– "हम एकाएक आपके इस मस्तिष्क परिवर्तन पर बेहद आश्चर्यचकित और घबराए हुए- से थे ।" विजय से आगे विकास ने कहना शुरू किया—


" हममें से ये किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक ही ये आपको क्या हो गया है। आपके बेहोश होने के बाद हम सभी ने बेहद आश्चर्य के साथ एक-दूसरे की ओर देखा । हम सभी की आंखों में ये प्रश्न था कि आप, यानी जो व्यक्ति हमेशा लड़कियों से दूर भागता हो— मैंने अपनी आंखों से हजारों लड़कियों को आप पर आशिक होते देखा है, परन्तु आपने उन्हें कभी लिफ्ट नहीं दी । गहनतम आश्चर्य की बात यही थी कि आप किसी कांता नामक लड़की के पीछे इतने दीवाने हो रहे हैं कि आप मेरी हत्या तक करने के लिए तैयार हो गए ।


"दूसरी आश्चर्य की बात ये थी कि आपने पल भर में वह खण्डहर का चित्र बना दिया — जबकि आपके हाथ में कभी किसी ने कूची तक नहीं देखी थी। आपका ये विचार भी बिलकुल ठीक है कि आप पर पीछे से हमला अजय अंकल ने किया था—इनके हाथ में रिवॉल्वर था, जिसकी मूठ इन्होंने आपके सिर के पिछले भाग में मारी थी और परिणामस्वरूप आप बेहोश हो गए थे ।


“ ये एकदम विजय भैया को हो क्या गया ?" आपके बेहोश होते ही मम्मी ने कहा ।


"लगता है ये किसी कांता नामक लड़की से बेहद प्रेम करता है।" डैडी ने अपना विचार प्रस्तुत किया ।


"लेकिन... एक ही पल में चित्रकार कैसे बन गए ?" अजय अंकल ने एक ऐसा प्रश्न खड़ा कर दिया, जिसका जवाब हममें से किसी के पास नहीं था ।


"विजय अंकल अपना नाम देव क्यों बताते हैं ?" मैं भी प्रश्न की उत्पत्ति करने से अधिक कुछ नहीं कर सका । " इस प्रकार हमारे सामने अनेकों प्रश्न खड़े हो गए। जब हमें कोई हल नहीं सूझा तो ठाकुर नाना को फोन किया । फोन पर बिना कुछ बताए हमने उन्हें तुरन्त वहां पहुंचने के लिए कहा । जिस समय वे कोठी पर पहुंचे, उस समय सुबह के पांच बज रहे थे, किन्तु आपको होश नहीं आया था। हमने पूरी घटना विवरण सहित सुनाई, किन्तु इन्हें लेशमात्र भी विश्वास नहीं आया, बल्कि बुरा-सा मुंह बनाकर बोले – 'ये इस बदमाश का कोई नया नाटक है । ' -


"लेकिन हममें से कोई भी उसे नाटक मानने के लिए तैयार नहीं था। क्योंकि हमने सबकुछ अपनी आंखों से देखा किन्तु न जाने क्यों नाना की इस बात ने मेरे दिल में भी यह विचार पैदा कर दिया कि सम्भवतः यह आपका नया मजाक ही हो, क्योंकि आप ऊलजलूल और नए-नए मजाक हमेशा करते रहते हैं। सम्भव है आप सबको उल्लू बनाकर मजा ले रहे हों ।


"लेकिन आपका पेंटिंग बनाना – जब यह सोचता तो वह सब मजाक नहीं लगता । "


फिर यह भी सोचता —–— जब इतने कार्यों में दक्ष हैं—वहां चित्रकारी में भी दक्ष न हों– वैसे आपके लिए अभिनय करना भी कठिन नहीं था । 


“यह सब आपका नाटक है—यह बात मेरे दिल में चालीस प्रतिशत घर कर चुकी थी, जबकि ठाकुर साहब को तो शत-प्रतिशत यही उम्मीद थी कि यह सब एकदम नाटक है। उनके ही कहने पर आपके चेहरे पर पानी डालकर आपको होश में लाया गया।" विकास खामोश हो गया ।


