अंधा नवयुवक

बम्बई जाते हुए मेजर बलवन्त के हवाई जहाज में कुछ खराबी पैदा हो जाने के कारण वह दिन के तीन बजे बम्बई पहुंचा। उसने सान्ताक्रुज से प्राइवेट टैक्सी ली और टैक्सी में बैठते ही अपनी जेब से ट्रांसमीटर घड़ी निकाल ली। उसकी चाबी वाली जगह पर तार फंसाया और उस तार का गोल सिरा अपने कान में लगा लिया। फिर घड़ी की सुई एक विशेष नम्बर तक घुमाकर रोक ली और बोला, "हैलो - एक्स दिस एण्ड- "हैलो जेड ~~ एक्स स्पीकिंग ।” 


मेंजर के कान में आवाज आई — "जेड दिस एण्ड ।" 


"अशोक ! " मेजर ने कहा |


"ओह, मेजर साहब — आप ...आप कहां से बोल रहे हैं ?


"मैं इस समय एक टैक्सी में जा रहा हूं । अभी - अभी दिल्ली से बम्बई पहुंचा हूं । मुझे चूंकि बहुत जल्द वापस दिल्ली जाना है इसलिए मैं अपने काम में कोई कसर नहीं रहने देना चाहता। मेरा काम आसानी से भी हो सकता है और उसमें कोई अड़चन भी पैदा हो सकती है । इसलिए तुम क्रोकोडायल को लेकर 43 ए, वार्डन रोड के आसपास पहुंच जाओ और मेरा इंतजार करो। मैं तुमसे वहीं मिलूंगा ।" 


"ओ० के० बॉस ।


43 ए, वार्डन रोड एक पुराना बंगला था । उस बंगले के इर्द-गिर्द काफी ज़मीन खाली पड़ी थी । उसके अहाते में एक बहुत बड़ा फव्वारा था और उस फव्वारे के गिर्द, चार परियों के बूत खड़े थे । कभी वह वंगला अपनी शिल्पकला को लेकर अत्यन्त शानदार बंगला माना जाता होगा, लेकिन अब वह एक टूटी-फूटी इमारत में बदल चुका था — और उसकी रही-सही सुन्दरता आसपास बनी हुई नये ढंग की इमारतों के कारण और भी फीकी पड़ गई थी। उस बंगले के मालिक में शायद उस स्थान पर नया बंगला वनाने की सामर्थ्य नहीं थी। मेजर ने उस बंगले के अहाते में प्रवेश किया । उसने देखा कि उस बंगले को आठ-दस भागों में बांटा गया था। एक भाग में शायद मकान का मालिक, कोई पारसी रहता था । वह भाग बाई ओर था और शेष भागों से अलग मालूम होता था । उस भाग के सामने पारसी बच्चे खेल रहे थे । मेजर ने बच्चों के पास जाकर पूछा, "मिस्टर प्रदीप कहां रहते हैं।"


एक बच्चे ने एक कोने की ओर संकेत कर दिया और मुंह से कुछ न कहा।


मेजर ने प्रदीप के दरवाजे पर दस्तक दी। भीतर से एक आवाज़ आयी।


"कौन ?" 


और दो मिनट के बाद दरवाजा खोल दिया गया। सामने तीस बरस की एक स्त्री खड़ी थी | मेजर तुरन्त पहचान गया कि वह कोई बंगाली औरत थी।


"क्या मिस्टर प्रदीप यहां रहते हैं ? " मेजर ने पूछा । 


"जी, रहते तो यहीं हैं, लेकिन वे किसी से मिल नहीं सकते।"


मेजर-ने कमरे के भीतर झांककर देखा, जिसमें कुछ सामान बंधा हुआ और कुछ, इधर-उधर बिखरा पड़ा था। मेजर को ऐसा मालूम हुआ जैसे उस फ्लैट से जाने की तैयारियां हो रही हों।


उस बंगाली स्त्री ने दरवाजा बन्द करना चाहा तो मेजर ने अपनी दाई टांग दरवाजे के भीतर बढ़ा दी, "यह क्या वदतमीजी है !" वह स्त्री गरजकर बोली, "आप कौन हैं, मैं अभी पुलिस को बुलाती हूं।"


"आपको पुलिस बुलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि मैं स्वयं एक पुलिस अफसर हूं।" मेजर ने अपनी शिनाख्ती पासबुक निकालते हुए कहा, "आप इसे गौर से पढ़ सकती हैं। अगर आप मेरे काम में रुकावट डालें तो आपको इसका परिणाम भुगतना पड़ेगा।"


पहले तो उस स्त्री की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई, फिर कुछ सम्भलते हुए बोली, "आपको मिस्टर प्रदीप से क्या काम है ?”


