बाग में भूत
घर के पीछे फलों का एक बाग था जहाँ अमरूद, लीची और पपीते के पेड़ दो या तीन बड़े आम के पेड़ों के साथ मिले हुए थे। अमरूद के पेड़ों पर चढ़ना आसान था। लीची के पेड़ ढेर सारी छाया देते थे—इसके अलावा गर्मी में स्वादिष्ट लीचियों के गुच्छे। आम के पेड़ वसन्त में अपने सबसे अधिक आकर्षक रूप में होते थे, जब उनके बौर मादक खुशबू देते थे।
लेकिन एक पुराना आम का पेड़ था, चारदीवारी के पास, जहाँ कोई नहीं, यहाँ तक कि धूकी माली भी नहीं जाता था।
“यह कोई फल नहीं देता,” धूकी ने मेरे पूछने पर बताया, “यह एक पुराना पेड़ है।”
“फिर तुम इसे काट क्यों नहीं देते?”
“हम काटेंगे, एक दिन, जब तुम्हारी दादी जी चाहेंगी…।”
बाग के उस हिस्से में सघन खरपतवार उग आये थे। वे धूकी द्वारा निरन्तर गुड़ाई करने से बचे हुए थे।
“कोई उस फलों के बाग के कोने में क्यों नहीं जाता?” मैंने,मिस केल्लनर से पूछा, हमारी अपंग किरायेदार, जो देहरादून में तब से थीं जब वह जवान थीं।
लेकिन वह इस बारे में बात नहीं करना चाहती थीं। अंकल केन ने भी विषय बदल दिया जब भी मैंने इस प्रसंग को उठाया।
इसलिये मैं खुद ही फलों के बागान में घूमने लगा, सतर्कता से बाग के निषिद्ध और उपेक्षित कोने में अपना रास्ता बनाते हुए जब तक धूकी ने पीछे से मुझे आवाज़ नहीं लगायी।
“वहाँ मत जाओ, बाबा,” उसने चेतावनी दी, “वह जगह मनहूस है।”
“कोई उस पुराने आम के पेड़ के पास क्यों नहीं जाता?” मैंने दादी जी से पूछा।
उन्होंने बस अपना सिर हिलाया और घूम गयीं। वहाँ ज़रूर कुछ ऐसा था जिसके बारे में लोग चाहते थे कि मैं न जानूँ। इसलिये मैंने अवज्ञा और सबकी उपेक्षा की और दोपहर की निस्तब्धता में जब घर के अधिकांश लोग झपकी ले रहे थे, मैं बाग के कोने में खड़े पुराने आम के पेड़ के पास पहुँचा।
वह एक ठंडी, छायादार जगह थी और काफ़ी अपनी सी लग रही थी। लेकिन वहाँ कोई चिड़िया नहीं थी, कोई गिलहरी तक नहीं। और यह एक विचित्र बात थी। मैं पेड़ के तने से पीठ टिकाये घास पर बैठ गया और सूरज की रोशनी में दमकते घर और बाग को ताकता रहा। जगमगाती गर्म धुँधली रोशनी में मैंने किसी को पेड़ की तरफ़ आते देखा, लेकिन वह धूकी या कोई ऐसा नहीं था, जिसे मैं जानता था।
यह एक गर्म दिन था, लेकिन मुझे अभी ठंड लगनी शुरू हो गयी थी; और फिर मैंने खुद को काँपते पाया जैसे अचानक मुझे बुखार चढ़ आया हो। मैंने ऊपर पेड़ की ओर देखा और मेरे ऊपर की शाखाएँ घूमने लगीं, आहिस्ता-आहिस्ता झूलती हुई। हालाँकि वहाँ बिलकुल हवा नहीं थी और दूसरे सभी पत्ते और शाखाएँ स्थिर थीं।
मुझे महसूस हुआ कि मुझे ठंड से उठकर चले जाना चाहिए लेकिन मुझे उठने में दिक्कत हो रही थी। इसलिये मैं अपने हाथ और घुटने की मदद से घास पर घिसटने लगा, जब तक मैं चमकते सूरज की रोशनी में नहीं आ गया। कँपकँपाहट बन्द हो गयी थी और मैं घर की ओर भागा और जब तक मैं बरामदे में नहीं पहुँच गया, मैंने पलटकर उस आम के पेड़ को नहीं देखा।
मैंने मिस केल्लनर को अपने अनुभव के बारे में बताया।
“क्या तुम डर गये थे?” उन्होंने पूछा।
“हाँ, थोड़ा-सा,” मैंने स्वीकार किया।
“और क्या तुमने कुछ देखा?”
“कुछ शाखाएँ हिलीं—मुझे बहुत ठंड लगी—लेकिन वहाँ बिलकुल भी हवा नहीं थी।”
“क्या तुमने कुछ सुना?”
