अजय पुनः मारुति में सवार हुआ और पिछली सड़कों से गुजरता हुआ चर्च से काफी दूर जा पहुंचा।

अन्त में एक स्थान पर उसने मारुति छोड़ दी।

थोड़ी दूर जाने पर एक खाली जाती टैक्सी उसे मिल गई।

वह होटल सूर्या पहुंच गया।

लॉबी में ऊंघते रिसेप्शनिस्ट के सामने से गुजरकर वह वहां मौजूद इकलौते पब्लिक टेलीफोन बूथ में जा घुसा।

उसने होटल अलंकार में दिलीप को फोन किया तो पता चला नीलम पर नशे का असर कम होना शुरू हो गया है और दिलीप के विचारानुसार डॉक्टरी सहायता की. आवश्यकता नहीं थी।

अजय ने उसे धन्यवाद देकर सम्बन्ध विच्छेद कर दिया।

बूथ से निकलकर वह सीढ़ियों द्वारा ऊपर पहुंचा।

अपने कमरे में दाखिल होते वक्त उसे लग रहा था मानो मनों बोझ उसके कंधों से उतर गया था।

नीलम को सुरक्षित वापस लौटा लाने से उसे उम्मीद होने लगी थी सब सही हो जाएगा। और एक आदमी को, जिसे मौत की सजा सुनाई जा चुकी थी, बेगुनाह साबित करके फांसी के फंदे से बचाया जा सकेगा। हालांकि अविनाश और पुलिस दोनों की ओर से उसे खतरा था, लेकिन अब वह 'कनकपुर कलैक्शन' के आधार पर सौदेबाजी कर सकता था, क्योंकि नीलम वापस लौट आई थी और दिलीप की हिफाजत में महफूज थी। उसने मन–ही–मन भगवान को धन्यवाद दिया जिसने सही वक्त पर दिलीप को मदद के लिए भेज दिया था।

दरवाजा अन्दर से लॉक करके उसने कपड़े उतारे और बिस्तर पर फैल गया।

उसके दिमाग में एक–एक करके सवाल उभरने लगे।

रंजना की हत्या किसने की थी?

काशीनाथ का असली हत्यारा कौन था।

क्या इंस्पैक्टर अजीत सिंह को ऐसा कोई सबूत मिल गया होगा जिससे पता चले रंजना की हत्या वाली रात अजय 'दीवान पैलेस' में था।

लेकिन इनमें से एक भी सवाल का जवाब उसके पास नहीं था।

इन्हीं सवालों के जवाब सोचते–सोचते उसे नींद ने आ दबोचा।

अगली सुबह।

वह सोकर उठा तो ग्यारह बज चुके थे।

स्नानादि से निवृत्त होने और अपना सिख भेष धारण करने के बाद उसने फोन पर ब्रेकफास्ट का ऑर्डर दे दिया।

मुश्किल से दस मिनट बाद ही उसके कमरे में नाश्ता पहुंचा दिया गया।

डटकर नाश्ता करने के बाद उसने आपरेटर से आउटलाइन मांगकर होटल अलंकार से सम्बन्ध स्थापित करके दिलीप केसवानी का नम्बर मांगा।

आशा के विपरीत, दूसरी ओर घंटी बजते ही रिसीवर उठा लिया गया और दिलीप की आवाज लाइन पर उभरी।

–"हैलो।"

–"मैं बोल रहा हूं, दिलीप।" अजय ने अपने असली स्वर में कहा।

–"शुक्र है, तुम्हारी आवाज तो सुनाई दी, वरना मैं तो समझ बैठा था तुम फिर गायब हो गए।" दिलीप का स्वर व्याकुलतापूर्ण था–"मैं सुबह से टेलीफोन से चिपका बैठा हूं।"

–"कोई खास बात है?"

–"हाँ।"

–"क्या?"

–"तुम यहां मत आना।"

अजय की रिसीवर पर पकड़ सख्त हो गई।

–"क्यों?"

–"इंस्पैक्टर अजीत सिंह तुमसे बेहद नाराज है और दोबारा तुमसे मिलना चाहता है।"

–"वजह बता सकते हो?"

–"सॉरी, यह मुझे नहीं मालूम। मैं सिर्फ इतना बता सकता हूं हालात अच्छे नहीं हैं।"

–"खैर, छोड़ो। यह बताओ नीलम कैसी है?"

–"बेहतर है। नशे का उतना प्रभाव अब उस पर नहीं है। लेकिन होश में भी वह नहीं आई है। फिर भी मैं नहीं समझता उसे डॉक्टर की जरूरत है।"

–"यू मीन शी इज इम्प्रूविंग?"

–"यस।"

–"अजीत सिंह ने उससे मिलने के लिए नहीं कहा?"

