कबीर और हिकमा के किस्से के खत्म होने के बाद, कुछ दिन कबीर अवसाद में रहा, मगर वह उम्र अवसाद में जीने की नहीं थी; वह उम्र तो खेलने, खाने और मस्ती करने की उम्र थी; वह उम्र सीखने और बड़े होने की उम्र थी। सीखने और बड़े होने की उम्र में होने का अर्थ यह नहीं होता कि आप कुछ जानते ही नहीं हैं, या आपमें कोई परिपक्वता नहीं है; उसका अर्थ यही होता है कि जो आप जानते हैं वह पर्याप्त नहीं है; आपको अभी और सीखना और जानना है, और इसी सीखने और जानने में आप यह भी सीखते हैं कि आप कितना भी जान लें, वह कभी पर्याप्त नहीं होता। कबीर को यह ज्ञान भी बहुत देर से हुआ।
कबीर ने उसके बाद एक लम्बे समय तक किसी लड़की को ‘‘आई लव यू’’ नहीं कहा। कबीर के मन में यह भावना घर कर गई, कि वह परिपक्व नहीं था, लिहा़जा किसी लड़की के लायक नहीं था। जब कबीर की उम्र का लड़का ख़ुद को लड़कियों के क़ाबिल नहीं मानता, तो वह ख़ुद को ऐसी किसी भी ची़ज के क़ाबिल नहीं मानता, जिसे पाने या करने के लिए एक आत्मविश्वास भरे व्यक्तित्व की ज़रूरत होती है। ‘ही वा़ज नॉट गुड इऩफ।’, ये कबीर का विश्वास बन गया था। कबीर ने लड़कियों से ध्यान हटाकर पढाई-लिखाई में लगाना शुरू किया। लड़कियों से ध्यान हट जाए, तो पढ़ाई-लिखाई में ध्यान आसानी से लग जाता है। स्कूली पढ़ाई-लिखाई जानकारियाँ तो बहुत दे देती है मगर व्यक्तित्व के निखार में उनकी कोई ख़ास भूमिका नहीं होती। कबीर का व्यक्तित्व भी कुछ वैसा ही बनता गया... किताबी कीड़े सा; जिसे किताबी ज्ञान तो भरपूर था, मगर व्यवहारिक ज्ञान का़फी कम। लड़कियाँ कबीर के किताबी ज्ञान से प्रभावित तो होतीं; मगर उसके अलावा कबीर के व्यक्तित्व में ऐसा कोई चार्म नहीं था, जो लड़कियों को आकर्षित कर पाता।
कबीर, स्कूल की पढ़ाई खत्म कर यूनिवर्सिटी पहुँचा। कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के किंग्स कॉलेज में कंप्यूटर एंड इनफार्मेशन इंजीनियरिंग में एडमिशन लिया। कबीर, कॉलेज इस दृढ़ निश्चय के साथ गया, कि नए परिवेश में अपनी ग्रंथियों से निकलने का नए तरीके से प्रयास करेगा। कैंब्रिज जैसी यूनिवर्सिटी में एडमिशन होना अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि थी; मगर वहाँ तो सभी वही उपलब्धि लेकर आए थे। कबीर के पास ऐसा कुछ नहीं था जो बाकियों से बेहतर हो, जिसके सहारे वह अपनी ग्रंथियों से बाहर निकलने का प्रयास कर सके। इसे समझते हुए कबीर ने उन लड़कों से दोस्ती करने की कोशिश की, जो