उसी रात, लगभग एक बजे ।
विराटनगर से आने वाली फ्लाइट से अन्य यात्रियों के साथ रंजीत कुमार सिन्हा भी विशालगढ़ पहुंचा ।
उनकी उम्र करीब तीस साल थी । देखने में वह कामयाब बिजनेसमैन या पेशेवर खिलाडी नजर आता था । लेकिन इनमें से कोई भी न होकर वह वास्तव में सी० आई० डी० का स्पेशल ऑफिसर था । सी० आई० डी० की विभिन्न शाखाओं में काम कर चुका रंजीत सिन्हा विभाग के कुशलतम व्यक्तियों में से एक था ।
एयरपोर्ट की इमारत में पहुंच कर वह उस तरफ बढ़ा जहां एक कतार में कोई दर्जन भर पब्लिक टेलीफोन बूथ्स बने थे ।
एक बूथ में घुसकर उसने होटल सिद्धार्थ का नम्बर डायल किया ।
सम्बन्ध स्थापित होने पर बोला–'आई वांट टु स्पीक टू मिस्टर अजय कुमार । ही इज इन रूम नम्बर एट ऑन टॉप फ्लोर ।'
–'होल्ड ए मोमेंट प्लीज ।'
रंजीत होल्ड किए खड़ा रहा ।
चंद क्षणों परांत आप्रेटर का स्वर सुनाई दिया ।
–'नो रिप्लाई फ्राम रूम नम्बर एट मिस्टर अजय कुमार डजन्ट सीम टू बी इन ।'
–'विल यू प्लीज ट्राई हिम इन दी बार रूम ?'
जवाब में पुन: होल्ड करने के लिए कह दिया गया ।
रंजीत रिसीवर थामे इंतजार करने लगा ।
* * * * * *
होटल सिद्धार्थ के बार रूम में ।
बार काउंटर के पास खड़ा अजय व्हिस्की की चुस्कियां ले रहा था । अमरकुमार के फ्लैट में जो कुछ करके आया था उससे वह पूर्णतया संतुष्ट था । उसे लगभग पूरी तरह यकीन था मनमोहन और मंजुला सक्सेना की हत्याओं के लिए अमरकुमार और रोशन ही जिम्मेदार थे । लेकिन वह जानता था उसके इस तरह यकीन करने की कोई अहमियत उस वक्त तक नहीं थी जब तक कि उन दोनों के खिलाफ ठोस सबूत नहीं मिल जाते ।
उसे यह भी यकीन था कि मंजुला सक्सेना की हत्या के मामले में भी पुलिस उन तक नहीं पहुंच पाएगी । इसीलिए उसने उनके साथ मारपीट की थी । ताकि वे जोश में आकर कोई कदम उठाएं और उन पर हाथ डालने का मौका मिल सके ।
–'मिस्टर अजय कुमार ।' सहसा बारमैन ने उसे सम्बोधित किया ।
उसने पलटकर देखा । बारमैन हाथ में रिसीवर थामे खड़ा था ।
–'आपके लिए कॉल है ।' बारमैन ने कहा–'उधर जाकर अटेंड कर लीजिये ।' और काउंटर के दूसरे सिरे के पास बने बूथ की ओर इशारा कर दिया ।
अजय अपना ड्रिंक वहीं छोड़कर इंगित बूथ में जा घुसा । ।
उसके रिसीवर उठाते ही बारमैन ने रिसीवर वापस क्रेडिल पर रख दिया ।
–'हलो ?' अजय माउथपीस में बोला–'अजय दिस साइड । हू इज कालिग, प्लीज ?'
जवाब में परिचित स्वर लाइन पर उभरा ।
–'रंजीत कुमार सिन्हा ।'
अजय को सुखद आश्चर्य हुआ ।
–'रंजीत ! तुम ? कहां से बोल रहे हो ?'
–'इसी शहर से ।'
–'कब आए ?'
–'मुश्किल से पांच मिनट हुए हैं ।'
अजय की आंखें सिकुड़ गई ।
–'और आते ही मेरी याद सताने लगी ?'
–'हाँ ।'
–'कोई खास वजह ?'
–'तुमसे मिलना चाहता हूँ ।'
–'कब ?'
