“मैं कोई वादा नहीं कर सकता। जहां तक रमा का सम्बन्ध है, मैं वही करूंगा जो उसके हक में अच्छा होगा।"
"उसके हक में यही अच्छा होगा कि वह मुझसे फौरन मिल ले ।"
“मैं उससे बात करूंगा।"
"सुबह दस बजे मुझे अदालत में हाजिर होना है और मुझे रमा से मिले हुए सारे कागज-पत्र, करेन्सी वगैरह अदालत में पेश करने के लिये कहा गया है। मैं कोर्ट में जाने से पहले रमा से कुछ प्रश्न पूछना चाहता हूं।"
“आप अदालत में तो रमा के विषय में कोई ऐसी बात नहीं कहेंगे जो उनके लिये हानिकारक सिद्ध हो ?"
"शायद जरूरत ही नहीं पड़ेगी।" सुनील ने उठते हुए कहा।
"मिस्टर सुनील" - डॉक्टर ने उठकर हाथ मिलाते हुए कहा - "शायद आप यह नहीं जानते कि मैंने रमा को आपसे सम्पर्क स्थापित करने के लिए कहा था ।”
"अच्छा जी !"
"हां।"
"लेकिन अब तो आपको अफसोस हो रहा होगा ?"
"क्यों ?" - डॉक्टर ने हैरान होकर पूछा ।
"क्योंकि रमा एक नालायक इन्सान की सहायता मांग रही है।"
"ओह ब्वाय, देयर इज नथिंग लाइक दैट" - डॉक्टर ने हंसते हुए कहा- "मुझे तुम्हारी योग्यताओं पर विश्वास है।"
"थैंक्यू डॉक्टर।" - सुनील ने गर्मजोशी से हाथ मिलाया और दरवाजे की ओर बढ़ा । उसने एक झटके से बाहर जाने का दरवाजा खोल दिया। दरवाजे के साथ लगी एक लड़की खड़ी थी। यकायक दरवाजा खुल जाने पर वह घबरा गई और सकपकाई नजरों से सुनील की ओर देखने लगी ।
अब तक डॉक्टर भी उसे देख चुका था ।
"सरोज !" - वह आश्चर्यचकित होकर बोला - "तुम यहां क्या कर रही हो ?"
"डॉक्टर !" - वह अपनी घबराहट पर काबू पाने की चेष्टा करती हुई बोली- "मैंने सोचा, शायद आपको मेरी जरूरत पड़े।"
"ओह अच्छा, अच्छा।" - डॉक्टर खुश होकर बोला "सुनील यह मेरे क्लीनिक की सबसे पुरानी नर्स है, सरोज। बड़ी जिम्मेदार लड़की है ।"
"शायद आप ही हैं जिनसे मैंने फोन पर बात की थी?"
"जी हां ।"
"बड़ी खुशी हुई आपसे मिलकर।" सुनील ने हाथ जोड़ते हुए कहा - "बस यही एक कसर थी, लड़कियों की यही एक कैटेगरी बाकी थी जिससे मेरी आज तक यारी नहीं हो पाई थी।" -
"जी !" - सरोज बौखलाकर बोली ।
"जी, मेरा मतलब है कि बड़ी खुशी हुई आपसे मिलकर।" - सुनील ने दुबारा हाथ जोड़े और बाहर आ गया ।
सुनील कुछ क्षण बाहर खिड़की के पास खड़ा रहा।
अन्दर से डॉक्टर की सरोज से बातें करन की आवाजें आ रही थीं।
“जयनारायण की हत्या हो गई है।" - डॉक्टर का स्वर सुनाई दिया ।
"क्या !" - सरोज का आश्चर्य-मिश्रित स्वर सुनाई दिया ।
डॉक्टर ने अपनी बात दोहराई ।
"किस समय ?" - सरोज ने पूछा ।
"ठीक समय मालूम नहीं ।”
"अब क्या होगा ?"
"भगवान जाने ।"
क्षण भर शांति छाई रही और फिर सरोज का स्वर सुनाई दिया।
"मुझे यह आदमी अच्छा नहीं लगा ।"
"कौन, सुनील ?"
"हां।"
"क्यों ?"
"मुझे तो सिरफिरा मालूम होता है । "
"क्या तुम उससे पहले भी मिल चुकी हो ?"
"नहीं।"
"फिर तुम उसके विषय में क्या खाक जानती हो ?"
