अखिलेश की रहस्यमय मुस्कान में इजाफा होता जा रहा था । बोला---“लेकिन यह जानकर तुम्हें आश्चर्य होगा कि राजदान का असली प्लान यह भी नहीं है।"


“कमाल की बात है।” अवतार कह उठा--- "फिर क्या प्लान है उसका ?”


“पिछली रात जब समरपाल राजदान बना हुआ था और देवांश के साथ खिलवाड़ कर रहा था तो अचानक वहां ठकरियाल पहुंच गया। उससे समरपाल की हाथापाई हुई। यह सब उनकी नजर में 'अचानक' हुआ मगर मेरी और समरपाल की नजरों में नहीं। हमें मालूम था ---देर-सवेर

ठकरियाल को वहां पहुंचना है। राजदान के लेटर में लिखे प्लान के मुताबिक दिव्या और देवांश को वातों में लगाये रखकर समरपाल को तब तक वहां रुकना था जब तक टकरयाल पहुंच न जाये। उसकी गोली से बचने के लिए बुलेट प्रूफ जैकेट पहनकर गया था वह। मैंने उससे जानवृझकर हाथापाई की...।”


“क्यों?”


“ताकि गुत्थमगुत्था के  दरम्यान वह समरपाल का मूँह सूघ सके ।


" मुंह सूंघने से क्या मिलना था उसे ?”


“सुल्फे की गंध मिली होगी। इससे वह इस नतीजे पर पहुंचा होगा कि राजदान का क्लोन अखिलेश है ।"


“ओह! तो इसलिए राजदान ने तुझे उनके सामने सुल्फा भरी सिगरेट पीने के निर्देश दिये थे?”


दरवाजे के पीछे छुपे खड़े टकरियाल के रोंगटे खड़े हो गये।


दिमाग में ख्याल उभरा --- 'हे भगवान, कितने बड़े धोखे में फंस गया मैं! वह सब भी मरे हुए राजदान के प्लान के मुताबिक हुआ था ?'


अवतार ने पूछा--- "बात हवा के तूफानी झोंके की तरह खोपड़ी के ऊपर से गुजर रही है यार । भला ऐसा क्यों चाहता था राजदान कि टकरियाल तुझे राजदान का क्लोन समझे?”


“मान ले ऐसा हो गया हो । अर्थात् उसने 'राजदान' के मुंह से सुल्फे की गंध सूंघ ली हो । जान गया हो वह मैं हूं। उस अवस्था में ठकरियाल क्या करेगा ?”


“करेगा क्या?” अवतार ने कहा--- "सबसे पहले अपने संदेह की पुष्टि करेगा । वह जानता ही है तू सेन्टूर होटल के इस के सुईट में है। 'सयाना' होगा तो तेरी गैरमौजूदगी में यहां आयेगा। जांच-पड़ताल करेगा। सुईट की तलाशी लेगा ताकि उसके संदेह को विश्वास में बदलने वाला कोई सूत्र मिल जाये। हमारे बीच होने वाली बातों को सुनने की चेष्टा भी कर सकता है ।”


“ये सारी कल्पनाएं राजदान मरने से पहले ही कर चुका था ?” अखिलेश ने विस्फोट सा किया--- "अपने लेटर में उसने लिखा है --- 'जब तुम होटल के कमरे में ये बातें कर रहे होगे तो ठकरियाल वहीं छुपा इन बातों को सुन रहा होगा'।”


“क- क्या ?” अवतार, भट्टाचार्य और वकीलचंद एक साथ

चौंक पड़े।


उन सबसे ज्यादा बुरी तरह चौंका दरवाजे के पीछे खड़ा ठकरियाल ।


हे भगवान!


क्या यह सच है ?


इस वक्त, जो वह यहां खड़ा उनकी बातें सुन रहा है यह भी राजदान के प्लान के मुताबिक है? 


मरने से पहले वह शैतान यह भी जानता था ?


यह कि इस स्पाट पर वह छुपकर उनकी बातें सुनेगा ?


