बलदेव मनोचा !
रिसीवर वापस रखकर बुत बना बैठा सोच रहा था । उसका मस्तिष्क पूर्णतया सक्रिय था । फारूख ओर अनवर को बुरी खबर सुनना कतई पसंद नहीं था । वे सुनते ही आग–बबूला हो जाते और उनका सबसे पहला कोपभाजन खबर देने वाला ही हुआ करता था । इसलिये मनोचा अपने अंदर मुनासिब हौसला जुटाने की कोशिश करता सोच रहा था हसन भाइयों को इस तबाही की इत्तिला किस ढंग से दी जाये और क्या अल्फाज इस्तेमाल किये जायें । क्योंकि इसे ज्यादा देर तक टालना उसके हक में और भी बुरा हो सकता था, इसलिये उसने धीरे से रिसीवर उठाकर नम्बर डायल करना शुरू कर दिया ।
* * * * * *
टेलीफोन की घण्टी की आवाज़ फारूख हसन को कहीं दूर से आती सुनायी दी । व्हिस्की और नींद की मिली–जुली खुमारी उसके दिमाग में धुंध की तरह छाई हुई थी । उसे लगा वह थोड़ी देर पहले ही सोया था । जैसे ही वह उठकर बैठने लगा उसके कुंद से हो गये दिमाग में सोने से पहले की घटनायें ताजा हो गयीं ।
टीना सहित अपार्टमेंट में पहुंचने के बाद उसने अपनी हीरों जड़ी सोने की घड़ी पर नजर डाली थी । सिर्फ डेढ़ बजा था ।
दरवाज़ा बंद करके पलटा तो लड़की को उबासी लेते पाया ।
–"मैं सारी रात मौज–मेला करना चाहता हूं लेकिन तुम थकी हुई लगती हो ।"
टीना ने उसके गले में बांहें डाल दीं ।
–"नहीं, बिल्कुल नहीं । जो चाहो कर सकते हो ।" वह फारूख के होठों को किस करके जीभ उसके दांतों पर फिराने लगी ।
मेकअप की परत के नीचे उसकी आंखों के इर्द–गिर्द उभरी स्याह गोलाईयों को देखकर फारूख सोचने लगा । जिन कमसिन लड़कियों को वह अपने लिये चुनता है और अपने खास तरीकों से पेश आना सिखाता है वे पन्द्रह–बीस रोज में ही थक जाती हैं जबकि वह खुद नहीं थकता । आजकल की कमसिन लड़कियों में बर्दाश्त की ताकत ही नहीं होती । फीगर बनाने की होड़ में, शरीर को कुदरती तौर पर बढ़ने का मौका देने की बजाये डाइटिंग और दूसरे लफड़ों में पड़ जाती हैं । अचानक माला का भरा–पूरा शरीर जहन में घूम गया । उसमें स्टेमिना भी जरूर होगा...देर तक मौज करायेगी...।
–"गुड गर्ल !" स्वयं को आलिंगनमुक्त करके बोला–"आज रात स्कूलगर्ल बनना पसंद करोगी ?"
टीना दिलकश अंदाज में मुस्करायी ।
–"जो कहोगे बन जाऊंगी ।"
–"तो फिर बन, जाओ ।"
फारूख बाथरूम में चला गया ।
पांच मिनट बाद वापस लौटा तो सिर्फ लुंगी पहने था ।
टीना पलंग की पांयत वाले सिरे के पास खड़ी थी । नीली चैक का स्कर्ट–ब्लाउज पहने । बालों की दो चोटियां बनाकर उनके सिरे ऊपर लाकर रिबन की फूलदार गांठों से लूप बनाये ।
फारूख की धड़कनें बढ़ गयीं । उसकी समझ में नहीं आया कि कमसिन लड़कियों को स्कूल या नर्स या नन की पोशाक में देखकर क्यों उसके अंदर वासना भड़कने लगती थी ।
–"तुम पढ़ाई में बहुत कमजोर हो, लड़की !" वह ठीक किसी टीचर के लहजे में बोला ।
टीना ने सर झुका लिया ।
–"इसलिये तो आपसे ट्यूशन पढ़ने आयी हूं, सर !" स्कूली छात्रा की भांति बोली ।
–"मेहनत बहुत करनी पड़ेगी ।"
–"करूंगी, सर ! जो भी आप कहेंगे, करूंगी ।"
–"इधर आओ ।"
सहमी–सी लड़की का अभिनय करती वह आगे बढ़ी ।
अचानक फारूख ने झपटकर उसे दबोच लिया और ताबड़तोड़ चूमने लगा ।
टीना ने प्रतिरोध का अभिनय किया ।
–"यह क्या कर रहे हैं, सर...प्लीज मुझे छोड़ दो...नहीं, सर...ऐसा मत करो...नहीं, सर...नहीं...नहीं...नहीं...!"