“बस एक हल्की कराहती आवाज़।”
“यह एक पुराना पेड़ है। यह कराहता है जब यह अपनी उम्र महसूस करता है—जैसे कि मैं!”
मैं उस आम के पेड़ के पास फिर कुछ समय के लिए नहीं गया और मैंने उस घटना का ज़िक्र दादी जी या अंकल केन से नहीं किया। मैं अब तक यह समझ गया था कि यह विषय उनके लिए निषिद्ध है।
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बचपन में मैं हमेशा ही सुनसान जगहों को खोजता रहता था—उजाड़ बगीचे और फलों के बाग, सुनसान घर, झाड़ियों के झुंड या बंजर जगह, शहर के बाहर का मैदान, जंगल के किनारे। ऐसे ही बँगले के पीछे के अपने एक संधान में, लैन्टाना झाड़ियों के बीच से अपना रास्ता बनाते हुए मैं एक बड़े पत्थर के टुकड़े से टकरा गया, और गिरने के कारण मेरी एड़ियाँ मुड़ गयीं। थोड़ी देर मैं घास पर बैठा अपने पैरों की मालिश करता रहा। जब दर्द थोड़ा कम हुआ, तो मैंने उस पत्थर के टुकड़े को करीब से देखा और यह देखकर आश्चर्यचकित हुआ कि यह एक कब्र का पत्थर है। यह पूरी तरह लताओं से ढँका था; ज़ाहिर था कि सालों से कोई इसके करीब नहीं आया। मैंने पत्थर को उखाड़ा और कुछ मेरे हाथ में आ गया। कब्र पर कुछ अस्पष्ट से अक्षरों में लिखा था, घास और काई से आधा छिपा हुआ। मैं एक नाम पढ़ पाया—रोज़—लेकिन कुछ और भी लिखा था।
मैं वहाँ थोड़ी देर बैठा, अपनी खोज के बारे में सोचता हुआ और आश्चर्यचकित होता हुआ कि क्यों ‘रोज़’ को उस एकान्त जगह में दफ़नाया गया होगा, जबकि कब्रगाह बहुत दूर नहीं थी। उसे क्यों नहीं उसके सगे- सम्बन्धियों के बीच दफ़नाया गया? क्या उसने यह इच्छा की थी? और क्यों?
सिर्फ़ मिस केल्लनर मेरे सवालों का उत्तर देने के लिए तैयार दिखती थीं, और ये वहीं थीं जिनके पास मैं गया, जब वह अपनी आरामकुर्सी पर चकोतरे के पेड़ के नीचे बैठी थीं—वही आरामकुर्सी जिस पर से वह कभी नहीं हिलती थीं बस उस समय के अतिरिक्त जब उन्हें आया या उनके रिक्शावाले लड़के गोद में उठाकर बिस्तर या स्नानघर ले जाते थे। मैं विकलांग मिस केल्लनर को कभी भूल नहीं सकता जो अपनी आरामकुर्सी में बगीचे में बैठी, पूरे धैर्य से जीर्ण-शीर्ण ताश की गड्डी से खेलती रहतीं—और मेरे साथ हमेशा धैर्य से पेश आतीं। जब भी मैं उनके खेल में अपने पड़ोसियों या रिश्तेदारों या उनके खुद के इतिहास से सम्बन्धित अन्तहीन प्रश्नों द्वारा बाधा डालता। एक बच्चा होने के बावजूद भी मुझे अतीत मंत्रमुग्ध करता था। मेरा मतलब देशों का इतिहास नहीं; व्यक्तिगत इतिहासों से था, लोगों के जीवन जीने के तरीके और वे क्यों खुश या नाखुश थे, और उन्होंने क्यों अकारण ही कभी बहुत ही गलत या खतरनाक काम किये।
“मिस केल्लनर,” मैंने पूछा, “उस घर के पीछे जंगल में किसकी कब्र है?”
उन्होंने अपने नाक पर चढ़े बड़े चश्मे के किनारे से मुझे देखा, “तुम यह कैसे उम्मीद करते हो कि मुझे पता होगा? क्या मैं ऐसी लगती हूँ कि दीवारें चढ़कर पुरानी कब्रों को खोजती फिरूँ? क्या तुमने अपनी दादी से पूछा है?”
“दादीजी मुझे कुछ नहीं बतायेंगी। और अंकल केन ऐसे दिखते हैं कि वह सब जानते हैं जबकि वह कुछ नहीं जानते।”
“तो मुझे कैसे पता होना चाहिए?”
“आप यहाँ बहुत समय से हैं।”
“सिर्फ़ बीस साल से। यह तब हुआ जब मैं यहाँ इस घर में नहीं आयी थी।”
“क्या हुआ?”
“ओह, तुम परीक्षा लेते हो। तुम्हें सब कुछ क्यों जानना है?”