अखिलेश की बात से तो ऐसा ही लगता है।


कुछ सुझाई नहीं दिया ठकरियाल को, दिमाग जाम होकर रह गया था।


“ यहां यह मत समझ बैठना, समरपाल सचमुच सुल्फे का धसकी है।" अखिलेश कहता चला गया "जिस तरह - राजदान ने दिन में मुझे सुल्का पीने का निर्देशा दिया था उसी तरह रात में समरपाल को पीकर विला में पहुंचने के

लिए कहा था ताकि संघते ही टर्कारयाल खुद को नीरअंदाज समझता हुआ इस नतीजे पर पहुंच जाये कि वह राजदान के क्लीन को 'ताड़' चुका है। अगर वह मेरी गैरमौजूदगी में यहां पहुंचा होगा तो सुइट की तलाशी में वे सभी चीजें | मिली होंगी जिनमे राजदान वना जा सकता है।”


“लेकिन उसे इस भ्रमजाल में फंसाने से फायदा क्या होने वाला है?”


"मांच - - - गजदान की सोचों के मुताविक क्या अपनी कामयाबी के नशे में चूर वह इस वक्त यहीं-कहीं छुपा हमारी बातें नहीं सुन रहा होगा ?” 


ठकरियाल के जहन में बड़ी तेजी से विचार कौंधा---'भाग! भाग ठकरियाल! तू जो यह सोच रहा था कि तू अपने टेलेन्ट से यहां पहुंचा है, वह गलत है। बहुत बड़ी खुशफहमी का शिकार हो गया तृ | तृ तो यहां भी आया है तो सिर्फ उस जाल में फंसकर |


घबराकर उसने तेजी से पलटना चाहा।


पलटकर भाग जाना चाहा ।


मगर ।


पीठ पर जोरदार ठोकर पड़ी ।


हलक से चीख निकली।


मुंह के बल बैडरूम में बिछे कालीन पर जा गिरा वह ।


***,


अवतार, भट्टाचार्य और वकीलचंद चौंक पड़े ।


हड़बड़ाकर अपने स्थानों से खड़े हो गये ।


नजरें ठकरियाल पर स्थिर थीं ।


उस ठकरियाल पर जो अभी तक पेट के बल कालीन पर पड़ा था। आश्चर्य के जितने भाव उसके चेहरे पर थे उतने ही अवतार, भट्टाचार्य और वकीलचंद के चेहरों पर भी थे।


अखिल नजर आ रहा था। उसके मुँह से खुद तक निकला --- " इसका मतलब यह यहीं था। कमाल हो गया यह तो। हैरतअंगेज तरीके से कदम-कदम पर ठीक वही हो रहा है जो मरने से पहले राजदान न केवल सोच चुका था बल्कि लेटर में मुझे लिख भी चुका था । बस अवतार का जिक्र नहीं है उसके लेटर में | लिखा है। --- 'जब तू वकीलचंद और भट्टाचार्य को यह सब बता रहा होगा, ठकरियाल सुईट में कहीं छुपा बातें सुन रहा होगा । इसलिए समरपाल को अपने साथ सुईट में मत लाना। उसकी ड्यूटी ठकरियाल पर नजर रखने के लिए लगाना क्योंकि तेरे अंतिम शब्द सुनकर वह घबरा जायेगा। भागने की कोशिश करेगा मगर, समरपाल भागने नहीं देगा उसे । ”


दरवाजे पर समरपाल नजर आया ।


उसके होंठों पर मुस्कान थी ।


हल्की लंगड़ाहट के साथ आगे बढ़ता हुआ बोला--- "इस बात पर आश्चर्य मुझे भी है कि हर कदम पर केवल वही हुआ जो राजदान साहब अट्ठाइस तारीख को सोच चुके थे मगर अस्वाभाविक कहीं कुछ भी नहीं है। उन्होंने प्लान ही ऐसा बनाया था कि हर कदम पर वही होना था, जो हुआ। इस अंतिम घटना को ही लो --- कितना स्वाभाविक था सबकुछ। मेरे मुंह से सुल्फे की गंध सूंघकर इसे यह समझना ही था, क्लोन अखिलेश है। यह समझने के बाद इसे यहां आना ही था। तलाशी लेनी ही थी सुईट की। आप लोगों की बातें सुनने के लिए रुकना ही था ।” 


