‘द वॉचमैन’ का कॉन्फ्रेंस हॉल भी बाकी के ऑफिस की तरह खूब सजा-धजा था। सीलिंग के साथ एक प्रोजेक्टर लटक रहा था, जिसका फोकस सामने दीवार पर टंगे खूब बड़े वाइट बोर्ड पर जान पड़ता था। फर्श पर खूब मोटा कारपेट बिछा था। हॉल के बीचों बीच एक बड़ी सी गोलाकार मेज रखी थी, जिसके दोनों तरफ कई कुर्सियां मौजूद थीं।
उस घड़ी हॉल में पार्थ सान्याल और वंशिका भौमिक के अलावा जो लोग मौजूद थे, उनमें सबसे ज्यादा उम्र, चालीस साल का, कबीर दुग्गल था, दूसरा आदर्श पाण्डेय; दोनों फील्ड वर्क के एक्सपर्ट थे। तीसरा एडवोकेट अमन सोनी, और चौथा सदस्य उम्र में सबसे छोटा युग जौहर था, जो कि साइबर मामलों का एक्सपर्ट था। उसका दावा था कि वह उन तमाम जगहों पर सेंध लगा सकता था, जो कि किसी ना किसी नेटवर्क से जुड़े हुए थे।
असल में ‘द वॉचमैन’ ट्रेंड जासूसों की एक फर्म थी, जिसका मालिक पार्थ सान्याल था। युग जौहर को छोड़कर वहाँ मौजूद सभी लोगों के पास न सिर्फ हथियार रखने का लाइसेंस था, बल्कि पार्थ सान्याल के सौजन्य से सबके पोजेशन में पॉइंट 22 कैलिबर की एक-एक रिवाल्वर भी थी, जिसे ‘निडर’ के नाम से जाना जाता था।
पार्थ के अलावा उस वक्त तमाम लोग एक बड़ी सी मेज के इर्द-गिर्द रखी कुर्सियों पर बैठे हुए थे, जबकि वह खड़ा था। उसके दोनों हाथों की हथेलियां मेज पर टिकी थीं, और चेहरा सामने बैठे लोगों की तरफ।
“मैं जानता हूँ।” वह बिना किसी भूमिका के बोला।
सुनकर सब हैरानी से उसकी शक्ल देखने लगे, क्योंकि बात तो अभी कोई हुई
ही नहीं थी वहाँ, ऐसे में पार्थ का ये कहना कि ‘मैं जानता हूँ’ उन सब को चौंका गया।
“मैं ये जानता हूँ कि....।” वह आगे बोला – “आप सभी आजकल बहुत बिजी हैं। एक साथ दो-दो मामले हैंडल कर रहे हैं, और अब एक तीसरा केस भी हमारे हाथ में है, जिस पर हमें कल सुबह से काम शुरू करना ही पड़ेगा।”
“ओह नो।” युग जौहर रो देने वाले अंदाज में बोला – “ये तो सरासर जुल्म है बॉस। मैं चाहूँ तो लेबर कोर्ट में आपके खिलाफ शिकायत दर्ज करा सकता हूँ।”
“हासिल क्या होगा बच्चे?”
“कोर्ट आपको नोटिस जारी करेगा, जिसके बाद आपको अदालत की हाजिरी भरनी पड़ेगी। बल्कि कोई जुर्माना वगैरह भी ठोंक दिया जाये तो बड़ी बात नहीं होगी। यानि नुकसान तो आपका हर हाल में होकर रहना है।”
“और ये सब होते-होते कितना वक्त लग जायेगा?”
“इस बारे में तो वकील साहब ही बता सकते हैं।” कहकर उसने अमन सोनी की तरफ देखा – “जवाब दीजिए सर।”
“नोटिस जारी होने में कम से कम भी एक महीना। आगे पेशी की नौबत आते आते दो महीने और लग जायेंगे।” सोनी मुस्कराता हुआ बोला – “और कहीं आपने मुझ जैसा कोई काबिल वकील हॉयर कर लिया तो साल दो साल मामले को लटकाये रखने की गारंटी अभी से किये देता हूँ।”
“सुना मिस्टर युग जौहर?” पार्थ ने पूछा।
“जी सुना।”
“मेरा जो होगा वह होते-होते होगा, बल्कि कोर्ट का फैसला आने के बाद होगा, लेकिन तुम्हारी प्रॉब्लम्स फौरन बढ़नी शुरू हो जायेंगी। इधर तुमने कंप्लेन की नहीं कि उधर मैंने तुम्हारा वर्कलोड बढ़ाया नहीं। दस गुणा बोझ लाद दूँगा तुम्हारे कंधों पर, फिर खटते रहना दिन भर गधों की तरह।”
“मैं....मैं तो मजाक कर रहा था सर।”
“दैट्स गुड, मैंने भी मजाक ही समझा था, नाओ कम टू द प्वाइंट।” उसका लहजा कदम से बदल गया – “आगे आप लोगों ने करना ये है कि अपने मौजूदा काम को जारी रखते हुए रोजाना बस दो घंटा हमारे इस नये केस को देना है। वह वक्त आप अपनी सहूलियत के अनुसार चुन सकते हैं। मतलब ये कि जब भी फुर्सत मिले तीसरे केस पर काम करना शुरू कर देना है।”
“ये तो गलत होगा पार्थ।” कबीर दुग्गल बोला – “हमने आज तक अपने क्लाइंट को जानबूझकर कभी नहीं लटकाया होगा, जबकि महज दो घंटे का वक्त केस को देने का मतलब होगा कि हम लापरवाही बरत रहे हैं, यूँ हमारी फर्म का
नाम खराब होगा।”
“हरगिज भी नहीं होगा, क्योंकि दो घंटों का वक्त आप लोगों से मांगा है मैंने, जबकि खुद इस केस पर मैं रोजाना सोलह घंटे देने वाला हूँ। उन हालात में हमारे क्लाइंट का कोई नुकसान नहीं होगा, ना ही हम गैरजिम्मेदार माने जायेंगे।”
“जब आप खुद फील्ड में होंगे सर तो किसी और की जरूरत ही क्या रह जायेगी।” आदर्श पाण्डेय बोला – “अपने पीछे आप जानने लायक छोड़ते ही क्या हैं?”
“बहुत कुछ छूट जाता है आदर्श। ‘द वॉचमैन’ द्वारा सॉल्व किये मामलों की फाइल पलटना शुरू करोगे तो पता लगेगा कि दर्जनों बार तुम लोग मुझे गलत साबित कर चुके हो। एक बात हमेशा याद रखना, हमारे धंधे में कोई कितना भी धुरंधर क्यों न हो, परफेक्ट नहीं हो सकता। चीजों को देखने और नतीजे निकालने का सबका नजरिया अलग-अलग होता है। इसी तरह दो जासूसों के लिए किसी एक ही सूत्र के जुदा मायने हो सकते हैं, क्योंकि सबका दृष्टिकोण एक नहीं हो सकता, समझ गये?”
“यस सर।”
“केस लॉग इन होने के बाद हमेशा की तरह उसकी अपडेट हमारे एप्प के जरिये सबको मिलती रहेगी। और इंवेस्टिगेशन के दौरान हम जिधर का भी रूख करेंगे उसकी जानकारी एडवांस में वहाँ अपलोड कर देंगे, ताकि गलती से भी दो लोग किसी एक ही शख्स से मिलने न पहुँच जायें, क्योंकि वक्त की हमारे पास पहले से ही बहुत कमी है।”
“हम समझ गये सर, आप आगे बढ़िए।” वंशिका बोली।
तत्पश्चात पार्थ ने केस के बारे में शुभांगी बिड़ला से हासिल तमाम जानकारी उनके आगे दोहराने के बाद बोर्ड पर मोटे अक्षरों में ‘सत्यप्रकाश अंबानी’ लिख दिया- “यह नाम हमारे नये असाइनमेंट का केंद्रबिंदु है, और आगे हमें इससे जुड़े लोगों के बारे में जानकारी हासिल करनी है। क्लाइंट ने जो जानकारियां दी हैं, उनको ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ने के लिए हमारे सामने छ: ऐसे लोग हैं, जिन्हें सस्पेक्ट का दर्जा दिया जा सकता है।” कहकर उसने नीचे एक एरो बनाया फिर लिखा- ‘शीतल अंबानी’ – “ये सत्यप्रकाश की छब्बीस वर्षीया बीवी है, जो कि अपने पति से बाईस साल छोटी है। यानि संभावनाओं के द्वार पहले से ही खुले दिखाई दे रहे हैं।” फिर उसने लेफ्ट साइड में एक एरो खींचा और ‘आकाश’ लिखकर बोला – “ये मिस्टर अंबानी का छोटा भाई है, उम्र तीस साल है। इसलिए हो सकता है कि शीतल और इसके बीच कोई खास संबंध निकल आये। इसी तरह उसने मौर्या, राणे और मजूमदार के नाम लिखकर उनके बारे में शुभांगी से हासिल जानकारी कह सुनाई फिर सबसे आखिर में ‘अनंत गोयल’ लिखकर बोला – “यह वो शख्स है, जिस पर हमें सबसे ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है, क्योंकि क्लाइंट की मानें तो वह फरार है।”
“मतलब ये कि मिस्टर अंबानी पर हमला करने के बाद जब उन्हें जिंदा बच गया पाया...।” वंशिका भौमिक बोली – “तो पकड़े जाने के डर से भाग निकला?”
“अभी ये बात गारंटी के साथ नहीं कही जा सकती। आदमी का बच्चा सौ वजहों से कुछ देर के लिए या कुछ दिनों के लिए गायब हो सकता है, उसी तरह अनंत गोयल भी हुआ हो सकता है।” कहकर वह क्षण भर को रुककर बोला – “अब मैं काम बांटने जा रहा हूँ, सब लोग ध्यान से सुनें। आकाश अंबानी और शीतल अंबानी से क्योंकि एक ही जगह मुलाकात हो जानी है इसलिए उनसे जो पूछताछ करनी होगी मैं खुद करूंगा।”
“ये तो गलत बात है बॉस।” आदर्श पाण्डेय बोला।
“अच्छा? क्या गलत है इसमें?”
“यही कि केस में जो भी खूबसूरत लेडी होती है, उसको टटोलने का काम आप खुद करना शुरू कर देते हैं, और हमें मर्दों के पीछे भगाने लगते हैं।”
उस बात पर एक सम्मिलित ठहाका गूंजा।
“मैंने कहा वह खूबसूरत है?”
