20 मई : बुधवार
जुहू बीच पर एयरकन्डीशंड काटेजिज़ थे जो बीच लाइफ एनजॉय करने वाले टूरिस्ट्स में बहुत पॉपुलर थे और मौसम कोई भी हो, अक्सर फुल्ली ऑकूपाइड होते थे। लिहाज़ा संयोग ही था कि – जैसा राजा सा'ब चाहता था – आजू-बाजू के दो काटेज बुकिंग के लिए उपलब्ध थे और वो राजा सा'ब ने खुद बुक कराए थे। ऐसा उसने इसलिए किया क्योंकि उसकी योजनानुसार, उसकी अपेक्षानुसार जो आगे होने वाला था, उसकी किसी को भनक भी लगती।
सोहल की कनफर्मेशन आ चुकी थी कि उस शाम वो होटल अमृत इंटरकांटीनेंटल में उपलब्ध होगा। इतने बड़े- चार सौ पचास कमरों और सुइट्स वाले – होटल में वो कहाँ उपलब्ध होगा, ये अभी तफ्तीश का मुद्दा था।
नौ बजे दाएँ कोने के काटेज में, जिसका नम्बर एक था, रोज़ी बियांको की माइकल गोटी से मुलाकात भी अब पूर्वनिर्धारित थी। वो नौबत आने से बहुत पहले राजा सा'ब के हुक्म पर कोने के कॉटेज के लग्ज़री बैडरूम में निहायत खुफ़िया तरीके से एक सीसीटीवी कैमरा फिट कराया गया था जिसकी ख़बर गोटी को तो क्या होती, रोज़ी को भी नहीं थी।
रोज़ी को बैडरूम में कैमरे की ख़बर होती तो उसने यकीनन ऐतराज़ किया होता। बैडरूम में जो होना अपेक्षित था, उसकी रिकार्डिंग उसे कुबूल न होती। इसी वजह से रोज़ी को कॉटेज में सीसीटीवी कवरेज के इन्तज़ाम की कोई ख़बर नहीं होने दी गई थी।
बगल के कॉटेज में, जहाँ कि सीसीटीवी की रिकार्डिंग और विजुअल मॉनी टरिंग का इन्तज़ाम था, ख़ुद राजा सा'ब विराजमान था जो वहाँ स्कॉच चुसकता टाइम पास कर रहा था। आइन्दा हालात की नज़ाकत के मद्देनज़र उसने इस बार अपवाद के तौर पर अपने प्यादों को साथ रखने से परहेज़ किया था। उसको गोटी का ही सस्पेंस कम नहीं था, ऊपर से अभी उसने सोहल के रूबरू होना था।
धीरज से वो नौ बजने की प्रतीक्षा करने लगा।
रोज़ी ने माइकल गोटी के लिए तैयार होने की ख़ातिर टॉप के ब्यूटी पॉर्लर में साढ़े तीन घन्टे लगाए थे। आखिर में उसका चेहरा ही नहीं, खुला गला और नंगी बाहें भी शीशे की तरह चमक रही थीं। केश विन्यास ऐसा था कि खाली उसमें ही डेढ़ घन्टा लग गया था। उस शाम के लिए जो ड्रैस उसने चुनी थी, वो एक महरून रंग का स्लीवलैस, लो-नैक गाउन था जो टखनों से नीचे तक पहुँचता था और जिसके बाएँ पहलू में कूल्हे तक लम्बी झिरी थी जिसकी वजह से उसकी बॉडी ज़रा हरकत में आती थी तो झिरी खुल जाती थी और टाँग का जाँघ से भी आगे तक का खुल्ला नज़ारा होता था।
नौ बजे से पहले वो कॉटेज में मौजूद थी।
और दस मिनट बाद माइकल गोटी वहाँ पहुँच गया।
बिना बॉडीगार्ड्स के।
भीतर पहुँचने के बाद उसकी रोज़ी पर निगाह पड़ी तो उसका मुँह खुले का खुला रह गया।
रोज़ी खास उसके लिए पोज़ बना के खड़ी थी। उसका उन्नत वक्ष लो-नैक गाउन में से आधा बाहर झाँक रहा था, ऐसी झाँकी पेश करने के लिए कन्धे सिकोड़ कर तनिक आगे झुकना पड़ता था और यूँ उरोज और उभर कर बाहर आते जान पड़ते थे। खड़े होने का अन्दाज़ ऐसा था कि झिरी में से टाँग पूरी बाहर थी और सुर्ख होंठों पर अभिसार का वादा करती मुस्कराहट थी।
वो आगे बढ़कर विलायती अन्दाज़ से उस से बगलगीर हुई, फिर बड़ी अदा से पीछे हटी।
“गॉड!” – गोटी के मुँह से निकला – “हसीन तो मेरे को मालूम था कि तू थी लेकिन इतनी हसीन थी, इसकी मेरे को कभी ख़बर नहीं लगी थी।”
“कैसे लगती!” – बो चित्ताकर्षक अन्दाज़ से मुस्कराई – “आज जो तैयारी की, ख़ास तुम्हारे लिए जो की!”
“क्यों भला? राजा सा'ब से मन भर गया!”
“प्लीज़, ऐसी बातें न करो, वर्ना मेरा मड़ खराब हो जाएगा।”
“अब जब मैं आ गया हूँ तो ऐसा कैसे होने दूंगा!”
“बैठ जाएँ?”
गोठी ने सहमति में सिर हिलाया।
रोज़ी ने बाँह पकड़ कर उसे एक सोफे पर बिठाया फिर बोली – “ड्रिंक तैयार करती हूँ। ओके?”
“यस। प्लीज़।” – गोटी बोला। पाँच मिनट रोज़ी ने दो ड्रिंक तैयार करने में, सर्व करने में और सोफे पर उसके साथ सटकर बैठने में लगाए। बैठने का अन्दाज़ ऐसा था कि एक उरोज उसकी बगल में फँसा जान पड़ता था और गाउन की झिरी से बाहर निकली उसकी नंगी टाँग उसकी जाँघ तक उसके जिस्म से चिपकी हुई थी।
गोटी को अपने तन बदन में आग लगती महसूस हुई। उसने स्कॉच का एक घुट हलक से यूँ उतारा जैसे आग में घी डाला हो फिर बोला – “पहले मतलब की बात न हो जाए!”
“क्या जल्दी है?” – वो इठलाई – “सारी रात अपनी है।”
“कॉटेज का ख़याल कैसे आया?”
“आया किसी तरह से। तुम्हें पसन्द नहीं आई ये जगह?”
“बहुत पसन्द आई। जुहू बीच पर कॉटेज थे, मेरे को मालूम था लेकिन ऐसे लग्ज़री कॉटेज थे, ये मेरे को कोई नहीं बोला था वर्ना कभी मेरे को भी इनका ख़याल आता।”
“एक को आना काफी था। मेरे को आ गया।”
“वो तो है! पर कैसे आया?”
“यहाँ की तनहा फितरत की वजह से आया। राजा सा'ब को मेरी यहाँ मौजूदगी का ख़याल नहीं आ सकता।”
और हाज़िरी की बाबत सवाल नहीं करेगा?”
“ये रात वो ख़ुद बिज़ी है। उसकी किसी से पहले से फिक्स्ड लम्बी मुलाकात
“किससे?”
“बोलूँगी। अभी ड्रिंक एनजॉय करो।”
सहमति में सिर हिलाते उसने फिर घूट भरा तो उसकी रोज़ी की तरफ की बाँह सोफे की पीठ पर पसर कर खुद ही उसके कन्धों से लिपट गई और उसके हाथ की उँगलियाँ उसके उधर के उरोज पर सहलाने के अन्दाज़ से ख़ामोश दस्तक देने लगीं।
रोज़ी और उसके साथ सट गई।
“सारी रात बोला!”
गोटी उसकी आँखों में झाँकता बोला। “मुहावरे की तरह। फिगर ऑफ स्पीच के तौर पर।”
“असल में?”
“बारह तक मेरे को निकल लेना होगा। वो दो बजे लौटने को बोला था, जल्दी भी लौट सकता है।”
देर भी हो सकती है!”
“वो तो है! पर रिस्क लेने का क्या फायदा?”
“ठीक। अब बोल क्या बात करना चाहती थी?”
“बोलती हैं। पर पहले रिपीट न हो जाए?”
“ओके।”
उसने गिलास खाली कर के रोज़ी को थमाया। रोज़ी ने भी अपना गिलास खाली किया और उठ कर सर्विस टेबल की ओर बढ़ी।
गोटी के मुँह से आह-सी निकली। उसे लगा जैसे जन्नत उसके पहलू से निकल गई थी।
उसने इन बातों के मद्देनजर वहाँ आना कुबूल नहीं किया था। बला की खूब
सूरत औरत के साथ का छोटा-मोटा जुनून तो उस पर हावी था लेकिन वहाँ तो उसके आते ही सब गोली की रफ्तार से होने लगा था। रोज़ी ने तो जैसे उसका चार्ज अपने हाथों में ले लिया था, वो तो उसके दिलोदिमाग पर, उसके पूरे वजूद पर कब्ज़ा करती जा रही थी।
क्या फर्क पड़ता था! – फिर उसने लापरवाही से सोचा – जब उसे कोई ऐतराज़ नहीं था तो मेरे को क्यों होता!
गोटी जानता था कि चोरी छुपे उसके समेत उसके बाकी दोनों गैंग ब्रदर्स भी उस पर फिदा थे लेकिन ये हकीकत हर किसी के ज़ेहन पर हावी थी – गोटी के भी – कि वो नम्बर टू की पर्सनल प्रॉपर्टी थी, राजा सा'ब का पसन्दीदा खिलौना थी जिसके साथ कोई दूसरा खेलता, ये उसे कभी बर्दाश्त न होता।
हकीकत उजागर होती तब न! किसी को कुछ पता लगता, तब न! ऐसे ही तो किसी सयाने ने नहीं कहा था कि कई मर्तबा अज्ञान भी वरदान होता था। राजा सा'ब को ख़बर न लगे तो उसका खिलौना सेफ़ था। इश्कियाया हुआ, ऊपर से उम्रदराज़, मर्द वैसे भी इन बातों में अन्धा होता था।
जमा, आज तो उसका ख़ास खिलौना ख़ुद उसे भाव दे रहा था! वजह थी ज़रूर कोई। अलबत्ता उसका अभी सामने आना बाकी था। वान्दा नहीं। – उसने लापरवाही से सोचा – अभी तीन घन्टे थे।
वो ड्रिंक्स के साथ लौटी और पूर्ववत् उसके साथ सट कर – बल्कि उस पर ढेर होती — बैठी।
गोटी ने नए जाम का एक घुट भरा, तृप्ति से होंठ चटकाए फिर बोला – “अब बोल!”
“पहले अपनी बोलूँ”– वो संजीदगी से बोली – “या वो बात बोलूँ जो ख़ास गैंग ऑफ फ़ोर से ताल्लुक रखती है?”
“अब कहाँ है गैंग ऑफ फ़ोर! तेरे ठोकू की साजिश में फँस कर बेचारा झाम मेरे किए खल्लास हो गया और मेंडिस का भी पता नहीं कि सच में गोवा में है या बो भी ऑफ़ है!”
“कोई फर्क नहीं पड़ता। बात तब की है जब गैंग ऑफ फ़ोर सलामत था।”
“फिर तो पहले वही बात सुना।”
“राजा सा'ब सोहल से यारी लगा रहा है।”
“क्या बोला?”
गोटी सम्भल कर बैठा।
“राजा सा'ब सोहल से यारी लगा रहा है।”
“क्या बात करती है! सोहल आर्गेनाइज्ड क्राइम के खिलाफ है, भाईगिरी के खिलाफ है, कैसे होगा!”
“वो बाकायदा सोहल की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा चुका है। लम्बी मुलाकात होती हैं दोनों में।”
“यकीन नहीं आता। कहाँ?”
“साउथएण्ड’ में। अभी हाल ही में, परसों दोपहरबाद, बंगले में।”
“बंगले में! राजा सा'ब ने उसे घर बुला लिया!”
“खुद पहुँच गया। मेरे से मिलने आया था, राजा सा'ब से भी लम्बी मुलाकात कर के गया।”
“तेरे से! तेरे से मिलने आया था?”
“हाँ।”
“यानी अब वो भी तेरी फैन क्लब का चार्टर्ड मेम्बर ...”
“बकवास न करो। वो तो उस निगाह से मेरी तरफ झाँकता तक नहीं।”
“बीच वाला है?”
“बोला न, बकवास न करो। सारे मर्द एक जैसे नहीं होते।”
“इस मामले में तो एक ही जैसे होते हैं लेकिन ... खैर ... तू अपनी बात कर।”
“बहाना कोई और था लेकिन आया ख़ास मेरे से मिलने था।”
“बहाना क्या?”
