जगमोहन और महाजन को देखते ही गुलाबलाल हैरानी से उछल पड़ा।
"जग्गू । नीलसिंह ।" गुलाबलाल के चेहरे पर से कई रंग आकर गुजर गए
जगमोहन और महाजन की नजरें मिली।
"वो बाबा मुझे नीलसिंह कहकर पुकारता था ।" महाजन, जगमोहन के कान में बोला ।
"और वही बाबा मुझे जग्गू कहता था ।" जगमोहन ने आहिस्ता से कहा।
"तुम दोनों एक साथ ?" गुलाबलाल की आंखें फैली हुई थी --- "और आपस में कोई झगड़ा नहीं।"
"हम क्या पागल हैं जो खामखाह ही एक दूसरे को डंडा उठाकर मारने लगेंगे।" जगमोहन ने अजीब से स्वर में कहा--- "मेरा नाम जगमोहन है । जग्गू नहीं ।"
"और मुझे नीलू महाजन कहते हैं। ज्यादा प्यार आए तो महाजन कह लेना।"
गुलाबलाल वास्तव में पागलों वाले अंदाज़ में दोनों को देखी जा रहा था । पास में हैरानी में डूबा डोरीलाल खड़ा था कि गुलाबलाल को ये सब क्या हो गया है?
"त्रिवेणी, भंवर सिंह, जग्गू और नीलसिंह |" गुलाबलाल बड़बड़ाया --- "ये सब इकट्ठे हो गए हैं। ओह, वास्तव में कुछ होने वाला है । देवा और मिन्नो तिलस्म में है। जो कि तिलस्म के कई ताले तोड़कर आगे बढ़ चुके हैं। उनका बाल भी बांका नहीं हुआ ।"
महाजन ने पैंट में फंसी बोतल निकाली और तगड़ा घूंट भरा ।
यह देखकर गुलाबलाल की आंखें सिकुड़ी ।
"ये, इस बोतल में नशा है ना ?" गुलाबलाल ने पूछा ।
"हां ।"
"वही, वही आदतें । हर वक्त नशा करते रहना।" गुलाबलाल के होठों से निकला । महाजन के होंठ सिकुड़े।
"वो बाबा भी यही बात बोलता था ।" महाजन जगमोहन के कान में बोला ।
"इसकी बातें सुनो और मामला समझने की कोशिश करो ।" जगमोहन आहिस्ता से कह उठा।
दोनों की निगाह गुलाबलाल पर थी ।
गुलाबलाल ने डोरीलाल से कहा ।
"उन दोनों को भी यहां से ले जाओ।"
डोरीलाल वहां से चला गया ।
"बैठ जाओ । खड़े क्यों हो ।" गुलाबलाल से बात करने का अंदाज अब बदलता जा रहा था । कभी वो बेचैन हो उठता, तो कभी उसके चेहरे पर भूचाल के निशां नजर आने लगते ।
जगमोहन और महाजन बैठ गए।
गुलाबलाल ने पहलू बदला । परंतु बोला कुछ नहीं ।
"ये चुप क्यों हैं ?" महाजन ने घूंट भरा ।
"मैं तुमसे कुछ पूछना चाहता हूं।" जगमोहन की गंभीर निगाह गुलाब लाल के चेहरे पर थी।
"क्या?"
"तुम मुझे जानते हो ?"
"हां । क्यों नहीं ।" गुलाबलाल के होठों से फौरन निकला--- "तुम जग्गू हो । देवा के सबसे खास दोस्त थे । उसी के वास्ते अपनी जान दी। परंतु गुरुवर ने कहा था कि तुम सब एक दिन अपने पुराने चेहरों के साथ वापस लौटागे और-और वो वक्त शायद- शायद आ गया है |"
"मेरे बारे में बताओ ।" महाजन कह उठा ।
"तुम मिन्नो के साथ थे । मिन्नो की तरफ से लड़े थे । जब झगड़ा हुआ था । तुम भी मारे गए थे।"
"झगड़ा क्यों हुआ था ?" जगमोहन ने पूछा ।
"अभी कुछ मत पूछो । तुम सबको देखकर मैं पागल हुआ पड़ा हूं । त्रिवेणी और भंवर सिंह भी तुम लोगों के साथ आए हैं। हैरानी है कि तुम सब एक साथ यहां कैसे आ पहुंचे ?"
