फिर जब वहां तीव्र प्रकाश फैला तो देवराज चौहान उठ खड़ा हुआ। इतने लम्बे वक्त तक बैठे रहने से, उसके जिस्म का एक-एक हिस्सा दर्द कर रहा था। सिर से पांव तक नसों में थकान से भरा खिंचाव आ गया था। नींद न लेने की वजह से आंखें सूज-सी रही थीं।

महाजन और जगमोहन भी खड़े हो गये। नजरें देवराज चौहान पर थीं।

देवराज चौहान आगे बढ़ा और पिंजरों के पास पहुंचकर पहले वाले पिंजरे की छोटी-सी खिड़की खोली और भीतर हाथ डालकर नन्ही-सी चिड़िया को मुट्ठी में दबाकर हाथ बाहर निकाल लिया।

“ये-ये क्या कर रहे हो।” जगमोहन ने सूखे होंठों पर जीभ

फेरी। चेहरे का रंग बदल गया था।

“कोई गलत कदम मत उठा बैठना।” महाजन जल्दी से बोला।

“देवराज चौहान!” पिंजरे में कैद भामा परी व्याकुल स्वर में कह उठी-“हम सब जलकर राख हो जायेंगे, अगर तुमने गलत

चिड़िया की गर्दन तोड़ी तो। अभी भी वक्त तुम्हारे हाथ में-।”

“तिलस्म को तबाह करने वाला खून, इसी चिड़िया की गर्दन में मौजूद है।” देवराज चौहान शांत किन्तु गम्भीर स्वर में वह उठा-“अगर सच में इस चिड़िया की गर्दन में वो खून नहीं है तो फिर किसी भी हालत में हम उस चिड़िया को नहीं तलाश कर पायेंगे, जिसकी गर्दन में तिलस्म को तबाह करने वाला लहू मौजूद है।”

कुछ पलों के लिये पैना सन्नाटा छा गया वहां।

“कैसे कह सकते हो कि ये ही वो चिड़िया हैं, जिसकी गर्दन में तिलस्म की तबाही छिपी है।” जगमोहन ने शब्दों के चबाकर पूछा।

देवराज चौहान ने हाथ में दबी चिड़िया को देखा फिर जगमोहन देखकर सख्त मुस्कान के साथ बोला।

“जिस चिड़िया की गर्दन में तिलस्म को तबाह करने का खून मौजूद होगा, वो अवश्य अन्य चिड़िया से हटकर ही हरकत करेगी। सामान्य नहीं रह सकती। यही सोचकर मैंने चिड़िया पर नज़र रखनी शुरू की कि उस अलग पहचान वाली चिड़िया को पहचान सकूँ। यही वजह रही कि मैं चिड़ियों पर नज़र रखता रहा। उनकी हरकतों की पहचान करता रहा। यूं तो सब बातें सब चिड़ियों में एक-जैसी थीं, परन्तु एक असामान्य बात इस चिड़िया में है। जिसकी वजह से ये सबसे हटकर है।”

“कैसी बात?” महाजन के होंठों से निकला।

“रात होने पर सब चिड़ियाँ थक कर नींद ले लेती हैं, परन्तु इस चिड़िया ने नींद नहीं ली।” देवराज चौहान ने कहा।

“ये कैसे हो सकता है?” महाजन की आंखें सिकुड़ीं।

“यही हुआ है। इस चिड़िया ने नींद नहीं ली और इसके बावजूद भी ये फ्रेश रही यानि कि इसमें खास ही ताकत है। अन्य पांच चिड़ियों से हटकर है ये।” देवराज चौहान ने अपने शब्दों पर जोर देकर कहा-“तीन रातें मैंने इस बात को खासतौर से देखा। ऐसे में अगर इस चिड़िया की गर्दन में तिलस्म को तबाह करने वाला खून मौजूद नहीं है तो समझो फिर हम अपने काम की चिड़िया को, इन चिड़ियों में से किसी भी हालत में तलाश नहीं कर सकते।”

पल भर के लिये वहां खामोशी छा गई।

जगमोहन और महाजन बेहद व्याकुल नज़र आ रहे थे।

पिंजरे में कैद, भामा परी परेशान सी हुई पड़ी थी।

“अब-अब क्या करोगे?” जगमोहन के होंठ खुले।

“मैं इस चिड़िया की गर्दन तोड़ने जा रहा हूं।”

“अगर ये गलत चिड़िया रही तो हम सब जल कर राख हो जायेंगे।” महाजन ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी।

“हां।” देवराज चौहान के चेहरे पर कठोर मुस्कान उभरी-“अगर ये गलत चिड़िया रही तो हम सब अवश्य जलकर राख हो जायेंगे। बोलो गर्दन तोड़ूँ या नहीं?”

जगमोहन और महाजन की नज़रें मिलीं।

“आज नहीं तो कल या फिर कभी-।” भामा परी व्याकुल-गम्भीर स्वर में कह उठी-“ये कदम तो उठाना ही पड़ेगा। वरना भूख-प्यास से तड़प-तड़प कर मर जाओगे।”

“तुम्हारी जिन्दगी-मौत भी हमारे साथ हैं।” देवराज चौहान ने भामा परी को देखा-“अगर वास्तव में तुम भामा परी हो। जिन्न बाधात का कोई रूप नहीं हो तो?”

“मैं भामा परी ही हूं।” वो गहरी सांस लेकर कह उठी।

देवराज चौहान की निगाह जगमोहन और महाजन पर गई।

दोनों अब देवराज चौहान को देखने लगे थे।

“अगर तुम्हें आधा भी विश्वास है कि तिलस्म की तबाही वाला खून, इसी चिड़िया की गर्दन में मौजूद है तो बेशक इसकी गर्दन तोड़ दो।” महाजन के दांत भिंच गये थे, कहते हुए।

“तुम क्या कहते हो?” देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा।

“कब तक इस तरह पड़े रहेंगे।” जगमोहन शांत-गम्भीर स्वर

में बोला-“इस तरह पांच-सात दिन और जी लेंगे। ऐसे जीने से तो बेहतर है कि कोशिश करके देखा जाये। बच गये तो बच गये। मर गये तो मर गये। क्यों महाजन ठीक बोला कि गलत-”

महाजन ने तगड़ा घूंट भरा और हौले से हंस पड़ा।

“बिलकुल ठीक कहा-।”

देवराज चौहान की निगाह मुट्ठी में दबी चिड़िया पर जा टिकी।

सब ही अब उस चिड़िया को देख रहे थे, परन्तु वहां के वातावरण में अजीब-सी सनसनी फैल चुकी थी।

“देखा।” मुट्ठी में दबी चिड़िया कह उठी-“मेरी बात सच निकली कि मेरी ही गर्दन में तिलस्म की तबाही वाला खून है। याद है सबसे पहले मैंने ही कहा था कि मेरी गर्दन में तिलस्म की तबाही वाला खून है। मेरी गर्दन तोड़ दो।”

तभी पिंजरे में मौजूद चिड़िया की आवाज आई।

“बहुत झूठी है तू-। क्यों इन मनुष्यों की जान की दुश्मन बनी

हुई है। मनुष्यों, सावधान हो जाओ। अभी भी वक्त है। इसकी गर्दन में तिलस्म की तबाही वाला लहू नहीं है। इसकी गर्दन तोड़ी तो तुम सब जल कर राख हो जाओगे।”

“ये ठीक कह रही है।” तभी दूसरी चिड़िया कह उठी-“वो खास लहू तो शैतान के अवतार ने मेरी गर्दन में रखा है। मुझे पकड़ो और मेरी गर्दन तोड़ो। तुम सब आजाद हो जाओगे। ये तिलस्म तबाह हो जायेगा।”

“ये भी झूठ कह रही है।” अन्य चिड़िया कह उठी-“वो खून

मेरी गर्दन में रखा है शैतान के अवतार ने। जिसे तुमने पकड़ रखा है, वो साधारण चिड़िया है। तुम मनुष्यों की जान की दुश्मन बनी हुई है। तभी तो तीन रातों से इसने नींद नहीं ली और तुम धोखे में आ गये कि इसमें खास शक्ति है। ये ही वो चिड़िया हो सकती है, जिसकी गर्दन में तिलस्म को तबाह करने वाला खून रखा हुआ है।”

“अब में अपने मुंह से क्या कहूं।” छठी वाली चिड़िया कह

उठी-”मनुष्य इतने मासूम होते है कि आसानी से धोखे में फंस जाते हैं। ये बात मुझे पहले पता होती तो मैंने कब का इन्हें फांस लेना था।”

“ये सब गलत कह रही हैं।” मुट्ठी में फंसी चिड़िया कह उठी-“जल्दी से मेरी गर्दन तोड़ो।”

चेहरे पर मौत के सर्द भाव समेटे देवराज चौहान ने मुट्ठी में दबी चिड़िया की गर्दन को, दूसरे हाथ में थामा। पतली-सी गर्दन अंगूठे और उंगली के बीच ही अच्छी तरह फंस गई थी।

महाजन ने जल्दी से घूंट भरा और आंखें बंद कर ली।

जगमोहन होंठ भींचे चिड़िया की गर्दन को देख रहा था।

“हे मेरे देवता!” भामा परी बुदबुदा उठी-“हमारी रक्षा करना।”

उसी पल देवराज चौहान ने अपने हाथ को तीव्र झटका दिया।

चिड़िया की गर्दन ऐसे टूट कर दूसरे हाथ में आ गई, जैसे तोले को तोड़ा जाता है। गर्दन और चिड़िया के शरीर के दूसरे हिस्से से बहता खून, देवराज चौहान के हाथों में रंगता हुआ फर्श पर नीचे गिरने लगा।

हर कोई सांसें रोके खड़ा था।

जगमोहन के चेहरे पर कई रंग आ-जा रहे थे।

महाजन ने तो आंखें बंद कर रखी थीं।

भामा परी व्याकुल सी इधर देख रही थी।

देवराज चौहान के होंठ भिंचे हुए थे। आंखों में जैसे मौत चमक रही थी।

उसी पल ऐसी गड़गड़ाहट गूंजी जैसे बड़े-बड़े बादल आपस में टकरा गये हों। जमीन में तीव्र कम्पन होने लगा। गड़गड़ाहट बढ़ती जा रही थी। जमीनी कम्पन हर पल तीव्र होता जा रहा था।

“ये क्या हो रहा है।” महाजन ने आंखें खोली। उसकी निगाह देवराज चौहान के हाथ में गर्दन तोड़ी चिड़िया पर पड़ी तो हड़बड़ाकर उठा-“ओह, गर्दन तोड़ दी-।”

कोई कुछ नहीं बोला।

तभी जमीन जोरों से कांपी।

कमरा जोरों से हिला। वो खुद को संभाल नहीं पाये और लड़खड़ाकर नीचे गिरे। देवराज चौहान भी गिरा, परन्तु चिड़िया के शरीर के हिस्सों को मुट्ठी में ही दबाये रखा। भामा परी का पिंजरा भी गिर गया था। फर्श अभी भी कांप रहा था। गड़गड़ाहट की आवाजें बढ़ती ही जा रही थीं।

एकाएक सब कुछ थम गया, जैसे किसी ने स्विच ऑफ कर दिया हो। हर चीज अपनी जगह स्थिर हो गई। गड़गड़ाहट की आवाजें बंद हो गईं। परन्तु कान अभी भी ऐसे बज रहे थे कि आवाजें आ रही हों। शरीर को भी ऐसा लग रहा था, जैसे वो अभी भी हिल रहे हों।

देवराज चौहान की निगाह मुट्ठियों पर गई तो चेहरे पर अजीब

से भाव उभरे।

उसके हाथों की मुट्ठियों में अब न तो चिड़िया की गर्दन थी और न ही उसका बाकी का शरीर।

हाथ जो खून से लथपथ थे। फर्श पर जहां खून गिरा था। वो सब गायब हो चुका था। कहीं भी खून नहीं था। उसकी निगाह फौरन चिड़ियों के पिंजरों पर गई। पिंजरे अपनी जगह मौजूद थे। लेकिन उनमें अब कोई चिड़िया नहीं थी।

“हम मर गये या जिन्दा हैं।” महाजन बोला-“कुछ पता तो लगे।”

“यहां पर हमारी मौत आग में घिर कर होगी।” जगमोहन ने कहा।

“तो आग लग क्यों नहीं रही? कुछ हो क्यों नहीं रहा?” महाजन ने जगमोहन को देखा।

जगमोहन ने देवराज चौहान पर निगाह मारी।

“क्या हुआ?”