–"वह नीलम की हालत देख चुका है इसलिए जब्त किए हुए है। नीलम की हालत सुधरते ही वह कड़ी पूछताछ करेगा। वैसे मैं पूरी कोशिश कर रहा हूं वह नीलम से दूर ही रहे।"

–"ऐसा ही करते रहो।"

–"ठीक है। बाई दी वे इस वक्त तुम कहां और किस रूप में हो?"

–"मैं हरनाम सिंह कालरा हूं।"

"लेकिन हो कहां?"

–"रूम नम्बर थर्टी नाइन, होटल सूर्या।"

–"टेलीफोन नम्बर?"

अजय ने बता दिया। फिर पूछा–"यह पता लगाने की कोई उम्मीद है अजीत सिंह क्यों मुझसे खफा है या उसके पास मेरे खिलाफ क्या है?"

–"मैं कोशिश करूंगा।"

–"तुम्हारी जानकारी में क्या उसने अविनाश दीवान या लीना में से किसी को या फिर दोनों को गिरफ्तार किया है?"

–"पता नहीं। मालूम करने की कोशिश करूंगा।"

–"ठीक है।"

अजय ने सम्बन्ध विच्छेद कर दिया।

वह सोचने लगा। अजीत सिंह के खफा होने की जाहिरातौर पर एक ही वजह हो सकती है–अविनाश गिरफ्तार हो गया था और उसने इंस्पैक्टर को सब–कुछ बता दिया। लेकिन यह बात समझ में आने वाली नहीं थी कि अविनाश ने सब–कुछ बता दिया होगा, क्योंकि उस सूरत में उसे बड़ा पूरा डर रहा होगा कि स्ट्रांग रूम पुलिस की जानकारी में आ जाना था और फिर पुलिस ने उसकी तलाशी जरूर लेनी थी।

सहसा उसे याद आया, पिछली रात जब वह अविनाश से इस बारे में बातें कर रहा था तो अविनाश एक बार मुस्कराता–सा प्रतीत हुआ था। इसका मतलब, क्या अविनाश को इस बात की फिक्र नहीं थी कि पुलिस द्वारा स्ट्रांग रूम की तलाशी का अंजाम क्या होगा।

अजय इस बारे में किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सका।

लेकिन इस सिलसिले में एक और सम्भावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता था। अविनाश की बजाय लीना पुलिस की पूछताछ के दौरान टूट गई थी।

पिछली रात लीना के कमरे में टेलीफोन उपकरण के डायल पर लिखा जो नम्बर उसने देखा था वो उसे याद था।

उसने कुछ तय किया, फिर टेलीफोन आपरेटर से आउटलाइन मांगकर वही नम्बर डायल किया।

चन्द क्षण घंटी बजती रही। फिर एक अपरिचित स्वर सुनाई दिया–"हैलों!"

–"मि० अविनाश दीवान इज देअर, प्लीज?" अजय ने अपने रात वाले स्वर में पूछा।

–"नो सर।"

–"देन आई वुड लाइक टू स्पीक टू मिस लीना, प्लीज।"

–"होल्ड ऑन सर!"

अजय रिसीवर थामे इंतजार करने लगा।

करीब डेढ़ मिनट बाद जो नारी स्वर लाइन पर उभरा वो इतना अजीब–सा था, अजय यकीन नहीं कर सका उस स्वर की स्वामिनी लीना ही थी। इसलिए उसे पूछना पड़ा–"मिस लीना स्पीकिंग?"

–"यस। हू इज कॉलिंग प्लीज?"

–"वही, जो पिछली रात तुमसे मिलने आया था।" अजय रात वाले स्वर में बोला–"मुझे अफसोस है रात में तुम्हारे साथ वैसा व्यवहार करना पड़ा। मैं माफी चाहते हुए...।"

–"माफी? तुम आदमी नहीं शैतान हो।" लाइन पर लीना का लगभग चीखता–सा स्वर उभरा–"मेरी गरदन टूटने से बची है और मेरे जिस्म का पोर–पोर दर्द कर रहा है...।"

–"अपनी उस हरकत के लिए मैं वाकई शर्मिन्दा हूँ, मैडम।" अजय उसकी बात काटता हुआ बोला–"लेकिन वैसा करना मेरी मजबूरी थी...।"

–"और उस औरत को ले जाना?"

–"उस बारे में हम इत्मिनान से आमने–सामने बैठकर बातें कर सकते हैं।" अजय ने कहा, फिर यह बताने के बाद कि मारुति पिछली रात कहां छोड़ी थी, बोला–"मैं ठीक आधा घन्टे बाद रीगल रेस्टोरेंट पहुंच रहा हूं। तुम भी तब तक वहीं पहुंच जाओ। मगर ध्यान रखना पुलिस तुम्हारा पीछा न करने पाए।"

–"लेकिन...?"