“होगी ही, क्योंकि उम्रदराज और दौलतमंद खाविंदों की कम उम्र बीवियां हमेशा खूबसूरत ही होती हैं, तभी तो अपनी अक्ल के मुहाने पर खुद पत्थर रखकर वह शादी कर बैठते हैं।”
“एनी वे।” पार्थ उसकी बात को नजअंदाज कर के बोला – “निशांत मौर्या से पूछताछ वंशिका करेगी, विक्रम राणे को दुग्गल साहब टटोलेंगे, मजूमदार से मिलने तुम जाओगे, और पुलिस जांच किस दिशा में आगे बढ़ रही है; इसकी खबर हमें सोनी साहब लाकर देंगे।”
“देखा फंसा दिया न मुझे।” पाण्डेय भुनभुनाया।
“अनंत गोयल के बारे में भूल गये सर?” वंशिका ने पूछा।
“सॉरी, मैं सच में भूल गया था। ठीक है, दुग्गल साहब, राणे और मजूमदार दोनों से मिलेंगे, और आदर्श, अनंत गोयल का पता लगाने की कोशिश करेगा। हमेशा की तरह इस केस में भी हम हर रात नौ बजे यहाँ इकट्ठे होंगे और आपस में नोट एक्सचेंज करेंगे। बीच में आलू खरीदते वक्त अगर किसी को बैगन का रेट पता लग जाता है तो वह फौरन अपनी जानकारी को ‘द वॉचमैन’ के सॉफ्टवेयर पर अपलोड कर देगा, ताकि दूसरे इंवेस्टिगेटर्स को उसका फायदा पहुँच सके।”
“यस सर।” सब समवेत स्वर में बोले।
“युग जौहर हमेशा की तरह तमाम सस्पेक्ट्स के बीच कोई लिंक खोजने की कोशिश करेगा, जिसके लिए मोबाइल नंबर हम इसे मुहैया करायेंगे।” कहकर उसने पूछा – “एनी क्वेश्चन?”
“नो सर।”
“एड्रेस?” वंशिका ने पूछा।
जवाब में पार्थ ने अपने मोबाइल में खींची गयी नोट पैड की एक तस्वीर ओपन कर के उसे प्रोजेक्टर के साथ कनेक्ट कर दिया, जिसमें इस बात का जिक्र था कि किस सस्पेक्ट तक कैसे पहुँचा जा सकता था। और वह जानकारी उसे शुभांगी से हासिल हुई थी।
सब लोग अपने-अपने मतलब की बातों को नोट करने में जुट गये।
बाईस जुलाई 2022
सुबह दस बजे पार्थ सान्याल अंबानी हाउस पहुँचा।
गेट पर खड़े गार्ड्स से उसने शीतल या आकाश अंबानी से मिलने की बात कहते हुए अपना परिचय दिया, जिसके बाद एक गार्ड ने अपने केबिन में पहुँचकर वहाँ लगे फोन से भीतर उस बात की खबर कर दी।
पांच मिनट बाद एक नौकर गेट पर पहुँचा और उसे अपने साथ भीतर लिवा ले गया।
शीतल और आकाश उस वक्त ड्राइंगरूम में बैठे चाय पी रहे थे।
“आइए मिस्टर पार्थ।” शीतल बोली – “बैठिए।”
“थैंक यू।”
“कहिए कैसे आना हुआ?”
“आपसे, बल्कि आप दोनों से मिलने आया हूँ।”
“वजह?”
“आपके हस्बैंड पर हुआ कातिलाना हमला।”
“आप का उससे क्या लेना देना?” उसने हैरानी से पूछा।
“लगता है शुभांगी जी ने आपको बताया नहीं।”
“क्या नहीं बताया?” वह थोड़ा सकपका गयी।
“यही कि उन्होंने इस मामले की जांच हमारी एजेंसी को सौंप दी है।”
सुनकर शीतल और आकाश एक-दूसरे की शक्ल देखने लगे।
“मैडम को इस बात का भी डर है कि अपराधी फिर से अंबानी साहब की
जान लेने की कोशिश कर सकता है, इसीलिए वह कोई लापरवाही नहीं बरतना चाहतीं।”
“आप क्या करेंगे, पिस्तौल लेकर अस्पताल में उनके सिरहाने बैठ जायेंगे?” आकाश ने पूछा।
“नहीं, उससे बेहतर कुछ करूंगा।”
“क्या?”
“हमलावरों का पर्दाफाश कर दूँगा। वह गिरफ़्तार हो गये तो अंबानी साहब के सिर पर मंडराता खतरा खुद ब खुद दूर हो जायेगा।”
“आप मिले कब शुभांगी से?”
“कल रात वह खुद हमारे ऑफिस आई थीं।”
“वो तो पुलिस के पास गयी थी?”
“हो सकता है वहाँ भी गयी हों।” पार्थ उकताता हुआ बोला – “आप दोनों को अगर मेरे कहे पर कोई शक है तो पहले उन्हें फोन कर के दरयाफ्त क्यों नहीं कर लेते?”
“उसकी कोई जरूरत नहीं है।” शीतल बदले हुए स्वर में बोली – “वैसे भी अच्छा ही हुआ जो आप अभी यहाँ पहुँच गये, वरना मैं और आकाश किसी प्राइवेट डिटेक्टिव को हॉयर करने के लिए बस निकलने ही वाले थे। मालूम पड़ता कि एक ही केस दो लोगों को सौंप दिया जाता।”
“फिर तो सच में अच्छा हुआ मैडम। अब अगर इजाजत दें तो मैं वह काम कर लूं, जिसके लिए यहाँ पहुँचा हूँ।”
“हाँ प्लीज।”
“किसने किया?”
“क्या किसने किया?”
“हमला, आपके पति पर?”
“ऐसे पकड़ते हैं आप अपराधियों को, घर के लोगों से उसका नाम पूछकर? और आपको क्या लगता है, हम जानते होंगे उनके बारे में?”
“नहीं, मालूम होता तो अब तक आप पुलिस को जरूर बता चुकी होतीं। मैं तो बस आप दोनों का नजरिया जानना चाहता हूँ; किसी पर कोई शक, कोई दुश्मनी, कुछ ऐसा, जिसके कारण कोई अंबानी साहब का दुश्मन बन बैठा?”
“कहना मुश्किल है, लेकिन बड़ी रंजिश किसी के साथ नहीं थी।”
“छोटी मोटी ही बता दीजिए।”
जवाब में आकाश ने मौर्या, राणे और मजूमदार का नाम ले दिया, मगर ये फिर भी नहीं बताया कि उनके साथ उसके भाई की दुश्मनी क्या थी। वह एक ऐसी बात को छिपाने की कोशिश कर रहा था, जिसके बारे में शुभांगी पहले ही सब-कुछ पार्थ को बता चुकी थी।
“मुझे नहीं लगता कि….।” शीतल बोली – “मामूली सी रंजिश के कारण कोई किसी की जान लेने की कोशिश कर सकता है।”
“आप अपनी जगह पर सही हो सकती हैं मैडम, मगर अपराध के लिए वजह से ज्यादा इंसान की उस वक्त की मानसिक हालत जिम्मेदार होती है। जैसे कि अभी कोई मुझे गाली दे दे तो मैं बदले में उसे गाली देकर अपने मन की भड़ास निकाल लूंगा, लेकिन किसी मजबूरी के चलते अगर वह भड़ास बाहर नहीं आ पाई तो मैं मन ही मन कुढ़ने लग जाऊंगा। उस शख्स से बदला लेने के मंसूबे बांधने लगूंगा, जो कि गुजरते वक्त के साथ अपने आप जेहन से निकल जायेगा, किंतु नहीं निकला तो आगे मैं जो न कर बैठूं वही कम होगा, भले ही मेरे गुस्से की वजह बेहद छोटी थी। कहने का मतलब ये है कि सब-कुछ हमारी मानसिक हालत पर डिपेंड करता है।”
“कुल मिलाकर आप ये कहना चाहते हैं कि हमलावर उन तीनों में से भी कोई रहा हो सकता है?”
“हो सकता है, नहीं भी हो सकता। फिर आप उस चौथे शख्स को क्यों भूल जाती हैं, जो कि फरार है, है न? या वापिस आ गया?”
“कौन?” दोनों एक साथ पूछ बैठे।
“अनंत गोयल, अंबानी साहब का पीए।”
“दिखाई तो नहीं दिया फिर से वह, लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं है कि वह फरार हो गया है?”
“वह बाद की बात है, मगर अभी तो उसे फरार ही माना जायेगा। एनी वे, आप मुझे बतायेंगे कि आखिरी बार उसे कब देखा था?”
“परसों सुबह नौ बजे तक तो वह हमारे साथ हॉस्पिटल में ही था।” जवाब आकाश ने दिया – “उसके बाद हम चाय पीने रेस्टोरेंट में गये, जहाँ से वह ये कहकर निकला था कि वॉशरूम जा रहा है, मगर वापिस नहीं लौटा। हम क्योंकि पहले ही बहुत परेशान थे इसलिए उस तरफ ज्यादा ध्यान भी नहीं दिया।”
“बाद में ऑफिस फोन कर के पता करने की कोशिश नहीं की?”
“नहीं।” शीतल बोली – “पार्थ साहब, आप हमारी स्थिति को समझ नहीं पा रहे हैं। मेरे हस्बैंड हॉस्पिटल में हैं, ऐसे में मैं उनकी चिंता करूं कि इस बात पर सिर धुनने बैठ जाऊं कि उनका पीए कहाँ चला गया?”
“जाहिर है आपको अपने हस्बैंड के बारे में ही सोचना चाहिए, मगर अभी मेरे कहने पर एक बार ऑफिस फोन लगाइए और दरयाफ्त कीजिए कि वह वहाँ
पहुँचा था या नहीं?”
शीतल ने आकाश की तरफ देखा- “पता करो।”
जवाब में उसने मोबाइल उठाकर ऑफिस के रिसेप्शन पर फोन किया फिर गोयल के बारे में दरयाफ्त करने के बाद कॉल डिसकनेक्ट करता हुआ बोला- “नहीं पहुँचा।”
“उसकी अंबानी साहब के साथ कैसी निभ रही थी?” पार्थ ने सवाल किया।
“नौकर और मालिक में निभने जैसी क्या बात हो सकती है? मगर रहा सब-कुछ अच्छा-अच्छा ही होगा, तभी तो सुबह उसने भैया को अस्पताल पहुँचाने में एक पल का भी वक्त जाया नहीं किया, वरना हम तो बस सोचते ही रह गये होते क्योंकि उनकी हालत देखकर हमें ये हरगिज भी नहीं सूझने वाला था कि वह जिंदा भी हो सकते थे।”
“लेकिन उसे सूझा था?”
