सुदेश बैंक-वैन को दौड़ाये जा रहा था। उसके चेहरे पर सख्ती थी। जगमोहन बगल वाली सीट पर बैठा था। वह गंभीर नजर आ रहा था। सूनसान सड़क को पार कर चुके थे वे। अब पुनः वैन भीड़-भाड़ वाले इलाके में पहुँचे और वैन की रफ्तार मध्यम हो गई थी।
जब से वे वैन लेकर चले थे, उनमें कोई बात न हुई थी।
"तुमने कहा था कि किसी को मारना नहीं है।" सुरेश कह उठा--- "तुमने देख लिया कि कोई नहीं मरा...।"
"नौबत ही नहीं आई इस बात की।" जगमोहन बेचैनी से बोला।
"कैसी नौबत?"
"हथियार इस्तेमाल करने की।" जगमोहन के निगाह बाहर सड़क पर फिर रही थी--- "देवराज चौहान से वे जान चुके थे कि मैं कहीं गायब हूँ। उन्हें आशा नहीं थी कि मैं उनसे वैन छिनने जैसी हरकत कर सकता हूँ। मैंने वैन छीनी तो वे हक्के-बक्के रह गए। मैंने उनके चेहरे पढ़े थे। उन्हें यकीन नहीं आ रहा था। इसी में ही उनके लिए गोलियाँ चलाने का वक्त निकल गया और हम वैन ले भागे।"
"जो भी हो हमने गोलियाँ नहीं चलाईं। ये ही तुम चाहते थे।"
"वो अब देवराज चौहान को नहीं छोड़ेंगे।"
"क्यों?"
"क्योंकि मैं उनके हाथों से वैन ले भागा हूँ। वो यही समझेंगे कि देवराज चौहान के इशारे पर मैंने यह काम किया...।"
सुदेश चुप रहा।
"तूने बहुत गलत काम करवाया मेरे से...।"
"यह सोचो कि हमारी बात मान कर तुमने देवराज चौहान की जिंदगी बचा ली। वरना हम तो सच में देवराज चौहान को मार देते।"
"जाना कहॉं है?"
"अभी पता चल जाएगा।"
"कितनी देर का रास्ता है?" जगमोहन ने पूछा।
"आधा घंटा लगेगा।"
"हम फंस सकते हैं।"
"कैसे?"
"ये बात अब तक फैल गई होगी कि 60 करोड़ से भरी वैन कोई ले उड़ा है। पुलिस हरकत में आ गई होगी। वैन के बाहर दोनों तरफ मोटा-मोटा बैंक का नाम लिखा है। ये बात दूर से ही नजर आ जाती है कि ये बैंक-वैन है।"
"खतरा आया भी तो सब ठीक हो जाएगा।" सुदेश होंठ भींचे कह उठा।
"कैसे?"
"वैन के पीछे अम्बा और जगदीश हैं। वो गड़बड़ वाले वक्त के लिए ही साथ चल रहे हैं।"
"पुलिस से पंगा लोगे?"
"नहीं--- वो पुलिस को वैन से दूर करने की कोशिश करेंगे।" सुदेश ने कहा।
"भूल में हो। पुलिस एक बार पीछे पड़ जाए तो फिर पकड़ कर ही रहती है।"
"चुप रहो। मुझे वैन चलाने दो। मेरा ध्यान भटकाओ मत।"
जगमोहन ने कुछ नहीं कहा।
इसी पल वैन के पीछे वाले हिस्से में आहटें हुईं।
जगमोहन ने चौक कर यूँ ही पीछे की तरफ देखा।
वैन चलाते सुदेश के माथे पर बल पड़े।
"क्या है?" सुदेश बोला।
"वैन में कोई है।" जगमोहन के होठों से निकला।
"नहीं...।" सुदेश सकपकाया।
"कोई है।"
"कोई बक्सा वैन के फर्श पर गिरने की आवाज होगी। वो...।"
"मुझे नहीं लगता। मुझे वो आहटें किसी इंसान की लगी थीं।" जगमोहन छोटी सी खिड़की की तरफ हाथ बढ़ाता हुआ कह उठा--- "ये तीन इंच की छोटी सी खिड़की है। पीछे बात करने के लिए ही होगी, अभी देखता...।"
"मत खोलना...।" सुदेश चीख उठा।
"क्यों?" जगमोहन ठिठका। सुदेश को देखा।
"अगर भीतर कोई होगा तो वो खिड़की पर गन रखकर गोलियाँ चला देगा बेवकूफ!"
जगमोहन गहरी साँस लेकर रह गया।
सुदेश ने ठीक ही कहा था।
"वो बक्सों की ही आवाज होगी। हमारे पास इस बात की कोई खबर नहीं है कि वैन में कोई हो सकता है।"
"ये खबर तो देवराज चौहान के पास भी नहीं थी। शायद अचानक प्रोग्राम बना हो और भीतर गनमैन को बिठा दिया हो।"
"चैन से बैठो।" सुदेश ने तीखे स्वर में कहा--- "अपना दिमाग मत दौड़ाओ। वो बक्सों की टकराने की आवाज...।"
इसी पल वैन के पीछे वाले हिस्से से पुनः आहट उभरी।
जगमोहन ने सुदेश को देखा। चेहरे पर जहरीली मुस्कान नाच उठी।
"आवाज फिर आई है।" सुदेश के होंठों से निकला।
"पीछे कोई है।" जगमोहन व्यंग्य से बोला--- "भुगतना अब उसे।"
"ये तो गम्भीर बात है...।" सुदेश परेशानी से बोला।
"वैन का पिछला दरवाजा खोलोगे तो वो गोलियाँ चला देगा। उसे अब तक इस बात का आभास हो चुका होगा कि वैन के साथ कोई गड़बड़ हो चुकी है। गन थामे गोलियाँ चलाने के लिए वो तैयार बैठा होगा।" जगमोहन बोला। "मैं सोच रहा हूँ कि अब तुम लोग वैन को कैसे खोलोगे?"
"चिंता मत करो। कोई रास्ता निकल आएगा।"
"मैं भी चाहता हूँ कि रास्ता निकले। क्योंकि भीतर मौजूद 60 करोड़ मुझे ले जाना है। तुम लोगों को पैसा तो नहीं चाहिए?"
"नहीं।हम ये काम नहीं करते...।"
जगमोहन ने सुदेश को घूरा, फिर कह उठा---
"बहुत शरीफ हो जो तुम लोगे ये काम नहीं करते।"
"हाँ... हैं...।"
"बैंक-वैन लूट कर भाग रहे हो और कहते हो कि भीतर पैसे की जरूरत नहीं...।"
"वैन मैंने नहीं लूटी...।"
"मत भूलो कि जिन्होंने वैन लूटी है, उनसे हमने छीनी है। अगर हम शरीफ होते तो हमें वैन को पुलिस के पास ले जाना चाहिए था।"
"बेशक तुम पुलिस के पास वैन ले जाना, लेकिन उससे पहले हम भीतर से अपने काम की चीज निकाल लें।"
"तो सच में तुम लोगों को नोट नहीं चाहिए?"
"नहीं। हम लूटपाट का काम नहीं करते। इसलिए ये वाले नोट नहीं चाहिए।"
"तुमने अभी तक यह नहीं बताया कि तुम हो कौन?"
"चुपचाप बैठे रहो। दोस्ताना बनाने की कोशिश मत करो। तुम कुछ नहीं जान सकते।"
"अब देवराज चौहान की क्या पोजीशन है?"