“मेरे ख्याल से हम सफल हो गये हैं। बच गये।” देवराज चौहान अजीब-से अंदाज में मुस्कराया-“तिलस्म तबाह हो गया है।”

“मेरा भी यही ख्याल है।” पिंजरे में भामा परी कह उठी।

“अगर तिलस्म तबाह हो गया है तो यहां ये सब कुछ वैसे ही नजर क्यों.....।” जगमोहन के शब्द पूरे न हो सके।

उसी पल, पलक झपकने का ही अंतर रहा होगा।

एकाएक सब कुछ गायब हो गया, जो नजर आ रहा था।

अब वहां न कोई कमरा था। न रास्ता। न दीवार। न छत। भामा परी के गिर्द अब पिंजरे का कोई घेरा नहीं था। हर तरफ, दूर-दूर तक जंगल और पथरीली-सी जगह नजर आ रही था।

“आह-!” महाजन खुशी से चिल्ला उठा-“तिलस्म गायब हो गया! हर मायावी चीज लुप्त हो गई!”

“मेरी कोशिश सफल रही।” देवराज चौहान गहरी सांस लेकर मुस्करा पड़ा-“वैसे तो उस चिड़िया की गर्दन तोड़ते समय मुझे पूरा विश्वास था कि मैं ठीक कर रहा हूं। फिर भी मन में शंका तो अवश्य थी कि कहीं गलत न हो जाये।”

“तुमने तो कमाल कर दिया।” जगमोहन का चेहरा खुशी से चमक रहा था।

“मैंने कोशिश की थी, जो कि सफल रही।” देवराज चौहान बराबर मुस्करा रहा था-“हम जल कर राख भी हो सकते थे-।”

“लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। तुम वास्तव में श्रेष्ठ मनुष्य हो।” भामा परी कह उठी।

देवराज चौहान ने भामा परी को देखा।

“और तुम वास्तव में भामा परी हो। जिन्न बाधात की कोई चाल नहीं।” देवराज चौहान बोला-“लेकिन उस वक्त हम तुम्हारी बात पर विश्वास करने की स्थिति में नहीं थे।”

“विश्वास न करके भी तुम मनुष्यों ने मेरा विश्वास किया।” भामा परी मुस्कुराई। उसके मोतियों जैसे दांत चमक उठे।

“वो कैसे?” देवराज चौहान पूछ उठा।

“मैंने जो कहा, जैसा कहा, तुमने वैसा ही किया। मैंने ही तुम्हें बताया था कि तिलस्म कैसे टूटेगा। मैं जिन्न बाधात की कोई चाल होती तो, तुम मनुष्यों को गलत रास्ते पर भी लगा सकती थी।”

जवाब में देवराज चौहान सिर हिलाकर गम्भीर स्वर में बोला।

“तुम्हारी बातों का मान लेना, हमारी मजबूरी थी। क्योंकि यहां कोई भी हमें रास्ता बताने वाला नहीं था। किसी पर तो विश्वास करना ही था। किसी की बात तो माननी ही थी। तुम पर विश्वास नहीं था, लेकिन तुम्हारी बातों को सच मानकर ही ये कदम उठाया। हम-।”

“देवराज चौहान।” महाजन कह उठा-“तिलस्म समाप्त होते ही हमारे बाकी साथी जहां भी होंगे, हर मुसीबत से आजाद हो गये होंगे। अब उहें मौत का डर नहीं रहा होगा।”

“अगर वो जिन्दा बचे हों तो-।” जगमोहन के होंठ भिंच गये कहते हुए।

“अब पता कैसे चले कि कौन-कौन बचा है और वो कहां हैं।” महाजन गम्भीर नजर आने लगा।

“उन्हें ढूंढना होगा।” देवराज चौहान ने नीचे रखी तलवार उठा ली-“हम-।”

“अपने साथी मनुष्यों की फिक्र मत करो।” भामा परी कह उठी-“वो जहां भी हैं, मैं उन्हें तलाश करके ले आऊंगी। ज्यादा देर नहीं लगेगी।”

तीनों की निगाह भामा परी पर गई।

“तो फिर देर किस बात की।” जगमोहन बोला-“जल्दी से उन्हें-।”

“तुम तीनों बहुत ही खास बात भूल रहे हो।” भामा परी गम्भीर हो गई।

“तिलस्म के तबाह होने के पश्चात अब तुम मनुष्यों को शैतान के अवतार से लड़ना है।”

“ओह-!” महाजन के होंठ भिंच गये-“ये तो हम भूल गये थे-।”

“यहां हम शैतान के अवतार को ही खत्म करने आये हैं कि वो गुरुवर के यज्ञ को खराब करने या उनकी शक्तियों से भरी बाल

के को प्राप्त करने में सफल न हो जाये-।” देवराज चौहान के स्वर में दरिन्दगी से भरी झलक आ गई थी।

“शैतान के अवतार की तरफ से भी ये बात है कि जो भी उनके बनाये तिलस्म को तबाह करेगा, उसे उसका मुकाबला करना होगा।” भामा परी परेशान-सी हो उठी थी-“लेकिन तुम लोग उसकी शक्तियों का मुकाबला नहीं कर सकते। वो पलों में ही, अपनी किसी भी शक्ति का इस्तेमाल करके, तुम सब को खत्म कर देगा।”

“मैं जानता हूं, तुम ठीक कह रही हो।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा-“लेकिन हम पीछे नहीं हट सकते। जो काम करने आये हैं, उसे पूरा करने की कोशिश अवश्य करेंगे।”

भामा परी कुछ नहीं बोली।

“तिलस्म को तबाह करना सम्भव नहीं था।” जगमोहन कठोर स्वर में कह उठा-“लेकिन हमने असम्भव काम को कर दिखाया। इसी तरह शायद हम शैतान के अवतार को भी खत्म कर दें।”

“मेरी बात को मजाक में मत लो।” भामा परी ने परेशान स्वर में समझाने की कोशिश की-“बड़ी-से-बड़ी ताकतें भी शैतान के अवतार का मुकाबला नहीं कर सकतीं। उसका मुकाबला करने

के लिये किसी खास ही शक्ति ही जरूरत है। शैतान के अवतार के लिये ये शक्तियों से भरी तलवार कोई महत्व नहीं रखती।”

“शैतान का अवतार कहां मिलेगा?” देवराज चौहान ने सर्द स्वर में पूछा।

“इस वक्त वो अवश्य अपने काले महल में पहुंच गया होगा।” भामा परी दुःखी स्वर में कह उठी।

“काला महल?”

“हां काला महल। शैतान के अवतार का खास है। वहां उसकी शक्तियां पूरी ताकत के साथ काम करती हैं। उसकी शक्तियां काले महल में और भी शक्तिशाली हो जाती हैं।” भामा परी की आवाज में उदासी के भाव आ गये-“मैं जानती हूं वहां तुम सारे मनुष्य मारे जाओगे। वहां-।”

“काले महल तक पहुंचने का रास्ता किधर है?” देवराज चौहान की आंखों में वहशी भाव नजर आ रहे थे।

“तलवार की शक्तियों के सहारे तुम लोग पलों में ही खुद को

काले महल में पाओगे।” भामा परी की आंखों में आंसू चमक

उठे-“तुम सबने मुझे अस्सी बरस की कैद से मुक्ति दिलाई। मैं तुम मनुष्यों का भला करना चाहती हूं लेकिन-लेकिन तुम सब तो मौत पाने के लिए आगे बढ़ रहे हो।”

“हम काले महल में जा रहे हैं।” देवराज चौहान के होंठों से गुर्राहट निकली।

“अभी नहीं।” जगमोहन ने टोका-“पहले अपने साथियों से

तो मिल ले। भामा परी हमारे साथियों को तलाश करके हमारे पास ला सकती हो?”

“हां। इस काम में ज्यादा देर नहीं लगेगी।” भामा परी ने उदास-गमगीन स्वर में कहा-“तुम तीनों शैतान के अवतार के काले महल में पहुंचों। मैं तुम्हारे साथियों को वहीं लेकर आती हूं। हे देवता, इन भोले-भाले मनुष्यों की रक्षा करना।” इसके साथ ही भामा परी के पंख फैलते नजर आये और देखते ही देखते वो पंखों के सहारे आकाश में उड़ती चली गई। फिर निगाहों से ओझल हो गई।

महाजन ने घूंट भरा फिर देवराज चौहान से कहा।

“काले महल भी चलते हैं। शैतान के गले भी मिलेंगे। पहले कुछ खिला दो। भूख ने बुरा हाल कर रखा है।”

नहा-धोकर देवराज चौहान, जगमोहन और महाजन ने खाना खाया।

देवराज चौहान की आंखों में नींद थी। शरीर में थकान थी, परन्तु उसके पास इतना वक्त नहीं था कि आराम कर सके। नींद ले सके। भामा परी उसके साथियों को लेकर कभी भी शैतान के अवतार के काले महल में पहुंच सकती थी। ऐसे में उसका वहां मौजूद होना जरूरी था।

“चले, शैतान के अवतार के काले महल में-।” देवराज चौहान

ने दोनों को देखा।

“बेहतर होगा तुम आराम कर लो।” महाजन बोला-“नींद ले लो-।”

“नींद लेने का वक्त नहीं रहा। भामा परी सबको लेकर काले महल में कभी भी पहुंच सकती है।” देवराज चौहान ने कहा।

“ये बात तो है।” महाजन ने गर्दन हिलाई।

“मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि काले महल में पहुंचकर हम शैतान के अवतार की शक्तियों का मुकाबला कैसे करेंगे।” जगमोहन बोला।

देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा होंठ भिंच गये। कहा कुछ नहीं।

“कुछ भी समझने की जरूरत नहीं।” शैतान के अवतार और हमारे बीच मुकाबले जैसी कोई बात नहीं होगी।” महाजन ने लापरवाही भरे स्वर में कहते हुए घूंट भरा-“उसे अपनी ताकत के दम पर सेकेंडों में हमें खत्म कर देना है।”

“ऐसा है तो फिर हम वहां जा ही क्यों रहे हैं?” जगमोहन ने कठोर निगाहों से महाजन को देखा।

“शैतान के अवतार के दर्शन करने जा रहे हैं।” महाजन मुस्करा कर कह उठा।

“तुम मेरी बात को मजाक में क्यों ले रहे हो?”