“पता नहीं, लेकिन जिस तरह का फॉस्ट एक्ट उसने कर के दिखाया, उससे तो यही लगा कि किसी तरह उसे भाई साहब की साँसें चलती होने का आभास मिल गया था।”
“और ऐसा आदमी अब गायब है, जबकि उसने ईनाम के काबिल काम कर के दिखाया था। इस बात की बधाइयां बटोर सकता था कि उसी की तत्परता के कारण ही अभी तक अंबानी साहब जिंदा हैं।”
“अब जो बात हमें मालूम ही नहीं है, उसके बारे में घुमा-फिराकर पूछें या सीधा सवाल करें; हम क्या बता सकते हैं आपको?”
“अनंत के बारे में कोई खास बात, जो सिर्फ आप लोगों को मालूम हो?”
शीतल सोच में पड़ गयी, आकाश ने भी बराबर का दिखावा किया।
“एक लड़की के साथ...।” थोड़ी देर बाद वह बोली – “अनंत की लंबे समय से कोर्टशिप चल रही है। उससे शादी भी करना चाहता है, मगर बात इसलिए नहीं बन रही क्योंकि लड़की बड़े बाप की औलाद है।”
“नाम?”
“काव्या अग्रवाल।”
“और उसके बाप का, जो कि बड़ा आदमी है?”
“अनिरूद्ध अग्रवाल, एमपी है।”
“काव्या के जिक्र के पीछे कोई खास वजह?”
“नहीं है। आपने पूछा कि क्या हम उसके बारे में कुछ ऐसा जानते हैं, जो किसी और को नहीं पता हो सकता तो बता दिया। वैसे इस बात की उम्मीद बराबर है कि अनंत के वर्तमान ठिकाने की जानकारी उस लड़की को जरूर
होगी।”
“और कुछ?”
शीतल हिचकिचायी।
“मैडम प्लीज, मामले की गंभीरता को समझने की कोशिश कीजिए।”
सुनकर शीतल हौले से सिर हिलाती हुई बोली- “बातों ही बातों में एक रोज उसने आकाश से कहा था कि अगर किसी तरह पचास लाख रूपये एकमुश्त उसके हाथ लग जायें तो वह काव्या से शादी करने में कामयाब हो जायेगा।”
“कहीं ऐसा तो नहीं कि वह आकाश साहब से इशारों ही इशारों में ये कहने की कोशिश कर रहा हो कि ये उसे पचास लाख रूपये उधार दे दें?”
“हो सकता है, मगर खुल कर भी कहता तो ये उसकी कोई मदद शायद ही कर पाया होता। वैसे भी पचास लाख बहुत बड़ी रकम होती है पार्थ साहब, कैसे ये अनंत पर यकीन कर सकता था कि बाद में वह रूपये लौटा ही देगा?”
“ठीक कह रही हैं आप।” कहकर पार्थ ने पूछा – “बाद में कहीं और से उतनी दौलत उसके हाथ लग गयी हो? मेरा मतलब है क्या उस बारे में आप दोनों को कुछ पता है?”
“नहीं, लेकिन एक बात ऐसी जरूर है, जो हम दोनों के ही मन में खटक रही है।”
“क्या?”
“अट्ठारह जुलाई को।” कहकर उसने देवर की तरफ देखा – “अट्ठारह ही थी न आकाश?”
सुनकर वह समझ ही नहीं पाया कि शीतल उससे किस बारे में पूछ रही थी।
“हाँ अट्ठारह ही थी।” जवाब शीतल ने खुद ही दे दिया – “तभी तो हम मेहमानों की लिस्ट बनाने में लगे हुए थे। उस दिन सत्य की तबियत थोड़ी खराब थी पार्थ, और किसी खास वजह से उन्हें साठ लाख के कैश की जरूरत पड़ गयी। जरूरत क्या थी, हम नहीं जानते, मगर उन्होंने जब हमारे पास मौजूद कैश के बारे में सवाल किया तो कुल जमा बीस लाख रूपये ही हो पाये, तब सत्य ने आकाश को बैंक भेजा ताकि बाकी की रकम ये वहाँ से हासिल कर पाता।”
“बाकी की रकम...यानि की चालीस लाख। इतना कैश मिल जाता है बैंक से एकमुश्त?”
“मांग करने वाला अंबानी परिवार का कोई सदस्य हो तो क्यों नहीं मिल जायेगा?”
“सॉरी, ये तो मैं भूल ही गया था। आप आगे बताइए।”
“रूपये लेकर आकाश वापिस लौटा तो घर में मौजूद बीस लाख रूपये भी
उसके साथ मिला दिये गये। फिर सत्य ने अनंत को फोन कर के यहाँ बुलाया और ब्रीफकेस में रखी वह पूरी रकम, जिनमें से ज्यादातर दो हजार के नोट थे, उसके हवाले कर के किसी को डिलीवर करने भेज दिया।”
“और अब आप सोच रही हैं कि कहीं उस रकम को वह खुद ही तो नहीं डकार गया, और उसी वजह से अगली रात उसने अपने एम्प्लॉयर पर हमला कर दिया ताकि बाद में उस दौलत की वसूली न की जा सके।”
“मन में संदेह बराबर आ रहा है, मगर जब अनंत की सूरत याद आती है तो लगने लगता है कि नहीं, वह ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि पहले भी इस तरह की बड़ी रकम हैंडल कर चुका होगा।”
“होगा?”
“हाँ होगा, क्योंकि हमें ऐसे किसी मामले की कोई जानकारी नहीं है, मगर सत्य के साथ सालों से काम कर रहा है तो जाहिर है कई बार इस तरह के मौके उसके हाथ लगे होंगे।”
“मगर पैसों की जरूरत तो उसे अब पड़ी थी, क्योंकि वह काव्या से शादी करना चाहता था। इसलिए ये भी तो हो सकता है कि सिर्फ इस बार ही उसने अमानत में ख्यानत करने का फैसला कर लिया हो?”
“असल में क्या हुआ था ये तो अनंत ही जानता होगा पार्थ, हम तो बस अटकलें ही लगा सकते हैं।”
“जो कि बेवजह नहीं कहा जा सकता। बॉस के जिंदा बच जाने की खबर सुनते ही उसका भाग निकलना भी इस तरफ मजबूत इशारा कर रहा है कि उसने कोई न कोई गड़बड़ जरूर की थी।”
“हो सकता है की हो, मगर उसका पता भी तो आपको ही लगाना होगा।”
“जरूर लगाऊंगा मैडम, और वैसा करने में मुझे कोई ज्यादा वक्त भी नहीं लगने वाला।”
“ये तो और भी अच्छी बात है।”
“लेकिन पूछताछ तो हर किसी से करनी पड़ती है, उसके बिना असल अपराधी तक कैसे पहुँचा जा सकता है।”
“मैं समझ सकती हूँ।”
“गुड, तो अब एक निजी सवाल पूछने की इजाजत दीजिए।”
“मत पूछिए।” शीतल बोली – “मैं वैसे ही जवाब दिये देती हूँ। नहीं, मेरे और सत्य के बीच कोई अनबन नहीं है। हम दोनों नार्मल हस्बैंड-वाइफ हैं, फिर हमारी शादी को अभी महज दो साल हुए हैं। इतने छोटे से वक्फे में किसी तकरार की उम्मीद भी नहीं की जा सकती।”
“थैंक यू। सुना है आपके और अंबानी साहब के उम्र में बड़ा फर्क है?”
“ठीक सुना है, वह मुझसे तेईस साल बड़े हैं।”
“फिर भी आपने ब्याह रचा लिया। कोई खास वजह?”
“हाँ थी, और वह वजह ये थी कि मुझे अपने लिए कम उम्र के जीवनसाथी तो सैकड़ों मिल सकते थे, मगर सत्य जैसी फाइनेंसियल सिक्योरिटी उनमें से कोई नहीं दे सकता था। मैं मिडिल क्लास फेमिली से बिलांग करती हूँ पार्थ, जिनके लिए पैसों के बहुत मायने होते हैं। समझ लीजिए कि मैं सत्य की दौलत का रौब खा गयी। फिर भी आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि रिश्ता मेरे माँ-बाप लेकर नहीं आये थे सत्य के पास, आ भी नहीं सकते थे क्योंकि उनकी हैसियत बहुत बड़ी थी, मगर जब वह खुद एक दिन हमारे घर पहुँच गये तो मेरे माँ-बाप ने फैसला मेरे हाथ में छोड़ दिया। तब मैंने सोच विचार किया और इसी निश्चय पर पहुँची कि तेईस साल बड़े आदमी से शादी करने में कोई बुराई नहीं थी।”
“कोई औलाद नहीं हुई अभी तक?”
“हो सकती थी, मगर सत्य अभी ऐसा नहीं चाहते हैं।”
“हमला कब किया गया, मेरा मतलब है वक्त का कोई अंदाजा है आपको?”
“एक से सात के बीच में कभी भी। एक से पहले इसलिए नहीं क्योंकि पौने एक बजे तक तो सत्य मेरे साथ यहीं ड्राइंगरूम में बैठे ड्रिंक कर रहे थे, और सुबह सात बजे मैं जग गयी थी, तब तक घटना घटित हो भी चुकी थी।”
“आप उनके साथ ही थीं कमरे में?”
“काश होती, मगर नहीं थी।” कहकर उसने नशे में सोफे पर सो जाने वाली कहानी उसे सुना दी।
“रात को कोई आवाज वगैरह नहीं सुनाई दी आपको?”
“नहीं।”
“किसी और ने कुछ सुना हो, आकाश साहब आपने?”
“नहीं। मैं दो बजे तक जगा रहा था, तब तक कुछ हुआ होता तो जरूर सुनाई दे जाता, मगर उसके बाद मैं गहरी नींद के हवाले हो गया क्योंकि बुरी तरह थका हुआ था।”
“पुलिस आई थी यहाँ?”
“जी हाँ।”
“कुछ हाथ लगा उनके?”
“नहीं। इकलौती जो चीज उनका भला कर सकती थी, वह थी यहाँ की सीसीटीवी फुटेज, जो कि पहले ही कोई उड़ा ले गया था।”
“कैसे?”
“सर्विलांस रूम बाहर सर्वेंट क्वार्टर्स के साथ जुड़े एक कमरे में है, वहाँ के कंप्यूटर की हॉर्ड डिस्क चोरी हो गयी है।”
“आपका मतलब है हमलावर उसे अपने साथ ले गया?”
“और कौन लेकर जायेगा?”
“ताला तोड़कर?”
“नहीं, उस कमरे को ताला नहीं लगाया जाता था।”
“गार्ड्स ने कुछ नहीं देखा?”
“नहीं।”
“नौकरों ने?”
“उन्हें भी कुछ नहीं मालूम, मैं हर एक से पूछताछ कर चुका हूँ।”
“नौकर रात के वक्त बाहर ही होते हैं?”
“मेड को छोड़कर सब बाहर होते हैं।”
“मेड कौन?”
