24 दिसम्बर: मंगलवार

मुबारक अली के सारे भांजों में सिर्फ अनीस था, एक्सरसाइज जिसका जुनून था। इसी वजह से वो सबसे पहले उठता था और एक घन्टे की वाक कर के जब लौटता था तब भी कोई कोई कजन ही जागा होता था।
सुबह के पांच बजे थे जब हमेशा की तरह ट्रैक सूट पहने उसने कोठी से बाहर कदम रखा। वो बरामदे के सिरे पर पहुंचा तो ठिठका।
आगे यार्ड में कुछ पड़ा था।
उसने आंखें फाड़-फाड़ कर आगे देखा लेकिन अन्धेरे में ठीक से कुछ दिखाई न दिया। वो घूम कर स्विच बोर्ड पर पहुंचा। उसने बरामदे की बत्ती जलाई और वापिस यार्ड में झांका।
जो उसे दिखाई दिया उसने उसके प्राण कम्पा दिये।
उसने जल्दी से बिजली का स्विच ऑफ किया और कोठी में दाखिल हुआ।
‘‘मामू! मामू!’’ – बैडरूम में जाकर वो मुबारक अली को झिंझोड़ता बोला – ‘‘उठो। उठो!’’
‘‘अरे, क्या आफ़त आ गयी, कम्बख्त!’’ – मुबारक अली सोता-जागता भुनभुनाया।
‘‘आफत ही आ गयी, मामू। सामने यार्ड में लाश पड़ी है।’’
‘‘क्या!’’ – मुबारक अली यूं उठ कर बैठा जैसे बैड में कांटे निकल आयें हो। – क्या बकता है?’’
‘‘बाहर लाश पड़ी है।’’
‘‘ठीक से देखा?’’
‘‘हां।’’
‘‘शक्ल देखी?’’
‘‘हां।’’
‘‘पहचान में आयी!’’
‘‘हां।’’
‘‘कौन?’’
‘‘अल्तमश।’’
‘‘अल्लाह! रहम! उठा सब को।’’
चुटकियों में जाग हो गयी।
सब बाहर निकले।
इस बार कोई बत्ती न जलाई गयी। हाशमी ने मोबाइल की टार्च जलाकर लाश का मुआयना किया।
‘‘वही है।’’ – फिर दबे स्वर में बोला – ‘‘बुरी तरह से धुना गया है। पसलियां टूटी हुई हैं, बांयी बाह की हड्डी टूटी हुई है। सारे जिस्म पर बेतहाशा मार के लाल-नीले-काले निशान है। कोई एक शख़्स इतना क़हर नहीं ढ़ा सकता। कई पिले होंगे, मामू?’’
‘‘वजह?’’ – मुबारक अली सस्पेंस में बोला।
‘‘वजह समझना क्या बहुत मुश्किल है?’’
‘‘जानकारी . . . जानकारी निकलवाने का था?’’
‘‘हां।’’
‘‘सरदार की बावत?’’
‘‘और क्या!’’
‘‘न निकलवा पाये!’’
‘‘हां। साफ दिख रहा है कि अल्तमश ने जुबान न खोली इसलिये जान से गया।’’
‘‘अल्लाह! इतना जिगरा! इतनी वफादारी!’’
‘‘चैलेंज के तौर पर दुश्मन रात को किसी घड़ी लाश यहां फेंक गये!’’
‘‘अल्लाह!’’
‘‘हम अभी छः नम्बर में डाल के आते हैं।’’ – अली गुस्से से बोला।
‘‘हां।’’ – वली ने अपने जुड़वें के इरादे की पुरजोर तसदीक की।
‘‘नालायक! नामाकूल!’’ – मुबारक अली फुंककारा – ‘‘अरे, नामुरादो, कुत्ता काट खाये तो पलट के कुत्ते को काट खाते हैं?’’
जुड़वें तत्काल ख़ामोश हुए।
‘‘खता माफ, मामू।’’ – फिर अली बोला।
‘‘कुछ तो करना होगा!’’ – हाशमी दबे स्वर में बोला।
‘‘अभी उजाला होने में सवा घन्टा बाकी है।’’ – अहसान बोला – ‘‘चुपचाप दूर कहीं फेंक आते हैं।’’
‘‘नहीं!’’ – मुबारक अली ने तीव्र विरोध किया।
‘‘मामू’’ – फारूख बोला – ‘‘वर्ना लाश की यहां मौजूदगी की जवाबदारी हम पर आयद होगी।’’
‘‘मुसीबत खड़ी हो जायेगी सब के लिये।’’ – इमरोज बोला।
‘‘नहीं!’’ – मुबारक अली जज्बाती लहजे से बोला – ‘‘नहीं! नहीं! अरे, कम्बख़्तमारो, ये हमारी तरफ था। इसने हमारी ख़ातिर जान दे दी। शहीद हो गया, जुबान न खोली। अल्लाह जाने कितना कहर इस पर नाजिल हुआ लेकिन इसने वफा की लाज रखी। जान के दो, ईमान न बेचा। अब तुम इसकी। मिट्टी ख़राब करोगे? इसे इज्जत से सुपर्देख़ाक होने से महरूम रखोगे? करो ऐसा। अल्लाह तुम्हें कभी माफ नहीं करेगा।’’
ख़ामोशी छा गयी।
‘‘हम शर्मिन्दा हैं, मामू।’’ – अली बोला – ‘‘हालात की नजाकत में हमें इतनी दूर की न सूझी। अब तुम्हीं बताओ, क्या करें?’’
‘‘हम बेगुनाह हैं।’’ – मुबारक अली बोला – ‘‘बेगुनाहों का अल्लाह वाली है। पुलिस को ख़बर करो। जो होगा, देखा जायेगा।’’
पुलिस आयी।
सबसे पहले उन्होंने लाश का मुआयना किया, उसकी जेबें टटोलीं, जूते उतार के देखे, बालों में उंगलियां फिराईं और विभिन्न कोणों से उसकी तसवीरें खींची गयीं। फिर लाश को उठवाने और उसे पोस्टमार्टम के लिये भिजवाने सम्बन्धी कार्यवाही की गयी।
‘‘तुम’’ – आखिर एसएचओ संजीव तोमर ने मुबारक अली से सवाल किया – ‘‘मृतक को जानते हो? पहचानते हो?’’
‘‘भांजों को पूरा यकीन था कि मामू का जवाब इंकार में होगा लेकिन मुबारक अली चाह कर भी ऐसा न कर सका। करता तो लाश लावारिस करार दी जाती।
‘‘हां।’’ – वो भर्राये कण्ठ से बोला – ‘‘अल्तमश नाम है। मेरा वाकिफ था।’’
‘‘हिजड़ा था।’’
‘‘आदमजात था।’’
‘‘एक हिजड़ा तुम्हारा वाकिफ था!’’
‘‘हिजड़ा होना उसकी बद्नसीबी थी। वो वैसा था जैसा आसमानी बाप ने उसे बनाया था। बद्नसीब से हमदर्दी की जाता है, उसकी बद्नसीबी लानत की तरह उसके मुंह पर नहीं मारी जाती।’’
‘‘यहां अक्सर आता था?’’
‘‘नहीं। कुछ अरसे से वो मेरे ताल्लुक में नहीं था।’’
‘‘क्या करता था?’’
‘‘वही, जो किन्नर करते हैं।’’
‘‘‘क्या?’’
‘‘गाता बजाता था। किसी के औलाद हो, किसी की शादी हो तो उनकी खुशी में शरीक होता था।’’
‘‘और जनाना लिबास में चौराहों पर कार वालों से उगाही करता था।’’
‘‘वो भी।’’
‘‘जनाना लिबास में और भी बहुत कुछ करता था।’’
‘‘और क्या?’’
‘‘तुम्हें नहीं मालूम?’’
‘‘नहीं, नहीं, मालूम।’’
‘‘नौजवानों का अदद उड़ा देता था। जड़ तक खतना कर देता था।’’
‘‘मुझे इस बाबत कोई जानकारी नहीं।’’
‘‘इसे पीट-पीट का जान से मारा गया है। लिहाजा कत्ल का केस है। किसने किया?’’
‘‘हमें नहीं मालूम।’’
‘‘आप लोगों में से किसी ने नहीं किया?’’
‘‘नहीं।’’
‘‘लाश मुझे यहां पड़ी मिली थी।’’ – अनीस बोला – ‘‘सुबह पांच बजे। तब कि मैं वॉक पर जाने के लिये निकला था।’’
‘‘हूं। सब को थाने चलना होगा।’’
‘‘किसलिये?’’
‘‘बयान दर्ज कराने के लिये।’’
अनीस ने मामू की तरफ देखा।
‘‘हमें कोई ऐतराज नहीं।’’ – मुबारक अली बोला।
‘‘अभी।’’
‘‘ठीक है। तैयारी के लिये दस मिनट दीजिये।’’
एसएचओ ने सहमति में सिर हिलाया।
सब भीतर चले गये।
‘‘क्या ख़याल है?’’ – पीछे एसएचओ अपने इमीजियेट सबार्डीनेट एएसएचओ अजीत लूथरा से बोला।
‘‘ये इन लोगों का काम नहीं।’’ – लूथरा बोला।
‘‘क्यों?’’
‘‘लाश अकड़ी हुई है-राइगोर मोर्टिस सैट हो चुकी है – जिससे साबित हुआ है कि मौत घन्टों पहले हुई थी। कत्ल कर के कोई लाश घन्टों घर में नहीं रखे रहता। फिर ये न भूलिये कि इस बाबत पुलिस को ख़बर इन्हीं लोगों ने की।’’
‘‘हूं।’’
‘‘जनाब, ऐसा अहमक कोई नहीं होता कि ये काम अपने ही घर में करे।’’
‘‘इसे पीट-पीट कर मारा गया है और पीटा भी ऐसे गया है जैसे ऊखल में डाल कर मूसल से ठोका गया हो। ऐसी धुनाई कोई एक जना नहीं कर सकता। ये साफ कई जनों का काम जान पड़ता है।’’
‘‘ये हैं कई जने!’’
‘‘लेकिन अपने ही घर में! ये कई हैं तो इसे कहीं भी ले जा के ठोक सकते थे। घर में ये काम करना क्यों जरूरी था?’’
‘‘पहले भी बोला तुमने।’’
‘‘फिर ऐसी भीषण धुनाई किसी से कुछ कबुलवाने के लिये की जाती है। इन्होंने क्या कबूलवाना था एक मामूली हिजड़े से?’’
