आधा घंटा बीत गया। बंसीलाल के कमरे का माहौल नहीं बदला था। देवराज चौहान के हाथ में रिवाल्वर और टेबल पार कुर्सी पर बैठा बंसीलाल। दोनों हाथ टेबल पर रखे। एक ही मुद्रा में बंसीलाल थकान महसूस करने लगा था। इस बीच बंसीलाल ने देवराज चौहान को तरह-तरह के लालच दिए थे कि उसे जिन्दा छोड़ दे। अपनी बातों में फंसाना चाहा। मौका भी ढूंढता रहा कि देवराज चौहान के हाथ से रिवाल्वर छीन सके ।


लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।


देवराज चौहान न तो उसकी बातों में फंसा और न ही बंसीलाल के प्रति लपारवाह हुआ।


फिर देवराज चौहान थोड़ा सा नीचे झुका और एक हाथ से जूते में फंसा चाकू निकाला और बटन दबाकर उसका फल खोला, जो कि सिर्फ तीन इंच लम्बा था।


बंसीलाल की आंखें सिकुड़ीं।


“ये क्या कर रहे हो?” उसके होठों से निकला।


“तुम्हें खेल खेलने का बहुत शौक है। जिससे तुम्हारे बारे में मालूम किया, उसने बताया था।" देवराज चौहान के स्वर में किसी तरह का भाव नहीं था- "छोटा सा मौत का खेल मैं भी खेलूंगा तुम्हारे साथ | जिन्दा बच गये तो तुम्हारी किस्मत | मर गये तो यो भी तुम्हारी किस्मत ।”


“मैं समझा नहीं।”


“सिर्फ एक बार तुम पर चाकू फेंकूंगा।" देवराज चौहान का स्वर शांत था- “जीना मरना ऊपरवाले के हाथ-!" 


बंसीलाल ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी । 


“अगर तुम्हें मेरा ये खेल पसन्द नहीं तो शूट कर देता हूं तुम्हें । " 


“नहीं। गोली मत मारना। च-चाकू वाला खेल पसन्द है मुझे।" 


वो जल्दी से सूखे स्वर में कह उठा । 


देवराज चौहान के होंठों पर अजीब-सी मुस्कान उभरी। 


"ल- लेकिन इतनी पास में निशाना लगाओगे तो निशाना ठीक बैठेगा। मैं मर जाऊंगा।" घबराया बंसीलाल कह उठा। 


"हूं। ठीक कहते हो।" देवराज चौहान ने होंठ सिकोड़े- "तुम्हारा क्या ख्याल है कितनी दूर से मुझे निशाना लेना चाहिये?” 


“पन्द्रह - ।"


पन्द्रह फीट का फांसला तो होना ही चाहिये । बंसीलाल का गला सूख रहा था। !


देवराज चौहान उठा खड़ा हुआ


बंसीलाल भी जल्दी से उठा।


“पन्द्रह फीट का फांसला बना लो।” देवराज चौहान ने कहा। 


बंसीलाल जल्दी से पीछे हटा और पन्द्रह की अपेक्ष कम से कम अठारह फीट का फांसला बनाकर खड़ा हो गाया। 


देवराज चौहान के होंठों पर मौत से भरी मुस्कान उभरी !


“फांसला कम तो नहीं है?" देवराज चौहान ने पूछा। 


“ठी- ठीक है।” कहते हुए वो एक कदम और पीछे हो गया। 


"मैंने चाळू फेंककर सिर्फ एक वार ही तुम पर करना है।" देवराज चौहान एकाएक कठोर स्वर में कह उठा- “बच गये तो बच गये। मर गये तो मर गये। अगर तुम अपनी जगह से जरा भी हिले तो मैं उसी वक्त तुम्हें शूट कर दूंगा।"


“मैं-मैं नहीं हिलूंगा।" बंसीलाल की आवाज में भय से भरी खरखराहट आ गई थी ।


“मौत को अपनी तरफ आते देखकर कोई भी अपनी जगह ठहरा नहीं रह सकता। मुझे पूरा विश्वास है कि थोड़ा-बहुत अवश्य हिलोगे और चाकू की अपेक्षा रिवाल्वर की गोली से मरोगे।” देवराज चौहान का स्वर सख्त था - "मेरी सलाह पर चलकर तुम अपने लिये खतरा कम कर सकते हो ।”


“क-कैसे ?”


