देवराज चौहान पर निगाह पड़ते ही मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ीं। फिर होंठ भिचे और दूसरे ही पल चेहरे पर भूचाल के निशान पैदा होते चले गए। "
"अब समझी।" मोना चौधरी के शब्द आग उगल रहे थे तो ये सब तुम्हारा फैलाया जाल है। मैं खुद हैरान थी कि ये दोनों मुझे घेरने की हिम्मत नहीं कर सकते। इसके पीछे--।"
"ओ छोरी। " बांकेलाल राठौर ने रिवॉल्वर का दबाव उसके पेट पर बढ़ाया-"म्हारे से बातो करे तंम यो म्हारो मामला हौवे देवराज चौहान का, म्हारो मामलों से मतलब न हौवो। "
"मैं सब समझ रही हूं। " मोना चौधरी के होंठों से फुंफकार निकली – "झूठ मत बोलो। अगर देवराज चौहान का इस मामले में मतलब न होता तो, रात के इस वक्त ये यहां न होता।" देवराज चौहान मुस्कराया । महाजन के चेहरे पर गंभीरता नाच रही थी।
मोना बताई, फकी चौधरी की बाबा वाली बात याद आ रही थी। मोना चौधरी और देवराज चौहान का आमना-सामना होने वाला है। जो कि अब हो गया था। कहीं ये मुलाकात झगड़े की चजह न बन जाए। मोना चौधरी की बात सुनकर जगमोहन आगे बढ़ा। जेब से ट्रेन की टिकटें निकालकर महाजन की जेब में डाली और शांत स्वर में कह उठा।
"हम हैदराबाद से लौट रहे हैं। कुछ देर पहले ट्रेन आई है। ये उसकी टिकटें हैं। सच मानो तो ठीक। न मानो तो भी ठीक। विश्वास दिलाकर हमे तुम लोगों से कोई इनाम नहीं लेना। " देवराज चौहान ने तीन कदम और आगे बढ़ाए। मोना चौधरी उसे खा जान वाली निगाहों से देख रही थी। "तुम्हारा क्या ख्याल है मोना चौधरी।" देवराज चौहान ने तीखे : स्वर में कहा- "मैं तुमसे डरता हूं जो इस मामले में मेरा हाथ होते हुए तुम्हें देखकर कहूंगा कि यहां जो भी हो रहा है उसमें मेरा कोई लेना-देना नहीं।"
मोना चौधरी दांत पीसकर रह गई।
तभी तीनों बंदे वहां पहुंचे
“तिजोरी, आपकी कार की डिग्गी में रख दी है। " एक ने रुस्तम राव से कहा।
"ठीक है। अब यहां से फुटेला बाप—।" रुस्तम राव बोला। तीनों बंदे अपनी कार की तरफ बढ़ गए। जो टक्कर मारने की वजह से बुरे हाल हो गई थी।
मोना चौधरी ने सुलगती निंगाहों से बांकेलाल राठौर और रुस्तम राव को देखा।
"जो भी कर रहे हो, इसका अंजाम बहुत बुरा होगा। तिजोरी वापस कर दो।" मोना चौधरी दांत भींचे बोली।
“अमको दा तिजोरी को चाटना है का? पता दे दयो, तिजोरी को थारे पासो पौंचा दयो। अंम को तो सिर्फ वो फाइल की जरूरत हौवे, जिसकी जरूरत थारे को हौवे-।"
"बांकेलाल।" मोना चौधरी का चेहरा घघक उठा "बहुत बुरा होगा इसका अंजाम। "
"म्हारे को अंजाम की परवाह न हौवे फाइल की परवाह हौवे। " बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर पहुंच गया।
तभी महाजन बोला।
"तुम्हें फाइल की क्या जरूरत है?"
"बोई जरूरत हौवे जो थारे को हौवे। तम फाइल बंगाली को दयो और अंम फाइल कर्मे को दयो जो कभी उसो का पार्टनर हौवे हो। समझो का—।"
"ये तिजोरी शंकर भाई के यहां से हम लाए हैं। " मोना चौधरी बोली।
"इसी बात का इंतजार तो आपुन कई दिनों से करेला था बाप । " रुस्तम राव मुस्कराया "कि तुम फाइल को शंकर भाई के इधर से बाहर लाएला और आपुन वो फाइल पाएला। ये अलग बात होएला कि फाइल के बदले तुम तिजोरी ही उठायेला । " जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा।
"हम चलें?"
