मेहमानों की वजह से आरिफ़ और अनवर को एक ही कमरे में रहना पड़ता था। यह कमरा सोफ़िया के कमरे से मिला हुआ था और बीच में सिर्फ़ एक दरवाज़ा था।

इमरान ने आरिफ़ के सामने एक प्रस्ताव पेश किया। उसे यक़ीन था कि आरिफ़ फ़ौरन तैयार हो जायेगा। प्रस्ताव यह था कि आरिफ़ इमरान के कमरे में चला जाये और इमरान उसकी जगह अनवर के साथ रहना शुरू कर दे। आरिफ़ इस प्रस्ताव पर खिल उठा, क्योंकि इमरान का कमरा मार्था के कमरे के बराबर था। अनवर को इस तब्दीली पर हैरत हुई और साथ ही अफ़सोस भी। वह सोच रहा था कि काश, इमरान ने अपनी जगह उसे भेजा होता।

‘आख़िर आपने वो कमरा क्यों छोड़ दिया?’ अनवर ने उससे पूछा।

‘अरे भई...क्या बताऊँ! बड़े डरावने ख़्वाब आने लगे थे।’ इमरान ने संजीदगी से कहा।

‘डरावने ख़्वाब!’ अनवर ने आश्चर्य प्रकट किया।

‘आहा! क्यों नहीं!...मुझे अंग्रेज़ लड़कियों से बड़ा डर लगता है।’

अनवर हँसने लगा। लेकिन इमरान की गम्भीरता में कोई फ़र्क नहीं पड़ा।

थोड़ी देर बाद अनवर ने कहा, ‘लेकिन आपने आरिफ़ को वहाँ भेज कर अच्छा नहीं किया!’

‘अच्छा, तो तुम चले जाओ।’

‘मेरा...यह मतलब नहीं!’ अनवर हकलाया।

‘फिर क्या मतलब है?’

‘आरिफ़ कोई काम सोच कर नहीं करता।’

‘हाँय! तो क्या मैंने उसे वहाँ कोई काम करने के लिए भेजा है।’

‘मतलब यह नहीं...बात यह है...’

‘तो वही बात बताओ...बताओ न।’

‘कहीं वह कोई हरकत न कर बैठे।’

‘कैसी हरकत?’ इमरान की आँखें और ज़्यादा फैल गयीं।

‘ओह! आप समझे ही नहीं। या फिर बन रहे हैं। मेरा मतलब है कि कहीं वह उस पर डोरे न डाले।’

‘ओह समझा!’ इमरान ने संजीदगी से सिर हिला कर कहा, ‘मगर डोरे डालने में क्या नुक़सान है। फ़िक्र की बात तो उस वक़्त थी जब वो रस्सियाँ डालता।’

‘डोरे डालना मुहावरा है इमरान साहब!’ अनवर झल्लाहट में अपनी टाँगें पीट कर बोला।

‘मैं नहीं समझा!’ इमरान ने मूर्खों की तरह कहा।

‘उफ़्फ़ोह! मेरा मतलब है कि कहीं वो उसे फाँस न ले।’

‘लाहौल विला क़ूवत...तो पहले क्यों नहीं बताया था।’ इमरान ने उठते हुए कहा।

‘कहाँ चले?’

‘ज़रा मार्था को होशियार कर दूँ!’

‘कमाल करते हैं आप भी!’ अनवर भी खड़ा हो गया। ‘अजीब बात है!’

‘फिर तुम क्या चाहते हो!’

‘कुछ भी नहीं!’ अनवर अपनी पेशानी पर हाथ मार कर बोला।

‘यार, तुम अपने दिमाग़ का इलाज करो।’ इमरान बैठता हुआ नाराज़गी से बोला। ‘जब कुछ भी नहीं था तो तुमने मेरा इतना वक़्त क्यों बर्बाद कराया?’