"वो जिंदा है।"
"तुम लोगों ने अब तो उस पर से नजर हटा दी होगी?" जगमोहन ने पूछा।
"देवराज चौहान पर तब तक नजर रखी जायेगी,जब तक कि हमारा काम पूरा नहीं हो जाता।"
"पूरा हो तो गया है। वैन तुम लोगों के कब्जे में...।"
"तुम भी तो साथ हो। अंत में तुमने नोटों से भरी वैन को ले जाना है और उससे पहले हमें अपने काम की चीज निकालनी है।
"इन सब बातों के बीच तुम कहीं भी अपना रंग दिखा सकते हो।"
"मुझे नोट चाहिए। सब ठीक है तो मैं रंग क्यों दिखाऊँगा।"
"जब तक हमारी नजरें देवराज चौहान पर रहेगी, तो मजबूरी के खूंटे से बंधे रहोगे। ये जरूरी है। हम रिस्क नहीं लेना चाहते।"
वैन भीड़ भरी सड़क पर दौड़ी जा रही थी।
अभी तक पुलिस का खतरा सामने नहीं आया था।
"तुम लोग गैंगस्टर नहीं हो?" जगमोहन कह उठा।
"नहीं...।"
"मैं यह नहीं समझ पा रहा कि तुम लोग हो कौन...।"
"जब तुम नोटों से भरी वैन लेकर चलोगे तो तब भी इस बात से अंजान होगे कि हम कौन हैं।"
जगमोहन कुछ कहने लगा कि उसी पल होंठ सिकुड़ गए। उसके कानों में फोन बजने के मध्यम सी आवाज पड़ी। जगमोहन ने सुदेश को देखा, फिर पीछे खिड़की की तरफ देखा। जगमोहन अपना कान उस नन्हीं सी खिड़की की तरफ ले गया।
"क्या कर रहे हो?" वैन ड्राइव करता सुदेश बोला।
"वैन के भीतर जो भी है, उसका फोन बज रहा है।" जगमोहन गम्भीर स्वर में बोला।
तभी फोन बजने की आवाज बंद हो गई।
"उसने फोन रिसीव कर लिया है।" जगमोहन ने पुनः कहा।
"इससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ता।"
"तुम चाहो तो मुझे यहीं उतार सकते हो।" जगमोहन एकाएक सतर्क स्वर में बोला।
"क्या मतलब?" वैन चलाते सुदेश ने जगमोहन पर निगाह मारी।
"मैं वैन छोड़ना चाहता हूँ।"
"तुम 60 करोड़ छोड़कर जाने को कह रहे हो...।"
"मैं मरना नहीं चाहता। वैन रोको और मुझे उतार दो।"
"तुम मेरे साथ ही रहोगे।" सुदेश सख्त स्वर में बोला--- "मैं तुम्हें वैन से उतारना ठीक नहीं समझता।"
"तुम मुझे मुसीबत में रख रहे हो।"
"देवराज चौहान की जिंदगी नहीं चाहते क्या?" सुदेश गुर्राया।
"बेवकूफ इंसान!" जगमोहन दाँत पीसकर कह उठा--- "वैन में पीछे गनमैन है। उसके पास मोबाइल फोन है। पीछे वैन में दोनों साइडों में रोशनी आने के लिए छः इंच चौड़ी और दो फीट लंबी खिड़कियाँ हैं जिन पर जाली लगी हुई है। गनमैन उस खिड़की से यह जानकर कि वैन कहाँ पर से निकल रही है, किसी को भी बता सकता है... और कहीं भी हमें पुलिस घेर सकती है।"
यह सुनकर सुदेश बेचैन हो उठा।
"तुम्हें भी चाहिए कि इस बैंक वैन को अभी छोड़ दो।"
"मैं नहीं छोडूंगा।"
"पुलिस...।"
"मैं वैन नहीं छोड़ सकता। मुझे ऐसा ऑर्डर नहीं है।" सुदेश ने भिंचे स्वर में कहा।
"कौन देता है तुम्हें आर्डर?"
"मलिक...।"
"तो उसे ताजा स्थिति बताओ। तब वो तुम्हें कह देगा कि वैन छोड़ कर भाग निकलो।"
"वो कभी नहीं कहेगा।"
"क्यों?"
"ये काम हर हाल में पूरा करना है हमने। इसे छोड़ा नहीं जा सकता।" सुदेश बोला।
"तुम मलिक से बात तो करो।",
"नहीं। मलिक को काम चाहिए। वो अब फालतू बात नहीं सुनना चाहेगा।"
"मैं बात करूँ मलिक से?"
"चुपचाप बैठे रहो।"
जगमोहन ने सुदेश को घूरा, फिर कह उठा---
"क्या तुम किराये पर, मलिक के लिए काम काम करते हो?"
"नहीं।"
"नौकरी पर हो?"
"हाँ...।"
"तुम लोग आखिर हो कौन?"
सुदेश ने कुछ नहीं कहा। वैन चलाता रहा।
"अभी कितना रास्ता बचा है?" जगमोहन ने पूछा।
"बीस मिनट का...।"
"तुम लोग बुरे फँसोगे। पीछे मौजूद गनमैन सब देख रहा है खिड़की से कि वैन कहाँ जा रही है। वो पुलिस को या अपने ऑफिसरों को खबर दे रहा है कि वैन किधर से निकल रही...।"
"ऐसा होता तो अब तो पुलिस समय घेर चुकी होती।" सुदेश ने कहा।
"ये बात सफर खत्म होने के बाद कहना। अभी पुलिस के पास बीस मिनट बाकी हैं।"
"तुम तो बहुत बड़े डरपोक हो।" सुदेश भिंचे स्वर में बोला।
"इस बात से तुम अपने को बहादुर साबित करना चाहते हो?" जगमोहन ने कड़वे स्वर में कहा।
सुदेश चुप रहा।
"गनमैन पीछे वाली छोटी खिड़की जैसे रोशनदान से ये भी जान लेगा कि आखिरकार तुमने कहाँ पर वैन ले जा रोकी। यानी कि बचा नहीं जा सकता। मेरी बात को समझने की कोशिश करो।"
"खामोश रहो। यूँ ही मेरा दिमाग खराब मत करो।"
"तुम्हारा मतलब कि मैं पागल हूँ जो यूँ ही बोले जा रहा हूँ...।"
"पता नहीं तुम क्या हो! लेकिन मुझे अपना काम करने दो।" सुदेश सपाट स्वर में बोला।
"मुझे नीचे उतार दो।"
"ठीक है। वैन रोक कर तुम्हें नीचे उतार देता हूँ, परन्तु उस स्थिति में देवराज चौहान के बचने की गारन्टी नहीं रहेगी।"
जगमोहन दाँत भींचकर रह गया।
सुदेश ने एक हाथ में स्टेयरिंग संभाला और दूसरे हाथ में मोबाइल निकालकर नंबर मिलाया और फोन को कान से लगा लिया। दूसरी तरफ एक बार ही बेल हुई कि जगदीश की आवाज कानों में पड़ी---
"कहो...।"
"तुम दोनों वैन के पीछे हो?"
"हाँ...।"
"एक दिक्कत आ गई है।"
"जगमोहन ने कोई पंगा लिया?"
"नहीं। वैन के पीछे भीतर बैंक का गनमैन मौजूद है। वहाँ दो छोटी-छोटी खिड़कियां है बाहर देखने के लिए और उनके पास मोबाइल फोन है। जिसके बजने की आवाज हमने सुनी है। वो देख सकता है कि वैन किस तरफ जा रही है और पुलिस या किसी और को बता सकता है कि वह कहाँ से निकल रही है। तुम क्या कहते हो कि यह हमारे लिए खतरे वाली बात हो सकती है?"