"त्रिवेणी-भंवर सिंह ।" जगमोहन ने उसे देखा--- "ये दोनों कौन है ? "
"डोरीलाल उन्हें लेने गया है।"
"हमें कैद करके, हमसे नौकरों जैसा काम क्यों लिया जा रहा है ?" जगमोहन ने उसे घूरा।
"ये तो होना ही था ।" गुलाबलाल ने सिर हिलाकर कहा--- "तुम लोग मनुष्य हो । पृथ्वीवासी हो और बिना हमारी इजाजत के हमारी नगरी की हद में आ गए तो तुम लोगों को कैद कर लिया गया । वैसे तो हमें ऐसों को खत्म कर देते हैं, परंतु कुलदेवी ने आदेश दिया था कि जब भी मनुष्य इस नगरी में प्रवेश कर जाएं तो उसकी जान न ली जाए, वरना अनर्थ हो जाएगा । यही कारण है कि तुम लोगों की जान न लेकर, सेवकों का काम लिया जा रहा है।"
"कुलदेवी कौन है ?" महाजन ने पूछा।
तभी कदमों की आहट गूंजी।
डोरीलाल ने बांकेलाल राठौर और रुस्तम राव के साथ भीतर प्रवेश किया । "मौज ले रहे हो बादशाहो ।" बांकेलाल राठौर का हाथ उन्हें देखते ही मूंछ पर पहुंच गया।
"तू भी ले ले भाई ।" महाजन कह उठा--- "मिल बांटकर खा-पी लेते हैं । " गुलाबलाल कह उठा ।
"बैठो-बैठो।"
बांकेलाल राठौर और रुस्तम राव कुर्सियों पर बैठ गए। रूस्तम राव के चेहरे पर गंभीरता और व्याकुलता उभरी हुई थी । निगाहें गुलाबलाल पर थी ।
गुलाबलाल ने बेचैनी से पहलू बदला ।
"मैं तुम लोगों से एक सवाल पूछना चाहता हूं ।" गुलाबलाल ने कहा--- . "पृथ्वी से पाताल में आने-जाने का रास्ता कोई सामान्य मनुष्य नहीं जान सकता और तुम सब सामान्य मनुष्य हो।"
"थारी इसो बातों का मतलब का हौवे गुलाबलाल भायो।"
"मैं ये जानना चाहता हूं कि तुम लोगों को पाताल का रास्ता किसने बताया । मालूम तो हो कि हमारी नगरी में कौन गद्दार रह रहा है ।" कहते हुए गुलाबलाल के दांत भिंच गए।
"म्हारे को नहीं मालूम कि वो थारी नगरी का हौवे या म्हारी नगरी का । वो...।"
"बाप ।" रूस्तम राव एकाएक तेज स्वर में कह उठा--- "नेई बोएला तू ।"
बांकेलाल राठौर ने रूस्तम राव को देखा ।
रुस्तम राव के चेहरे पर सख्ती नाच रही थी ।
"छोरे तू म्हारे को ऑर्डर देवे ?"
"हां बाप । मुंह बंद ।"
"का जमाना आ गए । छोरा, बापू को मूं बंद कर रखने का आर्डर दयो । मानो भाई, थारा आर्डर पूरा का पूरा मानो । ले मूं बंद ?" कहकर बांकेलाल राठौर ने मूंछ को ताव दिया ।
जगमोहन और महाजन की नजरें मिली। वे खामोश ही रहे । जबकि गुलाबलाल की सिकुड़ चुकी आंखें रूस्तम राव जा टिकी थी।
"त्रिवेणी ।" गुलाबलाल का स्वर सख्त था--- "तूने भंवर सिंह को बताने से मना क्यों किया ?"
"भवर सिंह ?" महाजन के होठों से निकला ।
"हां, यो म्हारे को पैले के जन्म वाला भंवर सिंह कहो हो ।" बांकेलाल राठौर हंसा।
गुलाबलाल और रूस्तम राव के पलों तक एक-दूसरे को देखते रहे ।
"बोल त्रिवेणी । तूने भंवर सिंह को उसका नाम बताने को मना क्यों किया जो तुम्हें पाताल नगरी में लाया ?"
"मेरा नाम रुस्तम राव होएला । त्रिवेणी नहीं।"
"जो भी हो । मेरे सवाल का जवाब दे ।" गुलाबलाल के चेहरे पर क्रोध था।
एकाएक रूस्तम राव मुस्कुराया ।
"क्योंकि उसका नाम मैं, तुम्हें बताना चाहता हूं।"
"ओह, ठीक है बता ।"
जगमोहन, बांकेलाल राठौर और महाजन के माथे पर बल नजर आने लगे ।
"पृथ्वी से पाताल नगरी में आपुन लोग को तुम लाएला हो गुलाबलाल ।"
"मैं...?" गुलाबलाल दो पल के लिए तो हक्का-बक्का रह गया--- - "मैं लाया तुम लोगों को ?"