कॉलेज में कुछ ख़ास माने जाते थे; यानी जो कूल थे, पॉपुलर थे; ताकि उनकी दोस्ती के सहारे ही कबीर की गिनती कुछ ख़ास लोगों में हो। उन कूल और पॉपुलर लड़कों में ही एक था राज। लम्बा-तगड़ा और खूबसूरत हंक। कॉलेज में राज की इमेज मिस्टर परफेक्ट की थी। सबसे अच्छे सम्बन्ध रखना, और सबकी ऩजरों में अच्छा बने रहना राज की खासियत थी। राज के मीठे बोल सबको आकर्षित करते। कबीर जैसे लडकों के लिए राज उनका रहनुमा था, जो उन्हें गाइड भी करे और ग्रूम भी।
‘‘हेलो, दिस इस राज! इफ यू नीड एनीथिंग फ्रॉम मी, जस्ट आस्क फॉर इट, नेवर हे़जीटेट... मुझे अपना बड़ा भाई समझो यार।’’ राज ने कबीर से पहली ही मुलाकात में कहा था।
इसके बाद कबीर और राज की दोस्ती बढ़ती गई। राज, कबीर की मदद करता और उसे गाइड करता, और बदले में कबीर अक्सर लोगों से राज की तारीफ करता, जो राज की छवि निखारने में काम आता, साथ ही कबीर को राज के संबंधों का फायदा भी मिलता; यानी कि विन-विन रिलेशनशिप, सिवा इस बात के कि कबीर को जाने-अन्जाने राज के अहसानों के भार का अहसास होने लगा था। धीरे-धीरे कबीर, राज की साइडकिक बनने लगा।
‘‘हे कबीर, टुनाइट देयर इ़ज ए पार्टी एट ब्रायन्स, यू मस्ट कम।’’ एक दिन राज ने कबीर से कहा। ब्रायन राज का ख़ास दोस्त था।
‘‘ओह ऑफकोर्स! आई मोस्ट सरटेनली विल कम।’’ कबीर ने बेझिझक कहा।
‘‘दैट्स वंडरफुल, एंड कैन आई आस्क ए फेवर! यार मेरी कार सर्विसिंग के लिए गई है, सो कैन आई आस्क यू टू गिव मी ए लिफ्ट टू ब्रायन्स।’’
‘‘श्योर, आई विल पिक यू अप फ्रॉम योर होम।’’
‘‘ग्रेट, प्ली़ज पिक मी अप एट सिक्स।’’
‘‘या, श्योर।’’
कबीर ने कार ब्रायन के घर से लगभग सौ मीटर दूर पार्क की। दरअसल उससे कम दूरी पर कोई पार्किंग की जगह खाली ही नहीं थी। सौ मीटर की दूरी से भी ब्रायन के घर से उठता ते़ज संगीत का शोर सा़फ सुनाई दे रहा था। राज के साथ ब्रायन के घर के भीतर जाते हुए कबीर थोड़ा नर्वस महसूस कर रहा था। उस पार्टी में कबीर, राज का मेहमान था। ब्रायन से उसकी थोड़ी बहुत ही जान-पहचान थी, और ब्रायन के बाकी दोस्तों से बिल्कुल नहीं या नहीं के बराबर।
पार्टी में कुछ दोस्तों से परिचय कराने, और कुछ देर बातचीत के बाद राज ने कबीर से कहा, ‘‘कबीर, मुझे किसी से ज़रूरी बातें करनी हैं; यू जस्ट हैंग अराउंड एंड एन्जॉय योरसेल्फ।’’