"मैं उन्हें ही बताऊंगा कि मुझे उनसे क्या नाम है।" "मिस्टर प्रदीप किसी से मिलने के योग्य नहीं है |


"मुझे अन्दर तो आने दीजिए ।” मेंजर भीतर चला गया । 


"शुभदा, तुम किससे बातें कर रही हो ?" पिछले कमरे से एक पुरुष की आवाज आई।


“ये कोई साहब हैं । अपने-आपको पुलिस अफसर बता रहे हैं ।" शुभदा ने उत्तर दिया।


"वे अगर मुझसे मिलने आए हैं तो उनसे कह दो कि चले जाएं । मैं किसी से भी मिलना नहीं चाहता।"


मेजर उस कमरे की ओर बढ़ा तो शुभदा उसका रास्ता रोककर खड़ी हो गई और हाथ जोड़कर बोली, "आप पुलिस अफसर ही सही, लेकिन हमें परेशान न कीजिए | हम पहले ही बहुत दुखी हैं।


"मैं यहां आपको परेशान या दुखी करने नहीं आया। हो सकता है कि मैं आपकी परेशानी और दुःख दूर कर दूं ।"


"नहीं, आप चले जाइए। हमें किसी की सहानुभूति की जरूरत नहीं है।" पिछले कमरे में से उसी पुरुष की आवाज आई ।


"क्षमा कीजिएगा ।" मेजर ने पिछले कमरे तक पहुंचकर कहा, "मैं यहां अपनी मर्जी से नहीं आया हूं, सरकारी काम से आया हूं। अगर आप मेरे काम में रुकावट डालेंगे तो मुझे आपको गिरफ्तार करके पुलिस थाने में ले जाना पड़ेगा।" यह कहते हुए मेजर पिछले कमरे में दाखिल हो गया। उसके पीछे-पीछे शुभदा भी भीतर चली आई ।


मेजर पिछले कमरे में कदम रखते ही ठिठककर रह गया । कमरे के भीतर काफी प्रकाश था । बिजली का एक बड़ा बल्ब जल रहा था। सामने की दीवार के साथ एक आरामकुर्सी पर एक नवयुवक बैठा था । वह अन्धा था। उसकी आंखों के गिर्द बड़े भयानक सुर्ख और सफेद दाग थे। मेजर को ख्याल आया कि शायद वह गलत जगह पर आ गया है। इतने कुरूप और अन्धे नवयुवक से कैसे कामिनी जैसी लड़की प्रेम कर सकती थी ।


"आप चाहे कोई भी हैं, मेरी विवशता का अनुचित लाभ उठा रहे हैं । अगर मेरी आंखें होतीं तो मैं गिरफ्तारी की परवाह किए बिना आपको उठाकर इस मकान से बाहर फेंक देता ।” वह नवयुवक वोला । 


"मैं आपकी विवशता का कोई लाभ नहीं उठाना चाहता।" मेजर ने जरा-सा आगे बढ़ते हुए कहा ।


वह अन्धा नवयुवक अपने स्थान पर उठकर खड़ा हो गया। शुभदा उसका इरादा भांप गई । वह लपककर उसके निकट पहुंची और उसका वाजू पकड़कर बोली, 


“तुम वैठे रहो ।” 


"हट जाओ, शुभदा । मेरी आंखें नहीं हैं तो क्या हुआ ! मेरी बांहें तो सलामत हैं।"


“आपको इतना क्रोध नहीं करना चाहिए । " मेजर बोला । 


“मैं आपसे अन्तिम बार प्रार्थना करता हूं कि आप यहां से चले जाइए।" नवयुवक गुर्राया ।


"मैं दो मिनट में चला जाऊंगा । आप मेरी केवल दो बातों का उत्तर दे दीजिए। क्या आप ही का नाम प्रदीप है ?"