"यस बाप।" रुस्तम राव पुनः मुस्कुराया--- "तुम लाएला है आपुन सबको।"
"मालिक इसने इतना बड़ा झूठ बोल है ।" डोरीलाल ने कहा--- "इसे तिलस्म में भेज दीजिए । सजा मिल जाएगी ।"
गुलाबलाल ने बड़े सब्र के साथ सिर हिलाया ।
"तो मैं किस-किस को लाया हूं पाताल नगरी में ?" गुलाबलाल बोला ।
"मुझे । बांके को। रुस्तम राव। महाजन को । पारसनाथ को । बंगाली को। सोहनलाल को। कर्मपाल सिंह को । पाली को । देवराज चौहान को । मोना चौधरी को । तुम ही तो हमें लाए हो यहां और अब अपने आदमी के सामने पूछ रहे हो कि हम लोगों को यहां कौन लाया। चक्कर क्या है ? " जवाब दिया जगमोहन ने ।
गुलाबलाल ने होंठ सिकोड़कर डोरीलाल से कहा ।
"सुना डोरीलाल ? अब ये सब वही पहले वाली हरकतें ही करने लगे हैं।"
"सब सुन रहा हूं । लेकिन पहले वाली हरकतों का मतलब नहीं समझा मालिक।"
"तू समझेगा भी नहीं । तब तू काम की खातिर नगरी से पचास बरस बाहर रहा था ।" गुलाब लाल की नजरें उन चारों पर फिर रही थी --- "तुमने जो नाम गिनाए हैं, उन्हें मद्दे नजर रखते हुए अभी तुम लोगों में से पांच मनुष्य कम है । जिनके नाम तुमने इस प्रकार बताए हैं, कर्मपाल सिंह, सोहनलाल, बंगाली और पारसनाथ और पाली मेरे लिए। इन पांचों से मिलना भी जरूरी हो गया है।"
"थारी गिनती म्हारे को कमजोर लगी हो । कां तक पढो हो तुम ?"
"क्या मतलब ?"
"म्हारे हिसाबों से तो थारी भाषा में सात मनुष्य कमो हौवो । देवराज चौहान और मोना चौधरी को भूलो हो का ।
"तो तुम देवा और मिन्नो की बात कर रहे हो । उनको गिनती में से मैंने पहले ही निकाल दिया था।"
"काये को, वो थारे को मनुष्य ना लगो हो का ।"
"उनकी गिनती पहले ही हो चुकी है । "
"वो कैसे ?" जगमोहन के होठों से निकला ।
"देवा और मिन्नो तिलस्म में भटक रहे हैं। जहां से वो जिंदा बचकर बाहर नहीं निकल सकते । ये जुदा बात है कि उस तिलस्म को कभी मिन्नो ने ही तैयार किया था । परंतु पूर्वजन्म की बातें भूली हुई है। इसलिए तिलस्म को तोड़कर वो दोनों बाहर नहीं आ सकते और भटकते-भटकते अपनी जान गंवा देंगे।" कहते हुए गुलाबलाल के चेहरे पर विषैली मुस्कान दिखाई देने लगी--- "वैसे भी दालूबाबा उन्हें ज्यादा देर जिंदा नहीं देखना चाहते, इसलिए अब तिलस्म में ऐसे इंतजाम किए गए हैं कि वो दोनों जल्द से जल्द मौत को प्राप्त हों।"
जगमोहन के दांत भिंच गए ।
"मतलब कि तुम लोगों ने देवराज चौहान की जान लेने का इंतजाम किया है।" जगमोहन की आवाज सुलग उठी।
"हां ।"
"कमीने-कुत्ते । तेरी हिम्मत की तू मेरे भाई जैसे देवराज चौहान की जान लेने का इंतजाम करे।" कहने के साथ ही जगमोहन उठा और वहशी जानवर की तरह गुलाबलाल पर छलांग लगा दी ।
गुलाबलाल संभाल नहीं सका । जगमोहन उसे साथ लिए कुर्सी से नीचे जा लुढ़का । इस दौरान गुलाबलाल ने खुद को बचाने की चेष्टा की परंतु सफल नहीं हो सका । जगमोहन का हाथ गुलाबलाल के गले पर टिक चुका था । ये सब चंद पलों में ही हो गया । जगमोहन से ऐसी हरकत की किसी को आशा नहीं थी।
यह देखकर डोरीलाल चौंका । गुलाबलाल को बचाने के लिए फुर्ती से आगे लपका परंतु मासूम जालिम ने उसका रास्ता रोक लिया।
"तेरा क्या इरादा होएला बाप ?" रूस्तम राव के चेहरे पर भोलापन था ।
डोरीलाल ने उसे सोलह बरस का मासूम लड़का समझ कर गुस्से से थप्पड़ मारने के लिए हाथ उठाया तो मासूम ने फुर्ती के साथ अपना लौह घूंसा उसके पेट में मारा । डोरीलाल के दोनों हाथ पेट पर जा चिपके । चेहरे पर पीड़ा की ढैरों रेखाएं नजर आने लगी । दर्द से आंखों में पानी छलछला उठा ।
"बोल बाप । किधर को जाएला तू । वो हरामी को तू बचाएला क्या ?" कहने के साथ ही रुस्तम राव ने उसके झुके हुए चेहरे पर घूंसा जड़ा और साथ ही उसे पीछे को धक्का दिया। चीख के साथ डोरीलाल पीठ के बल नीचे जा गिरा।
चेहरा मासूम ही रहा, परंतु आंखों में खूंखारता थी । वो आगे बढ़ा और नीचे गिरे डोरीलाल की छाती पर जा बैठा । चेहरे पर घूंसा लगने की वजह से डोरीलाल का सिर चकरा रहा था । पेट में अभी भी दर्द की तीव्र लहरें उठ रही थी कि जैसे भीतर कोई चूहा घुसा आंतों को कुतर रहा हो ।
"इधर से हिलने का नेई बाप ।" डोरीलाल की छाती पर बैठे रूस्तम राव कह उठा--- "नेई तो आपुन तेरे को चीर-फाड़कर, दो हिस्सों में, दरवाजे पर लटकाएला । समझा क्या ?"
