“दिव्या।” उसका लहजा बहुत गम्भीर और शांत था-" " मेरे ख्याल से ठीक वही था जो हम तब सोच रहे थे जब ठकरियाल को बाथरूम में बंद समझ रहे थे।”


“क्या मतलब?” दिव्या के मस्तक पर बल पड़ गये।


“हमें इस लफड़े से दूर रहना चाहिए।”


“लो।” ठकरियाल बोला—“यह पट्ठा तो अपना हिस्सा वैसे ही छोड़ने को तैयार बैठा है। मतलब ढाई करोड़ पीटने का गोल्डन चांस।"


“देव।” दिव्या ने कहा—“पागल हो गये हो क्या? भला हाथ आये इतने सुनहरे मौके को भी कोई यूं गंवाता है? वह तब की बात थी जब ठकरियाल की इन्वेस्टीगेशन के कारण लग रहा था— हमारे मंसूबे परवान नहीं चढ़ सकेंगे। इस वक्त हालात पूरी तरह बदले बीमे की रकम हासिल करना हमारे लिए उतना ही आसन है जितना चुटकी बजा लेना।”


“जाने क्यों, मुझे लग रहा है-—अगर हम इस लफड़े में पड़े तो और गहरे फंस जायेंगे। इस वक्त तो निकलने का रास्ता भी नजर आ रहा है। आगे शायद सभी रास्ते बंद हो जायें।"


“कैसे फंस जायेंगे देव? सोचो तो सही—जिस शख्स को इस केस की इन्वेस्टीगेशन करनी है, वह हमारे साथ है बल्कि पार्टनर है हमारा। फिर कौन हमें किस लफड़े में फंसा देगा?”


“कुछ सोच नहीं पा रहा हूं मैं।"



“अब तक की घटनाओं से जरूरत से कुछ ज्यादा ही पित्ते ढीले कर दिये है देवांश बाबू के।" बड़ी ही जानदार मुस्कान के साथ ठकरियल कह उठा—“वैसे अच्छा ही है। मोहतरमा, क्यों कन्विन्स करने की कोशिश कर रही हो इन्हें? इनका दिल गवाही नही दे रहा तो न रहें साथ। दूर रहें लफड़े से "


“देव।” दिव्या ने कहा—“आखिर हो क्या गया है तुम्हें? कोशिश क्यों नहीं कर रहे समझने की? अब कारण ही क्या है पीछे हटने का।"


“कारण मेरी समझ में नहीं आ रहा।" देवांश बोला- "बस ऐसा लग रहा है - जैसे सही रास्ते पर जाते-जाते हम भटककर फिर उसी रास्ते पर मुड़ रहे हैं जिस पर मरने से पहले राजदान चाहता था कि हम चलें ।"


“एक परसेन्ट भी सहमत नहीं हूं मैं तुमसे।” दिव्या ने अपने हर लफ्ज पर जोर देते हुए कहा—“और अब वक्त भी नहीं है बहस करने का। ‘हां' या ‘ना’ में जवाब दो-तुम इस मिशन में हमारे साथ हो या नहीं?"


झटका सा लगा देवांश के दिला-दिमाग को। दिव्या की तरफ देखता रह गया वह।


उस दिव्या की तरफ जिसके रोम-रोम से इस वक्त बीमा कम्पनी से रकम हासिल करने का जुनून टपक रहा था। उसके द्वारा कहे गये ‘हमारे’ शब्द पर देवांश का दिमाग भटककर रह गया।


उसकी छाती पर घूंसे की तरह लगा था यह शब्द ।


दिव्या ने ठकरियाल को अपने साथ जोड़कर 'हमारे' कहा था।


तो अब ठकरियाल हो गया था उसका?


सच्ची बात ये है, दिल अब भी ‘हां' कहने के लिए नहीं कर रहा था परन्तु साफ-साफ महसूस कर रहा था, उसके इंकार करने की सूरत में भी दिव्या मानने वाली नहीं थी। उसे ठकरियाल के साथ आगे निकल जाना था। सारे हालात पर गौर करने के बाद बोला—“समझने की कोशिश करो दिव्या, अब हम एक-दूसरे से अलग रहकर कुछ नहीं कर सकते।” 


“यानी साथ हो?”


