विक्रम ने डोम लाइट की रोशनी में देखा । वो स्टूडियो में खींची गई न होकर टेलीफोटो लैंस द्वारा खींची गई फोटो थी । उसके मुताबिक करीम खान चेहरे-मोहरे से ही खतरनाक और मक्कार नजर आता था-काले घुंघराले बाल, ऊंचा माथा, घनी भौंहें, मक्कारी छलकाती बड़ीबड़ी काली आंखें, लम्बी लेकिन कुबड़ी नाक, निहायत पतले होंठ और तनिक लम्बी ठोढ़ी ।



"इसकी उम्र करीब पैंतालीस साल है, रंग सांवला और कद लगभग पौने छ: फुट । सेहत अच्छी है और निशाना अचूक है ।" सान्याल जानकारी देता हुआ बोला-"मैं समझता हूं, तुम आसानी से उसे पहचान सकोगे ।"



विक्रम ने सिर हिलाकर सहमति दी और आखिरी निगाह डालने के बाद फोटो वापस लौटा दी ।



सान्याल ने फोटो जेब में रखने के बाद दूसरी जेब से एक लिफाफा निकाला और उसे दे दिया ।



"इसमें बीस-बाइस दूसरे एजेंट्स की फोटुएं हैं ।" वह बोला-"जो हमारी जानकारी में आसपास के शहरों में सक्रिय हैं । इन्हें भी गौर से देख लो ताकि इनमें से कोई तुम्हारे सामने पड़ जाए तो पहचान सको ।"



"तुम समझते हो महज एक दफा फोटो देखकर इतने सारे, लोगों की शक्लें याद रखी जा सकती हैं ।" विक्रम ने पूछा ।



"मैं जानता हूं सभी को याद रख पाना बहुत मुश्किल है । फिर भी देख लेने में कोई हर्ज तो नहीं है ।"



विक्रम ने बहस करने की बजाय लिफाफे से एक-एक करके पोस्टकार्ड साइज फोटुएं निकाल कर देखनी शुरू कर दी ।



उसे एक भी चेहरा परिचित प्रतीत नहीं हुआ । अलबत्ता एक ग्रुप फोटो में मौजूद एक आदमी को देखकर वह तनिक चौंका । उसकी शक्ल कुछ पहचानी-सी तो लगी मगर याद नहीं आ सका कि वह कौन था या पहले उसे कहां देखा था । वो फोटो एक पार्टी की थी जिसमें शराब और शबाब का बोलबाला रहा प्रतीत होता था । फोटो में विभिन्न उम्र वाले तीनों आदमियों के पहलू में जवान छोकरियां मौजूद थीं ।



उसने तमाम फोटुएं वापस लिफाफे में डालकर सान्याल को लौटा दीं ।



"कुछ और पूछना या जानने चाहते हो ?" सान्याल ने पूछा ।



"नहीं, शुक्रिया ।" विक्रम बोला-"मुझे किसी ऐसी जगह ड्राप कर देना जहां से टैक्सी मिल सके ।"



"ठीक है ।"



दोनों खामोश हो गए । टैक्सी सुनसान प्रायः सड़क पर दौड़ती रही ।



******



विक्रम जानता था, वह अकेला किरण वर्मा का पता नहीं लगा सकेगा । इसलिए उस बारे में सोचकर दिमाग खपाना या वक्त जाया करना उसने मुनासिब नहीं समझा ।



उसके विचारानुसार माइक्रो फिल्म वाले कैपसूल को दोबारा प्राप्त करना ज्यादा आवश्यक एवं महत्वपूर्ण था । और कैपसूल का पता जीवन से ही लग सकता था ।