“यह नहीं जानने से अच्छा है।”
“क्या तुम सच में जानना चाहते हो? कई बार अच्छा होता है कि हम नहीं जानें।”
“कभी-कभी, शायद…लेकिन मैं जानना चाहूँगा। ‘रोज़’ कौन थी?”
“तुम्हारे दादाजी की पहली पत्नी”
“ओह यह बात तो बहुत आश्चर्यजनक है। मैंने अपने दादाजी की पहली शादी के बारे में नहीं सुना। लेकिन वह उस एकान्त जगह में क्यों दफ़नायी गयी हैं? कब्रगाह में क्यों नहीं?”
“क्योंकि उन्होंने आत्महत्या कर ली थी। और उन दिनों आत्महत्या करने वालों को किसी कब्रगाह में ईसाई तरीके से नहीं दफ़नाया जाता था। क्या अब तुम्हारी जिज्ञासा शान्त हुई?”
लेकिन मेरी और ज़्यादा जानने की भूख बढ़ती जा रही थी, “और उन्होंने आत्महत्या क्यों की?”
“मैं सच में नहीं जानती, बच्चे। कोई क्यों करता होगा? क्योंकि वह खुश नहीं होंगी, जीवन से तंग आ गयी होंगी, या किसी बात से परेशान रही होंगी।”
“आप तो जीवन से नहीं थकीं, क्या आप थकी हैं? जबकि आप चल नहीं सकतीं और आपकी सारी उँगलियाँ मुड़ी हुई हैं…”
“अशिष्ट मत बनो, नहीं तो तुम्हें मेरे भंडार से कोई स्वादिष्ट चीज़ नहीं मिलेगी, मेरी उँगलियाँ लिखने और तुम जैसे छोटे लड़कों की रीढ़ पर चुभोने के लिए एकदम सही हैं।” और उन्होंने अपनी उँगलियाँ मुझे चुभो दीं जिससे मैं चीख उठा। “नहीं, मैं जीवन से थकी नहीं हूँ—अब तक नहीं—लेकिन लोग अलग तरह से बने होते हैं, तुम जानते हो। और तुम्हारे दादाजी अब हमारे साथ नहीं हैं, यह बताने के लिए कि क्या हुआ था। और फिर उन्होंने दोबारा शादी कर ली—तुम्हारी दादी से…”
“क्या वह दादाजी की पहली पत्नी के बारे में जानती थीं?”
“मुझे नहीं लगता। वह तुम्हारे दादाजी से बहुत बाद में मिलीं। लेकिन उन्हें इन सब के बारे में बात करना पसन्द नहीं।”
“और ‘रोज़’ ने कैसे आत्महत्या की?”
“मुझे कुछ नहीं पता।”
“आप बिलकुल जानती हैं, मिस केल्लनर। आप मुझे धोखा नहीं दे सकतीं। आप सब कुछ जानती हैं!”
“मैं यहाँ नहीं थी, मैंने तुम्हें बताया।”
“लेकिन आपने इस बारे में सब कुछ सुना है। और मुझे पता है कि उन्होंने कैसे किया। उन्होंने ज़रूर खुद को उस आम के पेड़ से लटका लिया होगा—बगीचे के आखिरी पेड़ से, जिससे सब दूर भागते हैं। मैंने आपको बताया था कि मैं वहाँ एक दिन गया था, और वहाँ छाया में बहुत ठंड और अकेलापन था। मैं डर गया था, आप जानती हैं।”
“हाँ,” मिस केल्लनर ने दर्द भरी आवाज़ में कहा, “वह ज़रूर बहुत अकेली रही होंगी, बेचारी। वह बहुत स्थिर नहीं थीं, मुझे बताया गया था। अक्सर अकेली भटकती रहती थीं, जंगली फूल चुनती, खुद में गुनगुनाती, कभी गुम भी हो जातीं और देर गये घर लौटतीं। वह पुराना गीत क्या था? रेतीली हवा में एकाकी…” अपनी कर्कश आवाज़ में आगे बताने से पहले वह एक पुराने कथागीत का हिस्सा गाने लगीं, “तुम्हारे दादाजी उसे बहुत चाहते थे। वह एक क्रूर व्यक्ति नहीं थे। वह उसकी विचित्र हरकतों को बहुत सहते लेकिन कभी-कभी उनका धैर्य जवाब दे जाता और वह उसे डाँटते और एक या दो बार उसे कमरे में बन्द भी कर दिया था। यह बहुत डराने वाला होता, क्योंकि वह चिल्लाना शुरू कर देती थीं। कमरे में बन्द करना एक गलती थी। किसी को बन्द मत करो, बच्चे…उसके अन्दर कुछ हावी हो रहा था। वह कभी-कभी उग्र हो जाती थी।”
“आप यह सब कैसे जानती हैं, मिस केल्लनर?”