देवांश को कहना पड़ा—“रहना पड़ेगा।"


“वैरी गुड।” ठकरियाल कह उठा—“अच्छा हुआ जल्दी फैसला कर लिया। मगर, तुम साथ रहो, न रहो—ये बात पक्की है मेरा हिस्सा ढाई करोड़ रहेगा। कारण साफ है- तुम मानो न मानो, मैं तुम्हें एक मानता हूँ ... दो जिस्म, एक जान "


“ऐसा नहीं होगा ठकरियाल।” देवांश ने जब साथ करने का फैसला कर ही लिया तो अपने हक के लिए बोला—“मामला जब पैसों का होता है तो पति-पत्नी को भी ‘एक’ नहीं ‘दो' माना जाता है।”


“दुरुस्त फरमाया तुमने। ये पैसा कम्बख्त चीज ही ऐसी है --बीच में आया नहीं कि सीधे-सीधे रिश्ते भी टेढ़े-मेढ़े होने लगते हैं। तुम्हारा रिश्ता तो पहले ही से आड़ा-तिरछा है। दुनिया की नजरों में मां-बेटे हो लेकिन हो असल में पति-पत्नी।” उसके शब्दों में ऐसी धार थी कि दिव्या और देवांश को अंदर तक चीरती चली गयी।


लगा—वह धमकी दे रहा है, अगर उन्होंने बात नहीं मानी तो वह उनके सम्बन्धों को सार्वजनिक कर देगा। उस स्थिति को सचमुच दोनों में से कोई भी फेस करने को तैयार नहीं था। फिर भी, देवांश ने कहा- “तुम कायदे की बात नहीं कर रहे ठकरियाल।”


“आदमी अपने रंग गिरगिट से भी ज्यादा तेजी के साथ बदलता है मिस्टर देवांश । कुछ देर पहले तुम जेल न जाने की कीमत के रूप में सारे जहां की दौलत मुझे देने को तैयार थे । दिव्या देवी अपने गहने वार-फेर कर रही थीं मुझ पर और... पांच करोड़ मिलने की किरणें जगमगाई नहीं कि मोल भाव करने लगे। पलटी खाकर एक से दो हो गये तुरन्त ।" 


ठकरियाल तुम...


“मैं इस बहस को लम्बी खींचने के मूड में नहीं हूं।" दिव्या की बात काटकर ठकरियल शुष्क स्वर में कहता चला गया— “सौ बातों की एक बात मैं इस मिशन पर काम करूंगा तो सिर्फ और सिर्फ ढाई करोड़ की गंगा में हाथ धोने के लिए।" 


“हम तैयार नहीं हुये तो एक पैसा भी हाथ नहीं आयेगा तुम्हारे ।”


“कोई गम नहीं। सोच लूंगा- इस केस पर काम करते वक्त मेरे दिमागे-शरीफ में बीमा कम्पनी की रकम ऐंठने का ख्याल कभी आया ही नहीं था। मेरा क्या है, मैं तो हूं ही ऐसे पेशे में, ऐसे मौके अक्सर आते रहते हैं। सोचना तुम्हें है, क्योंकि तुम्हारी लाईफ में आने वाला अगर ये पहला नहीं तो आखिरी मौका जरूर है। तुम्हारे इंकार की सूरत में मूझे वही करना पड़ेगा जो एक ईमानदार और कर्त्तव्यनिष्ठ पुलिस इंस्पैक्टर को करना चाहिये। जेल भेज दूंगा तुम्हें । सारी दुनिया तुम्हारे सम्बन्धों के बारे में जान जायेगी। डिपार्टमेन्ट से 'गुड वर्क' के लिए ईनाम नहीं झटक सका तो अपने अफसरों की शाबासी तो लूट ही लूंगा। दूसरी तरफ - यह बोझ भी नहीं रहेगा मेरी अन्तरात्मा पर कि मैंने राजदान के उस विश्वास की 'बघिया बैठा दी जो वह मुझमें व्यक्त करके मरा था। पीठ ठोकूंगा खुद की । कहूंगा- -'नहीं ठकरियाल, तू ऐसा है ही नहीं कि किसी के विश्वास को जरा भी ठेस पहुंचा सके। गऊ है तू तो। राजदान के विश्वास का पूरा प्रतिफल दिया है तूने उसे ... वैसे तुम्हारे लिए मेरी सलाह ये है, यह मत समझो – तुम्हारी वजह से मैं ढाई करोड़ कमा रहा हूं बल्कि ये समझो—मेरी वजह से तुम्हारी जिन्दगी में बहार आ रही है। ढाई करोड़ तो बोनस के तौर पर दे रहा हूं तुम्हें। समझने की कोशिश करो मेरी शराफत को । जरा भी चलता-पुर्जा होता तो कहता – 'पांच करोड़ मेरे होंगे। उनकी एवज में तुम्हें मिलेगी, तुम्हारी इज्जत से भरपूर जिन्दगी।' मैं जानता हूं तुम्हें यह भी कुबूल करना पड़ता। जानते-बूझते ढाई करोड़ देने को तैयार हूं। तुम्हें तो कायल होना चाहिए मेरी शराफत का। चरण धो-धोकर पीने चाहिये मेरे ।”