“जी ।" उस नवयुवक की वजाय शुभदा ने उत्तर दिया । 


"क्या आप किसी कामिनी नाम की लड़की को जानते हैं ? 


“मैं किसी कामिनी-वामिनी को नहीं जानता।" नवयुवक ने झल्लाकर कहा । 


अब मेजर समझ गया कि वह ठीक स्थान पर आया था | प्रदीप अब उसके बिल्कुल निकट खड़ा था । मेजर ने देखा कि प्रदीप के चेहरे पर घाव थे और वे सबके सब ताजा थे। वे अभी अच्छी तरह नहीं भरे थे। उसकी गर्दन का रंग साफ और गोरा था । वह एक कद्दावर नवयुवक था | कद के लिहाज से उसका शरीर बहुत ही सुंगठित था । यदि उसकी आंखें होतीं तो निःसन्देह वह एक सुन्दर व्यक्ति होता । एकाएक मेजर को ख्याल आया कि सम्भव है कुछ दिन पहले उसकी आंख ठीक-ठाक हों। उस नवयुवक से कामिनी का हाल जानने की एक ही सूरत थी और वह मेजर के दिमाग में आ गई थी । 


"आपको शायद मालूम नहीं है कि कामिनी एक समय से गायव है । शायद उसकी हत्या कर दी गई है । "


"ओह ! " उस नवयुवक के मुंह से निकला, लेकिन फिर तुरन्त ही वह गरजदार आवाज में बोला, "उसकी हत्या कर दी गई है तो मुझे इससे क्या ! कृपा करके आप यहां से चले जाइए।"


"हां, अव आप चले जाइए।" शुभदा वोली, "पहले ही सामान बांधने में देर हो चुकी है।"


"क्या आप कहीं जा रहे हैं ?" 


"हां, हम कुछ दिनों के लिए पूना जा रहे हैं।" 


मेजर वहां से जाने पर विवश हो गया। वहां से लौटते हुए वह सोच रहा था कि प्रदीप के इस व्यवहार का क्या मतलब हो सकता था। एक बात बिल्कुल स्पष्ट थी कि कामिनी की हत्या की खबर सुनकर उसके दिल से आह निकल गई थी। इससे तो प्रत्यक्ष था कि वह कामिनी को अच्छी तरह जानता था । 


मेजर को अफसोस हुआ कि उसने कामिनी के नाम उसका पत्र पढ़कर क्यों न सुनाया । फिर मेजर की विचारधारा दूसरी ओर मुड़ गई । प्रदीप आज से बीस-पच्चीस दिन पहले अन्धा नहीं था । वह हाल ही में दुर्घटनाग्रस्त हुआ है । अन्ततः मेजर ने यह निर्णय किया कि वह आसानी से प्रदीप को नहीं छोड़ेगा । यदि अशोक क्रोकोडायल के साथ मौजूद हुआ तो वह उनको शुभदा प्रदीप के पीछे भेजेगा। वे पूना गए तो मुझे भी पूना जाना पड़ेगा ।


मेजर यह निश्चय करते हुए उस बंगले के अहाते से बाहर निकला। एक कुत्ते के भौंकने की आवाज आई । मेजर मुस्कराया । क्रोकोडायल उसे देखकर भौंक रहा था । वह दौड़ता हुआ मेजर के पास आ गया और उसके घुटनों में सिर देने लगा। मेजर ने उसकी पीठ पर हाथ फेरा तो वह जोर-जोर से अपनी दुम हिलाने लगा। इतने में अशोक मेजर के निकट पहुंच गया ।


"अशोक ! मैरे काम में भारी अड़चन पैदा हो गई है ।" इसके बाद मेजर ने अशोक को उन लोगों का हुलिया वताया जिनका उसे और क्रोकोडायल को पीछा करना था। 


अशोक, तुम्हें और कुछ नहीं करना है, सिर्फ इतना मालूम करना है कि ये लोग कहां जाते हैं। मैं दफ्तर में तुम्हारा इन्तजार करूंगा | अगर तुम पीछा न कर सको या तुम्हारी आंखों से वे लोग ओझल हो जाएं तो तुम क्रोकोडायल को उनके पीछे भेज देना और स्वयं मेरे पास चले आना । क्रोकोडायल अब पहले से ज्यादा चतुर हो चुका है। अब वह बुरे को घर तक पहुंचाकर आता है। तुम बस, इतना देख सको तो देख लेना कि वे लोग स्टेशन की ओर जाते हैं या किसी दूसरी ओर ।"