हालांकि शुरू में ही उसका इरादा, जीवन का पता मालूम करने के बाद सीधा उसकी छाती पर जा चढ़ने का था । लेकिन जसपाल द्वारा यह बताए जाने के बाद कि आफताब आलम का एक आदमी जीवन के निवासस्थान को वाच कर रहा था । फिर अमजद द्वारा दी गई इस जानकारी के पश्चात् कि किसी ने उससे खुद उसके और जीवन के बारे में जबरन पूछताछ की थी । और फिर किसी अज्ञात हमलावर द्वारा खुद को शूट करने की कोशिश की जाने के बाद उसने अपना इरादा बदल दिया था । इरादा बदलने की एक और भी वजह थी । यह बात आम हो गई थी कि आफताब आलम ने हरेक ड्रग्स सप्लायर को मना कर दिया था कि जीवन को माल सप्लाईन किया जाए । इसलिए जरूरी बात थी कि जीवन को भी इसका पता चल गया होगा । साथ ही इस बात का आभास भी वह जरूर पा गया होगा कि उसके निवास स्थान को वाच किया जा रहा था । लिहाजा उसने अपने निवास स्थान के आस-पास भी फटकने की कोशिश नहीं की हो सकती थी ।



"विक्रम का अनुमान था कि जीवन अपने घर से दूर रह कर ही किसी तरह अपने लिए 'फिक्स' का इंतजाम करने के जुगाड़ में लगा होगा । इसलिए उसके घर जाने में समझदारी नहीं थी ।



जीवन कहां था ?



इस बारे में विभिन्न पहलुओं से सोचने के बाद विक्रम एक ही नतीजे पर पहुंचा । शायद लीना से इसका पता लगाया जा सकता था । मगर साथ ही एक नई समस्या पैदा हो गई ।



लीना कहां मिलेगी ?



यह पता लगाना भी अपने-आपमें निहायत मुश्किल काम था । क्योंकि लीना की न तो कोई निश्चित दिनचर्या थी और न ही कोई एक ठौर-ठिकाना ।



असल में वह आफताब आलम के इशारों की गुलाम थी । उसका ज्यादातर वक्त आफताब आलम के आदेशपालन में ही गुजरता था । उसकी जाती जरूरतें पूरी करने के अलावा लीना को, उसके आदेश पर, उसके आदमियों की हवस का शिकार होने के लिए भी जाना पड़ता था ।



लीना की निगाहों में उसकी जिन्दगी बेमानी थी । वह कठपुतली बनकर जीने के लिए मजबूर थी । जब से आफताब आलम ने उसके अच्छे-खासे खूबसूरत चेहरे को बदसूरत बनाया था तब से हर वक्त एक अनजाना खौफ उसे सताता रहता था । खुद को बदसूरत बनाए जाने का इतना गम उसे नहीं था जितना इस बात का था कि वह हमेशा के लिए आफताब आलम के साथ बंधकर रह गई थी । उसके जिंदा रहते उससे मुक्ति वह नहीं पा सकती थी । क्योंकि उसके गालों पर बने बदनुमा दाग इस बात का पक्का सबूत थे कि उस पर सिर्फ आफताब आलम का अधिकार था । इसलिए किसी और की उसे छूने तक की हिम्मत नहीं होती थी ।



लेकिन लीना क्योंकि अपने गम भुलाने की खातिर शराब के नशे में डूबी रहना चाहती थी इसलिए उसे अक्सर पैसे की जरूरत बनी रहती थी । और अपनी इस जरूरत को पूरा करने के लिए वह ऐसे मर्दो की तलाश में रहती थी जिन्हें, अपनी बदनसीबी की मनगढ़ंत कहानी से उनके दिल में हमदर्दी पैदा करके, बेवकूफ बनाकर उनसे थोड़ी-बहुत रकम ऐंठी जा सके ।



सान्याल से अलग होने के बाद, विक्रम ने इसी आधार पर उसका पता लगाने का फैसला किया ।



लेकिन ऐसा करना भी अपने-आपमें कम खतरनाक नहीं था । क्योंकि लीना के बारे में ऐसी जानकारी आफताब आलम के अधिकार वाले इलाके से ही हासिल की जा सकती थी । मौजूदा हालात में विक्रम का वहां जाना खुदकुशी करने जैसा था । मगर उसके सामने और कोई चारा भी नहीं था । उसे यह रिस्क लेना ही पड़ा ।