“सुमन नाम है, अभी मार्केट गयी है।”
“उसने भी कुछ नहीं देखा?”
“नहीं ही देखा होगा, वरना क्या चुप रह जाती?”
“जो कि बेहद हैरानी की बात है। आप लोगों ने तो खैर ड्रिंक कर रखा था, इसलिए गहरी नींद में रहे होंगे, मगर वह लड़की; क्या वह भी नशे में थी?”
“उन्नीस की रात को नशे में थी या नहीं, मैं पक्के तौर पर नहीं बता सकती, मगर घर में जब भी कोई पार्टी होती है, एकाध पैग लगाने से बाज नहीं आती वह। बल्कि बाकी नौकरों का भी वही हाल है। कम से कम इस मामले में तो हमारी तरफ से उन पर कोई पाबंदी आयद नहीं होती।”
“खैर ये बताइए कि क्या पार्टी के दौरान किसी को आप लोगों ने भीतर आते देखा था, वजह चाहे जो भी रही हो?”
“बात ये है पार्थ कि पार्टी बेसमेंट में थी और वहाँ का रास्ता आपके पीछे मौजूद सीढ़ियों से होकर जाता है। यानि जो भी आया ड्राइंगरूम से होकर ही नीचे गया, और वापिस भी सब इधर से होकर ही निकले होंगे।”
“कोई ऐसा, जो कि ऊपर पहुँचकर बाहरी दरवाजे की तरफ बढ़ता नहीं दिखाई दिया हो?”
“पता नहीं।” आकाश बोला – “कम से कम मुझे तो इस बारे में नहीं मालूम है।”
“कमाल है। इतने मेहमान मौजूद थे यहाँ, जिन्हें ड्राइंगरूम से होकर गुजरना था, फिर भी ऊपर किसी नौकर तक को छोड़ना आप लोगों ने जरूरी नहीं
समझा?”
“सब बड़े लोग थे पार्थ, यहाँ से क्या टीवी फ्रीज चुरा ले जाते? फिर भी एहतियातन सारे कमरे बंद कर दिये गये थे।”
तभी पार्थ का मोबाइल रिंग होने लगा। वंशिका का नंबर देखकर उसने तुरंत कॉल अटेंड कर ली और उसकी बात सुनने के बाद कॉल डिसकनेक्ट करता हुआ बोला- “अभी मुझे जाना पड़ेगा। कुछ सवाल बाकी रह गये हैं, उम्मीद करता हूँ कि मेरे दोबारा यहाँ आने पर आप लोगों को कोई ऐतराज नहीं होगा।”
“बिल्कुल नहीं होगा पार्थ।” शीतल बोली – “बस जल्दी से सत्य पर हमला करने वाले कमीनों को खोज निकालिए।”
“आपने बहुबचन में बोला?”
“हाँ, क्योंकि मुझे लगता है वह किसी एक शख्स का कारनामा नहीं था।”
“ऐसा आप चार अलग-अलग तरह से किये गये हमलों की वजह से बोल रही हैं?”
“जी हाँ।”
“वह हमलावर की कोई चाल भी रही हो सकती है मैडम, लेकिन इतना भरोसा मैं आपको अभी दिलाये देता हूँ कि उनकी संख्या एक हो या चार, बच कोई भी नहीं पायेगा।” कहकर वह गेट की तरफ बढ़ चला।
तेज रफ़्तार कार चलाता पार्थ पांच से सात मिनट में कालिंदी अपार्टमेंट पहुँच गया, जहाँ निशांत मौर्या का आलीशान घर बना हुआ था।
तब तक ग्यारह बज चुके थे।
बाहर दो बावर्दी गार्ड खड़े थे, जबकि गेट से थोड़ा परे एक पुलिस जीप मौजूद थी। उसकी ड्राइविंग सीट पर बैठा सिपाही बीड़ी के सुट्टे लगाने में व्यस्त था।
वंशिका उस जीप के करीब ही खड़ी थी।
पार्थ कार से नीचे उतरकर उसके पास पहुँचा।
“क्या हुआ?”
“फोन पर बताया तो था।”
“मेरा मतलब है कब हुआ?”
“मालूम नहीं। पुलिस और मैं एक साथ ही यहाँ पहुँचे थे, इसलिए भीतर घुसने में कामयाब नहीं हो पाई, उल्टा उन लोगों ने अपना काम खत्म होने तक यहीं रूके रहने का हुक्म भी दनदना दिया।
“खबर कैसे लगी?”
“नौकरों ने गोली चलने की आवाज सुनी थी।”
“मर चुका है, ये पक्का है?”
“पक्का ही होगा सर, तभी तो पुलिस को कॉल की गयी?”
“वह भी नौकरों ने ही किया?”
“और कौन करेगा?”
“फेमिली के किसी सदस्य ने भी तो किया हो सकता है?”
“गार्ड कहता है मैडम अपने बच्चों के साथ मायके में रहती हैं।”
“ओह, चलो भीतर चलकर देखते हैं क्या माजरा है।”
“उन लोगों ने मुझे यहाँ गेट पर रुककर इंतजार करने को कहा है।”
“जो अगर तुम नहीं करोगी तो फांसी पर लटका देंगे, है न?”
“लटका भी सकते हैं, आखिर पुलिसवाले हैं।”
“मुझे खूब पता है तुम उनसे कितना डरती हो, चलो।”
तत्पश्चात दोनों गेट की तरफ बढ़ चले।
“कितने पुलिसवाले हैं अंदर?”
“चार, उनमें से एक लेडी इंस्पेक्टर है, दूसरा एसआई और बाकी के दोनों सिपाही हैं।”
“कोई जानी-पहचानी सूरत?”
“सब इंस्पेक्टर नरेश चौहान, एक बार पहले भी आप उससे मिल चुके हैं।”
“फिर तो उस लेडी इंस्पेक्टर का नाम गरिमा देशपाण्डेय होना चाहिए।”
“हाँ, उसकी नेम प्लेट पर यही लिखा था। जानते हैं उसे?”
“हाय-हैलो है, उसके अलावा कुछ नहीं।”
“जैसे मैं उसके और आपके अफेयर के बारे में सवाल कर रही थी।”
पार्थ हँसा।
गेट पर खड़े गार्ड्स ने उन्हें रोकने की कोई कोशिश नहीं की इसलिए दोनों भीतरी दरवाजे तक निर्विघ्न पहुँच गये, जो कि सीधा बैठक में खुलता था।
वहाँ कोई नहीं था।
“लाश कहाँ पड़ी है?”
“क्या पता।”
दोनों अभी अंदाजा लगाने की कोशिश कर ही रहे थे कि तभी उनके कानों में किसी की आवाज पड़ी, जो कि बाईं तरफ दिखाई दे रहे किचन के आगे कहीं से आ रही थी।
दोनों उधर को बढ़ चले।
किचन से आगे करीब चार फीट चौड़ा एक गलियारा था, जहाँ दोनों तरफ
कई दरवाजे दिखाई दे रहे थे। वैसे ही एक दरवाजे के सामने दो बावर्दी सिपाही मौजूद थे।
“बाहर वेट कीजिए।” उन पर निगाह पड़ते ही एक सिपाही बोल पड़ा।
“वो भी कर लेंगे यार।” पार्थ मुस्कराया – “नाराज क्यों हो रहे हो?”
न तो सिपाही ने उस बात का कोई जवाब दिया, ना ही पार्थ ने आगे बढ़ना बंद किया।
“क्या हो गया है यहाँ?” नजदीक पहुँचकर उसने पूछा।
“पता नहीं क्या हो गया है, हमारी नजर थोड़ी कमजोर है।”
“फिर पुलिस में क्या कर रहे हो?”
“नौकरी कर रहे हैं और क्या कर रहे हैं?”
“डिफेक्टिव पीस को नौकरी पर किसने रख लिया?”
सुनकर सिपाही ने घूर कर उसे देखा।”
“इसीलिए कहा गया है भाई कि पहले तौलो फिर बोलो, अब बताओ क्या हुआ है यहाँ?”
“आप कौन हैं?”
“पार्थ सान्याल?”
“नाम के अलावा आपकी क्या पहचान है?”
“कुछ नहीं बस नाम ही काफी है। हैरानी है तुमने मुझे पहचाना नहीं।”
“पहले देखा होता तो जरूर पहचान जाता, और मैडम...।” उसने वंशिका की तरफ देखा – “आप यहाँ क्या कर रही हैं, आपको तो बाहर वेट करने को कहा गया था।”
“इनके पैरों में दर्द है इसलिए एक जगह पर ज्यादा देर तक नहीं खड़ी रह सकतीं।”
सुनकर सिपाही ने क्षण भर को उसे देखा फिर बोला- “मैं मैडम को खबर करता हूँ आपके बारे में।”
“जरूर करो, मगर पहले ये तो बता कर जाओ यार कि यहाँ हुआ क्या है?”
सिपाही ने जवाब नहीं दिया, मुड़कर एक चेतावनी भरी निगाह अपने साथी पर डाली और भीतर दाखिल हो गया। जैसे जाते-जाते उससे कह गया हो कि दोनों को किसी भी हाल में अंदर मत घुसने देना।
मिनट भर से भी कम समय में वह वापिस लौटा तो सब इंस्पेक्टर नरेश चौहान उसके साथ था।
“अरे ये तो अपने चौहान साहब हैं।” पार्थ खुशी जाहिर करता हुआ बोला – “कैसे हो बंधु?”
“बढ़िया, आप यहाँ कैसे?” कहकर उसने वंशिका की तरफ हैरानी से देखा – “आपको बाहर रूकने के लिए कहा गया था मैडम।”
“जो कि सरासर जुल्म था। खूबसूरत लड़की से कहीं इस तरह पेश आया जाता है चौहान साहब?”
“मेरा इंचार्ज कोई मर्द होता सर तो वह जरूर मैडम की खूबसूरती का रौब खाकर इन्हें कहीं बैठ जाने को कह देता, बल्कि अपने साथ सीधा अंदर ही ले आता, मगर अभी वैसा नहीं है....।”
“क्योंकि गरिमा मैडम को ऐसी बातों की जरा भी कद्र नहीं है, है न?”
“मैंने ऐसा कब कहा?”
“अभी-अभी कहा। खैर, ये बताओ कि हुआ क्या है यहाँ?”
“कत्ल, घर के मालिक का।”
“निशांत मौर्या का?”
“अगर मालिक वही है तो हाँ।”
“कब हुआ?”
“मालूम नहीं, हमें तो बस आधा घंटा पहले ही खबर मिली थी।”
“किसने दी?”
