बख्तावर ने आगे बढ़ कर दरवाजा खोला ।
दो आदमी भीतर दाखिल हुये ।
एक आदमी बहुत विशालकाय और भद्दे चेहरे वाला था । दूसरा दुबला पतला और ठिगना था लेकिन वह पहले वाले से ज्यादा खूंखार लगता था ।
दोनों खामोशी से दरवाजे के पास खड़े हो गए ।
"यह वो आदमी है ।" - बख्तावर विकास की तरफ संकेत करता हुआ उनसे सम्बोधित हुआ "महाजन के कत्ल के सिलसिले में जिसकी पुलिस को तलाश है । यह आदमी आत्महत्या करके एक तरह से अपराध स्वीकार करेगा। तुम लोगों ने इस काम में इसकी मदद करनी है । और बातें तुम्हें अमीरी समझा देगा ।" -
तीनों आदमियों ने सहमति में सिर हिलाया । उन्हें एक आदमी का कत्ल करने के लिए कहा जा रहा था और उसकी उन पर ऐसी प्रतिक्रिया हुई थी जैसे बख्तावार सिंह उन्हें मोड़ की दुकान पर जाकर एक सिगरेट का पैकेट लाने के लिए कह रहा था ।
"चलो।" - अमीरी लाल अपनी रिवाल्वर की नाल से दरवाजे की तरफ इशारा करता हुआ विकास से बोला ।
वे लोग आगे पीछे एक कतार में बाहर निकले ।
सबसे आगे मोटा, पीछे दुबला, फिर विकास और फिर अमीरी लाल । उसने रिवाल्वर वाला हाथ अपनी जेब में डाल लिया था लेकिन रिवाल्वर पर से हाथ हटाया नहीं था।
सबसे पीछे बख्तावर सिंह था ।
नीचे बार बन्द हो चुका था। दो बारमैन गिलास साफ कर रहे थे और काउन्टर रगड़ रहे थे। ग्राहक के तौर पर वहां केवल एक ही व्यक्ति मौजूद था- सिन्धी कार डीलर मेहतानी का युवा सेल्समैन राजेन्द्र ।
नीचे पहुंचकर बख्तावर सिंह बिना एक शब्द भी बोले उनसे अलग हो गया ।
वे बाहर पहुंचे ।
विकास, दुबला और अमीरी लाल दरवाजे के पास ही ठिठक गये । मोटा इमारत से परे कहीं चला गया । थोड़ी देर बाद वह एक कार ड्राइव करता हुआ उनके समीप पहुचा ।
अमीरी लाल ने विकास को कार की पिछली सीट की तरफ टहोका । विकास कार में दाखिल हुआ । उसके बाद पतला भीतर दाखिल हुआ । उसके भी हाथ में एक रिवाल्वर प्रकट हुई । उसने रिवाल्वर विकास के पहलू से सटा दी । कार का घेरा काट कर अमीरी लाल परली तरफ पहुंचा और उधर का दरवाजा खोल कर विकास के दूसरे पहलू में आ बैठा ।
“हनुमान !” - अमीरी लाल ने ड्राइविंग सीट पर बैठे मोटे को सम्बोधित किया - "सुभाष रोड पर स्टार होटल जाना है। कार होटल से जरा इधर या उधर ही खड़ी करना ।”
हनुमान के नाम से पुकारे जाने वाले मोटू ने सहमति में सिर हिलाया और कार आगे बढा दी ।
यानी कि पतले का नाम जनक था विकास ने मन ही मन सोचा ।
कार बार के कम्पाउन्ड से बाहर निकली और सुनसान सड़क पर दौड़ चली ।
वे सुभाष रोड पहुंचे ।
हनुमान ने कार को होटल की बगल की एक पतली अंधेरी गली में दाखिल करके रोका ।
“अपना कमरा नम्बर बोलो ।" - अमीरी लाल विकास से बोला ।
विकास ने उत्तर नहीं दिया ।
अमीरी लाल ने हाथ चलाया । विकास की टोपी उसके सिर से उतर कर फिर उसकी गोद में आ गिरी । अमीरीलाल ने उसे बालों से पकड़ लिया और जोर से बालों को उमेठा ।
विकास की गर्दन घूम गई । पीड़ा से उसकी आंखों में आंसू छलक आये ।
“अपना कमरा नम्बर बोलो ।" - अमीरीलाल फिर बड़े सहज भाव से बोला ।
"105" - विकास कठिन स्वर में बोला ।
“शाबाश ।" - अमीरीलाल जनक से सम्बोधित हुआ "इसको कवर करके रखना ।"
उसने अपनी रिवाल्वर जेब में रख ली और कार से बाहर निकला ।
