और मजूमदार की उसके साथ जो रंजिश सामने आई है, जिसके बारे में शुभांगी ने तुम्हें पहले ही बता दिया था, वह सालों पुरानी बात है, इसलिए ये सोचने का कोई मतलब नहीं बनता कि हमला मजूमदार ने किया हो सकता है। बल्कि ये सोचना ही बेकार है कि अंबानी पर योजना बनाकर मर्डर अटेम्प्ट करने वाले निशांत मौर्या, विक्रम राणे या अजीत मजूमदार रहे हो सकते हैं।”

“तो फिर मौर्या का कत्ल क्यों हो गया?”

“पता नहीं, तुम बताओ?”

“मुझे लगता है उसका कत्ल खुद अंबानी ने किया है। ना...ना हँसने की जरूरत नहीं है। पल भर को कल्पना कर के देखिए आप लोग कि वह शख्स कोमा में होने का महज नाटक भर कर रहा है, और उतनी बुरी तरह घायल भी नहीं है, जितना कि दिखाई दे रहा है। साथ ही पूरे षड़यंत्र में उसका डॉक्टर और नर्स तक शामिल हैं, जिन्हें अपनी योजना में शामिल कर लेना अंबानी के लिए ज्यादा मुश्किल काम इसलिए नहीं है क्योंकि नर्सिंग होम उसका है। फिर हो सकता है उसने डॉक्टर पुरी को कोई तगड़ा लालच भी दिया हो।”

“जरूरत क्या है उसे ऐसा कोई नाटक करने की?”

“बहुत जरूरत है। अगर वह ठीक-ठाक होता तो मौर्या के कत्ल के बाद ना सिर्फ पुलिस का, बल्कि हमारा भी ध्यान उसकी तरफ जरूर जाता, ये सोचकर कि किसी तरह उसे पता लग गया था कि उस पर हमला करने वाले कौन लोग थे, इसीलिए उनमें से एक निशांत मौर्या को उसने मार गिराया। मैं अभी भी वैसा ही सोच रहा हूँ, मगर अपनी सोच को साबित नहीं कर सकता क्योंकि वह हॉस्पिटल में एडमिट है और उसका डॉक्टर कहता है कि पेशेंट कोमा में है, जिसे तब तक झूठा नहीं साबित किया जा सकता, जब तक कि कोई दूसरा डॉक्टर ईमानदारी से अंबानी की हालत का मुआयना नहीं कर लेता। और वह काम सिर्फ और सिर्फ पुलिस ही करा सकती है।”

“यानि आगे चलकर और भी कत्ल हो सकते हैं?” अमन सोनी ने पूछा।

“अगर हमलावर एक से ज्यादा थे तो मेरा जवाब हाँ में है।”

“जबकि मुझे लगता है सब किया धरा अनंत गोयल का है।” आदर्श पाण्डेय बोला – “मैंने अंबानी के ऑफिस में उसके बारे में पूछताछ की तो पता लगा कि बॉस अपने पीए को आये दिन लताड़ लगाता रहता था। सारे स्टॉफ के सामने जोर-जोर से डांटना शुरू कर देता था। ऐसे में अगर गोयल मन ही मन उससे दुश्मनी मानने लगा हो तो क्या बड़ी बात है?”

“सुराग मिला कुछ उसका?”

“नहीं, सुंदर नगर के उसके फ्लैट पर ताला लगा हुआ है और आस-पड़ोस में रहते लोगों को नहीं पता कि वह कहाँ गया? उसके फ्लैट पर एक लड़की को आते जाते कई लोगों ने देखा था। वह अंबानी साहब की पार्टी वाली रात भी उसके साथ ही वहाँ से निकलती देखी गयी थी।”

“कौन लड़की?”