दोनों में से कोई कुछ नहीं बोला ।


एक-दूसरे की तरफ देखकर रह गये केवल । वे जानते थे—ठकरियाल ने जो भी कहा, अक्षरशः सच है। काफी लम्बी खामोशी के बाद दिव्या को कहना पड़ा— “हमें मंजूर है।”


“क्या मंजूर है ?”


“दो हिस्से होंगे। ढाई करोड़ तुम्हारे ढाई करोड़ हमारे।"


“मुझे मालूम था – तुम मजाक कर रहे थे।" ठकरियाल हंसा--- "आओ। अब कुछ सीरियस बात हो जायें। टाईम कम रह गया है।


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प्रिय बबलू ।


रात के इस वक़्त मेरा लेटर पाकर हैरान तो बहुत होंगे कि चाचू को आखिर हो क्या गया है परन्तु हालात ही ऐसे हैं, यह लेटर मैं इसी वक्त तुम्हारे पास पहुंचाने पर मजबूर हूं। याद रहे—यह जानने की कोशिश बिल्कुल मत करना लेटर तुम्हारे पास किसने पहुंचाया।


मम्मी-पापा को भी इसके बारे में कुछ मत बताना।


स्वीटी की कसम है तुम्हें ।


लेटर को पढ़ते ही अपने घर से निकल पड़ो।


चुपचाप ।


चोरों की तरह।


तुम्हें विला में आना है। मेरे कमरे में। लेकिन मुख्य द्वार से हरगिज नहीं।


विला के बायीं तरफ जो ‘सर्विसलेन' है। वहां एक पेड़ है। तुम उस पेड़ पर चढ़ जाना। पेड़ की एक शाख विला की बाउन्ड्रीवॉल के ऊपर से होती हुई अंदर तक आ गयी है। उस शाख से विला मैं कूद जाना। मैं जानता हूं - पूरे शैतान हो तुम मुकम्मल कामयाबी के साथ इस काम को कर लोगे। इसके बाद का काम और भी आसान है।


बड़े आराम से खुद को अंधेरे में छुपाये रखकर मेरे बाथरूम की उस खिड़की पर पहुंच जाना जो लॉन की तरफ खुलती है। वह अंदर से बंद नहीं होगी। हाथ का जरा सा दबाव पड़ते ही खुल जायेगी। तुम्हें बाथरूम में आना है। बाथरूम से ड्रेसिंग में। ड्रेसिंग और मेरे बैडरूम का दरवाजा बैडरूम की तरफ से बंद मिलेगा। ।


तुम उसे खटखटाओ


बहुत आहिस्ता से।


मेरे अलावा उस आवाज को कोई दूसरा न सुन सके।


मैं दरवाजा खोल दूंगा।


आगे की बातें वहीं होंगी।


जानता हूं—तुम्हें सस्पैंस वाले टी. वी. सीरियल देखने का बहुत शौक है। मगर यह लेटर तुम्हें ऐसे सस्पैंस में फंसा देगा जैसे सस्पेंस से तुम्हारा वास्ता अब तक देखे गये किसी भी सीरियल में नहीं पड़ा होगा। किसी और माध्यम से इस सस्पेंस की सुलझाने की कोशिश बिल्कुल मत करना क्योंकि मैं अपने कमरे में तुम्हारा इन्तजार कर रहा हूं।