“कहां जा रहे हो ?" - जनक ने पूछा ।
"इसका कमरा देखने ।" - अमीरीलाल बोला - " और रिसैप्शन से गुजरे बिना इसके कमरे तक पहुंचने का कोई रास्ता तलाश करने होटल में जा रहा हूं।"
जनक ने सहमति में सिर हिलाया ।
वह गली में से निकल कर होटल की तरफ बढ़ गया ।
हनुमान ने अपनी जेब में से एक सिगरेट का मुड़ा-तुड़ा पैकेट निकाला । उसने एक सिगरेट अपने होंठों से लगाया, अपनी जेबें टटोलीं और फिर जनक से बोला - "माचिस देना ।"
जनक का खाली हाथ उसकी जेब में सरक गया । माचिस निकालने की क्रिया के दौरान उसकी निगाह तो विकास पर से न हटी लेकिन एक क्षण के लिए रिवाल्वर की नाल जरूर उसके पहलू से परे हो गई ।
विकास ने अपनी टोपी अपने हाथ में थामी हुई थी । उसकी पीक वाला अग्रभाग कार्डबोर्ड का था और बहुत सख्त था । एकाएक उसने टोपी के अग्रभाग का वार जनक की आंखों पर किया ।
जनक जोर से चिल्लाया ।
उसी क्षण विकास का हाथ उसके रिवाल्वर वाले हाथ पर पड़ा । उसकी उंगलियां उसके सिलेंडर पर इस प्रकार कस गई कि वह घूम न सके और उसमें से गोली न चल सके । उसने टोपी हाथ से निकल जाने दी और अपने दूसरे हाथ का प्रहार जनक की रिवाल्वर वाली कलाई पर किया । जनक की उंगलियां खुल गई । रिवाल्वर उसके हाथ से निकल गई और उसके दोनों हाथ टोपी के नोकीले अग्रभाग से घायल अपनी आंखों पर जाकर पड़े ।
हनुमान अपने विशाल शरीर के लिहाज से बहुत फुर्तीला निकला । अपने साथी के चिल्लाने की आवाज सुनते ही उसका हाथ अपनी जेब में रखी रिवाल्वर पर जाकर पड़ा। पलक झपकते ही उसकी रिवाल्वर उसके हाथ में प्रकट हुई लेकिन जब तक उसने उसका रुख कार के पिछले हिस्से की तरफ किया, तब तक जनक की रिवाल्वर विकास के हाथ में आ चुकी थी । उसने रिवाल्वर को सीधा करने में समय नष्ट नहीं किया । उसको सिलेंडर की ओर से पकड़े-पकड़े ही उसने उसका प्रहार अपने सामने किया ।
रिवाल्वर का दस्ता इतने जोर से हनुमान की ठोड़ी से टकराया कि विकास का अपना हाथ झनझना गया । एक ही वार इतना शक्तिशाली साबित हुआ कि हनुमान औंधे मुंह सीट पर उलट गया ।
विकास ने वैसा ही एक प्रहार जनक की खोपड़ी पर जमाया । उसका कराहना फौरन बन्द हो गया । कार के दरवाजे के साथ लगी उसकी पीठ नीचे को सरकी और उसकी ठोड़ी उसकी छाती से आ लगी ।
विकास ने उसकी तरफ का दरवाजा खोला और उसके अचेत शरीर को कार से बाहर धकेल दिया । उसी दरवाजे रास्ते वह बाहर निकला । उसने वह दरवाजा बन्द किया और अगला दरवाजा खोला ।
उसने हनुमान का मुआयना किया ।
वह भी जनक की तरह एकदम बेहोश था ।
विकास ने रिवाल्वर अपनी जैकेट की जेब में डाली और हनुमान को उसके भारी कन्धों से पकड़ कर बाहर घसीटा।
बड़ी कठिनाई से वह उसके विशाल शरीर को कार से बाहर निकाल पाया ।
वह कार में सवार हो गया ।
अभी उसने कार का इंजन स्टार्ट ही किया था कि गली के दहाने पर अमीरी लाल प्रकट हुआ ।
विकास ने कार को बैक करने का ख्याल छोड़ दिया और उसे गली में आगे भगा दिया |
पीछे से अमीरी लाल ने फायर किया ।
कार का पिछला शीशा तड़का, गोली भीतर कहीं छत से टकराई ।
दूसरी गोली चलने की नौबत न आई । अब तक कार गोली के रेंज से बहुत परे निकल आई थी ।
गली में से निकल कर उसने कार आगे गली के दहाने पर मौजूद चौड़ी सड़क पर भगा दी ।