“घर के नौकर ने।”
“बाहर दिखाई तो नहीं दिया कोई।”
“सबको एक कमरे में बैठा दिया गया है, इस हिदायत के साथ कि हमारी इजाजत के बिना कोई यहाँ से अंदर-बाहर नहीं होगा।”
“लाश पर एक नजर मारने दो।”
“उससे पहले ये बताइए कि आपका इस केस में क्या दखल है। वह भी तब, जबकि कत्ल हुए अभी घंटा भर भी नहीं बीता है। मैं ये तो हरगिज भी नहीं मान सकता कि इतनी जल्दी किसी ने आपको रिटेन भी कर लिया।”
“दखल वही है चौहान साहब, जो कि तुम लोगों का है। मैं भी दिल्ली टू लखनऊ वाया आगरा ही यहाँ पहुँचा हूँ।”
“वाया आगरा मतलब?”
“सत्यप्रकाश अंबानी।”
“ओह अब समझा। शीतल अंबानी ने आपको ये केस सौंपा है?”
“नहीं, शुभांगी बिड़ला ने।”
“लेकिन अंबानी पर हुए हमले का निशांत मौर्या के कत्ल के साथ क्या लेना-देना हो सकता है?”
“क्यों बच्चे को पढ़ा रहे हो यार। ये क्या मानने वाली बात है कि तुम्हें अंबानी
और मौर्या के बीच चल रही तनातनी की खबर नहीं है।”
“है, मगर उस बात का मौर्या की हत्या से क्या संबंध हो सकता है? या आप समझते हैं कि अंबानी पर हमला मौर्या ने किया था, जिसने बदला लेने की खातिर इसे खत्म कर दिया।”
“मैं ऐसा समझ सकता था अगरचे कि वह कोमा में नहीं होता। या उसकी हालत उतनी ही बद नहीं होती जितनी कि लोग बाग बयान कर रहे हैं।”
“यानि देखा नहीं है अभी तक उसे?”
“नहीं, वक्त ही नहीं मिला, मगर तुमने देखा होगा। कैसी हालत है उसकी?”
“आपकी सोच से भी ज्यादा बद्तर। मैं तो हैरान हूँ कि वह आदमी अभी तक जिंदा क्यों है? गोली खा गया, खंजर का वार झेल गया, गला रेतने के बावजूद जिंदा बच गया। और तो और, तेजाब डालकर उसका चेहरा इतनी बुरी तरह जला दिया गया है कि देखने भर से उल्टी आने लगती है।”
“किसने किया होगा?”
“क्या पता, अभी तक तो हर तरफ अंधेरा ही दिखाई दे रहा है।”
“उसकी बीवी कहती है कि हमला करने वाले एक से ज्यादा लोग रहे हो सकते हैं?”
“कहती ही तो है पार्थ साहब, फिर उसे ऐसी चीजों की क्या समझ?”
“यानि गलत सोच रही है?”
“अभी इस बात का जवाब मुश्किल है, मगर खुद सोचकर देखिए। क्या ये मानने वाली बात है कि एक ही वक्त में किसी के चार दुश्मन अलग-अलग हथियारों से उस पर हमला कर बैठें?”
“सुनने में अजीब जरूर लगता है, मगर असंभव तो नहीं है, फिर इस बात की ही क्या गारंटी कि चारों एक साथ योजना बनाकर उसका कत्ल करने नहीं पहुँच गये थे?”
“तो भी चार अलग-अलग वार क्यों?”
“तुम उपन्यास पढ़ते हो?”
“ये क्या सवाल हुआ?”
“जवाब दो, फिर बताता हूँ।”
“नहीं।”
“मूवी तो जरूर देखते होगे, खासतौर से हॉलीवुड की?”
“वो तो मैं एक भी नहीं छोड़ता।”
“गुड, मर्डर ऑन द ओरिएंट एक्सप्रेस देखी है?”
“वो, जो अगाथा क्रिस्टी के नॉवेल पर बनी थी?”
“वही।”
“देखी है।”
“उसमें और अंबानी पर हुए हमले में तुम्हें कुछ कॉमन नहीं दिखाई देता?”
“सिर्फ इतना कि वहाँ भी एक से ज्यादा वार किये गये थे?”
“क्यों? अलग-अलग वार करने की क्या जरूरत थी, एक ही वार कर के क्यों नहीं छोड़ दिया उसे?”
“क्योंकि सब उससे नफरत करते थे।”
“एग्जैक्टली।”
“उस फ्रंट पर हम पहले ही सोच चुके हैं पार्थ साहब, मगर बात किसी सिरे लगती नहीं दिखाई देती।”
“अनंत गोयल के बारे में क्या कहते हो, जो कि अंबानी को अस्पताल पहुँचाने के बाद से ही गायब है?”
“पहले कुछ नहीं कहता था, लेकिन अब मौर्या के कत्ल के बाद लगने लगा है कि देर-सबेर उसकी भी लाश बरामद होकर रहेगी।”
“इस मुबारक ख्याल की वजह जान सकता हूँ?”
“है तो तुक्का ही लेकिन मुझे लगता है कि कोई है, जो अंबानी पर हुए हमले का बदला लेने के लिए निकल पड़ा है। उसी ने पहले गोयल को गायब किया, बल्कि उसका कत्ल करके लाश कहीं छिपा दी। इसीलिए वह हमें ढूंढे नहीं मिल रहा है, फिर कातिल ने अगला शिकार बनाया मौर्या को। आगे देखते हैं किसकी बारी आने वाली है।”
“इस तरह जब चार की गिनती पूरी हो जायेगी तो पुलिस को अपने आप पता लग जायेगा कि अंबानी पर हमला किसने किया था, यानि तुम्हें हाथ पांव मारने की तो कोई जरूरत ही नहीं है। बस इंतजार करो चौथी लाश गिरने का। उसके बाद सस्पेक्ट्स में से जो जिंदा बचा रह जाये, वही अपराधी।”
सुनकर चौहान हौले से हँस पड़ा।
“अब तो एक नजर देख लेने दो लाश को?”
“मैं मैडम से पूछकर आता हूँ।” कहकर चौहान अंदर गया और उल्टे पांव वापिस लौटकर पार्थ को अपने साथ लिवा ले गया।
वह कमरा असल में मकतूल का स्टडी रूम था, जो कि तकरीबन बीस बाई बीस के आकार का रहा होगा। बाईं दीवार के पास दो बुक्स कैबिनेट रखी हुई थीं, जबकि दाई तरफ को एक पतला सा फाइबर का दरवाजा दिखाई दे रहा था, जो कि अटैच्ड बॉथरूम का हो सकता था। सामने की तरफ एक खूब बड़ी खिड़की थी, जिसके करीब ही शीशे की बेहद खूबसूरत मेज रखी हुई थी। उसके इस तरफ एक रिवाल्विंग चेयर थी, जिस पर से लाश दाईं तरफ को आधे से ज्यादा नीचे लटक रही थी।
“गुड इवनिंग मैडम।” पार्थ बोला।
“गुड इवनिंग पार्थ साहब।” गरिमा मुस्कराई – “अपनी ख्वाहिश पूरी कर लीजिए। और क्या नहीं करना है; वह बताना मैं आपको जरूरी नहीं समझती क्योंकि आप तो आप हैं।”
“तारीफ का शुक्रिया। नहीं, मैं किसी भी चीज को हाथ नहीं लगाऊंगा।” कहकर वह दो कदम आगे बढ़कर कुर्सी से तकरीबन तीन फीट की दूरी पर खड़ा हो गया।
गोली मकतूल के माथे से थोड़ा ऊपर खोपड़ी में लगी थी। इतना ऊपर कि अगर दो सेंटीमीटर भी उसका सिर झुक जाता तो बुलेट उसके ऊपर से गुजर जानी थी, जिससे ये जाहिर होता था कि मरने से पहले वह मेज पर झुका कुछ लिख या पढ़ रहा था।
वह बात साबित भी हो रही थी क्योंकि एक खुली हुई किताब वहाँ अभी भी मौजूद थी।
इस बात में भी कोई शक नहीं था कि गोली खिड़की के उस पार से चलायी गयी थी, जिससे पांच फीट की दूरी पर बंगले की पिछली बाउंड्री वॉल दिखाई दे रही थी। वह दीवार कम से कम भी छ: फीट ऊंची थी, लेकिन खास बात ये थी वहाँ एक जगह पर सेट हो चुके सीमेंट की बोरी रखी हुई थी, जिस पर खड़े होकर बाउंड्री के उस तरफ पहुँच जाना बेहद आसान काम साबित होना था। वैसे बोरी अगर नहीं भी होती तो छ: फीट की ऊंचाई कोई इतनी ज्यादा नहीं थी, जिसे पार न किया जा सके।
मकतूल की खोपड़ी से खून अभी भी रिस रहा था, जो कि मार्बल के फ्लोर पर पर बहता हुआ बॉथरूम के दरवाजे तक पहुँच चुका था। बल्कि कोई बड़ी बात नहीं थी अगर भीतर भी दाखिल हो चुका हो।
और कोई खास बात उसे कमरे में नजर नहीं आई।
“क्या जाना पार्थ साहब?” गरिमा ने पूछा।
“ऐसा कुछ नहीं मैडम, जो आप पहले ही न जान चुकी हों।”
“तो शुभांगी ने हॉयर किया है आपको?”
“जी हाँ।”
“हैरानी की बात है कि दिल्ली में कदम रखते ही वह आपके पास पहुँच गयी, या पहले से जानते थे उसे?”
“उसके हस्बैंड के लिए एक छोटा सा काम किया था कभी, उसी ने शुभांगी
को हमारी फर्म का नाम सजेस्ट किया था।”
“धंधा कैसा चल रहा है आपका?”
“टॉप ऑफ द वर्ल्ड, जैसा कि हमेशा होता है।”
“सोच रही हूँ रिटायरमेंट के बाद मैं भी एक डिटेक्टिव एजेंसी खोलकर बैठ जाऊं।”
“ख्याल बुरा नहीं है। चाहें तो ‘द वॉचमैन’ भी ज्वाइन कर सकती हैं।”
“नहीं, एक नौकरी से रिटायर होकर दूसरी नौकरी तो नहीं करने वाली मैं। हाँ, आपके ऑफिस के सामने एक ऑफिस जरूर खोल सकती हूँ, जिसका नाम होगा- ‘न्यू वॉचमैन’। किसी फेमस कंपनी के नाम के आगे न्यू लगाकर नयी कंपनी बनाना बहुत प्रचलन में है आजकल। साथ ही मेरी कंपनी का स्लोगन होगा- ‘वी डोंट लेट एनी वन हाईड’।”
सुनकर पार्थ हौले से हँस पड़ा, गरिमा भी हँसी।
“एनी वे, यहाँ हुए कत्ल के बारे में क्या सोचते हैं आप?”