यह ठीक था कि उस इलाके में विक्रम के अपने भी चन्देक कांटेक्ट्स थे । हालांकि विक्रम से खुलेआम सम्पर्क करके उससे अपना ताल्लुक होना जाहिर करने का खतरा वे मोल नहीं ले सकते थे । लेकिन विक्रम यह भी जानता था कि जब वह उनके पास जा पहुंचेगा तो उसकी मदद करने से इंकार भी वे नहीं कर पाएंगे ।



इस मामले में, दो बातें और ऐसी थीं जो विक्रम के हक में थीं । एक तो वह उस तमाम इलाके के गली-कूचों तक से भलीभांति परिचित था । दूसरे, वो इलाका आखिरी स्थान था जहां उसके होने की अपेक्षा की जा सकती थी । उसे वहां देखने के बावजूद एक बार को तो देखने वाले ने अपनी आंखों पर यकीन नहीं करना था ।



उस इलाके में पहुंचने के बाद, इन्हीं दो बातों का फायदा उठाते हुए, उसने सतर्कतापूर्वक छानबीन शुरू कर दी ।



इसी चक्कर में सुबह के चार बज गए । तब कहीं जाकर उसे पता लग सका कि लीना एक पुराने खस्ताहाल मकान के पिछले हिस्से के एक कमरे में थी ।



विक्रम निर्विघ्न वहां जा पहुंचा ।



उसने कमरे के बन्द दरवाजे के बाहर मौजूद रहकर आहट ली ।



अन्दर से लीना के गाने की आवाज सुनाई दी । गाना किसी पुरानी हिन्दी फिल्म का था । लेकिन लीना के स्वर और गाने के ढंग से जाहिर था कि कमरे में वह अकेली थी और बहुत ज्यादा पिए हुए थी ।



विक्रम ने हौले-से दस्तक दी ।



अन्दर से आती आवाज में फौरन यूं ब्रेक लग गया मानों एकाएक किसी ने रिकार्ड प्लेयर बन्द कर दिया था ।



कमरे में अचानक छा गई खामोशी से विक्रम भलीभांति अनुमान लगा सकता था कि अन्दर मौजूद लीना पर क्या गुजर रही थी । वह भयभीत खड़ी बाहर की आहट लेने की कोशिश कर रही होगी । उसकी सांसें तेज होगी और धड़कनें बढ़ी हुईं ।



विक्रम ने पुनः दस्तक दी ।



"क...कौन है ?" अन्दर से लीना का आशंकित स्वर उभरा ।



"विक्रम खन्ना । दरवाजा खोलो ।"



बहुत ही धीरे से, थोड़ा-सा दरवाजा खोलकर उसने बाहर झांका । उसकी आंखें सुर्ख थीं, पलके बोझल, चेहरा तनावपूर्ण और बाल तनिक बिखरे हुए । उसकी सांसों के साथ मुंह से शराब के भभूके छूट रहे थे ।



उसने आंखें मिचमिचाते हुए, विक्रम को देखा मानो पहचानने की कोशिश कर रही थी । अन्त में, जब उसे यकीन हो गया कि आगंतुक विक्रम ही था तो उसका चेहरा भय से सफेद पड़ गया ।



"तुम ?" वह अविश्वासपूर्वक बोली ।



"हां । मुझे अन्दर आने दो, लीना !"



"नहीं...'चले जाओ, प्लीज । अगर किसी ने तुम्हें देख लिया...।"



"अभी तक तो किसी ने भी मुझे नहीं देखा है ।" विक्रम शांत स्वर में बोला-"लेकिन अगर मैं यहीं खड़ा रहा तो जरूर कोई देख लेगा ।"



लीना एक पल हिचकिचाई फिर दरवाजा खोलकर एक तरफ हट गई ।



विक्रम ने अन्दर आकर दरवाजा बन्द करके पुनः लॉक कर दिया ।



वह खिड़की के पास पड़ी कुर्सी पर जा बैठा ।



दरवाजे के पास खड़ी लीना के चेहरे पर भय मिश्रित आश्चर्य एवं अविश्वास के भाव थे । वह देर तक खामोशी के साथ अपलक उसे ताकती रही । अन्त में, बड़े ही कठिन, स्वर में पूछा-"त..."तुम यहां क्यों आये हो ?"