डोरीलाल में उठने की हिम्मत कहां । वो तो वैसे ही पस्त था । तभी महाजन उठा और घूंट भर कर जगमोहन और गुलाबलाल की तरफ बढ़ा । बांकेलाल राठौर भी मूंछ को ताव देता खड़ा हो गया।
"सब नूं 'वड' के रख दांगे ।"
गुलाबलाल पीठ के बल नीचे पड़ा था । उस पर सवार जगमोहन के हाथ की उंगलियां किसी शिकंजे की तरह उनके गले से लिपटी हुई थी । गुलाबलाल का चेहरा लाल हो रहा था।
"बोल हरामजादे। देवराज चौहान को बचाने का रास्ता बोल । वरना एक ही झटके में तेरी जिंदगी की सांसें तोड़ दूंगा । जल्दी बोल दे । बता और बचा देवराज चौहान को, वरना...।"
महाजन पास पहुंचकर थोड़ा-सा नीचे झुका ।
जगमोहन ने धधकती-सुलगती निगाहों से, महाजन को देखा ।
महाजन के दांत भिंचे हुए थे और आंखें गुलाबलाल पर थी।
"तो तुमने "बेबी' की मौत का भी इंतजाम कर दिया ।" महाजन के होठों से गुर्राहट निकली ।
"क-कौन-बे-बी ?"गुलाबलाल के होठों से फंसा-सा स्वर निकला ।
"मैं मोना चौधरी की बात कर रहा हूं कुत्ते ।" महाजन के चेहरे पर खतरनाक भाव नाच उठे।
गुलाबलाल ने बोलना चाहा । परंतु गले की पकड़ की वजह से बोला न जा सका ।
"जगमोहन ।" महाजन पहले वाले लहजे में कहा--- "इसे बोलने दे ।
दांत भींचे जगमोहन ने उसके गले की पकड़ ढीली की ।
गुलाब लाल ने जल्दी-जल्दी आठ-दस गहरी सांसे ली ।
"जवाब दे । देवराज चौहान के साथ 'बेबी' की मौत का भी इंतजाम कर दिया तूने ? " "इसमें म-मेरा कोई कसूर नहीं है । ह हम पर दालूबाबा का हुकुम चलता है । वही इस वक्त नगरी का बादशाह है। उसी के कहने पर ही --- 1"
महाजन के जूते की ठोकर, गुलाब लाल के गले पर पड़ी ।
गुलाबलाल के होठों से पीड़ा भरी चीख निकली ।
"बता देवराज चौहान को कैसे बचाया जा सकता है ? " जगमोहन की आंखों में पागलपन झलकने लगा था।
"मैं-मैं नहीं जानता। दालूबाबा ही जानता होगा कि देवा और मिन्नो को कैसे बचाया जा सकता है । "
"कहां है तेरा हरामजादा दालूबाबा ।" जगमोहन के होठों से गुर्राहट निकली।
"नी-नीले पहाड़ पर । दालूबाबा वहीं रहता है।"
"चल ।" जगमोहन ने उसका गला छोड़कर सिर के बाल पकड़े--- "हमें वहां...।"
"बाबा।" उसी वक्त वहां जोरदार चीख गूंजी।
सबकी निगाह दरवाजे की तरह उठी । जहां गुलाबलाल की वो बेटी खड़ी थी, जो रूस्तम राव से विवाह करने को कह रही थी ।
"बांके ।" जगमोहन चीखा--- "पकड़ ले इसे ।"
बांकेलाल राठौर जल्दी से दरवाजे की तरफ भागा ।
युवती पलटकर पूरी शक्ति से भाग खड़ी हुई ।
"ईब तंम का भागो हो गुलबदन । अंम थारे पीछो, थारे से ब्याह के वास्ते आ रिया हूं । ईक बारो म्हारो से ब्याहो करके तो देखो । अंम थारो को एक ही झटको में पचासों की मां बन दयो। म्हारे पासो तो बीकानेर के खासो वेधों की दवा हौवो । ईब तो रुक जा म्हारी जानो ।"
परंतु वो आगे भागती हुई गला फाड़कर चीखे जा रही थी ।
बांकेलाल राठौर ने उसे पकड़कर, उसके होठों पर अपनी हथेली टिका दी । परंतु तब तक उसकी चीखों ने महल में भगदड़ पैदा कर दी थी । आवाजें और भागने का शोर बांकेलाल राठौर के कानों में पड़ने लगा ।
बांकेलाल राठौर के दांत भिंच गए।
"थारी मां ने थारे को येई सिखाए की सुहागरातों के बख्त गला फाड़ के चीखो। सुहागरात तो नेई बनानो तो ब्याह का प्याज काटने वास्ते करियो ।" बांकेलाल राठौर गुर्रा उठा ।