–"लेकिन–वेकिन को गोली मारो।" अजय कड़े स्वर में बोला–"अगर तुम आधा घन्टे के अंदर रीगल नहीं पहुंची तो मैं इंस्पैक्टर अजीत सिंह को फोन करके बता दूंगा जिस रात रंजना की हत्या हुई अविनाश 'दीवान पैलेस' में ही मौजूद था।"

और लीना को कुछ भी कहने का मौका दिए बगैर उसने सम्बन्ध विच्छेद कर दिया।

वह नहीं जानता था उसकी इस धमकी का क्या नतीजा निकलेगा। लीना रीगल पहुंचेगी या नहीं।

उसे सिर्फ इतना मालूम था कि उसके लिए कुछ न कुछ / करते रहना जरूरी है, क्योंकि बेगुनाह मदन मोहन सेठी और फांसी के फंदे के बीच हर पल फासला कम होता जा रहा है।

* * * * * *

सिख वेषधारी अजय चाय के खोखे पर खड़ा प्रगट में चाय की चुस्कियां लेता हुआ उस रोज का अखबार पढ़ने में व्यस्त था, जबकि उसकी निगाहें सड़क पार शानदार रेस्टोरेंट के प्रवेश द्वार पर लगी थीं।

सूर्या होटल से रीगल रेस्टोरेंट ज्यादा दूर नहीं था। ऑटो रिक्शा द्वारा अजय को वहां पहुंचने में मुश्किल से दस–बारह मिनट ही लगे थे, जबकि वह जानता था, लीना को वहां पहुंचने में कम से कम आधा घन्टा जरूर लगना था।

अजय इंतजार करता रहा।

करीब चालीस मिनट बाद लीना टैक्सी से उतरती दिखाई. दी। उसके चेहरे पर व्याकुलतापूर्ण भाव साफ नजर आ रहे थे।

भाड़ा चुकाकर थके–से कदमों से चलती हुई रेस्टोरेंट में दाखिल हो गई।

कोई दस मिनट तक इंतजार करने के बाद, जब यकीन हो गया लीना का पीछा नहीं किया गया है, अजय ने चाय के पैसे चुकाए। सड़क क्रॉस की और आखिरी दफा आस–पास खोजपूर्ण निगाहें दौड़ाने के बाद वह रेस्टोरेंट में दाखिल हो गया।

रेस्टोरेंट में, लंच का समय होने की वजह से, खासा रश था।

लीना सबसे अलग–थलग दूर एक कोने वाली मेज पर सिर झुकाए बैठी थी।

अजय उसके पास पहुंचा।

–"माफ कीजिए।" वह पिछली रात वाले भारी स्वर और ठेठ पंजाबी लहजे में बोला–"मैं यहाँ बैठ सकता हूं?"

लीना ने जवाब देने की बजाय हिकारत भरी नजरों से उसे घूरा।

अजय ठीक उसके सामने बैठ गया। उसे ऐसा कोई चिन्ह लीना के चेहरे पर नजर नहीं आया जिसके आधार पर महज शक भी किया जा सके कि लीना उसे जिस रूप में देख रही थी उसके अलावा उसके किसी और रूप के होने का उसे शक भी था।

लीना से पूछे बगैर उसने पास से गुजरते एक वेटर को दो कप कॉफी का ऑर्डर दे दिया।

–"पिछली रात क्या हुआ?" अजय ने पूछा।

लीना ने जवाब नहीं दिया। वह चुपचाप बैठी गुस्से से होंठ चबाती रही।

–"मैंने तुम्हीं से पूछा है।" अजय गुर्राता–सा बोला।

लीना के चेहरे पर घबराहट भरे भाव पैदा हो गए।

–"आपके आने के बाद?" उसने अपनी गरदन पर हाथ फिराते हुए पीड़ित स्वर में पूछा।

–"हां। मेरी मौजूदगी में वहां जो–जो हुआ उसकी थोड़ी बहुत जानकारी तो मुझे है।" अजय का स्वर पैना था–"मारुति मिल गई?"

–"ज...जी हां।"

तभी वेटर कॉफी लेकर आ पहुंचा।

अजय ने नोट किया। लीना धीरे–धीरे स्वयं को संयत करती प्रतीत हो रही थी। लेकिन उसकी आंखों में भय–मिश्रित व्याकुलता के चिन्ह साफ पढ़े जा सकते थे। अजय को याद आया उससे पहली मुलाकात के वक्त लीना आत्मविश्वास से भरपूर नजर आई थी। मगर अब उसकी तमाम शोखी, बेफिक्री और होशियारी साथ छोड़ चुकी थी। पिछली रात की घटना से उसे अपने और अविनाश के लिए इस कदर खतरा पैदा हो गया नजर आ रहा था कि उसकी हालत खस्ता थी।