उस क्षण उसके मन में एक ही ख्याल था कि उसने बख्तावर सिंह आदमियों से ज्यादा से ज्यादा दूर निकल जाना था ।
अब वह सोचने लगा कि बख्तावर सिंह का अगला कदम क्या होगा ।
उस शहर की पुलिस चाहे उसकी जेब में थी लेकिन फिर भी विकास को इस बात की सम्भावना नहीं के बराबर लगी कि वह पुलिस को उसके पीछे लगाता। क्योंकि बख्तावर सिंह यह तो चाहता ही नहीं था कि वह जिन्दा पुलिस के हाथ पड़ता । इसलिए जहां तक पुलिस का सवाल था, उसका मौजूदा बहुरूप अभी भी उसके काम आ सकता था ।
लेकिन बख्तावर सिंह का अपना गैंग भी कोई छोटा नहीं था । उसके अपने आदमी भी बेशुमार थे जो कि उसकी तलाश में लग जाने वाले थे। अब उसने न केवल पुलिस से बल्कि बख्तावर सिंह के गुण्डों से भी बचकर रहना था।
जिस कार में वह सवार था, वह भी उसे फंसवा सकती में थी । अब सबसे पहले तो उसने उस कार से ही पीछा छुड़ाना था । वह उसको छोड़ने के लिये किसी ऐसी जगह के बारे में सोचने लगा जहां वह तुरन्त किसी की निगाह में न आ पाती ।
अब तक वह सुभाष रोड से बहुत दूर निकल आया था
तभी कार रिचमंड रोड पर दाखिल हुई ।
आगे महाजन का कार बाजार था ।
पहले तो उसने वहां से सीधे गुजर जाना चाहा लेकिन फिर कुछ सोच कर उसने कार रोक दी । उसने भीतर कम्पाउन्ड में एक निगाह दौड़ाई । रात के उस समय कम्पाउन्ड उजाड़ पड़ा था ।
कार के लिये वह सुरक्षित जगह थी । जल्दी वह किसी की निगाह में नहीं आने वाली थी। उस जगह का मालिक मर चुका था और वहां की दुकानदारी पता नहीं कब दोबारा शुरू होने वाली थी । बहरहाल उसकी कार कहां गायब हो गई थी, इस बात की खबर फौरन बख्तावर सिंह को नहीं लगने वाली थी।
उसने कार वहां दो कारों के बीच मौजूद खाली जगह में पार्क कर दी और फिर पैदल सड़क पर आगे बढा ।
एक स्थान पर उसे कूड़े का ड्रम दिखाई दिया । अपने सिर से टोपी उतार कर उसने ड्रम में डाल दी । अब उसकी वह टोपी भी मशहूर जो हो जाने वाली थी ।
अन्धेरे की ओट में वह पैदल आगे बढता रहा ।
वह अपनी जेब में आदतन ज्यादा पैसे नहीं रखता था, इसलिये उस वक्त उसकी जेब में मुश्किल से सौ रुपये थे। उसकी बाकी की रकम उसके स्टार होटल के कमरे में मौजूद थी जहां लौटना आत्महत्या करने जैसा काम साबित हो सकता था ।
वह मनोहर लाल या शबनम को पैसे के लिए फोन कर सकता था । लेकिन उस वक्त उसकी बड़ी समस्या पैसा नहीं थी । पैसे से ज्यादा कमी उसे वक्त की थी। उसने पुलिस द्वारा या बख्तवार सिंह के आदमियों द्वारा पकड़ लिये जाने से पहले साबित करके दिखाना था कि वह हत्यारा नहीं था ।
उसे अब इस बात की लगभग गारन्टी थी कि महाजन की मौत के लिए बख्तावर सिंह जिम्मेदार नहीं था ।
तो फिर कौन था हत्यारा ?
क्या महाजन की बीवी ?
उसकी आंखों के सामने सुनयना महाजन की सूरत घूम गई ।
क्या वह औरत हत्यारी हो सकती थी ?
हो तो सकती थी ।
लेकिन यह साबित कैसे किया जाता कि वह हत्यारी थी ? क्या वह उससे मिले और कुछ सूंघने की कोशिश करें ? लेकिन वह तो उसकी सूरत देखते ही पुलिस पुलिस की दुहाई देने लग सकती थी ।
फिर उसे योगिता का ख्याल आया ।
योगिता को अपनी सौतेली मां से बनती नहीं मालूम होती थी ।
क्या योगिता सुनयना के खिलाफ उसकी तरफदारी कर सकती थी ?