युवती के होठों पर बांकेलाल राठौर की हथेली टिकी थी । वो अब चीख-बोल न पा रही थी । भय से उसकी खूबसूरत आंखें फटी जा रही थी ।
बांकेलाल राठौर की निगाह हर तरफ घूम रही थी । जिधर वे दोनों थे, वहां से महल की तीन दिशाओं में जाने के लिए तीन रास्ते थे और उसके देखते ही देखते तीनों रास्तों में दौड़ते हुए महल के पहरेदारों और अन्यों ने भीतर प्रवेश किया। उनके हाथ में खंजरतलवार और कटारे थी।
मिनट भर में ही बांकेलाल राठौर घिर चुका था ।
एक आदमी हाथ में लंबा सा खंजर थामे आगे बढ़ा और खूंखार स्वर में बोला।
"छोड़ दो इसे । "
"अंमने तो इसो को यूं ही पकड़ो हो । इसो से म्हारा ब्याह करने का इरादा न हौवे । तंम अपनी गोद में बिठाई । यो म्हं बाप की तो हौवे न ।" कहने के साथ ही बांकेलाल राठौर ने उसे छोड़ दिया । युवती गहरी-गहरी सांसे लेती थकी आवाज में कह उठी ।
"भीतर कमरे में इन मनुष्यों ने बाबा को पकड़ रखा है। जल्दी बचाओ उन्हें।"
******
हालात पलटा खा चुके थे ।
कमरा वहीं था । जगमोहन, महाजन, बांकेलाल राठौर और रुस्तम राव भी वहीं थे । परंतु अब वे कुर्सियों पर बंधे हुए थे । गुलाबलाल और डोरीलाल के अलावा छः पहरेदार भी मौजूद थे। जिन्होंने कमर पर हथियार लगा रखे थे ।
गुलाबलाल उसी कुर्सी पर बैठा था । उसका चेहरा सामान्य था ।
परंतु गले पर लाली नजर आ रही थी जहां जगमोहन ने अपना पंजा जमाया था । डोरीलाल, गुलाबलाल के पास ही खड़ा था । पेट का दर्द अब ठीक हो चुका था । लेकिन चेहरे पर पड़े घूंसे की वजह से वहां कुछ सूजन थी और वह रह-रहकर क्रोध भरी नजरों से रूस्तम राव को देखने लगता ।
गुलाब लाल ने अपने गले पर हाथ फेरा और जगमोहन से शांत स्वर में बोला ।
"तेरी सारी आदतें वही है जग्गू | देवा के खिलाफ सुनना नहीं और उसके लिए अपनी जान तक दांव पर लगा देना । बहुत खास याराना रहा तेरा पहले भी और अब भी।" "देवराज चौहान को कुछ हो गया तो मैं तुझे नहीं छोडूंगा।" जगमोहन कुर्सी पर बंधा गुर्रा उठा।
"अब तू मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता ।" गुलाबलाल मुस्कुरा उठा--- "दालूबाबा को संदेश भिजवा दिया है । उसके आदमी आकर तुम्हें, नील सिंह और भंवर सिंह को ले जाएंगे । अब दालूबाबा ही तुमसे पूछेगा कि कौन है वो गद्दार जो तुम लोगों को इस नगरी में लाया और त्रिवेणी को तो मैं पेशीराम के हवाले करूंगा, ताकि इससे अपने बेटे की मौत का बदला ले सके । पेशीराम को भी संदेश भिजवा दिया है । "
रूस्तम राव के होठों पर मुस्कान उभरी ।
तीनों खा जाने वाली निगाहों से गुलाबलाल को देखे जा रहे थे ।
"डोरीलाल।"
"जी मालिक ।"
"अभी पांच मनुष्य और हैं इस नगरी में, जो इनके ही साथी हैं । मैं उनसे भी मिलना चाहूंगा । उन पांचों के नाम इन्होंने लिए थे, याद है वे नाम ?" गुलाबलाल ने उसे देखा ।
"हां मालिक। पारसनाथ-कर्मपाल सिंह-बंगाली सोहनलाल और पाली ।"
"देखो ये चारों कहां है । अवश्य किसी ने इन्हें कैद करके अपनी सेवा में लगा रखा होगा । इन चारों को तलाश करो और पकड़कर, मेरे सामने पेश करो ।
"मैं अभी तलाश करवाता हूं मालिक ।" कहने के साथ ही डोरीलाल बाहर निकल गया ।
******
चार घंटे उन्हें बंधे-बंधे बीत गए ।