“आंखें बंद कर लो। इस वक्त तुम्हारे लिये इससे बेहतरी और नहीं हो सकती।"


बंसीलाल का रंग फंक्क हो चुका था। रह-रहकर सूखे होंठों पर जीभ फेर रहा था। 


"मैं खेल की शुरूआत करने जा रहा हूं। मर्जी तुम्हारी कि आंखें बद करो या न करो।” 


बंसीलाल ने फौरन आंखें बंद कर लीं। 


“कसम ले लो कि आंखें नहीं खोलनी- " 


बंसीलाल ने बंद आंखों को और भी भींच लिया। उसी पल देवराज चौहान का चाकू वाला हाथ उठा। चाकू का फल अंगूठे और तर्जनी उंगली के बीच फंसा था। आंखों में मौत से भरी ठण्डक उभर आई थी। तभी देवराज चौहान ने हाथ को तीव्रता से खास अंदाज में झटका दिया और चाकू हाथ से निकल गया।


चाकू की रफ्तार इस कदर तेज थी कि दो पल पता ही नहीं चला कि चाकू हैं कहा? और जब नजर आया तो उसका पूरा फल बंसीलाल की ठोडी के नीचे गर्दन में धंसा हुआ था। बंसीलाल की आंखें चौड़ी होकर फैल चुकी थीं। गर्दन में चाकू धंसा होने की वजह से वो चीख भी नहीं सका। तड़प कर उसने अपना हाथ गर्दन में धंसे चाकू की मूठ पर रखा।


इससे ज्यादा हरकत नहीं कर सका बंसीलाल ।


खेल खेलने वाले को खेल ने ही खत्म कर दिया था। उसका शरीर ढीला पड़ता चला गया। चाकू की मूठ पर पड़ा हाथ नीचे को झूल गया और वो उखड़े पेड़ की तरह नीचे जा गिरा। मर गया था वो ।


देवराज चौहान ने रिवाल्वर जेब में रखी और वंसीलाल की लाश की तरफ बढ़ा। आंखों में अभी भी मौत के सर्द भाव छाये थे । पास पहुंचकर नीचे झुकते हुए उसने गले में फंसा चाकू निकाल कर उसकी कमीज से साफ किया फिर टेबल के पास आकर वहां मौजूद पानी का गिलास उठाकर चाकू का फल धोया और उसे बंद करके पुनः जूतों में फंसाया और दरवाजा खोलकर बाहर निकल आया। देवराज चौहान जानता था कि अभी बंसीलाल के आदमी उसके लिये खतरा बन सकते हैं ।


***

क्रमशः...


P33

बाररूम में कदम रखते ही देवराज चौहान सतर्क हो चुका था। बंसीलाल के आदमियों द्वारा चलाई गई गोली कभी भी उसके सिर में धंस सकती थी। जो दो आदमी, उसकी मौजूदगी में बंसीलाल के पास ऑफिस में आये थे, वो बहुत खतरनाक लगे थे।


चलते-चलते देवराज चौहान की निगाह हर तरफ घूम रही थी । हाथ जेब में पड़ी रिवाल्वर पर जा पहुंचा था। बाररूम में जैसे अब भीड़ बढ़ गई महसूस हो रही थी। देवराज चौहान लोगों के बीच में से निकलता हुआ बाररूम के दरवाजे के पास पहुंचा कि वहां मौजूद कर्मचारी ने दरवाजा खोल दिया।


देवराज चौहान बाहर निकल गया। सामने छोटा सा रिसैप्शन था। वहां भी लोग बैठे हुए थे। तीव्र रोशनी और भरपूर चहल-पहल थी ।


देवराज चौहान की पैनी निगाह हर तरफ घूम रही थी। और साथ ही वो बाहरी दरवाजे की तरफ बढ़ा जा रहा था।