उसके दिल ने गवाही दी कि योगिता उसकी मदद करने को राजी हो सकती थी । मदद वह न भी करती तो भी वह उसको देखते ही पुलिस पुलिस की दुहाई तो हरगिज न देने लगती । आखिर वह एक बार उसे पुलिस के चंगुल में आने से बचा चुकी थी ।
लेकिन तब और बात थी उसने अपने आप से बहस की - तब उसे मालूम नहीं था कि असल में माजरा क्या था लेकिन अब वह उसके बाप का कातिल ठहराया जा रहा था । क्या अब भी वह उसकी मदद करेगी ?
वह अपने विवेक के साथ बहस में हार रहा था लेकिन फिर भी उसने योगिता सम्पर्क स्थापित करने का फैसला कर लिया ।
उसने घड़ी देखी ।
एक बज चुका था ।
इतनी रात गये वह उससे कहां सम्पर्क स्थापित करे ? वह तो जानता ही नहीं था कि वह कहां रहती थी। अपने बाप के साथ तो वह हरगिज नहीं रहती होगी । वह वहां रहती होती तो होटल रिसैप्शनिस्ट की मामूली नौकरी न कर रही होती ।
तो फिर कहां ?
उसने रिवर व्यू होटल में रिंग करने का फैसला किया ।
थोड़ा आगे सड़क पर एक पैट्रोल पम्प था । पैट्रोल पम्प तो बन्द हो चुका था लेकिन उसके एक पहलू में बने टेलीफोन बूथ में रोशनी दिखाई दे रही थी । विकास समीप पहुंचा तो उसने उसका दरवाजा भी खुला पाया ।
उसने डायरेक्ट्री में होटल रिवर व्यू का नम्बर देखकर उस पर टेलीफोन किया ।
दूसरी ओर से उत्तर मिलते ही वह बोला - "क्या आप मुझे अपनी रिसैप्शनिस्ट मिस योगिता महाजन का पता...
"होल्ड कीजिये।" - दूसरी ओर से उत्तर मिला । विकास रिसीवर कान से लगाये खड़ा रहा।
"हल्लो ।" - थोड़ी देर बाद उसके कान में एक नया स्त्री स्वर पड़ा - "कौन है ? "
विकास हैरान हो गया ।
वह योगिता की आवाज थी ।
तो क्या वह रात की ड्यूटी पर थी ?
जरूर यही बात थी ।
"मैं विकास गुप्ता बोल रहा हूं।" - वह माउथपीस में बोला।
"विकास ?" - वह हैरानी से बोली ।
“योगिता, फोन बन्द मत कर देना । प्लीज | "
"क्या चाहते हो ?"
"सबसे पहले तो मैं तुम्हारा विश्वास चाहता हूं "
"लेकिन अखबार में..."
'अखबार में तो कुछ छपा है वह सच नहीं है । अखबार में जो कुछ लिखा है, वह मैंने नहीं किया । योगिता, भगवान के लिये मेरा विश्वास करो ।"
"लेकिन..."
"मेरी प्रार्थना है कि तुम मुझे एक बार सफाई देने का मौका दो ।"
"तुम क्या कहना चाहते हो ?"
"सबसे पहले तो मैं यही कहना चाहता हूं कि मैं जानता हूं कि यह कत्ल किसने किया हो सकता है । असली कातिल को इस अजनबी शहर में मैं अकेला नहीं पकड़वा सकता। इस सिलसिले में मुझे किसी की मदद चाहिये । और तुम्हारे सिवाय मुझे ऐसा कोई नहीं दिखाई दे रहा जो मेरी मदद कर सकता हो । योगिता, मुझे एक बार अपने से मिलने का मौका दो।"
“कब ?”
"अभी ।"
“इतनी रात गये ? जानते हो क्या टाइम हुआ है ?"
"जानता हूं । लेकिन जब तुम ड्यूटी पर हो तो तुम्हें मेरे से मिलने में कोई खास दिक्कत पेश नहीं आयेगी ।"
"ड्यूटी पर ? कौन ड्यूटी पर है ? "
"तुम ।”
"मेरी ड्यूटी तो शाम छ: बजे तक होती है ।"
"तुम इस वक्त ड्यूटी पर नहीं हो ?"
"नहीं।"
"तो फिर तुम होटल में क्या कर रही हो ?"
" और कहां जाऊं ? मैं तो रहती ही यहां हूं।"
"क्या ?"
"क्या बात है? तुमने मुझे फोन किया है । तुम्हें यह मालूम कि मैं कहां रहती हूं ?"
"नहीं मालूम ।"
"तो तुमने मुझे फोन कैसे किया ?"
