निधि वंश के साथ मेरी बुलेट पर है। वो गोवा में ही है। वो निधि की कमर को एक हाथ से पकड़े हुए है। वंश ने कई ब्रेक लगाए बाइक के जिससे उसका सीना कई बार वंश की पीठ से छू गया। वो मेरे चारों और चक्कर काट रहा था। निधि मेरी तरफ देखकर मुस्कुरा रही थी। वंश ने कहा, “यार तेरी गर्लफ्रेंड मैं शेयर कर रहा हूँ।” और फिर वो हँसने लगा। निधि भी हँस रही थी। फिर वंश ने बाइक की रेस बढ़ा दी। मैंने कहा, “वंश मेरी निधि को उतार बाइक से।” मैं उसके पीछे-पीछे भाग रहा था पर निधि कहे जा रही थी, “वंश और तेज और तेज।” और वो हँस रही थी। 

“राघव-राघव-राघव…” इस आवाज पर मेरी नींद खुल गई। निधि मुझे जगा रही थी। मैं उठा और निधि को गले लगा लिया। मैं डरा हुआ था। निधि ने कहा, “क्या सपने में देखा था तुमने जो कभी वंश-वंश कर रहे थे तो कभी निधि-निधि?” 

“कुछ नहीं, बुरा सपना था। तुम बीच पर नहीं गई?” 

“नहीं गई थी। मैं वापस घूमकर आ गई। दस बज रहे हैं, तुम्हें खाना नहीं खाना क्या? होटल का रेस्टोरेंट बंद हो जाएगा, चलो चलते हैं।”

“मैं हाथ-मुँह धो लेता हूँ पर ज्यादा भूख नहीं है।” 

“जितनी है उतनी खा लेना।” निधि ने कहा, “मैं तो एक बार डर ही गई थी कि तुम्हें क्या हो गया अचानक। मैं तुम्हें पाँच मिनट से जगा रही थी कि तुम निधि-निधि कर रहे थे पर तुमने इतने दिनों बाद वंश को कैसे देख लिया सपने में? बड़ी ही अजीब बात है।” 

“सपना है, कभी भी आ सकता है और किसी के बारे में भी।” 

“ठीक है, खाना खाने चलते हैं।” 

मैं सपने को देखकर अभी भी डरा हुआ था। खाना खाने के बाद मैंने निधि से कहा, “चलो बीच पर चलते हैं।”

“जब मैंने पहले कहा था तो तुमने मना क्यों कर दिया था? अब कैसीनो चलते हैं।”

“नहीं, मुझे कैसीनो में मजा नहीं आता है। बीच पर इस वक्त अच्छी हवा चलती है।”

हम बीच के लिए चल दिए। बीच पर हमें चाय-कॉफी, पाइनएप्पल, खिलौने, लेजर लाइट आदि बेचने वालों ने घेर लिया। मैंने एक चाय वाले से चाय ली तो निधि ने कॉफी। मैंने किसी बेचने वाले को खाली हाथ नहीं जाने दिया। मैंने सभी को सौ-सौ रुपये दिए। हम बीच पर अपनी-अपनी चप्पल उतारकर चुपचाप घूमते रहें। कुछ देर बाद मैंने निधि से कहा, “निधि बचपन कितना अच्छा था, जब हमारे पास फोन नहीं था। हम एक-दूसरे को लेटर लिखा करते थे।”

“हाँ वो टाइम मुझे आज भी याद है। तुम नौवीं कक्षा में थे और मैं दसवीं में थी। टाइम कैसे जल्दी बीत जाता है न राघव। एक बात पूछूँ? तुमने मेरे अलावा किसी को किस किया है?”

“नहीं किया।”

“और सेक्स?” ये कहकर वो हँसने लगी। 

“हाँ किया है, बाथरूम में।” ये सुनकर वो जोर से हँसने लगी। 

“निधि तुम गोवा कितनी बार आई हो दोस्तों के साथ?”

“कई बार आ चुकी हूँ।” 

“पर तुम मेरे साथ क्यों नहीं आई?”

“मैंने सोचा कि तुम गोवा का खर्च नहीं उठा पाओगे और साथ में तुम्हारी पढ़ाई के कारण तो कभी पापा के डर से।” वो सच कह रही थी मेरे पापा उस समय मेरा गोवा जाने का खर्च नहीं उठा पाते शायद साथ में  मेरी पढ़ाई का भी चक्कर था नहीं तो मैं निधि के साथ गोवा जरूर जाता।

“पर पापा का डर तो तुझे अब भी होगा?”