फारूख ने उसे उठाकर बिस्तर पर पटक दिया । फिर एक–एक करके उसके तमाम कपड़े उतार फेंके ।
टीना का अभिनय जारी रहा ।
जब उसके नीचे दबी टीना छटपटाने का नाटक कर रही थी तो एक बार फिर उसके जहन में माला समा गयी और वह उसे माला के तौर पर ही भोगने लगा ।
लेकिन वो नींद आने से पहले का वाक्या था । अब टेलीफोन की घण्टी बज रही थी और लंबे और बदन तोड़ सहवास से थकी संतुष्ट टीना उसकी बगल में पड़ी सो रही थी ।
फारूख हसन ने दिमाग में छाया घने कोहरे को साफ करने की कोशिश में जोर से सर हिलाया और टेलीफोन उपकरण की ओर हाथ बढ़ा दिया ।
* * * * * *
नीचे अपने अपार्टमेंट में ।
अनवर हसन को घण्टी की हल्की–सी आवाज़ सुनायी दी तो समझ गया टेलीफोन बज रहा था । इस रात फोन अटेंड करने की बारी फारूख की थी । वे एक रात छोड़कर बारी–बारी से कॉल सुना करते थे । उसने अपनी एक्सटेंशन लाइन पर ऑफ बटन दबा दिया । करवट बदलकर हाथ बढ़ाया और नजमा के वक्षों को मसलने लगा ।
उनींदी नजमा उसके और ज्यादा करीब आ गयी ।
* * * * * *
फारूख के अपार्टमेंट के ठीक नीचे ।
हसीना बेगम ने भी घण्टी सुनी–दूर कहीं बजती हुई–सी । उसकी आँखें खुल गयीं । परवेज अहमद उसकी बांहों में किसी लम्बे–चौड़े बच्चे की भांति पड़ा था ।
उसने परवेज को और पास खींचकर खुद से पूरी तरह सटा लिया ।
परवेज अहमद अब छब्बीस का हो चुका था । इस दौरान बानों से बेगम बन चुकी हसीना को यकीन नहीं आता था, जब उसने पहली बार परवेज को छाती से लगाया उस बात को उन्नीस साल हो चुके थे । उसे इस पर भी यकीन नहीं आता था कि वह खुद साठ पार कर चुकी थी । अभी भी अक्सर वह खुद को पच्चीस–तीस की ही महसूस किया करती थी । यह अलग बात थी, अब वह अपने कलपुर्जों का उस ढंग से इस्तेमाल नहीं कर पाती थी जैसे उस उम्र में किया करती थी । शरीर में वो जोश और सनसनी ना पाकर ही उसे पता चलता था कि वे दिन लद चुके थे । उसका वक्त गुजर चुका था ।
परवेज उस वक्त छोटा–सा क़ाबिले तरस लड़का था । जब वह पहली बार उसे घर लेकर आयी थी ।
उन दिनों वह स्लम एरिया के अपने छोटे से घर में बेटे अनवर और भांजे या भतीजे फारूख के साथ रहती थी...उन दोनों के लिये घर केवल नाममात्र को ही था । जब दिल करता चले आते नहीं तो कई–कई रोज गायब रहते थे । उस रात भी वे घर में नहीं थे और हसीना जानती थी दोबारा उनकी शक्ल देखने में काफी वक्त लगेगा क्योंकि दोनों जेल में सजा काट रहे थे । अनवर अपनी एक सहेली के चहेते को छुरे से चीर डालने के जुर्म में और फारूख एक बाजारू औरत की तगड़ी धुनाई करने के अपराध में ।
हसीना बखूबी वाक़िफ़ थी कि दोनों लड़के न सिर्फ खुराफाती थे बल्कि नाजायज और गैरकानूनी धंधों में भी फंसे थे और नापसंदगी के बावजूद वह वो सब बर्दाश्त करने के लिये मजबूर थी क्योंकि रोजमर्रा की जरूरियात पूरी करने के लिये आमदनी का कोई और वसीला नहीं था । जुर्म की राह पर चल निकले दोनों लड़के कभी सुधरने वाले नहीं थे ।