डोरीलाल तो जा चुका था । गुलाबलाल भी वहां से, महल के भीतर अपने परिवार के पास चला गया । परंतु आंखों में व्याकुलता और चेहरे पर परेशानी स्पष्ट देखी जा सकती थी । बीते जन्म के चेहरों को देखकर उसका मन अनजानी आशंका से भर उठा था ।
चार घंटे बाद गुलाबलाल को खबर मिली कि पेशीराम जी आए हैं।
"उन्हें उसी कमरे में ले जाओ, जहां हमने मनुष्यों को बांध रखा है ।" कहने के साथ ही गुलाबलाल वहां से बाहर निकलता चला गया ।
पहरेदार भी चला गया ।
गुलाबलाल ने कमरे में पहुंचकर चारों को देखा । पहरेदार सतर्क खड़े थे ।
"इस तरह हमें बांधकर क्यों रखा है।" महाजन बोला--- "हमारा जो करना है करो।"
"हो जाएगा।" गुलाबलाल मुस्कुराया--- "जल्दी भी क्या है ?"
"कम से कम मेरे हाथ तो खोल दो । चार घंटे हो गए, घूंट मारे ।" महाजन ने मुंह बिगाड़कर कहा ।
तभी आहट हुई । गुलाबलाल ने तुरंत सिर घुमाया । पेशीराम, पहरेदार के साथ भीतर प्रवेश कर गया ।
पेशीराम पर निगाह पड़ते ही चारों के चेहरों पर अजीब से भाव उभरे । वो और कोई नहीं फकीर बाबा ही था । चारों की निगाहें मिली । परंतु वो खामोश ही रहे ।
फकीर बाबा के शरीर पर सफेद धोती-कुर्ता मौजूद था । दाढ़ी और सिर के बाल कायदे से संवरे हुए थे । माथे पर लंबा तिलक लगा रखा था । गले में कई तरह के मनको की मालाएं पड़ी नजर आ रही थी। पांवों में किसी तरह की कोई चप्पल या जूता नहीं था ।
फकीर बाबा ने सब पर निगाह मारी फिर शांत लहजे में मुस्कुराकर गुलाबलाल से बोला । "पेशीराम, तुम्हारी सेवा में, तुम्हारे बुलावे पर पेश है गुलाबलाल।" "ओह पेशीराम । अब तुम वो नहीं हो । जो कभी हुआ करते थे। अब तो तुम पूजा-पाठ तिलस्मी विद्या और सिद्धि के दम पर मुझसे कहीं ऊंचा उठ चुके हो । अब तो गुरुवर भी तुम्हें मान-इज्जत देते हैं । "
"यह तो गुरुवर की कृपा है ।" पेशीराम के चेहरे पर मुस्कान और आवाज में मिठास थी ।
"जानते हो पेशीराम मैंने तुम्हें क्यों बुलावा भेजा ?"
"क्या कारण है ? "
गुलाबलाल ने मुस्कुराकर चारों की तरफ इशारा किया ।
"देखो । पहचानते हो या भूल गए ?"
पेशीराम यानी फकीर बाबा ने शांत भाव से चारों को देखा।
"लगता है नहीं पहचाना ?" गुलाबसिंह हौले से हंसा ।
"क्यों नहीं पहचाना ?" इन लोगों को तुम लोग तो भूल सकते हो, लेकिन मैं नहीं भूल सकता । ये जग्गू, नीलसिंह, त्रिवेणी और भंवर सिंह हैं ।" फकीर बाबा ने कहकर गुलाबलाल को देखा --- "तो इनका दोबारा जन्म हो गया । लेकिन लेकिन मुझे तो इनके शरीरों से मनुष्यों की महक आ रही है ।
"हां । जाहिर है ये हमारी नगरी के नहीं है । ये सब पृथ्वी से आए हैं । "
"पृथ्वी से इनका आगमन, हमारी नगरी में कैसे हो गया। ये संभव नहीं ।"
"तुम ठीक कहते हो पेशीराम । लेकिन तब ये बात संभव हो सकती है, जब नगरी में कोई गद्दार बन गया हो । इन्हें लाने वाला हममें से ही कोई है ।" गुलाबलाल के चेहरे पर सख्ती के भाव नजर आने लगे--- "वो जो कोई भी है, जल्दी ही दालूबाबा उसके बारे में जान जाएगा और बेहद कठोर से कठोर सजा कुछ गद्दार को दी जाएगी।"
"ऐसे गद्दार को सजा मिलनी ही चाहिए।" फकीर बाबा ने सहमति से सिर हिला दिया। "शायद तुम्हें मालूम नहीं पेशीराम कि देवा और मिन्नो भी पुनः जन्म लेकर यहां आए गए हैं।"
"वास्तव में, मेरे लिए ये खबर नई है। कहां है वे दोनों ?"
