रैना को टुम्बकटू का अपने से बोलना कुछ अजीब-सा लगा।


"विकास!" अचानक ठाकुर साहब उसे डांटते हुए कड़े स्वर में बोले ----- "तुम इन बातों से क्या लेते हो, चलो इधर आओ, ये हमारा काम है, हम खुद संभाल लेंगे।" 1


--"दादाजी!'' विकास शरारत के साथ बोला ----- "आप लंबू अंकल को दिलजली नहीं सुना सकते।" कहकर विकास वहां से हटकर रैना के पास आ गया था।


"जाओ रैना बेटी!" ठाकुर साहब बोले ---- "इस शैतान को घर ले जाओ-----जाओ विकास, बिना किसी शरारत के मम्मी के साथ घर जाओ।"


"वो तो मैं जा रहा हूं दादाजी! परंतु ये हेलीकॉप्टर मैं एयरपोर्ट से ले गया था, इसे भिजवा देना।"


"हमें रिपोर्ट मिल चुकी थी, तुम जाओ।"


-----"अच्छा लंबू अंकल, फिर मिलेंगे।" विकास रैना के साथ चलता हुआ टुम्बकटू से संबोधित होकर बोला ।


'अगली मुलाकात पर टक्कर भयानक होगी प्यारे शैतान!" टुम्बकटू मुस्कराकर बोला।


-----"शैतान छलावे से डरता नहीं है अंकल ! " वह चलता-चलता बोला।


- "इसीलिए तो छलावे को शैतान पसंद है। "


"ओके अंकल!" विकास रैना के साथ बाहर निकलता हुआ बोला-----"फिलहाल विदा।" और वह कोतवाली के बाहर निकल गया।


अभी वह और रैना एक टैक्सी में बैठने ही जा रहे थे कि अनेक पत्रकारों ने उन्हें घेर लिया तथा विकास से बोले ।


----- "हम आपका इंटरव्यू लेना चाहते हैं । "


-''घर पर मिलना।'' कहता हुआ विकास रैना के साथ टैक्सी में बैठ गया।


टैक्सी एक झटके के साथ आगे बढ़ गई।


पत्रकारों के चेहरों पर बारह बजे हुए थे।


ठाकुर साहब टुम्बकटू को रघुनाथ की सुरक्षा में छोड़कर किसी आवश्यक कार्य पर चले गए।


रघुनाथ ने टुम्बकटू को कोतवाली के ही एक कमरे में डलवा दिया और अपनी ओर से उसकी पूर्ण सुरक्षा कर दी।


इस समय रघुनाथ फूला नहीं समा रहा था। इतने छोटे पुत्र द्वारा ऐसा महान कार्य किए जाने पर भला कौन बाप खुश न होगा? किंतु एक तरफ उसके हृदय में धीमा-धीमा-सा यह भय था कि ये जरा-सा लड़का बिना किसी लोभ के इतने खतरनाक कार्यों में हाथ डाल देता है, कहीं वह किसी खतरे में फंसकर !


खैर इससे आगे वह नहीं सोच सका, क्योंकि तभी नारा लगाते हुए विजय ने प्रवेश किया- ."हैलो प्यारे तुलाराशि यानी कलयुगी सत्यानाशी!"


विजय की हरकत और वाक्य सुनकर रघुनाथ की भृकुटी तन गई। वह विजय को बुरी तरह घूरता हुआ बोला ----- "ये क्या बदतमीजी है?"


."किसी पंडत से पूछकर बताएंगे।" कहता हुआ विजय मेज के दूसरी ओर सामने की कुर्सी पर बैठ गया।


"यहां क्यों आए हो?" रघुनाथ रूखे स्वर में बोला।


-- "अमा यार तुलाराशि, तुम्हें क्या हो गया है ? " विजय बोला- "तुम तो मेरे पीछे ऐसे पड़ गए, जैसे झगड़ालू लुगाई अपने पति का बंटाधार कर देती है। " 


"ये कोतवाली है, बकवास मत करो।" रघुनाथ ने डांटा।


"तो फिर झकझकी चलेगी?'