–'जितना जल्दी हो सके । अगर आज रात में ही मिल सको तो बेहतर होगा ।'
अजय ने अपनी रिस्ट वॉच पर निगाह डाली ।
–'लेकिन इस वक्त एक बज रहा है ।'
–'जानता हूँ ।'
–'आखिर बात क्या है ?'
–'यह मैं फोन पर नहीं बता सकता ।'
–'ओके । कहां मिलोगे ?'
–'अपने स्थानीय ऑफिस में । देखा है ?'
अजय चकराया ।
–'ऑफिस तो मैंने देखा है । लेकिन मुझे वहां बुलाने की बजाय तुम खुद ही यहां क्यों नहीं आ जाते ?'
–'सॉरी । तुम्हारे पास मैं नहीं आ सकता, दोस्त ।'
अजय समझ गया, जरूर कोई गोपनीय बात थी ।
–'ठीक है, मैं आ रहा हूं ।' उसने कहा ।
सम्बन्ध विच्छेद करके बूथ से निकलकर वह काउंटर पर पहुंचा और अपना गिलास खाली करके बाररूम से निकल गया ।
* * * * * *
स्थानीय सी० आई० डी० ऑफिस के एक कमरे में अजय, रंजीत कुमार सिन्हा के सम्मुख बैठा था ।
–'मेरे बुलाने पर फौरन चले आने के लिए बहुत–बहुत शुक्रिया, अजय ।' रंजीत कह रहा था–'मैं जानता हूं, इस बेहूदा मौसम में बेवक्त रात में किसी को यूं बुलाना उसके साथ सरासर ज्यादती है । लेकिन तुम मेरे दोस्त हो...।'
–'बेहतर होगा इन बातों को छोड़कर मतलब की बात करो ।' अजय ने टोका ।
–'ओके ।' रंजीत बोला–'तुम मनमोहन सहगल की हत्या के केस पर काम कर रहे हो ?'
–'हां ।' अजय ने उत्तर दिया ।
–'किसके लिए ?'
–'मतलब ?'
–'इस केस पर अपने अखबार के लिए काम कर रहे हो या इसमें तुम्हारी दिलचस्पी की वजह कुछ और है ?'
–'तुम यह क्यों जानना चाहते हो ?'
–'इसलिए कि तुम मेरे दोस्त हो ।'
–'यह तो कोई वजह नहीं हुई ।' अजय गौर से उसे देखता हुआ बोला–'असल बात बताओ, तुम चाहते क्या हो ?'
–'क्या तुम मेरे कहने पर इस केस को ड्रॉप कर सकते हो ?'
अजय चौंका ।
–'लेकिन क्यों ?' उसने असमंजसता पूर्वक पूछा ।
–'वजह बताना जरूरी है ?'
–'हाँ ।'
रंजीत ने पल भर सोचा फिर सहमति सूचक सर हिला दिया ।
–'ठीक है । मैं बड़ी ही माकूल वजह तुम्हें बताऊंगा ।' उसने कहा–'मेरे यहाँ आने की भी एक वजह यह भी है, कि मैं दो आदमियों से तुम्हें मिलाना चाहता हूँ । मेरे मुकाबले में वे बेहतर ढंग से समझा सकते हैं कि तुम्हें यह केस क्यों ड्रॉप कर देना चाहिए ।' वह डेस्क पर रखे टेलीफोन उपकरण का रिसीवर उठाकर क्रेडिल में लगे बटनों में से एक को दबाकर बोला–'विनोद और कामेश्वर को भेज दो ।'
रिसीवर यथा स्थान रखकर उसने अजय को सिगरेट ऑफर की । फिर एक सिगरेट अपने होठों में दबाकर दोनों सुलगा दी ।
तभी दरवाजे पर हौले से दस्तक दी गई । फिर जो दो आदमी भीतर दाखिल हुए उन्हें अजय फौरन पहचान गया । वे वही लम्बू और ठिगना थे जो उसके होटल के कमरे में भी आए थे ।
अजय ने प्रश्नात्मक निगाहों से रंजीत को देखा ।
–'यह सब क्या है, रंजीत ?'