बुरी तरह बौखलाये ठकरियाल ने अपने स्थान पर पड़े ही पड़े दायां हाथ धीरे-धीरे अपनी बैल्ट की तरफ सरकाना शुरू किया ।


वहां उसकी सर्विस रिवाल्वर थी |


परन्तु ।


हाथ अभी दूर ही था कि अखिलेश ने आगे बढ़कर उस पर अपना जूता रख दिया।


...उकरियाल समझ गया ---यह पैंतरा भी नहीं चलेगा ।


अखिलेश झुका। उसके पेट और बैल्ट के बीच फंसा रिवाल्वर निकालकर अपने कब्जे में लिया और कहा--- "उठकर खड़े हो जाओ इंस्पेक्टर साहब । सम्मान पूर्वक बैठो।”


ठकरियाल ने हुक्म का पालन किया ।


एक- एक नजर सभी पर डाली उसने ।


अवतार पर भी । जानने की कोशिश की --- 'अब ' उसका क्या रुख है?


मगर जान न सका ।


उसके चेहरे पर केवल.... और केवल आश्चर्य के भाव थे । समरपाल ने पूछा--- “अगर तुम्हें इतना सब इतनी पहले से मालूम था तो मरने ही क्यों दिया अपने मालिक को ?”


“मुझे रात के एक बजे सबकुछ पता लगा, तब तक राजदान साहब मर चुके थे ।”


“मतलब?”


“उनतीस अगस्त की शाम चार बजे राजदान साहब ने मुझसे फोन पर कहा---समरपाल, रात के एक बजे तुम्हें चौकीदार से छुपकर 'राजदान एसोसिएट्स' के ऑफिस में पहुंचना है।


वहां हम तुम्हें मिलेंगे।' मैंने बहुत से सवाल किये, किसी का जवाब नहीं दिया उन्होंने यह भी कहा --- 'सर, आपकी तबीयत तो वैसे ही ठीक नहीं है। कहां रात के एक बजे ऑफिस आते फिरेंगे। मैं विला ही आ जाता हूं', उन्होंने मुझे डांट दिया। कहा --- सवाल मत करो समरपाल, केवल वह करना है, जो हमने कहा है।' इस हुक्म के बाद उन्होंने फोन काट दिया । "


“फिर?”


“ठीक एक बजे आफिस पहुंचा। वहां राजदान साहब नहीं बल्कि उनकी टेबल पर एक चाबी के नीचे उनका लेटर रखा था । लेटर मेरे नाम था । पहली लाइन पढ़ते ही हकबका उठा मैं। लिखा था---‘समरपाल, जब तक तुम इस लेटर तक पहुंचोगे तब तक मैं मर चुका होऊंगा। उसके बाद - - - लेटर में थोड़े हेर-फेर के साथ लगभग वही सब लिखा था जो उन्होंने अखिलेश को लिखे लेटर में लिखा है। मुझे कब, कहां, क्या करना है --- सारे निर्देश विस्तारपूर्वक थे। लिखा था---' इस काम के लिए तुम्हें ही चुनने के पीछे दो कारण हैं। पहला... तुम हमेशा मेरे विश्वस्त और वफादार साथी रहे हो । दूसरा - - - तुम्हारी कद-काठी मुझसे मिलती है । बस अपनी लंगड़ाहट पर थोड़ा काबू पाना होगा । जिस चाबी से दबा ये लैटर तुम्हें मिला है वह मेरी पर्सनल अलमारी की चाबी है । उसे खोलो ! उसमें तुम्हें एक पैकिट, मेरा मोबाइल फोन, कुछ