वेटर कॉफी सर्व करके चला गया।

–"दो पुलिस मैन कोठी की निगरानी कर रहे थे।" लीना ने कहा–"मारुति को भागती देखकर पहले तो वे उसके पीछे दौड़े, फिर जब वो गेट से गुजरकर आंखों से ओझल हो गई तो वापस लौटे। अपने अफसर के आदेश के विपरीत मजबूरन उन्हें कोठी में दाखिल होना पड़ा। वहां उन्होंने हम तीनों को बंधे पड़े पाया। हमें बंधन मुक्त करके उन्होंने अपने अफसर इंस्पैक्टर अजीत सिंह को फोन पर इत्तिला दे दी। उसने आते ही जोर–शोर से पूछताछ शुरू कर दी।" सहसा उसके चेहरे पर ऐसे भाव उत्पन्न हो गए, जिनसे जाहिर था अजीत सिंह ने उसे बुरी तरह आतंकित कर दिया था–"उसके आदमियों ने उसे बताया उन्होंने हमें मजबूती से बंधे पड़े पाया था। तभी उसे हमारी बात पर यकीन आ सका कि एक अपरिचित सरदार न जाने कैसे कोठी में घुस आया और जाती बार हमें बांधकर डाल गया था।"

अजय ने अपने कप से कॉफी की चुस्की ली।

–"इंस्पैक्टर ने अविनाश से भी पूछताछ की थी?"

–"हां।"

–"तुम दोनों ने या तुममें से किसी एक ने नीलम के बारे में भी पुलिस को बताया था?

–"नहीं।"

स्पष्ट था लीना और अविनाश दोनों भयभीत थे।

–"अविनाश ने या तुमने पुलिस को मेरा हुलिया बताया था?" अजय ने पूछा।

–"नहीं।"

–"लेकिन इंस्पैक्टर ने तो पूछा ही होगा?"

–"पूछा था। अगर हमने बताया रोशनी बहुत ही कम थी इसलिए हम सिर्फ इतना ही देख सके वह कोई अपरिचित सरदार था।"

अजय की आंखें सिकुड़ गईं।

–"और अजीत सिंह ने इस पर यकीन कर लिया?"

–"यह मैं नहीं जानती। लेकिन वह हमारी इस बात को गलत भी साबित नहीं कर सकता था। सच्ची बात तो यह है उसने अपना सारा क्रोध कोठी को वाच करने वाले अपने आदमियों पर ही उतारा। उन्होंने क्यों इतनी लापरवाही की कि उनकी जानकारी में आए बगैर कोई कोठी में घुस गया और इतना कुछ करने के बाद बचकर भाग भी गया।

–"अरे!" अजय तनिक चौंकता–सा बोला–"आपकी कॉफी तो वैसे ही रखी है। कॉफी पिओ न।"

लीना ने कप उठाकर बेमन से कॉफी का घूँट भरा।

–"अविनाश दीवान अब कहां है?" अजय ने अपनी मूंछों पर ताव देते हुए पूछा।

–"वह दीवान पैलेस गया है।"

–"कोई खास वजह?"

–"उसका अंकल और भाई वहां आने वाले है।"

अजय कुछ देर खामोश बैठा कॉफी चुसकता रहा फिर पूछा–"अविनाश से तुम्हारा क्या रिश्ता है?"

लीना की खूबसूरत आंखें चमक उठीं।

–"हम एक–दूसरे को प्यार करते हैं।" वह बड़े ही गर्वपूर्ण स्वर में बोली–"और जल्दी ही शादी करने वाले हैं।"

–"तुम्हारे विचार से रंजना दीवान की हत्या उसी ने की थी?" अजय ने बड़े ही आकस्मिक ढंग से पूछा।

–"नहीं।"

–"तो फिर तुम इस कदर भयभीत क्यों हो?"

–"क्योंकि रंजना की हत्या के वक्त अविनाश दीवान पैलेस में था।" लीना ने धीरे से कहा–"रंजना का हत्यारा अजय था, लेकिन अजय–"।" फिर शेष वाक्य अधूरा छोड़कर वह अपना होंठ काटने लगी।

–"कौन कहता है, हत्यारा अजय है?"

लीना ने जवाब नहीं दिया।

–"अविनाश कहता है?" अजय ने पूछा।

–"हत्यारा अजय ही होना चाहिए।"

–"उसके भाई हरीश दीवान के बारे में क्या ख्याल है?" अजय ने अचानक वार्तालाप का विषय बदलते हुए पूछा–"तुम उसे अच्छी तरह जानती हो?"

–"हाँ।"

–"तुम्हें यकीन है हत्या के वक्त वह विराट नगर में था?"

–"मुझे पूरा यकीन है। कल विराटनगर से उसका फोन आया था और अविनाश ने भी उसे वहां फोन किया था। रंजना की मौत से हरीश को गहरा सदमा पहुंचा होगा।" कहकर लीना तनिक रुकी, फिर गहरी सांस लेकर बोली–"वह रंजना को बेहद प्यार करता था।"

–"रंजना भी उसे उतना ही चाहती थी?"