फारूख को सजा हो चुकी थी और अनवर जमानत न हो पाने के कारण जेल में मुकदमें की सुनवाई का इंतजार कर रहा था । हालांकि परवेज ने उसे यकीन दिलाया था जगतार सिंह उनकी गैर मौजूदगी के दौरान उसके पास आता रहेगा और हर तरह की माली इमदाद करेगा । लेकिन उन दोनों के अंदर जाने के बाद जगतार एक बार भी नहीं आया । अलबत्ता उनके दोस्त उसकी पूरी देखभाल किया करते थे । वे रोजाना आते और थोड़ा–बहुत पैसा, खाने–पीने का सामान, कपड़े वगैरा उसे दे जाया करते थे । वे सब अच्छे लड़के थे और हसीना अपनी जिस्मानी जरूरत पूरा करने के लिये भी उन्हें इस्तेमाल कर लिया करती थी ।
उन लड़कों के अलावा जमील अहमद नाम का एक आदमी भी हसीना के पास आता था । मोटी अक्ल वाला जमील जगतार के लिये संदेश या सामान पहुंचाने का काम करता था । जरूरत पड़ने पर क्लबों में भी उसे बुला लिया जाता था । यही उसका रोजी–रोटी कमाने का जरिया था ।
जमील अहमद की दो ही कमजोरियां थीं–शराब और बीवी फरीदा । आठ साल की शादीशुदा जिंदगी के नतीजे के तौर पर उनका एक साल का बेटा था–परवेज !
जमील अक्सर हसीना को बताता था कि फरीदा से कितना प्यार करता था और उसे खुश रखने के लिये कितनी कोशिशें करता था । जबकि हसीना की राय में फरीदा चालाक, लालची और बदकार औरत थी । जमील के सीधेपन और अपने खाविन्द की अंधी मुहब्बत का फायदा उठाकर उसे अपनी उंगलियों पर नचाती थी–गुलाम की तरह । लेकिन जमील को यह बताने से कोई फायदा नहीं होना था क्योंकि उसकी मोटी अक्ल में यह सब नहीं आना था । उसे सिर्फ एक ही चिंता सताती थी–फरीदा इतनी ठण्डी क्यों हो गयी थी कि उसके साथ हम बिस्तर होने से परहेज करती थी और उसकी खुशामदों के बाद अगर कभी तैयार भी होती तो, बस बुत बनी पड़ी रहती थी । हसीना के पास आने वाले दूसरे लड़के इसकी वजह जानते थे और हसीना को बता भी चुके थे ।
फरीदा ने दूसरी जगह टांका भिड़ा रखा था । उसका वो यार नकली कास्मेटिक्स बेचने का काम करता था और जमील के मुक़ाबले में उसकी कमाई भी ज्यादा थी और बिस्तर में भी कहीं ज्यादा मजेदार था । लेकिन जमील के सामने इस बारे में मुंह खोलने की हिम्मत किसी में नहीं थी । उसे ऐसी बातों से सख्त नफरत थी । शौहर और बीवी के रिश्ते में वफ़ादारी को वह सबसे ज्यादा अहमियत देता था । दूसरों की बहन–बेटियों और पराई औरतों पर बुरी नजर रखना उसकी निगाहों में सबसे बड़ा गुनाह था । यही वजह थी उसकी जिन्दगी में फरीदा के अलावा कोई औरत कभी नहीं आयी । इस सच्चाई को सुनकर उसने फौरन आग–बबूला हो जाना था और इस पर हर्गिज भी यकीन नहीं करना था । क्योंकि वह एक समर्पित पति और पिता था । उसके लिये फरीदा और बेटा ही सब कुछ थे । जाहिर था इस बात को सुनाने वाले की हड्डी–पसली उसने एक कर देनी थी और बड़ी बात नहीं कि जान भी ले लेता ।
बहरहाल सब जानते थे देर–सबेर यह सच्चाई उसके सामने जरूर आ जायेगी ।
वो सच ही हुआ भी ।
सच्चाई जल्दी ही सामने आ गयी ।
जमील उस रात मून लाइट क्लब में काम कर रहा था । लगभग आठ बजे जगतार ने उससे कालका प्रसाद को एक जरूरी मैसेज पहुँचाने के लिये कहा । क्योंकि कालका प्रसाद का घर दूर था और आने–जाने में दो–ढाई घण्टे लग जाने थे, इसलिये उसने कह दिया मैसेज पहुँचाने के बाद जमील चाहे तो अपने घर जा सकता था ।