"बको मत।" रघुनाथ का पारा उसी तरह हाई हुआ, जैसे थर्मामीटर को चाय में रखने से।


"सुना है, तुमने उस साले नमूने को गिरफ्तार कर लिया है।" विजय विषय परिवर्तन करके बोला।


." पुलिस के पंजे से कहां जाता?" विजय का वाक्य सुनकर रघुनाथ का सीना चौड़ाकर दूना हो गया। उसे ऐसा महसूस हुआ, जैसे स्वयं उसी ने टुम्बकटू को गिरफ्तार किया हो ।


दूसरी ओर विजय उसी प्रकार मस्का लगाता हुआ बोला।


"क्यों नहीं रघु डार्लिंग, आखिर तुम्हें भी काम करते

वर्षों हो गए।


पहले तो रघुनाथ विजय को घूरता रह गया, मानो वह जान गया हो कि विजय उसको खींच रहा है। अत: फिर अकड़कर बोला। -----"लेकिन तुम्हें इन बातों से क्या मतलब?"


----- " मैं उस साले नमूने के दर्शन करना चाहता हूं।"


पहले तो रपुनाथ उसे घूरता रहा, फिर न जाने क्या सोचकर बोला-----"चलो।"


कहने के साथ ही रघुनाथ उठ खड़ा हुआ। साथ ही विजय भी।


अभी वे ऑफिस के दरवाजे तक ही पहुंचे थे कि !


"आप लोग क्यों कष्ट कर रहे हो? मैं स्वयं यहां आ गया हूं।"


इस वाक्य पर वे दोनों इस बुरी तरह चौंके, मानो अचानक उन्हें कोतवाली में ताजमहल चमक गया हो!


इस आवाज को लाखों में पहचाना जा सकता था। आवाज शत-प्रतिशत टुम्बकटू की थी।


रघुनाथ और विजय, दोनों ही एक झटके के साथ पीछे घूम गए।


पीछे घूमते ही विजय को जहां थोड़ा आश्चर्य हुआ, वहां

रघुनाथ की आंखें तो आश्चर्य से फैल गई। विजय मूर्खों की भांति पलकें झपका रहा था।


उनके पीछे उसी कुर्सी पर जहां कुछ ही क्षणों पूर्व स्वयं रघुनाथ बैठा था, वहां इस समय वह पतला-दुबला, हड्डियों का ढांचा टुम्बकटू अपना सात फुटा गन्ने जैसा पतला जिस्म लिए न सिर्फ बैठा था, बल्कि उसने अपनी लंबी-लंबी सिगरेट जैसी टांगें सामने मेज पर फैला रखी थीं और वह बड़े आराम से अपनी विचित्र चौखुंटी सिगरेट सुलगा रहा था।


उसे देखकर वे दोनों ही आश्चर्य के सागर में गोते लगाने लगे, परंतु जहां रघुनाथ उस सागर में डूबता जा रहा था, वहां विजय ने स्वयं को निकाला और बोला-----"तो मियां ठुम्मकठू! तुम यहां भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आए।" कहता हुआ विजय उसके सामने उसी कुर्सी पर बैठ गया जहां वह पहले बैठा था।


रघुनाथ तो अभी तक अवाक-सा उस नमूने को देख रहा था ।


"मैंने कोई हरकत नहीं की है मिस्टर विजय!'


टुम्बकटू उसी प्रकार आराम से कुर्सी पर पसरता हुआ बोला-----"आप लोग मुझसे मिलने जा रहे थे, सोचा कि क्यों बेकार आप लोगों को कष्ट दूं! अर्थात स्वयं ही चला आया।"


-----"तो इसका मतलब ये हुआ मियां ठुम्मकठूं कि तुम हमारा बहुत ख्याल रखते हो। "


.'' मैं भला किस लायक हूं।" टुम्बकटू ने उसकी बात का जवाब दिया तथा फिर रघुनाथ से संबोधित होकर ----

बोला-----''अरे मिस्टर रघुनाथ, आप अभी तक खड़े क्यों हैं? आराम से बैठिए । "


टुम्बकटू के वाक्य पर रघुनाथ एकदम जैसे नींद से जागा। वह एकदम चौंककर बोला।


."तु... तुम यहां कैसे आ गए?"


'आराम से बैठकर बात करो।" टुम्बकटू मुस्कराकर बोला।


रघुनाथ इस विचित्र व्यक्ति की हरकतों और साहस पर आश्चर्यचकित रह गया। उसे तो सूझ भी नहीं रहा था कि वह क्या करे? उसने अपने पिछले जीवन में कभी ऐसा विचित्र व्यक्ति नहीं देखा था। वह अभी कुछ सोच ही रहा था कि विजय अपने समीप ही की कुर्सी की ओर संकेत करके बोला ।


." बैठ जाओ प्यारे तुलाराशि!"