इतना कहकर राज, कबीर को कुछ दोस्तों के हवाले करके वहाँ से चला गया। राज और ब्रायन के दोस्त कबीर के लिए अपरिचित ही थे। कुछ देर उनके साथ समय बिताने के बाद कबीर ख़ुद को अकेला महसूस करने लगा। बोर होता हुआ कबीर, हाथ में एक बियर की बोतल लिए हुए एक काउच पर जा सिमटा।
‘हाय!’ काउच पर बैठा कबीर सिर झुकाए कुछ सोच ही रहा था, कि उसे किसी लड़की की आवा़ज सुनाई दी।
कबीर ने ऩजरें उठाकर देखा। सामने एक लगभग उन्नीस-बीस साल की खूबसूरत लड़की खड़ी था। रंग साँवला, कद मीडियम, स्लिम फिगर और शार्प फीचर्स। लड़की ने का़फी टाइट और रिवीलिंग ड्रेस पहनी थी जो इस तरह की पार्टियों के लिए आम थी।
‘‘हाय, आई एम नेहा।’’ बाएँ हाथ में रेडवाइन का गिलास थामे हुए लड़की ने दायाँ हाथ कबीर की ओर बढ़ाया।
‘‘हाय! कबीर।’’ कबीर ने मुस्कुराकर कहा।
‘‘कैन आई ज्वाइन यू?’’ नेहा ने चंचलता में लिपटी विनम्रता से पूछा।
‘‘या, ऑफकोर्स।’’ कबीर ने काउच पर अपनी बगल की ओर इशारा किया।
‘‘व्हाई डोंट वी गो आउट इन द गार्डन? इट्स क्वाइट लाउड इन हियर।’’ नेहा ने दरवा़जे की ओर इशारा किया।
‘‘या श्योर।’’ कबीर ने उठते हुए कहा।
कॉलेज में आने के बाद से कबीर का लड़कियों से सि़र्फ परिचय ही रहा था; दोस्ती का न कोई अवसर पैदा हुआ था, और न ही कोई अवसर कबीर ने पैदा करने की कोशिश की थी। लड़कियों को लेकर कबीर की झिझक और काम्प्लेक्स अभी तक नहीं गए थे, मगर फिर भी वह नेहा के साथ बातचीत के लिए का़फी आतुर था।
‘‘आर यू ऑन योर ओन हियर।’’ कबीर को अकेला देख नेहा ने प्रश्न किया।
‘‘नहीं, मैं एक दोस्त के साथ आया हूँ, मगर वह कहीं और बि़जी है।
‘‘सेम हियर... मैं भी किसी के साथ आई हूँ, मगर वह भी कहीं और बि़जी है।’’ नेहा ने हँसते हुए कहा।
नेहा की हँसी कबीर को बहुत प्यारी लगी। एक लम्बे समय बाद उसके सामने किसी लड़की की ऐसी सरल-सहज हँसी बिखरी थी।
‘‘डू यू स्टडी हियर इन कैंब्रिज? आपको पहले कभी नहीं देखा।’’ गार्डन में पहुँचकर कबीर ने नेहा से प्रश्न किया।
‘‘या, क्वीन्स कॉलेज, डूइंग अंडरग्रैड इन फिलॉसफी।’’
‘‘वाह, तो आप फिलासफर हैं?’’
‘‘जी नहीं, मैं फिलासफी पढ़ रही हूँ, और फिलॉसफी पढ़ने भर से कोई फिलॉसफर नहीं बन जाता।’’ नेहा ने हँसकर कहा; ‘‘वैसे आप क्या कर रहे हैं?’’
‘‘मैं कंप्यूटर इंजीनियरिंग पढ़ रहा हूँ।’’ कबीर ने नेहा की नकल करते हुए कहा।
‘‘हा, हा.. मगर कंप्यूटर इंजीनियरिंग पढ़कर आप कंप्यूटर इंजिनियर तो बन जाएँगे।’’
‘‘हाँ, अगर पास हुआ तो।’’
‘‘नहीं तो?’’
‘‘फिलॉसफर बन जाऊँगा।’’ कबीर ने ठहाका लगाया।
‘‘वैसे एक बात कहूँ; कैंब्रिज में पढ़ने के अपने चैलेंज हैं।’’
‘‘वह क्या?’’