“नहीं, अब मैं अपनी जिंदगी के फैसले अपने आप करती हूँ। पापा ने मुझे छूट दे रखी है।” 

मैं एक सिगरेट जलाने लगा तो वो बोली, “यार इतनी सिगरेट पीते हो, मरना है क्या जो तुम रोज दस सिगरेट पी जाते हो? छोड़ो इसे।” 

उसने मेरे हाथ से सिगरेट छीनते हुए कहा और सिगरेट पानी में फेंक दी। 

“यार कल इस सुंदर समय का दी एंड हो जाएगा।” मुझे ये एहसास अब हो रहा था कि मैं शायद कभी भी निधि के साथ गोवा नहीं आ पाऊँगा। शायद उसकी शादी हो जाए किसी और से। मैं उससे बेशक शादी नहीं करना चाहता था पर प्यार तो उसी से करता था 

“हाँ सच में। मुझे बड़ा दुख होगा। पता नहीं ऐसा मौका हमें यहाँ आने का कब मिलेगा।” 

हम किनारे से उठ गए तो निधि ने कहा, “मुझे भूख लग रही है, सामने वाले रेस्टोरेंट में चाय के साथ ऑमलेट खाते हैं।”

“तुम खाते-खाते परेशान नहीं होती? अभी ही तुमने कॉफी पी है।”

उसने बड़े धीरे से कहा “क्या करूँ, घर पर तो कुछ अच्छा डाइटिंग के कारण नहीं खाती। यहाँ मन को खुला छोड़ देती हूँ इसलिए।” 

“अगर तुम कुछ खाओगी तो मैं सिगरेट पीऊँगा।” मुझे सिगरेट की तलब हो रही थी। 

“ठीक है यार पी लेना। तुम मानने वाले कहाँ हो।” 

तभी मुझे मेरे इंटीरियर डिजाइनर का फोन आया, “हेलो मैम! क्या चल रहा है?”

“हाँ सब ठीक है। बस घर के लिए पेंट और दो झूमर का इंतजाम करना है। आप कल आ रहे हैं न?” 

“हाँ कल आ तो रहा हूँ पर आधी रात को गाँव पहुँचूँगा। पर आप तो कह रही थी कि‍ एक हफ्ता आगे के काम में लग जाएगा।”

“वर्करों ने काम जल्दी कर दिया है, पर कोई बात नहीं, आप से परसों मुलाकात हो जाएगी।” 

“ठीक है। और बताएँ।” 

“और तो कुछ नहीं, मैं फोन रखती हूँ।” 

बात करने के बाद हम बीच पर ही एक रेस्टोरेंट में बैठ गए। मेज पर एक कैंडिल जल रही थी। निधि ने वेटर को बुलाया। दो चाय और ऑमलेट का ऑर्डर दिया।

“मैडम, इस वक्त चाय नहीं मिल सकती है। आप कुछ और मँगा सकती हैं।” 

“तो ऐसा करो, एक बीयर ले आओ।”

“कितनी बीयर पियोगी?” मैंने निधि को डाँटते हुए पूछा। 

“तो ऐसा करो, एक नहीं दो बीयर ले आओ।” निधि ने खींझते हुए कहा। वेटर ऑर्डर लेकर चला गया। 

“मैं इस वक्त बीयर नहीं पी सकता हूँ। दो किसलिए मँगवाई है?”

“मुझे डाँटने के जुर्म में।” 

“चलो यहाँ से कहीं और चलते हैं। तुम पी-पीकर पूरी नशेड़ी हो गई हो।” ये सुनकर निधि हँसने लगी और मेज के नीचे मेरे पैर पर एक लात मारी। लात लगते ही मैंने धीरे से आउच कहा। कुछ देर में वेटर दो बीयर और ऑमलेट ले आया। हमने बीयर के साथ ऑमलेट खाया। रात के बारह बज चुके थे। बिल मैंने जल्दी से मँगवाया और निधि से कहा, “जल्दी करो, जल्दी से यहाँ से निकलते हैं, नहीं तो होटल जाने का रास्ता सुनसान हो जाएगा।”

“पर इतनी भी जल्दी क्या है?” 

“रास्ते में आवारा कुत्ते मिलेंगे वरना।”

“तुम कुत्तों से डरते हो?” 

“वो आवारा हैं, रास्ते में काट लिया तो?” निधि थोड़ी हँसी और फिर मुस्कुराई। हम वहाँ से तुरंत निकल लिए और जैसा मैं जानता था, रास्ते में कुत्ते हमें मिल भी गए। कोई चार कुत्ते जो आवारा थे, हमारे पीछे-पीछे भागते हुए चलने लगे। एक कुत्ता हमारे पास भौंकता हुआ आया तो निधि की चीख निकल गई। उसे देखकर मैं भी चीख पड़ा। निधि मेरे पीछे छुपने लगी और कुत्ते को शी-शी करके भगाने लगी। हम उससे बचते हुए होटल की तरफ चलते गए। हम जब तक होटल में नहीं पहुँच गए, हमारी साँस अटकी रही।