“ऑफिस से उसकी एक गर्लफ्रेंड के बारे में पता लगा था, वही रही होगी। नाम है- काव्या अग्रवाल, डिवोर्सी है। मालूम पड़ा है कि अनंत उसके साथ शादी की प्लानिंग कर रहा है, मगर बात अभी किसी सिरे नहीं लग पाई है, क्योंकि होने वाला ससुरा, जो कि एमपी है, उसे अनंत की औकात इस काबिल नहीं दिखाई देती कि वह सेकेंड हैंड काव्या का हाथ उसके हाथ में दे दे।”

“सेकेंड हैंड?”

“डिवोर्सी है न सर, तो सेकेंड हैंड ही तो हुई।”

“शटअप, महिलाओं के बारे में इज्जत के साथ बात करना सीखो।”

“सॉरी सर।”

“यू मस्ट बी, तो मुलाकात हुई काव्या से?”

“अभी नहीं, मैं दूसरे कामों में बिजी था, लेकिन कल पक्का मिलकर रहूँगा।”

“ठीक है, एक बात और सुन लो आगे तुम्हारे काम आ सकती है।” कहकर उसने उन साठ लाख रूपयों के बारे में बताया, जो कि शीतल के कहे मुताबिक अट्ठारह तारीख को अंबानी ने अनंत गोयल को सौंपा था, फिर बोला – “मिसेज अंबानी कहती हैं कि अनंत को शादी के लायक औकात बनाने के लिए लगभग उतने ही रूपयों की जरूरत थी, जिससे वह अपना खुद का फ्लैट खरीदना चाहता था। इसलिए होने को ये भी हुआ हो सकता है कि अमानत में खयानत का मन बनाकर उसने साठ लाख रूपये अपने पास रख लिए और अगली रात अंबानी पर यूँ हमला कर दिया कि देखने पर वह एक की बजाय चार लोगों का कारनामा जान पड़े। दूसरी अहम बात ये है कि विक्रम राणे ने उसकी कार को डेढ़ बजे के करीब नेहरूप्लेस से गुजरते देखा था, जबकि वह कहता है कि अनंत पार्टी से तो साढ़े ग्यारह बजे ही निकल गया था। इसलिए भी इस बंदे का पता लगना बहुत जरूरी है आदर्श। वह मिल गया तो बहुत सारी बातें साफ हो जायेंगी।”

“मैं पूरी कोशिश करूंगा सर, बाकी कल काव्या से मिलने के बाद रिपोर्ट करता हूँ आपको।”

“सोनी साहब!” पार्थ ने पूछा – “आपके हाथ लग पाया कुछ?”

“कुछ नहीं, बहुत कुछ लगा है, जिसमें कम से कम एक ऐसी बात तो जरूर है, जिसे सुनकर आप हैरान रह जायेंगे।”

“बताइए।”

“पुलिस को शक है कि अंबानी की बीवी का अपने देवर के साथ कोई

चक्कर चल रहा है, जो कि अंबानी पर हमले की वजह बना। उन्हें ये भी लगता है कि जो किया, वह देवर-भाभी दोनों ने मिलकर किया, और जानबूझकर मामले को उलझाने के लिए चार अलग-अलग हमले किये ताकि पुलिस उसे चार लोगों का किया धरा मानकर मामले को इंवेस्टिगेट करना शुरू करती, मगर ना तो बाकी के दो लोग उन्हें मिलते, ना ही कभी ये केस सॉल्व हो पाता।”

“थ्योरी ही तो है, जो कि गलत भी हो सकती है।”

“मेरे ख्याल से तो सही है।” कबीर दुग्गल बोला – “मजूमदार ने भी मुझे कुछ ऐसा ही हिंट परोसा था। ये कहकर कि ‘अंबानी अंधा हो गया है जो घर में मौजूद दुश्मन उसे दिखाई नहीं दे रहे।’ मैंने उसे और ज्यादा कुरेदने की कोशिश की तो ये कहकर उसने बात खत्म कर दी कि जरूरी नहीं था कि वह जो सोच रहा था वही सच हो।”

“मगर इशारा उसका देवर-भाभी की तरफ ही था?”