आश्चर्य के सागर में डूबा रघुनाथ चुपचाप बैठ गया।


-"अब सुनाओ प्यारे ठुम्मकरूं, क्या हाल हैं?''


"हाल ही क्या है प्यारे झकझकिए !' टुम्बकटू आराम से पैर पसारकर बोला-----"ये मानना पड़ेगा कि विकास कल के हिंदुस्तान का ही नहीं, बल्कि विश्व का गौरव होगा। वास्तविकता तो ये है कि वह लड़का मुझे गिरफ्तार करने में इसलिए कामयाब हो गया, क्योंकि मैंने स्वयं उसे अवसर दिया। "


"बेटा ठुम्मकठू!" विजय बोला-----"ये तो कहने की बात है, जब हमारे भतीजे ने तुम्हारी सारी दादागिरी झाड़ दी तो अब ये कह रहे हो कि तुम जानकर ही गिरफ्तार हुए।"


."ये तो तुम्हें मानना ही पड़ेगा प्यारे झकझकिए!" टुम्बकटू सिगरेट का हरा धुआं लापरवाही के साथ उड़ाता हुआ बोला ----- "ये मैं वास्तव "ये मैं वास्तव में मान गया कि विकास इस - छोटी आयु में ही खौफनाक शैतान है, लेकिन तुम्हें यह भी मानना पड़ेगा कि अगर मैं उसे वास्तव में ढील न देता तो वह कुछ भी नहीं कर सकता था।"


'अब इस खोखली दादागिरी से कुछ नहीं होता, प्यारे ठुम्मकठू!"


."ये मैं तुम्हें इसी वक्त बता सकता हूं कि यह बात कहां तक सही है और कहां तक गलत?"


-----"वह कैसे ?"


- ''इन जूतों को देख रहे हो।" टुम्बकटू अपने विचित्र जूतों की ओर संकेत करता हुआ बोला----- "ये वो जूते हैं, जो हर समय मेरे पैरों में रहते हैं और मेरे एक संकेत पर ये किसी भी व्यक्ति को मौत की गहरी नींद सुला सकते हैं। "


-----"वो कैसे प्यारे?"


---- "यह तो खैर वक्त बताएगा, परंतु फिलहाल इतना समझ लो कि टुम्बकटू पर उसकी इच्छा के विरुद्ध कोई भी हाथ नहीं डाल सकता। ये सच है कि विकास काफी चतुर, समझदार और करामाती लड़का है और उसने मुझे गिरफ्तार करते समय इतनी बुद्धिमानी अवश्य दिखाई है कि मैं कुछ हरक्त न कर सकूं किंतु वह बेचारा नहीं जानता था कि जूतों की करामात दिखाने में मुझे कोई विशेष हरकत नहीं करनी पड़ती। अत: मैं अगर चाहता तो इन जूतों की करामात से विकास को क्षणमात्र में उसके कार्य में विफल कर सकता था, परंतु मैंने उसे इस बात का अवसर दिया कि वह कुछ कर सके और वास्तव में वह लड़का बहुत ही चतुर है । "


"अब अगर ."ये तो सब बहानेबाजी है ठुम्मकटूं!' तुम्हारी समझ में कुछ नहीं आएगा तो तुम्हारे पास ये शब्द कहने के अतिरिक्त कुछ नहीं, लेकिन इतना मैं भी मानता हूं कि विकास से प्रारंभिक टक्करों में मैंने अपनी ओर से उसे ढील दी, परंतु उस वक्त वास्तव में उसने मुझे नर्वस कर दिया, जब पेड़ की लकड़ियों और डोरी में उसने मुझे कस लिया। मैं, उस स्थिति में बिल्कुल ही असफल हो गया था। उस स्थिति के पश्चात मैं कुछ करना चाहकर भी कुछ न कर सका और वह विचित्र ढंग से मुझे यहां ले आया, किंतु अब मैं फिर यहां हूं।"


"मेरी समझ में यह नहीं आता प्यारेलाल कि आखिर तुम चाहते क्या हो ?"