जमील खुश हो गया । रोजाना चार घण्टे के बाद घर पहुँचता तो फरीदा बेटे के साथ गहरी नींद में सोयी पड़ी मिलती थी । उसे जल्दी घर में आया देखकर वह भी खुश हो जायेगी फिर खुशामदें करके किसी तरह उसे मना ही लेगा ।
कालका प्रसाद को मैसेज पहुंचाने के बाद उसने रम की बोतल खरीदी । पौनी बोतल खत्म करके बची हुई हाथ में दबाये घर की ओर रवाना हो गया–फरीदा के साथ हमबिस्तर होने की रोमांचक कल्पनाओं में खोया ।
वह ग्यारह बजे घर पहुँच गया ।
बाहरी कमरे में कदम रखते ही स्तब्ध रह गया ।
दीवान पर पड़ी फरीदा पर एक अजनबी सवार था ।
दोनों पूर्णतया नग्न और सहवासरत् ।
जमील को एकाएक अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ । बोतल हाथ से छूटकर फर्श पर गिरी और टूट गयी ।
शादी के चंदेक रोज बाद फरीदा समझ गयी कि वह जमील की कमज़ोरी थी । जैसे चाहे उसे इशारों पर नचा सकती थी । भोंदू खाविंद को गुलाम बनाया जा सकता था । उसने बना भी लिया । शौहर के लिये कोई इज़्ज़त उसके मन में कभी नहीं रही । उसके प्यार मनुहार और हर वक्त खुश रखने के लिये तैयार रहने की आदत ने फरीदा को बेखौफ बना दिया था ।
दोनों दीन–दुनिया से बेखबर अपने में ही खोये थे, उन दोनों को जमील के आने का पता चला बोतल टूटने की आवाज़ से ।
आदमी को मानों सांप सूंघ गया । उसकी हरकतों में तुरंत ब्रेक लग गया ।
फरीदा ने उसके कंधे के ऊपर से सर उठाकर देखा ।
–"ओह, तुम !" हांफती हुई बोली–"आज इस वक्त कैसे आ गये ?"
जमील की खोपड़ी घूम रही थी । वह कुछ नहीं बोल पाया ।
–"दो मिनट रुको !" फरीदा ने कहा–"हम अभी फारिग नहीं हुये हैं ।"
फरीदा गैरमर्द की बांहों में ।
उसकी बीवी बदकार !
बेवफा !
इस हकीक़त ने जमील की गैरत को झकझोर दिया । उसके दिमाग से गुज़री गुस्से की जबरदस्त लहर ने नशे की झोंक के साथ मिलकर उसका रोम–रोम कंपा दिया ।
वह आपा खो बैठा ।
पैरों में पड़ी टूटी बोतल को गरंदन से पकड़कर उठाया । फिर उसे पता नहीं चला कब दीवान के पास पहुंचा और उस खतरनाक हथियार से उन पर वार करने शुरू कर दिये ।
नोकीला कांच उनकी गरदनों और चेहरों को एक साथ कई–कई जगहों पर चीरता रहा ।
खून की बौछारें छूटती रहीं ।
बिस्तर, पास की दीवारें और खुद जमील खून से नहा गये ।
दोनों ने उसी हालत में दम तोड़ दिया ।
जमील पर मानों वहशत सवार थी । उसका हाथ वार करता ही रहा । अचानक चीख की आवाज़ सुनकर चेतना को झटका लगा ।
दूसरे कमरे के दरवाजे में बेटा परवेज खड़ा था । तभी जमील को अहसास हुआ कि वह क्या कर बैठा था ।
बेटे को डांटकर भगा दिया ।
टूटी बोतल दीवान पर फेंक दी । नींद में चलता हुआ–सा दूसरे कमरे में पहुंचा । वहां पड़ी फरीदा की नई ओढ़नी उठाई । कुर्सी पर खड़ा होकर उसका एक सिरा छत में लगे सीलिंग फैन लटकाने वाले लोहे के हुक में बांधा और दूसरे सिर का फंदा बनाकर गले में फंसाकर कुर्सी को पैर से दूर फेंक कर झूल गया ।
पड़ोसियों ने चीखें सुनकर पुलिस को इत्तिला कर दी थी ।
खबर फैल गयी ।