देवराज चौहान ने सहमति से सिर हिलाया और पलटकर कार की तरफ बढ़ गया। साथ में जगमोहन और सोहनलाल भी थे। तभी मोना चौधरी ने बिजली की सी फुर्ती से बांकेलाल राठौर के रिवॉल्वर वाले हथियार पर झपट्टा मारा, जिसकी नाल पेट से लगी थी बांकेलाल राठौर संभल नहीं सका। वो तो सोच भी नहीं सकता था कि ऐसे खतरनाक मौके पर मोना चौधरी कुछ करने की सोचेगी भी? दूसरे ही पल रिवॉल्चर बांकेलाल राठौर के शरीर से सटी थी।
बांकेलाल राठौर हक्का-बक्का रह गया।
रुस्तम राव हाथ में रिवॉल्वर थामे खड़ा रह गया। खेल एकदम उलटा हो गया था। वो कुछ करता तो मोना चौधरी ने बांकेलाल राठौर को शूट कर देना था।
"रिवॉल्वर फेंक दे रुस्तम राव- ।"
"बाप। खेल का रंग ही बदएला है।" रुस्तम राव की आंखों में खतरनाक भाव मचल उठे।
"रिवॉल्वर फेंक]"
रुस्तम राव को रिवॉल्वर फेंकनी ही पड़ी।
"अब तुम दोनों में से कोई शरारत नहीं करेगा। महाजन तुम रुस्तम राव के साथ, वो तिजोरी उठाकर-।"
"बाप इतना तकलीफ क्यों करेला है। आपुन का कार ही ले जा। कई छोड़ देना आपुन का आदमी ले आएगा।"
"अंम 'वड' के रख देवेगा। " बेवस बांकेलाल राठौर गुर्रा उठा।
"महाजन, इनकी कार संभालो।" मोना चौधरी ने दांत भींचकर कहा।
महाजन कार की तरफ बढ़ा। तभी बांकेलाल राठौर ने दांत भींचकर मोना चौधरी की कलाई, पकड़ी और रिवॉल्चर अपने पेट से हटाकर एक तरफ कर दी। यह सब अचानक हुआ। ट्रेगर पर रखी उंगली दब गई और तब इत्तफाक से नाल का रूख देवराज चौहान की तरफ था जो उस वक्त कार में बैठ रहा था।
उसी पल देवराज चौहान के होंठों से कराह निकली। कंधा कार से जा टकराया।
जगमोहन तड़प कर पलटा।
"गोली लगी?" जगमोहन की आवाज में गुर्राहट थी।
"हां। पिंडली को उधेड़कर निकल गई।" देवराज चौहान के होंठों से निकला।
अगले ही पल जगमोहन ने रिवॉल्वर निकाली और धधकते चेहरे के साथ आगे बढ़ा। दरिंदा लग रहा था वह।
"किसने चलाई गोली?" जगमोहन दहाड़ा।
जवाब दिया वांकेलाल राठौर ने।
"रिवॉल्चर तो मोना चौधरी के हाथ में हौवो।" उसने अभी भी मोना चौधरी की कलाई थाम रखी थी।
कार की तरफ बढ़ते महाजन के कदम ठिठक चुके थे। उसके चेहरे से इस बात की आशंका जाहिर हो रही थी कि अब कुछ होगा।
चेहरे पर खतरनाक भाव समेटे जगमोहन उनके पास पहुंचकर ठिठका और हाथ में दबी रिवॉल्वर मोना चौधरी की गर्दन पर रख दी
"बोल—।" जगमोहन गुराया।
"मैं कोई सफाई देने के लिए नहीं बता रही हूं। " मोना चौधरी भींचे होंठों से कह उठी "मेरी उंगली ट्रेगर पर थी। बांकेलाल ने कलाई पकड़ी तो ट्रेगर दब गया। "
"ये बच्चों के खिलौने नहीं हैं। " पास आता देवराज चौहान कह उठा-"बिना इशारे के जब ट्रेगर दबने लगें तो बड़े खिलौनों से दूर हो जाना चाहिए।"
मोना चौधरी की आंखें सुलग उठीं।
"ये गोली मेरी पिंडली की अपेक्षा मेरी पीठ और सिर में भी लग सकती थी।"
"मैंने जानबुझकर गोली नहीं चलाई। " मोना चौधरी पूर्ववतः स्वर में कह उठी।
"मोना चौधरी।" देवराज चौहान एक एक शब्द चवाकर कह उठा– "हमारे धंधे में कोई भी गलती, गलती से हो जाए तो वो जान जाने की वजह बनती है। इस बात से तुम अच्छी तरह वाकिफ हो। मैं सिर्फ इतना जानता हूं कि तुम्हारे हाथ में दबी हुई रिवॉल्वर से गोली निकलकर मुझे लगी है। बोल क्या करूं तेरा ?"