“और किसकी तरफ होगा, अंबानी के अलावा वही दोनों तो रहते हैं वहाँ।”

“मैं शीतल और आकाश से मिला था दुग्गल साहब। लंबी बातचीत भी हुई थी हमारे बीच। उस दौरान मैंने ये तो बराबर नोट किया कि दोनों बहुत तोल-मोलकर जवाब दे रहे थे, मगर ऐसी कोई बात सामने नहीं आई, जिससे लगने लगता कि दोनों के बीच कोई खास रिश्ता कायम था।”

“जो कि कोई बड़ी बात नहीं है। मजूमदार ने मुझसे कहा था कि ‘शीतल अंबानी रेस की वह घोड़ी है, जिस पर लगाम कसना कम से कम सत्यप्रकाश के वश की बात नहीं है।’ फिर तुम ये क्यों भूल जाते हो कि सत्य और शीतल की उम्र में जमीन-आसमान का अंतर है, जो कि हमेशा से एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स की बुनियाद बनते रहे हैं। ऐसे में आकाश और शीतल के बीच अफेयर निकल आना कोई इतनी बड़ी बात नहीं है, जिस पर यकीन न किया जा सकता, या जो पहले कभी घटित ही न हुआ हो। रही बात तुम्हें उस बात का कोई हिंट न मिलने की, तो वो दोनों क्या तुम्हारे सामने लिप लॉक करने बैठ जाते?”

“शीतल अंबानी यकीनन खूबसूरत और मॉड है, मगर इतने से वह पति की कातिल नहीं हो जाती दुग्गल साहब। ना ही उसका खूबसूरत और कमसिन होना देवर के साथ रिलेशन की गारंटी करता है। ऐसा होने लगा तो कल को कोई बड़ा भाई शादी के बाद अपने छोटे भाई को घर में नहीं टिकने देगा, ये सोचकर कि कहीं उसकी खूबसूरत बीवी उसके छोटे भाई के साथ रिलेशन न बना ले।”

“अपवाद हर बात के मिल जाते हैं पार्थ, और रही बात उनके कातिल होने की तो अभी अंबानी मरा कहाँ है। कातिल होने का तमगा तो देवर-भाभी को उसकी मौत के बाद ही हासिल हो पायेगा।”

“अभी प्वाइंट ये नहीं है कि देवर और भाभी के बीच अफेयर है या नहीं। बल्कि सवाल ये है कि अगर अंबानी पर हमला शीतल और आकाश ने किया था तो फिर निशांत मौर्या का कत्ल क्यों हो गया?”

“जरूरी थोड़े ही है कि अंबानी पर हुए हमले का मौर्या के कत्ल से कोई लिंक निकल ही आये। क्या पता वह काम किसी ऐसे शख्स का रहा हो, जिसका सत्य से दूर-दूर तक कोई लेना देना न हो।”

“जरूरी भले ही नहीं है, लेकिन होता अक्सर यही है। जब भी एक दूसरे को जानने वालों लोगों के साथ आगे-पीछे ऐसी वारदातें घटित होती हैं, उनके बीच हमेशा कोई ना कोई संबंध होता है।”

“ये क्यों नहीं हो सकता कि यह अंबानी और मौर्या के किसी साझा दुश्मन का काम हो। कोई ऐसा शख्स, जो दोनों से ही रंजिश रखता था, दोनों को ही ठिकाने लगा देना चाहता था?” वंशिका ने पूछा।

“उम्मीद तो नहीं दिखाई देती। अगर हत्यारा मौर्या पर सिंगल गोली चलाकर उसकी जान ले सकता था तो वह अंबानी का भी एक ही बुलेट में काम तमाम कर सकता था।”