उसी इलाके में रहने वाला जगतार का एक और प्यादा स्कूटर लेकर हसीना के पास पहुंचा । हसीना उसी के साथ वहां आ गयी और बड़े जोर–शोर से दलील पेश की वह परवेज की आंटी है और उसे अपने साथ रखना चाहती है ताकि बदकिस्मती से यतीम हो गये बच्चे को सहारा मिल सके और उसकी परवरिश हो सके ।
पुलिस ने इस रिश्ते के बारे में कोई सवाल तक नहीं किया लेकिन लड़का भी पेश नहीं किया जा सका क्योंकि वह वहां था ही नहीं ।
उस पूरे वाक़या का यह बड़ा ही बदमजा पहलू था । उस भयानक दृश्य से भयभीत परवेज बाप की डांट खाकर रात में ही घर से भाग गया था ।
हसीना उसी प्यादे के साथ स्कूटर पर उसे ढूंढने निकल गयी ।
करीब तीन घण्टे धक्के खाने के बाद सर्दी में ठिठुरता एक बंद दुकान के बाहर बैठा रोता परवेज मिल गया । हसीना ने उसे उठाकर छाती से लगाया और घर ले आयी ।
उसके मासूम दिमाग में उस रात का खून–खराबे भरा खौफनाक नज़ारा इस बुरी तरह गड़कर रह गया था कि उसे बरसों तक उसी के दुःस्वप्न सताते रहे । हसीना उसे मनोरोग चिकित्सक के पास ले गयी । दवाओं और हसीना के प्यार का असर रंग लाने लगा । वह धीरे–धीरे नार्मल होने लगा ।
उस पहली रात से ही हसीना ने परवेज के साथ अपनेपन का गहरा रिश्ता कायम कर लिया । अपना समूचा प्यार उस पर उड़ेलती रही । रोजमर्रा की तमाम जरूरी सहूलियात मुहैय्या कराते हुये उसकी बढ़िया परवरिश शुरू कर दी ।
फारूख और अनवर जब जेल से छूटे उन्होंने भी उसे छोटे भाई की तरह स्वीकार कर लिया और उसी तरह का व्यवहार उसके साथ करने लगे । सबका प्यार–दुलार पाकर परवेज के मन में हौलनाक नज़ारे का अक्स मिटता चला गया ।
स्कूली तालीम पूरी करके परवेज ने कालेज ज्वाइन कर लिया ।
इस सबके बावजूद उसके अंदर की भय मिश्रित असुरक्षा और कुंठा ने उसे अपने तक सीमित रहने वाला बना दिया था । बाहरी शख्स से ज्यादा मेलजोल उस पसंद नहीं था । उसकी दुनिया हसीना फारूख और अनवर के बीच घर की चारदीवारी तक ही सीमित रह गयी थी ।
हसीना ने शुरूआती दिनों से ही उसके साथ अजीब–सा जाती रिश्ता कायम कर लिया था–परवेज के साथ उसका व्यवहार बच्चे जैसा न होकर अपने बराबर के जैसा था ।
अट्ठारह का हो चुकने पर भी परवेज हसीना के साथ उसी के बिस्तर में सोता था । तब तक हसीना उसे आदमी और औरत के जिस्मानी रिश्तों से वाक़िफ़ करा चुकी थी ।
असलियत यह थी परवेज अहमद को इतनी आज़ादी कभी नहीं दी गयी कि वह अपनी हमउम्र किसी लड़की के साथ अपनी मर्जी से स्वस्थ यौन सम्बन्ध स्थापित कर सके । उसके ताल्लुकात सिर्फ हसीना के साथ थे और उसके लिये यही इकलौता सही और कुदरती तरीका था ।
हसन हाउस में जाने के बाद हालांकि उसे भी कमरों का निजी सैट दे दिया गया था लेकिन उसका दिन का ज्यादातर वक्त और हर एक रात हसीना के बेडरूम में ही गुजरते थे । असल में उसकी हालत उस कैदी जैसी थी जो सिर्फ हसीना, फारूख और अनवर के प्यार की कैद का होकर रह गया था । इसी में वह पूरी तरह संतुष्ट था । इससे बाहर की दुनिया की कोई चाहत उसे नहीं थी ।
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