मेजर अपने दफ्तर चला आया। यहां से उसने फिल्म प्रोड्यूसर को फोन किया, 'जिसने उसे रोहिणी (कामिनी) को ढूंढ़ने का काम सौंपा था । उसने उसे खुशखबरी सुनाई कि रोहिणी का पता लगाने में वह सफल हो चुका है। लेकिन रोहिणी से उसकी .. भेंट नहीं हुई, शीघ्र ही हो जाएगी । वह फिल्म प्रोड्यूसर बहुत प्रसन्न हुआ । मेजर दीवान सुरेन्द्रनाथ की हत्या और उस समय तक सामने आने वाली घटनाओं पर विचार करने लगा। इसी उधेड़बुन में लगभग दो घंटे बीत गए । बाहर कदमों की आहट सुनाई दी। अशोक ने क़मरे में प्रवेश किया और बोला, "आज पहली, बार पीछा करने में मुझे नाकामी का सामना करना पड़ा है। खैर, क्रोकोडायल उनका पीछा कर रहा होगा।"


"क्यों, क्या हुआ ?” मेजर ने पूछा ।


"आप चले आए तो मैं 43 ए, वार्डन रोड के सामने एक तरह से मोर्चा लगाकर बैठ गया । आध घण्टे के बाद एक टॅक्सी उस बंगले के अहाते में दाखिल हुई । उस टैक्सी में दो आदमी थे जो शक्ल-सूरत से आसाम के रहने वाले मालूम होते थे। मैंने यह समझा कि वे यहां रहते होंगे, लेकिन जब पन्द्रह मिनट तक टैक्सी वापस न आई तो मैं समझ गया कि वे किसी को साथ ले जाने के लिए वहां आए थे । मेरा अनुमान ठीक ही निकला | टैक्सी वापस आई तो उन दो व्यक्तियों के साथ वह स्त्री भी थी और वह नवयुवक भी जिनका हुलिया आपने बताया था। टैक्सी सामान से लदी हुई थी । मैंने एक टैक्सी का पहले से प्रबन्ध कर लिया था और उसे एक बिल्डिंग के पास रुकवा रखा था । क्रोकोडायल को तो मैंने तुरन्त उस टैक्सी के पीछे भगा दिया और स्वयं अपनी... टैक्सी में उनके पीछे चल पड़ा । तीन-चार मील तक तो मैंने बड़ी सफलता से उन लोगों का पीछा किया, लेकिन फिर दुर्भाग्य से मेरी टैक्सी के इंजन में कुछ खराबी पैदा हो गई। ड्राइवर को वह खराबी ठीक करने में पांच-सात मिनट लग गए। इतने में वह टैक्सी नजरों से ओझल हो गई। लेकिन मैं इस बात का इत्मीनान करके आया हूं कि वे लोग स्टेशन नहीं गए । मेरा ख्याल है कि वे शिवाजी पार्क की ओर गए हैं।" 


"अगर तुम्हारा ख्याल ठीक है तो क्रोकोडायल को वापस आने में देर नहीं लगेगी। मुझे भी सन्देह हुआ था कि उस स्त्री ने, जिसका नाम शुभदा था, मुझसे झूठ बोला था । वे पूना नहीं जा रहे थे। यह भी अच्छा हुआ, नहीं तो मुझे आज ही रात को पूना जाना पड़ता।"


बीस मिनट बाद क्रोकोडायल के भौंकने की आवाज सुनाई दी तो मेजर चौंककर उठ खड़ा हुआ । वह दफ्तर से बाहर निकला तो क्रोकोडायल गोली की तरह उसके पास पहुंचकर उसके कदमों में लोटने लगा और उसके बूट के तस्मे दांतों में पकड़कर खींचने लगा ।


मेजर ने झुककर क्रोकोडायल के कान पकड़ लिए और उन्हें सहलाते हुए बोला, "चलेंगे बेटा, अभी चलेगे | पहले जरा दम तो ले लो | कुछ खा-पी लो । न जाने कितनी दूर से आ रहे हो।" इसके बाद मेजर अशोक से बोला, "किचन से क्रोकोडायल के लिए कुछ खाने को ले आओ।"