रुपये और कैमरा मिलेगा। पैकिट में वह सबकुछ है जिसके इस्तेमाल से तुम राजदान बन सकते हो । कैमरा उस शख्स का फोटो खींचने के लिए है जो बबलू के कमरे में उसे फंसाने वाले सुबूत प्लान्ट करेगा। पैसे इस मिशन पर खर्च होंने । वहां से मैं सीधा विला पहुंचा। करीब डेढ़ बजा था उस वक्त । दिव्या, देवांश और ठकरियाल उस वक्त लॉबी में थे। "


“बबलू, स्वीटी, सत्यप्रकाश और सुजाता कहां हैं?” अवतार ने पूछा।


हल्की मुस्कान के साथ समरपाल ने ठकरियाल की तरफ इशारा करके कहा --- “राजदान साहब की तरफ से इसके सामने बताने की परमीशन नहीं है।”


“मानना पड़ेगा यारो! अपना वह यार था पहुंचा हुई चीज जिसका नाम राजदान था ।” अवतार कह उठा--- "मैं तो खैर इत्तेफाक से यहां पहुंच गया मगर पहुंचने के बाद जो कुछ जाना है, तबियत ग्लैड हो गई। पहली बार महसूस किया---आदमी अगर ब्रिलियेन्ट हो तो किसी खास मकसद को पूरा करने के लिए मरने के बाद भी अपने वफादार यार - दोस्तों में जिन्दा रह सकता है। क्या प्लान बनाया है पट्ठे ने! अट्ठाइस अगस्त को ही जानता था - - - इस वक्त, यह शख्स तुम सबके बीच बेबस हुआ बैठा होगा । मगर..


"मगर ?”


“यह सोचकर दिमाग एक बार फिर अटक जाता है कि यहां से आगे क्या प्लान है अपने यार का? उसने यहां यह सिच्वेशन क्रियेट की तो क्यों की? अर्थात् --- क्यों जानबूझकर इस 'स्पॉट' पर आप सबका भेद ठकरियाल पर खोला ?”


“क्योंकि राजदान के मुताबिक इसकी सजा पूरी हो चुकी है।"


“मतलब?”


उसके सवाल का जवाब देने की जगह अखिलेश ठकरियाल की तरफ बढ़ा। उसके नजदीक पहुंचकर बोला--- "इतना तो तुम समझ ही गये होगे कि यहां अपने पैरों से चलकर जरूर आये हो मगर अपनी मर्जी से नहीं आये। बाकायदा 'सुल्फाई' निमंत्रण देकर बुलाये गये हो।”


“ पकड़ा जाने से पहले तो यह यही सोच रहा होगा --- अपनी मर्जी से आया है।” वकीलचंद ने कहा- -- “बल्कि यह सोचकर अंदर ही अंदर फूला नहीं समा रहा होगा कि -- क्या तीर मारा है। सुल्फे की गंध से ही ताड़ गया, क्लोन अखिलेश है।"


ठकरियाल के पास चुप रहने के अलावा कोई चारा नहीं था।


जीवन में पहले कभी इतनी बुरी तरह नहीं फंसा था वह ।


अखिलेश बोला "अपने लेटर में राजदान ने तुम्हें खुद बिलिये शरस कहा है। इसलिए मैं समझता हूं तुम खुद समझ रहे होंगे कि जितना मसाला हमारे पास है, अगर चाहें तो उसके इस्तेमाल से तुम्हें फांसी के फंदे तक पहुंचा सकते हैं। बड़ी आसानी से हम यह साबित कर देंगे कि दिव्या और देवांश ने राजदान की हत्या की। एक पुलिस ऑफिसर होने के बावजूद तुमने पांच करोड़ के फेर में न केवल उनका साथ दिया बल्कि बेकुसूर बबलू को फंसाने का षड्यंत्र भी रचा।


ठकरियाल अब भी चुप रहा।


"जवाब दो इंस्पेक्टर, मैंने ठीक कहा या गलत ?”


"बस इतना ही कह सकता हूं।" ठकरियाल बोला--- "मैं जीवित लोगों से कभी नहीं हारा । एक मरे हुए आदमी ने कदम कदम पर शिकस्त दी है।”


"जिस चक्रव्यूह में तुम फंसा चुके हो, बात अब यहां केवल घर जीत तक सीमित नहीं रह गई बल्कि जिन्दगी और मौत के बीच अटकी हुई है। जिन्दगी और मौत में से तुम्हें किसी


एक को चुनना है।"


“क्या कहना चाहते हो ?”