"मुझे जीवन की तलाश है ।" विक्रम ने जवाब दिया, "बता सकती हो, वह कहां है ?"



लगता था, लीना ने या तो उसकी बात सुनी नहीं थी या फिर वह समझ नहीं पाई थी । जवाब देने की बजाय उसने दोनों हाथों से अपना चेहरा ढका और रो पड़ी ।



लीना की यह हरकत अनपेक्षित और विक्रम की समझ से परे थी । लेकिन वह बोला कुछ नहीं । बस चुपचाप बैठा उसे देखता रहा ।



"म...मैं और ज्यादा बर्दाश्त नहीं कर सकती ।" कुछ देर बाद वह फंसी-सी आवाज में बोली-"उस शैतान ने मेरी जिन्दगी को नर्क बना दिया है ।"



"किसने ?" विक्रम ने पूछा ।



"आफताब आलम ने ।"



"क्या किया उसने ?"



लीना ने आंखें पोंछकर अपने चेहरे से हाथ हटा लिए ।



"मुझ पर हाथ उठाने के अलावा वह और कर ही क्या सकता है ।" वह कड़वाहट भरे लहजे में बोली-"लेकिन उसकी परवाह मुझे नहीं है । उससे मार खाने की तो आदत-सी पड़ चुकी है । मगर मैं जगतार की बात कर रही हूं जो कंचनगढ़ से यहां आया है । और जिसने मेरी दुर्गति करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी ।"



"लेकिन हुआ क्या ?"



लीना की आंखों में पुन: आंसू छलक आए । नफरत एवं क्रोध के कारण चेहरा तमतमाने लगा । वह विक्रम के सामने पडे पलंग पर बैठ गई । पास ही मेज पर व्हिस्की की लगभग एक तिहाई भरी बोतल रखी थी । उसने बोतल का ढक्कन खोलकर एक हल्का-सा घूंट लिया, फिर आंखें पोंछकर फर्श को ताकने लगी ।



"वह कमीना नार्मल आदमी न होकर परवर्ट है ।" वह कटुता से पगे स्वर में बोली-"उस हरामजादे ने जबरन मेरे साथ..."



"बताने की जरूरत नहीं ।" विक्रम उसकी बात काटकर जल्दी से बोला-"मैं समझ गया, तुम क्या कहना चाहती हो ।"



"हालांकि पहले भी मेरे साथ ऐसा करने की और लोगों ने दो-चार बार कोशिश की थी ।" लीना ने पूर्ववत् स्वर में कहा-"मगर मैंने किसी को ऐसा नहीं करने दिया । लेकिन इस दफा उस हरामजादे ने...।"



"छोड़ो, लीना !"



लीना ने निगाहें उठाकर उसकी ओर देखा । उसकी आंखें नफरत से जल रही थीं ।



"मेरे साथ जबरदस्ती कुकर्म किया गया था । और आफताब आलम पूरे वक्त यहीं खड़ा क़हक़हे लगाता रहा था । मैंने जब भी प्रतिरोध करना चाहा उस हैवान ने बलपूर्वक मुझे रोक दिया । और वह वहशी दरिन्दा जगतार मेरे साथ मनमानी करता रहा । उसने तभी मुझे छोड़ा जब वह सब-कुछ कर चुकने के बाद पस्त हो गया था ।"



लेकिन तुम्हारे साथ ऐसा किया क्यों गया ?"



"तुम्हारी वजह से ।"



विक्रम चौंका ।



"क्या ?"



"आफताब आलम की निगाहों में, तुम्हें भागने देने के लिए, मैं भी कसूरवार हूं ।"



"ओह !"



लीना ने अपने बालों में उंगलियां फिराई फिर उसके होंठ कड़वाहटभरी मुस्कराहट की मुद्रा में खिच गए ।



"अब मैं भी पक्का फैसला कर चुकी हूं ।" वह दृढ़ स्वर में बोली-"कि उसे जिन्दा नहीं छोडूंगी ।"



"किसे ?"