"मैंने तो होटल के नम्बर पर तुम्हारा पता पूछने के लिए फोन किया था । आपरेटर ने मेरी पूरी बात भी नहीं सुनी थी, मुझे होल्ड करा दिया । फिर जब फोन में दोबारा आवाज आई तो वह तुम्हारी थी ।”
"ओह ! मैं होटल में ही रहती हूं। यहां की नौकरी में किसी को होटल के एक होस्टलनुमा ब्लाक में एक कमरा मिलता है । यह सुविधा तनख्वाह में शामिल है। मैं तो सोई हुई थी और टेलीफोन की घण्टी सुनकर जागी थी।"
"क्या मैं वहां आ सकता हूं ?"
“इतनी रात गये ?”
"यह जरूरी है । कल तक बहुत देर हो चुकी होगी योगिता, अगर इसी वक्त मेरा तुमसे मिलना जरूरी न होता तो मैं हरगिज भी ऐसी जिद न करता ।"
उसने उत्तर नहीं दिया ।
“योगिता ।” - विकास व्यग्रभाव से बोला- "इस वक्त दर-दर भटक रहा हूं। अगर मैं यूं ही भटकता रहा तो यह हो सकता है कि सुबह तक मैं बख्तावर सिंह के आदमियों के हाथ पड़ जाऊं ।"
"वह किसलिये ?"
"यह एक लम्बी कहानी है। लेकिन बख्तावरसिंह को पुलिस से भी ज्यादा तलाश है मेरी ।”
"क्यों ?"
"कहा न वह लम्बी कहानी है जो मैं मुलाकात होने पर सुनाऊंगा । अब बोलो, तुम मुझे वहां आने दे सकती हो ?"
“आने तो मैं दे सकती हं लेकिन मेरे पास आना क्या तुम्हारे लिए समझदारी का काम होगा ?"
"क्या मतलब ?”
"तुम मेरे पिता के कातिल बताये जाते हो। तुम्हें इस बात का डर नहीं लगता कि तुम्हें यहां बुलाकर शायद मैं पुलिस को भी बुला लूं ?"
"योगिता, मैं ईश्वर की कसम खाकर कहता हूं, मैं तुम्हारे पिता का कातिल नहीं । लेकिन अगर तुम्हें मेरी बात पर विश्वास नहीं तो तुम शौक से पुलिस बुलवा रखना।"
"तुम होटल तक कितनी देर में पहुंच सकते हो ?"
"मैंने पैदल चलकर आना है।" - योगिता के स्वर में तब्दीली आई देखकर विकास ने चैन की एक लम्बी सांस ली 'आधा घण्टा तो लग ही जायेगा ।”
"ठीक है । होटल के पिछवाड़े में पहुंचना । आधे घन्टे बाद मैं तुम्हें पिछवाड़े वाले दरवाजे पर मिलूंगी।"
"शुक्रिया ।"
विकास ने रिसीवर रख दिया और बूथ से बाहर निकला
मुख्य सड़क से परहेज करके अन्धेरी गलियों में चलता हुआ आधे घन्टे में वह रिवर व्यू होटल के पिछवाड़े में पहुंच गया ।
पिछवाड़े का दरवाजा खुला था ।
विकास ने झिझकते हुए भीतर कदम रखा ।
लिफ्ट के करीब गले से टखनों तक आने वाला एक गाउन पहने योगिता खड़ी थी ।
तब पहली बार अपनी जैकेट की जेब में मौजूद जनक की रिवाल्वर पर से उसकी उंगलियों की पकड़ ढीली हुई ।
योगिता पर उसके आकर्षक व्यक्तित्व का फेमस जादू अभी तक चला हुआ था । तभी तो उसके स्वागत के लिए वहां पुलिस नहीं वह खुद मौजूद थी।
विकास ने अपने पीछे दरवाजा बन्द कर दिया ।
योगिता लिफ्ट में दाखिल हो गई ।
विकास भी चुपचाप उसके साथ लिफ्ट में दाखिल हो गया।
योगिता ने एक बटन दबाया, लिफ्ट का दरवाजा बन्द हुआ और उसका पिंजरा ऊपर को उठने लगा ।
विकास ने नोट किया कि योगिता ने अपने बालों में कंघी फिरा ली थी और चेहरे पर हल्का-सा मेकअप भी लगा लिया था । यह बात विकास के लिए बड़ी आशाजनक थी। अगर योगिता ने अपने बाप के कथित हत्यारे के साथ बेरुखी से पेश आना होता तो उसने आधी रात को सोते से उठकर यूं अपने आपको आकर्षक बनाने की कोशिश न की होती ।
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