तुम्हारा चाचू- आर. के. राजदान


पूरा पत्र पढ़ने के बाद देवांश ने ठकरियाल की तरफ देखा। देवांश के साथ ही पत्र दिव्या ने भी पढ़ लिया था। 


"कैसी रही?" ठकरियाल ने पूछा।


“हम कुछ समझे नहीं।" देवांश ने कहा ।


“इस पत्र को पढ़कर बबलू क्या करेगा?"


“मेरे ख्याल से कुछ भी नहीं करेगा।" 


“क्यों?”


“बबलू राजदान के जितना निकट था, मैं नहीं मान सकता वह राईटिंग नहीं पहचानता होगा। यह लेटर राजदान ने नहीं, तुमने लिखा हैं मेरे ख्याल से राईटिंग को देखते ही बबलू समझ जायेगा पत्र राजदान का है ही नहीं।” 


“बिल्कुल गलत ख्याल है तुम्हारा।"


“कारण?”


“पहली बात – लेटर राजदान के लेटर पैड के कागज पर लिखा गया है। दूसरी बात — कुछ हद तक मैंने अपनी राईटिंग को राजदान की राईटिंग से मिलाने की कोशिश की है।" 


"जिसमें तुम पचास परसेन्ट भी कामयाब नहीं हो सके।"


ठकरियाल ने अजीब मुस्कान के साथ कहा – “चालीस परसेन्ट कामयाब मानते हो या नहीं?" 


“हां।” दिव्या ने नजरें लेटर पर जमाये रखकर कहा-"- इतने तो हो ।”


“मेरे ख्याल से इतना काफी होगा।”


“अर्थात् ।”


"जिसे हम अच्छी तरह जानते हैं बल्कि जिसके साथ चौबीस घण्टे रहते है, जरूरी नहीं उसकी राईटिंग से भी परिचित हों। यानी, पहली स्टेज पर मैं ये मानता हूं-बबलू का राजदान की राईटिंग से वाकिफ होना जरूरी नहीं है। अगर थोड़ा-बहुत परिचित हुआ भी तो अचानक नींद से जागने पर जब राजदान का लेटर पैड देखेगा तो उसी का लेटर समझेगा इसे। यह सोचने का उसे मौका ही नहीं मिलेगा कि लेटर नकली भी हो सकता है। बकौल तुम्हारे ही, चालीस परसेन्ट-राईटिंग तो मैंने मिला ही दी है। लेटर का मजमून उसके `दिलो—दिमाग में इतनी क्यूरोसिटी पैदा कर देगा कि हर हाल में ठीक उसी तरह उसे 'यहां पहुंचने पर विवश कर देगा जिस तरह लेटर में लिखा है। "


एक क्षण के लिए कमरे में खामोशी छा गई। फिर दिव्या ने कहा – “चलो मान लिया उसे यह भ्रम हो जायेगा कि उसे राजदान ने बुलाया है। ...तो?”


“आयेगा या नहीं?”


“भ्रम होने पर तो हन्डरेड परसेन्ट आयेगा।" देवांश ने कहा ।


“बस ।” ठकरियाल कह उठा — “यही मैं चाहता हूं।"


“मगर क्यों? उसके बाद तुम क्या करने वाले हो ?"


“जो होगा, बहुत ही मजेदार होगा और तुम्हारे सामने होगा।" ठकरियाल अपनी स्कीम पर खुद मंत्रमुग्ध सा होता बोला- "फिलहाल  तुम्हें इस लेटर को उस तक पहुंचाने का कष्ट फरमाना है।"  


“म-मुझे?” देवांश हकला उठा।

 

ठकरियाल ने कहा—“हां! तुम्हें ढाई करोड़ कमाने के लिए इतने पापड़ तो बेलने ही होंगे।”