–'यह विनोद तलवार है ।' रंजीत ने ठिगने की ओर इशारा किया–'हमारे स्थानीय ऑफिस के इंचार्ज और यह कामेश्वर है ।' वह लम्बू की ओर इशारा करके बोला–'विनोद का असिस्टेंट ।'
–'तो फिर इन्होंने उस वक्त अपना परिचय क्यों नहीं दिया । जब ये लोग मेरे होटल रूम में घुस आए थे ।"
विनोद तलवार, मुस्कराया ।
–'तुम भूल रहे हो । हम लोगों ने बाकायदा दरवाजा खटखटाया था । और तुम्हारे द्वारा बुलाए जाने के बाद ही हम भीतर दाखिल हुए थे ।' वह अन्दर आकर एक कुर्सी पर बैठ गया–और अपना परिचय न देने को वजह है–किसी और का भी उस वक्त वहां मौजूद होना । किसी तीसरे व्यक्ति की मौजूदगी में इस मसले पर बातें हम नहीं कर सकते थे ।'
–'मुझ से इस केस को ड्रॉप कराने के मामले में तुमने किस हद तक जाना था ?' अजय ने पूछा ।
–'तुम्हारे बारे में जब इन्होंने विराटनगर ऑफिस को सूचित किया ।' रंजीत हस्तक्षेप करता हुआ बोला–'तो मैंने इन्हें बताया कि तुम्हें समझाने का वो तरीका गलत था । इसीलिए मुझे खुद यहाँ आना पड़ा ।' उसने सिगरेट का कश लेकर धुआं उगलने के बाद कहा–'हम इस केस के सभी तथ्य तुम्हारे सामने रख रहे हैं अजय और मैं समझता हूं, सब कुछ जान लेने के बाद तुम खुद ही इस केस को ड्रॉप करने के लिए रजामंद हो जाओगे ।' उसने विनोद की ओर देखा–'तुम्हीं बता दो ।'
विनोद के चेहरे पर एक पल के लिए ऐसे भाव उत्पन्न हुए मानों सोच रहा था कैसे शुरू करे । फिर वह बोला–'सबसे पहली बात तो यह है–हम समझते हैं, ज्यादा संभावना इसी बात की है कि मनमोहन की हत्या की गई थी ।' अजय ने कुछ कहना चाहा तो उसने हाथ उठाकर रोक दिया–'लेकिन इसे अदालत में साबित कर पाना नामुमकिन है । न ही हम ऐसा करना चाहते हैं । क्योंकि हमारी मुख्य समस्या यह नहीं है । दरअसल हमारे लिए बड़ी मछली की कहीं ज्यादा अहमियत है । हम उसी को पकड़ना चाहते हैं और तुम्हारी दखलंदाजी से सब गड़बड़ हो सकता है ।'
–'किस बड़ी मछली की बात कर रहे हो ?'
–'चंदन मित्रा अपहरण कांड याद है तुम्हें ?'
अजय ने सर हिलाकर हामी भरी ।
–'मुझे अच्छी तरह याद है चन्दन मित्रा के अपहरणकर्ता पकड़े नहीं गए थे । और यह भी याद है वो केस तुम्ही लोगों को सौंपा गया था । ठीक है न ?'
–'हाँ । लेकिन अपहरणकर्ताओं के अभी तक न पकडे जाने का अर्थ यह नहीं है कि वे कभी पकड़े ही नहीं जाएंगे ।'
–'चंदन मित्रा का केस अभी भी हमारे विभाग के लिए एक चुनौती बना हुआ है, अजय ।' रंजीत ने कहा–'अपहरणकर्ताओं द्वारा फिरौती की रकम की मांग की जाने से पहले ही ने बेचारा चंदन मर चुका था । लेकिन उसके दौलतमंद मां–बाप को इसकी कोई जानकारी नहीं थी । उन्होंने बेहिचक बीस लाख रुपये की रकम किडनेपर्स को दे दी । फिर भी उनका बेटा उन्हें वापस नहीं मिला ।'
–'वो सब तो ठीक है ।' अजय उलझन भरे स्वर में बोला–'लेकिन चंदन मित्रा के अपहरण का मनमोहन की हत्या से क्या ताल्लुक है ?'