रूम में घुसकर निधि इतना हँसी कि उसके पेट में बल पड़ गए। मैंने निधि से कहा, “बड़ी ही डरपोक हो, कुत्ते को देखकर मेरे पीछे छुप गई थी।”

“तो क्या हुआ, तुम कुत्ते से मेरी सुरक्षा नहीं कर सकते थे! थोड़ा काट ही लेता बस। इतना भी कोई डरता है? कुत्ते को देखकर चिल्ला पड़े थे।” 

“पहले तुम चीखी थी, मैं नहीं। तुम्हारे चिल्लाने से मैं डर गया था। नहीं तो मैं नहीं चीखता।” 

हम एक-एक बीयर लेकर पीने लगे। तभी सत्ते ने डोरबेल बजाई। फिर तो मैं, सत्ते और निधि देर तक पीते रहे। हमने रात को दो बजे पीना बंद किया। मैं रात को तीन बजे सोने गया। मैं दूसरे कमरे में परदा लगाकर सो गया और निधि कमरे के दूसरे बेड पर सोई। सुबह दस बजे हम उठे तो पता चला कि‍ वे चारों बागा बीच पर चले गए थे।

मेरा मन बाहर जाने का नहीं था, न ही निधि का था, क्योंकि आज ही हमें रात को फ्लाइट दिल्ली के लिए पकड़नी थी।

मैं अपने कपड़े बैग में ठूँसने लगा। निधि ने कहा, “ऐसे भी कोई कपड़े रखता है? लाओ मैं कपड़े ठीक से रखती हूँ।” उसने कपड़े बड़े ढंग से बैग में रखे। 

“तुम साबुन, शैंपू, तौलिया, पेस्ट और ब्रश बाथरूम से ले आओ।” मैंने बाथरूम से सारा सामान लाकर निधि को दे दिया।

मैंने निधि से कहा, “मेरे सारे कपड़ों पर सिलवट पड़ी है। मैं फ्लाइट में क्या पहन कर जाऊँगा?” उसने कपड़ों को देखा और एक जींस-टीशर्ट और जैकेट को निकाला जो गोवा से ही खरीदी थी और रूम सर्विस से बात करके उन कपड़ों पर प्रेस के लिए दिया। कोई बीस मिनट बाद मेरे कपड़ों को एक लड़का प्रेस करके दे गया। मैं फिर अच्छी तरह से नहाया। मेरा रंग बीच पर नहा-नहाकर थोड़ा काला-सा पड़ गया था। निधि के रंग में भी कुछ फर्क पड़ गया था। पर वो अब भी ठीक दिखती थी। हमने होटल पर ही नाश्ता या लंच किया। हमें आज ही एयरपोर्ट के लिए निकलना था।

जब हम नाश्ता करके उठे तो वे दोनों जोड़े भी आ गए। उन्होंने भी नाश्ता किया। बारह बजे मैं और निधि मार्केट में घूमने चले गए। निधि ने मार्केट से अपने लिए और मेरे लिए भी सजावट का सामान लिया। हम दोपहर दो बजे तक घूमते रहे, फिर हम दो टैक्सी में बैठकर एयरपोर्ट के लिए चले गए। एयरपोर्ट पहुँचने में दो घंटे लगे। एयरपोर्ट पर हमने बोर्डिंग पास लिए और कॉफी पीने लगे। अभी फ्लाइट के दो घंटे थे। सब गोवा की बातें करने लगे। सत्ते ने कहा, “हम अगले साल फिर से गोवा आएँगे।” सबने हामी भरी। ममता ने निधि से कहा, “आप और भईया यहाँ शादी के बाद हनीमून पर आना।” निधि ने मुँह फुला कर मेरी तरफ देखा। और कहा , “पहले शादी तो हो जाए, जब ही तो हनीमून की सोचें।” 

तभी फ्लाइट अनाउंसमेंट हुई और अपनी चैकिंग कराकर हम हवाई जहाज में बैठ गए। ये फ्लाइट एयर इंडिया की थी जिस में हमें रात का डिनर भी दिया गया। रात दस बजे हम दिल्ली पहुँचे। एयरपोर्ट पर हमें लेने रघुवीर का ड्राइवर आया। निधि भी टैक्सी पकड़कर वहाँ से चली गई। हम रघुवीर की गाड़ी में थे। रघुवीर ने कहा, “यार तेरी भाईली है तो कमाल पर तेज भी है। शादी से पहले ही सुहाग रात के मजे ले लिए।” सुनकर सब हँसने लगे। मैंने कहा, “हमारे बीच ऐसा कुछ नहीं हुआ। मैं गाय माता की कसम खाता हूँ।” रघुवीर और सत्ते जानते थे कि मैं गाय की कसम झूठी नहीं खाता था, क्योंकि मैं गाय को अपनी रोजी-रोटी मानता था। 

रघुवीर ने कहा, “ऐसा मौका तुने ऐसे ही जाने दिया?”