अशोक क्रोकोडायल की खुराक ले आया। क्रोकोडायल उसकी महक से बेचन हो गया और जब अशोक ने वह बर्तन फश पर रख दिया तो क्रोकोडायल उस पर टूट पड़ा जैसे कई दिन का भूखा हो ।


"अशोक, रिवाल्वर निकालकर भर लो । एक रिवाल्वर तुम अपने पास रख लो और एक मुझे दे दो। अपनी जेब में टार्च भी डाल लो । हमारे यहां पहुंचने तक काफी अंधेरा हो जाएगा । यह काम कर चुकने के बाद गैरेज से मोटर निकाल लाओ।" 


पन्द्रह मिनट में वे तैयार हो गए।


मेजर की मोटर क्रोकोडायल के पीछे-पीछे जाने लगी । अशोक का अनुमान ठीक निकला क्योंकि क्रोकोडायल उन्हें शिवाजी पार्क ले गया। वहां पहुंचकर क्रोकोडायल ने अपनी गति धीमी कर दी ।


“हमें मोटर यहीं कहीं खड़ी कर देनी चाहिए। मैं समझता हूं कि हमारी मंजिल आ गई है।" मेजर ने अशोक से कहा|


क्रोकोडायल जिस ओर जा रहा था वहां के मकान पुराने थे। शाम का धुंधलका फैल चुका था । क्रोकोडायल एक अलग-थलग मकान का चक्कर लगाने लगा । जव मेजर और अशोक उसके निकट पहुंच गए तो क्रोकोडायल ने उस दोमंजिला मकान की निचली मंजिल के एक दरवाजे पर पंजें मारने शुरू कर दिए। मैजर ने उसके निकट जाकर उसके कान मरोड़े तो क्रोकोडायल पीछे हट गया ।


"अशोक, तुम इस मकान से दूर हटकर मेरा इन्तजार करो। क्रोकोडायल को अपने साथ ले जाओ।"


वह अशोक क्रोकोडायल को लेकर चला गया तो मेजर ने जिस पर क्रोकोडायल ने पंजे मारे थे । दरवाजा खटखटाया।


दो मिनट के बाद शुभदा ने दरवाजा खोला और मेजर को देखकर उसने अपना बायां हाथ अपने मुंह पर रख लिया जैसे वह होंठों में अपनी चीख दबाने की कोशिश कर रही हो । मेजर मुस्कराया तो शुभदा ने अपने मुंह पर से अपना हाथ उठा लिया और कहा, "आप... आप यहां कैसे पहुंच गए ?"


“मैंने सोचा कि चलो मैं भी आज पूना की सैर कर आऊं।" 


शुभदा लज्जित हो गई | मेजर को पुनः देखकर उसके रवैये में तब्दीली था गई। उसने धीरे से कहा, "आप अन्दर आ जाइए।"


मेजर ने अन्दर क़दम रखा तो उसने देखा वह मकान काफी बड़ा था । निचलीं मंजिल में कम से कम छः कमरे थे ।


“प्रदीप बाबू कहां हैं ?” मेजर ने पूछा । 


"अन्दर कमरे में हैं। मुंह लपेटे पड़े हैं । आपने जब से उनको कामिनी की हत्या की खबर सुनाई है, उनका बुरा हाल है ।" 


"शुभदा, कहां हो ?" भीतर के कमरे से प्रदीप की आवाज आई।


"मैं यहीं हूं।"


“क्या कोई आया है ??" प्रदीप ने पूछा ।


"नहीं, कोई नहीं।" शुभदा ने अपने होंठों पर उंगली रखकर मेजर को चुप रहने का संकेत किया।


“आप उस कमरे में चलकर बैठिए ।" शुभदा ने दबी जवान में मेजर से कहा | 


मेजर कमरे में जा बठा तो वह बोली, "अगर आप सचमुच पुलिंस अफसर हैं तो आप हमारी मदद कीजिए | हम बड़ी मुसीबत में हैं। हम इन्सान नहीं कैदी हैं । हमारी हालत गुलामों से भी बुरी है | अब तो ऐसा मालूम होता है कि हम अपनी मर्जी से कहीं रह भी नहीं सकते।" 


