जन्नत -2
दिल्ली में रहते हुए वीर को दो महीने हो गए थे। इन दो महीनो में आदि और नीलेश से कोई बात नहीं हुई थी। वो दोनों अपने-अपने रास्तों पर हो लिए थे। माधवी से भी दिल्ली आने के बाद वीर की ज़्यादा बात नहीं हुई थी। अजय अपने पापा के बिज़नेस में बिज़ी हो गया था, लेकिन अजय और वीर की बात अक्सर होती रहती थी। अजय की जब भी वीर से बात होती तो वो हमेशा पूछता था कि माया कैसी है? वीर भी उसे कह देता था कि वह बहुत बढ़िया है। अब वीर अजय को कैसे बताए कि काफ़ी दिनों से माया से बात तक नहीं हुई है।
दिल्ली आने के बाद वीर और माया की फ़ोन पर इतनी बार लड़ाइयाँ हुईं कि दोनों को बीच बात तक होनी बन्द हो गई थी। लड़ाइयों के कारण हमेशा छोटे ही रहे, लेकिन नाराज़गी की अवधि लम्बी। माया वीर से कहती थी कि तूने दिल के बजाय दिमाग़ का इस्तेमाल किया है इस रिलेशनशिप में। अब तू मुझसे बिन वजह लड़ाइयाँ करता है ताकि हम दोनों अलग हो जाएँ, लेकिन ऐसा कुछ नहीं था। कारण हमेशा दोनों के पास होते थे, लेकिन इन कारणों का निष्कर्ष केवल जुदाई निकलती थी।
माया के अजीबो-ग़रीब व्यवहार के कारण वीर उससे नाराज़ रहता था। उसकी बार-बार शादी करने की ज़िद भी उन दोनों की लड़ाई का एक कारण थी। कभी काफ़ी समय ना मिल पाने के कारण दोनों की लड़ाई होती थी, कभी माया कहती थी कि तुम जानबूझ कर मुझे छोड़ना चाहते हो तो यही इल्ज़ाम वीर भी माया पर लगाता था। वीर को भी बुरा लगता था जब माया उसे यह सब कहती थी।
अक्ल का बोझ प्यार उठा नहीं पाता है और उसी बोझ के नीचे प्यार कहीं दब जाता है। भावना, प्रेम और सौंदर्य के उपासक को जब बुद्दि के ताने लगते है तो वह व्यंग्य से उबल जाता है और यहीं दोनों के बीच कुछ दिनों पहले हुआ था। तब से माया और वीर की कोई भी बात नहीं हुई थी।
दिल्ली में वीर ख़ुद को काफ़ी अकेला महसूस करता था। वहाँ पर वीर के काफ़ी अच्छे दोस्त बन गए थे, लेकिन फिर भी एक अकेलापन हमेशा उस पर सवार रहता था। अन्तत: एक दिन वीर ने माया को कॉल किया।
“मैं नहीं रह सकता यार तुम्हारे बिना। मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। अब इतने दिनों से तुमसे बात नहीं हुई तो लगता है कि कहीं कुछ ख़ाली है मेरे अन्दर। तुम समझती क्यूँ नहीं हो? क्यूँ नाराज रहती हो मुझसे? प्लीज़ ऐसा मत किया करो। मेरा मरने का दिल करता है फिर।” वीर ने कहा।
“क्यूँ ना रहूँ नाराज? लड़ाई तुमने की, वो भी बिना कोई वजह। मेरी हर बात पर तुम्हें शक हो जाता है। तुम मुझे दूर बैठे-बैठे कण्ट्रोल करना चाहते हो, बस। और अब यह तुम्हारी आदत हो गई है मुझसे झगड़ा करते रहने की। अब तो तुम मुझे धमकियां भी देने लग गए हो। तो फिर तो सही यही है न कि हम अब दूर ही रहें।” माया ने जवाब दिया।
“मैंने पहले ही कहा था कि हमारे बीच मे कुछ भी हो जाए, लेकिन हम कभी भी एक-दूसरे से अलग नहीं होंगे। और ग़लत सिर्फ़ मैं ही नहीं था, तुम्हारी ग़लती भी थी, लेकिन अब यह सब छोड़ो। मुझे मिलना है तुमसे। यहीं आ जाओ दिल्ली, प्लीज़।” वीर ने कहा।
“मैं दिल्ली कैसे आ सकती हूँ? मैं क्या बहाना बनाऊँगी दिल्ली आने का, यह भी तो सोचो।” माया ने अपनी चिन्ता जाहिर की।
“नहीं, मैं कुछ नहीं जानता। बस, तुम आ जाओ वरना, मैं तुम्हारे बिना मर जाऊँगा।” वीर ने कहा।
“जब इतने दिनों से मुझसे बात नहीं की तो तुम तब नहीं मरे तो अब अगर मै ना मिली तो कैसे मर जाओगे? यह सब बकवास है तुम्हारे लिए प्यार, शादी, मरना।” माया ने कहा।
वीर ने इतना सुनते ही फ़ोन काट दिया। उसे पता था कि माया से ऐसा ही जवाब मिलेगा, क्योंकि ग़लती भी उसकी ही थी कि इतने दिनों से माया के पास फ़ोन नहीं किया था। और वैसे भी अब वीर माया के इस प्रकार के व्यवहार और जवाब का धीरे-धीरे अभ्यस्त होता जा रहा था।