‘‘लूथरा, तुम फिर हिमायती जुबान बोल रहे हो।’’
‘‘किसके लिये हिमायती?’’
‘‘मालूम है तुम्हे।’’
‘‘तोमर साहब, आप कुछ कहें, मेरी सुनें या न सुनें, हालात साफ जाहिर कर रहे हैं कि मरने वाले के साथ जो बीती, वो कहीं और बीती, वो मर गया तो लाश को ला कर यहां फेंक दिया गया।’’
‘‘किसने किया ऐसा? और क्यों किया?’’
‘‘तफ्तीश करेंगे न!’’
‘‘तुमने मरने वाले को मामूली हिजड़ा कहा। वो हिजड़ा था लेकिन मामूली नहीं था। मुझे शक ही नहीं, यकीन है कि कुलीन घरों के चार नौजवानों की जिन्दगी तबाह करने के लिये यही जिम्मेदार था।’’
‘‘सर, गुस्ताखी माफ, ये न शक है, न यकीन है, दून की है।’’
‘‘वो क्या होती है?’’
‘‘तुक्का है। इट इज लाइक अज्यूमिंग दि फैक्ट्स नॉट इन इवीडेंस।’’
तभी मुदागार्डी वहां पहुंच गयी।
‘‘मैं थाने जाता हूं।’’ – एसएचओ बोला – यहां सब तुम हैंडल करना। और इन लोगों को बोलना ख़ुद थाने पहुंचें।’’
‘‘यस, सर।’’
थाने में सब एसएचओ के आफिस में पेश हुए।
उन्हें देख कर हैरानी हुई कि वहां उन का पड़ोसी चिन्तामणि त्रिपाठी भी मौजूद था।
एसएचओ के मुअज्जिज मेहमान की तरह मौजूद था।
एसएचओ ने कुछ सटीक सवाल – जिन में नया कुछ नहीं था – उन से पूछ कर जैसे तैसे खानापूरी की। फिर उनके तहरीरी बयान पर कुनबे के मुखिया के तौर पर मुबारक अली के साइन कराये।
उस दौरान चिन्तामणि गौर से एक-एक को बार-बार देखता रहा।
फिर उसने झुक कर एसएचओ के कान में कुछ कहा।
एसएचओ ने सहमति में सिर हिलाया, फिर सामने मौजूद हजूम से मुख़ातिब हुआ – ‘‘एक कम है।’’
‘‘जी!’’ – मुबारक अली हड़बड़ाया – ‘‘क्या फरमाया?’’
‘‘तुम अपने चौदह भांजे बताते हो – मेरी पहले इस बात की तरफ तवज्जो नहीं गयी थी – ‘‘यहां तेरह हैं। चौदहवां कहां है?’’
‘‘वो रात को घर नहीं था।’’
‘‘मैंने ये नहीं पूछा वो कहां नहीं था, मैंने पूछा है वो कहां है?’’
‘‘वो कल बीवी से मिलने गया था, लौट के नहीं आया।’’
‘‘शादीशुदा है?’’
‘‘जी हां। एक बच्चा भी है।’’
‘‘कहां गया था?’’
‘‘तिराहा बैरम खान।’’
‘‘नाम?’’
‘‘अशरफ अली।’’
‘‘कान्टैक्ट मुमिकन है?’’
‘‘मुमकिन है।’’
‘‘उसे बुलाओ। एक घन्टे में वो यहां मेरे सामने खड़ा होना चाहिये।’’
‘‘जनाब, बहुत फासला है। फिर हो सकता है वो वहां न हो।’’
चिन्तामणि ने फिर एसएचओ की तरफ झुक कर उसके कान में कुछ खुसर पुसर की।
एसएचओ का सिर फिर सहमति में हिला।
‘‘मुझे लगता है’’ – वो सख़्ती से मुबारक अली को घूरता बोला – ‘‘तुम लोगों ने उसे जानबूझ कर कहीं खिसकाया है।’’
‘‘किस वास्ते?’’ – मुबारक अली बोला।
‘‘तुम बताओ!’’
‘‘हम क्यों करेंगे ऐसा?’’ – हाशमी बोला – ‘‘आप इन साहब की’’ – उसने चिन्तामणि की तरफ इशारा किया – ‘‘शह पर ये बेजा इलजाम हम पर लगा रहे हैं . . .’’
‘‘मैंने बोला तुम्हें बोलने के लिये?’’ – एसएचओ कड़क कर बोला।
हाशमी हड़बड़ाया।
‘‘स्पीक वैन यू आर स्पोकन टु। अन्डरस्टैंड?’’
हाशमी ने बेचैनी से पहलू बदला।
‘‘आई आस्क्ड यू ए क्वेश्चन, डैम यू!’’
‘‘यस’’ – हाशमी थूक निगलता बोला – ‘‘सर।’’
‘‘दो घन्टे में वो भांजा, जिसका नाम अशरफ अली बताया, यहां हो। न हुआ तो सबको अन्दर कर दूंगा।’’
‘‘किस जुर्म में?’’ – हाशमी हैरानी से बोला।
‘‘तुम्हें नहीं मालूम! सालो, घर में आदमी मार दिया!’’
‘‘हमने?’’
‘‘तफ्तीश हो रही है न! तफ्तीश में अडंगा लगाओगे तो ये हरकत तुम्हारे खिलाफ जायेगी।’’
‘‘हम क्या अडंगा लगा रहे हैं?’’
‘‘नहीं लगा रहे हो तो हुक्म की तामील हो।’’
‘‘होगी, जनाब।’’
‘‘फिलहाल जा सकते हो।’’
सब वहां से रुख़सत हो गये।
पीछे एसएचओ और चिन्तामणि रह गये।
‘‘कमाल है!’’ – एसएचओ बोला – ‘‘आपके बताने से पहले मेरी तवज्जो में ही नहीं आया था कि एक भांजा कम था, मेरे सामने चौदह की जगह तेरह खड़े थे।’’
‘‘मेरा बेटा अभी भी मोबाइल नहीं है।’’ – चिन्तामणि चिन्तित भाव से बोला – ‘‘वर्ना वो मेरे साथ होता और यहीं शिनाख़्त हो जाती कि वारदात की रात को सुन्दर नगर की वीरान कोठी में उसने इन भांजों में से एक को वहां देखा था। अरमान यहां आ सकता होता तो अभी फैसला हो जाता कि वो भांजा कौन-सा था।’’
‘‘अरे, त्रिपाठी जी, बोलना था ऐसा! अरमान इन तक नहीं आ सकता था तो मैं इनको अरमान के पास पहुंचाता। आपके करीब ही तो रहते हैं ये लोग!’’
‘‘अरमान यहां नहीं है। इसीलिये यहां नहीं है क्योंकि ये लोग करीब रहते हैं।’’
‘‘कहां है?’’
‘‘मेरे भाई के घर। राउज एवेन्यू। जहां जोगमणि का बतौर विधायक सरकारी आवास है।’’
‘‘ओह! आपने उस पर क्यों शक जाहिर किया जो ग़ैरहाजिर है?’’
‘‘इसी वजह से कि वो ग़ैरहाजिर है। ये लोग उसे शिनाख़्त से बचाना चाहते हैं इसलिये खिसका दिया। उसका यहां न होना ही मेरे इस शुबह को पुख़्ता करता है कि सुन्दर नगर वाली कोठी में अरमान ने उसी को देखा था।’’
‘‘हूं।’’
‘‘अगर इन लोगों ने उसे इरादतन खिसकाया है तो मुझे नहीं लगता कि दो घन्टे में वो यहां होगा।’’
‘‘नहीं होगा तो याद करेंगे सारे के सारे कि कोई मिला था। सालों को जेल में ऐसा सड़ाऊंगा कि त्रहि-त्रहि कर उठेंगे। ऐसी दफायें लगवाऊंगा कि जमानत नहीं होगी। हेरोइन की बरामदी दिखवा दूंगा। पाकिस्तानी एजेन्ट साबित कर दूंगा। देखना आप।’’
‘‘वो बड़ी नेम ड्रापिंग करते हैं। इधर के संसद सदस्य शाहआजम खान को अपना करीबी बताते हैं। माइनारिटी कमीशन के मौजूदा चेयरमैन के मुसलमान होने का हवाला देते हैं। बड़ा दावा ये करते हैं कि उनकी एक आवाज पर शाही इमाम दौड़ा आ सकता है।’’
‘‘आप फिक्र न करो, त्रिपाठी जी, मैं सब को देख लूंगा। ऐसा केस बनाऊंगा कि कोई हिमायती कुछ नहीं कर सकेगा।’’
‘‘पक्की बात?’’
‘‘हां। बस आप विधायक जी को बोल दीजियेगा कि नाचीज पर कृपादृष्टि रखें।’’
‘‘बोलूंगा।’’
दो घन्टे से पहले अशरफ मॉडल टाउन थाने पहुंचा।
मुबारक अली और सारे कजन उसके साथ आये लेकिन किसी को थाना परिसर में दाखिल न होने दिया गया। केवल अशरफ भीतर गया, बाकी सब बाहर सड़क पर ही रहे।
अशरफ को एसएचओ के हुजूर में पेश किया गया।
चिन्तामणि तब भी वहां मौजूद था और एसएचओ को पहले ही बोल चुका था कि वो क्या चाहता था।
एसएचओ ने अशरफ से कुछ सटीक सवाल पूछे जिनके जवाब सुनने की भी उसने जहमत न की। फिर उसे ख़बर की कि उसने कहीं उसके साथ चलना था। अशरफ ने कई बार पूछा कहां चलना था, हर बार उसको एक ही जवाब मिला कि मालूम पड़ जायेगा।
पिछवाड़े के रास्ते से चिन्तामणि की शोफरड्रिवन होंडा अकॉर्ड पर वो वहां से रुख़सत हुए।
मामू और बाकी भांजे फ्रंट में इन्तजार ही करते रह गये।
वे राउज एवेन्यू पहुंचे।
अरमान एक बैडरूम में तकियों के सहारे लेटा टीवी देख रहा था। मोटे तौर पर वो ठीक था लेकिन उसका चेहरा पीला पड़ा साफ दिखाई देता था।
अशरफ को उसके रूबरू किया किया।
‘‘यही है।’’ – उस पर निगाह पड़ने की अरमान उत्तेजित भाव से बोला – ‘‘यही है। शनिवार रात ये वहां था। इसी हरामखोर ने मेरे को अपनी
गिरफ़्त में जकड़ा था ताकि वो हिजड़ा उस्तरे से . . . अपना काम कर
पाता।’’
‘‘ठीक पहचाना।’’ – एसएचओ बोला।
‘‘उतना ठीक पहचाना जितना मैं ख़ुद को पहचानता हूं।’’
‘‘तू क्या कहता है?’’ – एसएचओ अशरफ से मुखातिब हुआ।
‘‘मैं क्या कहूं!’’ अशरफ विनीत भाव से बोला – ‘‘मेरे पल्ले कुछ पड़े तो कुछ कहूं न!’’