“मेरी मार्फत मेरे योगा ट्रेनर से मिलना चाहता था।”
“क्यों भला?”
“सरवाइकल स्पॉन्डिलाइटस से परेशान था। योगा से वो मर्ज ठीक हो जाता था।”
“तो तेरे योगा ट्रेनर से बात कर के गया!”
“नहीं। इत्तफ़ाक से उस रोज़ ट्रेनर आया ही नहीं। खड़े पैर फोन आ गया कि नहीं आ सकता था।”
“आया भी होता तो तू बोली न, कि वो तो बहाना था, सोहल असल में ख़ास तेरे से मिलने आया।”
“अकेला चला आया?”
“वहाँ राजा सा'ब के अलावा किसी को नहीं मालूम था कि वो सोहल था। और राजा सा'ब से उसका वहाँ आमना-सामना होने का कोई सबब नहीं था।”
“ओह!”
“फिर बैक-आप के साथ आया।”
“लेकिन आया। लिहाज़ा अब वो भी तेरी फैन क्लब का चार्टर्ड मेम्बर!”
“फिर वहीं पहुँच गए! बाज़ नहीं आ सकते!”
वो हँसा।
“तो” – फिर बोला – “खीर में चम्मच मार के गया?”
“मैंने तो कुछ न किया।”
“कुछ करने देना भी करना ही होता है।”
“जल रहे हो?”
“हाँ, भई, है तो ऐसा ही! पैशनेट मर्द की जात हूँ, रकीब से जलना तो हुआ!”
“खामखाह!” – मौसम की तरह उसका मिजाज बदला – “अरे, मैं तो मज़ाक कर रही थी।”
“मज़ाक कर रही थी! बहुत बढ़िया वक्त चुना मज़ाक करने का! ऐसे ही मज़ाक-मज़ाक खेलते हैं, आराम से तीन घन्टे गुज़र जाएँगे। क्या?”
“सॉरी!”
“अब योगा-भोगा भूल और सोहल की बाबत जो असल बात है, वो बोल।”
“राजा सा'ब से मिलना चाहता था। मैंने मीटिंग अरेंज की थी।”
“कैसे? तेरे को क्या पता वो कहाँ पाया जाता था! राजा सा'ब को भी क्या पता!”
“कूपर कम्पाउन्ड गई, वहाँ मैसेज़ छोड़ा, नतीजा माकूल निकला।”
“बंगले में राजा सा'ब की उससे मुलाकात हुई?”
“हाँ।”
“तेरी मौजूदगी में?”
“हाँ।”
“मुद्दा क्या था?”
“राजा सा'ब नम्बर वन बनना चाहता था।”
“सोहल की मदद से?”
“मदद हो सके तो मदद से बर्ना सलाह से।”
“दी कोई सलाह?”
“हाँ।”
“क्या?”
“ये कि अपनी मंजिल पर पहुँचने के लिए राजा सा'ब को पहले कम्पीटीशन ख़त्म करने की जुगत करनी चाहिए थी।”
“कम्पीटीशन!”
“गैंग ऑफ फ़ोर। बाकी मेम्बरान का वजूद यूँ ख़त्म करना चाहिए था कि एक राजा सा'ब ही बाकी बचा दिखाई देता।”
“ये सोहल की सलाह थी?”
“हाँ। और राजा सा'ब ने पकड़ी बराबर।”
“सोहल ने सुझाया, कैसे राजा सा'ब कम्पीटीशन खत्म कर सकता था?”
“अब इतना भी नादान तो नहीं राजा सा'ब! ऐसे ही तो नम्बर टू नहीं है!”
“शय हासिल हो जाने के बाद उस पर अमल के खाते में जो करना था, ख़ुद किया?”
“अगर किया तो!”
“शुरुआत के तौर पर मेंडिस को लुढ़का दिया!”
“हो सकता है।”
“झाम को ऑफ़ करने का ज़रिया मेरे को बना लिया!”
“हुआ है।”
“मेरे को नहीं मालूम था राजा सा'ब इतनी बड़ी शतरंजी चाल चल सकता था। ऐसा डेढ़ दीमाक कैसे हो गया राजा सा'ब!”
“सोहबत से हो गया।”
“सोहल की सोहबत से?”
“यही जान पड़ता है।”
“जिसने सलाह दी कि गैंग ऑफ फ़ोर में से राजा सा'ब के अलावा कोई बाकी न बचे?”
“या जो एक बाकी बचा है, उसके अलावा।”
“जो एक बाकी बचा है! मैं!”
“क्यों नहीं! दो बार कामयाब हो चुकने के बाद अब तीसरी बार तो उसका हौसला और बुलन्द होगा!”
“कोई जुगत कर के मेरे को भी लुढ़का देगा?”
“तुम्हारा खुद का क्या ख़याल है?”
“तू ... तू मुझे कनफ्यूज़ कर रही है।”
“क्यों होते हो?”
“इस मीटिंग के पीछे तेरा असल मकसद क्या था?”
“यकीन कर लोगे?”
“हाँ।”
“तुम्हें वॉर्न करना था कि राजा सा'ब तुम्हें ऑफ़ करने पर आमादा था ताकि आइन्दा नम्बर वन बनने की – शाह की जगह लेने की – नौबत आए तो कम्पी टीटर कोई न बचे। अब तुम अपने आइन्दा अंजाम से खबरदार हो, खुद सोचो कि तुम्हें आइन्दा क्या करना चाहिए!”
“इससे पहले राजा सा'ब मेरे को ऑफ करे, मेरे को राजा सा'ब को ऑफ करने का।”
“अभी आई बात मगज में!”
खामोशी के अपने जाम को चुसकता गोटी कई क्षण न बोला।
“अगर तुम ऐसा कर पाए तो मैं हमेशा के लिए तुम्हारी।”
वो और कस कर गोटी के साथ लिपट गई। गोटी ने कोई ऐतराज़ न किया।
“ये व्यवहारिक बात है, दुनियादारीकी बात है।” – वो बोला– “औरत बेल की तरह होती है जिस को नज़दीकी पेड़ का आसरा दरकार होता है। तू बेल है, राजा सा'ब ऑफ हो गया तो मैं नज़दीकी पेड़, ये इक्वेशन तो मैंने समझी! अब असल बात बोल जिसकी वजह से तेरे को राजा सा'ब से आज़ाद होना माँगता है!”
वो विचलित दिखाई देने लगी।
“मेरी जानकारी में तो वो जान छिड़कता है तेरे पर!”
“और भी बहुत कुछ करता है।”
“तो और क्या चाहिए तेरे को?”
“आगे क्या होगा?”
“बोले तो?”
“क्या हैसियत है मेरी उसकी ज़िन्दगी में?”
“मैं समझता हूँ तू क्या कहना चाह रही है लेकिन वो रास्ता तूने ख़ुद अपनी मर्जी से चुना। कितना टेम हो गया? मेरे ख़याल से चार साल। क्या?”
“ठीक!”
“काबू में कैसे आई चार साल पहले?”
“ शंघाई मून’ में होस्टेस थी। मैनेजर जमशेद कड़ावाला ने ऐंगेज किया था। मेरी नई मुलाज़मत के दौरान जब पहली बार राजा सा'ब के वहाँ कदम पड़े तो देखते ही मेरे पर मर मिटा। मेरी वहाँ की नौकरी छुड़वा दी और मेरे को अपनी पर्सनल सैक्रेट्री ऐंगेज कर लिया।”
“पर्सनल सैक्रेट्री! क्या कहने!”
“भई, कुछ तो कहना था! अपनी कीप तो नहीं कह सकता था!”
“हूँ।”
“या सिंगल क्लायन्ट वाली प्रॉस्टीच्यूट!”
“बस कर।”
“लिव-इन रिलेशनशिप मॉडर्न, इज्जतदार, ‘इन’ टर्म लगती है। असल में तो यही हूँ मैं! या कह लो गैंगस्टर्स मौल!”
“इतनी कड़वाहट बेमानी है। जब आज तक तेरे को गैंगस्टर्स मौल, या कुछ ऐसा ही और, होने से शिकायत न हुई तो अब क्यों होने लगी?”
“तुम समझते नहीं हो।”
“क्या नहीं समझता? जो नहीं समझता, समझा वो मेरे को!”
“तुम माहौल में तलखी पैदा कर रहे हो। मैं इसलिए यहाँ नहीं आई।”
वो सकपकाया, उसने अपना व्हिस्की का गिलास खाली कर के सामने मेज़ पर रखा और उसे दोनों बाँहों के घेरे में लेता बदले लहज़े में बोला – “तो ख़त्म कर वो किस्सा!”
“नहीं, अब शुरू किया है तो कह के ही ख़त्म करूँगी।”
वो गोटी की बाँहों से मुक्त हुई और उसने गोटी के लिए, सिर्फ उसके लिए, नया जाम तैयार किया। गोटी ने ऐतराज़ न किया, उसने जाम थाम लिया और फिर उसे अपने एक बाँह के घेरे में ले लिया।
“बोल आगे।” — फिर बोला – “गुज़रते टेम का ख़याल रखते बोल।”
“देखो, राजा सा'ब के साथ जितना टेम कटा, अच्छा कटा लेकिन आगे की तो कोई गारन्टी नहीं!”
“बोले तो?”
“ईश्वर न करे उसे कुछ हो जाए या उसका मेरे से मन भर जाए ....”
“नहीं हो सकता। तेरे लिए उसकी दीवानगी तो घटने की जगह बढ़ती जा रही है! तू तो यूँ समझ कि उसके लिए नित नई दुल्हन है।”
“अरे, फर्ज़ करो।” – वो झल्लाई – “फर्ज़ करो।”
“भाव नहीं खाने का। किया।”
“फर्ज़ करो उसका मेरे से मन भर जाए और वो मेरे से किनारा कर ले तो मेरा मुकाम कहाँ होगा?”
“कहाँ होगा?”
“फुटपाथ पर। चार साल जो मौज की, वो तो आई गई हो गई! पल्ले तो कुछ न पड़ा! जवानी हमेशा तो साथ नहीं देती! फ्यूचर की कोई छोटी-मोटी गारन्टी तो होनी चाहिए या नहीं उसकी इतनी ख़िदमत के बाद?”
“तूने कोई असैट्स बनाने की तरफ कभी कोई ध्यान न दिया?”
“न! कभी भी नहीं।”
“कोई फ्लैट, कोई इनवेस्टमेंट्स, कोई एफडीज़?”
“नथिंग।”
“कैश?”
“ज़ीरो।”
“कमाल है! तो क्या है तेरे पास उसकी चार साल की बेगरज़ ख़िदमत के बदले में?”
“रोज़मर्रा की सहूलियात के अलावा झुनझुना।”
“इस बाबत बात की होती उससे!”
“वो नौबत आने से पहले इत्तफ़ाक से – इत्तफ़ाक से बोला मैंने, मेरे किए कुछ न हुआ – अपने आप ही उससे बेहतर कुछ हो गया।”
“अच्छा! क्या ... क्या हो गया?”
“मेंडिस मेरे को भाव देने लगा।”
“ऐसा हुआ?”
“बरोबर। और सच पूछो तो उसकी मेरी तरफ हुई ख़ास तवज्जो मेरे को अच्छी लगी।”
“माई डियर, तेरी तरफ तवज्जो उसकी ही नहीं, सब की थी। राजा सा'ब का मुलाहज़ा न होता तो कोई भी तेरे को सालम हज़म कर जाता।”
“हो सकता है। पर मेंडिस की ख़ास तवज्जो में भी एक ख़ासियत थी जो तुमने या झाम ने मेरे लिए कभी न जताई।”
“क्या? क्या ख़ासियत थी?”
“बुधवार को मैंने उसे हिंट दिया कि मेरे को एक नकद रकम की ज़रूरत थी जिसकी माँग मैं राजा सा'ब से नहीं कर सकती थी। उसने ये न पूछा कि क्यों नहीं कर सकती थी, खाली सवाल किया कि क्या मैं अपनी ज़रूरत को दो दिन के लिए टाल सकती थी! मैंने कहा टाल सकती थी, लेकिन दो दिन में क्या ख़ास करतब होने वाला था! बोला करतब नहीं, करिश्मा होने वाला था, शुक्रवार तक मेरे पास इतना पैसा होने वाला था कि ये जन्म क्या, अगले जन्म तक मेरे को पैसे की कहीं माँग नहीं उठानी पड़ेगी। वो बात मेंडिस ने इतनी संजीदगी से, इतनी गारन्टी से कही कि मेरे को ये पूछना भी ज़रूरी न लगा कि कैसे वो करिश्मा होगा! मैंने खाली इतना पूछा कि बदले में मेरे को क्या करना होगा। जो वो चाहता था, उसने दो टूक तो न कहा लेकिन समझ मेरी में बराबर आ गया। मैंने फिर भी कहा बहुत ख़तरे का काम था। जवाब में बोला नकद में करोड़ों रुपया सम्भाल कर, छुपा कर रखना क्या कम ख़तरे का काम था!”