"तिलस्म में फंस चुके हैं । परंतु अभी तक जीवित है । लेकिन ज्यादा देर तक जिंदा नहीं रहेंगे । दालूबाबा को उनके बारे में जानकारी मिल गई है। उन्हें किसी खतरनाक तिलस्म में फंसा कर उनकी जान लेने का फैसला ले लिया गया है ।"
"गुलाबलाल।" फकीर बाबा ने शांत-गंभीर स्वर में कहा--- "ये बात मेरी समझ से बाहर है कि दालूबाबा उन्हें मौत के हवाले क्यों करना चाहता है । ये सब कुछ मिन्नो का है । वो आ गई है तो, दालूबाबा को चाहिए कि मिन्नो की अमानत, उसके हवाले कर दी जाए । "
"ये मेरा नहीं, दालूबाबा का फैसला है।"
गुलाबलाल पल भर के लिए सकपकाया। "तुमने ऐतराज़ तो उठाया ही होगा?"
"मेरे साथ सोमनाथ भी था । दालूबाबा के सामने मुंह खोलने या उसकी बात न मानने की हमारी हिम्मत कहां । दालूबाबा ने कहा और हमें मानना पड़ा ।" गुलाबलाल जल्दी से बोला ।
फकीर बाबा ने सिर हिलाया
"तुम दोनों को एतराज उठाना चाहिए था ।" फकीर बाबा ने कहा--- "तुम क्या समझते हो कि यह जानकर गुरुवर को अच्छा लगेगा कि दालूबाबा की नियत में खोट है ।"
गुलाबलाल कुछ न कहकर व्याकुलता के साथ हाथ हिला कर रह गया ।
"मैं इस बारे में कुछ नहीं जानता ।" गुलाबलाल ने पल्ला झाड़ने वाले ढंग में कहा--- "जो मेरी जानकारी में था वो तुम्हें बता दिया । अभी इसी तरह के पांच मनुष्य और भी हैं । जो मेरी निगाहों में नहीं आए । डोरीलाल उनकी तलाश में गया है।"
फकीर बाबा ने पुनः चारों पर निगाह मारी।
"तुमने इन्हें इस तरह क्यों बांध रखा है ?" फकीर बाबा ने पूछा ।
"पहले तो इन्हें इज्जत से बिठा रखा था लेकिन ये लोग मुझे मार देना चाहते थे। इसलिए इन पर काबू पाकर इन्हें बांधा गया । पहले की तरह ये सब खतरनाक हैं।" गुलाबलाल ने बताया ।
"मुझे बुलाने की वजह ?"
गुलाबलाल की निगाह त्रिवेणी पर जा टिकी ।
"त्रिवेणी ने तुम्हारे बेटे कालूराम की जान ली थी पेशीराम । अब मेरी कैद में है और इसे मैं तुम्हें सौंपना चाहता हूं ताकि, तुम अपने बेटे की मौत का बदला लेकर चैन पा सको।"
"मेहरबानी गुलाबलाल ।" फकीर बाबा मुस्कुराया--- "मैं भी कुछ ऐसा ही सोच रहा था। अपने बेटे की मौत को मैं आज तक नहीं भूला । कालूराम जैसा भी था, आखिर मेरा बेटा तो था ही । "
"इसे खोल दो।" गुलाबलाल ने रुस्तम राव की तरफ इशारा किया ।
एक पहरेदार रुस्तम राव की तरफ बढ़ गया ।
"जग्गू, नीलू सिंह, और भंवर सिंह का क्या करोगे ?"