आधे मिनट में ही देवराज चौहान वहां से बाहर पार्किंग में था। बहुत अजीब लगा देवराज चौहान को कि किसी ने उसे रोका-टोका नहीं और वो बाहर आ गया। स्पष्ट था कि कोई गड़बड़ है। या तो बंसीलाल के आदमी थापर जगमोहन वगैरह के पीछे गये हैं या फिर ये शान्ति, चुप्पी उनकी कोई चाल हो सकती है। जो भी हो, देवराज चौहान हर स्थिति के प्रति सतर्क, पार्किंग में खड़ी अपनी कार में जा बैठा। कार स्टार्ट करते हुए भी उसकी निगाह हर तरफ फिर रही थी। रिवाल्वर जेब से निकाल कर गोदी में रख ली थी।


जगमोहन, बांकेलाल राठौर और रुस्तम राव अंधेरे में अलग-अलग पोजीशन लिए हुए थे।


उन्होंने बंसीलाल के आदमियों को स्पष्ट तौर पर वहां पोजीशन लेते देखा था। और वो समझ गये थे कि ये तैयारी देवराज चौहान के लिये कर रहे हैं कि कब वो बाहर निकले और वो हरकत में आये। तीनों ज्यादा फांसले पर नहीं आधे मिनट में ही देवराज चौहान वहां से बाहर पार्किंग में था। बहुत अजीब लगा देवराज चौहान को कि किसी ने उसे रोका-टोका नहीं और वो बाहर आ गया। स्पष्ट था कि कोई गड़बड़ है। या तो बंसीलाल के आदमी थापर जगमोहन वगैरह के पीछे गये हैं या फिर ये शान्ति, चुप्पी उनकी कोई चाल हो सकती है। जो भी हो, देवराज चौहान हर स्थिति के प्रति सतर्क, पार्किंग में खड़ी अपनी कार में जा बैठा। कार स्टार्ट करते हुए भी उसकी निगाह हर तरफ फिर रही थी। रिवाल्वर जेब से निकाल कर गोदी में रख ली थी।


जगमोहन, बांकेलाल राठौर और रुस्तम राव अंधेरे में अलग-अलग पोजीशन लिए हुए थे।


उन्होंने बंसीलाल के आदमियों को स्पष्ट तौर पर वहां पोजीशन लेते देखा था। और वो समझ गये थे कि ये तैयारी देवराज चौहान के लिये कर रहे हैं कि कब वो बाहर निकले और वो हरकत में आये। तीनों ज्यादा फांसले पर नहीं थे ।


बांकेलाल राठौर खिसकता हुआ जगमोहन के पास आ पहुंचा था।


“थारे को मालूम कि अंम का सोचो?” बांकेलाल राठोर ने धीमे स्वर में कहा।


“क्या ?"


“देवराज चौहान तो बंसीलाल को 'वड' के ही आयो ।” 


“हां । बंसीलाल बचेगा नहीं- ।”


“पेशीराम, जानो हो ना कि का कहो।” बंसीलाल राठौर गम्भीर था - "देवराज चौहान, बंसीलाल को कुछ कहो तो, इसो रास्तो पर मोना चौधरी से झगड़ा होयो - "


“तुम ठीक कह रहे हो।" जगमोहन के चेहरे पर व्याकुलता आ गई थी।


“म्हारे को एको बात समझ में न आयो । थारी समझ में आयो का?” बांकेलाल राठौर ने कहा- "देवराज चौहान तो ईब बंसीलाल को ‘वड' के बार आयो। मामलो तो निपट गयो ही समझो। ईब मोना चौधरी का फिट होवो या तो कामों का ही एण्ड हो गयो । सबो हैप्पी-हैप्पी अपणे घरा को जाणो के वास्तो तैयार हौवे ।” 


“मैं नहीं जानता। पेशीराम ने जो कहा, वो तुम्हें बता दिया था।" जगमोहन ने गहरी सांस ली।


“म्हारे को तो लगो कि पेशीराम यो ही हांको। मोना चौधरी 

से देवराज चौहान का वास्ता न पड़ो हो।" बांकेलाल राठौर गम्भीर था- "पेशीराम म्हारे से मजाक करो हो कि- "


"बांके -" 


"हुक्म - ।"


"वो देख। देवराज चौहान बाहर निकला है।"


बांकेलाल राठौर की नजर फौरन उधर गई। रैस्टोरेंट के मुख्य द्वार पर तीव्र प्रकाश चमक रहा था। जो व्यक्ति नजर आया। वो दाड़ी वाला था, परन्तु चलने के ढंग से वो स्पष्ट तौर पर देवराज चौहान ही लग रहा था। उसके साथ और लोग भी आ-जा रहे थे। 