- "कांता...कांता...!" होश में आते ही मेरे मुंह से निकला — "मैं आ रहा हूं... कांता !" विजय विकास से पहले बोल पड़ा


–“अभी मैं ठीक से आंखें खोल भी नहीं पाया था कि सड़ाक से डैडी की बेंत मेरे जिस्म से टकराई । " कहते हुए विजय ने निर्भयसिंह की ओर देखा — “साथ ही टकराया उनका स्वर — खड़ा हो साले, मैं उतारूंगा तेरा भूत ।"


और विजय आगे की आप बीती सुनाने लगा—


" और मैं एकदम उछलकर खड़ा हो गया । देखा—सामने डैडी छड़ी ताने खड़े थे। मेरे चारों ओर आप लोग थे। मैं समझ गया कि मेरी बेहोशी की अवस्था में आप लोगों ने डैडी को बुला लिया है। मैं अच्छी तरह समझ रहा था कि सामने डैडी हैं और मुझे इनका विरोध नहीं करना चाहिए—अब मेरे मस्तिष्क में 'देव... देव...' भी नहीं हो रही थी। इस समय मेरी पहले जैसी अवस्था नहीं थी, किन्तु मुझे याद सबकुछ था । इस समय मेरी अवस्था वैसी थी, जिस समय मैं पहली बार स्वप्न देखकर उठा था।


–“अब मेरे मस्तिष्क पर मेरा नियंत्रण था मैंने कहा – 'क्या बात है डैडी ?"


"बोल कौन है कांता ?" डैडी छड़ी उठाकर मेरी तरफ बढ़े। 


"एक भैंस, जो विकास का केक लेकर भाग रही थी।" मैंने पीछे हटते हुए जवाब दिया।


—“ इसका मतलब अभी भूत है।" कहते हुए डैडी ने पूरी शक्ति से छड़ी मुझे मारनी चाही । किन्तु फुर्ती से उछलकर मैंने स्वयं को बचा लिया । इसके बाद डैडी छड़ी चलाते रहे, किन्तु उनका हर वार मैं बड़ी सफाई से बचाता चला गया। इसके बाद मैं वहां से भाग गया।


-- " मैं सीधा कोठी पर पहुंचा। मगर हर पल मेरा मस्तिष्क यही सोचने में लगा था कि यह सब चक्कर क्या है ? मुझे हो क्या गया था ? मैं अचानक आज मस्तिष्क का संतुलन क्यों खो बैठा था ? मुझे अच्छी तरह याद था कि खुद को देव समझ और बता रहा था किन्तु उस समय लाख सोचने पर भी मैं नहीं समझ सका कि ऐसा क्यों हुआ था। मैं देव कब था । मैंने वह चित्र कैसे बना दिया ।


- "आप सब लोगों से अधिक प्रश्न मेरे अपने मस्तिष्क में चकरा रहे थे। 


—'मैं अपने बिस्तर पर पड़ा अपने दिमाग की इस अजीबो-गरीब गुत्थी को सुलझाने की चेष्टा कर रहा था कि तुम...।" वह विकास की ओर संकेत करके बोला—वहां आ गए। आते ही तुमने कहा – "क्यों - गुरु– नाना की एक छड़ी में सारा नाटक समाप्त हो गया !"