–"हरीश से शादी करने के बाद शुरू–शुरू में तो वह खुश रही थी, लेकिन फिर कुछ उदास रहने लगी थी। ऐसा लगता था मानो उसे अपने पहले पति की याद सताया करती थी और फिर उसकी मौत के बाद तो ऐसा लगने लगा मानो उसे हरीश से नफरत हो गई। हालांकि ऐसा कुछ वह जाहिर तो नहीं करती थी मगर यह साफ नजर आता था कि वह हरीश से प्यार नहीं कर पा रही थी।"

–"क्या हरीश दीवान को भी इसकी जानकारी थी?"

–"नहीं।" लगभग सामान्य हो चुकी लीना ने जवाब दिया, फिर कॉफी का घूँट लेने के बाद पूछा–"तुम ये सब सवाल क्यों पूछ रहे हो?"

–"इसलिए कि मैं जानता हूं उस रात अविनाश दीवान पैलेस में मौजूद था।" अजय ने कहा, फिर तनिक रुककर पूछा–"अगर रंजना की हत्या अविनाश ने ही की होती तो तुमने क्या करना था?"

–"ऐसा मत कहो।" लीना ने प्रतिवाद किया।

–"तुम्हारी आवाज में उत्तना दम नहीं है इसलिए अब उसकी बेगुनाही पर तुम्हें शक होने लगा है।" अजय ने कहा। उसकी निगाहें लीना के चेहरे पर जमी थीं। लीना की खूबसूरत आंखों से झांकता भय जहां एक ओर इस बात का सबूत था कि उसे अविनाश से प्यार है, वहीं दूसरी ओर ऐसा भी लगता था मानो वह अविनाश की बेगुनाही पर शक करती प्रतीत हो रही थी–"क्या तुम जानती हो, वह चोर है? चोरी की मूल्यवान कलाकृतियों, जवाहरात वगैरा की खरीद–फरोख्त करना ही उसका पेशा है...।"

–"ओह, वह।" लीना हाथ हिलाकर हस्तक्षेप करती हुई यूं बोली मानो कोई अहम बात बता रही थी–"दौलतमंद लोगों से उनकी हराम की कमाई का थोड़ा–बहुत हिस्सा ले लेने में क्या बुराई है? दरअसल वह उनसे लेकर, जिनके पास बहुत ही ज्यादा है, उनकी मदद करता है जिन बेचारों के पास कुछ भी नहीं है या बहुत ही कम है। वह बुनियादी तौर पर अच्छा आदमी है और जो करता है दूसरों के लिए।"

अजय की आंखों में अचानक व्याप गए भावों को लक्ष्य करके सहसा वह खामोश हो गई थी। अजय को सारे सिलसिले की सच्चाई का कुछ हिस्सा साफ नजर आने लगा। मगर एकाएक उस पर यकीन वह नहीं कर पा रहा था।

–"क्या अविनाश खुद ही दीवान पैलेस को लूटना चाहता था?"

लीना ने जवाब नहीं दिया।

–"क्या यह सही है?" अजय ने पूछा, –"या जब उसने देखा। कि वह एक चोर वहां मौजूद था तो हातिमताई की औलाद तुम्हारा अविनाश अपने अजीज गरीबों को देने के लिए खुद ही जवाहरात हथियाना चाहता था? मैं जानना चाहता हूं आखिर सच्चाई क्या है?"

लीना सिर झुकाए खामोश बैठी रही।

–"मैं जानता हूं, उस रात वह दीवान पैलेस में मौजूद था।" अजय प्रभावपूर्ण स्वर में बोला–"और उसकी उस रात वहां मौजूदगी के सबूत भी आसानी से जुटाए जा सकते हैं। इसलिए बेहतर होगा उसकी जिन्दगी से खिलवाड़ करने की बजाय असलियत बता दो। मैं तुम्हें आखिरी मौका दे रहा हूं।"

लीना ने धीरे–धीरे सिर ऊपर उठाया।

उसकी गरदन तनी हुई। आंखें चमक रही थीं।

–"आपका अनुमान सही है।" वह गर्वपूर्ण स्वर में बोली–"अविनाश का अंकल दीवान सुमेरचन्द वाकई चोर है। अपनी चोरी को दौलत की आड़ में छपाने की नीयत से छोटा–मोटा दान देकर दानी होने का कामयाब ढोंग करता रहता है, जबकि असलियत यह है दीवान पैलेस में चोरी की बहुमूल्य कलाकृतियां, जवाहरात वगैरा का ढेर संग्रह के रूप में मौजूद है। जिस रात अजय वहां पहुंचा, उस संग्रह में से काफी कुछ उड़ा लेने का शानदार मौका था। अनुमान था कि अजय किन्हीं खास जवाहरात की तलाश में आया था। और उसने दीवान पैलेस में सेंध लगानी थी तब अविनाश...।"

–"अविनाश को किसने बताया?" अचानक अजय ने उसकी बात काटते हुए पूछा–"कि अजय ने आकर दीवान पैलेस में सेंध लगानी थी?"