“इसलिये कि तुम्हारे सवाल का जवाब है ही नहीं।” महाजन बोला-“मैं तुमसे ज्यादा गम्भीर हूं शैतान के अवतार के बारे में। और इस बात को भी स्पष्ट तौर पर महसूस कर रहा हूं कि हम शैतान के अवतार का मुकाबला नहीं कर सकते।” देवराज चौहान ने सख्त गम्भीर स्वर में कहा-“मेरे ख्याल में हम वहां अपनी जान गंवाने जा रहे हैं।”

जगमोहन ने आंखें बंद करके गहरी सांस ली।

महाजन ने बोतल होंठों से लगाई तो तभी हटाया, जब वो खाली हो गई।

“मुझे कमर से पकड़ लो।” देवराज चौहान का गम्भीर स्वर कठोर हो गया।

जगमोहन और महाजन की नजरें मिलीं।

“पकड़ ले भाई-।” महाजन मुस्कराया-“चढ़ जा मौत की पहली सीढ़ी-।”

दोनों ने देवराज चौहान को पक्की तरह कमर से पकड़ लिया।

“हे तलवार-।” देवराज चौहान हाथ में थमी तलवार को देखकर बुदबुदाया-“हमें काले महल में ले चल-।”

देवराज चौहान के शब्द पूरे ही हुए थे कि एकाएक तीनों ऐसे गायब हो गये, जैसे हवा में घुल गये हों।

☐☐☐

देवराज चौहान, जगमोहन और महाजन ने खुद को बाग की मखमली घास पर पाया। तीनों ने नजरें घुमाईं तो निगाह ठीक सामने जा टिकी।

सामने खूबसूरत महल था।

परन्तु वो काला स्याह था। हर तरफ कालापन ही था। कहीं भी दूसरा रंग नहीं था। दीवारें या खिड़कियां-दरवाजे, सब काली थीं।

महल की एक मंजिल ऊपर भी बनी हुई थी।

वो तीनों महल के सामने वाले लॉन में मौजूद थे और वहां से  दूर अन्य इमारतें मकान भी बने नजर आ रहे थे, परन्तु उनके रंग काले नहीं थे।

वहां कोई और नजर नहीं आया।

“ये है काला महल-।” महाजन कह उठा।

“काला महल कह लो या हमारी जिन्दगी का अन्तिम पड़ाव कह लो। यहीं हमने मर जाना है।” जगमोहन ने गहरी सांस ली।

“फिर भी हमने अच्छी किस्मत पाई है।” देवराज चौहान मुस्करा कर बोला।

“इसे तुम अच्छी किस्मत कहते हो।” जगमोहन ने जले-भुने स्वर में कहा।

“हां। क्योंकि हमने अपनी मौत की जगह का चुनाव खुद किया है और हमें मालूम है हम मरने वाले हैं।” देवराज चौहान ने उसी लहजे में कहा-“वरना लोगों को तो मालूम भी नहीं होता कि वो कहां और कब मरेंगे। हमें कम से कम इस बात का एहसास तो है कि हमारा ये जीवन खत्म होने जा रहा है।”

“इसे तुम अच्छी किस्मत कहते हो।”

“हां।” देवराज चौहान बराबर मुस्करा रहा था।

“सुना महाजन-।” जगमोहन ने कड़वे स्वर में कहा।

“सब सुन रहा हूं-।” महाजन ने हाथ में थमी हुई बोतल से घूंट भरा-“रोने जैसा मुंह क्यों बना रखा है। कम से कम अब हमें इस बात की तो तसल्ली होनी चाहिये कि हमारी मौत शैतान के अवतार जैसी हस्ती के हाथों होने जा रही है। किसी मामूली सिपाही से लड़का से नहीं मरने जा रहे। इसे इज्जत की मौत मरना कहते हैं।”

“तेरा दिमाग भी हिल गया लगता है।”

“तू दिमाग की बात कर रहा है। यहां तो सब कुछ हिला पड़ा है। तुझे ही नजर नहीं-।”

“वो देखो-।” जगमोहन की निगाहें आसमान की तरफ थीं-“भामा परी आ रही है।”

देवराज चौहान और महाजन ने भी ऊपर देखा।

भामा परी ठीक उनके सिरों पर थी और पंख फैलाती नीचे उतर रही थी। उसने दोनों हाथों से पांच फीट के व्यास का एक गोल दायरा पकड़ रखा था। जिस पर बांकेलाल राठौर और पारसनाथ लटके हुए थे।

“बांके-।” जगमोहन के होंठों से निकला-“दूसरा पारसनाथ है।”

देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान उभर आई।

महाजन ने हौले से हंस कर, घूंट भरा।

भामा परी नीचे आकर खड़ी हो गई।

बांकेलाल राठौर और पारसनाथ के पांव भी नीचे जमीन पर लगे।

“तम यां पे ऐशो करो हो।” बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर पहुंचा। नजरें तीनों पर फिरी-“अम वां पे ऐशो करो हो।”

“जैसी ऐश हमने की है।” जगमोहन ने तीखे स्वर में कहा-“वैसी तूने नहीं की होगी।”

“तन्ने तगड़ी ऐश की लगी हो।”

“भामा परी ने बलाया कि तुम लोगों ने तिलस्म तोड़ा है।” पारसनाथ के चेहरे पर गम्भीर मुस्कान उभरी।

“गलती से तिलस्म टूट ही गया।” जगमोहन बोला-“अपनी मौत का रास्ता खुद ही हमने साफ किया है।”

देवराज चौहान ने भामा परी से कहा।

“बाकी लोग कहां हैं?”

“मैं देख चुकी कि वो कहां हैं। अभी उन्हें भी लेकर आई-।”

“तुम शैतान के अवतार के यहां हो।” जगमोहन बोला-“तुम फिर फंस सकती हो।”

“अभी मुझे कोई डर नहीं। शैतान का अवतार पहले तुम मनुष्यों को खत्म करेगा। फिर मेरी तरफ ध्यान देगा। क्योंकि वो जानता है कि रहम दिल परियां किसी को नुकसान नहीं पहुंचा सकतीं। मेरी तरफ से वो निश्चिंत रहेगा।” कहने के साथ ही भामा परी ने पंख फैलाये और वो आसमान में उड़ी चली गई।

“तंमने तो तिलस्म को ‘वड’ ही दिया। ईब का करो हो यां पे-।”

“हम सब अब मरने जा रहे हैं।” जगमोहन बोला।

“अंम मरेंगे-कौन बोलो हो?”

“मैं कह रहा हूं। क्योंकि शैतान के अवतार की तरफ से तय था कि जो उसका तिलस्म तोड़ेगा, उसे उसका मुकाबला करना होगा। वैसे भी तो हम यहां शैतान के अवतार को खत्म करने ही आये हैं।”

“ठीको बोलो। वो म्हारे गुरुवर को परेशान करो हो कि-।”

“लेकिन हम शैतान के अवतार का मुकाबला कैसे करेंगे।” पारसनाथ अपने खुरदुरे चेहरे पर हाथ फेरने लगा-“उसके पास अथाह शक्तियों का भंडार है और हमारे पास तो उसके मुकाबले के लिये कुछ भी नहीं।”

“मैं तो पहले ही कह रहा हूं कि हम मरने जा रहे हैं।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा।

“म्हारे होते हुओ तंम फिक्र क्यों करते हो।” बांकेलाल राठौर के होंठों से खतरनाक स्वर निकला-“वड के रख देंगे शैतान के अवतारो को।”

“कैसे मारोगे उसे-?” महाजन ने उसे घूरा-“बोलोगे मर जा, तो वो मर जायेगा।”

बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर पहुंच गया। नजरें महाजन पर चेहरे पर दरिन्दगी के भाव आ ठहरे थे, परन्तु आंखों में परेशानी मचलती नजर आई।

☐☐☐

ज्यादा देर नहीं लगी भामा परी को वापस आने में। वैसा ही गोल दायरा उसने थाम रखा था और उसे पकड़कर लटक रहे थे, मोना चौधरी, सोहनलाल, रुस्तम राव, राधा, सरजू, दया और साथ में वो युवती भी थी जो तिलस्म के खण्डहर में मिट्टी के बुत के रूप में खड़ी थी, परन्तु देवराज चौहान के हाथ में मौजूद शक्तियों से भरी तलवार के माथे पर छू जाने से, उसमें जीवन आ गया था। जिसने देवराज चौहान, महाजन और जगमोहन को तिलस्म के ताले तक जाने के लिये लोहे की मीनार का रास्ता बताया था।

वो सब जमीन पर आ उतरे।

भामा परी ने पंख समेट लिए। उसके हाथों में थमा गोल दायरा गायब हो गया।

“बेबी-!” महाजन के चेहरे पर मुस्कान फैल गई-“कैसी हो बेबी?”

“एकदम ठीक।” मोना चौधरी भी मुस्कराई। परन्तु वो गम्भीर थी।

“छोरे!” बांकेलाल राठौर कह उठा-“तंम भी म्हारी तरहो कई पे ऐश करो हो।”

“तुम क्या ऐश करेला बाप?” रुस्तम राव मुस्कराया।

“कोनो में चल्लो। तब थारो कानो में फूंको मारो के बतायो।”

“नीलू-!” राधा दौड़ी और महाजन से जा लिपटी-“कैसा है रे तू-?”

“ठीक हूं राधा।” महाजन ने उसकी पीठ थपथपाई।

“तूने कहीं बहादुरी तो नहीं दिखाई?” राधा ने अलग होते हुए पूछा।

“बहादुरी?” महाजन ने गहरी सांस ली-“नहीं, मैंने कहीं भी बहादुरी नहीं दिखाई।”

“अच्छा किया। बुरे लोगों के मुंह नहीं लगना चाहिये। मैं तो यही सोचती थी कि कहीं तू गुस्से में बहादुरी दिखा दे। चल छोड़ इन बातों को। बहुत दिन हो गये। प्यार करते हैं।” राधा ने महाजन की कलाई पकड़ ली।

“प्यार?”

“हां। उधर चलते हैं। बहुत मन कर-।”

“जरूर-जरूर।” महाजन ने घूंट भर कर कहा-“इधर-उधर क्या चलना है। महल के भीतर चल रहे हैं। वहां कहीं आराम से जो करना होगा, करेंगे। आखिर हम मियां-बीवी हैं।”

“तो फिर सोचना क्या है। चल भीतर-।”

“चलते हैं। ये शैतान के अवतार का महल है। सब एक साथ ही भीतर चलेंगे।”

मिट्टी के बुत वाली युवती देवराज चौहान के पास पहुंची और दोनों हाथ जोड़कर बोती।

“मेरे जीवनदाता! अगर तूने मिट्टी के इस बुत में जान न डाली होती तो तिलस्म टूटने के साथ, में खत्म हो जाती। ये जीवन तेरा है। बोल-बता मुझे, मैं तेरे लिये क्या करूं?”

“भामा परी तुम्हें कैसे ले आई?? देवराज चौहान ने पूछा।

“मेरे आग्रह पर। परी मेरे ऊपर से ही जा रही थी। मैंने इसे बुलाया। पता चला कि वे तुम्हें जानती है तो मेरे कहने पर ये तुम्हारे पास ले आई।” उसने मुस्कराकर कहा-“शैतान के अवतार का तिलस्म तोड़कर तूने बहुत ही अच्छा किया। तिलस्म के भीतर लोगों को फंसा कर वो जाने कितनों की जान ले चुका है।”

“तुम मेरे लिये क्या कर सकती हो?”