‘चलिए, सो जाइए!’ अनवर पलँग पर गिरता हुआ बोला, ‘आप से ख़ुदा समझे।’

‘नहीं, बल्कि तुमसे ख़ुदा समझे और फिर मुझे उर्दू में समझाये। तुम्हारी बातें तो मेरे पल्ले ही नहीं पड़तीं।’

अनवर ने चादर सिर तक घसीट ली।

इमरान बदस्तूर आराम-कुर्सी पर पड़ा रहा। अनवर ने सोने की कोशिश शुरू कर दी थी, लेकिन ऐसे में नींद कहाँ! उसे यह सोच-सोच कर कोफ़्त हो रही थी कि आरिफ़ मार्था को लतीफ़े सुना-सुना कर हँसा रहा होगा। मार्था ख़ुद भी बड़ी बातूनी थी और बकवास करने वाले उसे पसन्द थे। अनवर में सबसे बड़ी कमज़ोरी यह थी कि वह जिस लड़की के बारे में ज़्यादा सोचता था, उससे खुल कर बात नहीं कर सकता था। आजकल मार्था हर वक़्त उसके ज़ेहन पर छायी रहती थी, इसलिए वह उस से बात करते वक़्त हकलाता ज़रूर था। उसने इमरान की तरफ़ करवट बदलते हुए चादर चेहरे से हटा दी।

‘आख़िर कर्नल साहब कहाँ गये?’ उसने इमरान से पूछा।

‘आहा...बहुत देर में चौंके!’ इमरान ने मुस्कुरा कर कहा, ‘मेरा ख़याल है कि उन्हें कोई हादसा पेश आ गया।’

‘क्या?’ अनवर उछल कर बैठ गया।

‘ओहो! फ़िक्र न करो। हादसा ऐसा नहीं हो सकता कि तुम्हें परेशान होना पड़े।’

‘देखिए इमरान साहब! अब यह मामला बर्दाश्त से बाहर होता जा रहा है। मैं कल सुबह किसी बात की परवाह किये बग़ैर कर्नल साहब की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करा दूँगा।’

इमरान कुछ न बोला। वह किसी गहरी सोच में था। अनवर बड़बड़ाता रहा।

‘कर्नल साहब बूढ़े हो गये हैं। मुझे तो लगता है कि उनके दिमाग़ ने काम करना बन्द कर दिया है।’

‘हाँ! अच्छा तो वह रिपोर्ट क्या होगी?’ उसने पूछा।

‘यही कि कर्नल साहब किसी अजनबी आदमी या गिरोह से डरे थे और अचानक ग़ायब हो गये।

‘हूँ, और रिपोर्ट करने में देर की क्या वजह बताओगे?’

‘यह भी बड़ी बात नहीं। कह दूँगा कि कर्नल साहब के डर की वजह से देर हुई। वे पुलिस को रिपोर्ट देने के ख़िलाफ़ थे।’

‘ठीक है!’ इमरान ने कहा। थोड़ी देर कुछ सोचता रहा फिर बोला, ‘ज़रूर रिपोर्ट कर दो।’

अनवर हैरान नज़रों से उसे घूरने लगा।

‘लेकिन,’ इमरान ने कहा, ‘तुम मेरे बारे में हरगिज़ कुछ न कहोगे। समझे। मैं सिर्फ़ कर्नल का प्राइवेट सेक्रेटरी हूँ।’

‘क्या आप इस वक़्त गम्भीर हैं?’

‘मैं गम्भीर कब नहीं था?’

‘आख़िर अब आप रिपोर्ट के हक़ में क्यों हो गये?’

‘जरूरत!...हालात हमेशा बदलते रहते हैं।’

‘मेरी समझ में नहीं आता कि आप क्या करना चाहते हैं।’

‘हा!’ इमरान ठण्डी साँस ले कर बोला, ‘मैं एक छोटा-सा बँगला बनवाना चाहता हूँ! एक ख़ूबसूरत-सी बीवी चाहता हूँ और डेढ़ दर्जन बच्चे!’

अनवर फिर झल्ला कर लेट गया और चादर खींच ली।