“सिरे पर पहुँच। टेम खोटी हो रहा है।”
रोज़ी ने महसूस किया कि तीसरे पैग का असर अब उस पर साफ दिखाई देने लगा था।
“शुक्रवार सुबह” – रोज़ी आगे बढ़ी – “कान्दीवली आकर उसने मेरे को चमड़े का, लाल रंग का एक सूटकेस सौंपा जिसमें चौदह लाख डॉलर से ज़्यादा रकम बन्द थी।”
“उसने बोला ऐसा?”
“उसी ने बोला। रकम की बाबत मेरे को क्या ख्वाब आना था कि वो डॉलर में थी या कितनी थी।”
“देसी करेंसी में दस करोड़?”
“हाँ।”
“सूटकेस खोल के दिखाया?”
“हाँ।”
“क्या देखा?”
“सारा सूटकेस सौ-सौ डॉलर के नोटों से टुसा हुआ था।”
“सब तेरे?”
“मेरे नहीं, मेरे हवाले। वो तमाम की तमाम रकम मेरे को दे देने वाला था, मेरे ऐतबार में ये बात नहीं आ रही थी।”
“क्यों भला? तू कहती है वो ख़ुद बोला कि शुक्रवार तक तेरे पास इतना पैसा होगा कि अगले जन्म तक तेरे को पैसे की माँग नहीं उठानी पड़ेगी!”
“मेरे को याद, वो ख़ुद क्या बोला। मैंने यही समझा कि फेंक रहा था, बात को बढ़ा-चढ़ा के कह रहा था। दस करोड़ रुपया! एक मुश्त! देवा रे! कैसे कोई किसी को यूँ ही थमा देता!”
“नादान न बन। यूँ ही नहीं।”
“न सही। मैंने फिर भी यही समझा कि अभी रखने को दे रहा था, बाद में जब सूटकेस लौटाने की घड़ी आएगी तो उसमें से नकद रकम की मेरी ज़रूरत भी पूरी कर देगा। दस करोड़ का हिस्सा भी तो आखिर बड़ी रकम ही होता!”
“सच में ये न सूझा कि सारा रोकड़ा तेरे हवाले था?”
“बड़े अरमान से ऐसा ख़्वाब तो देखा बराबर! लेकिन ख्वाब ही देखा न, हकीकत का सामने आना तो बाकी था!”
“मेंडिस के पास खड़े पैर इतना रोकड़ा कहाँ से आया?”
“इस बाबत कोई बात होने की नौबत ही न आई।”
“लिहाज़ा इतनी बड़ी रकम अब तेरे कब्जे में है? बंगले में कहीं छुपा के रखी हुई?”
“वो बहुत ख़तरे का काम था, राजा सा'ब को उसकी खबर लग सकती थी।”
“मैं यही कहने वाला था।”
“मैंने अपने योगा ट्रेनर का भरोसा किया और उसे बिना बताए कि भीतर क्या था – भला आदमी था, उसने पूछा भी नहीं- हिफाज़त से रखने के लिए सूटकेस उसे सौंप दिया।”
“बड़ा काम किया।”
“मजबूरी थी। खड़े पैर और कुछ न सूझा। सूटकेस बंगले से बरामद हो जाता तो रोकड़ा भी जाता और राजा सा'ब की आँखों में बनी बनाई मेरी इज्जत भी जाती।”
“हम्म! आगे बोल!”
“आगे क्या बोलूँ? योगा ट्रेनर ने तो पूरी वफ़ादारी दिखाई लेकिन रोकड़ा फिर भी हाथ से निकल गया।”
“अरे! कैसे?”
“कल सुबह योगा ट्रेनर के घर चोरी हो गई। किसी ने उसकी गैरहाज़िरी में उसके फ्लैट के मेनडोर का ताला खोल लिया और सूटकेस चुरा ले गया।”
“गॉड! तुम्हारे ट्रेनर ने ही तो कोई करतब न किया?”
“सूटकेस ख़ुद हज़म कर लिया और बोल दिया चोरी हो गया!”
“हाँ।”
“नहीं, ये मुमकिन नहीं। वो बहुत भला आदमी है।”
“दस करोड़ पहुँच में हों तो भलाई चुटकियों में काफूर होती है।”
“उसको नहीं मालूम था सूटकेस में क्या था!”
“मालम कर लेना बहुत बड़ा काम था?”
“नहीं था। लेकिन मेरे को चोरी की ख़बर करने वाला भी तो खुद वो ही था! वो करतब उसका होता तो क्या मेरे से कॉन्टैक्ट करता! वो मेरे को ढूँढ़े न मिलता। घर बार छोड़ कर मुम्बई से हमेशा के लिए गायब हो जाता।”
उसने उस बात पर विचार किया। “तो चोर कौन?” – फिर बोला – “अब रोकड़ा किस के पास?”
“क्या मालम!”
“काम तो किसी भेदी का ही होना चाहिए! किसी काले चोर को कैसे मालूम कि उस योगा ट्रेनर जैसे मामूली आदमी के कब्जे में दस खोखा रोकड़ा था?”
“मैं क्या बोलँ!”
“और क्या चोरी गया?”
“कहता था कुछ नहीं। खाली सूटकेस चोरी गया।”
“राजा सा'ब ने करवाया?”
“क्या!”
“उसको किसी तरह से दस खोखा रोकड़े वाले किसी सूटकेस के वजूद का कोई सुराग था और अन्दाज़ा था कि सूटकेस तेरे को सौंपा गया था ....”
“फेंक रहे हो! खामखाह लम्बी-लम्बी छोड़ रहे हो!”
“तू सूटकेस पास रखना अफोर्ड नहीं कर सकती थी इसलिए वक्ती तौर पर तूने उसे योगा ट्रेनर को सौंपा। राजा सा'ब को किसी तरह से ये बात मालूम हो गई और फिर उसने अपने प्यादों के ज़रिए योगा ट्रेनर के घर से सूटकेस की खुफ़िया चोरी का इन्तज़ाम किया। इसी वजह से घर से कोई और चीज़ चोरी न गई क्योंकि सूटकेस के अलावा और कुछ चोरी करना ही नहीं था।”
“नॉनसेंस!”
अन्दर से वो हिल गई थी। कितनी आसानी से वो साला डेढ़ दीमाक सब भाँप गया था।
“अगर सूटकेस आख़िर राजा सा'ब के कब्जे में है तो उसी को चारे की तरह इस्तेमाल कर के उसने तेरे को मजबूर किया हो सकता है।”
“किस काम के लिए?”
“मेरे को ऑफ करने के लिए।”
“मामूली काम बताया! ऑफ करना खाली कान से मैल निकालने को ही तो बोलते हैं।”
वो ठठा कर हँसा।
“क्या हुआ?” – सकपकाई-सी वो बोली।
“कुछ नहीं।” — पूर्ववत् हँसता वो बोला – “ऐसे ही मगज के हवाई घोड़े दौड़ा रहा था। बोल बोल के सोच रहा था।”
“लाउड थिंकिंग कर रहे थे?”
“शायद यही कहते हैं।”
“यही कहते हैं। तुम्हारा गिलास खाली है!”
“मालूम। उसे मैं ख़ुद भर लूँगा। तू अपनी बात कर। बोले तो मेंडिस की बात कर। तो राजा सा'ब बोला वो गोवा में! शाह ने भेजा! सड़नली गया! क्या?”
“मेरे को यकीन नहीं।”
“तेरे को क्या यकीन है?”
“राजा सा'ब ने उसको खल्लास कर दिया, लाश गायब कर दी – या करवा दी- और बोल दिया शाह के हुक्म पर खड़े पैर गोवा गया।”
“हम्म!”
“अगर इस बात को ऐतबार में लाया जाए तो ये भी मानना होगा कि राजा सा'ब लाल सूटकेस की बाबत मेंडिस से सब कबूलवा चुका था, ये भी कि शुक्रवार सुबह सूटकेस मेंडिस ने मेरे को सौंपा था।”
“राजा सा'ब से चोरी?”
“और क्या प्रेजेंटेशन का फंक्शन कर के? बैंड बाजे के साथ?”
“सॉरी!”
“देखो, सोहल की कम्पीटीशन ख़त्म करने वाली राय को राजा सा'ब ने कितना सीरियसली लिया, मेरे को नहीं मालूम लेकिन मेंडिस अगर इस दुनिया में नहीं है तो उसकी वजह यही है कि राजा सा'ब को उसके मेरे से अफेयर की ख़बर लग गई थी। अफेयर के अलावा और कोई वजह मुमकिन नहीं कि वो मेरे को दस करोड़ रुपए का तोहफा देता। अब बोलो, अगर मैं सोचती हूँ कि मेरी जान को ख़तरा है तो क्या गलत सोचती हूँ?”
“तू मेंडिस के साथ सोती थी?”
“अभी वो नौबत नहीं आई थी।”
“हुआ कुछ भी नहीं, किया कुछ भी नहीं, पेमेंट एडवांस में कर दी! इसी से साबित होता है कि तू कितनी बड़ी जादूगरनी है, कितना ज़ोर है तेरे जादू में!”
“तुम्हारे पर चल गया?”
वो हँसा।
“मैं एक मजबूर औरत हूँ, हालात की मारी मजबूर औरत हूँ। मेरी माली ज़रूरियात से ताल्लुक रखती मेरी सैड स्टोरी से मेंडिस पिघल गया, बस इतनी सी बात है।”
“पिघल कर तेरे लिए कारूं-का खज़ाना खोल दिया। बस, इतनी सी बात थी। ठीक?”
वो निगाह चुराने लगी।
“कोई काम फ्री नहीं होता।” – गोटी का लहजा शुष्क हुआ – “कीमत कभी पहले अदा करनी पड़ती है, कभी बाद में। कैश अदा करना मुमकिन न हो तो काइन्ड में। अब जवाब दे। मेंडिस के साथ सोती थी?”
“मेरा वही जवाब है जो पहले था। अभी वो नौबत नहीं आई थी।”
“आख़िर आनी तो थी न!”
वो हिचकिचाई।
“उसने ज़मीन आसमान खरीद लेने लायक एकमुश्त पेमेंट की, आख़िर आनी तो थी न!”
पूर्ववत् हिचकिचाते उसने ऊपर नीचे गर्दन हिलाई।
“मुंडी हिलाती है, ज़ुबान नहीं हिलाती।”
“हं-हाँ।”
“घाटे में रहा खजूर। पहले ही ऑफ हो गया।”
“अगर हो गया तो।” – इस बार वो जज़्बात से आज़ाद लहजे से बोली।
“तेरे को कोई शक?”
“ अगर’ मैंने इसलिए कहा कि शायद मेरी सलामती की सूरत निकल जाए। अगर राजा सा'ब ने उसे मेरे साथ अफेयर की सज़ा के तौर पर ऑफ किया है तो सज़ा मेरे को भी मिलना महज़ वक्त की बात है। अब सिर्फ तुम ही मुझे उस सज़ा से बचा सकते हो।”
“मैं कैसे?”
“ये भी कोई पूछने की बात है! इससे पहले की राजा सा'ब की शातिर चालों के हवाले तुम्हारा भी अंजाम मेंडिस और झाम जैसा हो, राजा साब को तुम ऑफ कर दो।”
“राजा सा'ब को कम्पीटीशन ख़त्म करने की सलाह मिली, समझो वो सलाह तुम्हारे काम आई।”
“मैं नम्बर टू?”
“फिर नम्बर वन। दिल्ली वाले हकीम की विज़िट के हवाले से अब तो साफ ज़ाहिर हो चुका है कि अपनी खुफ़िया, लाइलाज बीमारी से जूझता शाह फकत चन्द दिनों का मेहमान है। क्या कहते हो?”
“मेरे को सोचने दे।” – गोटी एक क्षण ठिठका फिर बोला – “मेरे ख़याल से बैडरूम में रिलैक्स करता मैं बेहतर सोच पाऊँगा।”
“नेक ख़याल है।”
उसने अपना गिलास खाली किया और उठ खड़ा हुआ।
“आ!” – उसने रोज़ी की तरफ हाथ बढ़ाया। “बैडरूम में?” - वो चित्ताकर्षक भाव से मुस्कुराती बोली।
“और कहाँ?”
“उठा के ले के चलो।” – वो इठलाई। गोटी ने उसे गोद में भर लिया।
“क्या बात है!” – वो बोला – “तेरा तो साली भार ही नहीं है!”
“फूलों का कहीं भार होता है!”