“कम से कम चौहान साहब की इस बात से तो इत्तेफाक नहीं रखता कि किसी ने अंबानी पर हुए हमले का बदला लेने के लिए मौर्या को मार गिराया।”
“और क्या वजह हो सकती है इसके कत्ल की?”
“होने को कुछ भी हो सकता है मैडम, क्योंकि इंवेस्टिगेशन तो बस शुरू ही की है अभी, मगर मेरा शक बार-बार अनंत गोयल की तरफ जा रहा है। क्यों फरार है वह शख्स?”
“यानि कातिल गोयल है?”
“आप खूब जानती हैं कि अभी गारंटी के साथ ये बात नहीं कही जा सकती। हाँ, आप लोग नया कुछ जान गये हों तो और बात है।”
“नहीं, ऐसा कुछ नहीं पता हमें।”
“फिर तो जो भी सामने आयेगा वह इंवेस्टिगेशन के दौरान ही आयेगा। उम्मीद करता हूँ कि जल्द ही कातिल आपकी मुट्ठी में होगा।”
“हाँ उम्मीद ही कर सकते हैं आप, दुआ तो नहीं दे सकते क्योंकि उन हालात में लोगों का पुलिस पर विश्वास बढ़ जायेगा और आपका धंधा ठप्प हो जायेगा।”
पार्थ फिर से हँस पड़ा।
“अब अगर आपके मन वाली हो गयी हो तो नाओ एक्सक्यूज मी। टलना नहीं भी चाहते हैं तो बाहर जाकर ड्राइंगरूम में वेट कीजिए प्लीज।”
“ओह जरूर, थैंक यू मैडम।”
कहकर वह स्टडी से बाहर निकला और वंशिका के साथ बैठक में रखे सोफे पर जाकर बैठ गया। असल में वह नौकरों से पूछताछ करना चाहता था, मगर गरिमा के सहयोगात्मक रवैये को देखते हुए फिलहाल उनसे दूर रहना ही उसने बेहतर समझा।
“कुछ पता लगा?” वंशिका ने पूछा।
“नहीं। ऐसा कुछ नहीं, जो हमारी किसी काम आ सके।”
“मरा गोली खाकर ही था?”
“हाँ, जो कि माथे से ऊपर से खोपड़ी में दाखिल हुई थी।” कहते हुए पार्थ ने भीतर का नजारा हू ब हू बयान कर दिया।
“नौकरों से पूछताछ करें?”
“नहीं, खुद ऐसा करना फिलहाल ठीक नहीं होगा। अभी गरिमा बहुत अच्छे ढंग से पेश आई थी, जो कि ऐसी किसी पूछताछ से भड़क सकती है, इसलिए हम इंतजार करेंगे पुलिस के फारिग होने का।”
“मर्जी आपकी।” कहकर वह खामोश होकर बैठ गयी।
वह इंतजार पूरे पंद्रह मिनट का साबित हुआ। उसके बाद गरिमा देशपाण्डेय ने ड्राइंगरूम में बैठकर घर के तमाम नौकरों को वहाँ तलब किया, जिनकी संख्या चार थी।
पूछताछ में पता लगा कि गोली चलने की आवाज ठीक दस बजे सुनाई दी थी, जिस पर सबसे पहले ध्यान रसोइयें ने दिया, जो कि उस वक्त किचन में साहब के लिए कॉफी बना रहा था।
वह दौड़ता हुआ स्टडी में गया, जहाँ मौर्या की लाश देखकर जोर-जोर से चिल्लाने लगा। अगले ही पल बाकी के नौकर भी वहाँ इकट्ठे हो गये, जिसके बाद रमन झा नाम के एक लड़के ने सौ नंबर पर कॉल कर के पुलिस को घटना की जानकारी दे दी।
वह पूछताछ बहुत लंबी चली मगर कातिल के बारे में कोई सुराग हाथ नहीं लगा। तब गरिमा से इजाजत लेकर पार्थ और वंशिका मौर्या के घर से बाहर निकल आये क्योंकि आगे फॉरेंसिक टीम वहाँ पहुँचने वाली थी, जिनकी कार्रवाई देखने का उनका कोई इरादा नहीं था।
आगे अपनी कार की तरफ बढ़ने की बजाय पार्थ वंशिका को साथ लिए एक लंबा घेरा काटकर इमारत के पिछले हिस्से में पहुँचा। उधर गली में बहुत कूड़ा-कबाड़ इकट्ठा हुआ पड़ा था, जिसके कारण अंदर की अपेक्षा वहाँ बाउंड्री वॉल की ऊंचाई कुछ कम हो गयी जान पड़ती थी।
दोनों अंदाजे से उस जगह पर जा खड़े हुए, जहाँ बाउंड्री के दूसरी तरफ वह खिड़की मौजूद हो सकती थी, जिसके बाहर खड़े होकर मकतूल को शूट किया गया था।
दोनों बड़े ही ध्यान से आस-पास की जगह का मुआयना करने में जुट गये, मगर दस मिनट की मशक्कत के बावजूद अपने मतलब की कोई चीज उनके हाथ नहीं लग पाई।
“एक काम करो।” वह वंशिका से बोला – “बाउंड्री के एकदम करीब खड़ी होकर इसकी ऊंचाई का अंदाजा लगाने की कोशिश करो, क्योंकि मैं अगर नजदीक गया तो डर है भीतर मौजूद पुलिसवालों में से किसी की निगाह मुझ पर पड़ जायेगी।”
सुनकर लड़की सिर झुकाये बाउंड्री के नजदीक पहुँची, फिर धीरे-धीरे सीधा होने लगी, तब उसने यही पाया कि अगर वह तनकर वहाँ खड़ी हो जाये तो उसकी नाक से ऊपर का चेहरा बाउंड्री से ऊंचा पहुँच जायेगा।
वह वापिस पार्थ के पास लौट आई।
“पांच फीट से ज्यादा किसी हाल में नहीं हो सकती, और इधर मौजूद कूड़े के ढेर को नजरअंदाज कर के कहूँ तो दीवार की कुल जमा ऊंचाई साढ़े पांच फीट के करीब होगी।
“यानि कातिल औरत या मर्द कोई भी हो सकता है?’
“ऐसा अगर ये सोचकर कह रहे हो कि इस दीवार को फांद पाना किसी औरत के लिए संभव था या नहीं, तो मेरा जवाब हाँ में है। पांच फीट की ऊंचाई तो कोई भी पार कर सकता है। नौजवान हो तो कहना ही क्या, जैसे कि शीतल अंबानी।”
“जैसे कि शुभांगी बिड़ला।”
“अपने क्लाइंट पर शक कर रहे हो?”
“देखा जाये तो शक करने की कोई वजह तो नहीं है, क्योंकि उसके पास मौर्या के कत्ल के कत्ल का कोई कारण दूर-दूर तक नहीं दिखाई देता। उसने किसी के खून से अपने हाथ रंगने ही थे, तो अपने भाई के हमलावरों का पता लगाने के लिए जासूस क्यों हॉयर करती?”
“क्यों करती वह अलग मुद्दा है पार्थ, लेकिन एक पल को चौहान के कहे पर यकीन कर के देखो। उसने कहा था कि कातिल कोई ऐसा शख्स है, जो अंबानी पर हुए हमले का बदला लेने के लिए निकल पड़ा है। वह कोई शुभांगी बिड़ला क्यों नहीं हो सकती?”
“यू हैव अ प्वाइंट मिस वंशिका भौमिक, मगर अभी से इस बात पर दिमाग खपाने का कोई फायदा नहीं होगा। हाँ, बाद में अगर कुछ ऐसा सामने आ गया, जो शुभांगी की तरफ इशारा करता दिखाई दे रहा हो, तो हम उसके नाम पर विचार जरूर करेंगे।”
“ऐज यू विश मिस्टर पार्थ सान्याल।” शुभांगी उसी के टोन में बोली – “अब
चलें यहाँ से, मारे बदबू के सांस लेना दूभर हो रहा है।”
“हाँ चलो।”
दोनों फ्रंट में पहुँचकर पार्थ की कार में सवार हो गये।
“एक बात कहूँ?” पार्थ ने पूछा।
“हाँ कहो।”
“आज बहुत खूबसूरत लग रही हो।”
“सिर्फ आज?” वंशिका ने आँखें तरेरीं।
“मेरा मतलब था, रोज की तरह आज भी बहुत हॉट लग रही हो।”
“थैंक्स फॉर कांप्लीमेंट।”
“टिका लिया।” कहकर उसने पूछा – “क्या लगता है तुम्हें, मौर्या क्यों मारा गया?”
“उस मामले में मुझे चौहान का कहा ही सही जान पड़ता है।”
“यानि अंबानी पर हमला मौर्या ने किया था?”
“या हमला करने वालों में से एक रहा होगा।”
“ये बात तुम्हें कुछ अजीब नहीं लगती कि चार लोगों ने एक साथ उसका कत्ल करने की कोशिश की, फिर भी वह बच गया?”
“अपनी तरफ से भरपूर कोशिश की थी, मगर ईश्वर को अंबानी का मर जाना कबूल नहीं हुआ, इसलिए वह बच गया। ना कि हमलावरों ने अपनी तरफ से कोई कोताही बरती थी।”
“जानकारी हासिल करनी होगी।”
“किस बारे में?”
“उसके शरीर पर मौजूद जख्मों के बारे में। पता तो चले कि वह बचा तो आखिर बचा कैसे?”
“ऐसी कोई जानकारी तो उसका ट्रीटमेंट करने वाला डॉक्टर ही दे सकता है।”
“दे सकता है, मगर जुबान खोलेगा या नहीं इस बारे में मुझे शक है। इसलिए कोई और रास्ता निकालना होगा।”
“पुलिस ने भी तो उस बारे में मालूम किया होगा?”
“तो?”
“तो ये कि सोनी साहब को कह देते हैं, वह खबर निकाल लायेंगे।”
“हर बात में पुलिस का मुँह देखना ‘द वॉचमैन’ के डिटेक्टिव्ज को शोभा नहीं देता।”
“और क्या रास्ता हो सकता है?”
“अंबानी का मेडिकल इंश्योरेंस था।”
“तुम्हें कैसे मालूम?”
“नहीं मालूम, लेकिन था।”
“ओके, मैं समझ गयी।”
“गुड, अब उसके नर्सिंग होम चलते हैं। वहाँ कोशिश कर के देखना, अगर कामयाब हो गयी तो ठीक वरना फिर डॉक्टर के ही गले पड़ेंगे।”
“मैं करूं?”
“हाँ।”
“तुम क्यों नहीं, क्योंकि बॉस हो?”