"क्या आपको अब भी मेरे पुलिस अफसर होने में सन्देह है ? अगर मैं पुलि अफसर न होता तो यहां आपके पास कैसे पहुंच जाता ? मुझे तो यह भी मालूम है कि यहां आपको कौन लाया है। दो आदमी, जो आसाम के रहने वाले मालूम होते हैं, आपको यहां टैक्सी में लाए हैं।"


शुभदा का मुंह आश्चर्य से खुला रह गया, "हां, आप ठीक कहते हैं । वे दो आदमी आज दोपहर को दो बजे हमारे पास आए थे। उन्होंने हमसे कहा था कि हम अपना सामान बांध लें। हमें आज ही मकान बदलना होगा। हमने उनसे कहा था कि बम्बई में इतनी जल्दी मकान कैसे बदल सकते हैं? उन्होंने कहा कि हमें इसकी कोई चिन्ता नहीं होनी चाहिए, मकान का प्रबन्ध वे कर चुके हैं । मेरा भाई प्रदीप उनका हुक्म नहीं टाल सकता ।"


" प्रदीप आपका भाई है ?"


"जी हां, मैं उसकी विधवा बहन हूं। दो साल से उसके साथ रह रही हूं।" 


“दो साल से... लेकिन आपका भाई तो अन्धा है । "


" आज से पूरे छब्बीस दिन पहले मेरा भाई अन्धा नहीं था। काश, आपने मेरे भाई को उस हालत में देखा होता ! उसकी ये बड़ी-बड़ी आंखें थीं ! मेरा भाई राजा मालूम होता था । इसीलिए तो एक अंग्रेजी फर्म में उसे बहुत अच्छी नौकरी मिल गई थी।"


"आपका भाई अन्धा कैसे हो गया ?"


"मैं पहले तो कुछ जानती नहीं थी । यही दो आदमी, जो आज हमें यहां लाए हैं, आज से पूरे छन्बीस दिन पहले मेरे भाई को बड़ी घायल हालत में घर छोड़ गए थे ।


प्रदीप को कुछ होश नहीं था। उन आदमियों ने मुझे बताया कि वे उसी अंग्रेजी कम्पनी के साथ काम करते थे और तेजाब का टीन फट जाने से प्रदीप घायल हो गया। मेरे भाई की आंखों पर पट्टी बंधी हुई थी। मुझे शक तो हुआ था कि प्रदीप को अस्पताल ले जाने की बजाय वे घर क्यों लाए थे, लेकिन मैं उनसे अधिक सवाल-जवाब न कर सकी । वे फिर भी कई बार आए । जब प्रदीप उनसे बातें करता रहा तो मेरा संदेह दूर हो गया। मैं यह भी नहीं जानती कि प्रदीप उनसे क्या बातें करता था। जब वे आते थे तो प्रदीप मुझे बाहर भेज देता था। भाई के चेहरे पर से पट्टी उतरी तो मैं उसे देख न सकी। अपना कलेजा थामकर रह गई। मैं कई दिन तक चुपके-चुपके रोती रही। 


लेकिन आदमी को आखिर सब्र आ ही जाता है। मैं यह देखती रही कि मेरा भाई उन लोगों से कुछ दबता-डरता था। उनके चले जाने के बाद भी सहमा - सा रहता था। मैं प्रदीप की एक और तब्दीली पर भी हैरान थी । अब वह कामिनी का नाम तक नहीं लेता था । कामिनी भी कई दिनों से हमारे यहां नहीं आई थी । मुझे उससे मिले हुए एक महीना चार दिन हो चुके थे । कामिनी के मां-बाप दिल्ली में हैं। यहां उसका नाम रोहिणी था और उसका घर का नाम कामिनी था। वह दिल्ली जाते हुए हमें पता लिखकर दे गई थी। कामिनी दिल्ली क्या गई वहां जाकर हमें भूल गई । उसने कोई पत्र तक न लिखा और प्रदीप तड़पता रहा। वह कामिनी को तीन पत्र लिख चुका था। आखिर उसने दिल्ली जाने का इरादा कर लिया, लेकिन जिस दिन उसे दिल्ली जाना था, उसी दिन वह अन्धा होकर घर आ गया। अन्धा क्या हुआ, उसने कामिनी का नाम तक लेना छोड़ दिया | बेचारा उसका नाम क्या लेता ! अब वह इस योग्य ही नहीं रह था । मैं अपने दिल में कुढ़ती रही । और आज जब आप घर आए तो आपको घर में पाकर प्रदीप को गुस्सा आ गया और आपके यह बताने पर कि कामिनी की हत्या का दी गई है प्रदीप की हालत और भी खराब हो गई और उसने यहां आकर मुझे अपने दिल का भेद बता दिया।"


"प्रदीप ने आपको क्या बताया ?"