"पूरी गड़बड़ हो जाएगी ये तो...।" उधर से जगदीश कह उठा।
"तो बोलो...।"
"मैं मलिक से बात करता हूँ...।" इसके साथ ही फोन बंद हो गया।
सुदेश ने फोन कमीज की जेब में रखा और हाथ स्टेरिंग पर जा पहुँचा।
जगमोहन के चेहरे पर कठोरता नाच रही थी।
"कुछ नहीं होगा।" सुदेश बोला--- "हम ठीक रहेंगे।"
जगमोहन के होंठ भिंचे रहे।
दो मिनट बाद सुदेश का फोन बजने लगा।
"हाँ...।" सुदेश ने बात की।
"मलिक कहता है कि जैसे काम हो रहा है वैसे ही होता रहे।" जगदीश की आवाज कानों में पड़ी।
"ठीक है।" सुदेश ने कहा और फोन बंद कर दिया।
"क्या हुआ?" जगमोहन ने पूछा।
"काम ऐसे ही होगा, जैसे हो रहा है। मैंने पहले ही कहा था कि मलिक को काम पूरा चाहिए।"
"वो कमीना मरवाएगा हमें...।" जगमोहन कह उठा।
"सब ठीक रहेगा। तुम्हारे अंदेशे बेकार साबित होंगे।"
"जब डूबोगे तब पता चलेगा।" जगमोहन ने तीखे स्वर में कहा।
तभी कानों में पुलिस सायरन की आवाज पड़ने लगी।
पीछे से आ रही थी आवाजें।
जगमोहन के होंठ भिंच गये।
सुदेश का चेहरा तनाव से भर गया।
पुलिस सायरन की आवाजें लगातार पास आती जा रही थीं।
उसी पल सुदेश का फोन बजा।
"कहो...।" सुदेश भिंचे स्वर में बोला।
"पीछे पुलिस आ गई है। वो शायद वैन की ताक में ही है।" जगदीश की आवाज कानों में पड़ी।
"तुम उसे रोको किसी तरह। मैं वैन को भगा ले जाता हूँ।" सुदेश ने तेज स्वर में कहा और फोन बंद करके जेब में रखने के पश्चात वैन को दौड़ा ले जाने में व्यस्त हो गया।
◆◆◆
अंबा कार चला रहा था। जगदीश उसकी बगल में बैठा था। उन्होंने आगे जा रही बैंक वैन को एकाएक दौड़ते देखा। पीछे पुलिस कार सायरन बजाती उनके करीब आ गई थी और उन्हें ओवरटेक करके वैन के पास पहुँच जाना चाहती थी। ज्यादा बड़ी साफ सड़क नहीं थी। सड़क के एक तरफ से ट्रैफिक आ रहा था और दूसरी तरफ से जा रहा था। भीड़ थी सड़क पर। पुलिस कार हूगर बजाती, उन्हें ओवरटेक करने की चेष्टा में थी।
"पुलिस कार को आगे मत जाने देना।" जगदीश सख्त स्वर में बोला।
"इस तरह पुलिस कार को ज्यादा देर नहीं रोका जा सकता।" अंबा भिंचे स्वर में कहा उठा।
"तो एक्सीडेंट कराना जरूरी है।"
जगदीश ने आगे जाती, दूर होती वैन को देखा।
"सुदेश वैन को भगा ले जा रहा है...।"
अम्बा ने साइड मिरर में पीछे की पुलिस कार को देखा, जो कि ठीक पीछे थी। तभी अम्बा ने सख्ती से ब्रेक पैडल दबा दिया। कार तीव्र झटके से रुकी।
पीछे वाली पुलिस कार 'धड़ाम' से उसकी कार से आ टकराई। वे पहले से ही सतर्क थे। इसलिए चोटें लगने से बच गई। एक्सीडेंट होते ही पुलिस वालों ने हूटर बंद कर दिया था।
"चलो।" अम्बा कार का दरवाजा खोलते हुए बाहर निकला--- "पुलिस वालों से इस तरह उलझना है कि वह वैन के पीछे जाने का विचार छोड़ दें। वैसे भी अब तक वैन काफी आगे निकल चुकी होगी...।"
जगदीश भी बाहर निकल आया।
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अब पीछे पुलिस नहीं थी।
वैन काफी आगे निकल चुकी थी।
"इस बार तो बच गए...।"वैन चलाते हुए सुदेश ने जेब से मोबाइल निकाला और नंबर मिलाने लगा।
"अगली बार न बच सकोगे। वैन के भीतर मौजूद गनर फोन पर वैन की स्थिति के बारे में पुलिस को बता रहा होगा।"
"उसी का इंतजाम कर रहा हूँ अब...।" होंठ भींचकर कहा सुदेश ने।
"वो कैसे?"
तब तक सुदेश की बात हो गई। दूसरी तरफ मलिक था।
"कहाँ हो तुम?"
"वैन के पीछे वाले हिस्से में मौजूद गनर अपने मोबाइल पर पुलिस को या किसी अन्य को वैन की स्थिति बता रहा है। कुछ देर पहले पुलिस ने वैन को घेरने की कोशिश की, लेकिन अम्बा-जगदीश यह सब मामला संभाल लिया। परन्तु यह हालत फिर भी आ सकती है। वैन का वहाँ आना खतरे से खाली नहीं। गनर बाहर वालों को वैन की स्थिति बता रहा है।"
"तो तुम क्या चाहते क्या हो?"
"वैन को सुरक्षित करने का बढ़िया रास्ता है कि भीतर बैठा गनर बाहर न देख सके।"
"ये कैसे होगा?"
"बड़ी सी तिरपाल या प्लास्टिक की शीट, जो कि वैन के ऊपर डालकर बांध दी जाए। इससे गनर बाहर नहीं देख सकेगा और वैन पर लिखा बैंक का नाम भी छिप जाएगा। वरना हम बचेंगे नहीं...।"
"तुम कहाँ पर हो?" उधर से मलिक ने पूछा।
सुदेश ने अपनी स्थिति बताई।
"वैन को किसी सुरक्षित जगह रोक लो--- कुछ देर के लिए।"
"सुरक्षित जगह...?" हमारे लिए कोई भी सुरक्षित जगह नहीं है।" सुदेश सावधानी से वैन दौड़ाते कह उठा।
"किसी इलाके की तंग गली में वैन ले जाओ। वहाँ रोको और मुझे वैन की स्थिति बताओ। मल्होत्रा आधे घंटे में तुम्हारे पास इंतजाम के साथ पहुँच जाएगा। समझ में आई बात?"
"हाँ...।" कह कर सुदेश ने मोबाइल जेब में रखा और बोला--- "हमें वैन को किसी पास के घने इलाके के भीतर ले जाता है, जहाँ वैन के होने के बारे में पुलिस सोच नहीं सकेगी।"
"पीछे बैठे गनर का क्या करेंगे, जो बाहर देख रहा होगा?" जगमोहन ने कहा।
"राम भरोसे रहना होगा इस बारे में।" सुदेश चिंतित स्वर में कह उठा।
"तुम मुझे फँसवा के ही रहोगे।" जगमोहन बोला--- "इन सब बातों का इंतजाम तुम लोगों को पहले ही करके रखना चाहिए था। मौके पर यह सब इंतजाम नहीं होते।"
"अब कुछ नहीं हो सकता। जो हम कर सकते हैं वो ही करो।"
"मुझे जाने दो। मैं इस खतरे में नहीं रह सकता।"
"देवराज चौहान की जिंदगी चाहते हो तो तुम्हें मेरे साथ ही रहना होगा।"
"मलिक से मेरी बात कराओ।" जगमोहन तीखे स्वर में बोला।
"मुझसे बात करो। तुम्हारे लिए मैं ही मलिक हूँ, मैं ही मल्होत्रा हूँ...।"
"तू भी फँसेगा और मुझे भी फँसायेगा।"
तभी सुदेश ने वैन को सड़क से हटकर जाती एक तंग सड़क पर मोड़ दिया।
सामने कॉलोनी नजर आ रही थी।
"तुम वैन को यहीं रोको।" एकाएक जगमोहन कह उठा। उसकी नजरें हर तरफ जा रही थीं।
"क्या मतलब?"