वो खुश हो गया, उसको सीने से भींचता वो बैडरूम में पहुँचा। उसने रोज़ी को बैड पर ढेर किया और हैरानी से चारों तरफ निगाह दौड़ाई।
बैडरूम यूँ सजा हुआ था जैसे सजावट सुहागरात के लिए हो। बैड पर साटन की गुलाबी चादर, उस पर सारे में फैली गुलाब की पंखुड़ियाँ। सारे बैडरूम में फैली अनोखी खुशबू जो चौतरफा जलती खुशबूदार मोमबत्तियों से निकल रही थी। बिजली की कोई रौशनी वहाँ ऑन नहीं थी इसलिए माहौल वैसे ही और रोमांटिक लग रहा था। बैड के हैड की तरफ एक साइड टेबल पर सिल्वर आइस बकेट में एक शैम्पेन की बोतल मौजूद थी जिसके पहलू में दो बैल्जियन फ्ल्यूट गिलास सजे थे।
गोटी ने झुक कर शैम्पेन की बोतल का मुआयना किया। लुई रोडरर! बाजार में कीमत बीस हज़ार रुपए।
“इतनी हाई फाई शैम्पेन!” — वो बोला।
“तुम्हारे लिए।” — वो इठलाती बोली।
“व्हिस्की के बाद शैम्पेन कौन पीता है!”
“मेरे को ये तौर-तरीके नहीं मालूम।”
“इतना खर्च किसने किया?”
“अभी सब ऑन एकाउन्ट है। बिल तुम्हारे को दूंगी न!”
“ठीक है। देना।”
वो बाहर को बढ़ा।
“कहाँ जा रहे हो?”
रोज़ी व्यग्र भाव से बोली।
गोटी ने जवाब न दिया। दो मिनट बाद जब लौटा तो उसके हाथ में ट्रे थी जिस पर व्हिस्की की बोतल दो गिलास आइस बकेट और मिनरल वॉटर की बॉटल मौजूद थी।
बाहर पोटेटो चिप्स और काजू भी थे लेकिन वो दो चीजें ट्रे पर नहीं दिखाई दे रही थीं।
उसने हाथ में थमी ट्रे की साइड टेबल पर जगह बनाई लेकिन जाम तैयार करने की कोशिश न की। उसने आँख भर कर बैड पर मौजूद रोज़ी की तरफ देखा जो पीठ के बल, बड़ा उत्तेजक पोज़ बनाए बैड पर लेटी हुई थी, उसके होंठों पर कामुक मुस्कुराहट थी और आँखों में खुला निमंत्रण था।
“क्या देखते हो?” – वो मादक स्वर में बोली।
“तेरे को .... तेरे को देखता हूँ।” – गोटी मन्त्रमुग्ध भाव से बोला।
“गलत। मेरी ड्रैस को देखते हो।”
“क्या बोला?”
“अभी मैं दिखाई कहाँ दे रही हूँ?”
“ओह! तो दिख न!”
“जो हुक्म, माई लॉर्ड एण्ड मास्टर।”
बड़ी अदा से, स्लो मोशन में, पलस्तर की तरह ज़िस्म पर चढ़ा गाउन उसने यूँ खींच कर उतारा जैसे नागिन अपनी केंचुली उतार रही हो। गाउन के नीचे अन्डरगार्मेंट्स की उसके ज़िस्म पर कोई हाज़िरी नहीं थी। गोटी मुँह बाये उसकी हर हरकत को देख रहा था। “अब तुम भी तो दिखो!” - बो आग्रहपूर्ण स्वर में बोली।
“मेरे में दिखने लायक कुछ नहीं हैं।” – वो धीरे से बोला – “मैं बहुत पुराना पीस हूँ। तुम्हारे मुकाबले में तो समझ लो कि ... कि बूढ़ा!”
“नॉनसेंस! घोड़ा और मर्द कभी बूढ़े नहीं होते।”
“बहुत पते की बात कही। फिर भी....”
“क्या फिर भी?”
जवाब में उसने कोने की एक मोमबत्ती छोड़ के बाकी तमाम मोमबत्तियाँ बुझा दीं। फिर उसने नोच कर अपने ज़िस्म पर से कपड़े उतारे और बाज़ की तरह बैड पर बिछी सौगात पर झपटा।
फिर बैड पर वो जंग शुरू हुई जिसमें या दोनों जीतते हैं या दोनों हारते हैं। पता नहीं कितनी देर वो सिलसिला चला।
चार लॉर्ज के नशे में – चौथा पटियाला, जो उसने ख़ुद बनाया था – अप्सरा सरीखी सुन्दरी को भोगने के उसके जुनून ने बैड की चूलें हिला दीं।
आखिर गोटी करवट बदलता उसके ऊपर से हटा और उसके पहल में पीठ के बल लेटा आँखें बन्द किए अपनी उखड़ी साँसों पर काबू पाने की कोशिश करने लगा।
रोज़ी उसकी ओर घूमी, कोहनी के बल उसने सिर ऊँचा किया और गोटी की
तृप्त सूरत को निहारा।
“क्या हुआ?” – फिर जानबूझ कर अंजान बनती बोली।
“तू बता!” – पूर्ववत् आँखें बन्द किए गोटी बोला। “मेरे से क्या पूछते हो! तुम्हें नहीं मालूम क्या हुआ! अरे, मेरे को बुलडोज़र की तरह रौंद दिया और पूछते हो क्या हुआ!”
“अच्छा, वो! मैं समझा कुछ और पूछ रही थी।”
“कुछ और क्या?’
रैस्ट। अभी बोले तो रैस्ट की ज़रूरत है न!”
“काहे वास्ते रैस्ट की ज़रूरत है? मैराथान दौड़ के आया छोटा माइकल?”
“अरे, मेरे को ... मेरे को रैस्ट की ज़रूरत है।”
“कनफर्म करने दो।”
“अरे, अरे! क्या करती है?”
“है तो सही प्रॉब्लम, पर इलाज है मेरे पास।”
“क्या?”
“अभी मालूम पड़ेगा। पहले बोलो, शैम्पेन सर्व करूँ?”
“मैंने बोला था, व्हिस्की के ऊपर शैम्पेन नहीं।”
“सॉरी, भूल गई। त्रिलोक दर्शन में सब भूल गई।”
“हुआ तेरे को?”
“क्या?”
“त्रिलोक दर्शन!”
“तो क्या न होता!”
बिना आँखें खोले वो हँसा। “व्हिस्की!” — वो बोली – “व्हिस्की सर्व करूँ?”
“हाँ। लेकिन छोटा ड्रिंक।”
“वन छोटा ड्रिंक कमिंग अप राइट अवे, माई बुलडोज़र सर।”
उसने बड़ा ड्रिंक ही बनाया।
गोटी ने सप्रयास आँखें खोलीं, पीठ पीछे दो और सिरहाने लगा कर धड़ को ऊँचा किया और गिलास थामा। उसने एक घुट भरा तो उसकी सूरत से ऐसा न लगा कि जाम में व्हिस्की की मात्रा से उसको कोई ऐतराज़ हुआ था। ड्रिंक एनजॉय करने की प्रक्रिया में उसने फिर आँखें बन्द कर ली।
रोज़ी का दायाँ हाथ उसके जिस्म पर फिर सरक आया और धीरे-धीरे हाथ की शरारती हरकतें मुखर होने लगीं।
“अरे, क्या करती है!” – एकाएक वो चिहुँकता-सा बोला। “चुपचाप पड़े रहो।”
रोज़ी डपट कर बोली।
“पर ...”
“सुना नहीं!”
उसने होंठ भींच लिए, फिर जब रोज़ी के हाथ पता नहीं उसके जिस्म एक कहाँ-कहाँ दस्तक देने लगे तो उसने और कस के आँखें बन्द कर ली।
आधा घन्टा बो सिलसिला चला, उस दौरान रोजी के तजुर्बेकार हाथों का साथ उसकी जुबान और मुँह ने भी बाखूबी दिया। नतीजतन गोटी, जो ख़ुद को रिपीट परफार्मेट के नाकाबिल मानता था, अब सहवास के लिए तड़पने लगा।
इस बार लीड रोज़ी ने ली और पूरी दक्षता के साथ उसकी तड़पन को शान्त किया। पहली बार से ज्यादा वक्त लगा कर। कुछ क्षण दोनों के बीच सम्पूर्ण स्तब्धता व्याप्त रही। फिर रोज़ी उसके पहलू में सरक कर तनिक ऊँची हुई और उसके कान की लौ चुभलाती रंगीन लहजे में फुसफुसाई – “कैसा लगा?”
“करिश्मा!” – वो आँखें बन्द किए होंठों में बुदबुदाया – “लगा बागेबहिश्त की सैर कर के आया।”
“अभी मुकम्मल कहाँ की! अभी तो....”
“खबरदार! अब और कुछ किया तो यकीनन मेरा दम निकल जाएगा। अभी तक निकल ही नहीं गया, यही हैरानी की बात है!”
वो हँसी। अभिसार का नया वादा करती मादक हँसी। “सुना था खाली कि हुस्न वालों की रहमतें भी जान निकाल देती हैं, आज आँखों से देखा।”
“जान निकल गई?”
“कसर भी क्या छोड़ी! तू तो जादूगरनी है! हैरानी है राजा सा'ब चार साल से अभी तक कैसे ज़िन्दा है! पहले ही तेरे पहलू में कभी मरा क्यों न पाया गया!”
“देखना। समझना। उसको ऑफ कर दोगे तो फिर हमने साथ ही रहना है! नहीं?”
उसने जवाब न दिया।
“अरे, मैं बोली कुछ!”
जवाब न मिला। उसने उसको बाँह पकड़ कर हिलाया तो भी उस पर कोई प्रतिक्रिया न हुई। वो थोड़ा उकडू हुई और अपलक उसकी सूरत को निहारने लगी।
उसकी आँखें बन्द थीं, सांस व्यवस्थित चल रही थी लेकिन अब वो घनघोर नींद सोया पड़ा था – दोहरी कामक्रीड़ा के परिणामस्वरूप परम तृप्ति के हवाले।
बढ़िया।
वो हौले से उसके पहलू से उठी और जाकर उसके पायताने बैठ गई। कई क्षण वो इस उम्मीद में ख़ामोश बैठी रही कि उसके जिस्म में कोई हरकत होगी। ऐसा न हुआ तो उसने बैड के पायताने अपने गुच्छा-मुच्छा गाउन के ऊपर पड़ा अपना हैण्डबैग उठाया और उसमें से इंसुलिन की डिस्पोजेबल सिरिंज बरामद की जो पूरी भरी हुई थी। सीरिंज की कपैसिटी दो सौ यूनिट थी जबकि वो एक बार में बीस यूनिट इंजेक्ट करने के लिए एडजस्टिड थी। राजा सा'ब की हिदायत के मुताबिक प्रीएडजस्टमेंट को कैंसल कर के वो सीरिंज पूरी की पूरी उसने गोटी के जिस्म में खाली कर देनी थी और इस बाबत उसे ख़ासतौर से समझाया गया था कि सुई टखने से ऊपर पिंडली में दाखिल करनी थी और पिस्टन पूरा दबा देना था।
क्या मुश्किल काम था!
अञ्चल तो उसे चुभन का ही पता न लगता, लगता तो ये पता न लगता कि वो कहाँ हुई थी, क्यों हुई थी। जब तक पता लगता, तब तक वो इन्सुलिन के ओवरडोज़ के हवाले दूसरी दुनिया में विचर रहा होता।
उसने सीरिंज को अपने दाएँ हाथ में मजबूती से थामा और फिर पिंडली में सूई खुबोने ही लगी थी कि एक मजबूत हाथ उसकी कलाई पर पड़ा।
उसने चिहुँक कर सिर उठाया तो ये देख के उसके प्राण काँप गए कि गोटी दी नदनिया से बेख़बर काम तृप्ति की नींद सोया नहीं हुआ था, उठ के बैठा हुआ था।
गोटी ने ख़ामोशी से उसकी कलाई मरोड़ी और दूसरे हाथ से उसकी पकड़ से छूटती सीरिंज ख़ुद थाम ली।
“क्या!” – एक ही लफ्ज गोटी ऐसे हिंसक भाव से बोला कि रोज़ी के चेहरे का खून निचुड़ गया। उसके होंठ कागज की तरह फड़फड़ाए लेकिन मुँह से आवाज़ न निकली।
“सीरिंज में ज़हर है?”
वही मुश्किल से वो इंकार में गर्दन हिला पाई। “मुंडी नहीं हिलाने का। वर्ना मरोड़ के हाथ में देगा। क्या है सीरिंज में?”
“इ-इ-इंसुलिन!”
“ओह! तो ठोकू की हुक्मबरदारी कर रही थी! इसी वास्ते मेरे पर इतनी मेहरबान! राजा सा'ब को मालूम मैं हैवीली डायबटिक। इस वास्ते इतनी एक्स्ट्रा इंसुलिन एक टेम में मेरे अन्दर और दम बाह। माशूक मिशन में कामयाब। ठोकू
खुश! क्या?”
रोज़ी के मुँह से बोल न फूटा।
“कामयाब हो जाती तो क्या ईनाम मिलता?”