‘‘यूं बबुआ बनके दिखाने से काम नहीं चलेगा, लड़के। शनिवार रात को सुन्दर नगर की एक उजाड़ इमारत में इसके साथ बड़ा दुराचार हुआ था जिसमें तू शरीक था। इसने अभी तेरे को साफ पहचाना है।’’
‘‘इनको मुग़ालता लगा है।’’
‘‘बिल्कुल नहीं।’’ – अरमान पुरजोर लहजे से बोला – ‘‘यही था।’’
‘‘जनाब’’ – अशरफ बोला – ‘‘जो नहीं हो सकता, वो आप के कहने से कैसे हो जायेगा?’’
‘‘शट अप, यू डर्टी डॉग!’’
‘‘जानता है ये कौन है?’’ – एसएचओ ने पूछा।
‘‘हां। ये इनके’’ – अशरफ ने त्रिपाठी की तरफ इशारा किया – ‘‘फरजन्द हैं। ये लोग मॉडल टाउन में कोठी नम्बर डी-सिक्स में रहते हैं।’’
‘‘शनिवार रात दस बजे कहां था?’’
‘‘घर पर था।’’
‘‘मॉडल टाउन? या तिराहा बैरम खान?’’
‘‘मॉडल टाउन।’’
‘‘साबित कर सकता है?’’
‘‘क्यों नहीं! तब मामू घर पर थे। कई कंजुस भी घर पर थे।’’
‘‘वो तेरे सगेवाले हैं। तेरे हक में कुछ भी बोल देंगे। किसी और तरीके से साबित कर सकता है?’’
‘‘और तरीके से तो . . . नहीं कर सकता।’’
‘‘फिर अरमान ने तेरी सही शिनाख्त की है।’’
‘‘जनाब, मैं फिर अर्ज करता हूं मेरी बाबत इन्हें मुग़ालता है।’’
‘‘तू समझता है एक ही राग अलापना, मुग़ालता-मुग़ालता भजता तू पुलिस को गुमराह कर सकता है?’’
‘‘मेरी ऐसी कोई कोशिश नहीं है। मैं वही अर्ज कर रहा हूं जो सच है।’’
‘‘ये ऐसे नहीं मानेगा।’’ – एसएचओ चिन्तामणि की ओर देखता बोला – ‘‘मैं इसे थाने ले के जाता हूं।’’
‘‘अजी जरा मेरी सुनिये।’’ – चिन्तामणि व्यग्र भाव से बोला।
‘‘फरमाइये।’’
‘‘बाहर चलिये।’’
दोनों ने बाहर ड्राईंगरूम में कदम रखा।
‘‘इसे यहीं छोड़ो।’’ – चिन्तामणि बोला – ‘‘और अपनी कीमत बोलो।’’
‘‘क्या इरादा है?’’ – एसएचओ माथे पर बल डालता बोला।
‘‘कुछ मत पूछो। ख़ामोश रहने की भी कीमत बोलो।’’
‘‘हूं।’’ – एसएचओ ने लम्बी हुंकार भरी, कुछ क्षण ख़ामोश रहा, फिर निर्णायक भाव से बोला – ‘‘कोई कीमत नहीं। विधायक जी को बोलना किसी तरह मेरी ट्रांसफर पहाड़गंज या रोशनआरा रोड या कमला मार्केट थाने करवा दें, सब वसूली अपने आप हो जायेगी।’’
‘‘मैं बोलूंगा जोग से।’’
‘‘अभी मेरे सामने बोलते तो . . .’’
‘‘वो घर में नहीं है।’’
‘‘ओह!’’
‘‘इसके सगे वाले थाने पर जमा थे! उनको क्या जवाब दोगे?’’
‘‘क्या जवाब देना है?’’ – एसएचओ के लहजे में लापरवाही का पुट आया – ‘‘हमने तो पूछताछ करके छोड़ दिया था। क्या पता कहां गया!’’
‘‘वो थाने के ऐन सामने जमा थे।’’
‘‘वो पिछवाड़े से गया। आप फिक्र न करो। इन बातों की जवाबदेही मेरे पर है। सवाल होगा तो मैं दूंगा जवाब। आप ये बताओ इसे हैंडल कैसे करोगे?’’
‘‘और आदमी बुलाने पडेंगे। उन के आने तक रुक जाओ तो मेहरबानी होगी।’’
‘‘रुकता हूं।’’
‘‘शुक्रिया।’’
तीन बज गये।
भांजों के बीच सस्पेंस और बेचैनी का आलम था।
थोड़ी देर पहले हाशमी वहां से चला गया था और दो ढ़ाई घन्टे में लौट आने वाला था। जाने की जो वजह उसने बताई थी, मामू उससे बेख़बर नहीं था।
‘‘मामू!’’ – अली बेचैनी से बोला – ‘‘क्या हो रहा है?’’
सबसे ज्यादा फिक्रमन्द मुबारक अली ने अनभिज्ञता से कन्धे उचकाये।
‘‘मामूली पूछताछ में इतना टाइम लगता है!’’
‘‘लगता है तो’’ – वली बोला – ‘‘हमें भी तो ख़बर की जानी चाहिये थी! सब को हमारी यहां मौजूदगी की ख़बर है।’’
‘‘मैं पता करता हूं।’’ – मुबारक अली निर्णायक भाव से बोला – ‘‘फारुख, साथ चल मेरे।’’
मुबारक अली की निगाह में हाशमी के बाद दानाई में फारुख ही सबसे आगे था।
दोनों थाने की इमारत में दाखिल हुए और आगे ड्यूटी आफिसर के डैस्क पर पहुंचे।
‘‘जनाब’’ – मुबारक अली के इशारे पर फारुख बोला – ‘‘हमारा आदमी कब से अन्दर है, उसकी हमें ख़बर नहीं लग रही!’’
‘‘कौन आदमी?’’ – ड्यूटी आफिसर एसआई रुखाई से बोला।
‘‘अशरफ अली।’’
‘‘क्यों आया इधर?’’
‘‘एसएचओ साहब का उसको बुलावा था।’’
‘‘साहब थाने में नहीं हैं। लौटेंगे तो पता करेंगे।’’
‘‘हमारा आदमी?’’
‘‘साहब ही बोलेंगे उस की बाबत।’’
‘‘कब लौटेंगे?’’
‘‘पता नहीं।’’
‘‘हम क्या करें?’’
‘‘साहब’’ – मुबारक अली ने फरियाद की – ‘‘मदद करो हमारी। अहसान होगा।’’
‘‘शाम को आना। या कल सुबह आना। अब हिलो। यहां और भी काम हैं।’’
मजबूरन वो वहां से हटे।
तभी गलियारे में उन्हें अजीत लूथरा दिखाई दिया।
अजीत लूथरा ने भी उन्हें देखा, वो लम्बे डग भरता उनके करीब पहुंचा।
‘‘क्या बात है?’’ – उसने मुबारक अली से पूछा।
‘‘मेरा भांजा अशरफ’’ – मुबारक अली बोला – ‘‘अशरफ अली दोपहर से पहले से यहां हैं। एसएचओ साहब ने तलब किया था, इसलिये यहां है। साढ़े तीन घन्टे से वो यहां है। उसका कुछ पता ही नहीं लग रहा। अगर वो गिरफ्तार है तो हमें यही बताया जाये कि गिरफ्तार है।’’
‘‘कोई कुछ बताता ही नहीं।’’ – फारुख बोला।
‘‘हूं।’’ – लूथरा ने संजीदा हुकार भरी – ‘‘बाहर चलो, मैं पता करता हूं।’’
दोनों वापिस बाहर सड़क पर पहुंच गये।
दस मिनट बाद लूथरा उनके करीब पहुंचा।
‘‘वो थाने में नहीं है।’’ – और बोला।
‘‘थाने में नहीं है!’’ – मुबारक अली हैरानी से बोला – ‘‘कहां गया?’’
‘‘कुछ पता नहीं चल रहा लेकिन ये पक्का जानो कि वो थाने में नहीं है।’’
‘‘वो बड़े दारोगा साहब की हाजिरी में था। उनको मालूम होगा!’’
‘‘एसएचओ साहब थाने में नहीं हैं।’’
‘‘जनाब’’ – फारुख बोला – ‘‘यहां से रुख़सती का तो यही एक रास्ता है, अशरफ यहां से रुख़्सत कर दिया गया तो हमें जाता दिखाई क्यों न दिया?’’
‘‘पिछवाड़े से भी रास्ता है। उधर से गया होगा!’’
‘‘काहे को? उसे मालूम था हम यहां हैं तो वो काहे को पिछवाड़े से गया?’’
‘‘अब मैं क्या बताऊं?’’
‘‘हम क्या करें?’’ – मुबारक अली बोला।
‘‘घर जाओ। एसएचओ साहब आयेंगे तो मैं इस बाबत उनसे बात करूंगा। कुछ ख़बर लगेगी तो आगे तुम्हें ख़बर करूंगा। अभी जाओ। यहां रुकने का कोई फायदा नहीं।’’
सबने एक दूसरे की सूरत देखी।
‘‘हम यही रुकेंगे।’’ – मुबारक अली बोला।
‘‘हां।’’ – फारुख बोला – ‘‘शाम तक हमें अरशद की बाबत कोई तसल्लीबख़्श जवाब न मिला तो हम डिस्ट्रिक्ट के डीसीपी साहब के पास जायेंगे।’’
‘‘खड़े पैर उनसे मुलाकात मुमकिन नहीं होगी।’’
‘‘तो हम शाहआजम ख़ान साहब से कान्टैक्ट करेंगे जो इधर की सीट से एमपी है। ख़ान साहब डीसीपी साहब से हमारी मुलाकात कराने में मदद करेंगे।’’
‘‘ठीक है। लेकिन शाम होने तक तो सब्र करोगे न!’’