."सिर्फ मनोरंजन कर रहा हूं।" टुम्बकटू उसी प्रकार लापरवाही से बोला ।


इससे पूर्व कि विजय कुछ कहता, एक इंस्पेक्टर हड़बड़ाया-सा कमरे में प्रविष्ट हुआ, किंतु अंदर प्रविष्ट होते ही रघुनाथ वाली कुर्सी पर टुम्बकटू को देखते ही वह बुरी तरह बौखलाकर ठिठक गया और बोला---- "स... साब.. य... ये । "


"हां प्यारे !" विजय इंस्पेक्टर की ओर घूमकर बोला-----"ये तुम्हारे चिड़ियाघर से निकलकर यहां आ गया और तुम हमें यह रिपोर्ट अब देने आए हो।"


इंस्पेक्टर की आंखों में हैरत के भाव थे।


---"मिस्टर झकझकिए!" टुम्बकटू बोला---- "अब देखो इस जूते का कमाल।"


अभी कोई कुछ समझ भी न पाया कि वहां बेहद फुर्ती के साथ दो ध्वनियां हुई।


टुम्बकटू के शब्दों के साथ ही!


'सन्न... न.....न...न'


एक तीव्र ध्वनि के साथ पलक झपकते ही टुम्बकटू के दाएं जूते के अग्रिम भाग से निकलकर एक सिक्का इंस्पेक्टर के मस्तिष्क से जा चिपका। यह सिक्का अत्यधिक चमकीला और आकार में पचास पैसे के सिक्के के बराबर था ।


ज्यों ही वह चमकीला सिक्का इंस्पेक्टर के माथे पर चिपका, उसी पल इंस्पेक्टर के कंठ से एक हृदयविदारक खौफनाक चीख निकली।


विचित्र दृश्य को देखकर विजय स्वयं चकरा गया।


वह चमकीला सिक्का इंस्पेक्टर से ठीक बिल्कुल उस प्रकार चिपका था कि जैसे किसी ने चिपका दिया हो, बल्कि उस सिक्के के नीचे के मस्तिष्क का मांस जलने लगा और धुआं निकलने लगा। धुएं का रंग दूध की भांति सफेद था।


इंस्पेक्टर इस तरह तड़पा कि कड़े-से-कड़े दिल वाले को भी घृणा हो जाए। वह इस प्रकार दयनीय स्थिति में तड़पा था, मानो उसका जिस्म भयानक आग में जल रहा हो। वह तड़पता हुआ इधर-उधर घूम रहा था। साथ ही बुरी तरह चीख रहा था।


उसकी चीखें सुनकर वहां उपस्थित अन्य लोग भी हड़बड़ाए-से वहीं दौड़कर आए, परंतु इंस्पेक्टर को इस प्रकार तड़पता देखकर सब उसे भयभीत दृष्टि से देखने लगे।


चीखते हुए इंस्पेक्टर ने अपने हाथ से माथे पर चिपका वह चमकीला सिक्का छुड़ाने का प्रयास किया, परंतु सिक्के से हाथ स्पर्श होते ही उसके हाथ से भी वैसा ही सफेद सुआ निकलने लगा और उसी पल वह बुरी तरह तड़पता हुआ फर्श पर गिरा।


फर्श पर पड़ा हुआ इंस्पेक्टर इस तरह बिलबिला रहा था मानो छिपकली की कटी पूंछ ।


कुछ ही पलों में वह शांत हो गया। वहां मौत का सन्नाटा था।


सब लोग हैरत के साथ इंस्पेक्टर के शव को देख रहे थे । वह चमकीला सिक्का उसके माथे पर उसी प्रकार चिपका था। हुआ


." इसे दुनिया के झंझटों से आजादी मिल गई है।" वहां छाया सन्नाटा टुम्बकटू ने भंग किया। सबकी गरदनें एक ने झटके के साथ टुम्बकटू की ओर घूम गई ।


और वह खतरनाक नमूना टुम्बकटू उसी प्रकार आराम से बैठा इस प्रकार मुस्करा रहा था मानो कुछ हुआ ही न हो। वह फिर बोला-----"टुम्बकटू एक बार पलक झपकने में दस खून कर सकता है मिस्टर झकझकिए ! "


'तुम्हारा खून भी उतने ही समय में हो सकता है लंबू अंकल!"