मौना चौधरी की गर्दन पर हाथ रखे जगमोहन ने खतरनाक स्वर में देवराज चौहान से पूछा -"चलाऊं गोली"
"ऐसा मत करना । " चंद कदमों की दूरी पर खड़ा महाजन कह उठा।
"ये तो रगड़ा पैदा हो गएला है बाप" रुस्तम राव बड़बड़ाया।
वहां मौत से भरी खामोशी छा चुकी थी।
"अंम 'वड' के रख दां दे।" मोना चौधरी की रिवॉल्चर वाली कलाई सख्ती से थामे बांकेलाल राठौर कह उठा।
देवराज चौहान दो कदम और आगे बढ़ा और मोना चौधरी के हाथ में दबी रिवॉल्वर ले ली। गर्दन पर रिवॉल्वर लगी होने की वजह से मोना चौधरी इंकार करने की स्थिति में नहीं थी।
देवराज चौहान पीछे हटा।
मोना चौधरी की कलाई छोड़कर बांकेलाल राठौर भी पीछे होता चला गया।
"तुमने मेरी कार से जोरदार टक्कर मारी। लेकिन मैंने तुम्हें फिर भी कुछ नहीं कहा। शायद इसीलिए कि में ये वक्त निकालना चाहता था। मैं तुम लोगों के काम में दखल दिए बिना वापस जा रहा था कि तेरे हाथ में दबी रिवॉल्वर से निकली गोली मुझे आ लगी। मैं कोई साधु-संत नहीं कि तेरी दूसरी गलती को भी नजर अंदाज कर दूं, जो गलती से हुई है। तूने ही मुझे मजबूर किया है कि मैं इस काम में दखल दूं।"
मोना चौधरी की जलती आंखें देवराज चौहान पर थीं। "बकि – ।"
"हुकम"
"जिस तिजोरी की बात हो रही थी। वो कहां है?" देवराज चौहान सर्द स्वर में बोला। रिवॉल्वर थामे उसकी निगाई एकटक मोना चौधरी पर थीं। “
"फिक्र काणो। वो अपनी ही कारों में हौवो। "
"जा। रुस्तम को साथ ले जा " देवराज चौहान भिंचे स्वर में बोला।
बांकेलाल राठौर फौरन पलटा और रुस्तम राव से बोला। "चल छोरे। म्हारी तो बैजाबै जा होते-होते बल्ले-बल्ले हो गयो। "
दोनों अपनी कार की तरफ बढ़े। रुस्तम राव के चेहरे पर गंभीरता थी।
"बाप। इन दोनों में झगड़ा होएला। जो फकीर बाबा, बोएला था।"
‘‘फिक्र कादी। 'वड' के रख दया गें। "
तिजोरी जाती देखकर, मोना चौधरी के जिस्म में आग लग गई।
"देवराज चौहान। तुमने मेरे मामले में दखल देकर ठीक नहीं किया। मैं।"
''मैंने दखल नहीं दिया।" देवराज चौहान चुभते स्वर में कह उठा "गोली चलाकर तुमने बुलावा भेजा था और मैं आ गया। "
"तुम एक बार फिर झगड़े की बुनियाद रख रहे हो। "
"मैंने न तो पहले झगड़े की बुनियाद रखी थी। और ना ही अब रख रहा हूं। तुम्हें सिर्फ यह समझा रहा हूं कि हाथ में रिवॉल्वर लेकर इस तरह नहीं घूमा करते। गोली चल जाती है। जैसे कि अब चली और मेरे को लगी। " देवराज चौहान ने कठोर स्वर में कहा- "बहुत सस्ते में छूट रही हो अभी भी कोई और होता तो बातें करने की अपेक्षा, अब तक गोलियों से भूनकर चलता बनता ।
"मैं कहता हूं खत्म करो इसे " मोना चौधरी की गर्दन पर रिवॉल्वर रखे जगमोहन कठोर स्वर में कह उठा।
"खत्म भी कर देते। अगर इसने यह गलती जान बूझकर की होती। लेकिन दो गलतियां, गलती से कर चुकी है यह। इसलिए मामले में दखल देकर सस्ते में छोड़ रहा हूं।" देवराज चौहान ने मोना चौधरी की सुलगती आंखों में देखा—"और ऐसे मौके बार-बार नहीं मिलते जान बचाने के।"