‘‘हां।’’
‘‘करो। यहां टिकना है तो यहां टिको। उम्मीद है पहले ही कुछ हो जायेगा।’’
‘‘आप पता नहीं कर सकते एसएचओ साहब कहां हैं?’’
‘‘कोशिश की थी। वायरलैस से कान्टैक्ट नहीं हो रहा और मोबाइल पर वो काल रिसीव नहीं कर रहे।’’
‘‘ओह!’’
‘‘देखना, शाम से पहले ही कुछ होगा।’’
लूथरा चला गया।
शाम से पहले ही कुछ हुआ।
पांच बजे मुबारक अली का मोबाइल बजा।
अशरफ की काल थी।
अल्लाह! शुकर!
उसने जल्दी से काल रिसीव की।
‘‘मामू, मैं अशरफ बोल रहा हूं।’’ – आवाज आयी।
‘‘अरे, कहां है तू! हम दोपहर से . . .’’
‘‘दुश्मनों के कब्जे में हूं। हाशमी भी।’’
मुबारक अली सन्नाटे में आ गया।
कहां था शुकर!
‘‘इन लोगों ने जबरन मेरे से काल लगवाई है। ये हमें मोहरा बना कर तुम्हारे से सोहल चाहते हैं’’ – एकाएक अशरफ का लहजा बदला – ‘‘लेकिन, मामू, तुम इनकी हरगिज न सुनना। हमारी बिल्कुल परवाह न करना। हम शहीद होते हैं तो होने देना लेकिन सोहल की बाबत इनकी पेश न चलने देना। हम मरें चाहे जियें, इन की न . . .’’
‘‘ठहर जा, हरामी!’’ – पीछे कहीं से आवाज आई।
फिर एक चीख!
फिर धड़ाम से किसी भारी चीज के गिरने की आवाज।
फिर फोन से नयी आवाज आयी – ‘‘मुबारक अली! जिसे हर कोई बड़े मियां बोलता है?’’
‘‘हां।’’ – मुबारक अली बोला – ‘‘तू कौन?’’
‘‘मेरे को लोग बिग बॉस फेरा बोलते हैं। मैं मुम्बई से हूं। इधर का सब भीडूं लोग मेरे अन्डर में काम करता है।’’
‘‘तो?’’
‘‘तेरे दो भांजे हमारे कब्जे में हैं। सोहल को ले के यहां आ जा और इन को ले जा। ईजी!’’
‘‘मामू!’’ – पीछे कहीं से हाशमी की आवाज उठी – ‘‘मत आना! हम कुर्बानी के लिये तैयार हैं . . .’’
‘‘अबे, ठोक इसे! फिर बोले तो मुंह में जूता देना।’’
कुछ क्षण खामोशी रही।
‘‘क्या?’’ – फिर फेरा की आवाज आयी।
‘‘ ‘यहां आ जा’ बोला।’’ – मुबारक अली शान्ति से बोला – ‘‘यहां कहां है?’’
‘‘हौज ख़ास। गार्मेंट फैक्ट्री। नीना इन्टरनेशनल। सोहल को मालूम। जो कैसीनो उसने उड़ाया, उसके बाजू में।’’
‘‘कब आना है?’’
‘‘एक घन्टे में।’’
‘‘नहीं हो सकता। मैं इधर मॉडल टाउन में है। मॉडल टाउन से हौज ख़ास तीस किलोमीटर के करीब का फासला है। एक घन्टे से ऊपर तो रोड पर ही लग जायेगा। फिर सोहल इस वक्त पता नहीं कहां होगा! जहां होगा, वहां उससे वो क्या कहते हैं अंग्रेजी में, बात हो पायेगी या नहीं! फिर वो मॉडल टाउन से भी बड़े फासले पर हो सकता है।’’
‘‘क्या मांगता है तेरे को?’’
‘‘थोड़ा टेम में बोलता है न!’’
‘‘ठीक है, दस मिनट बाद मैं फिर कॉल करता है इसी मोबाइल से। पण याद रखना, कोई श्यानपन्ती की कोशिश की तो तुम्हारी कोशिश से जो होगा बाद में होगा, पहले दोनों भांजे खल्लास होंगे।’’
‘‘मैं फोन करता हूं। शायद दस मिनट से पहले करूं।’’
उसने फोन बन्द किया और भांजों को नये हालात की ख़बर की।
‘‘अब क्या होगा, मामू?’’ – अली सस्पेंस में बोला।
‘‘हमारे किये कुछ नहीं होगा। अब जो करेगा, सरदार करेगा।’’
‘‘भाईजान न कुछ कर पाये तो?’’ – वली बोला।
‘‘अव्वल तो ऐसा होगा नहीं। होगा तो’’ – मुबारक अली का गला भर गया – ‘‘तुम बारह रह जाओगे, नसीबमारो।’’
मुबारक अली ने दस मिनट से पहले अशरफ का फोन बजाया।
जवाब फेरा ने दिया।
‘‘सोहल से बात हो गयी है।’’ – मुबारक अली बोला – ‘‘लेकिन दस बजे से पहले वो मेरे पास नहीं पहुंच सकता।’’
‘‘क्यों?’’ – फेरा भुनभुनाया – ‘‘जयपुर में है? आगरा में है? चण्डीगढ़ में है?’’
‘‘मेरे को नहीं पता कहां है! नहीं बोला वो कुछ इस बाबत। कुछ बोला तो ये बोला कि दस से पहले मेरे पास नहीं आ सकता।’’
‘‘वैसे तैयार है आने को?’’
‘‘हां।’’
‘‘बोला कि क्यों आना है?’’
‘‘बोला।’’
‘‘फिर भी आने को हां बोला?’’
‘‘अरे, हां, भई।’’
‘‘यानी तेरे भांजों को बचाने के लिये ख़ुद खल्लास होने का तैयार है?’’
‘‘आन बान शान वाला भीडू ऐसा ही होता है। वो न किसी से डरता है, न किसी को डराता है। वो ओट से वार नहीं करता . . . तेरी तरह।’’
‘‘थोबड़ा बन्द!’’
मुबारक अली खामोश हो गया।
‘‘मेरे को मालूम वो कैसा भीडू! इसी वास्त ये दांव खेला वर्ना तुम मुसलमान वो सिख . . .’’
‘‘वो आदमजात, हम आदमजात।’’
‘‘ठीक! ठीक! अभी कान दे के सुन। तारीख बदलने से पहले तेरे को उसके साथ इधर होना। रात के वो टेम फैक्ट्री से बाहर की सड़क खाली होती है और फैक्ट्री के टॉप फ्लोर से दूर तक दिखाई देती है। तेरे और सोहल के अलावा सड़क पर अगर मुझे किसी की परछाईं भी दिखाई दी तो तेरे भांजे खल्लास! फिर उन की मैयत उठाने का वास्ते जब मर्जी आना।’’
लाइन कट गयी।
दस बजे तक सब हौज ख़ास पहुंच गये।
इतना टाइम उन तैयारियों में सर्फ हुआ था जो विमल ने काउन्टरअटैक के लिये जरूरी समझी थीं।
अगला एक घन्टा उसने मुबारक अली के साथ प्रेत की तरह इलाके में विचरते फैक्ट्री के आसपास देर रात के हालात का जायजा लेने में गुजारा। जो ख़ास बात उनकी जानकारी में आयी वो ये थी कि गार्मेंट फैक्ट्री और ‘गोल्डन गेट’ के पिछवाड़े में भी एक संकरी गली थी।
‘‘मेरे को नहीं लगता’’ – विमल बोला – ‘‘कि उस सर्विस लेन की तरफ किसी को तवज्जो जायेगी। सब की निगाह का मरकज सामने की सड़क होगा तो वो बोले कि फैक्ट्री के टॉप फ्लोर से दूर तक दिखाई देती है। नहीं?’’
‘‘हां।’’
‘‘मेरे ख़याल से सब जने वहीं हैं।’’
‘‘कैसे मालूम?’’
‘‘अरे, मियां, जब बिग बॉस बोला कि टॉप फ्लोर से सड़क दूर तक दिखाई देती थी तो इमारत में वो लोग और वहां होंगे।’’
मुबारक अली ने अन्धेरे में सहमति में सिर हिलाया।
‘‘दूसरे, फैक्ट्री की सारी इमारत में इस वक्त जो थोड़ी बहुत रोशनी है, वो टॉप फ्लोर पर ही है। तीसरे, जब मैंने फैक्ट्री का पहली बार फेरा लगाया था तो वॉचमैन ने बोला था कि फैक्ट्री का कारोबार दो फ्लोर्स पर ही था। इस लिहाज से टॉप फ्लोर का खाली होना ही बनता है। जमा, जैसा वो ट्रीटमेंट हाशमी और अशरफ को देने पर आमादा हैं, वो किसी खाली जगह में ही ठीक से दिया जा सकता है।’’
‘‘आगे बोल।’’
‘‘अनीस का जिस्मानी ढांचा, कद काठ सब मेरे से मिलता है। आधी रात के करीब जब तुम उसके साथ सड़क पर कदम डालोगे तो वो यही समझेंगे कि मैं तुम्हारे साथ चला आ रहा था। मेरे को सिर्फ एक मिनट की डाइवर्जन चाहिये होगी . . .’’
‘‘क्या चाहिये होगी?’’
‘‘उनकी तवज्जो मेरी तरफ से हटाने का मौका चाहिये। मुझे उम्मीद है इतने में ही बाजी पलट जायेगी।’’
‘‘उम्मीद कारगर न हुई तो?’’
‘‘तो भुगतेंगे।’’
‘‘तू क्या करेगा?’’
‘‘करूंगा। कुछ तैयारी की है मैंने . . .’’
‘‘आम तैयारी के अलावा कोई ख़ास तैयारी?’’
‘‘हां। उसपर मैं अमल करूंगा। तुम्हें खाली इतना करना है कि मेरा सिग्नल मिलने के बाद ही अनीस के साथ फैक्ट्री के सामने की सड़क पर कदम रखना है और धीरे-धीरे चलते हुए, जानबूझ कर धीरे-धीरे चलते हुए, फैक्ट्री की तरफ बढ़ना है।’’
‘‘सिग्नल क्या?’’
‘‘मोबाइल बजाऊंगा। तुम्हारे काल रिसीव करते ही बन्द कर दूंगा। ठीक?’’
‘‘ठीक!’’
‘‘भांजों को समझा ही दिया है कि उन्होंने क्या करना है! सामने सड़क पर कोई कदम नहीं रखेगा। जो करना है, सर्विस लेन के रास्ते करना है। सब हथियारबन्द हैं?’’