–'मैं तुम्हें बैकग्राउंड समझाता हूँ ।' विनोद बोला–'मनमोहन फिल्म स्टार अमरकुमार का मैनेजर, सेक्रेटरी वगैरा सब कुछ था । इसके अलावा, वह इस शहर में शमशेर सिंह का एक ऐसा नुमाइंदा था जो सभी प्रकार के उसके हितों की रक्षा करता था । और अगर मेरा ख्याल गलत नहीं है तो शमशेर सिंह की जन्मपत्री की बड़ी पूरी जानकारी तुम्हें है ?' उसने पूछा, फिर अजय को सहमति सूचक सर हिलाता पाकर बोला–'वे लोग फिल्मों में फाइनेंस भी करते हैं । अमरकुमार की तकरीबन सभी फिल्में उन्हीं लोगों ने फाइनेंस की थी अमरकुमार आज सुपरस्टार है । आम अफवाह है कि दूसरे निर्माता उसे अपनी फिल्म में लेने के लिए एक करोड़ तक देने के लिए तैयार हैं । लेकिन शमशेर सिंह से हुए कांट्रैक्ट की वजह से अपनी मर्जी से किसी भी फिल्म में काम वह नहीं कर सकता । और मौजूदा हालत में फिल्म में काम करने की एवज में उसे नगद रकम सिर्फ उतनी ही मिलती है जितने में कि वह ऐशोआराम की जिन्दगी गुजार सकता है । इस सारे सिलसिले की असलियत यह है कि अमरकुमार को इन लोगों ने अपना फ्रंटमैन बना रखा है । उसके जरिए वे लोग दूसरे दर्जनों गैर कानूनी धंधों से कमाई रकम को कानूनी तौर पर सही ढ़ंग से सही धंधों में लगाते हैं । होटल्स, कैसिनोज, वगैरा में ।'
–'इनकम टैक्स वाले आंखें बंद करके सो रहे है ?' अजय ने पूछा–'क्या वे उससे नहीं पूछते कि उसके पास इतनी रकम कहाँ से आ रही हैं ?'
–'उसका सीधा सा जवाब है फिल्मों में काम करने की एवज में उसे मोटी रकम मिलती है ।' रंजीत ने जवाब दिया–'जब भी वे लोग उसके नाम से जितनी वाइट मनी शो करते हैं । उस पर बाकायदा टैक्स देते हैं और उसे एकदम क्लीन रखते हैं ।'
–'फिर भी हर बड़े सौदे में नंबर एक की रकम से ज्यादा बड़ा रोल नंबर दो की रकम का होता है ।'
–'हम जानते हैं, अक्सर मनमोहन के पास दो नंबर की नगद रकम आया करती थी...।'
–'और इनकम टैक्स वाले ?'
–'वे भी जानते हैं ।'
–'तो उस रकम को पकड़ते क्यों नहीं वे लोग ?'
–'मनमोहन टैलेंट एजेंट भी था । स्क्रीन टेस्ट लेने के बहाने वह अलग–अलग शहरों से लड़कियों को बुलाता रहता था । उनमें ज्यादातर लड़कियां असल में 'कूरियर्स' होती थी । उनके पास सूटकेसों में सील्ड पैकेटों में वो रकम छिपी होती थी । जो शमशेर सिंह के कहने पर उसके आदमियों द्वारा यहां भेजी जाती थी । यह एक तरीका था जो रकम यहाँ भिजवाने के लिए आमतौर पर इस्तेमाल किया जाता था । इस तरीके की जानकारी हम लोगों को भी थी । लेकिन जानकारी, होना और साबित करना दो बिल्कुल अलग–अलग बातें हैं ।
–'मेरी समझ में अभी भी नहीं आया ।' अजय सर हिलाता हुआ बोला–'चंदन मित्रा का अपहरण इस सिलसिले में कहाँ फिट बैठता है ।'
–'कुछ दिन पहले मनमोहन ने होटल गगन का दो करोड़ में सौदा किया था । उस तमाम रकम का भुगतान नगद किया गया था । इनकम टैक्स वालों के अलावा हम लोगों को भी इसकी जानकारी थी । दो करोड की उस रकम में बीस लाख रुपए के वे नोट भी शामिल थे । जो बतौर फिरौती चंदन मित्रा के अपहरणकर्ताओं को दी गई थी । दरअसल मित्रा परिवार ने अपने बेटे के अपहरण की सूचना तो पुलिस को जरूर दी थी । लेकिन उसमें पुलिस का कोई दखल वे कतई नहीं चाहते थे । मगर पुलिस द्वारा नोटों पर निशानदेही की जाने पर कोई एतराज उन्होंने नहीं किया । पुलिस ने उन नोटों के बारे में सभी बैंकों वगैरा को भी सूचित कर दिया था ।'
–'ओह, आई सी ।' अजय सिसकारी सी लेकर बोला–'इसका मतलब है, शमशेर सिंह एन्ड कम्पनी ने समझा कि मनमोहन ने अपहरणकर्ताओं से वो रकम खरीदकर सही नोटों से उसे बदला और वे नोट दो करोड़ की रकम में मिला दिए ? इसीलिए उसकी हत्या कर दी गई ?'