–"मैं नहीं जानती।"

–"बिना बताए अविनाश को यह पता नहीं चलना था। किसने उसे बताया?"

–"पता नहीं।

अजय को उसकी बात पर अविश्वास का कोई कारण नजर नहीं आया। हालांकि अपने सवाल का जवाब पाना भी उसके लिए जरूरी था, लेकिन फिलहाल इस बारे में वह अनुमान ही लगा सकता था।

उसके अनुमानानुसार ऐसा करने वाली सिर्फ रंजना ही हो सकती थी। लेकिन रंजना ने ऐसा क्यों करना था। इसका कोई जवाब उसे नहीं सूझ सका।

–"अविनाश ने भी कुछ जवाहरात चुराने थे जिनके बारे में वह यकीनी तौर पर जानता है कि वे चोरी के हैं।" लीना कह रही थी–"इसका सबसे बड़ा फायदा यह होना था कि चोरी का इल्जाम अजय या किसी अज्ञात चोर पर लगना था। लेकिन यह काम अविनाश की योजना के मुताबिक नहीं हो सका और अजय जवाहरात ले जाने में कामयाब हो गया।

मगर अविनाश अजय की साथिन नीलम को उड़ा लाया, और...।" अचानक लीना चुप हो गई।

–"योजना तो कामयाब हुई ही नहीं।" अजय, नीलम के बारे में बातचीत को अहमियत न देने वाले अन्दाज में बोला–"दीवान पैलेस में अपनी मौजूदगी के कारण अविनाश के हत्या के सन्देह के अपराध में फंसने की नौबत और आ गई।"

–"यह गलत है।"

–"क्या?"

–"हत्या के सन्देह के अपराध वाली बात।"

–"काश यही सच हो।" अजय ने कहा–"जब वह वापस लौटे तो उसे बोल देना मैं उससे मिलने आऊंगा।"

लीना ने मशीनी अन्दाज में सिर हिलाकर सहमति दे दी।

अजय खड़ा हो गया।

लीना अपनी कुर्सी पर बैठी रही।

अजय विभिन्न मेजों के बीच से गुजरता हुआ रेस्टोरेंट से बाहर आ गया।

किसी ने भी उसका पीछा नहीं किया।

वह ऑटो रिक्शा में सवार हुआ और होटल अलंकार की ओर रवाना हो गया।

उसने भली–भांति आश्वस्त होने के बाद कि आस–पास पुलिस की मौजूदगी का कोई चिन्ह नहीं था, होटल के सम्मुख ऑटो रिक्शा रुकवाया। भाड़ा चुकाकर होटल में दाखिल हो गया।

लॉबी में खासा रश था।

किसी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किए बगैर वह सीढ़ियों द्वारा चौथे खंड पर पहुंचा।

सुइट नंबर 417 का दरवाजा भीतर से लॉक्ड था। उसने धीरे–से दस्तक दी। लेकिन दरवाजा नहीं खुला। वह समझ गया नीलम को अभी होश नहीं आया।

वह बगल वाले सुइट के सम्मुख पहुंचा। उसका दरवाजा भी लॉक्ड था। इसका मतलब दिलीप केसवानी भी वहां नहीं था।

गलियारे में कोई नहीं था।

उसने गुच्छे की मदद से प्रवेश द्वार खोला और आसानी से भीतर दाखिल हो गया।

दरवाजा पुनः बंद करके वह बैडरूम में पहुंचा।

नीलम बिस्तर पर गहरी नींद में सोयी पड़ी थी। उसका चेहरा न तो रात की भांति पीला नजर आ रहा था और न ही तनावपूर्ण। उसके बाल संवरे हुए थे और चेहरे पर मेकअप का कोई निशान नहीं था। जाहिर था उसकी सही देखभाल की गई थी। यही वजह थी वह तमाम भय एवं चिंताओं से मुक्त चैन से सोई पड़ी। नजर आ रही थी।

सहसा हल्की–सी आहट सुनकर वह बालकनी की ओर पलटा और आगे बढ़कर दरवाजा खोल दिया।

अगले ही क्षण दिलीप भीतर दाखिल हुआ।

बैडरूम में एक अपरिचित सिख युवक को खड़ा पाकर वह बुरी तरह चौका और तुरन्त जेब से रिवाल्वर निकालकर उस पर तान दी।

–"कौन हो तुम?" उसने पूछा–"और यहां क्या कर रहे हो?"