‘‘हां। बहुत ख़र्चा हुआ लेकिन हां।’’
‘‘गुड। तो करते हैं बिस्मिल्लाह। मैं यहीं रहूंगा, तुम इस तंग गली से ही निकल लो।’’
‘‘जाता हूं। लेकिन सरदार’’ – मुबारक अभी व्यग्र भाव से बोला – ‘‘सब सम्भाल लेगा न?’’
‘‘हां।’’ – विमल दृढ़ता से बोला – ‘‘तुम्हारे जांनिसार भांजे मेरे भाई हैं। सब सम्भाल लूंगा। बाबे दी मेहर न होई तो भांजों से पहले जान से जाऊंगा और खुशी-खुशी बोलूंगा . . .’’
‘‘क्या?’’
‘‘ठाकुर तुम सरणाई आया।’’
मुबारक अली ने अपलक विमल की तरफ देखा।
‘‘हारौं तो हरिनाम है’’ – विमल ओजपूर्ण स्वर में बोला – ‘‘जो जीतूं तो दाव। पारब्रह्म सों खेलतां, जो सिर जाव तो जाव।’’
सन्नाटा छा गया। वक्त जैसे ठहर गया।
‘‘तू खालसा है।’’ – फिर मुबारक अली भर्राये कण्ठ से बोला – ‘‘तू खालिस है। तुझे कोई नहीं मार सकता।’’
विमल ख़ामोश रहा।
‘‘जाता हूं।’’
मुबारक अली निशब्द संकरी गली में आगे बढ़ चला।
उसके घूमने से पहले अन्धेरे में भी विमल को दिखाई दिये बिना न रहा कि कठोर हृदय मुबारक अली की, जो कभी मुम्बई में दुर्दान्त हत्यारा होता था, आंखें डबडबाई हुई थीं।
विमल ने गहरी सांस ली, मन में उमड़ते जजबात को दरकिनार किया और दृढ़संकल्प आगे बढ़ा।
‘गोल्डन गेट’ का मलबा फैक्ट्री की इमारत की पहली मंजिल तक पहुंचा हुआ था। वो ख़ामोशी से मलबे के उस पहाड़ पर चढ़ गया और वहां से इमारत के पहलू से गुजरते, छत पर जाते ड्रैन पाइप के जरिये निशब्द छत पर पहुंच गया। दबे पांव उसने छत पार की और परली तरफ की मुंडेर पर पहुंचा। मुबारक अली के साथ वहां की ख़ामोश पड़ताल में वो पहले ही नोट कर चुका था कि उधर की एक खिड़की खुली थी और अन्धेरे में रौशनी की आयत जान पड़ रही थी। खिड़की के ऊपर ओट के लिये, बारिश से हिफाजत के लिये एक दो फुट चौड़ा प्रोजेक्शन था। विमल ने मुंडेर पार की, परली तरफ लटका और निशब्द प्रोजेक्शन पर उतर गया। वो प्रोजेक्शन पर पेट के बल लेट गया और उसके किनारे से नीचे सिर डालकर उसने क्षण भर को भीतर झांका।
वो एक विशाल, खाली हाल की खिड़की थी, हाल में कई लोग मौजूद थे जिनमें से चिन्तामणि त्रिपाठी और लाला रघुनाथ गोयल को उसने फौरन पहचाना। वो दो कुर्सियों पर अगल बगल बैठे हुए थे और वहां सिर्फ एक शख़्स और कुर्सीनशीन था जो एक थ्री पीस सूट पहने था और उसकी फूं फां ही बता रही थी कि वही बाहर से आया बिग बॉस स्टीवन फेरा था। उनके सामने दो कुर्सियों पर हाशमी और अशरफ बन्धे पड़े थे। उन के पीछे कई हथियारबन्द शख़्स मौजूद थे जो सूरत और मिजाज से प्यादे जान पड़ते थे। एक कसरती कदकाठ वाला आदमी सड़क की ओर की एक खुली खिड़की पर खड़ा था।
विमल ने मोबाइल निकल कर मुबारक अली को काल लगाई। उसके काल रिसीव करते ही उसने मोबाइल बन्द करके जेब के हवाले किया। उसने जेब से एक स्मोक बम निकाल कर हाथ में ले लिया।
‘‘दो जनों ने परले सिरे से सड़क पर कदम रखा है।’’ – हॉल से आवाज आयी।
‘‘सड़क बहुत लम्बी है, इतनी दूर से अन्धेरे में कुछ पता नहीं लगेगा।’’ – एक रोबीली आवाज आयी – ‘‘करीब आ जायें, सूरतें दिखाई देने लगें, तब मेरे को बोलना।’’
‘‘ठीक है।’’
विमल ने कुछ क्षण प्रतीक्षा में गुजारे, फिर उसने बम के पलीते को सुलगाया, जब वो सुलगता हुआ बम से एक इंच दूर रह गया तो उसने प्रोजेक्शन से नीचे हाथ लटका कर बम को हाल में फेंक दिया। तत्काल एक खोखला धमाका हुआ और हाल घने धुंये से भरने लगा।
भीतर खलबली मच गयी।
‘क्या हुआ, क्या हुआ’ की आवाजें आने लगीं।
विमल प्रोजेक्शन से नीचे लटका, उसने एक बार अपने शरीर को झुलाया, फिर खुली खिड़की को निशाना बना कर छलांग लगाते प्रोजेक्शन को छोड़ दिया।
वो हाल के भीतर जाकर गिरा।
हाल में अब इतना घना धुंआ था कि हाथ को हाथ सुझाई नहीं दे रहा था।
‘‘साला जहरीला धुंआ नहीं है। बस धुंआ है खाली। अभी क्लियर हो जायेगा।’’
बोलने वाले के मुम्बईया लहजे से विमल ने पहचाना कि बिग बॉस बोल रहा था। आवाज को निशाना बना कर वो दबे पांव उसकी तरफ बढ़ा।
जब धुंये के बादल कुछ हद तक घंटे और औना पौना दिखाई देना शुरू हो गया तो सबने देखा कि बिग बॉस के सिर पर कोई अजनबी खड़ा था जिसके हाथ में थमी गन की नाल बिग बॉस की कनपटी से सटी हुई थी।
‘‘ख़बरदार!’’ – विमल कहरबरपा लहजे से बोला – ‘‘किसी ने कोई होशियारी दिखाने की कोशिश की तो बिग बॉस का मगज खोपड़ी से बाहर होगा!’’
सन्नाटा!
‘‘फेरा हो न!’’ – विमल ने गन की नाल से उसकी खोपड़ी को टहोका – ‘‘वो फेरा जिसका फेरा मुल्तबी हो गया था? जिसका इतनी-सी बात पर मीनू ईरानी के कत्ल का हुक्म हो गया था कि उसने गलती से फेरा का मैसेज किसी और को थमा दिया था?’’
‘‘तू सोहल है?’’
‘‘अदब नहीं सीखा। मैं तुमसे इतनी इज्जत से मुखातिब हूं और तुम मेरे से तू-तकार की जुबान बोल रहे हो!’’
‘‘सोहल है?’’
‘‘है। अपने आदमियों को बोलो हथियार फेंक दें और पीछे हट कर, दीवार से पीठ लगा कर खड़े हों।’’
‘‘तेरी मौत तुझे यहां लायी है . . .’’
‘‘ये बड़े खलीफा का बड़ा बोल है। लेकिन खोखला बोल है।’’
‘‘तू . . . यहां से बच के नहीं जा सकता।’’
विमल ने गन को थोड़ा पीछे हटा के गोली चलाई।
फेरा के कान की लौ उड़ गयी। उसके मुंह से चीख निकली, अपने हाथ से उसने कान को ढंका और उठने की कोशिश की।
विमल ने बेरहमी से उसको वापिस कुर्सी पर धकेल दिया।
‘‘अगली बार नाल दो इंच अन्दर। मांगता है?’’
‘‘हथियार फेंक देने का।’’ – फेरा कराहता सा बोला – ‘‘और जैसा बाप बोला’’ – ‘‘पीछू की दीवार से पीठ लगाकर खड़ा होने का।’’
तत्काल आदेश का पालन हुआ। कई देसी विदेशी गन फर्श पर टपकीं।
‘‘और तुम!’’ – विमल खुली खिड़की पर खड़े व्यक्ति से सम्बोधित हुआ – ‘‘वहां से हटो और अपना हथियार निकल के फेंको।’’
‘‘हटता हूं।’’ – वो खिड़की पर से हट कर हाल के भीतर की ओर कदम बढ़ाता बोला – ‘‘पर मेरे पास हथियार नहीं है।’’
विमल ने फेरा के घायल कान को ढंके हाथ पर वार किया। वो पीड़ा से बिलबिला गया।
‘‘बोलो।’’ – विमल बोला – ‘‘हुक्म दो। लगता है ये औरों से ज्यादा हेंकड़ है। तुम्हारा ही हुक्म मानेगा।’’
‘‘तू बच के नहीं जा सकता।’’ – फेरा भड़का।
‘‘अरे, कौन कम्बख्त बच के जाना चाहता है! लेकिन अगर मैं मरूंगा तो तुम सब मेरे साथ मरोगे।’’
‘‘क्या बोला?’’
‘‘इस इमारत में चारों तरफ वैसे ही बम लगे हैं, जैसों ने तुम्हारा कैसीनो उड़ाया था, पलक झपकते उसे मलबे का ढ़ेर बनाया था। कोई फर्क है तो ये कि वो टाइम बम थे, ये रिमोट से एक्टीवेट होने वाले बम हैं। और रिमोट’’ – विमल ने अपना बायां हाथ ऊंचा किया – ‘‘मेरे हाथ में है, उसके लाल बटन पर मेरा अंगूठा है।’’
सन्नाटा छा गया।
‘‘तुम लोग यहां से निकल के भी नहीं जा सकते क्योंकि इमारत को चारों तरफ से बड़े मियां के बाकी भांजों ने घेरा हुआ है और सब हथियारबन्द हैं। जो कोई भी बाहर कदम रखेगा, भून के रख दिया जायेगा।’’
फेरा का रंग और बदरंग हुआ, उसने कुर्सी पर बेचैनी से पहलू बदला।
‘‘ईडियट!’’ – फिर एकाएक गुस्से से बोला – ‘‘सुनता काहे नहीं! गन निकाल के फर्श पर फेंकने का।’’
फांसी लगे अन्दाज से खिड़की पर से हटते शख़्स ने गन निकाल कर फर्श पर फेंकी।
‘‘कैदियों को आजाद करो।’’ – विमल ने नया आदेश दिया।
उसने हाशमी और अशरफ को बन्धनमुक्त कर दिया।
दोनों लड़खड़ाते से, कलाईयां मसलते उठ खड़े हुए।
‘‘पीछे!’’ – विमल फिर खिड़की से हटे आदमी से सम्बोधित हुआ – ‘‘बाकी जवानों के साथ। दीवार से पीठ लगा के।’’
भारी कदमों से चलता वो पीछे जाके खड़ा हुआ।
‘‘सारे हथियार बटोर लो।’’ – विमल हाशमी और अशरफ से बोला – ‘‘एक जना नीचे जा के मेन डोर खोलो और जोर से सीटी बजाओ। बजाना आता है न!’’