"पांच-सात मिनट के लिए वैन रोको। जब तक गनर बाहर का नजारा करता रहेगा, हम खतरे में रहेंगे। वो सामने हैंडलूम की दुकान है। वहाँ से मैं चादरें लेकर आता हूँ। कुछ देर के लिए वैन की छत पर डाल देंगे ताकि गनर बाहर की जगहों को ठीक से नहीं देख पाएगा।" जगमोहन ने बेचैनी से कहा।
"तुम कहीं भागने की तो नहीं सोच रहे?" सुदेश ने कठोर स्वर में कहा।
"भागने के लिए मुझे तेरी इजाजत की जरूरत नहीं। मैं तेरा सिर्फ तोड़कर भाग सकता हूँ।" जगमोहन ने कड़वे स्वर में कहा।
सुदेश ने सड़क के किनारे वैन रोकी।
जगमोहन दरवाजा खुलते बोला---
"मैं अभी आया।"
"जल्दी। जब तक गनमैन बाहर देख रहा है, हम फंसे रहेंगे।"
जगमोहन बाहर निकला और दरवाजा बंद करके तेजी से आगे बढ़ गया।
सामने 200 फीट दूर हैंडलूम की दुकान नजर आ रही थी।
दस मिनट में जगमोहन डबलबेड की दो चादरें लेकर लौट आया।
सुदेश अभी तक ड्राइविंग सीट पर ही बैठा था। वह बाहर निकला।
"इन चादरों को कैसे इस्तेमाल करोगे?" सुदेश ने उसके पास आते ही पूछा।
जगमोहन ने वैन की साइड में बनी खिड़की में देखा 6 इंच चौड़ी और 24 इंच लंबी खिड़की या फिर रोशनदान था वो। उसके ऊपर लोहे का जाल लगा था। दूसरी तरफ भी यही हाल था।
"इस जाली और शीशे के बीच चादरें ठूंस कर फँसा देते हैं। इस तरह के भीतर वाला बाहर ना देख सके।"
"ये ठीक रहेगा।"
"इसके लिए मुझे वैन की छत पर जाना पड़ेगा।" जगमोहन ने कहा और वैन के आगे के खुले दरवाजे में चढ़कर, छत पर पहुँचने का प्रयत्न करने लगा। धूप हो रही थी। दोपहर का एक बजने वाला था।
सुदेश की बेचैन निगाह सतर्कता के साथ हर तरफ घूम रही थी।
जगमोहन वैन की छत पर जा पहुँचा।
"चादरें ऊपर फेंक...।" जगमोहन ने कहा।
सुदेश ने चादरों वाला लिफाफा ऊपर उछाल दिया।
जगमोहन ने लिफाफा थामा और एक चादर निकालकर उसकी तह खोली और फिर उसे इकट्ठा करके छत पर लेटा और चादर थामे हाथ नीचे करके जाली और शीशे के बीच ठूंस कर फँसाने लगा।
दो मिनट अवश्य लगे, परन्तु चादर शीशे और जाली के बीच इस तरह फँसा दी कि भीतर वाले को शीशे से बाहर कुछ भी नजर ना आए और वैन के रफ्तार पर दौड़ने पर भी चादर अपनी जगह से हटे नहीं।
सुदेश नीचे खड़ा चादर को फँसाये जाते देख रहा था।
"ठीक है?" जगमोहन ने पूछा।
"मेरे ख्याल से तो ठीक ही है।" नीचे खड़े सुदेश ने कहा।
"दूसरी तरफ आ जा।"
इसी तरह जगमोहन ने वैन के दूसरी तरफ भी शीशे और जाली में चादर फँसाई।
"ठीक है?" जगमोहन ने पुनः पूछा।
"हाँ, अब भीतर वाला, बाहर नहीं देख सकेगा। जल्दी से नीचे आ।"
जगमोहन नीचे आ गया।
दोनों पुनः वैन में जा बैठे।
सुदेश ने वैन स्टार्ट की और सीधा ले गया। उसका इरादा आगे से मोड़कर वैन को वापस लाने का था, परन्तु तभी कानों में पुलिस का सायरन पड़ने लगा।
दोनों की नजरें मिलीं।
"पुलिस यहाँ भी आ पहुँची। भीतर साला गनमैन, पुलिस को वहाँ की स्थिति बता रहा होगा।" सुदेश गुर्राया।
"अब नहीं बता सकेगा।"
"मैं वैन को आगे से किसी दूसरे रास्ते से निकालता हूँ...।" सुदेश ने रफ्तार बढ़ा दी।
"ज्यादा तेज मत चलाओ। ये कॉलोनी के भीतर का इलाका है।" जगमोहन ने कहा।
उसके कानों में भी पुलिस हूटर की आवाज पड़ रही थी।
सुदेश के जबड़े भिंचे हुए थे।
"भीतर मौजूद गनमैन को अब बाहर कुछ भी नजर नहीं आएगा। इस तरह हम सुरक्षित रहेंगे।" जगमोहन ने कहा--- "एक बार उसे दिशाभ्रम हो जाएगा तो वह फिर समझ नहीं सकेगा कि वैन किस रास्ते पर जा रही है।"
"दिशाभ्रम तो उसे कॉलोनी के मोड़ों से होना शुरू हो गया होगा। जब तक हम इस सड़क से निकलकर मुख्य सड़क पर पहुँचेंगे तो वह समझ नहीं पाएगा कि वैन किधर है... कहाँ जा रही है।" सुदेश कठोर स्वर में बोला।
"वो भीतर से वैन का शीशा तोड़ सकता है।" जगमोहन के होठों से निकला--- इस तरह वो फिर से बाहर देख सकेगा।"
"एक बार दिशाभ्रम उसे हो गया तो वह फिर रास्ते को ठीक से पहचान नहीं सकेगा।" सुदेश वैन दौड़ाता बोला--- "पन्द्रह-बीस मिनट की बात है, तब तक हम अपने ठिकाने पर होंगे।"
"ठिकाना कैसा है?" जगमोहन ने पूछा।
"क्या मतलब?"
"खुले में है या बंद में?"
क्षण भर चुप रहकर सुदेश ने कहा---
"खुले में...।"
"सुनसान जगह है?"
"हाँ...।"
"कोई पक्का ठिकाना होना चाहिए था... वो...।"
"हमारा काम एक-आध घंटे का ही है। पक्का ठिकाना हमने क्या करना है...।"
जगमोहन ने गहरी साँस ली।
वैन तेजी से दौड़ी जा रही थी।
"मैंने कुछ गलत तो नहीं कहा, जो तुम साँसे भर रहे हो?"
"अब तुम्हारा काम घंटों लंबा हो सकता है। भीतर बैठे गनर को तुम भूल गए क्या?"
सुदेश के होंठ भिंच गए।
अब पुलिस सायरन की आवाज सुनाई देनी बंद हो गई थी।
सुदेश कॉलोनी की गलियों-सड़कों पर वैन दौड़ाता दूसरी तरफ आ निकला था और ऐसी सड़क उसने पकड़ ली थी, जो कि पहले वाली मुख्य सड़क पर जा निकलती थी।
"मलिक, गनर का कोई इंतजाम देख लेगा। हमारे पास वक्त कम है।"
जगमोहन ने कुछ नहीं कहा।
"दो-तीन मिनट में हम उसी मुख्य सड़क पर जा मिलेंगे, जहाँ से भीतर आए थे।" सुदेश बोला।
जगमोहन चुप रहा सोचें उसके चेहरे पर दौड़ रही थीं।
उसी वक्त सुदेश का मोबाइल बजने लगा।
"हैलो!" उसने मोबाइल निकाल कर बात की। उसकी नजरें ड्राइविंग सीट पर थीं।
"तुम कहाँ हो?" मल्होत्रा की आवाज कानों में पड़ी।
"तिरपाल लाये हो?"
"जरूरत नहीं रही। हमने चादरें खरीद कर उससे काम चला लिया है। तुम इस वक्त कहाँ हो?"