अचानक विकास की आवाज ने सभी को बुरी तरह से चौंका दिया। यहां तक कि स्वयं टुम्बकटू भी उछल पड़ा, परंतु कुछ


हरकत न कर सका, क्योंकि उसकी दोनों पसलियों में दो रिवॉल्वरों की सख्त नालें चिपकी हुई थीं।


विकास उसकी कुर्सी के पीछे से प्रकट हुआ था। उसके हाथ में दो रिवॉल्वर थे। सब आश्चर्य के साथ उस सुंदर और खतरनाक लड़के को देखते रह गए।


जबकि विकास दोनों रिवॉल्वरों का दबाव बढ़ाकर बोला ।


." अगर तुम छलावे हो अंकल, तो मुझे भी लोग शैतान कहते हैं।"


." मानते हैं भतीजे, कि तुम वास्तव में शैतान हो । " टुम्बकटू उसी प्रकार मुस्कराता हुआ बोला ।


'अंकल, छलावे से कम आप भी नहीं।" विकास अभी कह ही रहा था कि सभी एक बार फिर बुरी तरह चौके। लाख सतर्क रहने के पश्चात भी विकास कुछ न कर सका।


एक ही झटके के साथ विकास के रिवॉल्वर उसके हाथ से

निकलकर टुम्बकटू के नाखूनों में आ चिपके।


और उसी समय!


जांबाजों के गुरु विजय ने एक भयानक हरकत की।


वह फुर्ती और भयानक तरीके से लहराकर टुम्बकटू पर लपका।


-----"ओफ्फो!'' टुम्बकटू पास ही खड़ा कह रहा था ----- "यार, तुम तो बैठने भी नहीं देते। "


और एक विजय था कि वह खाली कुर्सी पर जाकर गिरा। साथ ही झटके के साथ कुर्सी को लिए लिए वह धड़ाम से फर्श पर जा गिरा।. -


तभी विकास फुर्ती के साथ टुम्बकटू पर झपटा।


- "तुम भी बेवकूफी दिखाने के भतीजे।" अचानक टुम्बकटू बोला और साथ ही एक झन्नाटेदार चपत विकास के गोरे, गाल पर रसीद कर दिया।


विकास के नेत्रों के आगे क्षणमात्र के लिए लाल-पीले तारे नाचे और फिर गाढ़ा अंधकार छाता चला गया। अंत में वह अचेत होकर गिर गया।


उसके बाद !


उस छोटे-से ऑफिस में भयानक उत्पात जारी हो गया।


लगभग सभी इंसान टुम्बकटू को दबोचना चाहते थे, परंतु एक टुम्बकटू था कि वास्तव में किसी छलावे से भी अधिक भयानक तेजी के साथ उछल-उछलकर सबको छका रहा था।


सब उस पर झपटते, किंतु आपस ही में भिड़कर रह जाते। जबकि वह भयानक सात फुटा लंबा-पतला छलावा किसी अन्य स्थान पर खड़ा कोई ऐसा वाक्य कहता पाया जाता-----जो उन लोगों के क्रोध की जलती अग्नि में घी जैसा कार्य करता।


परंतु आग प्रचंड होकर भी कुछ कर नहीं पाती।


टुम्बकटू को छूना मानो हवा को छूना था। प्रत्येक वाक्य के साथ किसी-ना- किसी को उसका झन्नाटेदार चपत पड़ता, परिणामस्वरूप उसकी आंखों के सामने गाढ़ा, काला अंधकार छा जाता।


रघुनाथ टुम्बकटू के चपत का शिकार हो चुका था।


परिणाम लिखने की आवश्यक्ता नहीं !


छोटा-सा ऑफिस पल भर में अस्त-व्यस्त हो गया। -


विजय अभी कुछ करना ही चाहता था कि एकदम ठिठकं गया।


लगभग सभी के हाथ जहां-के-तहां थम गए। स्वयं टुम्बकटू के भी! सबका ध्यान एक ओर ही केंद्रित था।


ये तो उनमें से कोई नहीं जानता था कि संगीत की ये मदहोश कर देने वाली शहद से भी अधिक मघुर लहरें समूची कोतवाली में गूंज रही हैं अथवा नहीं ----- लेकिन इतना सब जानते थे कि इस ऑफिस में निस्सन्देह गूंज रही हैं।


संगीत की ये लहरें इतनी मीठी, इतनी अधिक मदहोश कर देने वाली थीं कि वहां उपस्थित प्रत्येक इंसान ने ऐसा महसूस किया मानो वे इन मधुर लहरों की तरंगों के सागर में डूबते जा रहे हों! धीमा-धीमा मधुर संगीत जैसे सबके दिल में उतरता जा रहा था! सभी अवाक् से होकर संगीत की लहरों में खो गए!