अगले दिन माया का मैसेज आया कि वो कल दिल्ली आ रही है। उसने घर पर किसी फ्रेंड़ की शादी का बहाना बना दिया है तो बता देना कि कहाँ पर आना है। वीर ने मैसेज पढकर तुरंत माया को मैसेज किया कि गुड़गांव के एम.जी. रोड़ मेट्रो स्टेशन पर आ जाना। मैं वही पर आ जाऊँगा तुम्हें लेने के लिए।
अगली सुबह माया 10:00 बजे एम.जी. रोड़ मेट्रो स्टेशन पर पहुँच चुकी थी। वीर भी पन्द्रह मिनट बाद वहाँ पहुँच गया था। माया मेट्रो स्टेशन की सीढ़ियों के पास खड़ी थी। वीर ने जब उसे दूर से देखा तो उसे महसूस हुआ कि सारी ग़लती उसकी ही थी और उसे माया के साथ झगड़ा नहीं करना चाहिए था। जब वीर माया के करीब गया तो दोनों कुछ देर के लिए वही पर खड़े रहे।
“तो बताओ मुझसे हमेशा लड़ाई क्यूँ करते रहते हो? हमेशा मुझे परेशान करते रहते हो।” माया ने पूछा।
“मैं जानबूझ कर नहीं करता। बस, हो जाता है। मुझे एकदम से बहुत तेज़ गुस्सा आ जाता है और फिर वो गुस्सा तुम पर निकल जाता है।” वीर ने जवाब दिया।
“वाह! कल तक तुम नाराज थे। मुझसे लड़ाई कर रहे थे। और कह रहे थे कि लड़ाई का कारण मेरी ग़लती थी। मुझे धमका रहे थे और आज यह कह रहे हो कि ग़लती तुम्हारी थी।” माया ने कहा।
“बस, क्या करू? तुम्हें देखते ही सब कुछ भूल जाता हूँ और ना देखूँ तो पागल-सा हो जाता हूँ। और वैसे भी जब जब तुम यह नीला रंग का सूट पहन कर आती हो ना तो यह नाराज़गी ग़ायब सी हो जाती है।” वीर ने माया का हाथ पकड़कर कहा।
दोनों मेट्रो से वीर के कमरे पर पहुँच गए थे। माया वीर के करीब आई और उसके सीने पर अपना चेहरा टिका दिया। वीर के दिल की धड़कन और माया के आँसुओं ने पुरानी बातों को झटक दिया और दोनों एक-दूसरे को महसूस होने लगे। यही तो प्रेम और प्रेमी की ख़ूबसूरती होती है.
“प्लीज़ वीर, मुझसे ऐसे मत किया करो। मैं नहीं रह सकती हूँ तुम्हारे बिना।” माया ने अपना चेहरा सीने से हटाकर सामने लाकर कहा।
“अब क्या करूँ? प्यार भी इतना है कि नाराज़गी भी ज़्यादा ही होती है, लेकिन हमेशा हमारा प्यार जीत जाता है। आई लव यू, माया।” वीर ने माया के होंठों पर अँगुलियाँ घुमाईं।
“अब देखो, तुम्हारी आँखों मे मेरे लिए कितना प्यार झलक रहा है और जब लड़ाई करते हो तो बातें भी उतना ही कड़वी करते हो।” माया ने कहा।
वीर ने कुछ देर तक माया को देखा और उसके चेहरे को अपनी अँगुलियों से छुआ। माया की आँखें बन्द थीं, लेकिन उनमें से आँसू की बूँद चेहरे के रास्ते लुढ़ककर नीचे फर्श पर बिखर गई। चाहे कितनी भी नाराज़गी हो, ये एक आंसू की बूँद हर बार काम करती है। दो प्रेमी एक-दूसरे को जितना प्यार दे सकते है, कोई भी प्यार उसका मुकाबला नहीं कर सकता है।
वीर ने पुरानी सारी बातो को ख़त्म कर माया की आँखों से आँसू सुखाने के लिए उसकी पलकों पर अपने होंठ रख दिए। ऐसी स्थिति में लड़का किसी लड़की से सहानुभूति रखता है। वीर ने माया को अपनी ओर करीब खींचकर अपनी बाँहों में भर लिया।
कुछ घंटे दोनों ने साथ कमरे में बिताए। उसके बाद वीर ने माया से कहा कि चलो, फ़िल्म देख कर आते हैं। दोनों फिर पास के सिनेमाघर में ‘जन्नत-2’ फिल्म देखने चले गए। फ़िल्म ख़त्म होने के बाद रात को दोनों ने बाहर डिनर किया और फिर वापस कमरे पर आ गए।
यह रात आज क़यामत ढाने वाली थी। यह पहला ऐसा मौक़ा था जब दोनों रात को साथ रुकने वाले थे। यह रात दोनों के लिए बहुत ख़ास थी। नींद तो दोनों की आँखों से ओझल थी।
माया बिस्तर पर बैठी हुई थी। वीर सामने दीवार के पास खड़ा माया को लगातार देखे जा रहा था। वीर की आँखों में प्यार साफ़ झलक रहा था। माया भी वीर की तरफ़ उन्हीं नज़रों से देख रही थी। दोनों एक-दूसरे में खोए हुए थे। वीर माया के करीब गया और बिस्तर पर लिटाकर उसे कसकर बाँहों में भर लिया।
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