“जो हुक्म करो-।”

“शैतान के अवतार से लड़ाई होने वाली है। मैं उसका मुकाबला नहीं कर सकता। तुम इसमें मेरी क्या सहायता कर सकती हो।”

वो कुछ क्षण चुप रही फिर धीमे स्वर में बोली।

“मैं नहीं जानती कि इस मामले में तुम्हारी क्या सहायता कर सकती हूं। वक्त आया तो शायद कुछ कर सकूं-।”

देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा। गम्भीर सोचों में डूबे सिगरेट सुलगा ली।

सब आपस में बातें करने में व्यस्त थे।

हर कोई गम्भीर-परेशान था।

मोना चौधरी, देवराज चौहान के पास पहुंची।

“तिलस्म का टूटना अच्छा रहा।” मोना चौधरी ने कहा-“लेकिन हम शैतान के अवतार से टक्कर नहीं ले सकते।”

“मैं तुम्हारी बात से सहमत हूं-।” देवराज चौहान ने कहा।

“तो अब क्या किया जाये?”

“हम कुछ नहीं कर सकते। शैतान के अवतार से लड़ने के लिये हमें जबर्दस्त मायावी शक्तियों वाले हथियार चाहिये, जो कि हमें कहीं से भी हासिल नहीं हो सकते। यूं समझो कि हम खाली हाथ हैं और सामने दुश्मन के हाथ में गन है। ऐसे में मुकाबला करना तो दूर, अपना बचाव करने की स्थिति में भी नहीं हैं हम-।”

मोना चौधरी मुस्करा पड़ी।

“मतलब कि तुम इस बात को स्वीकार कर चुके हो कि हमारी मौत आ गई है।”

“सच बात को स्वीकार करने में पीछे नहीं हटना चाहिए।” देवराज चौहान के होंठों पर भी मुस्कान उभरी।

“जब मुझे लगेगा कि मैं मरने जा रही हूं तभी मैं मौत के एहसास को स्वीकार करूंगी।”

“मैं तुम्हें मजबूर नहीं कर रहा कि मेरी तरह ही तुम सोचो।” देवराज चौहान ने कह दिया।

सरजू, दया और मिट्टी के बुत वाली युवती से सबकी पहचान हो गई थी।

देवराज चौहान भामा परी के पास पहुंचा।

“तुमने बताया था कि नगीना को शैतान के अवतार ने किसी महल में कैद कर रखा है।” देवराज चौहान बोला।

“हां देवराज चौहान। नगीना इसी महल में शैतान के अवतार के शयनकक्ष में कैद है मैं उसे आजाद करती हूं।” कहने के साथ ही भामा परी ने पंख फैलाये। उड़ान भरी और महल की खुली खिड़की से भीतर प्रवेश करती चली गई।

“अब हम महल के भीतर चल रहें है।” देवराज चौहान ने ऊंचे स्वर में कहा।

बातें करते सब एकाएक खामोश हो गये। नजरें देवराज चौहान पर जा टिकीं।

सबके चेहरों पर परेशानी, गुस्सा, व्याकुलता थी। सरजू और दया कुछ भयभीत थे।

जबकि मोना चौधरी के चेहरे पर दरिन्दगी नजर आने तगी।

प्रेतनी चंदा का खास खंजर निकालकर हाथ की मुट्ठी में दबा लिया।

हर किसी को मौत के करीब होने का एहसास होने लगा।

देवराज चौहान तलवार थामे काले महल के मुख्यद्वार की तरफ बढ़ गया।

“ओ ‘वड’ के रख दवांगे शैतान के अवतारो नूं-।” मूंछ को बल देते। बांकेलाल राठौर ने कदम बढ़ा दिए।

इसके साथ ही सब महल के दरवाजे की तरफ बढ़ गये।

“नीलू-!” राधा कह उठी-“तू ज्यादा बहादुरी मत दिखाना। बुरे लोगों के मुंह क्या लगना। पीछे ही रहना। झगड़ा वैसे भी अच्छा नहीं होता। चैन और शान्ति की जिन्दगी कितनी अच्छी होती है।”

“और अगर सामने वाला थप्पड़ मारे तो?” महाजन ने राधा को देखा।

“तू तो बहादुर है नीलू। एक-दो थप्पड़ खा भी लेगा तो तेरा क्या घिस जायेगा।”

महाजन ने गहरी सांस लेकर मुंह फेर लिया।

☐☐☐

सब काले महल में प्रवेश कर गये।

वे व्याकुल-परेशान थे तो क्रोध में भी नजर आ रहे थे। देवराज चौहान के हाथ में पवित्र शक्तियों से भरी तलवार थी तो मोना चौधरी के हाथ की मुट्ठी में प्रेतनी चंदा का खास खंजर दबा हुआ था। जिसमें शैतानी शक्तियां भरी पड़ी थीं। इसे अलावा हर कोई खाली हाथ था।

भीतर एक छोटा-सा रास्ता पार करके वे हॉल में पहुंचे। भीतर

की दीवारें, फर्श, छत हर चीज काली थी। वहां मौजूद सामान में भी अधिकतर स्याहपन था।

वहां सिर्फ मूरत सिंह नजर आया। जो कि व्याकुलता एक तरफ खड़ा था। कमर में खंजर फंसा हुआ था। उसने सब पर निगाह मारी।

“कहां है शैतान का अवतार?” देवराज चौहान ने दांत भींचकर उससे पूछा।

“मालिक अभी नगरी से लौटे नहीं। मैं उन्हीं का इन्तजार कर रहा हूं।” मूरत सिंह बोला।

“नगरी?” मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ीं-“किस नगरी की बात कर रहे हो तुम?”

“गुरुवर की नगरी की बात-।”

“इसका मतलब शैतान का अवतार गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल तलाश करने गया है।”

“हां। लेकिन तिलस्म टूटने की बात को वो जान चुका होगा। वो कभी भी वापस लौट-।”

“वो जब लौटेगा।” देवराज चौहान के चेहरे पर वहशी भाव नाच उठे। वो मूरत सिंह की तरफ बढ़ा-“तो उसे देख लूंगा। पहले तेरे को देख लूं-।”

“मुझे-।” मूरत सिंह जल्दी से बोला-“मैंने क्या किया है जो-?”

“मुद्रानाथ ने क्या किया जो उसे बुत बना दिया था।” देवराज चौहान गुर्रा उठा-“मुद्रानाथ तो गुरुवर की कही बात शैतान के अवतार के सामने रखने आया था और उसे बुत बना दिया। तुम सब शैतान के वंश के हो। इस धरती के किसी भी इन्सान पर भरोसा नहीं किया जा सकता। यहां और कौन है?”

“एक मनुष्य कैदी युवती है। मेरे अलावा अभी यहां कोई और

नहीं-।”

“अभी से क्या मतलब?”

“शैतान का अवतार यहां आते ही, कई आदमी अपनी सहायता के लिये बुला लेगा। मैं जानता हूं शैतान का अवतार काले महल में ही आयेगा। क्योंकि उसकी शक्तियां यहां और भी शक्तिशाली हो जाती-।”

“शैतान के अवतार का सेवक बनने की सजा भुगत-।”

देवराज चौहान ने दांत भींचकर तलवार वाला हाथ उठाया।

“नहीं। मुझे मत मारो। मैं-।”

तभी तलवार की नोक उसे गले से लेकर छाती तक काटती चली गई। पहले उसके गले से चीख निकली फिर लड़खड़ाता हुआ नीचे जा गिरा।

पैना सन्नाटा वहां छा गया।

“देखा छोरे, ‘वड’ दयो शैतान की औलादों को-।”

“बाप-।” रुस्तम राव ने गम्भीर स्वर में कहा-“जाने अभी कौन-कौन वडेला-।”

“इसकी जान लेने की क्या जरूरत थी देवराज चौहान?” राधा कह उठी।

“बहुत जरूरत थी।” देवराज चौहान पूर्ववतः लहजे में कह उठा-“जितने आदमी कम हो जाये। उतना ही हमारे लिये बेहतर होगा। शैतान के अवतार के आते ही, उसका हुक्म पाते ही ये हमारे लिये बहुत खतरनाक हो सकता था। यहां कोई भी हमारा भला नहीं करेगा। बुरा ही करेगा। शैतान सिर्फ बुरा ही कर सकता है।”

“ये बात तो ठीक है। क्यों नीलू-?”

तभी दरवाजे से भामा परी ने नगीना के साथ भीतर प्रवेश किया। उन सबको देखते ही नगीना का मुरझाया चेहरा मुस्कुराहट से भरता चला गया।

नगीना को देखकर वो सब भी खुश हो उठे।

देवराज चौहान का वहशी भावों से भरा चेहरा, धीरे-धीरे सामान्य होने लगा।

“आप-? कैसे हैं आप?” नगीना के होंठों से कांपता स्वर निकला। वह देवराज चौहान की तरफ दौड़ी।

“भाभी-।” जगमोहन के होंठों से खुशी भरा स्वर निकला।

“बहना-।”

“दीदी-।”

नगीना, देवराज चौहान की छाती से जा लगी।

देवराज चौहान ने नगीना को बांहों में भींच लिया।

“कैसे हैं आप?” नगीना की आंखों से आंसू बह निकले थे।

“बिल्कुल ठीक हूं-।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहते हुए उसे अपने से अलग किया-“कैद में तुम्हें तकलीफ हो रही-।”

“इससे बड़ी और क्या तकलीफ होगी मुझे कि मैं, आपसे दूर हो गई।” नगीना की आंखों में आंसू चमक उठे।

“सब ठीक है। अब।” देवराज चौहान ने मुस्कराने की कोशिश की।

“कैसे ठीक हो सकता है। ये शैतान के अवतार का खास महल है।” नगीना के होंठों से निकला-“वो-।”

“बहना तू फिक्रो नेई कर। उसो को ‘वड’ के रख दवांगे-।” बांकेलाल राठौर गुस्से से कह उठा।

“आपुन पूरी कोशिश करेला दीदी कि आपुन उसे मारेला।” रुस्तम राव बोला।

“ऐसे मत कहो।” जगमोहन व्याकुल स्वर में कह उठा-“ये आसान नहीं है। हमारे पास है ही क्या कि शैतान के अवतार का मुकाबला कर सकें।”

“हिम्मत है हमारे पास-।” मोना चौधरी खतरनाक स्वर में कह उठी।

“मोना चौधरी!” पारसनाथ ने खुरदरे स्वर में कहा-“मायावी-शैतानी शक्तियों का मुकाबला करने के लिये हिम्मत से ज्यादा, शक्तियों की जरूरत होती है। हिम्मत शब्द का इस्तेमाल करना, खुद को धोखा देना है।”

मोना चौधरी होंठ भींचकर रह गई।

सोहनलाल ने गोली वाली सिगरेट सुलगाकर कश लिया।

“देखा जाये तो हम इस वक्त चौखट पार करके मौत के घर के भीतर खड़े हैं।” सोहनलाल का स्वर हर भाव से परे था।

“सरजू-!” दया का स्वर कांपा-“मुझे डर लग रहा है।”

“हिम्मत से काम लो। हम सबके साथ ही हैं।” सरजू ने अपनी घबराहट पर काबू पाते हुए कहा।

“नीलू-!”

“हां-।”

“अब क्या होगा।” राधा बोली-“शैतान का अवतार आ गया तो उससे कैसे लड़ेंगे। वो तो बहुत बहादुर है। उसके पास तो जादुई ताकतें हैं। वो हमारी हड्डियाँ तोड़ देगा।”

महाजन ने कुछ नहीं कहा।

“बुरा हो उस बूढ़े का, जिसने हमें यहां भेज दिया। उसने पेशीराम (फकीर बाबा ने मुझे भी बेवकूफ बना दिया कोने वाले हलवाई के समोसे खिलाकर। न मैं समोसे खाती और न ही उसकी बातों में फंसती।” ये सब जानने के लिये रवि पॉकेट

बुक्स में पूर्व प्रकाशित अनिल मोहन का उपन्यास “पहली चोट” पढ़ें।

“छोरे!”