“क्योंकि मैं अपने होठों पर लिपस्टिक पोतकर, आँखों में काजल लगाकर अपनी मनमोहक मुस्कान से किसी का कत्ल करने का जिगरा नहीं रखता।”
“झूठ मत बोलो। ऐसा होता तो अब तक तुम सौ बार मर चुके होते।”
“नहीं मरा क्योंकि रोज एंटी ब्यूटी कैप्सूल खाता हूँ।”
“बकवास मत करो। ये बताओ कि मैं कौन हूँ?”
“तुम, तुम हो और कौन हो?”
“अरे अस्पताल के भीतर मैं कौन हूँ?”
“कहा तो तुम, तुम हो। बस फर्क इतना है कि इस बार एक इंश्योरेंस कंपनी के लिए क्लेम इंवेस्टिगेट कर रही हो, नाम खुद सोच लेना कोई, समझ गयी?”
“हाँ समझ गयी।”
“वैसे मुझे उम्मीद नहीं है कि इतनी पूछताछ की नौबत आयेगी। एमआरडी के इंचार्ज के लिए यह रोज की बात है, और ज्यादातर कंपनियां थर्ड पार्टी इंवेस्टिगेशन ही कराती हैं। ऊपर से तुम्हारी ये बला की खूबसूरती भी तो कोई असर दिखायेगी न, या नहीं दिखायेगी?”
“बिल्कुल दिखायेगी, क्यों नहीं दिखायेगी, लेकिन एक बात समझ में नहीं आती कि जब हम शुभांगी के कहने पर ही इस केस को इंवेस्टिगेट कर रहे हैं तो उसी से क्यों न कहें कि एमआरडी से अपने भाई की केस हिस्ट्री निकलवा कर हमें सौंप दे।”
“इसलिए नहीं कह सकते क्योंकि उसमें हमारी हेठी है, समझ गयी? सब-कुछ क्लाइंट ही कर के देगा तो हम अपनी फीस कैसे जस्टिफाई करेंगे। फिर मैं ये भी नहीं चाहता कि रिपोर्ट में कोई खास बात निकल आये तो उसकी खबर अंबानी के घर वालों को लगे।”
“जैसे पहले ही नहीं लग गयी होगी।”
“नहीं लगी होगी। उन्हें तो बस इतना बताया गया होगा कि फलां-फलां हथियारों से अंबानी पर हमला किया गया था, ना कि कोई ये पूछने लग गया होगा कि बुलेट वूंड कितना गहरा था, छाती पर जो छुरा चलाया गया वह कितना अंदर तक गया था, वगैरह-वगैरह, समझ गयी?”
“यस बॉस।”
तत्पश्चात गाड़ी में सन्नाटा छा गया।
दस मिनट बाद पार्थ ने अंबानी नर्सिंग होम के सामने पहुँचकर कार रोक दी।
वंशिका नीचे उतर कर हॉस्पिटल में दाखिल हुई फिर रिसेप्शन पर पहुँचकर मेडिकल रिकॉर्ड डिपार्टमेंट के बारे में पता किया तो मालूम हुआ वह इमारत की बेसमेंट में था।
सीढ़ियां उतरकर वह नीचे पहुँची तो वहाँ एक दरवाजे के बाहर एमआरडी लिखा दिखाई दे गया।
वह भीतर दाखिल हुई।
अंदर कुल जमा चार लोग मौजूद थे, जिनमें से एक वहाँ का इंचार्ज अभया नायडू था। सब ने नजर भर कर उसे देखा, नायडू ने तो बड़ी हसरत के साथ देखा। जवाब में वंशिका ने यूँ मुस्कराकर दिखाया कि वह हड़बड़ाकर नीचे मेज को तकने लगा।
“क्या चाहिए मैडम?” वंशिका से निगाहें मिलाये बिना उसने सवाल किया।
“मिस्टर सत्यप्रकाश अंबानी का मेडिकल रिकॉर्ड।”
“उनका कोई मेडिक्लेम था क्या?”
“बेशक था, वरना मैं यहाँ क्यों होती?”
“कहाँ से आई हैं?”
“मैं ‘द वॉचमैन’ डिटेक्टिव एजेंसी से हूँ, जो कि न्यू लाइफ इंश्योरेंस कंपनी का मेडिक्लेम, डेथ क्लेम, मोटर क्लेम, यानि हर तरह का क्लेम इंवेस्टिगेट करती है।”
“इस जॉब में पहली बार किसी लड़की को देख रहा हूँ मैं।” नायडू बोला।
“मैंने भी पहली बार ऐसा कोई एमआरडी इंचार्ज देखा है सर, जो काम की बजाय गप्पे हाँकना ज्यादा पसंद करता हो। वह भी तब, जबकि काम का संबंध उसके बॉस से हो।”
जवाब में नायडू ने क्षण भर के लिए वंशिका को घूरकर देखा, फिर पटकने वाले अंदाज में एक फॉर्म उसके सामने रख दिया- “इसे फिल कर दीजिए।”
वंशिका ने दो मिनट में उस काम को पूरा किया। फेक क्लेम आईडी भरा, फेक इंश्योरेंस नंबर लिखा, बल्कि उस फॉर्म में ऐसा कुछ भी नहीं था, जो कि उसने सही लिखा हो। जबकि भरते समय बार-बार अपने मोबाइल में यूँ नजर मारे ले रही थी, जैसे उसमें से देख-देखकर लिख रही हो।
फॉर्म कंपलीट हो गया तो उसने नायडू की तरफ बढ़ा दिया।
“दो दिन बाद आकर ले जाना।”
“कमाल है, शीतल मैडम ने तो कहा था कि ये नर्सिंग होम क्योंकि अंबानी साहब का ही है, इसलिए पेपर्स फौरन मिल जायेंगे। मैं उन्हें कॉल करती हूँ।”
“अरे रिकॉर्ड फोटो कॉपी करने में भी तो टाइम लगता है न?”
“दो दिन का टाइम?” वह हैरानी से बोली – “जरूर फोटो कॉपी के लिए पेपर्स को अमेरिका या चीन भेजने वाले होंगे, है न?”
“क्यों बात को लंबा खींच रहा है मैडम। मैं भूल गया था कि आप किसका रिकॉर्ड लेने इधर आया है। यहाँ का प्रोसीजर दो दिन बाद पेपर्स देने का है इसलिए मेरे मुँह से निकल गया कि दो दिन बाद आना।”
“मगर दे अभी रहे हैं?”
“ऑफ़कोर्स दे रहा हूँ, पांच मिनट वेट कीजिए।” कहकर उसने वहाँ बैठे एक लड़के को पेपर्स तैयार करने को बोल दिया।
ठीक पांच मिनट बाद बाकायदा साइन मोहर करके अंबानी का रिकॉर्ड वंशिका को सौंप दिया गया, साथ ही उसके द्वारा भरे गये फॉर्म पर रिसीविंग भी ले ली गयी।
“फीस तो आपको फिर भी पे करना पड़ेगा मैडम।” नायडू बोला – “वरना मुझे अपनी जेब से देना पड़ जायेगा।”
“कितना?”
“फोर हंड्रेड।”
“नेवर माइंड।” कहकर वंशिका ने पेमेंट कर के रसीद हासिल की और बाहर निकल गयी।
थोड़ी देर बाद वह एक बार फिर पार्थ की कार में थी।
“इतनी जल्दी ले भी आई?” पार्थ हैरानी से बोला।
“ऑफ़कोर्स ले आई, उसमें करना भी क्या था। मैं जैसे ही एमआरडी में पहुँची, मेरी आँखों में देखने के साथ ही सब के सब हिप्नोटाईज हो गये। उसके बाद मैंने अंबानी का रिकार्ड ढूंढ कर निकाला और वहीं मौजूद फोटो कॉपी की मशीन से कॉपी कर के बाहर आ गयी।”
“जिंदा तो बच जायेंगे न वो लोग?”
“उम्मीद तो बराबर है, क्योंकि भीतर पहुँचकर मैंने मुस्कराने की कोई कोशिश नहीं की थी।”
“क्या कहने तुम्हारे?” पार्थ हँसता हुआ बोला, फिर पेपर्स देखने लगा।
अंबानी के मेडिकल रिकॉर्ड में बातें तकरीबन वही दर्ज थीं, जिनके बारे में वह
पहले ही शुभांगी के मुँह से सुन चुका था। बस हैरानी इस बात की हो रही थी कि गोली पेट में मारी गयी, छुरा सीने में बस साढ़े तीन इंच घुसा था, गला यूँ रेता गया कि सिर्फ ऊपर की चमड़ी ही कट पाई थी, कोई नस वगैरह नहीं अलग हो गयी और तेजाब ने भी उसका कोई बहुत ज्यादा नुकसान नहीं किया था, सिवाये इसके कि तीन चार जगहों पर खाल पूरी तरह जल गयी थी।
रिपोर्ट पढ़ने के बाद बरबस ही उसके चेहरे पर हैरानी के भाव उभर आये।
“क्या हुआ?” वंशिका ने पूछा।
“बड़े अजीब ढंग से हमला किया गया था उस पर।”
“मतलब?”
“सब-कुछ एकदम नपे तुले अंदाज में हुआ लगता है।”
“अरे मतलब क्या हुआ इस बात का?”
“अंबानी पर हमला तो किया गया, मगर इस बात का ख्याल रख के किया गया कि वह मरने न पाये। इसीलिए वह बच गया, ना कि उसकी किस्मत अच्छी थी।”
“नॉनसेंस।”
“मैं सच कह रहा हूँ, चाहो तो रिपोर्ट देखकर अपनी तसल्ली कर लो।”
“मुझे ये डॉक्टर लोगों की लिखावट समझ में नहीं आती, मगर सवाल ये है कि कोई इस तरह से हमला क्यों करेगा? हासिल क्या होना था उसने?”
“यही तो लाख रूपये का सवाल है स्वीट हॉर्ट, जिसका जवाब हमें ढूंढना है। हाँ, इस रिपोर्ट से कम से कम इतना तो साफ हो गया कि वह मरने से बच कैसे गया?”
“तुम्हारे आला दिमाग पर यकीन कर के कहूँ तो इसलिए बच गया क्योंकि हमलावरों का इरादा उसकी जान लेने का था ही नहीं, जबकि मुझे उस बात पर जरा भी यकीन नहीं है। किसी ने अंबानी को महज घायल भर करना होता तो डंडा उठाकर उसे जमकर धो डालता, या तेजाब फेंककर वहाँ से चलता बना होता। जबकि चार हमलों के बाद, भले ही वार कितने भी नपे तुले ढंग से क्यों न किये गये हों, हमलावर इस बात की गारंटी नहीं कर सकते थे कि वह मरने से बच ही जायेगा। और कुछ नहीं तो खून ज्यादा बह जाने की वजह से ही उसकी मौत हो सकती थी।”
“कह तो तुम ठीक रही हो, मगर सच्चाई से मुँह नहीं मोड़ा जा सकता। और अभी-अभी जो नया और बेहद चौंका देने वाला ख्याल मेरे जेहन में आया है, उस पर तो तुम सात जन्मों में भी यकीन नहीं कर पाओगी।”
“कैसा ख्याल?”