"इन तीनों को दालूबाबा के पास भेजा जा रहा है। दालूबाबा को खबर भिजवा दी गई है । उसके आदमी कभी भी आ सकते हैं ।" गुलाबलाल मुस्कुराकर बोला--- "ये तीनों उस सरदार को जानते हैं, जो इन्हें पृथ्वी से हमारी नगरी में लेकर आया । दालूबाबा इनसे उसके बारे में पूछताछ करेगा। ये लोग जानते हुए भी मुझे उसका गद्दार का नाम नहीं बता रहे।"
फकीर बाबा मुस्कुराया ।
"कोई बात नहीं । दालूबाबा को इनका मुंह खुलवाने के तरीके आते हैं।" पहरेदार, रुस्तम राव के बंधन खोल चुका था ।
रुस्तम राव उठ खड़ा हुआ ।
तभी एक पहरेदार ने आकर खबर दी कि दालूबाबा के आदमी आए हैं।
"उन्हें यही ले आओ।"
गुलाबलाल का आदेश पाकर पहरेदार चले गए ।
"अब इन तीनों के जाने का ही वक्त आ गया है ।" गुलाबलाल हंसा ।
"पेशीराम को अब इजाजत दो गुलाबलाल । मैं त्रिवेदी को अपने साथ ले जा रहा हूं, ताकि अपने बेटे की मौत का बदला लेकर, जीवन चैन से बता सकूं । देवी के आदेश के मुताबिक में इसकी जान नहीं ले सकता, क्योंकि ये मनुष्य है । लेकिन इसे ऐसे खतरनाक तिलस्म में फंसाऊंगा कि, जिस तरह तड़पा-तड़पा कर इसने कालूराम को मारा था, उससे भी ज्यादा तड़प कर इसकी जान निकले।" कहने के साथ ही फकीर बाबा ने अपना हाथ त्रिवेणी की तरफ बढ़ाया--- "मेरा हाथ थाम लो।"
रुस्तम राव बिना कुछ कहे आगे बढ़ा और फकीर बाबा का हाथ थाम लिया ।
"फिर मुलाकात होगी गुलाबलाल । पेशीराम की पेशी समाप्त होने का वक्त आ गया है ।" गुलाबलाल ने मुस्कुराकर सिर हिलाया ।
अगले ही पल फकीर बाबा ने आंखें बंद की और होठों की होठों में बुदबुदाया। देखने वालों के मस्तिष्क को तीव्र झटका लगा दूसरे ही पल उसकी निगाहों के सामने से फ़कीर बाबा और रुस्तम राव गायब थे । जगमोहन-महाजन-बांकेलाल राठौर ने एक-दूसरे को देखा ।
उनके चेहरों के भाव देखकर गुलाबलाल हंसा ।
"देख क्या रहे हो । वो पेशीराम था । कई सिद्धियों का मालिक । तिलस्म में माहिर । पेशीराम की शक्तियों के बारे में सुनते-सुनते थक जाओगे। बहुत गुणी है वो ।"
तीनों खामोशी से गुलाबलाल को देखते रहे । परंतु उनके दिमाग तेजी से दौड़ रहे थे । यहां के हालातों को समझने की चेष्टा कर रहे थे । जानने की चेष्टा कर रहे थे कि अब क्या हो रहा है और पहले कभी क्या हुआ था । हर बीतते पल के साथ अजीब बातें जानने-सुनने को मिल रही थी। जो कभी उनसे वास्ता रखते होंगी । लेकिन आज वे हर बीती बात से अनजान थे ।
तभी पहरेदार दालूबाबा के आदमियों को लेकर कमरे में पहुंचा ।
वो चार थे ।
परंतु उनमें से एक दालूबाबा का बेहद खास आदमी था और खतरनाक था । नाम केसर सिंह परंतु बुलाने वाला अक्सर उसे केसरा कहकर ही पुकारता था
"आ केसरे ।" गुलाबलाल दांत फाड़ कर मुस्कुराया--- "मुझे नहीं मालूम था कि तू आने वाला है ।"
केसर सिंह ने कुछ न कहकर तीनों को घूरा और होंठ सिकोड़कर कह उठा।
"तो ये तीनों फिर जन्म लेकर लौट आए । खोलो इन्हें बहुत गलती कर दी, इन्होंने वापस आकर ।"
पहरेदार तीनों को खोलने में व्यस्त हो चुके थे ।
"इनसे मालूम करना किस गद्दार ने इन्हें हमारी नगरी का रास्ता दिखाया है ।" गुलाबलाल बोला।
"सब मालूम हो जाएगा। जो हम नहीं जानना चाहते, वो भी ये बता देंगे । केसर सिंह हंसा
तीनों के बंधन खुल गए ।
केसर सिंह के साथ आए आदमियों ने उन्हें पकड़ा और फिर केसर सिंह के साथ ही बाहर निकलते चले गए । कई पलों तक उनके जाने की आहट सुनाई देती रही ।
गुलाब लाल ने पह्ररदारों को जाने के लिए कहा, वे चले गए तो कुर्सी पर बैठकर गुलाब लाल गहरी सोच में डूब गया । वह कुछ बेचैन सा नजर आ रहा था ।
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