"यही कि वह दुर्घटना में अन्धा नहीं हुआ था— उसे अन्धा कर दिया गया था।"


"प्रदीप को किसने अन्धा किया ?


"उन्हीं ने जो आज वार्डन रोड से यहां उठा लाए हैं।' "उन्होंने आपके भाई को क्यों अंधा किया ?"


- " प्रदीप का कहना है कि एक महीने पहले उन्होंने उसे धमकी दी थी कि वह कामिनी को भूल जाए और उसे पत्र आदि न लिखे — और अगर उसने उनकी बात न मानी तो उससे कुछ ऐसा व्यवहार किया जाएगा कि उम्र-भर याद रखेगा । प्रदीप ने उनकी धमकी की परवाह नहीं की। इसलिए उन्होंने तेजाब फेंककर उसे अंधा कर दिया ।”


“वे प्रदीप को जान से भी तो मार सकते थे ? " मेजर ने कहा । 


"हां, लेकिन प्रदीप कहता है कि वे उसे जान से मारना नहीं चाहते थे । इसका एक कारण था । वे लोग कामिनी के बम्बई आने पर प्रदीप को उसे दिखाना चाहते थे और उसे यह धमकी देना चाहते थे कि जिस नवयुवक से भी वह प्रेम करेगी, उसका यही परिणाम होगा !"


"ओह, कामिनी का ऐसा दुश्मन कौन हो सकता है ?" 


"मुझे मालूम नहीं।"


"वे आदमी, जिन्होंने प्रदीप को अंधा कर दिया था, आपके यहां क्यों आते रहे ?" 


"वे यह पता करने के लिए आते थे कि कामिनी ने उसे कोई पत्र लिखा था या नहीं।"


"प्रदीप ने पुलिस को सूचना क्यों नहीं दी कि उन लोगों ने उसकी जिन्दगी तबाह कर दी है और अब भी उस पर अत्याचार कर रहे हैं ?"


"उन्होंने धमकी दी है कि अगर प्रदीप पुलिस को सूचना देगा तो वे उसकी बहन को यानी मुझे भी अंधा कर देंगे।"


"ओह, कैसे जालिम लोग हैं ! संसार में कोई भी भाई यह सहन नहीं कर सकता कि उसकी बहन अंधी हो जाए। आपने बड़ी दर्दनाक कहानी सुनाई है।" 


शुभद्रा की आंखों में आंसू आ गए। उसने कहा, "मैंने डरते-डरते आपको सारी बातें बता दी हैं। मैं इस कैद की जिन्दगी से मौत को अच्छा समझती हूं। क्या आप हमारी मदद नहीं कर सकते ?"


“क्यों नहीं कर सकता ! पुलिस लोगों की मदद के लिए ही तो होती है। क्या आप यह बता सकती हैं कि वे लोग कहां रहते हैं ?"


"इस बिल्डिंग के पीछे सौ गज के फासले पर बायीं ओर पीले रंग की एक बिल्डिंग है। मेरे ख्याल में उस बिल्डिंग की दूसरी मंजिल पर वे लोग रहते हैं, क्योंकी जब वे हमें यहां लाएं थे तो उन्होंने दस मिनट के लिए टैक्सी उस बिल्डिंग के नीचे रुकवाई थी। उनमें से एक आदमी इस मकान की चाबी लाने के लिए अपने कमरे में गया था।"


मेजर ने उठते हुए कहा, “अब आपको घबराने की जरूरत नहीं है। मैं समझता हूं कि आपकी मुसीबत के दिन खत्म हो चुके हैं। मैं अभी फिर आपके पास आऊंगा। पहले जरा उन लोगों से निवट लूं । अगर वे भाग गए तो फिर मैं आपको अपने यहां ले चलूंगा । वे लोग यहां नहीं पहुंच सकेंगे। और अगर मैं उन्हें गिरफ्तार करने में सफल हो गया तो फिर आप बेखटके कहीं भी रह सकती हैं । "


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