“हां बाप-।”

“इधरो-उधरो अंखियों दौड़ायो। शायदो म्हारे को कोई ऐसो हथियार मिल्लो हो, जो शैतान के अवतारों को ‘वडो दयो’।”

“अभ्भी ट्राई मारेला बाप-।”

“अंम भी थारो साथ ट्राई मारो हो। चटतो हो।”

बांकेलाल राठौर और रुस्तम राव वहां से उस तरफ चले गये, जहां महल के अन्य हिस्सों में जाने का दरवाजा नजर आ रहा था।

सबकी नजरें उन दोनों पर ही थीं।

“कुछ नहीं मिलेगा।” सोहनलाल ने कहा-“शैतान के अवतार ने ऐसी कोई चीज रखी होगी तो संभाल कर रखी होगी।”

बांकेलाल राठौर और रुस्तम राव बाहर निकल गये।

नगीना ने मूरत सिंह के मृत शरीर को देखा, परन्तु उस बारे में पूछा कुछ नहीं।

“यहां खड़े रहने से अच्छा है कि महल की छानबीन कर-।” महाजन ने कहना चाहा।

तभी अजीब-सी आवाज उभरी।

सबकी निगाह उस तरफ गई।

चंद कदमों के फासले पर शैतान के अवतार को मौजूद पाया।

“ये-ये ही है शैतान का अवतार-।” नगीना के होंठों से तेज स्वर निकला।

शैतान के अवतार ने मूरत सिंह के मृत शरीर पर निगाह मारी। फिर सबको बारी-बारी देखने लगा। उसकी लाल आंखों में सुर्ख चमक थी। होंठों पर जान को कंपा देनी वाली मुस्कान। सबको देखने के पश्चात शैतान का अवतार वहशी ठहाका लगा उठा। उसकी हंसी की गूंज बहुत भयानक लग रही थी।

☐☐☐

देवराज की आंखों के सामने बिजलियां कौंध रही थीं। अजीब-सी तेज चमक उसके सामने लहराती और उस चमक में लहराते खेत। दूर चलते हल। काम करते लोग। और उस चमक में उसने खुद को भी देखा। कमीज-पायजामा पहने था सफेद रंग का। पांवों में चमड़े के जूते थे। होंठों पर मूंछे। सिर के छोटे-छोटे बाल।

खेत में मौजूद था वो। फसलों के बीच। परन्तु अकेला नहीं था। सब थे।

जगमोहन, बांकेलाल राठौर, रुस्तम राव, सोहनलाल, महाजन, पारसनाथ, सब-के-सब अपने तीन जन्म पहले की वेशभूषा में थे।

मोना चौधरी और शैतान का अवतार और मोगा भी देखने को मिला।

मोना चौधरी सबसे हटकर खड़ी थी।

शैतान का अवतार और मोगा चेहरे पर गुस्सा समेटे थे।

तभी जैसे देवराज चौहान ने, तीन जन्म पहले की अपनी ही आवाज कानों में पड़ती महसूस की।

“जग्गू! तलवार दे-।”

“ले देवा-।” उन अक्सों में जगमोहन नजर आया, जिसने हाथ में थाम रखी तलवार देवराज चौहान की तरफ उछाल दी। देवराज चौहान ने तलवार को हवा में लपक कर पकड़ा और खतरनाक ढंग से शैतान के अवतार की तरफ बढ़ने लगा।

“नहीं देवा।” शैतान का अवतार पीछे हटता, हाथ जोड़कर कह उठा-“मुझे मत मारो। मैं-।”

देवराज चौहान के मस्तिष्क को तीव्र झटका लगा।

सामने शैतान के अवतार को वहशी हंसी, हंसते पाया।

“द्रो-ऽ-ऽ-ऽ-णा।” गला फाड़कर चीखा देवराज चौहान।

शैतान के अवतार की हंसी रुकी। देवराज चौहान को देखा फिर हौले से हंसकर बोला।

“तो पहचान लिया तूने मुझे-।”

“तुम जैसे कुत्ते को क्यों नहीं पहचानूंगा। तीन जन्म पहले भी तेरे को कुत्ते की मौत मारा था और अब भी तू कुत्ते की मौत मरेगा।” देवराज चौहान का चेहरा दहक उठा-“मैं तेरे को पहले से भी बुरी मौत-।”

“देवा!” शैतान के अवतार के स्वर में जहरीले भाव आ गये-“तीन जन्म पहले मैं साधारण इन्सान था। मामूली-सा द्रोणा था। इस जन्म में मुझे शैतान का आशीर्वाद प्राप्त है। शैतान का अवतार बनकर, सारी दुनिया में शैतानियत फैला रहा हूं। मेरे पास अथाह शक्तियों का भण्डार है और तेरी हस्ती किसी मामूली मनुष्य से ज्यादा की नहीं है।”

“इसी मामूली मनुष्य ने तेरा तिलस्म तबाह किया है द्रोणा और अब मैं तेरे को-।”

“तेरी हिम्मत का नतीजा है कि तूने तिलस्म तबाह कर दिया। जबकि तेरे पास मुद्रानाथ की शक्तियों वाली तलवार के अलावा कोई और हथियार नहीं था और तिलस्म तोड़ने के लिये ये तलवार अपर्याप्त है।”

“देख ले। फिर भी मैंने तिलस्म को तबाह-।”

“इन बातों में समय व्यर्थ नहीं गंवाना चाहता। मैं तो चाहता था कि तू तिलस्म में फंसकर तड़प-तड़प कर मरे। तुम सब ऐसे ही जान गवां दो। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। ऐसे नहीं तो ऐसे ही सही। सबसे पहले मैं तेरे को ही खत्म करूंगा। उसके बाद एक साथ सब को।” कहने के साथ ही शैतान के अवतार ने हवा में हाथ घुमाया।

उसी पल चांदी की तरह चमकता प्लेट के साइज का चक्र बेहद तीव्रता के साथ हवा में चकराता नजर आने लगा। उसकी चमक ऐसी तेज थी कि आंखें चौंधिया रही थीं।

“अपनी मौत को देख ले देवा।” शैतान का अवतार जहरीली

हंसी हंस पड़ा।

“तुझे अपनी मौत नजर नहीं आ रही।” देवराज चौहान के होंठों से खतरनाक गुर्राहट निकली और तलवार को बीच में से पकड़कर पूरी शक्ति से, चाकू की तरह, शैतान के अवतार की तरफ फेंका।

उसी पल ही वो चमकता चक्र तीव्रता के साथ देवराज चौहान

की तरफ बढ़ा।

उधर शैतान के अवतार को वक्त ही नहीं मिला कि अपनी तरफ आती तलवार से खुद को बचा सके। तलवार तीव्रता के साथ पेट में प्रवेश करती हुई, उसका कुछ हिस्सा पीठ से बाहर निकल आया।

“ओह-!” शैतान के अवतार के होंठों से हल्की-सी कराह निकली-“ये क्या हो गया! कोई बात नहीं। इस मामूली से वार से मेरी मौत नहीं होगी।” इसके साथ ही शैतान के अवतार ने पेट में धंसी तलवार को बाहर खींचा।

परन्तु तलवार को वो बाहर नहीं खींच सका।

शैतान के अवतार ने पुनः कोशिश की परन्तु पेट में धंसी तलवार को निकालने में कामयाब नहीं हो पाया।

“मैं तो भूल ही गया था कि ये पवित्र शक्तियों से भरी तलवार है। इस पर मेरी शक्ति काम नहीं करेगी। इसे तो शैतान ही अपनी ताकत से निकाल पायेगा।” शैतान के अवतार के होंठों से फुंफकारता स्वर निकला-“अब मुझे शैतान के पास जाना होगा। इन मनुष्यों से तो रास्ते में भी निपट लूंगा। पहले चार आसमान ऊपर शैतान के पास जाने की क्रिया तो आरम्भ कर दूं।” इसके साथ ही शैतान का अवतार तेज-तेज कदमों से कमरे से बाहर निकल गया। वह जो करना चाहता था, जल्दी कर देना चाहता था।

तभी सामने से बांकेलाल राठौर और रुस्तम राव आते नजर आये।

शैतान के अवतार ने उनकी परवाह नहीं की। वो तेजी से आगे

बढ़ता रहा। जब वो दोनों के पास पहुंचा तो बांकेलाल राठौर होंठ सिकोड़ कर कह उठा।

“इसो के पेटो में तो तलवारो धंसो हो। ये तो मरो हो। का हुआ थारे को। यां पे तो डाक्टरो मखानी भी न होवो, बीकानेर वालो। तंम हो कोणो आयो-।”

शैतान का अवतार रुका नहीं। तेजी से आगे बढ़ता चला गया।

“छोरे!” बांकेलाल राठौर की आंखें सिकुड़ चुकी थीं-“इसो के

पेटों में पूरो तलवारो घुसो हो। पण यो तो एसो चल्लो जैसो कुछ हुआ ही ना ही। बोत हिम्मत वालो हुओ हो।”

“बाप!” रुस्तम राव के होंठों से निकला-“आपुन को भारी गडबड़ी लगेला। वो तलवार देवराज चौहान की होएला।”

“देवराज चौहान की तलवारो। मुद्रानाथो की शक्तियों वाली हौवे वो तलवारो?”

“हां बाप। तलवार की मूठ को देखकर आपुन परफैक्ट पहचानेला।” रुस्तम राव भिंचे होंठों से कह उठा-“आपुन को लगेला कि वो शैतान का अवतार होएला। तभी तो तलवार उसका कुछ नेई बिगाड़ेला।”

“थारी थ्योरी म्हारे को अभ्भी न जंचो। म्हारे साथो आयो। उसो को देखो, वो का करे हो।”

बांकेलाल राठौर और रुस्तम राव ने तेजी से उस तरफ बढ़ गये। जिधर शैतान का अवतार गया था। कुछ आगे जाने पर, आगे जाता शैतान का अवतार नजर आ गया।

“वो दिखेला बाप। स्पीड बढ़ाईला।”

दोनों तेजी से आगे बढ़ते जा रहे थे।

उनके देखते ही देखते शैतान का अवतार एक दरवाजे के सामने रुका और दरवाजे के पल्ले खोल कर भीतर प्रवेश कर गया और पलट कर दरवाजा भीतर से बंद कर लिया।

बांकेलाल राठौर और रुस्तम राव बंद दरवाजे के पास पहुंचकर ठिठके। दरवाजा धकेला। वो बंद था।

“छोरे।” बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर जा पहुंचा-“यो जो

भी हौवे, दरवाजो बंद करो के, नोटों की गड्डियों गिन्नो हो।”

“बाप आपुन को गड़बड़ लगेला।” रुस्तम राव ने गम्भीर स्वर में कहा-“उधर कुछ खास मामला होएला। ये जो कमरे बंद होएला। ये ई उधर को कोई गड़बड़ करके इधर खिसकेला।”

“म्हारे को भी यो ही लगो।” बांकेलाल राठौर का चेहरा सख्त हो गया-“छोटे, तंम उधर देखो, क्या हैरत हो। अंम यां ये खड़ो हो के दरवाजो पर पहरो दयो-।”

“आपुन अभी पल्टा बाप-।” कहने के साथ ही रुस्तम राव पलट कर आगे जाने को बढ़ा कि ठिठक गया।

उनके कानों में दौड़ते कदमों की आवाज पड़ने लगी।

“बाप कोई इधर को आईला-।”

“आनो दो। शैतान का अवतारो हुओ तो अंम ‘वड’ दयो हरामी को-।”

दोनों की नजरें उस तरफ लगी रहीं। जिधर से दौड़कर आने की आवाज आ रही थी। कुछ ही पल बीते होंगे कि उन्हें मोना चौधरी नजर आई। हाथ में खंजर दबा रखा था। वो पास आती जा रही थी।

☐☐☐

चांदी के समान घूमता चक्र तेजी से देवराज चौहान की तरफ बढ़ा।

“देवराज चौहान!” मोना चौधरी चीखी-“बचो-।”

उसी क्षण देवराज चौहान फुर्ती से नीचे झुक गया।

तूफानी रफ्तार से घूमता चक्र देवराज चौहान के ऊपर से निकल गया।

देवराज चौहान जल्दी से सीधा होते हुए पलटा।

चक्र कुछ आगे जाकर रुका और घूमता हुआ पलट कर वापस देवराज चौहान की तरफ आने लगा। वो चक्र इस कदर तेजी के था कि उस थाम लेना असम्भव था। देवराज चौहान दरिन्दगी समेटे, उस चक्र को अपनी तरफ आते देख रहा था।

“सामने से हट जाईये-।” घबराये स्वर में नगीना चीख कर कह उठी।

तभी जगमोहन ने एक तरफ मौजूद कुर्सी उठाई और वेग के साथ हवा में घूमते चक्र पर फेंकी।

कुर्सी चक्र से टकराई। हल्की-सी आवाज के साथ कुर्सी कई टुकड़ों में इधर-उधर फैलती चली गई। एक टुकड़ा महाजन से टकराया, परन्तु उसे चोट नहीं पहुंची।

“तू ठीक तो है नीलू-?”