मोना चौधरी दांत भींचे रही। वो जानती थी कि इन हालातों में कभी भी ये लोग उसे शूट कर सकते हैं और वो कुछ नहीं नहीं कर सकती।
देखते ही देखते रुस्तम राव और बांकेलाल राठौर की कार वहां से चली गई। मोना चौधरी को लगा जैसे उसका पूरा जिस्म आग में घिर गया हो।
“जगमोहन।" देवराज चौहान की आवाज में सर्द
भाव —।"
"चल कार में खा जाने वाली निगाहों से मोना चौधरी को देखते जगमोहन पीछे हटा। तीन कदम उलटे ही चला।
"मेरी मानो तो खत्म कर दो इसे।" जगमोहन ने सख्त स्वर में कहा—"ये—।"
"जरूरत पड़ी तो तुम्हारी ये बात भी मान ली जाएगी।" देवराज चौहान की आवाज के भाव सर्द ही रहे "इस वक्त यहां से चलो। इसे जो समझाना था, वो समझा चुके हैं हम। "
जगमोहन पलटा और कार की तरफ बढ़ गया। चेहरे पर गंभीर भाव समेटे सोहनलाल गोली वाली सिगरेट सुलगाए कार के पास ही खड़ा था। चो पीछे वाली सीट पर बैठ गया। जगमोहन ने कार की स्टेयरिंग सीट संभाली स्टार्ट की और कार को बैक करके सड़क पर सीधा किया।
"देवराज चौहान।" मोना चौधरी की आवाज में मौत झलक रही थी—“मामला तो अब शुरू हुआ है। "
'शुरू हुआ है, तो मुझे कोई दुख नहीं। खत्म हुआ है तो मुझे कोई खुशी नहीं।" देवराज चौहान का स्वर सर्द ही था क्योंकि मेरे मामले चलते रहते हैं। कभी खत्म नहीं होते।" कहने के साथही देवराज चौहान रिवॉल्चर को रूख मांना चौधरी की तरफ किए, सावधानी से उलटे पांव अपनी कार की तरफ बढ़ने लगा।
मोना चौधरी की सुर्ख धधकती निगाहें उस पर लगी रहीं। देखते ही देखते देवराज चौहान कार में बैठा और कार आगे बढ़ती चली गई। कुछ ही पलों बाद कार की टेल लाइट भी, नजर आनी बंद हो गई।
महाजन पास पहुंचा।
मोना चौधरी तब तक जलकर राख हो चुकी थी। "सॉरी बेबी। मेरी रिवॉल्वर कार में थी। मैं चाहकर भी कुछ नहीं
कर सका। " महाजन अफसोस भरे स्वर में बोला ।
मोना चौधरी की लाल आंखें महाजन के चेहरे पर जा टिकीं। "महाजन बहुत मौके मिलेंगे अब करने को। जो मन में आए कर लेना। जी भरकर करना। मेरे मामले में दखल देकर देवराज चौहान ने अपनी मौत को बुलाया है।"
महाजन ने मोना चौधरी की पागल हो रही हालत को देखा। "बेबी।" महाजन उसे ठंडा करने के इरादे से बोला—"गलती तुम्हारी भी थी। "
"मेरी। "
"हां। बेशक वो सब बांकेलाल की हाथापाई की वजह से हुआ। लेकिन रिवॉल्वर तुम्हारे हाथ में थी और उसमें से गोली निकलकर देवराज चौहान को लगी। उसकी टांग पर लगी। लेकिन वह गोली उसके शरीर के किसी नाजुक जगह भी लग सकती थी। वो मर सकता था। अगर ऐसा कुछ हो जाता तो तब उसके साथी हमारी क्या हालत—।"
"जो हुआ ही नहीं। उसकी बात मत करो महाजन।" मोना चौधरी ने दांत भींचकर कहा- "मेरे हाथ में दबी रिवॉल्वर से गोली चली और देवराज चौहान जानता था कि जानबूझकर मैंने उस पर गोली-।"
"मैं तुम्हारी बात से सहमत नहीं हूं। तुम्हारे हाथ में पकड़ी रिवॉल्वर से गोली निकल कर देवराज चौहान को जा लगी। देवराज चौहान को भड़काने के लिए इतना ही बहुत है। " महाजन गंभीर था "अगर उसकी जगह, अंडरवर्ल्ड का कोई दादा होता तो वो सीधा तुम्हें गोलियों से भून देता।"