उधर से मल्होत्रा ने अपनी स्थिति बताई।
"तुम फौरन बाटा चौक पर पहुँचो। वहाँ दो मिनट में हमारी वैन पहुँच रही है। तुम वैन के पीछे आओ, ताकि हम किसी खतरे में घिरें तो तुमसे सहायता मिल सके।" सुदेश ने कहा।
"मैं बाटा चौक के पास ही हूँ। तुमसे पहले पहुँच जाऊँगा। उधर से मल्होत्रा ने कहा।
"वैन को ढूंढ लेना। वो तुम्हें दूर से ही नजर आ जाएगी।" कहकर सुदेश ने फोन बंद किया।
तभी वैन के भीतर से आहट उभरी।
"वो भीतर परेशान हो रहा होगा।" जगमोहन बोला--- "क्योंकि वो अब बाहर नहीं देख सकता।"
"वो शीशा तोड़ेगा खिड़की का?" सुदेश ने कहा।
"हो सकता है।"
तभी सुदेश का मोबाइल पुनः बजा।
"कहो। उसने बात की।
"तुम कहाँ हो?" जगदीश की आवाज कानों में पड़ी।
"रास्ते में। बाटा चौक के पास। तुम ने पुलिस को बढ़िया ढंग से रोका था तब।"
"पुलिस वालों से तू-तू मैं-मैं करनी पड़ी। सालों ने खुन्दक में हमारी कार का नंबर भी नोट कर लिया।"
"मलिक सब संभाल लेगा।"
"हम बाटा चौक की तरफ आ रहे हैं। वहाँ हम दस मिनट तक पहुँच जाएंगे।"
"तुम आते रहो। कुछ ही मिनट में मल्होत्रा इस वैन को कवर कर रहा होगा।"
"ठीक है। कोई समस्या तो नहीं आई?"
"वैन के भीतर मौजूद गनमैन रास्ते को देखकर पुलिस वालों को खबर दे रहा है। तभी तो पुलिस हमें हर जगह पर घेर रही है। अब तो वह बाहर नहीं देख सकेगा। इंतजाम कर दिया है। तुम पीछे आते रहो।" कहकर सुदेश ने फोन बंद कर दिया।
सामने ही चौराहा आ गया था।
सुदेश ने वैन को धीमा किया और चौराहे पर मोड़ते हुए मुख्य सड़क की भीड़ में वैन पहुँच गई।
ट्रैफिक की वजह से उनकी रफ्तार मध्यम हो गई थी।
जगमोहन की निगाह हर तरफ फिर रही थी।
ऐसी भीड़ भरी सड़क पर कम रफ्तार में हम खतरे में पड़ सकते हैं।" जगमोहन ने कहा।
"कोई और रास्ता भी नहीं है। इस सड़क से निकलना जरूरी है।" सुदेश ने गंभीर स्वर में कहा।
"एक गलती तुम लोगों ने की। मलिक बेवकूफ लगता है।"
"अब क्या हो गया?"
"बैंक-वैन से आधा घंटे या पौन घंटे जितना लंबा रास्ता भीड़ भरी सड़क पर तय करना हो तो, सुरक्षित तरीका ये था कि बख्तरबंद ट्रक तैयार रखते। वैन को ट्रक में चढ़ा देते। ऐसे में रास्ते में कोई खतरा नहीं आता। पुलिस का भी खतरा नहीं आता और भीतर मौजूद गनमैन भी वैन की स्थिति किसी को ना बता पाता।"
"हम डकैती डालने वाली नहीं हैं--- जितना दिमाग था उतना काम कर लिया।"
जगमोहन ने जवाब में कुछ नहीं कहा।
"परन्तु तुम लोगों ने वैन को छुपाने के लिए बख्तरबंद ट्रक का इंतजाम क्यों नहीं किया था?"
"हमें जरूरत नहीं थी क्योंकि वैन को जहाँ ले जाना था, वो सारा रास्ता सुरक्षित था।" जगमोहन बोला।
एकाएक की भीड़ बढ़ने लगी।
वाहनों की रफ्तार कम होने लगी।
अब चीटियों की तरह वाहन रेंगने लगे थे।
"आगे जाम लगता है।" सुदेश बोला--- "तुम जरा खिड़की का शीशा नीचे करके बाहर देखना।"
जगमोहन ने शीशा नीचे किया और गर्दन बाहर करके आगे देखा।
अगले ही क्षण गर्दन भीतर करके कह उठा---
"पुलिस ने सड़क पर चैक-पोस्ट लगा रखी है।"
"क्या?" सुदेश का मुँह खुला का खुला रह गया। उसने जगमोहन को देखा।
जगमोहन के चेहरे पर गम्भीरता नाच रही थी।
"तुमने सोचा कि दिनदहाड़े लुटी बैंक-वैन को सड़कों पर दौड़ाते रहोगे और तुम्हें कोई पूछेगा नहीं?"
"अब क्या होगा?" सुदेश परेशान हो उठा।
"अभी भी वक्त है। मौका हाथ में है भागने का। वैन यहीं छोड़ो और भाग लो।"
"मैंने ऐसा किया तो मलिक मुझे गोली मार देगा।"
"नहीं किया तो पुलिस तुम्हें और मुझे डकैत समझ कर मार देगी। वो यही सोचेंगे कि हमने ही वैन को...।"
"मुझे कोई रास्ता बताओ।" सुदेश चीखने जैसे स्वर में बोला।
"रास्ता ही बताया है कि वैन छोड़ कर भाग जाओ।"
"नहीं! मैं वैन नहीं छोडूंगा।" सुदेश ने दृढ़ स्वर में कहा।
"मर्जी तुम्हारी। लेकिन मैं अब वैन से बाहर जा---"
"तुम कहीं नहीं जाओगे। वरना देवराज चौहान मरेगा।" सुदेश दाँत किटकिटा उठा।
जगमोहन के होंठ भिंच गए।
दोनों की नजरें मिलीं।
"यह जरूरी तो नहीं कि तुमने आत्महत्या का इरादा कर लिया है तो मैं भी आत्महत्या---।"
"देवराज चौहान की जिंदगी चाहते हो तो तुम्हें आत्महत्या भी करनी पड़ेगी।" सुदेश कठोर स्वर में बोला।
"मतलब कि अपनी जान देकर देवराज चौहान की जान बचाऊँ?"
"तुम्हें बहुत प्यार जो है उससे...।"
"तुम ज्यादती कर रहे हो मेरे साथ। शायद अपने साथ भी। इस वक्त वैन छोड़कर भाग जाना चाहिए।"
"वैन को सुरक्षित ठिकाने पर पहुँचाना मेरा काम है, ये काम मैं करके---"
इसी वक्त सुदेश का मोबाइल बजा।
मल्होत्रा का फोन था।
वैन चींटी की रफ्तार से आगे सरक रही थी।
"आगे पुलिस ने चैक-पोस्ट लगा रखी है, वो वैन के लिए ही खड़े होंगे।"
"क्या मतलब?"
"पुलिस को पता है कि वैन इसी इलाके में है। ये इलाका घेर रखा है।"
"वैन को पुलिस दूर से ही पहचान जाएगी। वो तुम्हें जाने नहीं देंगे। तुम खतरे में हो सुदेश।"
"बताओ मैं क्या करुँ?"
"वैन को छोड़ा भी नहीं जा सकता...।" मल्होत्रा की आवाज कानों में पड़ी--- "मैं मलिक से बात करता हूँ।"
सुदेश के होंठ भिंच गये।
फोन बंद हो गया।
वैन जरा-जरा आगे बढ़ रही थी। मक्खियों के झुंड की भांति ट्रैफिक रेंगता दिखाई दे रहा था।
फोन सुदेश ने हाथ में ही थाम रखा था।
"तुमने कहा था कि तुम तनख्वाह पर काम करते हो...।" जगमोहन बोला।
"तो?"
"थोड़ी सी तनख्वाह के लिए क्यों खुद को खतरे में डाल रहे हो? पुलिस हमें शूट कर देगी या गिरफ्तार कर लेगी।"
सुदेश ने खा जाने वाली नजरों से जगमोहन को देखा।
"मैंने कुछ गलत तो नहीं कहा?"
"अपनी जुबान बंद रखो।" सुदेश गुर्राया--- "इस वक्त तुम्हें बचने का रास्ता सोचना चाहिए।"
"कोई रास्ता नहीं है। जो है, वह तुम्हें पसंद नहीं है।"
"वैन छोड़ कर भाग जाएं?"