“वो देवराज चौहान ही हौवे । छोरा म्हारे को बतायो कि देवराज चौहान दाड़ी में हौवो ।”


दोनों की निगाह देवराज चौहान पर टिक चुकी थी।


देवराज चौहान के चलने का ढंग देखकर वो समझ गये कि वह आने वाले खतरे के प्रति सावधान है। फिर देवराज चौहान को पार्किंग की तरफ बढ़ते देखा।


"रुस्तम राव को बता दे कि देवराज चौहान बाहर आ गया है।" जगमोहन बोला।


“छोरा अंधा न होयो। देवराज चौहान की दाड़ी को पहचानो हो वो ।”


“बंसीलाल के आदमी इधर-उधर फैले हैं। वो अभी तक हरकत में क्यों नहीं आये?"


बांकेलाल राठौर की नजरें अंधेरे में फिर रही थीं। होंठ भिंचे हुए थे।


“थारा का ख्याल होवो कि देवराज चौहान ने बंसीलाल को 'वड' दयो हो ।”


“हां।” जगमोहन की आवाज़ में दृढ़ता थी-“बंसीलाल अब नहीं रहा।"


देवराज चौहान अब तक अपनी कार में बैठ चुका था।


तभी उन्होंने अंधेरे में कुछ व्यक्तियों को चोरी-छिपे सावधानी से जीप और कार की तरफ बढ़ते देखा।


“बांके - ।" जगमोहन सख्त स्वर में कह उठा- “ये लोग शायद देवराज चौहान का पीछा करने जा रहे हैं और रास्ते में कहीं उसे घेरने की चेष्टा करेंगे। मेरे ख्याल में वो लोग रैस्टोरैंट में हंगामा नहीं करना चाहते होंगे।”


दोनों के हाथों में रिवाल्वर नजर आने लगी। 


“अंम अभ्भी सबो को 'वड' दयो। तो म्हारे बायें हाथ का-।"


"अभी कुछ नहीं करना।" जगमोहन कह उठा-"पहले देवराज चौहान कार से बाहर निकलेगा। उसके बाद ये लोग अपनीअपनी गाड़ियों में पीछे जायेंगे। देवराज चौहान को बाहर निकल लेने दे। उसके बाद इन लोगों की गाड़ियों को बाहर नहीं निकलने देना है। इस तरह देवराज चौहान सुरक्षित बाहर निकल जायेगा। और उन्हें उलझाकर हम चुपचाप यहां से खिसक सकते हैं।" 


"एकोदम फिट बात बोलो हो तुम - ।”


"क्या ?"


“यो ही कि देवराज चौहान कार लेकर निकलो तो इन गाड़ियों की फंको निकालो, गोलियों मारो के-।"


"हां । इस काम में चूकना नहीं रुस्तम राव को भी समझा दो। वो उधर है । "


बांकेलाल राठौर, जगमोहन के पास से हटा और उधर सरक गया, जहां रुस्तम राव मौजूद था।


जगमोहन की निगाह देवराज चौहान की कार पर थीं जो कि स्टार्ट होकर बाहर की तरफ बढ़ गई थी।


***

देवराज चौहान को हर पल लग रहा था कि अभी कुछ हुआ तो अभी हुआ। वो गोदी में रखी रिवाल्वर उठाने को तैयार था । कार स्टार्ट करके पार्किंग से आगे बढ़ाई और रैस्टोरैंट के मेन गेट की तरफ ले गया। गेट पर मुस्तैदी दरबान खड़ा था ।

भीतर प्रवेश करती एक कार की तीव्र रोशनी देवराज चौहान पर पड़ी। जब वो कार बगल से गुजर कर भीतर प्रवेश कर गई तो देवराज चोहान ने कार आगे बढ़ाई और रैस्टोरेंट के मेन गेट से बाहर निकल चला गया। मन ही मन हैरान था देवराज चौहान कि बंसीलाल के आदमियों से उसका जरा भी सामना नहीं हुआ। ऐसे में देवराज चौहान ने यही सोचा कि बंसीलाल के आदमी थापर, जगमोहन वगैरह के पीछे चले गये होंगे।

अभी इस सोच से देवराज चौहान हटा भी नहीं था। कार सड़क पर ही पहुंची थी कि उसके कानों में भीतर होने वाली फायरिंग की अग्वाज पड़ी। पहले तो इक्का-दुक्का ही गोलियां चलीं उसके बाद एकाएक ही फायरिंग की रफ्तार में तेजी आ गई। लोगों की भगदड़ चीखें उसके कानों में पड़ीं !