दांत भींचे महाजन, हवा में घूमते चक्र को देख रहा था।

“ये बहुत खतरनाक चक्र है।” पारसनाथ कठोर स्वर में कह उठा-“इससे बचा नहीं जा सकता।”

“ये सिर्फ देवराज चौहान को ही अपना निशाना बनाने पर लगा

है।” सोहनलाल बोला।

“शैतान के अवतार ने इसे अवश्य देवराज चौहान पर ही वार करने भेजा है।” महाजन ने कहा-“अगर सबके लिये ये चक्र भेजा होता तो अब तक शायद ही हममें से कोई बचा होता।”

ज्योंही चक्र देवराज चौहान के पास पहुंचने को हुआ, देवराज चौहान ने उसी पल छलांग मारी और एक तरफ लुढ़कता चला गया।

चक्र तेजी से वहां से गुजर गया। जहां देवराज चौहान खड़ा था।

देवराज चौहान जल्दी से उठा।

चक्र अपनी दिशा बदलकर पुनः देवराज चौहान की तरफ बढ़ने लगा था।

“जगमोहन-!” नगीना घबराई-सी कह उठी-“कुछ करो। नहीं तो ये बच नहीं पायेंगे।”

जगमोहन का चेहरा धधक रहा था। हाव-भाव में बेबसी के भाव थे।

तभी मोना चौधरी ने पास पड़ा लोहे का छोटा टेबल उठाया और पूरी शक्ति के साथ चक्र की तरफ फेंका।

लोहे के टेबल के चक्र के साथ टकराते ही तेज आवाज उभरी। चिंगारियां चमकती नजर आईं। इसके साथ ही टेबल दो हिस्सों में कट कर दूर जा गिरा।

“ओह-!” पारसनाथ के होंठों से निकला-“कितना खतरनाक है ये चक्र-।”

घबराई-सी नगीना भाग कर मिट्टी की पुतली वाली युवती के पास पहुंची।

“तुम ही कुछ करो। इस तरह खड़ी क्या देख रही हो। मेरे पति

को बचाओ।”

“ये चक्र खून का प्यासा है।” युवती ने परेशानी भरे स्वर में कहा-“जब तक इस खून नहीं मिलेगा। ये चैन से नहीं बैठेगा।”

“ये मेरा खून ले ले। लेकिन मेरे पति को-।”

“ऐसा नहीं हो सकता।” युवती भिंचे स्वर में कह उठी-“शैतान के अवतार ने मंत्रों द्वारा शैतानी चक्र को इसी मनुष्य की जान लेने के लिये छोड़ा है। तभी तो चक्र अपना निशाना, सिर्फ इसे ही बना रहा है।”

“मैं कहती हूं, मेरे पति को बचाओ।” नगीना चीख उठी।

“तुम्हारे पति को बचा पाना मेरे बस में नहीं है। इस चक्र से टकराने जैसी बड़ी ताकत मेरे पास नहीं है।” युवती की आवाज में विवशता भरी थी।

नगीना की आंखों से आंसू बह निकले।

“कुछ कर भगवान।” नगीना रोते हुए कह उठी-“उन्हें बचा।”

चक्र पुनः देवराज चौहान के पास पहुंचता जा रहा था।

देवराज चौहान की दरिन्दगी भरी निगाह एकाएक अपनी तरफ आते चक्र पर थी। हालातों को बहुत ही अच्छी तरह समझ रहा था कि मौत से भी तेज रफ्तार से घूमते चक्र पर काबू पाना असम्भव है। ये शैतान की भामा का चक्र था। इसे रोकने के लिये किसी बेहद खास शक्ति की जरूरत थी। और वो शक्ति यहां किसी के भी पास नहीं थी। चक्र से बचाने का रास्ता उसे नजर नहीं आ रहा था।

जगमोहन और मोना चौधरी की टेबल और कुर्सी का अंजाम वह देख चका था। जो उन्होंने चक्र पर फेंकी थी। देवराज चौहान की नजरों में यकीनन ये मौत का ही चक्र था।

चक्र के पास पहुंचते ही, उससे बचने की खातिर, देवराज चौहान फुर्ती से नीचे झुका।

उसी पल चक्र भी नीचे हुआ।

चक्र से बचने के लिए देवराज चौहान ने एक तरफ कूदना चाहा।

तभी चक्र ने किसी बिल्ली की भांति झपट्टा मारा। वो तेजी से करीब आ पहुंचा। देवराज चौहान अपनी जगह नहीं छोड़ पाया।

उसी पल चक्र उसकी गर्दन काटता हुआ आगे बढ़ा और हवा में घुलते हुए गायब हो गया।

देवराज चौहान की गर्दन कटते ही तीव्र झटके के साथ, गर्दन

उछल कर किसी गेंद की भांति, कालीन पर दूर लुढ़कती चली गई। शरीर का बाकी हिस्सा नीचे गिरा और तड़पने लगा। शरीर के कटे हिस्से से बहता खून कालीन को गीला करने लगा।

उधर कटी गर्दन से खून बह रहा था। वो भी मध्यम गति से

तड़प रही थी।

हर कोई अविश्वास से भरा स्तब्ध खड़ा था।

“न-ही-ऽ ऽ ऽ ऽ।” नगीना के होंठों से दीवारों को कंपा देने वाली चीख निकली और वो दौड़ी। देवराज चौहान के गर्दन कटे, तड़पते शरीर को थामने की चेष्टा करने लगी और होंठों से पागलों की तरह शब्द निकलने लगे-“ये-ये क्या हो गया आपका। नहीं-नहीं, आपको कुछ नहीं हो सकता। मैं-मैं आपको कुछ नहीं होने दूंगी।” इसके साथ ही नगीना उठकर सिर की तरफ दौड़ी और सिर उठाकर वापस ले आई-“ये देखिये। मैं-मैं सिर ले आई। अब आप ठीक हो जायेंगे।” कहने के साथ ही उसने गर्दन का वापस धड़ के साथ लगा दिया-“लीजिये मैंने गर्दन वापस लगा दी। अब तो कटी हुई नहीं लगती। उठ जाईये। किसी का डर नहीं अब। वो-वो चक्र भी जाने कहां चला गया। उठिये ना। देर क्यों लगा रहे हैं।”

देवराज चौहान जरूर उठता। अगर वो जिन्दा होता तो।

देवराज चौहान के तड़पते धड़ की रफ्तार में कमी आ गई थी नगीना ने कटा सिर छोड़ा और तेज चीख के साथ, देवराज चौहान के मृत शरीर के साथ लिपट कर रोने-फफकने लगी। दोनों हाथ और शरीर के कई हिस्सों पर देवराज चौहान का खून लगा नजर आ रहा था।

नगीना के रोने-फफकने की आवाजें ही वहां के गमहीन माहौल में गूंज रही थीं।

जगमोहन पत्थर के बुत की तरह खड़ा फटी आंखों से देवराज चौहान के मृत शरीर को देखे जा रहा था। सोहनलाल की आंखों में आंसू चमक रहे थे। वो अपनी जगह पर स्थिर खड़ा था।

मोना चौधरी, महाजन, पारसनाथ, राधा के चेहरों पर अविश्वास के भाव थे।

सरजू और दया घबराये से एक-दूसरे का हाथ थामे खड़े थे।

मिट्टी की पुतली वाली युवती के चेहरे पर दुःख की छाया स्पष्ट नजर आ रही थी।

“नीलू-!” राधा की आवाज वहां गूंजी-“ये तो सच में मर गया।”

राधा के स्वर के साथ ही वहां अजीब-सी हलचल की शुरूआत हुई।

नगीना, देवराज चौहान के मृत शरीर पर सिर रखे रोई जा रही थी।

“देवराज चौहान-।” एकाएक जगमोहन गला फाड़कर चीखा और भाग कर पास पहुंचा-“उठ देवराज चौहान। तू नहीं मर सकता। तेरे को कुछ नहीं हो सकता। खड़ा हो जा-।” कहते हुए जगमोहन ने देवराज चौहान का कटा सिर उठा लिया और फफक-फफक कर रो पड़ा।

“जगमोहन-!” नगीना रोते हुये बोली-“ये बोल क्यों नहीं रहे? इन्हें क्या हो गया? ये-ये लेटे क्यों हैं।”

“भाभी-?” जगमोहन का फफकना तेज हो गया-“मर गया देवराज चौहान। मर गया। पेशीराम ने ठीक कहा था देवराज चौहान की जान चली जायेगी। चली गई। मर गया-।”

नगीना की रूलाई में और भी तेजी आ गई।

सोहनलाल की आंखों से आंसू बहकर गालों पर लुढ़कने लगे थे।

महाजन और पारसनाथ की गम्भीर, कठोर निगाहें मिलीं। चेहरों पर दुःख था।

मोना चौधरी के चेहरे पर मौत में डूबी दरिन्दगी नाच रही थी। भिंचे दांत। जिसकी वजह से गालों की हड्डियां बाहर को झलक उठी थीं। वो और भी वहशी नजर आने लगी थी। आंखों में क्रोध के अंगारे आ ठहरे थे। सांस तेजी से उठ-बैठने लगी थी। मुट्ठी में दबे खंजर को उसने और भी कसकर भींच लिया था।

“द्रोणा-ऽ ऽ ऽ-।” मोना चौधरी की चीख जैसी पुकार में मौत बसी हुई थी। इसके साथ ही वो पलटी और उस तरफ तीर की भांति दौड़ी, जिधर शैतान का अवतार गया था-“मैं तेरी मौत बनकर आ रही हूं द्रोणा।”

☐☐☐

खंजर थामे, दौड़ती हुई मोना चौधरी, बांकेलाल राठौर और रुस्तम राव के पास पहुंचकर ठिठकी।

“द्रोणा-।” मोना चौधरी के होंठों से वहशी स्वर निकला-“द्रोणा कहां है?”