“अगर ऐसा है तो मान क्यों नहीं लेते कि दोनों पर हमला करने वाले लोग जुदा थे, बल्कि दोनों का एक दूसरे के शिकारों से भी कोई लेना-देना नहीं था।” दुग्गल बोला – “और इसका मतलब ये बनता है कि मौर्या की हत्या का हमारे केस के साथ कोई संबंध ही नहीं है।”

“संबध है, निकलकर रहेगा।” पार्थ जिद भरे लहजे में बोला – “मैं अभी से इस बात का दावा किये देता हूँ कि मौर्या का कत्ल अंबानी पर हुए हमले की ही अगली कड़ी है, और इस बात की भी गारंटी समझ लीजिए आप लोग कि आगे कुछ लाशें अभी और गिरेंगी।”

“किसकी?”

“कहना मुश्किल है, मगर मरेंगे वही लोग, जिन्होंने सत्यप्रकाश पर हमला किया था, जिनमें से एक निशांत मौर्या था, इस बात का मुझे पूरा-पूरा यकीन हो चला है। और हमलावर अगर सच में चार लोग थे, तो बाकी के तीनों आकाश, शीतल, अनंत गोयल, विक्रम राणे और अजीत मजूमदार में से कोई भी हो सकता है।”

“मैं कुछ कहूँ बॉस?” युग जौहर बोला।

“नहीं, पहले एक सौ आठ बार दंड बैठक लगाओ फिर कहना।”

सुनकर सब हँस पड़े।

“मुझे दुग्गल सर की दलील और सोनी साहब के जरिये हासिल पुलिस की

इस थ्योरी से पूरा-पूरा इत्तेफाक है कि...।” युग उसके कहे को नजरअंदाज करता हुआ बोला – “आकाश और शीतल के बीच अफेयर था। सत्यप्रकाश अंबानी को ठिकाने लगाने का प्लान भी इसीलिए बनाया गया ताकि रास्ते के इकलौते कांटे को हटाया जा सके, मगर वो दोनों इस बात से अच्छी तरह से वाकिफ थे कि अंबानी साहब के कत्ल के बाद पुलिस का सीधा शक उन्हीं पर जाने वाला है, इसलिए मामले को उलझाने के लिए दो और लोगों को अपनी योजना में शामिल कर लिया।”

“हासिल क्या हुआ, यूँ उन पर से फोकस हट जायेगा?”

“मानता हूँ कि नहीं हटेगा, मगर चार हमलों की सूरत में कोई भी ये बात कील ठोंककर नहीं कह सकता कि हमलावर एक ही शख्स था, या अलग-अलग चार लोग थे। ऐसे में इंवेस्टिगेशन मुश्किल होकर रहनी है। आप देख लीजिएगा किसी निष्कर्ष पर पहुँच पाना आसान काम नहीं होगा पुलिस के लिए, ना ही हमारे लिए।”

“और कुछ?”

“आगे मेरा अंदाजा ये कहता है कि जिन दो लोगों को अलग से योजना में शामिल किया गया उनमें से एक निशांत मौर्या था और दूसरा अनंत गोयल, उन्हें इसलिए चुना गया हो सकता है क्योंकि दोनों ही अंबानी साहब से खार खाते थे।”

“अगर बात सिर्फ इतनी ही है, तो वह दो लोग राणे और मजूमदार क्यों नहीं हो सकते, मौर्या और गोयल ही क्यों?” पार्थ ने पूछा।

“नहीं हो सकते।” युग मुस्कराता हुआ बोला – “क्योंकि निशांत मौर्या और अनंत गोयल की तरह उन लोगों ने रात साढ़े ग्यारह बजे के बाद अपने-अपने मोबाइल ऑफ नहीं कर दिये थे।”

“वॉट?”