"होता और क्या न होता। ये बाद की बात है। " मोना चौधरी दरिंदगी से कह उठी–"देवराज चौहान ने मेरे मामले में दखल देकर, मेरी सारी मेहनत पर पानी फेर दिया। तिजोरी हमारे हाथ से निकल गई। अब बात सिर्फ देवराज चौहान की और मेरी है। इस वक्त उसकी चली। वो चला गया। में बताऊंगी देवराज चौहान को कि मोना चौधरी हर बार बेबस नहीं होती।"
महाजन गहरी सांस लेकर रह गया।
"चलें बेबी शंकर भाई वाली कार यहीं छोड़ देते हैं। " महाजन ने बात बदली।
मोना चौधरी की निगाह एकटक उस काली थैली पर टिक चुकी थी, जो कार की हैडलाइट में चमक रही थी। वो थैली वहां पड़ी थी जहां देवराज चौहान वाली कार रुकी थी।
मोना चौधरी अपनी जगह से हिली आगे बढ़ीं। आंखों में सिकुड़न आ चुकी थी। पास पहुंचकर नीचे पड़ी थैली को उठाया। वो मखमली, कीमती कपड़े की थैली थी।
थैली के भीतर उसे किसी ठोस चीज का एहसास हुआ थैली का मुंह डोरी से बंद था। तब तक महाजन भी पास आ चुका था। उसने भी थैली को देखा।
"ये क्या है बेबी ?"
मोना चौधरी ने होंठ सिकोड़ कर थैली खोली बीच में हाथ डाला तो पल भर के लिए ऐसा लगा जैसे किसी बर्फ के टुकड़े को धाम लिया हो। उस चीज को निकाला तो अंधेरे में उनकी आंखें चौंधिया गई। इतनी तेज जैसे किरणें निकल रही थी उसमें से।
वो दरिया-ए नूर हीरा था। जिसे देवराज चौहान ने हैदराबाद के नईमा प्राइवेट वाल्ट के लॉकर नंबर तीन सौ इक्यावन से डकैती करके निकाला था। कारों की टक्कर और पिंडली में गोली लगने के दौरान, यो जेब से खिसककर बाहर निकल आया होगा। फिर नीचे गिरा। परंतु काली थैली में बंद होने की वजह से उसके गिरने का एहसास नहीं हो पाया था, देवराज चौहान को।
मोना चौधरी ने फौरन हीरे को थैली में वापस बंद कर दिया। वो चमक वो रोशनी एकाएक गायब हो गई। महाजन फटी-फटी आंखों से थैली को देख रहा था। मोना चौधरी के होंठों पर जहरीली मुस्कान नाच रही थी।
"बेबी, ये...ये तो बेशकीमती हीरा है। " महाजन के होंठों से निकला।
"हां और देवराज चौहान की जेब से गिरा है।" मोना चौधरी जहरीले स्वर में कह उठी "जल्दी से निकलो। देवराज चौहान इसकी तलाश में यहां भी आ सकता है और ऐसे कीमती हीरे के पास में होते हुए, मैं लड़ना नहीं चाहती।"
दोनों तेजी से अंधेरे में गुम होते चले गए।
मोना चौधरी की बात ठीक निकली। पांच मिनट बाद ही देवराज चौहान की कार वहां आ पहुंची थी। उन्होंने वहां थैली को, हीरे को बहुत तलाशा। देर तक ढूंढा। तब दिन का उजाला भी फैलना शुरू हो गया था। परंतु वो हीरा—वो थैली तो उन्हें मिलनी नहीं थी। आखिरकार देवराज चौहान सपाट स्वर में कह उठा।
"वो हीरा, दरिया-ए-नूर, मोना चौधरी के हाथ लग गया है। "अब क्या होगा?" जगमोहन जैसे तड़प उठा।
"मोना चौधरी जैसी शख्सियत के हाथों कोई चीज निकालना आसान काम नहीं।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा-"फिर भी देखेंगे कि क्या किया जा सकता है। चलो बंगले पर। "
सोहनलाल होंठ सिकोड़कर, सिर खुजला रहा था।
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