"मैंने दरवाजे के बाहर खड़े होकर सारा वार्तालाप सुना था।"
"मेरा भी यही ख्याल था लेकिन फिर कभी ऐसी हरकत न करना ।"
“अच्छा ।”
सुनील ने कुछ क्षण प्रतीक्षा की, लेकिन वार्तालाप बन्द हो चुका था। सुनील चुपचाप वहां से हट गया और अपनी कार में स्टेयरिंग पर आ बैठा। उसे बड़े जोर की नींद आ रही थी। उसने घड़ी देखी, सवा तीन बज चुके थे। उसने एक बार जोर से आंखें मिचमिचाई और कार स्टार्ट कर दी। सुनील क्लीनिक से क्षण प्रतिक्षण दर होता जा रहा था, लेकिन उसके मस्तिष्क में अब भी दो चेहरे घूम रहे थे- डाक्टर और सरोज के ।
डाक्टर विधुर, सरोज अविवाहिता, बारह वर्ष के साथी, एकान्त वातावरण, रात का आखिरी पहर और न जाने क्या-क्या ।
उसने एक बार जोर से अपना सिर झटका और एक्सीलेटर पर पैर दबा दिया।
***
प्रातः साढ़े आठ बजे प्रमिला ने सुनील को झंझोड़कर जगाया। सुनील कुछ क्षण कसमसाता रहा, फिर उसने एक बार पूरी आंखें खोलकर प्रमिला को देखा और एक बार फिर आंखें बन्द कर लीं और बड़बड़ाकर बोला "हाय गुलबदन !"
प्रमिला का चेहरा क्रोध से लाल हो गया। उसने सुनील को गले से पकड़ा और एक बार पूरी ताकत से खींचकर उसका सर पलंग की पट्टी पर पटक दिया।
"हाय मार डाला !" - सुनील आंखें बंद किये-किये ही चिल्लाया ।
'अगर तुम अब भी नहीं उठे तो मैं तुम्हें जान से मार दूंगी।" - प्रमिला ने दांत पीसकर कहा ।
"कैसी बेरहम लड़की है ?" - सुनील आंखें मलता हुआ उठ बैठा "रात को भी आराम से नहीं सोने देगी ?"
"ये रात है ?" - प्रमिला ने उसके सिर को झटका देते हुए कहा "सूरज सिर पर आ गया है और तुम्हें रात दिखाई दे रही है । "
"अच्छा बाबा, दिन ही सही... चाय लाई हो ?"
"तुम्हारे बाप की नौकर हूं न, रात का खाना कौन खाएगा ? पहले उसे खाओ, फिर चाय मिलेगी ।"
"प्रमिला देवी जी, वह भी आपका यह गुलाम खाएगा, पहले चाय तो दो ।”
"चाय नहीं है । "
"पम्मी" - सुनील अनुनयपूर्ण स्वर में बोला "क्यों जुल्म कर रही हो । भगवान कसम खाना खाए हुए चौबीस घण्टे हो गए हैं, इस वक्त पेट में चूहे कूद रहे हैं। "
"और धक्के खाते फिरा करो रात-रात भर ।" - प्रमिला ने पलंग के नीचे से चाय की ट्रे निकालते हुए कहा । वास्तव में वह चाय साथ लाई थी । वह चाय बनाती रही और बड़बड़ाती रही- "मेरा वश चले तो जान से मार दूं तुम्हें ... आप तो मरते ही हो, औरों का भी खाना-पीना हराम कर रखा है। बारह बारह बजे तक बैठे रहो, नवाब साहब के लिये खाना लेकर।"
सुनील चुपचाप सुनता रहा, लेकिन चाय का कप हाथ में आते ही बोला- "तुम्हें कहा किसने है कि मेरा इन्तजार किया करो।"
" और तुमसे उम्मीद ही क्या है !" - प्रमिला दुखित स्वर में बोली ।
सुनील चुप हो गया। उसने चाय का कप होंठों से लगाया ही था कि उसे एक ख्याल आया ।
“तुमने चाय पी ली ?" - उसने प्रमिला से पूछा ।
"तुम्हारी बाला से !" - वइ तुनककर बोली ।
"रात को खाना खाया था ?"
प्रमिला चुप रही और स्थिर आंखों से खिड़की से बाहर देखने लगी ।
सुनील पलंग से उठ खड़ा हुआ और प्रमिला की ओर कप बढाकर बोला- "चाय लो।"
प्रमिला चुप बैठी रही ।
" अरे भई, लो ना ।" - सुनील बलपूर्वक कप उसे थमाते हुए बोला ।
केतली में है। " "तुम पियो।" - वह रुधे स्वर में बोली- "मेरे लिए
"वह मैं पी लूंगा।" - सुनील ने कहा और फिर एकदम बाहर की ओर भागा ।
लगभग दस मिनट बाद जब वह वापिस आया तो उसके हाथ में सैंडविच से लदी हुई एक प्लेट थी ।
"खाओ ।" - उसने प्लेट प्रमिला के सामने रखते हुए कहा।
"मैं सिर्फ चाय पीऊंगीं ।"
"देखूं कैसे सिर्फ चाय पीओगी ! तुम्हारे तो फरिश्ते भी खाएंगे यह सब ।" - सुनील ने अपने लिये चाय बनाते हुए कहा ।
लगभग दस मिनट बाद जब वह चाय पीकर उठे तो पहले के बोझिल वातावरण में स्वाभाविकता आ चुकी थी ।
"तुम्हारे नाम एक एक्सप्रेस लैटर आया हुआ है।" - प्रमिला ने उसे बताया ।
"कब आया था ?"
"लगभग आठ बजे ।" - प्रमिला ने उसे पत्र देते हुए कहा।
"सत्यानाश !" - सुनील ने पत्र पढकर प्रमिला की ओर बढाते हुए कहा ।
प्रमिला ने पत्र उसके हाथ से ले लिया।
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