देवराज चौहान नहीं समझ पाया कि ये गोलियां कैसे चलीं?

"क्या हुआ है भीतर?"

इन हालातों को जानने के लिये रुकना ठीक नहीं था। वो कार आगे बढ़ाता चला गया।

एक पल के लिये देवराज चौहान ने बैक मिरर में देखा तो उसी क्षण आँखें सिकड़ी। देखते ही देखते एक कार रेस्टोरेंट के गेट से बाहर निकली और सड़क पर आकर उसी की तरफ बढ़ने लगी। अंधेरा होने की वजह से देवराज चौहान नहीं जान पाया कि कार में कौन है? कितने लोग हैं? ये भी कोई पक्की बात नहीं थी कि कार वाले उसी के पीछे हों।

दो मिनट बीत गये। पीछे आने वाली कार खास रफ्तार से पीछे आती रही। देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ीं। अब ये जानना जरूरी हो गया था कि कहीं उसका पीछा तो नहीं किया जा रहा। इस विचार के साथ ही देवराज चौहान ने कार की रफ्तार धीमी कर दी। नजरें बैक मिरर पर आती रही।

कुछ ही पलो में उसे इस बात का एहसास हो गया कि पीछे आने वाली कार भी धीमी हो गई है।

देवराज चौहान ने कार की रफ्तार कुछ तेज कर दी तो पीछे वाली कार की रफ्तार भी तेज हो गई।

शक की कोई गुंजाइश नहीं थी कि रैस्टोरेंट से ही वो कार उसके पीछे लग गई थी। इसका मतलब बंसीलाल के आदमी होटल में दंगा करना नहीं चाहते थे। अब उसके पीछे लग गये कि रास्ते में उसे घेर सकें । शायद उन्हें बंसीलाल की मौत की खबर नहीं थी। वरना वो उसके पीछे आने की जरूरत न समझते।

इससे पीछा छुड़ाना जरूरी था। इस सोच के साथ ही देवराज चौहान ने कार की रफ्तार बढ़ा दी।

सड़क पर अन्य वाहन भी थे। हैडलाईटें चमक रही थीं। पीछे वाली कार को भी इस बात का एहसास हो गया था कि आगे वाले को उनके पीछे किए जाने का पता चल गया है।

दोनों कारों की भागदौड़ जारी हो गई। जबकि बीच में अन्य ढेरों वाहन थे। अंधेरा और वाहनों की वजह से कार की रफ्तार भी आसान नहीं थी।

बढ़ानी देवराज चौहान ने तेजी से एक कार को ओवरटेक किया तो तभी सामने मोड़ से टैम्पो मुड़कर सामने आ गया देवराज चौहान ने फुर्ती के साथ कार को साईड से निकाला । वरना टक्कर हो जाती। फिर भी कार का पिछला हिस्सा टैम्पो से टकरा गया। कार जोरों से लड़खड़ाई। फिर संभल गई। देवराज चौहान ने कार को 
उसी मोड़ पर डाल दिया जहां से टैम्पो आया था। कार की रफ्तार पुनः बढ़ गई।

बैक मिरर में देखा। पीछे अब वो वाली कार नहीं थी। देवराज चौहान सावधानी से कार ड्राइव कर रहा था नजर रह-रह कर बैक मिरर पर जा रही थी। तभी बैंक निर में पुनः वो ही कार की हैडलाईटें नजर आने लगीं।

देवराज चौहान के होंठ भिंच गये। इतना समझ गया कि वो आसानी से पीछा छोड़ने वाली नहीं। उसने कार की रफ्तार पुनः तेज कर दी! सामने से आते वाहनों की हेडलाईटों में आंखें चुधिया रही थीं। कीरब दो-तीन किलोमीटर आगे जाने पर देवराज चौहान ने देखा कि सामने ट्रेफिक जाम है। उसने कार की रफ्तार कम करनी शुरू कर दी। पीछे वाली कार बराबर पीछे थी ।