"कैसा नाटक ?' मैंने चौंककर पूछा। ‘कांता का नाटक।' विकास ने कहा – "इस बार तुम्हारे उल्लू - बनाने के ढंग को मान गए गुरु सपने से जागने का और कांता... कांता 

करने का अभिनय वास्तव में आपने ऐसा किया कि मैं भी धोखा खा गया, समझ नहीं सका कि आपने सबको मूर्ख बनाने का एक नया ढंग निकाला है। लेकिन ठाकुर नाना समझ गए और उन्होंने सारा नाटक एक ही छड़ी मारकर धूल में मिला दिया ।"


– " इस प्रकार विकास की बातों से मैं समझ गया कि मेरी उस समय की बातों को ये सब मजाक भरा नाटक समझ रहे हैं। मैं जानता था कि अब चाहे मैं किसी को भी कितना भी विश्वास दिलाने की कोशिश करूं, किन्तु कोई मेरी बात पर विश्वास नहीं करेगा—–—सब उसे मेरा मजाक ही समझेंगे। मैं जीवन में पहली बार इतनी अजीब परिस्थिति में फंसा था कि मेरे दिमाग की उलझन को सब मजाक समझ रहे थे। मैं स्वयं उस गुत्थी से परेशान था, मगर मेरी बात सबको मजाक लग रही थी। मैंने भी बात मजाक में ही टाल दी, बोला— 'बेटा दिलजले, इसे कहते हैं, सबको एक साथ मूर्ख बनाना ।'


'लेकिन गुरु, ये तो बताओ कि आपने वह चित्र कैसे बना दिया था ?' विकास ने पूछा ।


'अबे हम क्या किसी साले चित्रकार से कम हैं ?' अपनी आदतानुसार मैंने मूर्खतापूर्ण ढंग से कहा ।


–“ वो तो मुझे मालूम है, गुरु ।" विकास ने मुस्कराते हुए कहा । शायद इस समय उसने भी यही सोचा था कि मैं इस फन में भी माहिर होऊंगा, मगर ये वास्तविकता तो मैं ही जानता था कि मैं स्वयं नहीं जानता कि मैंने वह चित्र किस प्रकार बना दिया ।


"कुछ देर तक इसी प्रकार मेरे और विकास के बीच मजाक चलता रहा, फिर मैंने कहा—'अच्छा प्यारे दिलजले — अब यहां से फूटो, सारी रात तुम्हें मूर्ख बनाने के चक्कर में कांता - कांता पुकारते रहे हैं— अब जरा चादर तानकर सोने दो |' कहकर विजय चुप हो गया ।


‘उस समय मैं आपके पास से बड़ी शराफत के साथ उठ गया था।' विजय से आगे विकास ने कहना प्रारम्भ किया—'क्योंकि मैं आपके रात के मजाक का बदला आपके साथ ऐसा ही कोई भयानक मजाक करके लेना चाहता था। मैं कमरे से बाहर निकल गया और आपने कमरा अन्दर से बन्द कर लिया, मेरा मस्तिष्क उस समय कोई भयानक मजाक सोचने में लीन था। दबे पांव मैं आपके कमरे के रोशनदान पर पहुंच गया। वहां से मैंने धीरे से कमरे में झांककर देखा तो आप आंखें बन्द करके बिस्तर पर लेट चुके थे। मेरे होंठों पर शरारतपूर्ण मुस्कान उभर आई । मेरा दिमाग तेजी से आपको मूर्ख बनाने की कोई योजना सोचने लगा ।


–“ अभी मैं योजना सोच भी नहीं पाया कि मैं चौंक पड़ा । 


-“मैंने ध्यान से आपको देखा—गर्मी नहीं थी, किन्तु आपका पूरा चेहरा पसीने से भर उठा था । आपके चेहरे पर एकदम असाधारण पसीना उभरता चला आया था। योजना सोचने के स्थान पर मेरा दिमाग आपकी तरफ लग गया।—“आपकी स्थिति बदलती जा रही थी – कदाचित् आप पुनः वही स्वप्न देख रहे थे।” विकास चुप हो गया ।


-"तुमने ठीक ही सोचा था— वास्तव में नींद आते ही मुझे पुनः वही स्वप्न दिखने लगा था ।” विजय ने पुष्टि की। और विकास आगे सुनाने लगा-