"आफताब आलम को । किसी दिन उसकी जान लेकर ही रहूंगी । यकीन मानों अब मेरी जिन्दगी का इकलौता मकसद यही है ।"



उसके स्वर की दृढ़ता इस बात का प्रमाण थी कि वह बखूबी जानती थी कि क्या कह रही थी । विक्रम को भांपते देर नहीं लगी कि वह अपनी दुर्गति का बदला लेने का सचमुच पक्का फैसला कर चुकी थी । सालों से बाजारू औरत जैसी घटिया जिन्दगी जीने के बाद भी उसके अन्दर की औरत अभी जिन्दा थी । उसकी गैरत बिल्कुल मर नहीं गई थी । बरसों से आफताब आलम के इशारों पर नाचती रहने के बावजूद अपने वजूद को भी किसी तरह वह कायम रखे हुए थी । शराब ने उसके दिमाग को खोखला नहीं कर दिया था । उसमें सोचने-समझने की ताकत थी । उसके दिल में सुलगती नफरत की आग ने उसके अन्दर बदले की भावना जगा दी थी । शुरू में इन तमाम बातों पर आफताब आलम की दहशत हावी रही थी । लेकिन विक्रम के सामने दिल की भड़ास निकाल कर वह उससे निजात पा चुकी थी । अब उसके चेहरे पर उसका पक्का इरादा साफ-साफ पढ़ा जा सकता था ।



लेकिन विक्रम के लिए फिलहाल, उसके इस इरादे की खास अहमियत नहीं थी । वह सिर्फ जीवन के बारे में जानकारी हासिल करना चाहता था । इसलिए उसने वार्तालाप का विषय बदलते हुए बड़े ही नर्म लहजे में पूछा-"जीवन कहां है, लीना ?" उसने गहरी सांस ली ।



"जीवन बहुत अच्छा आदमी है । जब आफताब आलम मुझे अपनी खिदमत के लिए बुलाया करता था, जीवन मुझे बता दिया करता था और मैं चुपचाप कहीं और खिसक जाती थी । मेरे बीमार पड़ने पर भी उसी ने हमेशा मेरी तीमारदारी की है । जब मेरे गालों पर तेजाब से दाग लगाए गए थे तब भी उसी ने मेरी देख-भाल की थी ।"



"उसके इन अहसानों का बदला तुम कैसे चुकाती रही हो ?"



उसने गर्दन झुका ली ।



"इससे तुम्हें कोई मतलब नहीं होना चाहिए । यह हमारा जाती मामला है ।"



जाहिर था कि लीना को जीवन से लगाव था और वह उसके साथ हमबिस्तर होती रहती थी ।



"मैं सिर्फ इतना जानना चाहता हूं, वह कहां है ?"



लीना ने शंकित निगाहों से उसे देखा ।



"क्यों ?"



"डरो मत । उसे नुकसान पहुंचाने का कोई इरादा मेरा नहीं है ।"



"उसके बारे में पूछ क्यों रहे हो ?" लीना ने जिद भरे लहजे में पूछा ।



"उसने मेरी कोई चीज उड़ा ली थी । वो मैं उससे वापस लेना चाहता हूं ।"



लीना की आंखें सिकुड़ गई मानों याद करने की कोशिश कर रही थी । फिर उसने मुंह बिसूर दिया ।



"तुम...'फिक्स' लेते हो, विक्रम ! तुम तो जब चाहो 'माल' हासिल कर सकते हो ।"



"मैं न तो फिक्स लेता हूं, न ही कोई और नशा करता हूं । मुझे तो सिर्फ वो कैपसूल चाहिए जो जीवन ने मेरी जेब से निकाला था । कहां है वो ?"



"उसकी जीवन को ज्यादा जरूरत है ।" वह सपाट स्वर में बोली ।



"गलत । जीवन के लिए वो बिल्कुल बेकार है ।"



"क्यों ?"



इसलिए कि उस कैपसूल में सिर्फ चीनी भरी है । जीवन को उससे सिवाय परेशानी के और कुछ हासिल नहीं होगा ।"



लीना गौर से उसे देखने लगी ।