‘‘वह ये कि भले पढ़ाई कितनी भी कठिन हो, आप फेल होना अफोर्ड नहीं कर सकते। किसी खटारा कार से अगर स़फर पूरा न हो, तो दोष कार पर डाला जा सकता है, मगर फरारी की सवारी करके भी मंज़िल तक न पहुँचे तो उसकी ज़िम्मेदारी आप ही को लेनी होती है।’’
‘‘अरे वाह! आप तो अभी से फिलॉसफर हो गईं।’’ कबीर ने हँसते हुए कहा।
‘‘हे कबीर!’’ राज की आवा़ज आई। राज उनकी ओर ही आ रहा था।
‘‘हाय राज! मीट नेहा।’’ राज के करीब आते ही कबीर ने उससे नेहा का परिचय कराया।
‘‘हाय नेहा; थैंक्स फॉर गिविंग कबीर योर ब्यूटीफुल कंपनी।’’ राज ने नेहा से कुछ अधिक ही आत्मीयता से हाथ मिलाया, और फिर कबीर की ओर देखकर आँख मारते हुए कहा ‘‘होप कबीर बिहेव्ड हिमसेल्फ; इसे खूबसूरत लड़कियों के साथ की आदत नहीं है।’’
नेहा का चेहरा लजीले गर्व से गुलाबी हो उठा, और कबीर का चेहरा शर्मीली झेंप से लाल। कबीर की झेंप को महसूस किए बिना ही नेहा, राज के साथ बातों में मशगूल हो गई। कबीर, जो थोड़ी देर पहले नेहा के साथ में अपना खोया हुआ आत्मविश्वास ढूँढ़ रहा था, एक बार फिर नर्वस होने लगा। थोड़ी देर पहले उसे राज पर इस बात पर गुस्सा आ रहा था कि वह उसे अकेला छोड़कर चला गया था; अब उसे राज से यह शिकायत थी कि उसने लौटकर उसे अकेला कर दिया था। मगर सच तो यह था कि कबीर को राज ने नहीं, बल्कि उसके साहस की कमी ने अकेला किया था। नेहा और राज अब भी उसके साथ ही थे; वो चाहता तो उनकी बातों में शामिल हो सकता था, मगर इस बार भी साहस की कमी की वजह से उसने अकेलेपन को ही चुना। उस रात के बाद कई दिनों तक कबीर ख़ुद को अकेला ही महसूस करता रहा।
अगले कुछ दिनों तक कबीर, राज से भी कटा-कटा सा रहने लगा। उसे राज से कुछ ईष्र्या भी होने लगी थी। जिस राज की, मिस्टर परफेक्ट की छवि से उसे कभी ईष्र्या नहीं हुई; जिस राज की साइडकिक बनकर भी वह खुश था; उसी राज से उसे अब ईष्र्या होने लगी थी, सि़र्फ इसलिए कि उसने उससे नेहा का साथ छीन लिया था। इस बात का अहसास राज को भी था कि कबीर उससे कटा-कटा सा रह रहा था, जो उसकी मिस्टर परफेक्ट की छवि के लिए अच्छा नहीं था। उसने कबीर की नारा़जगी दूर करना तय किया।
‘‘हे कबीर, आज रात क्लब चलते हो?’’ राज ने कबीर के दायें कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा।
‘क्लब?’
‘‘हाँ यार, बहुत दिन हो गए तुम्हारे साथ टाइम स्पेंड किए हुए... लेट्स एन्जॉय अवरसेल्व्स टुनाइट।’’
‘‘मगर..।’’
‘‘मगर वगर कुछ नहीं, लेट्स गो बडी।’’ राज ने ज़ोर देकर कहा।
‘‘ओके।’’ कबीर मना नहीं कर सका।
राज के साथ कबीर क्लब में कुछ अनमना सा ही दाखिल हुआ, मगर क्लब के भीतर के माहौल ने उसे थोड़ी जीवंत ऊर्जा से भरना शुरू किया। गूँजता हुआ संगीत, झिलमिलाती रौशनी और थिरकते हुए जवान जिस्मों का जोश उसके बदन को हरकत में लाने लगा। कबीर, राज के साथ बार की ओर बढ़ा ही था कि पीछे से किसी लड़की की आवा़ज आई, ‘‘हाय! कबीर, हाय राज!’’