अजय मुस्कराया।

–"आखिर तुम भी धोखा खा गए, दिलीप।" वह अपने सामान्य स्वर में बोला।

दिलीप आश्चर्य से विस्फारित नेत्रों से उसे ताकने लगा।

–"तुम, अजय!'' वह अविश्वासपूर्वक बोला–"कमाल है। मैं तुम्हें वाकई नहीं पहचान पाया। मानना पड़ेगा मेकअप करने में भी जवाब नहीं है तुम्हारा।" और रिवाल्वर वापस अपनी जेब में रख लिया। फिर जल्दी से दरवाजा बन्द करने के बाद कहा–"तुमने यहां आकर ठीक नहीं किया।"

–"क्यों?" अजय ने पूछा।

–"इंस्पैक्टर अजीत सिंह...।"

–"मुझे इस भेष में नहीं पहचान पाएगा।" अजय ने कहा–"तुम फिक्र मत करों।"

–"मेरे फिक्र करने न करने से हालात नहीं बदलेंगे।" दिलीप तनावपूर्ण स्वर में बोला–"मेरी समझ में नहीं आ रहा है क्या किया जाए। आओ, बाहर बैठते हैं।"

दोनों सुइट के बाहरी कमरे में सोफा चेअर्स पर एक–दूसरे के सामने बैठ गए।

–"मैं कुछ ही देर पहले दीवान पैलेस से लौटा हूं।" दिलीप बोला–"रंजना के भाई की हैसियत से ही मैं वहां पहुंच पाया था, वरना दीवान फैमिली में किसी से मेरी जान–पहचान नहीं है, यहां तक कि रंजना के पति हरीश से भी नहीं। इसलिए नहीं कि मैं उसे, पसंद नहीं करता, बल्कि इसलिए कि मैं शुरू से ही रंजना द्वारा काशीनाथ से तलाक लेने और हरीश से उसके शादी करने के खिलाफ रहा हूँ। शादी में भी शामिल नहीं हुआ था। लेकिन इस तथ्य से इन्कार नहीं किया जा सकता कि उसके हत्यारे को मैं छोडूंगा नहीं। एक बार पता लगने की देर है फिर अव्वल तो मैं उसे कानून से नहीं बचने दूंगा और अगर किसी तरह बच भी गया तो मैं खुद उसकी जान ले लूंगा।"

–"मैं जानता हूं तुम पर क्या कुछ गुजर रही है।" अजय शांत स्वर में बोला–"रंजना के लिए तो इससे ज्यादा कुछ नहीं किया जा सकता। लेकिन मदन मोहन सेठी को हम अभी भी मौत के मुंह से बचा सकते हैं।"

दिलीप ने तुरन्त उसे घूरा।

–"कैसे?" उसने तीव्र स्वर में पूछा–"तुम्हारे हाथ इस सिलसिले में कोई सबूत लगा है?"

–"नहीं, मेरे पास ऐसा कोई सबूत नहीं है। लेकिन बड़ी ही सीधी और साफ बात है कि काशीनाथ और रंजना का हत्यारा एक ही व्यक्ति है। अगर हम उसका पता लगाने में कामयाब हो जाते हैं तो मदन मोहन खुद–ब–खुद बेगुनाह साबित हो जाएगा।"

–"इसके लिए काफी वक्त चाहिए, अजय। जब तक तुम हत्यारे का पता लगाओगे उससे पहले ही मदन मोहन फांसी के फंदे पर झूल चुका होगा। हमारे पास केवल एक हफ्ता है, क्या इतने कम समय में मय सबूत हत्यारे का पता लगा सकोगे?"

–"हां।" अजय ने जवाब दिया–"बशर्ते कि मोटिव का पता चल जाए।"

–"मोटिव! मेरी समझ में तो यह भी नहीं आ रहा है काशीनाथ और रंजना का हत्यारा एक ही व्यक्ति कैसे हो सकता है।" दिलीप ने असमंजसतापूर्वक कहा–"जैसा कि हम सब जानते हैं काशीनाथ की हत्या हत्यारे ने सिर्फ इसलिए की थी क्योंकि उसने हत्यारे को तिजोरी तोडते रंगे हाथों पकड़ लिया था, जबकि रंजना की हत्या की कोई वजह नहीं है। फिर तुम किस मोटिव की बात कर रहे हो?"

–"हत्यारे द्वारा हत्या की जाने के मोटिव की, जो कि सम्भवतः यह भी हो सकता है रंजना को पता चल गया था काशीनाथ का हत्यारा कौन था।"

–"लेकिन कैसे? उस वक्त तो वह विराट नगर से दूर विशालगढ़ में थी।"

–"अजय लापरवाही से बोला–"इस तरह अनुमान लगाते रहने से कोई फायदा नहीं होगा। तुम यह बताओ, दीवान पैलेस में कौन–कौन था?"