“अवतार ने अभी-अभी तुम्हारे सामने एक सवाल किया था । यह कि तुम्हें यहां क्यों बुलाया गया ? क्यों सारे भेद खोले गये तुम पर ? मेरा जवाब था --- 'राजदान के मुताबिक इसकी सजा पूरी हो चुकी है।' हकीकत यही है । राजदान ने अपने लेटर में लिखा है---‘अखिलेश, टकरियाल ने केवल मुझसे रिश्वत लेने का जुर्म किया था। यह जुर्म इतना संगीन नहीं है कि उसे मौत दी जाये । देखा जाये तो तुम्हारे चंगुल में फंसने तक वह अपने जुर्म की मुकम्मल सजा भोग चुका होगा । इसलिए तुम उसे एक ऑफर दोगे। मौत से बचने का ऑफर । यह उसकी मर्जी होगी, ऑफर कुबूल करे या न करे । तुम्हारा काम होगा जैसा वह चाहे, वैसा करना' ।” 


“मैं समझ नहीं पा रहा हूं, कैसे ऑफर की बात कर रहे हो तुम ?”


“बड़ी सीधी सी बात है, तुम्हें दिव्या और देवांश के खिलाफ हमारी मदद करनी होगी। उनकी सजा अभी पूरी नहीं हुई है।"


“ और अगर मैंने मदद नहीं की तो तुम लोग मुझे फांसी के

फंदे पर पहुंचा दोगे । ”


“ठीक लिखा है राजदान ने --- वाकई ब्रिलियेन्ट हो ।”


“ मदद करने की सूरत में?”


"दिव्या और देवांश की सजा पूरी होने के बाद हम लोग अपनी-अपनी दुनिया में लौट जायेंगे । भविष्य में कभी किसी को भनक तक नहीं लगेगी--- राजदान मर्डर केस के दरम्यान तुमने ऐसा कुछ किया था जो नहीं करना चाहिए था। " 


“सजा क्या देनी चाहते हो उन्हें?”


“हम कौन होते हैं सजा देने वाले। सजा तो मरने से पहले राजदान मुकर्रर कर गया है।” “मैं उसी सजा के बारे में पूछ रहा हूं। "


“अभी तो अपना फैसला भी नहीं सुनाया तुमने ।”


“फैसला सुनाने के बाद बता दोगे?”


“अगर तुमने ऑफर ही कुबूल न किया तो..


"मैं ऑफर कुबूल करने की सूरत में पूछ रहा हूं।"


“नहीं । क्लाईमेक्स के बारे में नहीं बताया जायेगा।" अखिलेश स्पष्ट कहा--- "इजाजत ही नहीं है राजदान की तरफ से । हां, अगले या जरूरत पड़ी तो इससे अगले स्टैप के बारे में जरूर बताया जा सकता है ।"


“क्या लिखा है राजदान ने? मैं ये ऑफर कुबूल करूंगा या नहीं करूंगा ?"


“करोगे।”


“अगर न करूं?”


“राजदान ने लिखा है--- 'ऐसा हो नहीं सकता' ।”


“कारण भी लिखा है कुछ ?”


“ इसे पढ़ लो ।” कहने के साथ अखिलेश ने अपनी जेब से एक कागज निकालकर उसे पकड़ा दिया ।


ठकरियाल ने कागज लिया । खोला पढ़ा | लिखा था-


“ठकरियाल, मेरा यह लेटर अखिलेश तुम्हें तब देगा जब तुम पूरी तरह उसके, भट्टाचार्य, वकीलचंद और समरपाल के चंगुल में फंस चुके होगे। नाज-नखरे भले ही तुम चाहे जितने दिखाओ, चाहे जितनी एक्टिंग करो मगर मैं जानता