कबीर ने आवा़ज से ही पहचान लिया कि वह नेहा की आवा़ज थी। कबीर ने ख़ुशी से मुड़कर देखा, पीछे नेहा खड़ी थी, मुस्कुराकर हाथ हिलाते हुए।
‘‘हाय! नेहा, तुम यहाँ?’’ कबीर ने चौंकते हुए पूछा।
‘‘राज ने मुझे यहाँ बुलाया है; उसने तुम्हें नहीं बताया।’’ नेहा ने आँखों से राज की ओर इशारा किया।
‘‘मैं कबीर को सरप्राइ़ज देना चाहता था।’’ राज ने कबीर के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।
कबीर को राज का यह जेस्चर अच्छा लगा – तो राज उसके मन की हालत समझता था। राज वाकई मिस्टर परफेक्ट था, मगर फिर कबीर को वही घबराहट हुई; कहीं नेहा और राज उस दिन की तरह एक दूसरे में व्यस्त होकर उसे फिर से अकेला न कर दें। मगर कबीर ने निश्चय किया कि आज वह पीछे नहीं हटेगा, नेहा से जम कर बातें करेगा, और उसके साथ जम कर डांस भी करेगा। आ़िखर राज ने नेहा को उसके लिए ही तो वहाँ बुलाया था। या फिर राज का इरादा कुछ और तो नहीं था? वह ख़ुद तो नेहा को पसंद नहीं करता था? मगर यदि वह ख़ुद नेहा को पसंद करता होता, तो उसे क्यों क्लब में साथ ले आता, कबाब में हड्डी बनाकर; नेहा तो उसके लिए ही वहाँ आई थी।
कबीर और राज ने बार से बियर की एक-एक बोतल ली, और नेहा ने वाइट रम, पाइनएप्पल जूस और कोकोनट क्रीम का कॉकटेल। अपनी-अपनी ड्रिंक लेकर वे एक बूथ में पसर गए। गपशप करते हुए ड्रिंक्स के दौर चलते रहे। बीच-बीच में वे डांस फ्लोर पर भी हो आते, और फिर बैठकर शराब के घूँट भरते हुए बातों में लग जाते। इस बीच राज ने इस बात का पूरा ख़याल रखा, कि वह नेहा को अपनी बातों में इतना व्यस्त न कर ले कि कबीर अकेला महसूस करने लगे, मगर साथ ही नेहा की मेहमाननवा़जी में भी कोई कमी नहीं रखी। नेहा के ड्रिंक का गिलास खाली होता, और तुरंत ही दूसरा हा़िजर हो जाता। थोड़ी देर बाद राज का सेलफोन वाइब्रेट हुआ। राज ने अपना फ़ोन चेक किया। कोई मैसेज आया था।
‘‘गाए़ज, देयर इ़ज एन इमरजेंसी; आई हैव टू गो समवेयर; यू गाए़ज एन्जॉय योरसेल्व्स।’’ राज ने उठते हुए कहा।
कबीर को समझ आ गया, कि यह सब राज का प्लान किया हुआ था, उसे नेहा के साथ अकेले छोड़ने के लिए। राज वा़ज रियली ए वेरी नाइस गाए... मिस्टर परफेक्ट।
‘‘लेट्स गो टू डांस फ्लोर।’’ राज के जाते ही कबीर ने नेहा से कहा।
‘‘कैन आई हैव एनअदर ड्रिंक प्ली़ज।’’ नेहा ने खाली गिलास की ओर इशारा करते हुए कहा।
‘‘नेहा, तुम पहले ही बहुत अधिक पी चुकी हो।’’ कबीर ने ऐतरा़ज किया।
‘‘जस्ट वन मोर।’’
‘‘अच्छा, क्या लोगी?’’ नशे में डूबी नेहा की अदा के आगे कबीर का ऐतरा़ज टिक न सका।
‘सेम।’
‘ओके।’
कबीर, नेहा के लिए वाइट रम, पाइनएप्पल जूस और कोकोनट क्रीम का एक और कॉकटेल ले आया।
‘‘डू यू ड्रिंक ए लॉट?’’ कबीर ने गिलास नेहा के सामने रखते हुए पूछा।
‘‘आई लाइक ड्रिंक्स।’’ नेहा ने गिलास उठाते हुए कहा। नेहा की आवा़ज से कबीर को लगा कि उस पर शराब का नशा कुछ ज़्यादा ही हो चुका था।
‘‘कितनी ड्रिंक्स लेती हो तुम!’’