“ऐसा ही हुआ था सर। उन्नीस जुलाई की रात साढ़े ग्यारह बजे के बाद उन दोनों की ही लोकेशन गायब हो गयी, और बाद में मौर्या का मोबाइल पौने दो बजे, जबकि अनंत गोयल का सवा दो बजे ऑन हुआ। उस वक्त मौर्या की लोकेशन उसके कालकाजी स्थित घर की थी, जबकि अनंत की सुंदर नगर की। देखा जाये तो मोबाइल ऑफ करना उनकी मजबूरी थी क्योंकि अंबानी के घर में पार्टी खत्म हो जाने के घंटा डेढ़ घंटा बाद तक अपनी हाजिरी स्थापित कराना अफोर्ड नहीं कर सकते थे। इसलिए मुझे विक्रम राणे का ये कहना सच जान पड़ता है कि उसने रात डेढ़ बजे अनंत गोयल की कार को नेहरूप्लेस से गुजरते देखा था।”

“ये पक्का है कि जब मोबाइल ऑफ किया गया तो उनकी उस वक्त की

लोकेशन अंबानी के घर की ही थी?”

“बेशक, मैं क्या आप लोगों की तरह अटकलें लगा रहा हूँ?”

“गुड, इस केस में ये पहली ऐसी जानकारी है, जो हमारे बहुत काम आने वाली है। बल्कि अब तो मुझे ये भी लगने लगा है कि अनंत गोयल की देर-सबेर लाश ही बरामद होगी। ठीक है, आगे हम यही मान कर चलेंगे कि अंबानी पर हमला चार लोगों ने मिलकर किया था, जिनमें से एक निशांत मौर्या कत्ल किया जा चुका है, दूसरा अंनत गायब है।”

“और तीसरे की गारंटी मैं किये देता हूँ।” एडवोकेट अमन सोनी बोला – “वह शीतल के अलावा और कोई नहीं रहा हो सकता। इसलिए चौथा शख्स आकाश अंबानी था, ये बात अब हमें मान लेनी चाहिए।”

“ओह तो ये थी वह चौंकाने वाली खबर, जिसका तुमने शुरू में ही हवाला दिया था।”

“बेशक सर।”

“गारंटी करने की कोई खास वजह?”

“वो तो बराबर है। नहीं होती तो मैं उस बात का जिक्र ही क्यों करता?” कहकर उसने कागज़ात का एक पुलंदा पार्थ के सामने मेज पर रख दिया।

“क्या है ये?”

“खुद देख लीजिए।”

पार्थ ने सरसरी निगाहों से उन पेपर्स को देखना शुरू किया, फिर एकदम से चौंक उठा। असल में वह अनुबंध था, हेल्थ फॉर्मा और यूनिवर्सल फॉर्मा के एक हो जाने का, जिस पर एक साइन तो आकाश अंबानी के थे, जबकि दूसरा शीतल का था। अलबत्ता गवाहों के हस्ताक्षर नहीं दिखाई दे रहे थे।

‘तो क्या वह फेक डाक्यूमेंट्स थे?’             

‘कैसे हो सकता है, किसी को वैसा करके क्या हासिल होना था?’

पार्थ उलझ कर रह गया।

“कुछ खास नजर आया सर?” सोनी ने पूछा।

“हाँ आ गया, हासिल कहाँ से हुए ये पेपर्स?”

“पुलिस को मौर्या के घर से मिले थे, ओरिजिनल उन्हीं के पास है।”

“लेकिन मतलब क्या हुआ इसका? अंबानी के घरवाले तो कहते हैं कि सत्यप्रकाश ऐसी किसी डील के सख्त खिलाफ था।”

“सत्य था न, उसका भाई और बीवी तो नहीं थे?”

“लेकिन कंपनी के पार्टनर तो दोनों भाई हैं, ऐसे में शीतल का ऐसे कागज़ात पर साइन करना क्या मायने रखता है?”