खतरा सिर पर था।

उसकी कार रुकते ही वो चुप नहीं बैठने वाले ।

देवराज चौहान ने आगे नजर मारी। साईड से निकलने का कोई रास्ता नहीं था। आगे कोई एक्सीडेंट हो गया होगा। या कोई दूसरी वजह होगी। जाम बढ़ता जा रहा था।

आगे बस खड़ी थी। देवराज चौहान ने उसके पीछे कार रोकी और फुर्ती के साथ कार का दरवाजा खोलते हुए गोदी में पड़ी रिवाल्वर उठाई और बार निकल कर सड़क पर ही आगे भागता चला गया। बाहनों के बीच में से गुजरने लगा। रिवाल्चर जेब में डाल ली थी कुछ कारें पार करके देवराज चौहान ने दो पल के लिये गर्दन घुमाकर पीछे देखा। वो चार ही आदमी लगे जो पीछे भागते आ रहे थे। देवराज चौहान ने पुनः वाहनों के बीच दौड़ लगा दी। जाम ट्रेफिक में कुछ लोग गाड़ियों में बैठे थे तो कुछ बाहर भी खड़े थे। देवराज चौहान कभी किसी कार से टकराता तो कभी बाहर खड़े व्यक्ति से । वहां चलने के लिये रास्ता नहीं था। जबकि वो दौड़ रहा था। कुछ आगे जाकर देवराज चौहान ने पुनः पीछे देखा . पीछे वाले भी पीछे भाग रहे थे।

वो पीछा नहीं छोड़ने वाले कुछ करके रहेंगे। वरना इस तरह वो खुले में पीछे नहीं दौड़ते। कारों के पास खड़े लोगों ने आवाज मार कर पूछा भी क्या बात है। वो क्यों भाग रहा है ।

देवराज चौहान ने एकाएक भागने का रुख पलटा और वाहनों में से निकल कर सड़क के किनारे की तरफ भागा। उधर पतली गली थी। सड़क छोड़कर देवराज चौहान उस गली में प्रवेश करता चला गया।

अंधेरी गली में देवराज चौहान के दौड़ते कदमों की तेज आवाज गूंजने लगी। कुछ ही क्षणों में देवराज चौहान को पीछे आते अन्य दौड़ते कदमों की आवाज सुनाई देने लगी।

मौत से भरा ये वक्त, दौड़ के साथ जारी था।

सामने गली का मोड़ आ गया था। चंद कदमों का ही फांसला बाकी था कि गोली चलने की तेज आवाज गूंजी। इसके साथ ही देवराज चौहान को गर्म शोले के पास से गुजर जाने का एहसास हुआ। तभी मोड़ आ गया। देवराज चौहान मुड़ा और मुड़ते ही दीवार के साथ चिपक कर खड़ा हो गया। रिवाल्वर हाथ में आ गई। चेहरे पर दरिन्दगी से भरे वहशी भाव थे ।

गली में दौड़ते कदमों की आवाजें, पास आती महसूस हो रही थीं ।

जब आवाजें बेहद करीब लगीं। तभी देवराज चौहान घूमा। गली में देखा। रिवाल्वर वाला हाथ सीधा किया। भागने वाले चार थे। दो आगे। दो पीछे।

देवराज चौहान ने दांत भींचकर दो बार ट्रेगर दबाया। आगे वालों का निशाना लिया।

तेज चीखों के साथ आगे वाले दोनों व्यक्ति छिटक कर इधर-उधर गिर गये। उनकी तड़प और चीखों की आवाजें स्पष्ट सुनाई देने लगीं। इसके साथ ही पीछे वालों ने खुद को फुर्ती से गली की जमीन पर गिरा लिया। गली में घुप्प अंधेरा था। ऐसे में बाकी दचे दोनों का निशाना लेना ठीक नहीं था।

देवराज चौहान पुनः दीवार की ओट में हो गया। उसी वक्त गली से फायर हुआ।

गोली देवराज चौहान को नहीं लगी। वो कुछ सैकण्ड पहले ही ओट में हुआ था।

देवराज चौहान की गोलियों से मरने वाले वो दोनों दोसा और बाटला के खतरनाक आदमी थे और खुद को नीचे गिराने वाले दोसा और बाटला ही थे। बाटला ने देवराज चौहान का निशाना लेने की चेष्टा की थी, परन्तु वो तब तक दीवार की ओट ले चुका था।