‘‘जितनी मॉम की याद आती है।’’ नेहा ने ड्रिंक का एक लम्बा सिप लिया।
‘‘उसके लिए इतना ड्रिंक करने की क्या ज़रूरत है; वीकेंड पर घर जाकर माँ से मिल आओ।’’ कबीर ने बड़े भोलेपन से कहा।
कबीर की बात सुनकर नेहा के होठों पर एक हल्की सी हँसी उभरी, मगर तुरंत ही उस हँसी को हटाती उदासी की परत फैल गई, ‘‘कबीर, मॉम हमारे साथ नहीं रहतींr।’’
‘‘क्या मतलब?’’ कबीर ने चौंकते हुए पूछा।
‘‘मैं पाँच साल की थी, जब मॉम और डैड अलग हो गए थे।’’
‘‘ओह सॉरी।’’
‘‘यू डोंट नीड टू बी सॉरी कबीर; मुझे अच्छा लगता है जब कोई मॉम की बात करता है।’’
‘‘अब मॉम कहाँ हैं? तुम उनसे मिलती तो हो न?’’
‘‘कबीर, इट्स ए लॉन्ग स्टोरी, रहने दो, लेट्स गो एंड डांस।’’ नेहा ने बाकी की शराब एक घूँट में गटकते हुए कहा।
कबीर, नेहा को लिए डांस फ्लोर पर आ गया। डांस करते हुए नेहा के क़दम लड़खड़ा रहे थे, और उसे कबीर की बाँहों के सहारे की कुछ अधिक ही ज़रूरत महसूस हो रही थी। नेहा के ना़जुक बदन को बाँहों में थामे, डांस करने में कबीर को आनंद तो बहुत आ रहा था, मगर साथ ही उसे नेहा की चिंता भी हो रही थी। मन तो उसका नेहा को यूँ ही बाँहों में लिए सारी रात डांस करते रहने का था, मगर नेहा का नशा धीरे-धीरे बेहोशी में बदल रहा था। थोड़ी देर डांस करने के बाद कबीर ने नेहा से कहा, ‘‘नेहा, आई थिंक, वी शुड गो नाउ।’’
‘‘ओ नो कबीर, थोड़ी देर और डांस करते हैं न... आई एम एन्जोयिंग इट।’’ नेहा ने लड़खड़ाती आवा़ज में कहा।
‘‘नहीं नेहा; तुम्हें नशा कुछ ज़्यादा ही हो गया है, चलो मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ देता हूँ।’’
‘‘मेरा कोई घर नहीं है कबीर।’’ नेहा की आवा़ज में एक ऐसा दर्द था, मानो वह लड़खड़ाते हुए गिरकर कोई गहरी चोट खा बैठी हो।
‘‘जहाँ भी तुम रहती हो; चलो अब।’’ कबीर ने नेहा को दोनों बाँहों में भींचकर लगभग खींचते हुए कहा।
नेहा को बाँहों में भींचते हुए कबीर की साँसें ते़ज हो चली थीं, मगर उस वक्त उसे सि़र्फ नेहा का ख़याल था। क्लब से बाहर निकलकर कबीर ने इशारा कर एक टैक्सी बुलाई। टैक्सी की पिछली सीट का दरवा़जा खोलकर नेहा को टैक्सी में बैठाया।
‘‘नेहा प्ली़ज टेल योर एड्रेस।’’ कबीर ने नेहा से उसका पता पूछा।
‘‘मेरा कोई घर नहीं है।’’ नेहा ने लड़खड़ाती आवा़ज में फिर वही कहा।
‘‘आजकल के बच्चे... न घर-बार की फ़िक्र है, और न ही माँ-बाप की। माँ-बाप समझते हैं कि ये पढ़-लिखकर अपने पैरों पर खड़े होंगे, और ये यहाँ शराब पीकर लड़खड़ाते रहते हैं।’’ टैक्सी ड्राइवर अपने एक्सेंट और रंग-रूप से पाकिस्तानी मूल का लग रहा था।
‘‘हे यू शटअप! अपने काम से काम रखो, भाषण मत दो।’’ नेहा ने लड़खड़ाती आवा़ज में टैक्सी ड्राइवर को झिड़का।
‘‘नेहा, अगर तुम अपना पता भी नहीं बताओगी, तो ये अपना काम कैसे करेंगे।’’ कबीर ने नेहा से कहा।
नेहा ने लड़खड़ाती आवा़ज में अपना पता बताया। टैक्सी ड्राइवर ने टैक्सी स्टार्ट कर आगे बढ़ा दी।