- नींद में आप कांता... कांता बड़बड़ाने लगे। उस समय मैं समझ गया कि आप ये सबकुछ नाटक नहीं कर रहे हैं, बल्कि आप अपनी किसी मानसिक स्थिति से परेशान हैं। आपको वास्तव में कोई स्वप्न चमकता है – जिसका आपके जीवन से कोई गहरा सम्बन्ध है। मैंने जल्दी से भागकर मम्मी, डैडी, अजय और नाना को फोन किया ।


—" कुछ ही देर बाद


– " कुछ ही देर में ये सब भी वहां पहुंच गए। आप अपने बिस्तर पर पड़े जोर-जोर से कांता - कांता चीख रहे थे ।


–“आपकी आवाज सुनकर आपका नौकर पूर्णसिंह भी आ गया था। इस बार सभी को मैंने रोशनदान से वह दृश्य दिखाया – इस बार हमारे साथ-साथ नानाजी को भी ये विश्वास हो गया कि वास्तव में आप किसी मानसिक रोग से पीड़ित हैं।


- " हम सबने मिलकर जोर-जोर से दरवाजा पीटा। तब कहीं आप जगे— आगे बढ़कर आपने दरवाजा खोला ।"


विकास एक क्षण को रुका ।


- —" इस बार भी मेरा मस्तिष्क मेरे नियन्त्रण में था । " विजय बोला — "मैं जो चाह रहा था – वही बोल रहा था। यानी मैं स्वयं को विजय बता रहा था और आप सबने उस समय मुझसे स्वप्न के बारे में लाख पूछा, किन्तु मैंने नहीं बताया, क्योंकि बताने से मुझे कोई लाभ नजर नहीं आ रहा था। मैं उस सपने के प्रति दिल-ही- दिल में परेशान था। आप लोगों को मैं चिन्तित नहीं करना चाहता था । ".


विकास ने आगे कहना शुरू किया -


– “उसके बाद आप जैसे ही सोने का प्रयास करते, आपको सपना दिखने लगता।” विकास ने कहा – “तीन दिन और तीन रात आप बिल्कुल नहीं सो पाए। आपकी आंखें बन्द हुईं और आपको वही सपना दिखाई दिया—आप कांता- कांता चिल्लाकर उठ बैठते। आपके इस सपने ने आपको तो परेशान कर ही दिया, हम सबको भी परेशान कर दिया। हमें लगने लगा कि आपको कोई रोग लग गया है। 


- ठाकुर नाना को एक ज्योतिषी ने बताया कि आप किसी भूत-प्रेत के प्रभाव में हैं ।


– "एक मुल्ला ने बताया कि — आपके ऊपर किसी ने कुछ करवा रखा है। हालांकि हममें से कोई भी इन ऊटपटांग बातों पर विश्वास नहीं करता था – किन्तु बात जब अपने या अपने किसी प्यारे इन्सान पर आती है तो मन स्वयं ही ये सोचने लगता है कि कहीं ऐसा ही न हो । दिखा लेने में क्या हर्ज है ?


"बस इसी विचार के अधीन होकर हम आपको यहां जंगलपुर में ले आए। यहां एक पीटर नामक भूत-प्रेत विशेषज्ञ रहता है। हम लोग आपको उसे ही दिखाने लाए थे । अब तो मैं यही कहूंगा कि वह पादरी भी अजीब सनकी है। वह यहां जंगलपुर में — — बस्ती छोड़कर जंगल में रहता है। जंगल में उसने अपनी एक कीमती कोठी बनवा रखी है । बड़े-बड़े लोग उसके पास आते हैं। सबसे आश्चर्य की बात ये है कि उसकी कोठी तक आने के लिए घोड़े के अतिरिक्त कोई अन्य सवारी उपलब्ध नहीं है। पादरी अपने क्षेत्र में इतना प्रसिद्ध है कि बड़े-बड़े नेता और अभिनेता उससे राज लेने आते हैं और जंगलपुर की बस्ती में ही उसकी कोठी तक आने के लिए घोड़े किराए पर मिलते हैं ।


"हमने भी छः घोड़े किराए पर लिये और यहां के लिए रवाना हो गए ।


–" उस समय आप बिल्कुल ठीक थे—तीन दिन और तीन रातें जगने के कारण केवल आखों में नींद थी।