"हाँ।"
"चुप रहो। गलत सलाह मत दो।" सुदेश की बेचैन निगाह हर तरफ जा रही थी। वैन के सामने के शीशे के ऊपर वाली जाली लगी थी। बाहर से भीतर वालों के चेहरे देख पाना संभव नहीं था।
"पुलिस वालों की नजर वैन पर पड़ने की देर है कि वो इस तरह वैन से चिपक जाएंगे जैसे भेड़िया शिकार को घेर कर उसकी बोटी-बोटी खा जाते हैं। तब तुम्हें तुम्हारा मलिक याद भी नहीं आएगा...।"
सुदेश चुप रहा।
तभी पुनः सुदेश का फोन बजा।
"कहो।" सुदेश ने बात की।
"मलिक कहता है कि उसे वैन चाहिए।" उधर से मल्होत्रा की आवाज आई।
सुदेश के होंठ भिंच गए।
"वह खुद मेरे से बात क्यों नहीं करता?"
"मैं नहीं जानता। वो कहता है कि वैन---।"
"वैन अब पुलिस से घिरने जा रही है। तुम तो यहाँ हो, सब देख रहे हो।" सुदेश ने गुस्से में कहा।
"हाँ... मैं...।"
"तो उसे सारी स्थिति बताओ कि---"
"सब बता दिया। वो कहता है कि जैसे भी हो, वैन को बचाकर लाया जाए।"
"कैसे---पुलिस वालों से मुकाबला करूँ?"
मल्होत्रा की आवाज नहीं आई।
"तुम ही बताओ कि इस वक्त मैं पुलिस से कैसे बच सकता हूँ?"
"मुझे नहीं लगता कि बच सकोगे...।" कानों में पड़ने वाला मल्होत्रा का गम्भीर स्वर था।
"तो मलिक मुझे आत्महत्या करने के लिए क्यों कह रहा है?"
"मैं नहीं जानता। मलिक ने जो कहा, वो तुम्हें बता दिया। बुरे वक्त पर मैं तुम्हारी जो सहायता कर सकूँगा, वो अवश्य करुँगा। बाकी तुम पर है कि तुम क्या करते हो?" उधर से मल्होत्रा ने कहा और फोन बंद कर दिया।
सुदेश फोन को हाथ में ही पकड़े रहा।
चेहरे पर कठोरता नाच रही थी।
जगमोहन की निगाह बार-बार सुदेश पर जा रही थी।
"क्या इरादा है?" जगमोहन ने पूछा।
"मलिक को वैन चाहिए। मैं वैन नहीं छोड़ सकता।" सुदेश का अंदाज हारे हुए सिपाही जैसा था।
"तुम फँस जाओगे या मारे जाओगे।"
"जो भी हो मैं मैदान नहीं छोड़ सकता। मैं यहीं रहूँगा। वैन में। और वैन को बचा ले जाने की चेष्टा करुँगा--- तुम---।" उसी पल हाथ में मोबाइल बजने लगा।
"कहो।" सुदेश ने बात की।
"ये क्या हो रहा है...?" जगदीश की आवाज कानों में पड़ी--- "आगे पुलिस ने चैक-पोस्ट लगा रखी है।"
"मलिक कहता है कि उसे वैन चाहिए।" सुदेश बोला।
"वह पागल तो नहीं हो गया?"
"बेहतर होगा कि तुम मलिक से बात करो।" सुदेश कठोर स्वर में बोला।
"तुम अब क्या करने वाले हो?"
"पता नहीं।" सुदेश ने कहा और फोन बंद कर दिया।
वैन धीमे-धीमे आगे सरक रही थी।
चैक-पोस्ट 50-60 फीट दूर रह गई थी।
सुदेश ने रिवाल्वर निकाल कर हाथ में ले ली।
"ये क्या कर रहे हो?" जगमोहन के होंठों से निकला।
"वैन बचा कर ले जाने की कोशिश करुँगा।" सुदेश ने खतरनाक स्वर में कहा।
"पुलिस से मुकाबला करने वाले बेवकूफ होते हैं। पुलिस एक आदमी का नहीं, एक अंतहीन संस्था का नाम है। तुम दो-चार को मार दोगे तो बाकी सब तुम्हारे पीछे होंगे। पुलिस से बचना हो तो हमेशा यह याद रखो कि उस पर कभी वार मत करो।"
"मैं सिर्फ अपनी जान बचाने की कोशिश कर रहा हूँ। तुम वैन से निकल जाओ।"
"क्या?" जगमोहन ने अचकचा कर उसे देखा।
"तुम वैन से निकल जाओ। मैं तुम्हें इस तरह फँसाना नहीं चाहता। जाओ।"
जगमोहन ने गहरी साँस ली। नजरें बाहर घूम रही थीं।
"मैं जानता हूँ कि मलिक ने तुम्हें गलत आदेश...।"
"वक्त कम है।" सुदेश गुर्राया--- "वैन से बाहर निकलो। अपने को बचाओ।"
जगमोहन ने हाथ बढ़ाकर सुदेश के हाथ से रिवाल्वर लेनी चाही।
परन्तु सुदेश ने सख्ती से रिवाल्वर थाम रखी थी।
"दिखाओ तो---।" जगमोहन आराम से बोला--- "वापिस दे दूँगा।"
सुदेश ने सामने देखते हुए हाथ ढीला किया।
रिवाल्वर जगमोहन के हाथ में आ गई।
"मैं तुम्हारे दिल की हालत समझ रहा हूँ। तुम्हें मलिक पर भरोसा है, परन्तु उसे तुम्हारी जान की परवाह नहीं। तभी उसने तुम्हें वैन के साथ रहने का आदेश दिया है। इस वक्त तुम गुस्से में हो। तुम्हारा गुस्सा मलिक पर है। और गुस्से की वजह से तुम ठीक से सोच नहीं पा रहे और रिवाल्वर निकाल ली, पुलिस का मुकाबला करने के लिए तुम ही सोचो क्या एक रिवाल्वर से तुम पुलिस का मुकाबला कर लोगे? वो कई हैं और उनके पास हथियार भी होंगे। तुम एक-दो को मार दोगे। इससे ज्यादा कुछ नहीं होगा--- और अंत में वह तुम्हारा शरीर गोलियों से छलनी कर देंगे।"
सुदेश ने कठोर निगाहों से जगमोहन को देखा।
"शांत दिमाग से काम लेना---।"
"इन हालातों में कोई शांत नहीं रह सकता।" सुदेश खतरनाक स्वर में बोला।
"अपने को शांत करो। मलिक के लिए तुम्हारे मन में जो गुस्सा है, वह निकाल दो।"
"तुम वैन से निकल जाओ...।"
"मैं नहीं जाऊँगा।"
"क्या?" सुदेश ने उसे देखा।
"तुम्हें इस तरह खतरे में छोड़कर मेरा चले जाना ठीक नहीं होगा।"
सुदेश के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे।
"तुम्हारा मेरा कोई रिश्ता नहीं है कि मैं ऐसा कहूँ, परन्तु मैं ठीक कह रहा हूँ।" जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा--- "मैं नहीं चाहता कि तुम अपनी जान गंवाओ। तुम जो करने की सोच रहे हो, उसमें तुम्हारी जान चली जाएगी।"
"मैं...मैं परेशान हूँ।" सुरेश ने बेहद गहरी साँस ली।
"मैं जानता हूँ।" जगमोहन गम्भीर था--- "इसी परेशानी में तुमने रिवाल्वर निकाल ली। परन्तु अंजाम नहीं सोचा कि पुलिस पर गोलियां चलाने के बाद तुम्हारा क्या होगा। मेरी बात सुनो, ये वैन बुलेट प्रूफ है।"
सुदेश ने जगमोहन को देखा।
"शीशे भी बुलेटप्रूफ हैं।"
"मैं नहीं जानता था यह बात।" सुदेश ने बेचैनी से कहा।
"टायरों पर अवश्य गोली मारी जा सकती है।" जगमोहन कह रहा था--- "वो हम पर कितनी भी फायरिंग करें, हमें गोली नहीं लग सकती। ज्यादा से ज्यादा वो वैन के टायरों पर गोली मारकर वैन रोक सकते हैं। परन्तु यह हम पर है कि उन्हें सोचने-समझने का मौका देते हैं कि नहीं। वो टायर पर गोली मारते हैं या नहीं?"