–'किसी ने वे नोट बदले तो जरूर थे । लेकिन मनमोहन को बलि का बकरा बनाया गया ।' विनोद ने कहा–'हम नहीं मानते कि मनमोहन ने ऐसा किया था । और असलियत होनी भी यही चाहिए ।'
–'क्यों ?'
–'इसलिए कि अगर वे नोट मनमोहन ने खरीदकर बदले तो उसकी मौत के बाद या तो रकम उसके फ्लैट से बरामद होनी चाहिए थी या फिर ऐसा कोई संकेत जरूर मिलना चाहिए था जिससे उसका सुराग लगता । लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ ।' विनोद ने कहा–'मनमोहन की मौत के बाद हमने बारीकी से इस बारे में छानबीन की । और अंत में इसी नतीजे पर पहुंचे कि यह काम उसने नहीं किया था । हमारी इकलौती उम्मीद भी इसी आधार पर टिकी हुई है । क्योंकि फिरौती की रकम अगर मनमोहन ने नहीं खरीदी तो जिस किसी ने भी खरीदी थी । वह अभी भी यहीं कहीं मौजूद है । और वह खरीदार चंदन मित्रा के अपहरणकर्ताओं को जानता है । जिनकी हमें तलाश है ।'
अजय के चेहरे पर गहन विचारपूर्ण भाव थे । उसकी निगाहें विनोद पर जमी थीं ।
–'अमरकुमार के बारे में क्या ख्याल है ?' लंबी खामोशी के बाद उसने पूछा–'उसे भी थोड़ी बहुत जानकारी जरूर होनी चाहिए ।'
–'उसने बड़ी खूबसूरती से हमें चकमा दे दिया ।' रंजीत अपनी कुर्सी की पुश्त से पीठ सटाता हुआ बोला–'और मजे की बात यह है कि उसकी बात पर यकीन न करने की कोई माकूल वजह हमारे सामने नहीं है । क्योंकि हम यकीनी तौर पर जानते हैं जो रकम उसके नाम से इनवेस्ट की जाती थी । उसके कभी दर्शन तक उसने नहीं किए । वो सब काम मनमोहन खुद ही किया करता था । और जिस वक्त मनमोहन मारा गया–अमरकुमार विराटनगर में हमारे सामने मौजूद था । उसने बाकायदा दस्तखत शुदा हल्फिया बयान दिया है कि मनमोहन ने उसके सामने साफ कबूल किया था कि नोट उसी ने बदले थे ।'
–'लेकिन यह सब बताने के लिए वह विराटनगर क्यों गया ? यहीं पुलिस को या तुम्हारे स्थानीय ऑफिस को क्यों नहीं बता दिया ?'