हूं, अंततः मेरे दोस्तों का ऑफर मंजूर करोगे । इसलिए नहीं कि तुम मौत से डरते मौत से डरते हो बल्कि इसलिए क्योंकि --- हरामी नम्बर एक हो तुम | समझ चुके हो --- इस मिशन से अब पांच करोड़ तो क्या, पांच फूटी कौड़ी भी तुम्हारे हाथ लगने वाली नहीं हैं। ऐसे में भला तुम दिव्या और देवांश का साथ क्यों देने लगे? कोई सगे वाले तो हैं नहीं ये तुम्हारे । और फिर तुम तो उनमें से हो जो अपने स्वार्थ की खातिर सगे वालों तक की गर्दन नापने से न हिचकें ।" 


तुम्हारे द्वारा इस कुबूल करने के पीछे एक दूसरा कारण भी होगा। यह कि--- जब तुम्हें यह नजर आयेगा, ऑफर कुबूल न करने की सूरत में मेरे दोस्त तुम्हें यहां से उठाकर सीधे बड़े पुलिस अफसरों की अदालत में ले जाकर पटकने वाले हैं तो तुम सोचोगे --- इससे बेहतर इन्हें चकमा दिया जाये। फिलहाल ऑफर कबूल करने की एक्टिंग की जाये। मौका लगते ही इन्हें बताया जाये कि ठकरियाल क्या चीज है? अर्थात् मौके की तलाश में तुम ऑफर कबूल का नाटक करोगे । मगर फिलहाल --- करोगे ऑफर कुबूल ही । ना कुबूल नहीं कर सकते क्योंकि उसमें नुकसान ही नुकसान हैं, फायदा एक भी नहीं है और तुम जैसा हरामी आदमी वह काम कर ही नहीं सकता जिसमें फायदा न हो । 


इसके बावजूद मेरी सलाह है --- ऐसा कोई इरादा अपने जेहन - में मत रखना । जितने हरामीपन तुम कर सकते हो, उस सबसे मैंने अपने दोस्तों को आगाह कर दिया है और वे हमेशा तुम्हारे पैंतरे का जवाब देने के लिए तैयार रहेंगे । अपनी किसी भी चाल के जवाब में तुम्हें केवल और केवल नुकसान ही उठाना पड़ेगा। आगे तुम्हारे मर्जी। वैसे, अपने दोस्तों से मैंने कह दिया है---अपने करेक्टर के विरुद्ध अगर टकरियाल अंत तक सच्चे दिल से तुम्हारा साथ दे तो उसे कोई नुकसान नहीं पहुंचाना क्योंकि सचमुच --- मेरी नजर में जितना गुनाह तुम्हारा था, उतनी सजा काट चुके हो । इसीलिए यहां तुम्हें मौका दिया जा रहा है।”


तुम्हारा - राजदान |


ठकरियाल ने लेटर पढ़ा। फिर चेहरा ऊपर उठाया और बोला --- “तुम्हारा राजदान तो साला सीधे-सीधे आदमी के दिलो-दिमाग में झांकता है। उसे पढ़ता है जो हालात के मुताबिक आदमी सोच रहा होता है ।”


“मुझे जवाब चाहिए।" अखिलेश ने लेटर उसके हाथ से वापस लेते हुए कहा--- हुए कहा --- “ऑफर मंजूर है या नहीं ? "


“रह ही क्या गया इस लेटर के बाद ! मुझे मंजूर है । लेकिन...


“लेकिन ?”


“ यकीन मानो --- ऑफर कुबूल करते वक्त मेरे दिमाग में तुम्हें देखलेने या वक्त आने पर मजा चखाने जैसी कोई बात नहीं है बल्कि..


“फिलहाल हमारे लिए तुम्हारा ऑफर कुबूल कर लेना काफी है।" अखिलेश ने उसकी बात काटकर कहा--- "भविष्य बतायेगा तुमने ऐसा क्यों किया है। वैसे राजदान हमें बता चुका है --- तुम वह सांप हो जो अपने बिल में भी सीधे नहीं चलते। तुमसे हर पल सतर्क रहने की सलाह अपने लेटर में उसने कई बार दी है, वही हम करने वाले हैं।”