“सत्यप्रकाश के जीते जी बेशक इसके कोई मायने नहीं हैं, मगर जरा सोचकर देखिए कि अगर उसकी चल-चल हो गयी होती तो क्या ये पेपर्स खुद ब खुद वैलिड नहीं हो गये होते? ऊपर से जरा तारीख तो देखिए, उन्नीस अगस्त। यानि अंबानी की हत्या के एक महीने बाद ये डील सामने लायी जानी थी। और तब तक क्योंकि अंबानी की संपत्ति पर शीतल का कब्जा कायम हो चुका होता, इसलिए कोई उंगली नहीं उठ सकती थी इन कागज़ात पर, और उठाता भी तो कौन उठाता? कंपनी का एक पार्टनर मर चुका होता और दूसरा क्योंकि खुद पूरे षड़यंत्र में शामिल था इसलिए उसके ऐतराज जताने का तो मतलब ही नहीं बनता था।”

“यानि मौर्या को इस बात का लालच देकर योजना में शामिल किया गया कि कल को सत्यप्रकाश की मौत के बाद जब शीतल कंपनी की पार्टनर बन जायेगी तो हेल्थ और यूनिवर्सल फॉर्मा एक हो जायेंगे, जो कि सत्य किसी भी हाल में होने नहीं देना चाहता था।”

“एग्जैक्टली, तभी तो गारंटी के तौर पर एडवांस में तैयार कराये गये ये पेपर्स, वरना महज उनके कहने भर से मौर्या कत्ल जैसी वारदात में साथ देने को क्यों तैयार हो जाता?”

“कमाल है, इतना बड़ा षड़यंत्र, अपने पति के खिलाफ, भाई के खिलाफ?”

“अब मान भी लो पार्थ।” दुग्गल बोला – “कि उन दोनों के बीच अफेयर बराबर चल रहा है। वरना छोटा भाई, बड़े भाई के इतना खिलाफ नहीं हो जाता कि उसकी हत्या की योजना बना बैठता। वैसे भी उसकी असेस्ट में तो सत्य के मरने से कोई नफा-नुकसान होता नहीं दिखाई दे रहा। और अब तो इन कागज़ात के जरिये ये साबित भी हो आया कि आकाश उस हमले में शरीक था।”

“ठीक कहते हैं आप।” इस बार पार्थ बोला तो उसका लहजा बेहद गंभीर था – “कुल मिलाकर कहानी ये बनती है कि शीतल और आकाश अंबानी के बीच फिजिकल रिलेशन बन गये थे, जिसके कारण दोनों ने सत्य को अपने रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया, मगर वे लोग ये भी नहीं चाहते थे कि पुलिस का सीधा शक उनकी तरफ चला जाये, इसलिए मौर्या को पार्टनरशिप का लालच दिया और उसे अपने साथ मिला लिया, मगर अनंत गोयल; वह किस लालच में शामिल हुआ होगा?”

“मेरे ख्याल से जिन साठ लाख रूपयों का जिक्र उठा है, वही उसकी फीस थी, जो कि एडवांस में अदा कर दी गयी। ये भी हो सकता है कि शीतल और आकाश को पहले से खबर रही हो कि सत्य वैसी कोई बड़ी रकम किसी को सौंपने के लिए अनंत गोयल को भेजने वाला है, तभी उसे ये कहकर अपनी योजना में शामिल कर लिया कि अंबानी मारा गया तो वह रूपये उसके हो जायेंगे। इस तरह से देखें तो बाद में उसके भाग निकलने की वजह भी वह दौलत ही रही होगी। अंबानी के बच जाने की सूरत में अनंत को ये डर सताने लगा होगा कि उसे मजबूरन उन रूपयों को गंतव्य तक पहुँचाना पड़ सकता था, जो कि वह हरगिज भी नहीं चाहता था, मगर उसके चाहने से क्या होता? शीतल और आकाश तो पहले से ही उसे डबल क्रॉस करने का मन बनाये बैठे थे। इसलिए अनंत का कत्ल कर के लाश गायब कर दी और मौर्या को भी इसलिए खत्म कर दिया ताकि कल को उनके खिलाफ कोई गवाह बचा न रह जाये। या इस एग्रीमेंट के कारण मौर्या कहीं सच में उनका पार्टनर न बन बैठे।”

“अगर कत्ल उन दोनों में से किसी ने किया था, तो फिर इन पेपर्स को उसके घर में तलाशने की कोशिश क्यों नहीं की, जो कि उनकी मंशा को साफ-साफ जाहिर किये दे रहे हैं?”