–'उसका कहना था ।' विनोद बोला–'मनमोहन ने उसे धमकी दी थी अगर उसने इसे बारे में जुबान खोली तो मनमोहन जान से मार डालेगा । उसने विराटनगर में अपने पेट पर पड़ी खरोचें और नीले निशान भी दिखाए थे । जो मनमोहन द्वारा की गई पिटाई की देन थे । बकौल अमरकुमार उसकी वो पिटाई वार्निंग के तौर पर की गई थी ।'
–'जानता हूँ ।' अजय बोला–'मनमोहन ने मरने से एक रात पहले नलिनी प्रभाकर के फ्लैट में बड़ी बेरहमी से उसकी पिटाई की थी ।'
–'हम भी जानते हैं । नलिनी प्रभाकर हमें बता चुकी है ।' विनोद ने कहा–'लेकिन जैसा कि मैं पहले ही कह चुका हूँ, मनमोहन के हत्यारों के मुकाबले में चंदन मित्रा के हत्यारों को पकड़ने में हमारी कहीं ज्यादा दिलचस्पी है । जहाँ तक मनमोहन का सवाल है, जब उसने शमशेर सिंह की ऑर्गनाइजेशन के लिए काम करना शुरू किया था वह बखूबी जानता था एक रोज यह अंजाम भी उसका हो सकता था । जबकि चंदन मित्रा सिर्फ दस साल का एक मासूम बच्चा था । उस बेचारे को महज इसलिए अपनी जान गंवानी पड़ी क्योंकि वह दौलतमंद माँ–बाप की इकलौती औलाद था ।'
–'इसीलिए हम चाहते हैं तुम इस केस को ड्राप कर दो ।' रंजीत बोला–'होटल गगन की खरीदारी वाली दो करोड़ रुपये की वो सारी रकम जब्त की जा चुकी है । क्योंकि वो रकम किसी एक की न होकर ऑर्गेनाइजेशन के लगभग सभी मेम्बर्स की है । इसलिए अब वे लोग अपनी–अपनी रकम वापस पाने के लिए हाय तौबा मचाएंगे । फिरौती की रकम वाले नोटों के लिए एक दूसरे को जिम्मेदार ठहराएंगे । यानी उनमें आपस में फूट पड़ जाएगी । ऐसी स्थिति उत्पन्न होने का सीधा सा मतलब होगा–'हमारे हाथ सॉलिड लीड लगना ।'
अजय ने एकदम से कुछ न कहकर नया सिगरेट सुलगाया और कई पल सोचता रहने के बाद बोला–'तुम्हारे रास्ते में न आने की मैं अपनी ओर से पूरी कोशिश करूँगा । लेकिन इस केस को अब ड्रॉप नहीं करूंगा...।'
विनोद के चेहरे पर व्याप्त भावों से जाहिर था अपनी अधीरता पर काबू पाने के लिए उसे कठिन प्रयास करना पड़ रहा था ।
–'देखो, अजय ।' वह किसी बुजुर्ग की भांति समझाने वाले अन्दाज से बोला–'अगर हम एक ही केस पर अलग–अलग मकसद लेकर काम करेंगे तो चंदन मित्रा के हत्यारों को पकड़ने के लिए जो जाल हम फैला रहे हैं उसमें न चाहते हुए भी तुम्हारी ओर से गड़बड़ हो जाने की पूरी उम्मीद है । और ऐसा होने की सूरत में हमारे तमाम किए कराए पर पानी फिर जायेगा ।'
–'एक दूसरे के रास्ते में आने की बजाय हम साथ मिलकर भी काम कर सकते हैं ।'
–'सॉरी । तुम प्रेस के आदमी हो । तुम्हारा सोचने का नजरिया और काम करने का ढ़ंग हमसे बिलकुल अलग है । इसके अलावा, मैंने सुना है तुम बेहद खुराफाती किस्म के आदमी हो...।'
–'ठहरो, विनोद ।' रंजीत ने हाथ उठाकर उसे रोका फिर अजय की ओर पलटकर पूछा–'बाई दी वे, तुम करना क्या चाहते हो ?
अजय सिगरेट का गहरा कश लेकर धुआँ छोड़ने के बाद बोला–'आज रात 'विशालगढ़ टाइम्स' की एक रिपोर्टर मंजुला सक्सेना की हत्या कर दी गई...।'
रंजीत ने गरदन घुमाकर प्रश्नात्मक निगाहों से विनोद को देखा जवाब में विनोद ने सहमति सूचक सर हिला दिया ।
–'उसकी हत्या सिर्फ इसलिए की गई थी । अजय कह रहा था क्योंकि उसके पास एक ऐसा सबूत था, जिससे साबित होता था कि जिस रात मनमोहन की हत्या की गई । अमरकुमार का बॉडीगार्ड रोशन मनमोहन के अपार्टमेंट में मौजूद था । रोशन ने ही मंजुला का मर्डर किया है ।'
विनोद ने कड़ी निगाहों से उसे घूरा ।
–'तुम इसे साबित कर सकते हो ?'
अजय ने सर हिलाकर इंकार कर दिया ।
–'अभी नहीं । लेकिन आज रात अमरकुमार और रोशन से इस बारे में मैंने बातें जरूर की हैं ।'
रंजीत ने गहरी साँस ली ।
–'उनसे अपने ढंग से ही बातें की थी ?'