नेहा का स्टूडियो अपार्टमेंट सेकंड फ्लोर पर था। नेहा, टैक्सी में ही गहरी नींद में डूब चुकी थी। कबीर, नेहा को टैक्सी से उतारकर बाँहों में उठाए बिल्डिंग के भीतर पहुँचा। तीन फ्लोर ऊँची बिल्डिंग में लिफ्ट नहीं थी। कबीर को, नेहा को बाँहों में उठाए हुए ही दो फ्लोर की सीढ़ियाँ चढ़नी थीं; मगर किसी भी जवान लड़के को किसी जवान लड़की के खूबसूरत बदन का भार बोझ नहीं लगता। कबीर ने एक ऩजर अपनी बाँहों में झूलते नेहा के बदन पर डाली। एक ओर उसका खूबसूरत चेहरा और झूलते हुए खुले रेशमी बाल, दूसरी ओर पॉइंटेड हील के गोल्डन ब्राउन लेदर में लिपटे उसके ना़जुक पैरों तक पहुँचती सुडौल टाँगें और बाँहों के बीच स्कर्ट और क्रॉपटॉप के बीच से झलकती छरहरी कमर; ऐसे खूबसूरत बदन को वह दो फ्लोर की चढ़ाई तो क्या, समय के अंत तक उठाने को तैयार था।
नेहा के अपार्टमेंट के दरवा़जे पर पहुँचकर कबीर ने नेहा के बाएँ कंधे पर झूल रहे उसके पर्स से अपार्टमेंट की चाबी निकालकर दरवा़जा खोला। अपार्टमेंट छोटा, मगर खूबसूरत था। एक ओर रेड और क्रीम फैब्रिक का सो़फाबेड था, बीच में ओक वुड का कॉ़फी टेबल, और साथ में कुछ केन की कुर्सियाँ, और दूसरी ओर ग्लॉस क्रीम और रेड यूनिट्स का फिटेड किचन। अपार्टमेंट न सि़र्फ कॉम्पैक्ट और सा़फ-सुथरा था, बल्कि शौक और सलीके से सजाया हुआ भी था। अपार्टमेंट को देखकर यह कतई नहीं लग रहा था कि वह उस नेहा का था, जिसकी शामें और रातें अपनी उदासी को शराब में डुबाकर लापरवाही से गु़जरती हैं।
नेहा को सो़फाबेड पर लेटाकर, कबीर ने उसके पैरों से उसकी हील्स उतारनी चाही। कुछ देर के लिए कबीर की ऩजरें नेहा के ना़जुक पैरों पर लिपटी उसकी खूबसूरत हील्स पर ही जम गईं। कबीर को अचानक एक अद्भुत उत्तेजना सी महसूस हुई। उसका मन हुआ कि घुटनों के बल बैठकर नेहा के पैरों पर अपने होंठ रख दे। वह मन का मचलना क्या था? समर्पण, या किसी किस्म का सेक्सुअल फेटिश, जो चार्ली का लूसी के पैरों के प्रति था? या फिर दोनों में कोई अंतर ही नहीं था। कबीर ने चार्ली ही की तरह घुटनों पर बैठते हुए सिर झुकाकर अपने होंठ नेहा के पैरों के करीब लाए। नेहा की हील्स से उठती ता़जे लेदर की गंध, उसे और उत्तेजित कर गई। कबीर के होंठ काँप उठे, मगर उसकी हिम्मत उन्हें नेहा के पैरों पर रखने की नहीं हुई। मचलते हुए मन पर एक सहमा सा विचार मँडराया, कि कहीं उसके होंठों के स्पर्श से नेहा की नींद न खुल जाए। काँपते होंठों को नेहा की हील्स के करीब रखे हुए, वह कुछ देर उनसे उठती मादक गंध में मदहोश होता रहा; फिर उसने काँपते हाथों से नेहा की हील्स के स्ट्रैप्स खोले; हील्स को नेहा के पैरों से उतारकर, उसने उन्हें हसरत भरी निगाहों से देखा, और उन्हें अपने चेहरे से सटाते हुए उन पर अपने होंठ रख दिए। हील्स से उठती मादक गंध, उसे एक बार फिर मदहोश कर गई।
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