दोसा और वाटला के चेहरे मौत भरी क्रूरता से भर चुके थे। “वाटला ।” दोसा गुर्रायां - "उस हरामजादे ने हमारे खास आदमियों को मार दिया।"

"बहुत हिम्पती है।” बाटला दांत पीसते हुए कह उठा- "हमने उसे कम समझा- "

“कुत्ते की मौत मारूंगा कमीने को।"

“मेरी गोली से उसका काम हो जाता अगर वो दीवार की ओट न लेता ।”

“अच्छा हुआ जो बच गया।” दोसा सुलग रहा था- “मैं उसके टुकड़े-टुकड़े करके मारूंगा। हमने आज तक हार नहीं मानी। वो तो वैसे भी अकेला है। पकड़ा गया तो हाथों से टुकड़े अवश्य करूंगा।”

“मुझे तो गड़बड़ लग रही है।” बाटला गुर्रा उठा । “क्या गड़बड़ ?”

“ये कहीं बंसी भाई को टपका तो नहीं आया?”

कुछ पलों की खामोशी के बाद दोसा भिंचे स्वर में कह उठा - । “बंसी भाई अगर टपक चुका है तो फिर इस सुरेन्द्र पाल को खत्म करना बहुत जरूरी है। "

“वो क्यों?”

“बंसीलाल के कई धंधे ऐसे हैं, जिन पर हम कब्जा जमा सकते हैं। किसी की हिम्मत नहीं कि हमारे रास्ते में आये।" कहते हुए दोसा के बाटला पर निगाह मारी- “क्या कहता है?”

“ख्याल बुरा नहीं है। अगर बंसी भाई जिन्दा हुआ तो?" बाटला ने कहा ।

“तो भी सुरेन्द्र पाल को खत्म करना घाटे का सौदा नहीं। बंसी भाई हमें सबसे ज्यादा वफादार मानने लगेगा।"

“यानि कि हर हाल में सुरेन्द्र पाल को खत्म करना है। उसके में बाद देखेंगे कि क्या होता।"

तभी उसके कानों में मध्यम- सी आवाज दौड़ने की पड़ी। 

“वो भाग रहा है?” कहते हुए बाटला उछल कर खड़ा हुआ और भागा ।

दोसा भी खड़ा होकर दौड़ पड़ा।

दोनों गली के बाहर निकले। हाथों में रिवाल्वरें थीं। दूर उन्हें देवराज चौहान दिखा, जो कि अंधेरे में किसी छाया की भांति लग रहा था । 

“वो रहा।"

दोनों तीर की भांति उस तरफ दौड़ पड़े ।

“संभल कर रहना ।” बाटला दौड़ते हुए कह उठा- “वो रिवाल्वर अच्छी चला लेता है । "

“मैं हरामी को भून दूंगा।" छोडूंगा नहीं इसे- । 

कुछ आगे जाकर वो रुके। देवराज चौहान नजर नहीं आ रहा था। 

“कहां गया?” दोसा गुरो उठा। 

“यहीं है। अंधेरे का फायदा उठाकर छिप गया है। यहां से आगे नहीं गया:" बाटला ने दांत भींचकर कहा। 

दोनों की सतर्कता से भरी नजरें हर तरफ घूमने लगीं। एक तरफ गलियां थीं। सड़क पार दूसरी तरफ बहुमंजिला फ्लैट बने हुए थे। अपार्टमैंट थे। 

“साला कुत्ता कहीं बच न जाये ।”

“अंधेरे का फायदा मिल रहा है हरामी को । वरना अब तक तो उपका दिया होता।" दोसा दरिन्दगी भरे स्वर में कह उठा । 

"दोसा!"

"हूँ।"

“तू उधर देख।” वाटला हाथ में पकड़ी रिवाल्वर पर हाथ फेरता हुआ भयानक स्वर में कह उठा- "मैं उधर देखता हूं।"



“हमारा अकेले-अकेले होना ठीक नहीं। वो इस बात का फायदा उठा लेगा। आसानी से हमारा निशाना- ।”

“हम साथ-साथ रहेंगे तो उसे अंधेरे का फायदा उठाकर,
निकलने का मौका मिल जायेगा। क्या कहता है ?” 