अजय मुस्कराया ।
–'हाँ ।'
–'तब तो जाहिर है कि सुनते रहने के बावजूद तुम्हारी बातें समझने लायक वे नहीं रहे होंगे ।' रंजीत ने कहा, फिर विनोद से बोला–'इस किस्म से बातें करते वक्त अजय को जल्दी ही ताव आ जाता है । फिर जुबान से ज्यादा इसके हाथ चलने लगते हैं ।'
–'उन्होंने मेरी बातें सुनी ही नहीं समझी भी थीं और अपनी ओर से कुछ कहा भी था ।' अजय बोला–'हालांकि उस वक्त वे बातें मेरी समझ में नहीं आई । लेकिन अब समझ गया हूँ । अमरकुमार ने दावे के साथ कहा था शमशेर सिंह उसके लिए इतना ज्यादा फिक्रमंद रहता है कि आखिर तक उसका साथ देगा ।' उसने अंतिम कश लेकर सिगरेट एशट्रे में कुचल दी । फिर इससे पहले कि वह आगे कुछ कहता, टेलीफोन की घंटी बजने लगी ।
रंजीत ने रिसीवर उठाकर सुना फिर रिसीवर विनोद को थमा दिया ।' और अजय की ओर पलटकर बोला–'तुम कुछ कह रहे थे ?'
–'मेरा अनुमान है, अमरकुमार के पास कोई ऐसी सूचना है जो शमशेर सिंह के लिए बड़ी भारी अहमियत रखती है । इसीलिए वह अमरकुमार के लिए इस कदर फिक्रमंद है कि उसे पूरी तरह सुखी और खुश रखना चाहता है । इसका मतलब है, अगर अमरकुमार दुखी और नाखुश होगा तो उसे खुश करने के लिए वह जरूर कोई एक्शन लेगा । और उसका वो एक्शन मेरे लिए ब्रेक साबित हो सकता है ।
–'मैं तुमसे सहमत नहीं हूँ।' रंजीत बोला ।
–'क्यों ?'
–'इसलिए कि जरूरी नहीं है तुम्हारा अनुमान सही ही निकले । और अगर सही निकला भी तो भी तुम्हारा यह तरीका निहायत खतरनाक है ।'
अजय हंसा ।
–'मुझे डराना चाहते हो ?'
–'नहीं ।'
–'फिर ?'
'तुम्हारा यह तरीका मुझे पसंद नहीं है ।'
–'लेकिन मुझे यही पसंद है और मैं इसी पर अमल करूँगा ।'
–'यानी तुम इस मामले में टाँग जरूर अड़ाओगे ?'
–'मेरा कदम इतना आगे बढ़ चुका है अब उसे पीछे मैं नहीं हटा सकता ।'
–'यानी हमारी बातों का कोई असर तुम पर नहीं हुआ ?'
–'तुम्हारी बातों से मुझे बहुत ज्यादा फायदा हुआ है, दोस्त । अब इस सिलसिले का सर–पैर मेरी समझ में आना शुरू हो गया है ।' अजय बोला–'अगर यह अकेले मनमोहन की हत्या का मामला होता तो शायद तुम्हारी बात को मानकर मैं इससे पीछे हट सकता था । लेकिन अब इससे मंजुला सक्सेना की हत्या का मामला भी जुड़ गया है । और मंजुला की हत्या ने हालात बदल दिए हैं ।'
–'क्योंकि वह तुम्हारी हम पेशा थी ?'
–'नहीं, बल्कि इसलिए कि उसकी मौत के लिए मैं खुद को जिम्मेदार समझता हूँ ।'
–'तुम्हें पूरा यकीन है इन दोनों हत्यारों का आपस में संबंध है ?'
–'हाँ ।'
रंजीत के चेहरे पर विचारपूर्ण भाव थे ।
–'ठीक है ।' वह संक्षिप्त मौत के बाद बोला–'लेकिन हमसे किसी तरह की मदद की उम्मीद मत रखना ।'
अजय खड़ा हो गया ।
–'मुझे किसी से कोई मदद नहीं चाहिए । इस सिलसिले की तमाम कड़िया मेरे सामने मौजूद हैं । बस उन्हें तरतीबवार जोड़ना भर बाकी है । ऐसा करते ही चेन कमप्लीट हो जाएगी । और फिर जो तस्वीर सामने आयेगी वो अपने आप में, मेरे विचार से, लाजवाब होगी ।'
रंजीत कुछ नहीं बोला ।
अजय पलटकर बाहर निकल गया ।
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