“तुम्हारे दादाजी कभी-कभी आते थे और मुझे अपनी मुश्किलें बताते थे। मैं तब दूसरे घर में रह रही थी, सड़क से थोड़ा नीचे। बेचारे, ‘रोज़’ के साथ उनका समय बहुत मुश्किल भरा था। वह उसे रांची, मानसिक रोगियों के अस्पताल में भेजने के बारे में विचार कर रहे थे कि एक दिन ‘रोज़’ को आम के पेड़ से लटका पाया। उसकी आत्मा उड़ चुकी थी, उस नीली चिड़िया के पास जो वह हमेशा से बनना चाहती थी।”
उसके बाद, मैं उस आम के पेड़ के पास नहीं गया, मुझे वह खतरनाक लगा जैसे उसने वास्तव में उस स्याह घटना में सहयोग दिया हो। बेचारा निर्दोष पेड़, असामान्य मनुष्यों की भावनाओं की सज़ा झेलता! लेकिन मैं उस उपेक्षित कब्र पर दोबारा ज़रूर गया और खरपतवार साफ़ की ताकि उसकी लिखावट साफ़ तौर पर दिखने लगे—‘रोज़, हेनरी की प्रिय पत्नी—’ (उसके बाद मेरे दादाजी का उपनाम लिखा था)। और जब धूकी नहीं देख रहा था, मैंने एक लाल गुलाब बगीचे से तोड़ा और उसे कब्र पर रख दिया।
एक दोपहर, जब दादीजी अपनी ब्रिज पार्टी में थीं और अंकल केन घूम रहे थे, मैंने पीछे के बरामदे से सटे भंडारगृह को छान मारा, पुरानी स्क्रैपबुक और मैगज़ीन को उलटता-पलटता रहा। किताबों के ढेर के पीछे मुझे एक पुराना ग्रामोफ़ोन और बहुत सलीके से रखा ग्रामोफ़ोन रिकॉर्ड का एल्बम, और एक स्टील की सुइयों का बक्सा मिला। मैं ग्रामोफ़ोन को बैठक में ले गया और एक रिकॉर्ड बजाने की कोशिश की। उसकी आवाज़ बिलकुल ठीक थी। तो मैंने कुछ और रिकॉर्ड बजाये। वे सभी बीते सालों के गाने थे, 1920 और 30 में प्रख्यात हुए टेनोर और बरिटोंस द्वारा गाये रूमानी कथा गीत। दादी जी संगीत नहीं सुनती थीं और यह ग्रामोफ़ोन बहुत समय से उपेक्षित था। अब, बहुत सालों में पहली बार कमरे में संगीत फैला हुआ था। एक अकेला, मैं तुम्हें फिर देखूँगा, क्या मुझे याद करोगे? सिर्फ़ एक गुलाब…
सिर्फ़ एक गुलाब
तुम्हें देने के लिए
सिर्फ़ एक गीत,
मंद होता हुआ,
सिर्फ़ एक मुस्कान
याद रखने के लिए
जब यह मधुर प्रेमगीत बज रहा था, एक आकृति कमरे के करीब आती प्रतीत हुई।
पहले वह काली हुई। फिर हल्की गुलाबी चमक कमरे में फैल गयी, और फिर एक मुस्कुराती हुई उदास औरत सफ़ेद कपड़ों में, चलती हुई नहीं लगभग तैरती-सी, मेरी ओर बढ़ रही थी। वह कमरे के बीच में रुक गयी और मुझे देखती हुई लग रही थी। उसने पुराने ज़माने की लम्बी, चोगेनुमा पोशाक पहन रखी थी और उसके बाल उसी तरह से सज्जित थे जैसा मैंने पुरानी फ़ोटो में देखा था।
जब गाना खत्म हुआ, वह आत्मा गायब हो गयी। कमरा फिर से सामान्य था। मैंने ग्रामोफ़ोन और रिकॉर्ड रख दिया। मैं डरने से ज़्यादा परेशान था, और मैं अतीत की पुरानी चीज़ों को फिर से जीवित नहीं करना चाहता था।
लेकिन उस रात सपने में मैंने उस सुन्दर उदास औरत को फिर देखा। वह बगीचे में झूला झूल रही थी, कभी खुद, कभी अन्य प्रेत नर्तकों के साथ, उसने मेरे सपने में ही मुझे इशारा किया, मुझे अपने साथ सम्मिलित होने का आमन्त्रण दिया लेकिन मैं बरामदे की सीढ़ियों पर खड़ा रहा, जब तक वह नाचती दूर नहीं चली गयी और अन्त में गायब हो गयी।
और सुबह जब मैं जागा, मुझे एक लाल गुलाब, ओस में भीगा, अपने तकिये के पास रखा मिला।
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