“सू-सू-सूट ...”
“सूटकेस! दस खोखा! देवा! इतने में तो कोई सुपारी किलर सौ खून करने को तैयार हो जाता। इतने में तो राजा सा'ब हज़ार-हज़ार रोज़ियों के साथ सो सकता था। पण खजूर को एक रोज़ी के साथ हज़ार बार सोना पसन्द। क्या?”
रोज़ी के मुँह से बोल न फूटा।
“खैर! अभी मेरे को देखने का” – गोटी निर्णायक भाव से बोला – “जो डायबटिक नहीं, उसको इतनी इंसुलिन क्या कहती है!”
उसने सीरिंज की सूई बेरहमी से रोज़ी की नंगी जांघ में घुसेड़ी और पिस्टन दबा दिया।
टीवी स्क्रीन पर तमाम नज़ारा करते राजा सा'ब के छक्के छूट गए।
इतनी इंसुलिन एक साथ रोज़ी के ज़िस्म में पहुँचने से उसकी मौत निश्चित थी।
फौरन कुछ करने से शायद कुछ हो सकता। एक झटके से वो कुर्सी से उठा और गन सम्भालता बाहर को दौड़ चला। वो बगल के केबिन के बन्द दरवाज़े पर पहुँचा तो उम्मीद के मुताबिक उसे लॉक्ड़ पाया। एक भी क्षण नष्ट किए बिना उसने लॉक की जगह पर फायर किया लॉक के परखच्चे उड़ गए और दरवाज़ा ख़ुद ही भीतर को झूल गया। बगूले की तरह वो भीतर दाखिल हुआ और वैसे ही अन्दाज़ से दरवाज़े को पाँव से ठोकर मारता बैडरूम में दाखिल हुआ।
गोटी सम्पूर्ण नग्नावस्था में घुटनों के बल बैड पर रोज़ी के पहलू में बैठा हुआ था और सीरिंज तब भी उसके हाथ में थी। साक्षात मौत की तरह राजा सा'ब को भीतर दाखिल होता पाकर सबसे पहले उसे अपना तन ढंकना ही सझा। उसने बैड पर से एक चादर झपटी और नीचे उतर कर उसे अपनी कमर के गिर्द लपेटने लगा।
राजा सा'ब ने रोज़ी की दिशा में देखा तो उसकी पथराई आँखें उसे दूर से ही दिखाई दे गईं।
“तोड़ दिया!” – वो भर्राई आवाज़ से बोला – “खिलौना तोड़ दिया!”
“क्या करता?” - गोटी हाथ फैलाता, सफाई देने के अन्दाज़ से बोला – “मेरी जान लेने पर आमादा थी। क्या करता ...”
“मेरा खिलौना तोड़ दिया!” – उसकी आवाज़ और भरी गई, इतनी कि कण्ठ में घुटने लगी।
“... मारता नहीं तो मरता।”
“गोटी! हरामज़ादे! कुत्ते! इससे तो मेरे को मार देता! अब ज़िन्दा कर इसे। खिलौना साबुत कर मेरा।”
“ऐसा कहीं होता है?”
“नहीं होता?”
“नहीं।”
“तो मर।”
उसने गोटी को शूट कर दिया।
विमल होटल अमृत इन्टरकांटीनेंटल की लॉबी में था जब कि उसने राजा सा'ब को ग्लास डोर से भीतर कदम रखते देखा।
उस वक्त रात के साढ़े ग्यारह बजे थे। विमल विशाल लॉबी में ग्लास डोर्स की ओर मुँह किए एक सोफाचेयर पर बैठा था और इन्तज़ार से तंग आ चुका था जबकि राजा सा'ब को उसने भीतर दाखिल होते देखा था। उसने एक मैगज़ीन खोलकर अपने चेहरे के आगे की हुई थी और उसके ऊपर से वो सामने झाँक रहा था। उसने राजा सा'ब को लॉबी क्रास कर के बार में दाखिल होते देखा। बार पर कोई दरवाज़ा नहीं था, वो लॉबी के पृष्ठ भाग में यूँ बना हुआ था कि लॉबी का ही हिस्सा जान पड़ता था। विमल जहाँ बैठा था, बार काउन्टर और काफी सारा बार का हाल उसे वहीं से दिखाई दे रहा था।
उसने राजा सा'ब को बार के कोने के एक स्टूल पर बैठते देखा। तत्काल उसके ऑर्डर के मुताबिक उसे ड्रिंक सर्व हुआ। उस घड़ी बार के हाल में काफी टेबल्स ऑकूपाइड थीं लेकिन संयोगवश काउन्टर पर राजा सा'ब के अलावा कोई नहीं था।
कुछ अरसा विमल ने ख़ामोशी से उसकी निगाहबीनी की और यूँ आश्वस्त हुआ कि राजा सा'ब की किसी से किसी तरह की कोई इशारेबाज़ी नहीं चली थी। उस घड़ी उसकी तवज्जो का मरकज़ सिर्फ और सिर्फ उसका जाम था।
गुड!
उसने मैगज़ीन को सामने मेज़ पर फेंका और उठकर वहाँ पहुँचा जहाँ कतार में कई हाउस टेलीफोन मौजूद थे। उसने एक फोन उठाया और नौ डायल किया। तत्काल ऑपरेटर की जवाबी आवाज़ आई।
“प्लीज़ पेज राजा सा'ब।”- विमल माउथपीस में बोला – “स्टार्ट विद लॉबी बार।”
“नाम, सर?” – पूछा गया।
“यही नाम है। राजा सा'ब।”
“सर, आप होल्ड करेंगे या मैं वापिस कॉल करूँ?”
“होल्ड करूँगा।”
“फोन कान से लगाए निगाह बार पर टिकाए वह खामोश खड़ा रहा।”
कछ क्षण बाद बारमैन उसको काउन्टर के नीचे से एक फोन का रिसीवर उठाता दिखाई दिया। उसने कुछ देर फोन सना, रिसीवर काउन्टर पर रखा और लम्बे बार की अपनी तरफ से चलता कोने में पहुँचा। वो अपने सामने बार पर बैठे इकलौते कस्टमर से कुछ पूछता लगा। कस्टमर राजा सा'ब ने सहमति में सिर हिलाया तो बारमैन ने परे काउन्टर पर पड़े फोन के रिसीवर की तरफ इशारा किया।
राजा सा'ब अपने बार स्टूल पर से उतारा और लम्बे डग भरता फोन पर पहुँचा। उसने रिसीवर उठा कर कान से लगाया।
“बार मुलाकात के लिए मुनासिब जगह नहीं।”– विमल माउथपीस में बोला — “मैं ‘805’ में हूँ।”
“कौन?” – उसके कान में राजा सा'ब की सावधान आवाज़ पड़ी।
“तुम्हें मालूम है कौन?”
“मालूम तो है! फिर भी?”
“सोहल!”
“आता हूँ।”
लाइन कट गई। विमल ने भी रिसीवर वापिस फोन के हुक पर टाँग दिया और वहाँ से हट के एक पिलर की ओट में हो गया। उसकी निगाह पूर्ववत् बार की ओर उठी रही। उसने राजा सा'ब को एक ही बार में अपना गिलास खाली करते और स्टूल से उतरते देखा। बिल उसने बारमैन से रकम ज़ुबानी पूछ कर चुकाया, लम्बे डग भरता बार से बाहर निकला और लिफ्टों की ओर बढ़ा। वो ऐन उस खम्बे के
सामने से गुज़रा जिसके पीछे विमल मौजूद था लेकिन उसकी तवज्जो लिफ्ट्स के अलावा और कहीं नहीं थी।
जैसे विमल की तवज्जो तब भी बार काउन्टर के अलावा, और तभी राजा
सा'ब द्वारा खाली किए बार स्टूल के अलावा, और कहीं नहीं थी।
एक पैंतालीसेक साल का लम्बा चौड़ा व्यक्ति बार पर पहुँचा और तभी राजा सा'ब द्वारा खाली किए स्टूल पर जा बैठा।
विमल को वो पहचाना-सा लगा लेकिन इतने फासले से वो उसकी बाबत कोई पक्का फैसला न कर सका।
बारमैन उसकी, नए कस्टमर की, तरफ बढ़ा। पर लम्बा चौड़ा व्यक्ति पहले ही यूँ बार से उठ खड़ा हुआ जैसा एकाएक कुछ याद आ गया हो। तत्काल वो बार को लाँघता लॉबी की ओर बढ़ा। उसके बार के दाखिले के रास्ते से परे हटते ही विमल पिलर की ओट से निकला और बार में दाखिल हुआ। वो राजा सा'ब द्वारा खाली किए स्टूल पर पहुँचा तो उसे सामने काउन्टर पर भारी ग्लास ऐश ट्रे के नीचे दबा एक पेपर नैपकिन दिखाई दिया जिसके ऐश ट्रे से बाहर झाँकते किनारे पर बाल पैन से महीन अक्षरों में 805 लिखा था।
यानी राजा सा'ब वहाँ न सिर्फ अकेला नहीं था. वो अपनी होशियारी से किसी को खुफ़िया सन्देशा सरकाने में भी कामयाब हो गया था।
तब विमल को ये भी याद आ गया कि वो लम्बा-चौड़ा आदमी क्यों उसे पहचाना-सा लग रहा था।
वो कान्दीवली वाले बंगले के गार्ड्स में से वो गार्ड था, इतवार को विमल और रोज़ी की मौजूदगी में जो असली योगा ट्रेनर को लेकर वहाँ पहुँचा था और जिसको रोज़ी ने शायद घटके या नटके कह कर पुकारा था।
विमल लॉबी में वापिस लौटा। उसने लम्बे-चौड़े आदमी को – बंगले के गार्ड को – अकेले एक लिफ्ट में दाखिल होते देखा। इंडीकेटर के मुताबिक लिफ्ट सीधे आठवीं मंजिल पर जाकर रुकी।
राजा सा'ब ज़रूर पहले ही ऊपर पहुँचा हुआ था। विमल वहीं लिफ्ट के सामने ठिठका खड़ा रहा।
तत्काल ही वो लिफ्ट नीचे लौटने लगी। विमल धीरज से इन्तज़ार करता रहा।
उसके सामने लिफ्ट का दरवाज़ा खुला तो उसे गुस्साया हुआ राजा सा'ब दिखाई दिया। वो लिफ्ट से बाहर निकलने लगा तो विमल ने आगे बढ़ कर उसे वापिस लिफ्ट में धकेल दिया, खुद भी भीतर दाखिल हुआ, लिफ्ट का एक कन्ट्रोल बटन दबाया तो तत्काल लिफ्ट का दरवाज़ा बन्द होने लगा।
“ये क्या बदतमीज़ी है?” – राजा सा'ब भड़का। विमल मुस्कुराया।
“ओह! ओह!”
“करार पर खरे उतरना न सीखे!”– विमल ने गिला किया— “अकेले न आए!”
“मेरे साथ कोई दिखाई दिया तुम्हें?”
“ये ढिठाईभरा जवाब है। साथ दिखाई न दिया तो ये मतलब नहीं कि साथ था भी नहीं!”
“और क्या मतलब होगा भला?”
“छोड़ो बो बातें। पाखण्ड से हकीकत पर परदा नहीं पड़ता।”
“हम कहाँ जा रहे हैं?”
विमल ने जवाब न दिया। तभी लिफ्ट पाँचवीं मंजिल पर रुकी और उसका दरवाज़ा खुला।
“आउट!” – विमल बोला। हिचकिचाते हुए राजा सा'ब ने लिफ्ट से बाहर कदम रखा। बाहर उसके एक कदम पीछे विमल था जब कि लिफ्ट का दरवाज़ा बन्द हो गया।
“जोड़ीदार कौन था?” — विमल ने पूछा।
“कोई जोड़ीदार नहीं था।” – वो भुनभुनाया।
“बंगले का गार्ड था। सूरत पहचानी साफ। नाम बोलो।”
“अरे, कोई हो तो नाम बोलूँ!”
“तुम भूल रहे हो कि मैं तुम्हारी दरख्वास्त पर यहाँ हूँ, तुम्हीं को एक आख़िरी बार मेरे से मिलना ज़रूरी लग रहा था, तुम्हीं ने मुझे तलाश करवाया था और यहाँ मेरे साथ मीटिंग फिक्स की थी। अगर तुम्हारा यही रवैया रहना है तो समझो मीटिंग कैंसल। गुड बाई कुबूल करो, अपनी राह लगो, मेरे को भी लगने दो। तुम्हें शायद हो लेकिन नाहक रात खोटी करने का मेरे को कोई शौक नहीं।”
“नटके।”
“क्या?”
“हरमेश नटके। जिसके बारे में पूछ रहे थे।”
“बंगले का गार्ड?”