"क्या मतलब?"
"मतलब सब समझ जाओगे। तुम इधर आ जाओ और वैन मुझे चलाने दो।"
"नहीं।" सुदेश के होठों से निकला।
"क्यों?"
"वैन तुम्हारे हाथ में देने को मलिक ने मना किया है।" सुदेश कह उठा।
"मलिक वही है ना, जिसने अब तुम्हें आत्महत्या करने को कहा है?" जगमोहन ने कड़वे स्वर में कहा।
सुदेश ने होंठ भिंच लिए।
जगमोहन ने सामने निगाह मारी।
उनकी वैन के आगे पाँच गाड़ियाँ थीं। उसके बाद पुलिस बैरियर। वहाँ छः-सात पुलिस वाले दिखे।
"जल्दी करो। वक्त कम है।" जगमोहन ने उसे देखा।
"तुम क्या करना चाहते हो?" सुदेश ने गहरी साँस ली।
"देख लेना।"
"मैं तुम पर भरोसा कर रहा हूँ। कोई गड़बड़ मत करना।" सुदेश कह उठा।
"तुम्हारे कहने पर भी मैं इसीलिए नहीं जा रहा कि मैं तुम्हें बचाना चाहता हूँ।"
सुदेश सच में हालातों से व्याकुल था।
उसे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे बच कर निकल पाएगा या नहीं निकल पाएगा।
बहरहाल जिम्मेवारी की बागडोर उसने जगमोहन को दे दी। वो जगमोहन की सीट पर आ गया और जगमोहन स्टेयरिंग सीट पर जा बैठा। रिवाल्वर उसने वापस सुदेश को देते हुए कहा---
"इसे इस्तेमाल मत करना।"
सुदेश ने होंठ भींचे रिवाल्वर थाम ली। वह बेचैन था।
"रिवाल्वर जेब में रख लो और सोचना भी मत कि तुम्हारे पास रिवाल्वर है।"
सुदेश ने रिवाल्वर जेब में रख ली।
वैन चींटी सी रफ्तार से आगे बढ़ रही थी।
जगमोहन की निगाह वैन के भीतर घूमने लगी। अब उसका चेहरा सख्त हो गया था। जल्दी ही उसे स्टेयरिंग के नीचे लगा वो स्विच नजर आ गया जो वैन के डोरलॉक से वास्ता रखता था। उसके बाद जगमोहन ने वैन का दरवाजा खोला। थोड़ा सा, फिर दरवाजा बंद कर दिया और स्विच को ऑन की मुद्रा में दबा दिया।
उसके बाद पुनः दरवाजा खोला।
परन्तु नहीं खुला।
जगमोहन के चेहरे पर छोटी-सी मुस्कान उभरी और लुप्त हो गई।
सुदेश उसे देख रहा था। वो कह उठा---
"क्या क्या तुमने?"
"यह स्विच वैन के लॉकिंग सिस्टम को कंट्रोल करता है। अब हमारी मर्जी के बिना कोई वैन के भीतर नहीं आ सकता और कोई वैनसे बाहर भी नहीं जा सकता।" जगमोहन ने कहा।
"ओह--- मुझे नहीं पता थी यह बात।" सुदेश बोला।
"मुझे इसीलिए पता है कि वैन पर हाथ डालने से पहले हमने वैन के बारे में सब कुछ जान लिया था।"
"यह लॉकिंग सिस्टम पहले खुला था तो पीछे मौजूद गनमैन के भाग जाने का मौका था...।" सुदेश ने कहा।
"नहीं था। इस स्विच के लॉक सिस्टम के अलावा, वैन के पीछे वाले दरवाजे पर बाहर से ताला ठोका हुआ है।"
"ओह--- तो वो बाहर नहीं निकल सकता।"
वैन के आगे दो गाड़ियाँ थीं। फिर पुलिस बैरियर।
दोनों की निगाह बैरियर पर गई। पुलिस वाले सामने ही नजर आ रही थे। वो हर वाहन की तलाशी ले रही थे। दो पुलिसवाले गनें थामें मुस्तैद खड़े थे। एक सब-इंस्पेक्टर कमर में होलस्टर लगाए टहलता दिखाई दे रहा था। चंद कदमों के फासले पर पुलिस जिप्सी खड़ी थी। जिसमें बैठा ड्राइवर बीड़ी फूंक रहा था।
खतरे वाला वक्त आ पहुँचा था। सुदेश ने बेचैनी से पहलू बदला।
जगमोहन होंठ भींचे पुलिस वालों की कार्यवाही देख रहा था। तभी उसने एक पुलिस वाले की नजर वैन पर पड़ते देखी। उसने चीख कर अपने साथियों से कुछ कहा। सबकी निगाह इस तरफ उठी।
"उन्होंने वैन को देख लिया है...।" सुदेश दाँत पीसते हुए कह उठा--- "अब तुम क्या करोगे?"
जगमोहन की निगाह पुलिस वालों पर ही घूम रही थी।
देखते-ही-देखते हथियारबंद पुलिस वाले एक्शन के अंदाज में वैन के पास आ पहुँचे थे।
तभी बैरियर हटा दिया गया। आगे की दोनों कारों को पुलिस वालों ने आनन-फानन में निकाल दिया और यही गलती की पुलिस वालों ने। अगर आगे वह कारें खड़ी रहतीं तो वैन को हिल पाने की भी जगह नहीं मिल पाती।
सब-इंस्पेक्टर रिवाल्वर हाथ में थामे वैन की तरफ बढ़ा।
बैरियर पुनः गिराया जाने लगा।
उसी पल जगमोहन ने फर्स्ट गियर डाली और दाँत भींचकर एक्सीलेटर दबा दिया।
वैन मेंढक की तरह उछली और गोली की तरह आगे बढ़ी।
वैन की तरह बढ़ता सब-इंस्पेक्टर उछलकर बचने के लिए एक तरफ जा गिरा।
जगमोहन इस बात का पूरा ध्यान रख रहा था कि कोई पुलिस वाला वैन के नीचे ना आए।
वैन नीचे गिरते बैरियर (लकड़ी की रंगीन बल्ली) से टकराई और उसे तोड़ती हुई आगे भागती गई। आगे सड़क खाली पड़ी थी। जगमोहन ने वैन को पूरी रफ्तार से दौड़ा दिया।
पीछे से गोलियाँ चलने की आवाज आई।
परन्तु सब कुछ ठीक रहा।
सुदेश का चेहरा घबराहट से भरा पड़ा था।
"जगमोहन के चेहरे पर सख्ती उमड़ पड़ी थी। उसने सुदेश को देखा।
"तुम्हारे चेहरे के भाव बता रहे हैं कि यह सब होना तुम्हारे लिए नया है।"
सुदेश ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी--- "मैं पहली बार इन हालातों से निकला हूँ।"
"डर लग रहा होगा?"
"कुछ-कुछ।"
"चिंता मत करो। सब ठीक है।" जगमोहन ने वैन के साइड मिरर पर नजर मारकर कहा।
"वो--- पुलिस हमारे पीछे आ रही होगी।"
"जरूर आएगी। बल्कि उन्होंने हेडक्वार्टर खबर कर दी होगी। हमारी वैन के बारे में हर तरफ मैसेज फ्लैश हो जाएगा।"
"खतरा बढ़ जायेगा।"
"तुमने वैन के साथ जहाँ पहुँचना है, वो जगह कितनी दूर है?"
"ज्यादा दूर नहीं है।"
"रास्ता बताते रहो।"
"इन हालातों में हमारा वहाँ जाना सुरक्षित नहीं होगा।" सुदेश बोला।
"देखते हैं।" जगमोहन ने साइड मिरर पर निगाह मारी।
"पीछे कोई है क्या?"