— “हम अभी रास्ते ही में थे कि वर्षा पड़ने लगी, किन्तु फिर भी किसी तरह हम रात के ग्यारह बजते-बजते पीटर पादरी की कोठी पर आ गए । कोठी के बाहर बाकायदा अस्तबल बना हुआ था। पादरी के नौकरों ने हमारा स्वागत इस प्रकार किया, मानो हम उसके जंवाई हों। बाद में पता लगा कि पीटर के पास आने वाले हर व्यक्ति का स्वागत इसी तरह किया जाता है। हमारे घोड़े अस्तबल में बांधे गए। नौकरों ने बताया कि पीटर साहब आज शाम से कहीं बाहर गए हैं सुबह तक वापस लौटेंगे। -"हमें रात गुजारने के लिए एक कमरा और छः बिस्तर दे दिए गए ।


"पादरी के इन्तजार में हमने वहीं रात गुजारने का निश्चय किया।


-“पादरी के विशेष सहयोगी को जाकर स्वयं मैंने आपकी बीमारी के विषय में विस्तारपूर्वक बताया। उसने कहा – 'इसका इलाज तो पादरी साहब स्वयं आकर करेंगे—–—मैं तो आपको इस समय यह एक चाकू दे सकता हूं ।' उसने मुझे एक चाकू देते हुए कहा – 'यह चाकू मरीज की जेब में रख देना और उसे आराम से सुला देना — अगर ये चाकू मरीज की जेब में रहा तो —— उसे कोई स्वप्न नहीं दीखेगा ।' —


- "मुझे उसकी बात बड़ी अजीब सी लगी। किन्तु मरता क्या न करता ! इस समय मुझे एक जादू-टोने जैसी बात पर ही विश्वास करना पड़ा और वह चाकू मैंने आपको दिया । आपने भी आराम से सोने के लालच में चाकू अपनी जेब में रख लिया।" विकास ने विराम लगा दिया ।


—"लेकिन उस चाकू से कोई प्रभाव नहीं पड़ा।" विजय आगे बोला – "चाकू मेरी जेब में मौजूद था, किन्तु फिर भी मुझे वह स्वप्न चमका | पुनः वही खण्डहर... बुर्ज–कांता व देव-देव की पुकार – और इस बार मुझे झंझोड़कर जगाया गया तो मेरी स्थिति ठीक वैसी थी जैसी दूसरी बार सपना देखने के बाद थी। यानी इस बार अपने मस्तिष्क पर मेरा सन्तुलन नहीं था । इस बार चित्र बनाने की धुन भी मुझ पर सवार नहीं हुई —–—इस बार तो मेरे दिमाग में जैसे बस कांता की आवाज गूंज रही थी। मुझे लग रहा था कि कांता मुझे पुकार रही है — वह खतरे में है — अगर उसे कुछ हो गया तो मैं भी जीवित नहीं रहूंगा —–—हर हालत में —— मुझे उसे बचाना चाहिए और मैं उछलकर खड़ा हो गया। हालांकि मैं नहीं चाहता था कि अपने डैडी, रैना, अजय, रघुनाथ और विकास का विरोध करूं, किन्तु क्योंकि मेरा मस्तिष्क मेरे नियंत्रण में नहीं रहा था—मुझे बस ऐसा लग रहा था कि कांता मुझे पुकार रही है और उसके पास मुझे जाना है। इसके बाद जो भी मेरे मार्ग में आया उसे मैंने नहीं बख्शा —– उस कमरे से बाहर निकलने के लिए मैंने विकास, रैना, अजय, रघुनाथ और अपने डैडी तक पर हमले किए। पांचों ही मुझे रोकना चाहते थे परन्तु किसी तरह मैं कमरे से बाहर आ गया।