“गार्ड्स का इंचार्ज।”
“डिसमिस करो।”
“कर दूँगा।”
“अभी।”
अप्रसन्न भाव से उसने मोबाइल निकाला और एक प्री-प्रोग्राम्ड नम्बर पंच किया।
“नटके!” – जवाब मिला तो वो बोला – “निकल ले। अब तेरी इधर ज़रूरत नहीं है। ...हाँ, मैं अकेला। ये टेम वान्दा नहीं। तू निकल।”
उसने कॉल डिसक्नैक्ट कर के फोन वापिस जेब में रखा।
“राज़ी!” — फिर बोला।
“हाँ।” – विमल बोला – “चलो।”
“किधर?”
“दाएँ। आगे बोलूँगा।”
दोनों कई कदम गलियारे में चले तो विमल एक दरवाज़े पर ठिठका जिस पर ‘508’ दर्ज था। उसने की-कार्ड से दरवाज़ा खोला और आगे कदम बढ़ाया।
“थाम्बा!” – राजा सा'ब एकाएक बोला। विमल ठिठका, उसने घूम कर राजा सा'ब पर सवालिया निगाह डाली।
“पहले मेरे को जाने दो।”
राजा सा'ब बोला। “ओके! तुम पहले, मैं तुम्हारे पीछे। नो?”
“नो। दो मिनट इधरीच वेट करने का।”
“वजह?”
“मालूम पड़ेगी।”
“ओके।”
विमल को चौखट पर ठिठका छोड़ कर राजा सा'ब भीतर दाखिल हुआ। उसने पाया कि वो एक सुइट था जिसके हर कोने-खुदरे में उसने झाँका।
कहीं कोई नहीं था। न कोई आदमजात, न किसी तरह का स्नूपिंग बग, न कोई खुफ़िया सीसीटीवी कैमरा।
वो ड्राइंगरूम की तरह सुसज्जित सामने कमरे में पहुँचा। उसने चौखट पर ठिठके खड़े विमल को इशारा किया।
विमल ने अपने पीछे दरवाज़ा बन्द किया और उसके करीब पहुँचा।
“हो गई तसल्ली?” — फिर तनिक व्यंग्यपूर्ण भाव से बोला।
“हाँ।”
“धोखा, फरेब मेरा कारोबार नहीं है।”
“क्या पता लगता है!” - वो उदासीन भाव से बोला।
“मैं छुपके बार नहीं करता।”
“अरे, बोला न, क्या पता लगता है! क्या पता किसी मजबूरी में कब कैसा रुख अख्तियार करना पड़ जाए। पुख़्ता उसूल भी हमेशा पुख़्ता नहीं रहते।”
“बड़ी सयानी बात कही!”
“मेरे को ड्रिंक माँगता है।”
“क्यों? क्योंकि ड्रिंक बिना डायलॉग नहीं होता!”
“क्योंकि टेंशन में हैं।”
“उधर वाल कैबिनेट के नीचे मिनी फ्रिज है। देखो, शायद कोई तुम्हारी पसन्द का ड्रिंक उसमें हो, नहीं तो मैं रूम सर्विस को ऑर्डर करता हूँ।”
“ज़रूरत नहीं। कुछ भी चलेगा।”
उसने मिनी फ्रिज में से जानीवॉकर ब्लैक लेबल की दो मिनी बॉटल्स बरामद की।
“डबल पैग लगाना है?” – विमल बोला।
“नहीं। एक तुम्हारे लिए है।”
“मेरे को टेंशन नहीं है।”
“ओह!”
उसने दूसरी मिनी बॉटल वापिस फ्रिज में न रखी, टेबल टॉप पर रखी, फिर अपने लिए जाम तैयार किया। चियर्स के अन्दाज़ से उसने अपना गिलास ऊँचा किया, फिर एक ही बार में आधा गिलास खाली कर दिया।
इत्मीनान से उसने एक सिगरेट सलगाया।
“एयरपोर्ट के” – उसने डायलॉग की शुरूआत करने के अन्दाज़ से पूछा – “कल के वाकये की खबर लगी?’
“कौन-सा वाकया?” – जानबूझ कर अंजान बनता विमल बोला।
“भरी दोपहरी का, अराइवल’ के बाहर का वाकया! जिसमें दिल्ली से आए हकीम के मुगालते में दिवाकर झाम जान से गया!”
“जो गैंग ऑफ फ़ोर में से एक था?”
“हाँ।”
“किसने मारा?”
“मालूम नहीं। स्नाइपर की गोली से मरा। स्नाइपर कौन था, पुलिस अभी तक मालूम नहीं कर सकी है।”
“झाम हकीम बना एयरपोर्ट पर क्या कर रहा था?”
“भई, वही जानता था।”
“असली हकीम कहाँ गया?”
“पता नहीं।”
“आया था?”
“पता लगा है कि उसकी फ्लाइट की आमद के वक्त उसको पेज तो किया जा रहा था: आया था या नहीं, पता नहीं।”
“बहरहाल कम्पीटीशन ख़त्म करने की मेरी राय पर तुमने अमल किया! एक नग यूँ घटाया!”
“मैंने?”
“इंकार कर के दिखाओ!”
उसने ऐसी कोई कोशिश न की, ख़ामोशी से व्हिस्की का एक घुट भरा।
“हमारे भेदियों की लाई” – विमल बोला – “खुफ़िया ख़बर है कि गैंग ऑफ फ़ोर का एक और चार्टर्ड मेम्बर नेविल मेंडिस भी इतवार से गायब है।”
“गोवा गया है।”
“कहीं का भी नाम ले दो – चाहे जहन्नुम का – क्या फर्क पड़ता है!”
राजा सा'ब फिर ख़ामोश हो गया।
“मेरे को लगता है माइकल गोटी का भी ‘इन्तज़ाम कर चुके हो। यानी कम्पी टीशन पूरी तौर से ख़त्म है और इसी वजह से तुम्हें इस मीटिंग की, मेरे साथ इस एक आख़िरी मीटिंग की, ज़रूरत महसूस हुई है।”
“फर्ज करो ऐसा ही है। तो अब ... अब मेरा काम करना कुबूल करोगे?”
“लिहाज़ा नम्बर वन बनने की सनक अभी बरकरार है?”
“कम्पीटीशन ख़त्म हो गया होने की वजह से बढ़ गई है।”
“ये कह के कुबूल कर रहे हो कि तीनों पार्टनर ऑफ हैं!”
जवाब देने की जगह उसने सिगरेट का एक कश लगाया।
“अगर इतने कम वक्त में ये करतब कर भी चुके हो तो मैं यही कहूँगा कि मैंने तुम्हें, तुम्हारी सलाहियात को, तुम्हारे खुराफाती दिमाग को बहुत कम करके आँका। बहुत बड़े छुपे रुस्तम निकले राजू-राजा-राजा सा'ब!”
उसने व्हिस्की का एक घुट भरा।
“हैरानी है, नम्बर वन को ऑफ करने के मामले में फिर भी मेरी मदद के मोहताज हो!”
“मोहताज नहीं हूँ” – वो नाख़ुश लहजे से बोला – “मजबूर हूँ। एक बड़े समाजी मुलाहज़े से बंधा हूँ जिसकी गिरह मैं नहीं खोल सकता।”
“कई बार कह चुके हो लेकिन वजह नहीं बताते हो!”
“अब बताने को तैयार हूँ। तुम्हारा भरोसा कर के अब बताने को तैयार हूँ।”
“बिना कोई शर्त लगाए?”
“मैंने कब कोई शर्त लगाई! शर्त – दो शर्ते – तो तुम्हीं ने लगाई थीं!”
“जो तुम्हें कुबूल नहीं हुई थीं।”
“अब हालात जुदा हैं! अब तुम्हारा ऐतबार कर के मैं वजह बताने को तैयार हूँ कि क्यों मैं ख़ुद नम्बर वन को ऑफ नहीं कर सकता!”
“अच्छा! बड़ा फैसला हुआ ये तो?”
“मैं गुनाह से नहीं डरता, पाप से डरता हूँ।”
“क्या कहने! जैसे गुनाह करना पाप नहीं होता। जैसे पाप करना गुनाह नहीं होता।”
“बाल की खाल न निकालो। मैं अपना दिल उघाड़ के रख रहा हूँ तुम्हारे सामने, कोई कद्र करो इस बात की!”
“ओह, सॉरी। तो अब तुम बताने को तैयार हो कि क्यों तुम खुद नम्बर वन को-शाह को – ऑफ नहीं कर सकते?”
“इस उम्मीद के साथ बताने को तैयार हूँ कि एक आख़िरी बाज़ी खेलने में तुम मेरी मदद करोगे।”
“वो आख़िरी बाज़ी सोहल के खिलाफ नहीं होगी, शाह की जगह सोहल को ऑफ करने की साजिश नहीं होगी?”
“हरगिज़ नहीं होगी। मैं चाहूँ तो तुम्हें अभी ऑफ कर सकता हूँ....”
“ख्वाब देख रहे हो।”
उसने अपना व्हिस्की का गिलास खाली किया, सिगरेट करीबी ऐश ट्रे में झोंका। फिर उसके हाथ में गन प्रकट हुई। विमल सकपकाया।
“क्या वान्दा है?” – वो बोला। “ऐसे तो कोई नहीं!”
“कैसे भी कोई नहीं। मेरी ये मर्जी होती तो तुम्हारे इस कमरे में कदम रखते ही तुम्हें शूट कर देता।”
“नहीं किया क्योंकि तुम्हें मेरी ज़रूरत है! मैंने तुम्हारे लिए शाह को ऑफ करना है। नहीं?”
“हाँ।” – उसने गन वापिस जेब में रख ली।
“बदले में तुम क्या करोगे, याद है न!”
“हाँ, बाखूबी याद है।” – उसने दूसरी मिनी बॉटल भी खोल ली और अपने खाली गिलास में उड़ेल ली। साथ ही नया सिगरेट भी सुलगा लिया। – मैं गैंग का नम्बर वन बना तो तुम्हारी मुखालफत बन्द। कूपर कम्पाउन्ड की तरफ टेढ़ी निगाह फिर कभी नहीं। तुका का हाइजैक्ड ट्रस्ट वापिस। और भी जो तुम बोलो।”
“अब तुम बोलो। वज़ीर खिलाफ हो जाए तो बादशाह को शह और मात लाज़िमी होती है। तुम वज़ीर हो। मैं ये मान के चलता हूँ कि अब इकलौते वजीर हो – गैंग ऑफ फ़ोर का वजूद ख़त्म है – फिर क्या प्रॉब्लम है! क्यों तुम शाह को ऑफ नहीं कर सकते?”
“गौर से, कान खोल के सुनो वजह!” – वो निर्णायक भाव से बोला – “शाह मेरा पिता है।”
खामोशी छा गई। उस दौरान उसने अपने नए जाम का एक घुट भरा, सिगरेट का कश लगाया।
“आई सी।” – आख़िर विमल बोला – “तो इसलिए कह रहे थे, गुनाह कर सकते हो, पाप नहीं कर सकते! शाह को ऑफ़ कर सकते हो, पिता के खिलाफ ऐसा कोई कदम नहीं उठा सकते!”
“हाँ।”
“लिहाज़ा भाईगिरी के धंधे में होने के बावजूद तुम्हारे भीतर कहीं इंसानियत का कोई माद्दा अभी भी जिन्दा है!”
वो ख़ामोश रहा।
“पिता को ऑफ कर नहीं सकते, करवा सकते हो!”
“जो काम होता आँख न देखे, वो दिल को महसूस नहीं होता।”
“सही कहा। खासतौर से तब जबकि दिल किसी बेवफा का हो, बेहया का हो, बेगैरत का हो, औरंगज़ेब का हो!”
उसने आहत भाव से विमल की तरफ देखा।
“औरंगज़ेब ने बाप को सिर्फ कैद किया था, ताउम्र आगरे के किले में कैदी बना के रखा था, उसको सज़ा-ए-मौत का हुक्म नहीं सुना दिया था! तुम तो उससे भी दस कदम आगे हो! गुनाह और पाप में फर्क करती तकरीर देते हो। अपने नापाक इरादे को जायज़ करार देने की हामी मेरे से भरवाना चाहते हो!”
“बोम नहीं मारने का।” – वो भड़कने को हआ – “बढ़-बढ़ के नहीं बोलने का। मैं साला इधर नसीहत हासिल करने के वास्ते नहीं है। मैं साला इधर सर्मन के वास्ते नहीं है। मेरे को सर्मन माँगता होयेगा तो साला चर्च में जा के बैठेगा। उपदेश माँगता होयेगा तो साला कथा-कीर्तन में जा के बैठेगा। क्या!”
“भाव खा रहे हो!”
“सही पहचाना। ऐसीच है।”
“फिर तो, भई, मैं सॉरी बोलता हूँ। अब ... बोले तो ... मेहमान को तो नाराज़ नहीं कर सकता न मैं!”