‘‘मेरे को आता है।’’ – अशरफ उत्साह से बोला।
‘‘तो तू नीचे जा।’’
पांच मिनट बाद वहां मुबारक अली समेत सारे भांजे जमा थे। सबने उपलब्ध गन और अपनी ख़ुद की गन सब पर तान दीं।
बाजी मुकम्मल तौर से पलट चुकी थी।
तब विमल फेरा के सिर पर से हटा। वो दीवार से लगे खड़े आदमियों के करीब पहुंचा और बोला – ‘‘तुम में से जस्सा कौन है?’’
कोई जवाब न मिला।
‘‘जिसका नाम जस्सा है वो एक कदम आगे आये वर्ना सब को शूट कर दिया जायेगा। फिर जस्से की शिनाख़्त की जरूरत ही नहीं रहेगी।’’
दीवार के साथ लगे खड़े लोगों ने एक शख़्स को जबरन आगे धकेल दिया।
विमल ने देखा वो वही शख़्स था जो पहले खिड़की के पास खड़ा था, जिसने हाशमी और अशरफ को बन्धनमुक्त किया था और जो सब से आखिर में जा कर दीवार के साथ खड़ा हुआ था।
‘‘तो तू होता है जस्सा!’’ – विमल सर्द लहजे से बोला।
उसने कठिन भाव से सिर हिलाया।
‘‘तू प्यादों में क्यों खड़ा है, भई? तेरा मुकाम तो अपने मालिकान के साथ है!’’
वो खामोश रहा।
‘‘उधर जा के खड़ा हो।’’ – विमल कर्कश स्वर में बोला।
भारी कदमों से चलता जस्सा रघुनाथ गोयल के करीब जा कर खड़ा हुआ।
‘‘तुम लोगों में से जो’’ – विमल बाकियों से सम्बोधित हुआ – ‘‘यहां से जिन्दा बच के जाना चाहते हैं, वो बराय, मेहरबानी हाथ खड़ा करें।’’
गोली की तरह तमाम हाथ छत की तरफ उठे।
‘‘मेरी तुम्हारे से कोई अदावत नहीं। मैं जानता हूं तुम इन लोगों के हुक्मबरदार प्यादे हो और हुक्म मानना तुम्हारी मजबूरी है। मेरे मुजरिम ये लोग हैं इसलिये तुम चाहोगे तो तुम्हारा बाल भी बांका नहीं होगा।
‘‘हम क्यों नहीं चाहेंगे?’’ – कई स्वर एक साथ उठे।
‘‘हमें बख्श दीजिये।’’ – कोई बोला – ‘‘आप जो कहेंगे, हम करेंगे।’’
‘‘किस का हुक्म मानते हो? किस के अन्डर में चलते हो?’’
सबने जस्से की तरफ इशारा कियां
‘‘फिर ये ही बोलेगा कि जानबख्शी के लिये तुमने क्या करना है?’’ – वो जस्से की तरफ घूमा – ‘‘बोल, भई।’’
‘‘सब निकल लो।’’ – जस्सा यूं व्यग्र भाव से बोला जैसे विमल के मनमाफिक बोलकर दिखाने से उसकी जानबख्शी हो सकती हो – ‘‘सीधे अपने-अपने घर जाओ। किसी को कुछ नहीं बोलना। यहां कुछ नहीं हुआ। तुमने यहां कुछ नहीं देखा। तुम यहां आये ही नहीं थे। समझ गये?’’
सबने सम्वेत् स्वर में ‘हां’ बोला। फिर सबने आशापूर्ण भाव से विमल की तरफ देखा।
‘‘ये पुलिस को ख़बर कर सकते हैं।’’ – हाशमी धीरे से बोला।
विमल ने फिर जस्से की तरफ देखा।
‘‘पुलिस के पास नहीं जाना।’’ – जस्सा बोला – ख़याल भी नहीं करना। हर कोई सीधा घर जाये। समझ गये?’’
फिर कई ‘हां’ गूंजीं।
‘‘कनफर्म।’’ – विमल फेरा से बोला।
‘‘पुलिस नहीं मांगता।’’ – फेरा बोला – ‘‘उधर नहीं जाने का। घर जाने का।’’
‘‘सुना, बिग बॉस क्या बोलता है?’’
‘‘सुना।’’
‘‘जो सुना उस पर पूरी तरह से, पूरी ईमानदारी से अमल करोगे?’’
‘‘हां।’’
‘‘गुड। बाद में, देखना, बिग बॉस शाबाशी देगा। निकल लो।’’
‘मैं पहले’ के अन्दाज से एक दूसरे को धकियाते वो वहां से रुख़सत हुए।
हाशमी के – मुबारक अली के भी – चेहरे से साफ दिख रहा था कि उसे विमल के उस उदार कदम से इत्तफाक नहीं था।
‘‘यहां ज्यादती टिकना ठीक नहीं।’’ – मुबारक अली विमल के करीब आकर, उसके कान से मुंह लगा कर बोला – ‘‘पलटी बाजी फिर पलट जाती है। जो करना है, जल्दी कर के नक्की कर।’’
विमल ने सहमति में सिर हिलाया, उसने जस्से को करीब आने का इशारा किया।
जस्सा झिझकता हुआ उसके सामने आ कर खड़ा हुआ।
‘‘पहचानता तो है न मेरे को?’’ – विमल बोला।
जस्से ने कठिन भाव से सहमति में सिर हिलाया।
‘‘कौन हूं मैं?’’
‘‘क-कौल। कौल साहब।’’
‘‘जिसके घर में घुस कर तूने जिसकी बीवी को मारा। एक बेगुनाह, निहत्थी औरत को बेरहमी से चाकुओं से गोदा और मेरे को वार्निंग दी कि मैं अपने उसी अंजाम तक पहुंचने का इन्तजार करूं! शेर बच्चे को पिल्ला कहा!’’
‘‘म-मैंने . . . मैंने नहीं। मैं तो . . . मैं तो . . .’’
‘‘तू नहीं तो और कौन?’’
‘‘त-तीन . . . तीन जने।’’
‘‘कौन? कुलदीप सिंह! गगनदीप सिंह! हरीश नेगी!’’
जस्से के चेहरे पर हैरानी के भाव आये।
‘‘वो तीनों मर चुके हैं . . .’’
‘‘त-तीनों!’’
‘‘हां।’’
‘‘कुलदीप भी? गगनदीप भी?’’
‘‘हां। मैंने दोनों का ख़ुद फातिहा पढ़ा। नेगी को कुलदीप सिंह ने शूट किया इसलिये वो मेरे हाथों से हलाक होने से बच गया। बहरहाल वो तीनों मर चुके हैं इसलिये तू कुछ भी कह सकता है, वो तेरा मुंह पकड़ने नहीं आ सकते।’’
‘‘मैं सच कह रहा हूं . . .’’
‘‘तेरे सच में खोट है। रिंग लीडर तो तू था! हुक्म तो तूने जारी किया! इन पीछे बैठे कमीनों के कहने पर मेरी बीवी के कत्ल को आर्गेनाइज तो तूने किया! इन लोगों के नापाक इरादों को अमल में लाने के लिये मेरे पीछे तो तू पड़ा था न! मेरे पर पेश न चली तो मेरी बीवी पर ताकत आजमाई। इंकार कर इस बात से कि सब तूने आर्गेनाइज नहीं किया था! सब ख़ुद नहीं किया था तो अपनी देख रेख में कराया था! अगर कत्ल को उन लोगों ने अंजाम दिया था तो उनके साथ उस रात मेरे घर में तू था न! इंकार करके दिखा इस बात से। फिर मैं अपनी मेड से तेरा आमना सामना कराता हूं जो तेरे को गोली की तरह पहचानेगी।’’
‘‘वो तो . . . वो तो – - चली गयी।’’
‘‘आ जायेगी।’’
‘‘आप की मेड है, आप उससे कुछ भी कहलवा सकते हैं।’’
‘‘ये कचहरी नहीं है, हरामजादे, जहां तू कुछ भी बक लेगा। जहां सजा से पहले तेरा गुनाह साबित कर के दिखाना जरूरी होगा। सोहल की कचहरी में तेरे गुनाह को किसी सबूत की जरूरत नहीं। लाला लोगों के भड़वे, मैं तेरे को मौत की सजा देता हूं।’’
विमल की गन ने आग उगली।
जस्सा फर्श पर ढे़र हो गया।
विमल ने करीब से दो गोलियां और दागीं तो उसने जस्से की आंखों से जीवन ज्योति बुझती साफ देखी।
विमल ने गन में नयी मैगजीन डाली और गोयल साहब और त्रिपाठी के रूबरू हुआ।
‘‘तुम लोगों की करतूतें जानबख़्शी के काबिल नहीं।’’ – वो बोला – ‘‘लेकिन फिर भी मैंने फैसला किया था कि तुम लोगों की औलाद की बर्बादी, खानाखराबी को ही मैं तुम्हारी सजा तसलीम कर लूंगा जो कि तुम्हें ताजिन्दगी तड़पायेगी, जो तुम्हारी मुतवातर सजा बन जायेगी। जब-जब नपुंसक औलाद का मुंह देखोगे, खून के आंसू रोवोगे। अपने बैटर जजमेंट के खिलाफ मैंने तुम्हारी जानबख्शी का फैसला किया था लेकिन इस बाहर से आये शख़्स के साथ यहां मेरी मौत के ड्रामे में शरीक हो कर तुम लोगों ने जानबख्शी का अपना हक खो दिया। तुम लोग यहां मेरी मौत का तमाशा देखने के लिये मौजूद थे ताकि तुम्हारे कलेजों को ठण्डक पड़ती। अब यहीं, इसी जगह मैं तुम्हारी मौत का तमाशा देखूंगा – देखूंगा क्या, तमाशा खड़ा ही मैं करूंगा – और मेरे कलेजे को ठण्डक पड़ेगी। मेरी मरहूम बीवी की भटकती रूह को चैन और सकून मिलेगा कि उसके मर्द ने आखिर उसकी हत्तक का बदला ले लिया, उसने अपनी अर्धांगिनी पर जुल्म होने वालों में से किसी को जिन्दा न छोड़ा।’’
उसने अपना गन वाला हाथ उठाया।
दोनों भय से जड़ हो गये।
विमल ने हाथ झुका लिया और फेरा से सम्बोधित हुआ – ‘‘पेड़ की डाल काटने से पेड़ ख़त्म नहीं होता, डाल फिर उग आती है। इन लोगों के जाने से तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ेगा, तुम ऐसे और ढूंढ़ लोगे। लिहाजा पेड़ को ख़त्म करने का एक ही तरीका है कि उसे जड़ से उखाड़ दिया जाये। स्टीवन फेरा, तू जुर्म का पसरता, फलता फूलता पेड़ है, मैं वो शख़्स हूं जिसे ऊपर वाले ने पेड़ को जड़ से उखाड़ देने का हुक्म फरमाया है।’’
विमल ने उसे प्वायन्ट ब्लैंक शूट कर दिया।
फिर चिन्तामणि त्रिपाठी को।
फिर रघुनाथ गोयल को।
विमल के आदेश पर मुबारक अली ने तसदीक की कि सब मर चुके थे।
हाशमी ने नीचे पहुंच कर मेन स्विच ऑफ कर दिया। तत्काल इमारत अन्धेरे के गर्त्त में डूब गयी।
वो सब सड़क के परले सिरे पर पहुंचे तो विमल ने रिमोट का बटन दबा दिया।
25 दिसम्बर: बुधवार
सुबह, मुंहअन्धेरे अनीस अपनी वॉक पर निकल गया तो विमल उठ खड़ा हुआ। वो ख़ामोशी से किचन में पहुंचा और दो जनों के लिये चाय बनाई।
फिर उसने मुबारक अली को जगाया।
दोनों बाहर बरामदे से आगे फ्रंट यार्ड में पहुंचे तो विमल ने चाय का एक गिलास उसे थमा दिया।
‘‘चाय तूने बनायी?’’ – मुबारक अली बोला।
‘‘हां।’’ – विमल बोला – ‘‘नापसन्द हो तो मत पीना। छाेड़ देना।’’
‘‘बढ़िया है।’’
‘‘शुकर।’’ – विमल ने चाय की एक चुसकी ली, फिर बोला – ‘‘मैं अभी चला जाऊंगा।’’
‘‘कहां?’’ – मुबारक अली सहज भाव से बोला – ‘‘जहां छुप के रह रहा था!’’