- "तेजी से भागता हुआ अस्तबल में पहुंचा—–—वहां  मशाल जल रही थी । वह मशाल उतारी और जो भी घोड़ा मिला उसे लेकर जंगल में भाग निकला। मैं जानता था कि मेरे पीछे पांचों शुभचिन्तक आ रहे हैं। वे चीख-चीखकर मुझे रुक जाने के लिए कह रहे हैं—मेरे दिल में भी इच्छा  थी कि मैं रुक जाऊं, किन्तु रुक नहीं पा रहा था— कांता जो मुझे बुला रही थी ।


– “अनिच्छापूर्वक मैं भागता ही जा रहा था ।


“एक स्थान पर मेरे घोड़े के दोनों अगले पैर दलदल में घुस गए और मैं हवा में कलाबाजियां खाता हुआ दलदल के उस पार आ गिरा। कुछ ही देर बाद वहां विकास पहुंच गया। मेरे और इसके बीच युद्ध छिड़ गया ।


—" और इस युद्ध में आपने पादरी के सहयोगी द्वारा दिए गए उस चाकू का प्रयोग मुझ पर किया ।" मुस्कराते हुए विकास ने अपनी कलाई पर बंधी हुई पट्टी की ओर संकेत किया— “पादरी का चाकू किसी अन्य काम नहीं आ सका तो आपने उसे इस काम में प्रयुक्त किया ।' 


— "इसके बाद, इन पांचों ने मिलकर मुझे वहां पुनः बेहोश कर दिया।" विजय ने कहा।


- -"वह सब मैं देख रहा था । " गौरव ने कहा —— "जब मैंने देखा कि आप बेहोश हो चुके हैं और ये लोग आपको पुनः उठाकर ले जाएंगे तो मैं प्रकट हो गया और वहां जमकर विकास से युद्ध हुआ।" कहता हुआ मुस्कराया गौरव ।


“खैर ।" विजय बोला—– “अपनी रामकथा तो तुम्हें सुना ही दी — अब जरा तुम अपनी सत्यनारायण की कथा छेड़ दो | तुम किस खेत की मूली हो ? तुम मेरे साथ घटी इन घटनाओं का रहस्य कहां तक खोल सकते हो ?" -


—“ये तो हम आपको बता ही चुके हैं कि हम आपकी बेटी और बेटे हैं।" अभी तक बिल्कुल शान्तिपूर्ण ढंग से विजय की कहानी सुनने वाली वन्दना बोली – “सबसे पहले तो हमें आपको यही विश्वास दिलाना होगा कि हम ठीक कह रहे हैं । "


– "चाहे किसी भी भाव मिले, लेकिन दिलवाना अवश्य होगा।" विजय बोला— "क्योंकि हम खुद नहीं जानते कि इतने लम्बे-लम्बे हमारे बेटे कैसे पैदा हो गए—साथ ही यह भी बताना होगा कि परिवार नियोजन के हिसाब से आप दो ही मेरी सन्तान हो या पूरी क्रिकेट टीम हैं?"


- "बस, हम दो ही आपकी सन्तान हैं और हम जुड़वां पैदा हुए गौरव ने कहा । थे । ” — "अब तुम हमारी उस पत्नी का नाम भी बता दो — जो तुम्हारी - - मां है।" -“कांता।” वन्दना ने कहा – “हमारी मां का नाम ही कांता है।"


"सुबूत।"


जवाब में वन्दना ने अपने ऐयारी के बटुए में से एक मुड़ा-तुड़ा कागज निकाला — वह उसकी तह खोलने लगी। विजय सहित सभी की दृष्टि उस कागज पर जमी हुई थी, जो एक अनहोनी बात का सुबूत बनने जा रहा था। अभी वह कागज की पूरी तह खोल भी नहीं पाई थी कि-


-“पिताजी !" गौरव ने सबका ध्यान आकर्षित किया । 


विजय ने देखा — गौरव उसे ही पुकार रहा था । विजय को अपने लिए ये (पिताजी) शब्द बड़ा विचित्र - सा लगा| अजीब-से मूर्खतापूर्ण अन्दाज में बोला वह – “कहो बेटे जी —– क्या परेशानी है लॉलीपॉप चूसने के लिए दस का सिक्का दूं ?"