वो ख़ामोश रहा। अपने गुस्से को काबू में करने की कोशिश में उसने नए जाम में पनाह पाई।
“शाह तक पहुँच बनाने की” – विमल बोला – “तुम कोई तरकीब भी तो बताने वाले थे?”
“हाँ।” – उसका लहजा बदला – “बरोबर।”
“गुड। मैं सुन रहा हूँ।”
“उस तरकीब की बुनियाद ये है कि शाह को कोई गम्भीर बीमारी है जिसकी वो किसी को भनक नहीं लगने देता। भनक न लगे, इसकी एहतियात के तौर पर वो किसी ऐसी नामालूम जगह शिफ्ट कर गया हुआ है जिसकी कि मेरे को भी ख़बर नहीं। विलायती इलाज करने वाले बड़े से बड़े डॉक्टरों से वो नाउम्मीद हो चुका है और अब दिल्ली के एक हकीम से उम्मीद लगाए है कि ...”
तभी कॉलबैल बजी।
राजा सा'ब ख़ामोश हो गया। उसके चेहरे पर उत्कण्ठा के भाव उत्पन्न हुए। उसकी निगाह सवाली बनी।
विमल ने अनभिज्ञता से कन्धे उचकाए। कॉलबैल फिर बजी।
“कौन?” – विमल उच्च स्वर में बोला।
“पुलिस! प्लीज़ ओपन दि डोर!”
विमल ने राजा सा'ब को इशारा किया। वो तत्काल उठकर पीछे बैडरूम में चला गया, उसने बीच का दरवाज़ा बन्द कर लिया।
विमल ने आगे बढ़ कर सुइट का प्रवेशद्वार खोला। चौखट पर एक वर्दीधारी इंस्पेक्टर खड़ा था।
“यस?” — विमल सहज भाव से बोला।
जवाब देने से पहले छ: फुटे इंस्पेक्टर ने विमल के कन्धे पर से भीतर निगाह दौड़ाई।
एक सोफे के बाजू की साइड टेबल पर व्हिस्की का आधा भरा एक ... एक गिलास।
ऐश ट्रे में एक सुलगती सिगरेट! “एनजाइंग युअरसैल्फ़, सर?” – वो बोला।
“बीईंग ए लोनर”– विमल ने लोनर’ शब्द पर विशेष जोर दिया –“दैट्स ऑल आयम एनजाईंग।” – वो एक क्षण ठिठका, फिर बोला – “आप की तारीफ?”
“मैं इंस्पेक्टर पाटिल।” – वो बोला – “जुहू पुलिस स्टेशन से।”
“यहाँ कैसे तशरीफ़ लाए?”
“एक खुफ़िया मिशन पर हूँ। फाइव स्टार डीलक्स होटल का मामला है इसलिए लावलश्कर के साथ नहीं आ सकता था।”
“आई सी।”
“हमें एल्फ्रेड क्वीन नाम के एक शख्स की तलाश है।”
“मैं हूँ। एल्फ्रेड क्वीन। फरमाइए!”
इंस्पेक्टर ने ग़ौर से विमल की सूरत देखी, फिर वर्दी की जेब से एक तहशुदा फूलस्केप कागज निकालकर खोला जिसको पिछली तरफ से देखने पर भी विमल को अन्दाज़ा हुआ कि कम्प्यूटर की मदद से उस पर एक क्लोज़ अप स्कैच उकेरा गया था। बड़े गौर से उसने उस स्कैच का मिलान विमल की सूरत से किया।
“मिलता होगा हूबहू?” – विमल बोला।
“मज़ाक न कीजिए।” – इंस्पेक्टर रूखे स्वर में बोला – “आप को मालूम है नहीं मिलता। मिलता होता तो अभी तक मुखालफ़त में बोल-बोल कर आसमान सिर पर उठा रहे होते।”
“सॉरी!”
“भीतर चलिए, आप से चन्द सवाल पूछने होंगे।”
विमल एक तरफ हटा। इंस्पेक्टर भीतर दाखिल हुआ तो उसने उसके पीछे दरवाज़ा बन्द किया और इंस्पेक्टर से पहले आगे बढ़ कर सोफे पर राजा सा'ब द्वारा खाली किए स्थान पर बैठ गया ताकि साइड टेबल पर मौजूद तफरीह का सामान उसका जान पड़ता।
इंस्पेक्टर उसके करीब एक सोफाचेयर पर बैठा और साइड टेबल की ओर निगाह दौड़ाता बोला – “यू कैन कैरी ऑन फ्राम वेयर यू लैफ्ट।”
विमल ने सहमति में सिर हिलाया। उसने सिगरेट को ऐश ट्रे में झोंका और व्हिस्की का गिलास खाली कर के वापिस मेज़ पर रखा।
“ओके!”– वो होंठों पर उंगलियाँ फिराता बोला – “पूछिए, क्या पूछना है?”
“आप फॉरेनर हैं?” - इंस्पेक्टर बोला। “ये भी आपकी तफ्तीश से ताल्लुक रखता सवाल है?”
“नहीं, पर्सनल सवाल है। आप जवाब नहीं देंगे तो मैं ज़िद नहीं करूँगा।”
“देसी मानस हूँ। कनवर्टिड क्रिश्चियन!”
“इसलिए नाम फिरंगियों जैसा?”
“हाँ। आप किसी खुफ़िया मिशन के बारे में कुछ कह रहे थे?”
“हाँ। वो क्या है कि यहाँ से थोड़ी ही दूर – मुश्किल से दो सौ गज़ दूर – बीच पर टूरिस्ट कॉटेज हैं ... आप को ख़बर है?”
“भई, देखे तो हैं! सुना है टूरिस्ट्स में बहुत पॉपुलर हैं!”
“लोकल्स में भी। मिस्टर क्वीन नाम के एक शख्स ने आज शाम वैसे दो कॉटेज – नम्बर एक और दो – इकट्ठे बुक कराए थे। अभी कोई डेढ़ घन्टा पहले एक नम्बर कॉटेज में से दो लाशें बरामद हुईं जिनमें से एक मर्द की थी एक औरत की थी। मर्द की लाश को गोली लगी थी और वो मर्डर का क्लियर केस था, औरत के जिस्म पर किसी तरह की चोट या जख़्म का कोई निशान नहीं था इसलिए फिलहाल नहीं मालूम कि उसकी मौत कैसे हुई। कल पोस्टमार्टम होगा तो असलियत की ख़बर लगेगी।”
“वारदात का पता कैसे चला?”
“गोली चलने की आवाज़ से, जो उस कम्पलैक्स के केयरटेकर ने सुनी थी। कॉटेज वन के पहलू में ही केयरटेकर का ऑफिस-कम-रेजीडेंस है। गोली की आवाज़ सुन कर वो बाहर निकल आया था। तब उसने एक उम्रदराज़ कद्दावर शख्स को कॉटेज से बाहर निकलते देखा था तो उसे ये भी दिखाई दिया था कि उसके हाथ में तब भी धुंआ उगलती गन थी। वो इस दहशत के हवाले फौरन कॉटेज के दरवाज़े की ओट में हो गया था कि देख लिया गया जानकर कहीं वो शख्स उसे भी गोली न मार दे।”
“ओह!”
“होटल के सामने और कॉटेजिज़ के पिछवाड़े के बीच में एक सड़क है, बकौल उसके, तभी कोई बड़ी गाड़ी उस सड़क पर से गुजरी थी जिसकी पॉवरफुल हैडलाइट्स की रौशनी कुछ लमहों के लिए सीधे गन वाले के चेहरे पर पड़ी थी जिसकी वजह से वो अक्स केयरटेकर के ज़ेहन पर मजबूती से दर्ज हो गया था। बाद में वो पुलिस के कम्प्यूटर आर्टिस्ट के साथ बैठा था तो उस गन वाले की सूरत का, जो कि यकीनन कातिल था, ये अक्स” – इंस्पेक्टर ने फिर कम्प्यूटर प्रिंट उसके सामने किया – “सामने आया था।”
“नाम कैसे मालूम पड़ा?”
“एल्फ्रेड क्वीन?”
“हाँ।”
“एल्फ्रेड क्वीन वो शख्स था जिसके नाम दो कॉटेज – नम्बर एक और दो – बुक थे। नम्बर दो का आकूपेंट वो ख़ुद था और नम्बर एक उसके मेहमानों के लिए था जो वहाँ बाद में पहुँचने वाले थे।”
“वो औरत और मर्द जो भीतर मरे पाए गए थे!”
“हाँ।”
“मालूम पड़ा कौन थे?”
“मर्द का मालूम पड़ा। उसके वॉलेट में उसका ड्राइविंग लाइसेंस था जिसके मुताबिक उसका नाम माइकल गोटी था। औरत के बारे में कुछ मालूम न पड़ सका क्योंकि उसके पास शिनाख्त का कोई ज़रिया नहीं था।”
“मोबाइल भी नहीं जो हर किसी के पास होता है?”
“मेरे ख़याल से वो मोबाइल, या वैसा ही कोई दूसरा शिनाख़्ती निशान, कातिल साथ ले गया।”
“ताकि शिनाख्त न हो सके।”
“हाँ। लेकिन वो इस बात से नावाकिफ़ जान पड़ता था कि शिनाख्त वक्ती तौर पर ही टल सकती थी। जब हम मर्द की बाबत – नाम माइकल गोटी – जान जाएँगे तो ये नहीं हो सकता कि उसकी आज शाम की कम्पैनियन – इन्टीमेट कम्पैनियन के बारे में कुछ न जान पाएँ।”
“इंटीमेट कम्पैनियन बोला!”
“मोस्ट इंटीमेट! दोनों सर्वदा नग्नावस्था में थे।”
“कातिल को उन हालात में उनकी वहाँ मौजूदगी की ख़बर कैसे लगी?”
“वहाँ सीसीटीवी मॉनिटरिंग का, स्नूपिंग का पहले से ऐसा इन्तज़ाम किया गया था कि कॉटेज दो मैं मौजूद कातिल को कॉटेज एक में होती हर हलचल, हर हरकत की ख़बर लगती।”
“लिहाज़ा कातिल ने अपने केबिन में सैट मॉनीटर के ज़रिए उन दोनों को हमबिस्तर देखा तो भड़क कर कॉटेज एक में पहुँचा और मर्द को शूट कर दिया।”
“हाँ।”
“औरत शर्म से मर गई?”
“या सदमें से। शर्म से आजकल कौन मरता है! लेकिन सदमा जान ले लेता है।”
“आप यहाँ कैसे पहुँचे?”
“केयरटेकर ने ही कातिल की खुफ़िया निगाहबीनी की थी, उसने कातिल को सड़क पार करके होटल की तरफ जाते देखा था।”
“होटल में दाखिल होते भी?”
“नहीं, दाखिल होते नहीं देखा था। ये नतीजा हमारा था कि वो सड़क से पार इस होटल में ही गया होगा।”
“फिर?”
“फिर हमने होटल रजिस्ट्रेशन से उन लोगों का पता किया जिन्होंने उस शाम ही चैक इन किया था। ऐसे चैक इन करने वाले इस शाम कई थे लेकिन इत्तफ़ाक कहिए कि आप के अलावा अकेला चैक इन करने वाला कोई नहीं था और वो पाँचवीं मंजिल के इस कमरे का – 508 का – आकूपेंट था।”
“रिसैप्शन से आकूपेंट का नाम न मालूम किया?”
“हमें जल्दी थी, सब कुछ आनन-फानन हो रहा था इसलिए ...”
“सीधे यहाँ पहुँच गए!”
“हाँ। लेकिन अब नाम मालूम है हमें। एल्फ्रेड क्वीन। जो कि आप हैं! इस रूम के आकूपेंट!”
“राइट।”
“लेकिन हमारे कम्प्यूटर स्कैच से आपकी सूरत तो कतई नहीं मिलती!”
“नाम के साथ हए इत्तफ़ाक की वजह से। एल्फ्रेड क्वीन कॉमन नाम है, किन्हीं दो जनों का होना कोई बड़ी बात नहीं। जमा, आपके स्कैच वाला एल्फ्रेड क्वीन पहले से, आज शाम से बहुत पहले से होटल में ठहरा हो सकता है। और जमा, हो सकता है वो होटल में ठहरा हो ही नहीं, यहाँ किसी बार में, किसी रेस्टोरेंट में, किसी क्लब में मौजूद हो और वहाँ की सर्विसिज़ अवेल कर रहा हो!”
“अच्छा !”
“इस घड़ी भी।”
“हम्म! हो तो सकता है ऐसा!”
“फिर भी यहीं हो!”
“क्या?”
“जब मानते हो ऐसा हो सकता है तो यहाँ क्यों वक्त ज़ाया कर रहे हो? ऐसे तो वो निकल जाएगा!”