‘‘ये शहर छोड़ कर।’’
मुबारक अली का चाय के गिलास के साथ होंठों की तरफ बढ़ता हाथ बीच में रुक गया।
‘‘पक्का फैसला है?’’ – फिर संजीदगी से बोला।
‘‘हां। जिस्म से रूह तो अलग कर दी गयी, अब क्या फर्क पड़ता है जिस्म कहां भटकता है, कहां-कहां भटकता है!’’
‘‘कहीं जायेगा?’’
‘‘अभी तो वहीं जहां से आया था, जिस जगह को हमेशा के लिये अलविदा कह कर यहां आया था?’’
‘‘मुम्बई?’’
‘‘हां।’’
‘‘कब जायेगा?’’
‘‘आज। यहां से अभी।’’
‘‘क्या! भांजों से मिल कर नहीं जायेगा?’’
‘‘नहीं। मिलने के लिये रुका तो नहीं जा सकूंगा।’’
‘‘वो गिला करेंगे!’’
‘‘जरूर करेंगे। लेकिन समझाना। मेरी ख़ता माफ कराना।’’
‘‘अच्छा!’’
‘‘हां। भाईयों से बिछुड़ रहा हूं। जज्बात इधर भी पसर रहे हैं लेकिन . . . मजबूरी है।’’
मुबारक अली खामोश रहा।
‘‘सोहल की यही जिन्दगी है जो उसके बनाने वाले ने वक्त की दीवार पर पत्थर की कलम से उकेरी है। कुत्ते जैसी दुर-दुर करती दर-दर भटकन।’’
‘‘हौसला रख, सरदार, सब ठीक हो जायेगा।’’
‘‘मेरी भी यही ख़याल था। इसी उम्मीद के आसरे दिल्ली आया था लेकिन कुछ ठीक न हुआ। पा कुछ न सका, खो सब कुछ दिया। फिर भी कुछ पाया तो नीलम से हमेशा का बिछोड़ा पाया। मेरे बच्चे के सिर से मां का साया उठ गया। हमारे यहां कहते हैं ‘मावां ठंडियां छांवां’। सूरज ममता की ठण्डी छांव से महरूम हो गया। हमेशा के लिये। बड़ा होके पूछेगा मेरी मां कहां गयी, तो क्या जवाब दूंगा! पूछेगा मेरी मां को क्या हुआ था, तो क्या जवाब दूंगा! कह सकूंगा बेटा तेरी मां ने तेरे बाप के कुकर्मों का फल भुगता! जो सजा उसके पापी, जो खतावार बाप को मिलनी थी, वो उसे मिली। कह सकूंगा?’’
मुबारक अली ने जवाब न दिया।
‘‘कभी मैंने किसी दूसरे के लिये कहा था कि भाईगिरी के इस धन्धे में कोई ईनाम नहीं होता, कोई सजा नहीं होती, सिर्फ नतीजे होते हैं जो भुगतने पड़ते हैं। आज यही बात अपने लिये कहता हूं। न सजा, न ईनाम, सिर्फ नतीजे जो भुगतने पड़ते हैं। कहते हैं ख़ुदा उनको बख्श देता है जिनकी किस्मत ख़राब होती है। मेरे को तो न बख्शा! मेरी सजायें तो मुतवातर बढ़ती ही चली गयीं।’’
‘‘ख़ुदावन्द करीम का किया कभी ग़लत नहीं होता, सरदार। जो तू कह रहा है, जरूर उसमें भी तेरी कोई भलाई है। तेरे को हैरानी नहीं होती कि इतनी मुतवातर, कहरबरपा दुश्वारियों के बावजूद तेरा वजूद आज तक इस फानी दुनिया में कायम है!’’
‘‘सिर्फ मेरा!’’
‘‘क्यों सिर्फ तेरा? अपनी निशानी छोड़ कर गयी न नीलम बीवी तेरे पास!’’
विमल खामोश रहा।
‘‘आदमजात को नाशुक्रा नहीं होना चाहिये, सरदार। जब आसमानी बाप की रहमतें कबूल हैं तो उसकी तजवीज की सजायें भी कबूल फरमानी चाहियें। ये इंसानी जिन्दगी है, यहां हर तरह का वक्त आता है और गाजी वही है जो वक्त के कैसे भी थपेड़े से नहीं हिलता। तू क्यों हिलता है?’’
‘‘मैं हिलता नहीं, मियां, हैरान होता हूं – हिलता होता तो कब का चकनाचूर होकर बिखर गया होता – मैं समझता था कि मैं अपने खूंरेज माजी को पीछे छोड़कर आया था लेकिन ये मेरी ख़ामख़याली निकली। मेरा माजी तो बेताल है जो प्रेत की तरह विक्रम की पीठ पर चढ़ा है। मेरा माजी तो मेरी परछाईं बन चुका है, ऐसी परछाईं जो अन्धेरे में भी पीछा नहीं छोड़ती। बस, दिखाई नहीं देती, पीछा कभी नहीं छोड़ती। अब मैं मवाली की मौत ही मरूंगा . . .’’
‘‘सरदार।’’
‘‘... इस फर्क के साथ कि पीछे विधवा छोड़ के नहीं जाऊंगा, सलामत रही तो एक औलाद छोड़ कर जाऊंगा जो पूछे जाने पर कहेगी कि यतीम थी। यानी उसके मां-बाप की बद्किस्मती उसकी अपनी जिन्दगी के साथ पहले ही नत्थी हो जायेगी। तुका ठीक कहता था।’’
‘‘क्या? क्या कहता था?’’
‘‘कहता था मैं मलेरिया से, टाइफाइड से नहीं मरने वाला, एक्सीडेंट से नहीं मरने वाला; जब मरूंगा किसी मवाली के रामपुरी से पेट फड़वा के मरूंगा, किसी भाई की गोली खा के मरूंगा या पुलिस एनकाउन्टर में जान से जाऊंगा।’’
‘‘बोम न मार, सरदार। आज तक सलामत है न!’’
‘‘सलामत हूं लेकिन जिन्दगी बमियाद कैद है जिसमें न पैरोल है, न रिहाई है।’’
‘‘ख़ुदा जैसे रखता है, वैसे रहना सीखना चाहिये। उसके फरमान में नुक्स नहीं निकालना चाहिये। अरे, लोग जिन हादसों में मरते हैं, तुझे तो उन हादसों ने पाला है। जो चराग आंधियों ने जलाये हों, उन्हें हवायें नहीं बुझा सकतीं। याद कर कितनी हवायें तेरी जिन्दगी में आकर चली गयीं और चराग रौशन रहा – कभी मद्धम पड़ा, कभी लौ लपलपाई पर रौशन रहा – बखिया, इकबाल सिंह, गजरे, गुरबख्शलाल, दफेदार, फिगुएरा, अभी फेरा और पता नहीं कौन-कौन जिन से तू वाकिफ था, मैं वाकिफ नहीं। सरदार, जिन्दगी आसान किसी की नहीं, सब की दुश्वार है, और तेरे से बेहतर कौन जानता है कि जिन्दगी को आसान समझना नादानी है। तलवार की धार से शहद चाटने का नाम है जिन्दगी।’’
‘‘जो कुछ भी तुमने कहा, दुरुस्त कहा, सब मेरे सिर माथे लेकिन फिर भी मैं क्या करूं कि मुझे अपनी जिन्दगी के दिन थोड़े दिखाई दे रहे हैं। मुम्बई में पंडित भोजराज शास्त्री नाम के एक विद्वान महानुभाव ने कहा था कि उन्हें मेरे मस्तिष्क पर राजयोग अंकित दिखाई देता था। इस लिहाज से तो अभी बहुत जिन्दगी है क्योंकि राजयोग के कदम अभी मेरी जिन्दगी में पड़े नहीं। लेकिन कभी-कभी महापुरुषों की भविष्यवाणियां भी गलत हो जाती हैं। इसलिये मेरे को अन्दर से आवाज आती है कि वो घड़ी आने से पहले ही मुझे सांसारिक मोहमाया त्याग देनी चाहिये। शिवनारायण पिपलोनिया कहता था कि उसका कोई वारिस नहीं या इसलिये बाजरिया वसीयत वो अपने सारे वर्ल्डली पोजेशंस मेरे नाम लिख गया। जैसे पिपलोनिया मुझे अपना वारिस बना के मरा, वैसे, मुबारक अली, अपने जीते जी मैं तुम्हें अपना वारिस करार देता हूं।’’
‘‘मुझे ये विरसा कुबूल नहीं। तू सूरज को भूल रहा है।’’
‘‘वो कोंपल है जो पेड़ बनने में अभी कई साल लगायेगी।’’
‘‘कुछ करना है तो अभी उसका ख़याल कर, इन्तजाम कर।’’
‘‘कोई जरूरत नहीं। जब ख़ुदा ने सबको दो जून की रोटी देने का वादा किया है तो सूरज के मामले में क्या वो मुकर जायेगा?’’