–"दीवान सुमेरचन्द और हरीश वापस लौट आए हैं। अविनाश भी वहीं था। बाद में इंस्पैक्टर अजीत सिंह भी आ पहुंचा था।" दिलीप बोला–"मेरा विचार है अगर तीनों चाचा–भतीजों से गहरी पूछताछ की जाए तो कोई नतीजा निकल सकता है।" तनिक रुकने के बाद कहा–"मुझे अफसोस है, अविनाश ने तुम्हारे लिए बड़ी विकट स्थिति पैदा कर दी है।"

–"क्या मतलब।"

–"उसने इंस्पैक्टर अजीत सिंह से साफ–साफ कहा है रंजना की हत्या तुमने की थी। इसलिए तुम्हें फौरन गिरफ्तार किया जाना चाहिए।"

अजय कुछ नहीं बोला।

–"मैं यकीनी तौर पर कह सकता हूं उन तीनों में से किसी एक ने ही रंजना की हत्या की थी।" दिलीप का कथन जारी था–"और अगर रंजना और काशीनाथ का हत्यारा वाकई एक ही व्यक्ति है तो उसकी हत्या भी उन्हीं में से किसी ने की होगी।" उसने गहरी सांस ली–"मगर मेरे यकीन करने से क्या होगा। काशीनाथ की हत्या के अपराध में मदन मोहन को मौत की सजा सुनाई जा चुकी है और रंजना की हत्या के अपराध को लेकर वैसा ही खतरा तुम्हारे सिर पर मंडराने लगा है। अगर तुम पकड़े गए तो…।"

–"यह नामुमकिन है।" अजय उसकी बात काटकर बोला, हालांकि वह मन ही मन कांप गया था।

दोनों देर तक खामोश बैठे रहे।

अन्त में दिलीप बोला–"मैं जानता हूं तुम्हें फंसाना आसान नहीं है। हर किस्म के हालात से निपटना तुम्हें आता है। फिर भी मेरी सलाह है खतरे को कम मत समझो। इंस्पैक्टर अजीत सिंह एक कुशल एवं अनुभवी पुलिस आफिसर है और दीवान सुमेरचन्द इस शहर में तोप जैसी बड़ी चीज का दर्जा रखता है। इसलिए अजीत सिंह को जल्दी ही ठोस नतीजा निकालना पड़ेगा और वे तीनों तुम्हें फंसाने की हर मुमकिन कोशिश करेंगे। अविनाश इस दिशा में पहल कर भी चुका है। जहां तक मैं समझता हूं, तुम्हारे लिए ऐसे हालात पैदा कर दिए हैं कि अजीत सिंह देखते ही तुम्हें गिरफ्तार कर लेगा और फिर तुमसे अपराध कबूलवाने में अपनी ओर से कोई कसर बाकी नहीं छोड़ेगा।"

–"ठीक है।" अजय गहरी सांस लेकर बोला–"तुम नीलम से पुलिस को दूर रखना। जो होगा मैं सम्भाल लूंगा।" और खड़ा हो गया।

वह बैडरूम में गया।

एयर बैग में एक जोड़ा कपड़े तथा तथा अन्य कुछ चीजें डाल ली और नीलम पर अन्तिम दृष्टि डालकर वह सुइट से बाहर आ गया।

वह लिफ्ट द्वारा नीचे पहुंचा।

लॉबी में अथवा बाहर कहीं पुलिस द्वारा निगरानी किए जाने का कोई चिन्ह नहीं दिखाई दिया।

वह उस स्थान पर पहुंचा जहां पिछले रोज अपनी किराए की एम्बेसेडर पार्क की थी।

वह कार में सवार हुआ और इन्जन स्टार्ट करके आगे बढ़ा दी।

वह उस पार्किंग लॉट में पहुंचा जहां स्टैंडर्ड कार, जो अरुण ने अपने नाम से उसके लिए किराए पर ली थी, और जिसमें 'कनकपुर क्लैक्शन' छुपा हुआ था, पार्क की हुई थी।

अन्य लोगों की भांति अटेंडेंट भी सिख वेष में उसे नहीं पहचान पाया था।

लेकिन अजय ने कुछ देर के लिए एम्बेसेडर पार्क करने के बहाने बड़ी सफाई से देखकर भली–भांति तसल्ली कर ली कि स्टैंडर्ड यथावत् अपने सही स्थान पर मौजूद थी।

पुनः एम्बेसेडर में सवार होकर वह सुनसान बीच पर पहुंचा।

कार के ड्राइविंग मिरर की सहायता से उसने अपना तमाम सिख वेष उतारकर एयर बैग में बन्द कर दिया। एयरबैग से दूसरा लिबास निकालकर पहना और अच्छी तरह देख चुकने के बाद कि वह सिर्फ अजय ही था कार स्टार्ट करके आगे बढ़ा दी।

वह दीवान पैलेस की ओर ड्राइव करने लगा।

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