"हाँ। पुलिस वैन, लेकिन वो काफी पीछे है।" जगमोहन बेहद रफ्तार से वैन को दौड़ाये जा रहा था।
"मैं मल्होत्रा को फोन करता हूँ। पीछे आती पुलिस को वो संभाल लेगा।" सुदेश ने जल्दी से फोन निकाला और नंबर मिलाने लगा। जल्दी ही बात हो गई।
"तुम कहाँ हो?" मल्होत्रा की आवाज कानों में पड़ी।
"हम वैन को वहाँ से निकाल...।"
"जानता हूँ। मैंने सब देखा है। बढ़िया किया तुमने। अब किधर...।"
"हमारे पीछे पुलिस कार है। उसे किसी तरह रोको।" सुदेश ने बेचैन स्वर में कहा।
"मैं कुछ नहीं कर सकता मेरी कार इधर भीड़ में फँसी है।"
सुदेश ने दाँत पीस लिए। फोन बंद करते हुए बड़बड़ा उठा--- "कमीना...।"
"क्या हुआ?"
मल्होत्रा कहता है कि वह ट्रैफिक में फँसा है।" सुदेश ने कड़वे स्वर में कहा।
"ऐसा ही होगा।" जगमोहन बोला।
उसी पल सुदेश का फोन बजा।
"कहो।"
"तुम कहाँ हो?" जगदीश की आवाज कानों में पड़ी।
सड़क पर भाग रहे हैं। पीछे पुलिस है।" सुदेश बोला--- "तुम?"
"हम ट्रैफिक में फँसे हुए हैं।"
"काम के वक्त तुम सभी फँसे पड़े हो।" सुदेश क्रोध से चीखा और फोन बंद कर दिया।
जगमोहन बार-बार साइड मिरर पर नजर मार रहा था।
काफी पीछे पुलिस कार आती नजर आ रही थी।
सुदेश बहुत व्याकुल लग रहा था। वो कह उठा---
"अब पीछे लगी पुलिस का क्या करोगे?"
"किसी तरह पीछा छुड़ाने की कोशिश करुँगा। खतरा इस बात का है कि आगे और पुलिस कारें ना मिल जायें। पीछे आने वाली पुलिस ने वायरलैस पर बैंक-वैन के बारे में खबर कर दी होगी।" जगमोहन ने कहा।
"मुझे नहीं मालूम था कि यह इतने संकट वाला काम साबित होगा...।"
"तुमने सोचा कि बैंक वैन को आसानी से सड़कों पर दौड़ाते रहोगे और पुलिस मिलेगी ही नहीं...।"
"मैंने ऐसा ही सोचा था।"
"तुम लोगों ने पुलिस को कम क्यों आँका?"
सुदेश चुप रहा।
"मलिक बेकार बंदा है। समझदार होता तो हर पहलू पर सोचता।"
"उसका कोई कसूर नहीं। अपने काम में माहिर है वह। परन्तु इस तरह बैंक-वैन के मामले में दखल देना, उसका पहला काम ही है।"
"तुम बैरियर पर ही फँस जाते। वहाँ से निकल नहीं पाते।"
"हाँ, ऐसा ही होता।"
"तुम रिवाल्वर निकालकर मुकाबले पर उतरने की सोच रहे थे...।" जगमोहन बोला।
"मुझे ऐसे कामों का अनुभव नहीं है।"
"वो तो मैं देख रहा हूँ कि इन कामों के लिए मलिक भी बेकार है। तुम लोग हो कौन?"
सुदेश ने जगमोहन को देखा।
वैन रफ्तार से दौड़ रही थी। जगमोहन का पूरा ध्यान ड्राइविंग पर था।
"मैं तुम लोगों के बारे में जानना चाहता हूँ कि---।"
"तुम्हारा क्या ख्याल है कि मैं तुम्हें बता दूँगा?" सुदेश एकाएक तीखे स्वर में कह उठा।
"मैंने अभी-अभी तुम्हें बचाया है। तुम्हें मेरा भरोसा करना चाहिए।"
"तुमने मुझे नहीं, अपने को भी बचाया है।"
जगमोहन मुस्कुराकर कह उठा---
"भले का तो जमाना ही नहीं रहा...।"
"पीछे आती पुलिस के बारे में सोचो। आगे अगर पुलिस ने कहीं पर सड़क बंद कर रखी होगी तो उस बारे में सोचो। अभी हम खतरे से बाहर नहीं हैं। कभी भी फिर मुसीबत के रूप में पुलिस हमारे सामने आ सकती है।"
वैन ड्राइव करते हुए जगमोहन की निगाह बार-बार साइड मिरर पर जा रही थी। जहाँ से कभी-कभी काफी पीछे आती पुलिस कार दिखाई दे जाती थी। खतरा अभी सिर पर था।
उसी पल सुदेश का मोबाइल बजा।
"हैलो।"
"वेरी गुड सुदेश।" मलिक की आवाज कानों में पड़ी--- "तुमने बैरियर से वैन को भगाकर अच्छा काम किया।"
दो पल के लिए सुदेश को समझ नहीं आया कि मलिक को क्या कहे।
"अब तुम कहाँ हो?" मलिक की आवाज कानों में पड़ी।
सुदेश ने बताया।
"गुड। तुम पाँच-सात मिनट में यहाँ पहुँच जाओगे।"
"नहीं।" सुदेश के होंठों से निकला।
"क्यों?"
"पीछे पुलिस की कार लगी है।"
"ओह, ये तो बुरी बात है।"
"हम कोशिश कर रहे हैं कि किसी तरह पुलिस से खुद को बचा सकें।"
"हम?"
"जगमोहन साथ तो है मेरे...।"
"वैन कौन चला रहा है?"
"जगमोहन। ये जरूरी था। मैं इस तरह पुलिस वालों का मुकाबला नहीं कर सकता। हमें इस बारे में पहले ही सोच लेना चाहिए था कि पुलिस से भी टकराव की स्थिति आ सकती है। तुमने मुझे सीधा मुसीबत में झोंक दिया।"
"मुझे इन हालातों का अनुभव नहीं था।"
"तुम जगदीश, अम्बा, मल्होत्रा को इस तरफ भेजो। वैन की स्थिति बताओ। पुलिस ने हमें कहीं फँसा लिया तो वह हमें किसी तरह बचाने की कोशिश कर सकते हैं।" सुदेश ने परेशानी से कहा।
"मैं उन्हें खबर करता हूँ। जगमोहन से सावधान रहना और वैन पर अपना काबू रखना।"
सुदेश ने कुछ नहीं कहा।
उधर से मलिक ने फोन बंद कर दिया।
"वो जगह पास ही है, जहाँ मैंने इस वैन को लेकर पहुँचना है।" सुदेश बोला।
"पीछे पुलिस है। तुम नहीं चाहोगे की वैन के साथ-साथ पुलिस भी वहाँ पहुँचे।"
"पुलिस से किसी तरह पीछा छुड़ाओ।" सुदेश झल्लाया।
"अभी तो यह मुमकिन नहीं लगता।" जगमोहन ने भिंचे स्वर में कहा।
"अगर आगे से और पुलिस मिल गई तो?"
"मेरे से जो बन पड़ा, वह कर रहा हूँ और आगे भी करुँगा। मुझे वैन पर 60 करोड़ की चिंता है।"
"तो तुम 60 करोड़ के लिए ये सब कर रहे हो--- मेरे लिए नहीं?"
"मैं जो कर रहा हूँ तुम्हारे लिए ही कर रहा हूँ। किसी वहम में मत पड़ो। अगर मेरी बात मानते तो सब ठीक रहता।"
"तुम्हारी बात मान कर तो तुम्हें वैन चलाने दी...।"
"ये नहीं, वह बात जो मैंने मलिक से कही थी। तब मैं देवराज चौहान से बात कर लेता। कोई जगह हम तय कर लेते वह वैन को वहाँ ले आता और तुम लोग वैन से अपने काम की चीज निकाल लेते और हम नोट लेकर चलते बनते।"
"बीती बातें छोड़ दो। अब के हालात पर ध्यान दो।"
वैन दौड़ी जा रही थी।
पीछे पुलिस कार लगी थी।
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