“जब आप खुद ये बात कहकर हटे हैं कि कातिल के पास दूसरी गोली चलाने का वक्त नहीं था तो पेपर्स तक कैसे पहुँच पाता वह, जो कि यकीनन किसी सेफ जगह पर रखे गये होंगे?”

“ठीक कह रहे हो।”

“बकवास।” वंशिका एकदम से बोल पड़ी – “यूँ खामखाह दो लोगों के खून से अपने हाथ रंगने की उन्हें कोई जरूरत नहीं है। अगर मौर्या और अनंत का कत्ल करना ही था तो इससे तो कहीं अच्छा होता कि दोनों को अपनी योजना में शामिल ही नहीं करते। और मौर्या का कत्ल अभी क्यों? अंबानी तो जिंदा है, उसके जीते जी पार्टनरशिप की ये डील धेले भर की औकात नहीं रखती। ऐसी स्थिति में पहले उन्हें अंबानी को ठिकाने लगाने के बारे में सोचना चाहिए था या मौर्या के कत्ल के बारे में? जो कि एक बार पहले भी उनका साथ दे चुका था, इसलिए दूसरी बार मना करने का तो सवाल ही नहीं उठता था।”

“दम तो है लड़की की बात में।” दुग्गल बोला – “कम से कम अंबानी के जिंदा रहते हुए तो उनके पास कोई वजह नहीं थी मौर्या को मार गिराने की। नहीं, बात असल में कुछ और है। कुछ ऐसा हुआ है, जिसकी अभी तक हमें हवा भी नहीं लगने पाई है। इसलिए अभी से किसी नतीजे पर पहुँचना गलत होगा।”

“मुझे तो पूरे केस में एक की बजाय दो पार्टियों का दखल जान पड़ता है।” एडवोकेट अमन सोनी बोला – “पहला कारनामा आकाश, शीतल, मौर्या और अनंत का था, जबकि दूसरा, मौर्या के कत्ल का, किसी का वन मैन शो है। इसलिए होने को ये भी हो सकता है कि उसे किसी ऐसे शख्स ने मार गिराया हो, जो अंबानी का बेहद करीबी था, जिसे किसी तरह पता लग गया कि उस पर हमला करने वाले लोग कौन थे। इसलिए आगे जो लाशें गिरेंगी, या जिन्हें गिरने देने से हम बचा सकते हैं, वह आकाश और शीतल की होंगी, और अनंत गोयल की, अगर वह अभी तक जिंदा है तो।”

“सब इंस्पेक्टर चौहान ने भी ऐसी ही आशंका जाहिर की थी, तब मैंने उसकी बात को बहुत हल्के में लिया था सोनी साहब, मगर अब लगता है कि उसका कहा सही भी हो सकता है।”

“दस बज चुके हैं पार्थ।” दुग्गल बोला।

“जिसके बाद ग्यारह बजेंगे।” पार्थ हँसता हुआ बोला – “और हम यूँ ही दिमाग खपाते रहे तो कोई बड़ी बात नहीं होगी कि सुबह हो जाये, इसलिए मैं आपका इशारा कैच करते हुए मीटिंग यहीं खत्म करता हूँ।”

“आपके बच्चे जियें सर।” युग जौहर नारा सा लगाता बोला।

“अरे कम्बख्त पहले शादी तो हो लेने दे।”

सुनकर युग ने गहरी निगाहों से वंशिका की तरफ देखा और ठहाके लगाकर हँस पड़ा।

तत्पश्चात सब लोग कॉन्फ्रेंस हॉल से बाहर निकल गये।

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