“ठीक है। तू उधर जा। मैं उधर - ।"

बाटला ने कुछ कहने के लिये मुंह खोला कि तभी सामने वाली गली से फायर हुआ। गोली उनके पास से निकल गई। 

“कुत्ता उधर है। गली में।" कहने के साथ ही दोसा रिवाल्वर थामे उस तरफ दौड़ा।

तभी उधर से एक गोली आई। उस तरफ दौड़ते दौसा को तो नहीं लगी। लेकिन बाटला के पेट में जा लगी। बाटला की चीख गूंजी। रिवाल्वर उसके हाथ से छूट गई और नीचे गिर कर तड़पने लगा।

को दोसा तुरन्त समझ गया कि बाटला टपक गया। उसने खुद फौरन नीचे गिरा लिया और उस गली की तरफ रियाल्चर करके ट्रेगर दबा दिया। फायर का धमाका हुआ। जवाब में कोई आवाज नहीं गूंजी। उसी पल गली की तरफ से गोली आई। जो कि नीचे पड़े दोसा के सिर के पास जमीन में जा धंसी बाल-बाल बचा वो । दोसा ने रिवाल्वर सीधी की और पुनः ट्रैगर दबा दिया। गोली खाली गई। जवाब में गली की तरफ से फायर हुआ। मगर दोसा इस बार भी बच गया। गोली उसके पैर के पास जमीन में लगी। वो खुले में अवश्य था, परन्तु अंधेरे में नीचे लेट जाने का उसे भरपूर फायदा मिल रहा था। और ये सब होते रहना, शायद दोसा जैसे हत्यारे के लिये बर्दाश्त करना कठिन हो गया था। एकाएक वो गुर्राकर उठा और रिवाल्वर थामे उस गली की तरफ दौड़ पड़ा। 

“हरामजादे।” दोसा पागलों की तरह चीखा- “मैं तुझे जिन्दा नहीं छोडूंगा।"

बिल्कुल निशाने पर था दोसा।

पास आता जा रहा था वो । 

देवराज चौहान ने हाव-भाव में दरिन्दगी समेटे रिवाल्वर वाली बांह सीधी की और ट्रेगर दबा दिया। झलक पा ली होगी दोसा ने देवराज चौहान की हरकत की। भागते हुए वो थोड़ा सा लहराया। गोली कंधों को रगड़ देती हुई निकलती चली गई। दांत भींचे देवराज चौहान ने पुनः ट्रैगर दबाया।

परन्तु इस बार फायर की आवाज नहीं गूंजी। खाली चैम्बर के खड़कने का स्वर कानों में पड़ा।

चैम्बर का लीवर बजने की आवाज पास पहुंच चुके दोसा के कानों तक जा पहुंची थी। दोसा फौरन ठिठक गया पास के मकान से आती मध्यम-सी रोशनी में दोसा के चेहरे की झलक मिली। जहां वहशी चमक ठाठे मार रही थी ।

देवराज चौहान दरिन्दगी भरी निगाहों से दोसा को देख रहा था। दोनों की निगाहें मिलीं ।

दोसा हंसा । हंसी की आवाज गूंजी। आगे के टूटे दांतों की वजह से उसका चेहरा भी भयानक हो उठा।

“हो गया काम । धोखा दे गई रिवाल्वर ।” दोसा इस वक्त वास्तव में वहशी लग रहा था - “अब मारूंगा तुझे।"

आसपास बने घरों से लोग बाहर झांकने शुरू हो गये थे। परन्तु लोगों की परवाह ही किसे थी।

"खतरनाक से खतरनाक लोगों से मेरा वास्ता पड़ा।" दोसा उसी लहजे में कह रहा था- “लेकिन तू उनसे कुछ जुदा ही निकला। वरना दोसा को इतनी भागदौड़ कभी नहीं करनी पड़ी किसी की जान लेने के लिये । गोली अच्छी चला लेता है तू। लेकिन चैम्बर ही खाली हो जाये तो फिर ट्रैगर ही किस काम का।"

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