“द्रोणा-।”

बांकेलाल राठौर और रुस्तम राव की नजरें मिलीं।

“वो कमीना जो इधर भागकर आया है।”

“बाप-।” रुस्तम ने गहरी निगाहों से मोना चौधरी को देखा-“आपुन ने इधर एक ही आदमी देखेला है, जिसके पेट में तलवार घुसेला और-।”

“मैं उसी कुत्ते की बात कर रही हूं-।” मोना चौधरी गुर्रा उठी।

“बात का हौवे जो-।” बांकेलाल राठौर ने कहना चाहा।

“वो ही शैतान का अवतार है।” मोना चौधरी के होंठों से शब्द, अंगारों की भांति निकल रहे थे-“उसने-उसने देवराज चौहान की जान ले ली और-।”

“नेई बाप-।” रुस्तम राव तड़प उठा-“ये नेई होईला-।”

“म्हारे संग तंम ईब मजाक भी-।”

“ये मजाक नहीं। मैं ठीक कह रही हूं। कहां है वो?” मोना चौधरी की आवाज में गुस्सा था तो दुःख भी था।

बांकेलाल राठौर और रुस्तम राव की नजरें मिलीं।

बांकेलाल राठौर का चेहरा गुस्से से तपने लगा। साथ ही आंखों में आंसू चमक उठे।

“छोरे-!”

“बाप-” रुस्तम राव की आवाज में कम्पन था-“देवराज चौहान मरेला क्या?”

“यो बातो मोना चौधरी झूठो न बोलो हो।” बांकेलाल राठौर की आंखों से आंसू निकलकर गालों पर आने लगे। लेकिन जालिम छोकरे की आंखों से आंसू नहीं निकले। उसके होंठों से दरिन्दे की भांति गुर्राहट निकली। चेहरा एकाएक भयानक नजर आने लगा। गर्दन फौरन घूमी और काली निगाह उस दरवाजे पर जा टिकी, जिसके पार शैतान का अवतार था।

तभी उन सबको हल्का-सा झटका लगा। कुछ पल के लिये सारा महल हिला फिर सब कुछ पहले की तरह सामान्य होता चला गया। इस कम्पन की तरफ किसी ने खास ध्यान नहीं दिया।

उसी पल रुस्तम राव ने चीते की भांति छलांग मारी और बंद दरवाजे से पार कर गया। दरवाजा जोरों से हिला, परन्तु खुला नहीं। जालिम छोकरे ने नीचे गिरते ही खुद को संभाला और पुनः वेग के साथ दरवाजे से जा टकराया। दरवाजा पुनः जोरों से हिला।

“दरवाजा खोएला शैतान के अवतार।” रुस्तम राव चीखा-“आपुन तेरे को जिन्दा नेई छोड़ेला।” रुस्तम राव पागलों की तरह दरवाजा तोड़ने-खुलवाने पर लग गया।

बांकेलाल राठौर ने गालों पर बहते आंसुओं को साफ करते हुए भर्राये स्वर में कहा।

“मोना चौधरी। कैसो मरो हो म्हारा देवराज चौहान?” आवाज में दर्द भरा कम्पन झलक रहा था।

“द्रोणा, ने शैतानी चक्र से देवराज चौहान की गर्दन काट दी।” मोना चौधरी ने दरिन्दगी भरे स्वर में कहा।

“वड, दयो म्हारे देवराज चौहान को।” बड़बड़ाते हुए बांकेलाल राठौर ने दरवाजे की तरफ देखा।

जालिम छोकरा, दरवाजे को पूरी ताकत के साथ टक्कर मार कर दरवाजा तोड़ने की कोशिश कर रहा था।

“छोरे-।” बांकेलाल राठौर के आंसुओं से भरे गाल क्रोध से दहक उठे थे।

जालिम छोकरा अपने काम में पागलों की तरह लगा हुआ था।

“हट जायो छोरे।” बांकेलाल राठौर चीखने जैसे स्वर में कह उठा-“म्हारे को भी जोरो अजमानो दयो। शैतान के अवतारो को अम बोत बुरो ‘वडो’ हो। वो हम्हारे देवराज चौहान को ‘वड’ दयो।”

रुस्तम राव ने ठिठक कर, धधकती निगाहों से बांकेलाल राठौर को देखा।

तभी बांकेलाल राठौर दौड़ा। उछला और उसका शरीर वेग के साथ दरवाजे से टकराया। दरवाजा जोरों से खड़खड़ा उठा। बांकेलाल राठौर फर्श पर जा लुढ़का। वो उठा। संभला।

उसी पल मोना चौधरी का वेग से आता शरीर दरवाजे से जा टकराया।

वो मोटा, मजबूत दरवाजा, रुस्तम राव, बांकेलाल राठौर और मोना चौधरी की टक्करों को पांच मिनट से ज्यादा न सह सका और उसका एक पल्ला, कब्जों की तरफ से जुदा होकर झूल गया।

तीनों एक-के-बाद एक भीतर प्रवेश करते चले गये।

कमरे में नजर पड़ते ही तीनों ठिठके।

अजीब-सा सामान था कमरे में।

एक तरफ न समझ में आने वाली मशीन को दीवार के साथ सटा कर रखा हुआ था। जो कि आठ फीट ऊंची और तीन फीट चौड़ी थी। मशीन के पुर्जे बहुत हद तक बाहर से ही नजर आ रहे थे। उस पर एक मीटर जैसी बड़ी सी चीज लगी थी। उस पर अजीब-से निशान थे और सुइयों जैसी चार चीजें उसके बीच में घूम रही थीं। उस पर शीशा नहीं था। उसके नीचे दो फीट व्यास की, लोहे की चक्री जैसी चीज लगी हुई थी। चक्री पर दो हत्थे थे, जिससे कि उसे बुझाया जा सके।

उस मशीन जैसी चीज के ऊपरी हिस्से में पारदर्शी का छोटा सा गोला एक रॉड में फंसा, वेग के साथ घूम रहा था। मशीन के भीतर से लाल रंग की रोशनी फूटकर बाहर आ रही थी। उस मशीन से मध्यम सी घर-घर की आवाज निकल रही थी।

शैतान का अवतार मस्ती से एक तरफ खड़ा हरे रंग का कोई तरल पदार्थ पी रहा था, जो कि कांच की सुराही जैसी चीज में डाला हुआ था। उसके पेट में अभी तलवार धंसी हुई थी। उनके भीतर आते ही वो ठहाका लगा उठा। उसकी आंखों में हैवानियत नाच रही थी

“आ गई मिन्नो।” शैतान के अवतार ने हंसी रोकते हुए कहा-“देवा तो मर गया ना?”

“हां-।” मोना चौधरी के होंठों से मौत भरा स्वर निकला। खंजर की मूठ पर उसकी पकड़ और भी सख्त हो गई।

“उसका मरना बहुत जरूरी था।” कहर भरे स्वर में कह उठा शैतान का अवतार-“तुम्हारे और देवा के सितारे ऐसे हैं कि जब-जब भी दोनों इकट्ठे रहोगे। दूसरे के लिये मुसीबतें खड़ी करोगे। मर गया देवा। अकेले तेरे सितारे किसी का कुछ नहीं बिगाड़ सकते। अब फुर्सत पा ली है मैंने। तुम सब मरोगे। मैं-।”

“थारे को तो अंम वड के हजारों टुकड़ो में बदल दयो। तम-।”

तभी जालिम छोकरा उछला और हवा में लहराता शैतान के अवतार की तरफ बढ़ा।

लेकिन शैतान के अवतार के पास नहीं पहुंच सका। बीच में ही मौजूद किसी अदृश्य दीवार से टकराया और नीचे जा गिरा। फिर तुरन्त ही उछल कर खड़ा हो गया।

शैतान का अवतार हंस पड़ा।

“कोई भी मुझे छू नहीं सकता। शैतानी कवच से मैंने खुद को सुरक्षित कर रखा है। ऐसे में शैतानी शक्ति ही मेरे से टक्कर ले सकती है। मुझे मारना है तो शैतानी हथियार लेकर आओ। और शैतान तुम मनुष्यों की पहुंच से कोसों दूर हैं। तुम लोग मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। अब मैं तुम सब मनुष्यों को खत्म करने जा रहा हूं। जैसे देवा मरा, वैसे तुम सब मरने जा रहे थे।”

“द्रोणा।” मोना चौधरी के स्वर में मौत की सी ठण्डक थी-“तुम्हें अपनी मौत नजर नहीं आ रही।”

“मैं नहीं मर सकता।” शैतान का अवतार ठहाका लगा उठा-“तुम्हें मेरी शक्तियों का एहसास नहीं कि-।”

तभी मोना चौधरी आगे बढ़ी और शैतान के अवतार के बेहद

करीब आ पहुंची।

शैतान के अवतार की आंखें सिकुड़ी।

“तुम-तुमने मेरी शक्तियों के कवच को कैसे पार कर लिया? तुम-।”

“शैतानी ताकत तुम्हारी शक्तियों के घेरे को काट सकती है। तुम्हारी जान ले सकती है द्रोणा।” मोना चौधरी गुर्राई।

“हां। लेकिन तुम साधारण मनुष्य हो। तुम्हारे पास शैतानी शक्तियां...।”

“मेरे पास शैतानी शक्ति है द्रोणा।” मोना चौधरी की आंखों में शोले भड़क रहे थे-“प्रेतनी चंदा का खास खंजर है मेरे पास, जिसमें उसकी बे-पनाह शैतानी ताकतें मौजूद हैं। ये ही खंजर अब तेरी मौत की वजह बनता जा रहा है।”

शैतान के अवतार की निगाह फौरन मोना चौधरी के हाथ में दबे खंजर पर गई।

“ये ठीक है कि तूने देवराज चौहान की जान ले ली। मार दिया उसे। लेकिन अब तू किसी की जान नहीं ले सकेगा और अपनी जान भी नहीं बचा सकेगा।” मोना चौधरी के स्वर में भयानकता भरी हुई थी। सिर से पांव तक वो मौत के समन्दर में डूबी नजर आ रही थी।

“मोना चौधरी!” बांकेलाल राठौर का वहशी स्वर कानों में पड़ा-“सालों को वड दे। यो म्हारे देवराज चौहान को वडो हो।”

“इसका भेजा उड़ाएला मोना चौधरी-।” जालिम छोकरे की आवाज किसी दरिन्दे की गुर्राहट से कम नहीं थी।

उसी पल शैतान के अवतार ने आंखें बंद की और होंठों ही होंठों से कुछ बड़बड़ाने लगा।

लेकिन मोना चौधरी ने उसे मौका ही नहीं दिया कि वो अपनी शैतानी शक्ति का इस्तेमाल कर सके।

वो फुर्ती से एक कदम आगे बढ़ी और मुट्ठी में दबाये खंजर का फल ठीक उसकी दिल वाली जगह में पूरी ताकत के साथ मारा।

तीखा फल पूरा का पूरा ही भीतर धंसता चला गया। उसी पल मोना चौधरी ने खंजर को वापस खींच लिया।

शैतान के अवतार के होंठों से दिल दहला देने वाली चीख निकली। उसकी आंखें फटकर फैल गईं। हरे रंग के तरल पदार्थ का बर्तन नीचे गिरा। उसने दोनों हाथों से दिल वाले हिस्से को दबा लिया। चेहरा पीड़ा से सुर्ख हो उठा था।

“तुम-तुमने मुझ पर वार कर दिया। प्रेतनी चंदा के खंजर में बहुत ही ज्यादा शैतानी ताकतों का वास है। ओह ये तो बहुत ही बुरा हुआ। हे शैतान! मुझे बचा। अपने अवतार की रक्षा कर शैतान।” शैतान का अवतार बड़बड़ा उठा।