- "जी।" गौरव लॉलीपॉप का मतलब नहीं समझा, तो बोला— “पिताजी, लॉलीपॉप क्या होता है ?”


- "इसे समझने की कोशिश मत करो बेटे मियां वर्ना बूढ़े हो जाओगे।" विजय बोला – “तुम अपनी कहो, क्या कह रहे थे ?”


—" आप जब भी सोते हैं आपको वही सपना दिखाई देता है ?” गौरव ने कहा ।


–“अबे बेटा, सिर्फ सोते समय दीखता तो कसम छप्पन ताई की, हम भुगत लेते, मगर क्या करें... जागते हुए भी साला यही सपना दिखाई देता है।"


–“ये सपना आपको उस समय तक दिखाई देता ही रहेगा, जब तक कि आप मां को उस तिलिस्म से निकाल नहीं लेंगे।" गौरव ने कहा ।


– “तिलिस्म !" विजय ने दोहराया— “ये तिलिस्म क्या बला होती है प्यारे ?”


—"इसे समझने की कोशिश मत करो पिताजी, वर्ना बूढ़े हो जाओगे।" गौरव ने पूरी गम्भीरता के साथ कहा।


गौरव की इस बात पर सभी ठहाका मारकर हंस पड़े। विजय ने एकदम मूर्खों की तरह घूरकर गौरव की ओर देखा गौरव के मुखड़े पर कोई भाव वहीं था ——एकदम भावरहित गम्भीर चेहरा, मानो उसे स्वयं लगता हो कि उसने मजाक-भरी कोई बात की है। जब उसने विजय को इस तरह एकाएक अपनी ओर घूरते हुए पाया तो बड़े मासूम से अन्दाज में बोला— “पिताजी—–—कोई भूल हो गई मुझसे ?”


–“नहीं बेटे । " विजय उसके गाल पर हाथ फेरकर पुचकारता हुआ बोला – "बिल्कुल सही जा रहे हो ।”


विजय की इस अजीब सी झुंझलाहट पर सब एक बार पुनः हंस पड़े।


विजय मूर्खों की भांति पलकें झपका रहा था।


“पिताजी !” वन्दना ने उसकी विचार - शृंखला को तोड़ा — "ये है - सुबूत।"


सबकी दृष्टि घूमकर एकदम उस कागज पर टिक गई। उन्होंने देखा- -वह कागज बहुत पुराना था— एकदम खस्ता । कागज पर किसी ने काली स्याही से उसी खण्डहर का चित्र बनाया हुआ था। ठीक वैसा ही, जैसा विजय ने रंग से आर्ट पेपर पर बनाया था —– वही खण्डहर — वही बुर्ज——–—वही सबकुछ । 


—“आपने यही चित्र बनाया होगा ?"


- "बिलकुल यही । " जवाब विजय ने दिया।


-"यह चित्र भी उन्होंने ही बनाया है।" गौरव बोला – "लेकिन आज से लगभग साठ वर्ष पूर्व । ।" 


" साठ वर्ष !” विकास चौंका – " साठ वर्ष तो गुरु की उम्र भी नहीं है । "


किन्तु उसकी बात का जवाब किसी ने नहीं दिया। सबकी दृष्टि विजय पर केन्द्रित थी। और विजय बड़े ध्यान से उस कागज पर बने खण्डहर के चित्र को देख रहा था वह कहीं खोता जा रहा था। उसकी नजर चित्र के एक तरफ लिखे चित्रकार के नाम पर पड़ी, लिखा था — देव । ठीक वही राइटिंग, जिसमें विजय ने अपनी तस्वीर पर लिखा था।


फिर—बुर्ज से कांता का स्वर उभरा। विजय के दिमाग से टकराया— “देव —–देव —–—देव !” —


-"कांता...SSS!" पूरी शक्ति से चीख पड़ा विजय |


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