इंस्पेक्टर उछल कर खड़ा हुआ।
“मैं आप से फिर मिलूँगा।”
निकास द्वार की ओर बढ़ता वो बोला – “यही रहिएगा।”
“ओके।”
इंस्पेक्टर ने रुखसत पाई। विमल ने उसके पीछे दरवाज़ा बन्द किया और वापिस ड्राइंगरूम के मिडल की ओर बढ़ता कदरन उच्च स्वर में बोला – “बाहर आ जाओ।”
बीच का दरवाज़ा खुला। राजा सा'ब ने बाहर कदम रखा। करीब आकर प्रशंसात्मक भाव से उसने विमल को निहारा।
“क्या देखते हो?” — विमल के माथे पर बल पड़े।
“तुम्हें ही देखता हूँ।” – राजा सा'ब बोला – “कमाल के हो, भई, तुम! क्या बढ़िया हैंडल किया पुलिस वाले को! शुक्रिया!”
“अरे, शुक्रिया तो हुआ, अभी ये बोलो कि वारदात के बाद जब माशूक के शिनाख्ती निशान – मोबाइल, पर्स वगैरह – काबू करना सूझा तो यही तवज्जो गोटी की तरफ क्यों न दी?”
उसने तत्काल उत्तर न दिया, उसकी सूरत पर ग़म की घटाएँ घुमड़ने लगीं। कमाल! इतना सख्त जान मवाली इस कदर जज्बाती हो रहा था! “मगज हिला हुआ था उस घड़ी।” – वो दयनीय भाव से बोला – “मैं इस ख़याल से ही पगलाया हुआ था कि रोज़ी अब इस दुनिया में नहीं थी। तब मेरे को यही सझा कि रोज़ी की शिनाख्त न हो, इस बाबत मेरे को कछ करना चाहिए था जो कि मैंने किया – रोज़ी की उतारी पड़ी ड्रैस पर ही उसका पर्स और मोबाइल पड़ा था जो कि मैंने काबू में कर लिया – इस सिलसिले में गोटी का तो तब मेरे को ख़याल भी न आया! मेरी तवज्जो का इकलौता मरकज़ तो उस घड़ी रोज़ी थी जो मेरे सामने मरी पड़ी थी।”
वो और ग़मगीन दिखाई देने लगा।
“वो इंस्पेक्टर ... सुना था क्या कह रहा था?”
“क-क्या ... क्या कह रहा था?”
“ये कि जब पुलिस मर्द की बाबत जान जाएगी – जो कि मौजूदा हालात में जान ही जाएगी तो ये नहीं हो सकता कि कॉटेज में उसकी शाम की कम्पैनियन की बाबत पुलिस कुछ न जान पाए।”
“वो मेरी गलती थी। पर क्या करता! आपे में नहीं था।”
“जब कि इतने बड़े मवाली हो!”
“अरे, क्यों कलपा रहे हो? तुम्हें मालूम है किस वजह से आपे में नहीं था!”
“पसन्दीदा खिलौना टूट गया था?”
“हाँ।”
“कॉटेज बुकिंग किसके नाम थी?”
उसने जवाब न दिया। “खामोशी बताती है कि तुम्हारे नाम थी!”
“मजबूरी थी।” – वो पशेमान लहजे से बोला।
“क्या? क्या मजबूरी थी? साफ बोलो!”
“रोज़ी का दखल था इसलिए मैं सारे सिलसिले को टॉप सीक्रेट रखना चाहता था। इस काम के लिए मैं अपने किसी करीबी मातहत को हुक्म नहीं दे सकता था। बुकिंग के लिए प्रूफ़ ऑफ आइडेंटिटी दरकार था इसलिए ....”
“इसलिए बुकिंग का ओरीजिनेटर मिस्टर एल्फ्रेड क्वीन!”
“हाँ।”
“तुम्हारे कई नाम हैं। ये तो असली है न?”
उसका सिर इंकार में हिला।
“तौबा!”
“मेरा असली नाम राजन राज़दान है लेकिन कोई इक्का-दुक्का ही है जिसको इस नाम की खबर है।”
“वर्किंग नेम एल्फ्रेड क्वीन!”
“हाँ।”
“जब ये नाम फर्जी है तो प्रूफ़ ऑफ आइडेन्टिी कैसे हासिल किया?”
“नादान हो। पाँच सौ रुपए में असली आधार बन जाता है। हज़ार रुपए में असली जैसा नकली ड्राइविंग लाइसेंस बन जाता है। दस हज़ार रुपए में ...”
“बस, बस, काफी है। तुम्हारा असली, नकली नाम कोई भी हो, शख़्सियत एक ही रहनी है और देर सवेर ये बात उजागर हो के रहनी है कि दोनों मरने वाले तुम्हारे करीबी थे। नहीं?”
“क्या कहना चाहते हो?”
“पुलिस इंक्वायरी की आंच तुम तक पहुँच के रहेगी। क्या करोगे?”
“पता नहीं क्या करूँगा!” – वो झुंझलाया – “जब तक नौबत आएगी, तब तक कुछ सोच लूँगा।”
“कुछ न सूझा तो गुलदस्ता तो है ही, भले ही साइज़ में कितना बड़ा पेश करना पड़े...”
“छोड़ो बो किस्सा! वो तुम्हारा महकमा नहीं। ये बोलो, मेरा यहाँ रहना ठीक होगा?”
“इंस्पेक्टर लौट के आने को तो बोला, लेकिन वक्त लगेगा। उसे नीचे स्कैच वाले मिस्टर क्वीन की तलाश में काफी टाइम लगेगा।”
“फिर तो मैं अपनी बात मुकम्मल कर सकता हूँ।”
“करो।”
“इंस्पेक्टर के दखलअन्दाज़ होने से पहले मैं उस तरकीब का ज़िक्र कर रहा था जिसका धुरा दिल्ली से आने वाला हकीम अकमल खान है जो अब कल ...”
तभी उसका मोबाइल बजा।
एकाएक आए विघ्न से नाखुश उसने जेब से मोबाइल निकाल कर कॉल रिसीव की।
विमल ने देखा, तत्काल उसके चेहरे के भाव बदले।
राजा सा'ब ने कुछ क्षण और फोन सुना, फिर उसे जेब के हवाले किया।
“क्या हुआ?” – विमल उत्सुक भाव से बोला – “लगता है कोई बुरी ख़बर थी!”
“हाँ।”– वो धीरे से बोला – “शाह का इन्तकाल हो गया।”
“ओह! अभी?”
“दो घन्टे हो गए। लेकिन भेदिए को अभी ख़बर लगी।”
“ओह! मुझे अफसोस है कि तुम्हारे सिर से तुम्हारे पिता का साया उठ गया।”
“वो तो होना ही था। मैं इस ख़बर के लिए एक अरसे से तैयार था। फिर भी एकाएक मिली तो .. . झटका-सा लगा।”
“बहरहाल अब तुम बिना कोशिश नम्बर वन?”
“अब ... बोले तो ... है तो ऐसीच!”
“अब शाह को ऑफ करने के लिए मेरी मदद की कोई ज़रूरत नहीं!”
“अब तेरी भी कोई ज़रूरत नहीं।”
“क्या बोला?”
राजा सा'ब के हाथ में गन फिर प्रकट हुई।
“किसी को यहाँ मेरी आमद की खबर नहीं। एक गोली और मैं यहाँ से बाहर। ईजी!”
“इंस्पेक्टर पाटिल को भूल गए जो तुम्हारा – कातिल का – कम्प्यूटर स्कैच लिए फिर रहा है?”
“मेरे शाह की जगह लेते ही मेरी सलाहियात बेपनाह होंगी। फिर देखना, न स्कैच होगा, न केयरटेकर की सूरत में मेरे खिलाफ गवाह होगा।”
“बड़े यकीन के साथ कह रहे हो?”
“क्योंकि जानता हूँ लोकल पुलिस ऐसी ही बिकाऊ है।”
“ओके। नई बादशाही तुम्हें मुबारक। अब बोलो, मेरे से एकाएक तू-तकार की जुबान क्यों बोलने लगे हो? और मेरे को गन क्यों दिखा रहे हो? अगर बेचना चाहते हो तो सॉरी, मेरे को नहीं माँगता। बड़ी इनवेस्टमेंट है, नहीं कर सकता फिलहाल।”
“थोबड़ा बन्द कर। और मरने के लिए तैयार हो जा।”
“भरने के लिए मैं हमेशा तैयार होता हूँ।”
“मुम्बई में लोग तेरे को काल पर फतह पाया मानस बोलते हैं। साले बोम मारते हैं। अभी तू – सोहल – मेरे सामने मरा पड़ा होगा।”
“ख्वाब देखने का तुम्हें शौक है, देखो खुशी से। लेकिन ख़्वाब ख़्वाब ही होते हैं, हकीकत में नहीं बदल जाते।”
“अभी बदला न हकीकत में मेरा बड़ा ख़्वाब जबकि मेरे को शाह की मौत की ख़बर मिली! मैं शाह बन गया। नम्बर वन बन गया।”
“एक ख़ुशफहम मवाली ने कुदरत के खेल को अपना खेल समझ लिया। शाह की नालायक, नाशुक्री औलाद, अभी दिल्ली दूर है।”
“ठहर जा, साले!”
उसने विमल की छाती को निशाना बना कर गन का घोड़ा खींचा।
जवाब में खाली एक क्लिक की आवाज़ हुई जो उस कमरे के स्तब्ध वातावरण में ज़ोर से गँजी।
राजा सा'ब के चेहरे पर आतंक के भाव आए। उसने फिर घोड़ा खींचा। क्लिक! “दाना मेरे पास है।”
विमल धीरे से बोला। “क-क्या!”
“मैंने कहा तुम्हारे हाथ में थमी गन की गोलियाँ मेरे पास हैं। जो मैगज़ीन तुम्हारी गन में है, वो खाली है, एक भी गोली उसमें नहीं है। गोलियाँ तो यहाँ हैं?”
विमल ने दाएँ हाथ की मुट्ठी उसके सामने खोली। राजा सा'ब ने पूर्ववत् आतंकित भाव से उसकी हथेली में रखी गोलियों को देखा।
“क-कैसे?” – उसने मुँह से निकला।
“जाद से।” – विमल शान्ति से बोला – “गिली गिली किया, गोलियाँ गन से बाहर और मेरी हथेली पर। क्या?”
“क-कैसे?” – फिर उसके मुँह से निकला।
“सुनो कैसे! तुम्हें मालूम है तुम होटल में हथियार नहीं ले जा सकते थे क्योंकि ऐन्ट्री पर मैटल डिटेक्टर से गुज़रना होता है। मेरे से मुलाकात थी इसलिए गन का साथ होना ज़रूरी था। तुमने इस काम के लिए भी गुलदस्ते की ताकत आजमाई जिसकी कि सारे गैंगस्टर्स को आदत है लेकिन खता तब खायी जब तुम्हारे जमूरे ने– बंगले के गार्ड्स के इंचार्ज ने, जिस का नाम तुमने हरमेश नटके बताया- गन होटल के भीतर पहुँचाने के लिए जिस सिक्योरिटी ऑफिसर को चुना वो मेरा अज़ीज़, मेरा करीबी निकला। मैं इसे तुम्हारी बकिस्मती ही कहूँगा कि होटल की सिक्योरिटी गार्ड्स की फौज में से नटके ने गुलदस्ता प्रेमी चुना भी तो शोहाब अहमद को चुना जो पाँच दिन की छुट्टी पर था और छुट्टी के बाद उसी शाम ड्यूटी पर लौटा था; जो नटके को भी पहचानता था, तुम्हें भी जानता था और ये भी जानता था कि तुम्हारी मेरे से आज रात की मीटिंग शेड्यूल्ड थी। आगे तुम समझ ही सकते हो शोहाब ने क्या किया होगा!”
“गन में से गोलियाँ निकाल लीं!” – राजा सा'ब होंठों में बुदबुदाया।
“और मेरे हवाले कर दीं। ताकत निचोड़ ली और चुसका खिलौना तुम्हें सौंप दिया जो इस वक्त तुम्हारे हाथ में है। क्या करोगे इसका?”
गुस्से में राजा सा'ब ने गन खींच के विमल को मारी। विमल ने दक्षता से गन को रास्ते में ही लपक लिया।
“तुमने मेरी जान लेने की कोशिश की” – निर्विकार भाव से गन की मैगज़ीन में गोलियाँ वापिस भरता विमल बोला – “बदले में तुम्हारी ख़ुद की जान चली गई तो कोई अनहोनी तो न हुई! जिस गैंग को तुमने ख़ुद ख़त्म कर दिया, अब उसकी आख़िरी निशानी क्यों बाकी बचे! जब सारे चराग बुझ गए तो बाकी एक क्यों रौशन रहे! जहन्नुम की दहलीज़ पर कदम रखते सोचना इस बाबत।”
विमल की चलाई एक ही गोली ने उसका भेजा उड़ा दिया।
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