तभी मोना चौधरी ने खंजर वाला हाथ उठाया और फुर्ती के साथ खंजर का फल, ताकत के साथ शैतान के अवतार के सिर पर मारा तो फल उसके सिर में धंस गया।

शैतान का अवतार तड़पा। गले से पीड़ा भरी जोरदार चीख खून निकली। इस वार से वो खुद को संभाल न पाया और दीवार से टकराता हुआ नीचे जा लुढ़का।

इसके दिल वाले हिस्से से खून बह रहा था। सिर से भी निकलना शुरू हो गया था। शैतान का अवतार बेदम होने लगा।

“ये-ये खंजर मेरी जान नहीं ले सकता था।” शैतान का अवतार तड़पते हुए दांत भींचे कह उठा-“लेकिन खंजर में मौजूद प्रेतनी चंदा की शैतानी शक्तियां मेरी जान ले रही हैं। मैं जानता हूं अब मैं खुद को नहीं बचा सकता। जान निकल रही है मेरी। लेकिन तुम मनुष्य भी नहीं बचोगे। चार आसमान ऊपर, शैतान के चरणों में हाजिरी लगाने की यात्रा मैंने आरम्भ कर दी है। उसके पास जाना जरूरी था मेरा पवित्र शक्तियों से भरी तलवार मेरे पेट में धंसी है इसे सिर्फ शैतान ही बाहर निकाल सकता है। लेकिन मैं तो मर रहा हूं। मेरी मौत के पश्चात इस तलवार को कोई भी बाहर निकाल सकता है। लेकिन तुम मनुष्य किसी भी हाल में नहीं बच सकते। मेरे काले महल ने चार आसमान ऊपर शैतान के अवतार के पास जाने की रवानगी शुरू कर दी है।”

“क्या मतलब?” दांत भींचे मोना चौधरी कह उठी।

“मुझे जब भी शैतान के पास जाना होता है, तो इस महल में सवार होकर शैतान के पास जाता है। ये साधारण महल नहीं है। शैतान का तोहफा है अपने अवतार के लिये।” शैतान के अवतार की सांसें धीमी होती जा रही थीं-“ये महल तो कब का जमीन छोड़कर, आसमान की तरफ बढ़ चुका है। अब ये सीधा शैतान के अवतार के पास पहुंच कर शैतान की नगरी में ही रुकेगा। तब शैतान तुम सबको मार देगा। तुम लोग बच नहीं सकते।”

पाठकों, आप देख ही रहे हो कि कहानी का घटनाक्रम, किस कदर बुरी तरह उलझ गया है। देवराज चौहान की मौत एक ऐसी दिल दहला देने वाली घटना है कि जिसे न तो आप सहन कर पा रहे हैं, और न ही मैं। परन्तु जो कुछ है, आपके भी सामने है और मेरे भी सामने। सत्य को झुठलाया नहीं जा सकता। इसके साथ ही काला महल, शैतान के अवतार की किसी खास क्रिया के पश्चात, अपना स्थान छोड़कर आसमान की तरफ, किसी रॉकेट की तरह बढ़ना शुरू हो चुका है और वो अब चार आसमान ऊपर शैतान की धरती पर जाकर की रुक पायेगा, उससे पहले नहीं। बाकी बचे लोगों को मोना चौधरी को, शैतान से टक्कर लेनी है जो कि असम्भव कार्य है। शैतान तो शैतान है। जिसका वजूद कभी भी खत्म नहीं हो सकता। ऐसे में शैतान के साथ मुकाबला करने में क्या अंजाम होता है? जाहिर है, शैतान की धरती पर जो भी होगा, दिल दहला देने वाला होगा। वहां प्रेतनी चंदा से भी मुलाकात होगी। और मोगा से भी जिसे मुद्रानाथ ने खत्म कर दिया था। सबसे दिलचस्प और अहम बात ये है कि मोना चौधरी, महाजन, पारसनाथ, जगमोहन, नगीना, सोहनलाल, बांकेलाल राठौर, रुस्तम राव, राधा, शैतान की धरती पर पहुंचकर क्या कर पाते हैं। जादुई-मायावी शक्तियों में लिपटें हादसों से भरपूर आगामी उपन्यास “तीसरी चोट” में आगे होने वाली खौफनाक, दिलचस्प घटनाओं को पढ़ और महसूस कर पायेंगे। ये उपन्यास रवि पॉकेट बुक्स, मेरठ के आगामी सेट में शीघ्र ही प्रकाशित हो रहा है।

“तुम्हारा मतलब कि ये महल इस वक्त हवा में उड़ रहा है।” मोना चौधरी के होंठों से निकला।

“हां-।” महल ने चार आसमान ऊपर, शैतान के अवतार तक पहुंचने की यात्रा आरम्भ कर दी है।

शैतान का अवतार अब खुली आंखों पर काबू नहीं रख पा रहा था। कभी वो बंद होती तो कभी खुल जाती।

पांच कदमों के फासले पर खड़ा रुस्तम राव कह उठा।

“बाप, कुछ देर पहले महल कांपेला। जोरों से हिएला। तभी तो वो महल ऊपर को सो नेई खिसकेला क्या?”

“अंम लोगों को डरानो वास्तो यो झूठो बोलो हो।” बांकेलाल राठौर गुर्रा उठा-“अंम अम्भी किसी खिड़की से झांक कर बाहरो देखो हो।” कहने के साथ ही बांकेलाल राठौर पलटा और तेजी से बाहर निकल गया।

मोना चौधरी की निगाह उस मशीन जैसी चीज पर जा अटकी।

“तुमने महल को आसमान की तरफ ले जाने का काम, इस मशीन से किया है ना द्रोणा?” मोना चौधरी भिंचे स्वर में बोली।

“हां।” मध्यम-सी सांसें ले रहा था शैतान का अवतार-“लेकिन तुम इस मशीन को छेड़ने की कोशिश मत करना मिन्नो। वरना ये महल जमीन पर आ गिरेगा और तुम सब वक्त से पहले मर जाओगे। इस मशीन को कैसे इस्तेमाल करना है, मेरे अलावा और कोई नहीं जानता।”

धधक उठा मोना चौधरी का चेहरा। होंठों में कसाव आ गया।

एकाएक नीचे पड़े शैतान के अवतार के चेहरे पर मध्यम-सी मुस्कान फैल गई।

“वो-वो देखो। शैतान आ गया। मुझे लेने आ गया शैतान-।” मोना चौधरी ने इधर-उधर देखा।

“वो तुम्हें नजर नहीं आयेगा। किसी को नजर नहीं आता। शैतान सिर्फ उसी को दर्शन देता है, जिसने उसके शैतानी कामों पर चलकर, शैतानियत को बढ़ावा दिया हो। जिससे शैतान खुश वो खुद मुझे लेने आया है। वरना वो मरने वाली शैतानी आत्माओं को लाने के लिये अपने सेवकों को ही भेजता है। कितना खुशनसीब में, शैतान स्वयं आकर मेरी आत्मा को अपनी छत्रछाया में लेने जा रहा है।”

तभी खंजर थामे मोना चौधरी नीचे झुकी और पूरी ताकत के साथ खंजर का फल उसकी गर्दन में मारा। फल गले में घुसता चला गया।

शैतान के अवतार के शरीर में जरा-सी तड़प हुई और वो शांत पड़ गया।

दांत भींचे मोना चौधरी ने खंजर बाहर खींचा। खून से सना फल शैतान के अवतार के कपड़ों से ही साफ किया और उसे वापस अपनी कमर में फंसा लिया। फिर उसने कदम उठाये और मशीन की तरफ बढ़ी और पास पहुंचकर रुक गई। निगाहें मशीन पर फिरने लगीं।

रुस्तम राव पास आ पहुंचा।

“ये मशीन ही महल को हवा में उड़ाएला-।” रुस्तम राव की आवाज में कठोरता थी।

“हां-।” मोना चौधरी ने भिंचे स्वर में कहा।

“आपुन चेक करेला कि मशीन पर कैसे कंट्रोल होएला-।”

“मशीन को हाथ लगाने की भी गलती मत कर देना।” मोना चौधरी ने एक-एक शब्द चबाकर कठोर स्वर में कहा-“अगर वास्तव में महल हवा में ऊपर जा रहा है तो गलत ढंग से मशीन को छेड़ते ही, महल किसी पत्थर की तरह नीचे गिरेगा और हम सब एक साथ बुरी मौत मारे जायेंगे। हम नहीं जानते कि इस अजीब-सी मशीन को कैसे कंट्रोल किया जाता है। ऐसे में इससे दूर ही रहना चाहिये-।”

रुस्तम राव दांत भींचकर रह गया।

तभी कुछ दूर से आता बांकेलाल राठौर का स्वर उनके कानों में पड़ा।

“छोरे! ओ मोना चौधरी! इधर आओ, भागो-भागो के-।”

मोना चौधरी और रुस्तम राव तुरन्त कमरे से निकलकर, बांकेलाल राठौर के पास पहुंचे जो कि कुछ दूर एक खिड़की से बाहर झांक रहा था।

मोना चौधरी और रुस्तम राव ने भी बाहर झांका। अगले ही पल वो ठगे से रह गये। नीचे बहुत दूर जमीन नजर आ रही थी। वहां बना शैतान के अवतार का शहर बहुत छोटा सा नजर आ रहा में था। ऊपर देखा तो पास ही आसमान नजर आया। ज्यादा दूर नहीं रहा था अब आसमान।

काला महल मध्यम-सी गति से ऊपर की तरफ किसी गुब्बारे की भांति उठता जा रहा था।

“बाप-!” रुस्तम राब के होठों से निकला-“मरने से पहले शैतान का अवतार परफैक्ट बोएला था-।”

“छोरे, यो महलो ईब जावे किधर को?”

“चार आसमान पार, शैतान की दुनिया में पौंच कर ये महल अब रुकेला।”

मोना चौधरी के चेहरे पर मौत के भावों के साथ दुःख के निशान भी नजर आ रहे थे।

“तंम का बोलो हो मोना चौधरी?” बांकेलाल राठौर ने, मोना चौधरी को देखा।

“मैं-।” मोना चौधरी ने गहरी सांस ली-“मैंने क्या बोलना है। देवराज चौहान के बारे में सोच रही हैं। अगर वो जिन्दा होता उसकी गर्दन न कटती तो शैतान से टकराने के लिये मजबूत हाथ, मेरे साथ होता। देवराज चौहान का सहारा था मुझे। उसकी मौत के साथ ही मैं अपनी हिम्मत को आधा महसूस कर रही हूं।”

बांकेलाल राठौर की आंखों में आंसू चमक उठे।

“हरामो शैतान के अवतारो ने ‘वड’ दयो म्हारे देवराज चौहान को। मारो गयो वो-।”

तभी रुस्तम खिड़की से हटा और उधर को भागा, जिधर वो कमरा था। जहां शैतान का अवतार मरा पड़ा था। कुछ ही पलों में वापस आ गया। हाथ में मुद्रानाथ की शक्तियों से भरी वो तलवार थी, जो शैतान के अवतार के पेट में धंसी हुई थी।

रुस्तम राव की आंखें अंगारों की तरह दहक रही थीं। जालिम छोकरा इस वक्त मौत का दूसरा रूप लग रहा था। भिंचे होंठ। पत्थर हुआ पड़ा चेहरा।

एकाएक वहां धुंध-सी, कोहरा-सा भरने लगा।

काला महल आसमान में प्रवेश कर गया था।

समाप्त