‘‘वो तो ख़ैर, नहीं हो सकता पर . . .’’
‘‘जब दान्त न थे, तब दूध दियो, जब दान्त दिये तो अन्न भी दईयो।’’
‘‘मैं तेरे से बातों में पार नहीं पा सकता लेकिन दरख़्वास्त है, बल्कि इल्तजा है, अपने फैसले पर फिर ग़ौर कर ले।’’
‘‘कर चुका।’’
‘‘तो फिर मैं विरसे का मालिक नहीं, कस्टोडियन।’’
‘‘क्या बोला!’’
‘‘कस्टोडियन। अंग्रेज का माफिक बोलता है साला। मैं मुहाफिज। रखवाला। जब तक सूरज सिंह सोहल सब कुछ ख़ुद सम्भालने लायक बड़ा न हो जाये।’’
‘‘लेकिन . . .’’
‘‘अब ये बात कुबूल कर वर्ना मुझे तेरा विरसा कुबूल नहीं।’’
‘‘ठीक है।’’
‘‘क्या ठीक है? दो टूक बोल।’’
‘‘मुझे तुम्हारा कस्टेडियन वाला रोल मंज्ाूर है।’’
‘‘मैं थैंक्यू बोलता हूं।’’
‘‘तुम्हारा भी अब यहां रहना ठीक नहीं। यहां अब तुम्हारी मौजूदगी का कोई मानी भी नहीं है। जितनी जल्दी हो सके, तिराहा बैरम खान वापिस चले जाओ। अपने लोगों के बीच रहोगे तो कदरन सेफ रहोगे।’’
‘‘आज ही चले जायेंगे।’’
‘‘चलता हूं।’’
मुबारक अली ने सहमति में सिर हिलाया।
‘‘ख़ुदा हाफिज।’’ – चाय का गिलास परकोटे की दीवार पर रखता वो बोला।
‘‘ख़ुदा हाफिज।’’ – मुबारक अली ने भी गिलास वहां रखा।
विमल आउट गेट की ओर बढ़ा।
‘‘सरदार’’ – एकाएक मुबारक अली बोला – ‘‘जरा रुक।’’
विमल ठिठका, घूमा।
मुबारक अली करीब पहुंचा, नीमअन्धेरे में उसने कुछ क्षण अपलक विमल को देखा फिर खींच कर उसे अपने गले लगा लिया।
मुबारक अली की आंखों में फिर आंसू थे।
विमल की ख़ुद की आंखें भी भर आयीं।
मुबारक अली ने उसे अपने से अलग किया और भर्राये कण्ठ से बोला – ‘‘अब जा। मैं दुआ करूंगा कि तेरे वाहे गुरु की रहमतों का साया तुझ पर हमेशा बना रहे। आज क्रिस्तान की ईद का दिन है, बड़ा दिन बोलते हैं जिसे वो। मैं आज के मुकद्दस दिन उनके ख़ुदा जीसस से भी तेरे लिये दुआ मांगूंगा। जा।’’
विमल पंडारा रोड पहुंचा।
जहां गैलेक्सी के मालिक शिवशंकर शुक्ला का आवास था।
बागवानी शोभा शुक्ला की हॉबी थी, वो उसे फ्रंटयार्ड में फूलों की क्यारियों को पानी देती मिलीं।
‘‘गुड मार्निंग, मैम।’’ – विमल आयरन गेट पर से बोला।
शोभा ने घूमकर गेट की तरफ देखा, तत्काल उसके चेहरे पर हैरानी के भाव आये। उस ने पानी का कनस्तर क्यारियों के पास रख दिया और आ कर आयरन गेट खोला।
‘‘तुम! यहां! इतनी सुबह!’’
‘‘मैं सिर्फ दो मिनट लूंगा।’’ – विमल विनयशील स्वर में बोला।
‘‘आओ, भीतर आओ।’’
विमल ने यार्ड में कदम रखा लेकिन आगे न बढ़ा।
‘‘मालूम था हम यहां रहते हैं?’’ – शोभा ने पूछा।
‘‘काफी अरसा पहले एक बार, सिर्फ एक बार आज ही के दिन यहां क्रिसमस की पार्टी में शरीक होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।’’
‘‘ओह! तभी पता मालूम था। कैसे आये?’’
‘‘मैम, मैं आप को ये ख़बर करने आया था कि मैं हमेशा के लिये दिल्ली छोड़ के जा रहा हूं।’’
‘‘अरे! क्यों?’’
विमल ने जवाब न दिया।
‘‘कहां जाओगे?’’
‘‘अभी तो मुम्बई ही वापिस जाने का इरादा है, आइन्दा कहीं और भी जा सकता हूं।’’
‘‘हूं।’’
‘‘मैं ये अर्ज करने के लिये आया था कि आइन्दा मेरी ग़ैरहाजिरी में भी मेरी गैलेक्सी में मुलाजमत को अलाइव रखना जरूरी नहीं होगा।’’
‘‘अच्छा!’’
‘‘जी हां। इस सिलसिले में शुक्ला साहब के, आप के मेरे पर बहुत उपकार हैं। पूछे जाने पर गैलेक्सी से हर किसी को आज तक हमेशा जवाब मिलता आया कि कौल गैलेक्सी में मुलाजिम है, भले ही महीनोें उसके आफिस में कदम न पड़े हों। गैलेक्सी की इस कृपा ने मुझे कई बार बड़े संकट से उबारा है . . .’’
‘‘वो संकट फिर आ सकता है।’’
‘‘मैं कोशिश करूंगा कि न आये।’’
‘‘हमें तुम्हारी मुलाजमत को गैलेक्सी में जारी दिखाने में कोई परेशानी नहीं। गैलेक्सी में सब तुम्हारे वैलविशर हैं, सब कोआपरेट करते हैं।’’
‘‘मैं मशकूर हूं।’’
‘‘वैसे तो तुम्हारी हस्ती इतनी अजीम़ है कि तुम्हें हमारे साथ की जरूरत ही नहीं है। शुक्ला साहब कहा करते थे कि जो शख़्स इंसाफ के लिये लड़ता है, वो कभी अकेला नहीं होता। उस का ईश्वर उसके साथ होता है, उसकी वजह से जुल्म का शिकार होने से बचे सैंकड़ों, हजारों लोगों की दुआयें उसके साथ होती हैं। फिर तुम कोई आम आदमी थोड़े ही हो! शुक्ला जी ही कहते थे कि ये सृष्टि बनाने वाला प्राणी मात्र के लिये जब किसी सद्कार्य की जरूरतें महसूस करता है या अधम प्राणियों के विनाश की जरूरत महसूस करता है तो जरूरी नहीं होता कि वो ख़ुद ही अवतरित हो। वो किसी को अपना प्रतिनिधि बना सकता है, किसी को अपनी पावर्स डेलीगेट कर सकता है। वो तुम हो जिसे पालनहार ने ख़ुद ऐसे सम्मान के लिये, ऐसी जिम्मेदारी के लिये चुना है। हमारा तुम्हारे पर कोई अहसान नहीं। हमें तो समझो कि बहती गंगा में हाथ धोने का मौ क़ा मिल रहा है। तुम्हारी वजह से। कौल, बाई कोआपरेटिंग विद यू, वुई आर नाट डूईंग युअर वर्क, वुई आर डूईंग गॉड्स वर्क। वुई आर डूईंग अवर ड्यूटी टुवर्ड्स ए नोबल काज।’’
‘‘मैं शुक्रगुजार हूं कि आप ऐसा सोचती हैं, ऐसे उच्च विचार रखती हैं।’’
‘‘तो गैलेक्सी में तुम्हारी मुलाजमत . . .’’
‘‘जारी रखने की जरूरत अब नहीं है। दाना-पानी कभी मुझे फिर दिल्ली ले आया तो नये सिरे से मुलाजिम रख लीजियेगा लेकिन अभी ये सिलसिला ग़ैरजरूरी है इसलिये बन्द करा दीजिये। मैं अपना औपचारिक त्याग पत्र भी साथ लेकर आया हूं।’’
विमल ने एक लिफाफा उसे सौंपा।
‘‘ठीक है’’ – शोभा बोली – ‘‘अगर तुम ऐसा चाहते हो तो . . .’’
‘‘मैं चाहता हूं। मैम, प्लीज!’’
‘‘ओके।’’
‘‘थैंक्यू। इजाजत चाहता हूं।’’
‘‘अरे, एक कप चाय तो पी के जाओ।’’
‘‘मैं ये फख़्र फिर कभी हासिल करूंगा, अभी इजाजत दीजिये।’’
विमल ने कृतज्ञ भाव से हाथ जोड़ कर अभिवादन किया और बाहर को बढ़ा।
‘‘कौल!’’
विमल ठिठका, घूमा।
‘‘टेक केयर!’’
‘‘यस, मैम।’’
वो रुख़सत हुआ।
जहाज का पंछी।
फिर जहाज पर मुकाम पाने के लिये।
जहाज से उड़ा पंछी कहीं नहीं जा सकता। उसको पनाह वापिस जहाज पर ही होती है।
थोड़ी जमीं के लिये थोड़ा आसमां ढूंढ़ने निकला सोहल आधा अंग खो कर वापिस मुम्बई जा रहा था।