“यही कि अंबानी ने खुद अपने ऊपर हमला कराया हो सकता है।”
“हे भगवान्!” वंशिका ने फरमाईशी आह भरी – “अगर तुम्हारी डिटेक्टिव रीजनिंग इतनी तेजी से नीचे जा रही है तो अच्छा है ऑफिस में बैठा करो, फील्ड वर्क हम संभाल लेंगे।”
“बकवास मत करो।”
“यस बॉस।”
“किसी वजह से अंबानी, निशांत मौर्या को, आगे और कत्ल हुए तो उन सबको, खत्म करना चाहता था, मगर जानता था कि पुलिस का शक उस पर जाकर रहेगा क्योंकि उसके साथ उन सबकी रंजिश जगविदित बात थी, इसीलिए सबसे पहले उसने खुद पर हमला कराया और हॉस्पिटल केस बन गया। फिर कोमा में पहुँचा होने का नाटक शुरू किया और मौका निकालकर मौर्या का कत्ल कर आया। कितना सेफ गेम है, कोई उस पर शक नहीं करने वाला, कर भी ले तो साबित कुछ नहीं कर पायेगा, क्योंकि वह तो कोमा में है।”
“सब लाउड थिंकिंग है। मत भूलो कि हॉस्पिटल से निकलकर मौर्या के घर पहुँचने और उसका कत्ल कर के वापिस नर्सिंग होम लौटने में अंबानी को कम से कम भी बीस मिनट का वक्त तो लग ही जाना था। उस दौरान अगर कोई उसके वॉर्ड में पहुँच जाता, घर के लोगों में से ही कोई वहाँ आ धमकता तो अंबानी को वहाँ से गायब देखकर क्या हंगामा नहीं खड़ा कर देता?”
“देखो, हॉस्पिटल उसका है, इसलिए वहाँ मर्जी भी उसी की चलेगी। ऐसे में किसी डॉक्टर पुरी के साथ सांठ-गांठ कर के वह क्यों नहीं निकल सकता था वहाँ से? और रही बात घर के लोगों के वहाँ पहुँच जाने की, तो ऐसी किसी प्रॉब्लम से भी डॉक्टर उसे सहज ही बचा सकता था। वह कह देता कि पेशेंट के कपड़े बदले जा रहे थे, इसलिए वो लोग भीतर नहीं आ सकते थे, या ऐसा ही कोई दूसरा-तीसरा बहाना बना सकता था। हॉस्पिटल जैसी जगहों में ऐसी बातों पर भला ऐतराज कौन जताता? या तुम ये कहना चाहती हो कि डॉक्टर पुरी के साथ उसकी मिली भगत बन पाना संभव बात नहीं है?”
“असंभव जैसी बात से तो उसी रोज भरोसा उठ गया था पार्थ...।” वंशिका बड़े ही गंभीर लहजे में बोली – “जिस रोज मैंने एक चार साल के बच्चे को छोटे से डंडे से कत्ल करते देखा था।”
“वॉट? ये कैसे पॉसिबल है?”
“मैंने अपनी आँखों से देखा था।”
“असंभव।”
“ये अलग बात थी कि कत्ल होने वाला कोई इंसान नहीं था।”
“फिर?”
“चींटा मारा था उसने।”
“मैं तुमसे केस डिस्कस कर रहा हूँ और तुम्हें मसखरी सूझ रही है?”
“सॉरी मैंने तब....।”
“इट्स ओके।”
“...पुलिस को खबर नहीं की।” उसने अपना वाक्य पूरा किया।
“गाड़ी से नीचे धकेल दूँगा।” पार्थ गुस्से से बोला – “वरना ट्रैक पर बनी रहो।”
“नहीं धकेल सकते।”
“क्यों?”
“क्योंकि ऑफिस का सारा कैश जिस लॉकर में है, उसकी चाबी मेरे पास है।”
सुनकर पार्थ बरबस ही हँस पड़ा।
“दैट्स लाइक ए गुड बॉयफ्रेंड।” कहने के बाद वह आगे बोली – “बात ये है पार्थ साहब कि आपकी बात मुझे हजम नहीं हो रही। और तब तक होगी भी नहीं, जब तक कि भीतर चलकर हम मिस्टर अंबानी की वर्तमान स्थिति को अपनी आँखों से नहीं देख लेते।”
“ठीक है, चलते हैं।”
दोनों कार से निकलकर हॉस्पिटल में दाखिल हो गये।
“मिस्टर अंबानी कौन से वार्ड में हैं?” पार्थ ने रिसेप्शनिस्ट से पूछा।
“दो नंबर में, आगे जाकर लेफ्ट, फिर राईट और सबसे आखिर वाला।”
“उनकी मिसेज वहीं हैं?”
“इस वक्त तो शायद नहीं होंगी, बट पक्का नहीं बता सकती।”
“थैंक यू।” कहकर वह वंशिका के साथ आगे बढ़ गया।
दो नंबर के सामने पहुँचकर उसने डोर हैंडल ट्राई किया तो दरवाजे को भीतर से बंद पाया। उसे बहुत हैरानी हुई। पेशेंट कोमा में था, ऐसे में दरवाजा किसने बंद कर दिया, या उसके घर का कोई मौजूद था वहाँ?
उसने हौले से दस्तक दे दी।
जवाब में एक नर्स दरवाजा खोलकर उसके सामने खड़ी हो गयी।
“मिस्टर अंबानी यहीं हैं?”
“यस है, बट मिल नहीं सकता।”
“क्यों?”
“डॉक्टर का परमिशन नहीं है।”
“दूर से ही देख लेने दो सिस्टर।”
“क्या करेगा देखकर?”
“अरे वो मेरे दोस्त हैं। मैं जानना चाहता हूँ कि यहाँ किस हाल में हैं।”
“कोमा मे हैं।”
“मुझे मालूम है, देखने दो।”
“डॉक्टर का परमिशन लेकर आओ।”
“कौन सा डॉक्टर?”
“डॉक्टर पुरी, इधर का सीएमओ है।”
“अच्छा मैं दरवाजे से अंदर कदम नहीं रखूँगा, प्रॉमिस। बस थोड़ा सा खोलकर पेशेंट पर एक नजर मार लेने दो।”
नर्स हिचकिचायी।
“सिस्टर प्लीज।”
“ओके, प्लीज बोलता है तो देख लो।” कहकर उसने दरवाजा खोला और उन्हें अंदर आने का इशारा कर दिया।
नर्स के पीछे चलते दोनों अगले दरवाजे तक पहुँचे।
पेशेंट बेड पर निढाल पड़ा था, यूँ जैसे गहरी नींद में हो, मगर इतना फिर भी पता लग जाता था कि साँसें चल रही थीं। और चेहरे की हालत तो उससे कहीं बुरी नजर आ रही थी, जितना कि उसके मेडिकल रिकॉर्ड में दर्ज था। कमर से ऊपर का हिस्सा सामने से एकदम खुला हुआ था, मगर इर्द-गिर्द जो गाउन पड़ा दिखाई दे रहा था, उस पर लगे खून के बड़े धब्बे अपनी कहानी आप कह रहे थे।
बेड के पीछे सिरहाने की तरफ एक बिना ग्रिल वाली खिड़की थी, जिसने खासतौर से दोनों का ध्यान आकृष्ट किया। अंबानी अगर चलने फिरने की हालत में होता तो वहाँ से बाहर निकलकर चुपचाप वापिस लौट आना कोई बड़ी बात नहीं होती, बशर्ते कि नर्स उसके खेल में शामिल होती।”
“देख लिया?”
“जी देख लिया।”
“अब जाओ।”
कहकर नर्स ने उन्हें बाहर कर के दरवाजा बंद कर लिया।
दोनों बाहर निकलकर कार में जा बैठे।
“अब क्या कहते हो?” वंशिका ने पूछा।
“हालत तो उसकी बुरी ही दिखाई देती है।”
“और मैं क्या कह रही थी।”
“मगर वह दिखावा भी हो सकता है। चेहरे पर मलहम के अलावा और हमें नजर भी क्या आया था?”
“जवाब नहीं तुम्हारा पार्थ साहब। अरे कोई एक फैसला तो करो; या तो वह ठीक है या फिर नौटंकी कर रहा है। अगर नौटंकी कर रहा है तो कातिल हो सकता है, नहीं कर रहा है तो मौर्या की हत्या किसी और ने की है।”
“अगर नौटंकी कर रहा है तो समझ लो कि डॉक्टर के साथ-साथ भीतर मौजूद नर्स भी उसके साथ मिली हुई है। वरना दरवाजा बंद कर के रखने का क्या मतलब बनता है, मरीज क्या उठकर कहीं भाग जायेगा?”
“इसलिए बैठी है क्योंकि वह खास पेशेंट है।”
“नहीं, कोई न कोई गड़बड़ जरूर है।”
“इसलिए है क्योंकि हर बात पर शक करना तुम्हारी आदत बन चुकी है।”
“वो तो हमारे धंधे का पहला उसूल है। शक करो, फिर या तो उसे दूर कर दो या फिर उसे सही साबित करो, केस फौरन सॉल्व हो जायेगा।”
“मुझे तो बस एक बात हैरान कर रही है।”
“कौन सी?”
“हॉस्पिटल में पड़ा एक अरबपति बिजनेसमैन अभी भी वही गाउन लपेटे हुए है, जो हमले के वक्त पहने रहा होगा क्योंकि खून और तेजाब के धब्बे मुझे साफ दिखाई दिये थे।”
“क्या पता कोमा में होने के कारण उसकी हालत ऐसी न हो कि उसे गाउन बदलकर कुछ और पहनाया जा सके।”
“क्या कहने तुम्हारे। अपने मतलब के हिसाब से कभी उसे कोमा में बताते हो, कभी कहते हो नौटंकी कर रहा है।”
“मेरे ख्याल से तो कर ही रहा है।”
“तो भी ये संभव नहीं जान पड़ता कि मौर्या के घर पहुँचकर वह पांच फीट ऊंची बाउंड्री लांघकर उसका कत्ल कर आया हो। मेरे ख्याल से तो ऐसा सोचना भी मूर्खता होगी।”
“मैं मूर्ख नहीं हूँ बेबी।”
“अच्छा हुआ तुमने बता दिया।” कहकर उसने पूछा – “यहाँ रूके रहने का कोई फायदा?”
“दिखाई तो नहीं दे रहा।”
“तो फिर चलते क्यों नहीं?”
जवाब में पार्थ ने कार आगे बढ़ा दी।
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