“तुम नहीं जानते, गले पड़ जाती वो। कोशिश तो उसने बहुत की थी ये सब करने की, पर मैंने दो-चार किस के अलावा उससे दूर ही रहा। किस भी उसने जबरदस्ती ले लिए थे।” गाड़ी में बैठे सब शांत हो गए। मैंने सबसे कह दिया कि कोई इस बारे में किसी से नहीं कहे, नहीं तो बेवजह मजाक उड़ेगा।

“भाई हमें क्या ऐसा समझा है जो अपने ही भाई की बदनामी करेंगे?” सत्ते ने कहा। 

रघुवीर ने कहा, “भाई लड़की सुंदर है। बस शराब ही तो पीती है। भाई तुम इससे ही शादी करना।” सोचने लगा की पता नहीं निधि सब पर क्या जादू कर देती है जो सब को भा जाती है शायद ये सुन्दरता और मुँहफट होना ही इस का कारण हो।

“मैं भी इस चालू लड़की को जानता हूँ। इसके कितने भी दबाव में इससे शादी नहीं करूँगा।”

ममता ने कहा, “भाई, कितने साफ दिल की लड़की है। सुना है तुम्हारा चक्कर उससे तेरह साल की उम्र से है। मुझे तो बड़ी ही प्यारी लगी।”

“सुना तो तुमने सही है, पर मेरा प्यार उससे खत्म हो गया है। इतने साल प्यार नहीं रह पाया है।” 

साक्षी ने कहा, “भईया झूठ नहीं बोलो, प्यार इतने साल में और बढ़ जाता है और मैं निश्चित तौर पर कह सकती हूँ कि शादी तो आप दोनों की होगी ही। भगवान के घर देर है अँधेर नहीं। देखते नहीं कितना खुश रहती है वो आपके साथ। आप दोनों के बीच कोई बात है जो आप उससे शादी नहीं करना चाहते हो?” 

सुनकर मैं कुछ नहीं बोल पाया। सारे रास्ते फिर एक चुप्पी-सी छाई रही। हम रात एक बजे गाँव की सरहद में थे। सबसे पहले रघुवीर का घर पड़ता था। उसने अपना सामान घर पर पहुँचकर उतारा। फिर गाड़ी मुझे और सत्ते को छोड़ने चल पड़ी। 

मैं घर पर आकर नहाया गर्म पानी से। रहीम अभी उठा हुआ था। उसने चाय के लिए पूछा, पर मैंने मना कर दिया। यहाँ ज्यादा ठंड थी। मैं बिस्तर पे लेट गया। अगली सुबह जब मैं उठा तो मेरे एक कर्मचारी ने बताया कि 04 नंबर की गाय मर गई है, क्योंकि गाय को गलघोटू हो गया था।

“तो डॉक्टर को नहीं बुलाया?” 

“डॉक्टर को भी बुलाया था पर नहीं बच पाई।”

“किसी और गाय को तो संक्रमण नहीं हुआ न?” 

“नहीं भईया, बाकी सभी गाय सुरक्षित है।” 

“उस गाय को कहाँ दफनाया?”

“उसे गाँव से दूर नमक डालकर दफनाया है।” 

अब मैं क्या ही कर सकता था। काम पर लग गया। मैंने सारे दूध को नपवाकर टंकर में भिजवाया। फिर मैं दस बजे दूध के पैसे लेने के लिए दूध वाले के ऑफिस गया। मैंने बंगले के काम को भी देखा जहाँ पर बहुत बदलाव काम के कारण आ चुका था। मोडुलर किचन का काम तेजी से हो रहा था। बंगले के एक हॉल में पी.ओ.पी. का काम पूरा हो गया था। दूसरे हॉल में तो पी.ओ.पी. का काम पहले ही हो गया था। मजदूर और मिस्त्री ने काम बड़ी तेजी से कर दिया था। मुझे लगा कि आज से ही इन में पेंट का काम भी होने वाला होगा। दोपहर तक इंटीरियर वाली भी आ गई जिसने आते ही पेंट लाने को कहा। मैं पेंट लेने गुरुग्राम चल दिया। 

क्रीम और हल्का आसमानी रंग का पेंट एक दुकान से ले रहा था तभी निधि का फोन आया। उसने कहा, “राघव, मेरे पापा परसों तुम्हारे पास आएँगे।” 

“पर किसलिए वो यहाँ आएँगे?”

“ऐसे ही, वो गाँव देखना चाहते हैं।” 

“क्या तुम भी आओगी?” 

“नहीं मैं शोरूम में रहूँगी। पर तुम परेशान मत होना वो दोपहर को तुम्हारे पास आ जाएँगे।”

पेंट लेने के बाद मैं बाजार के एक शोरूम में गया जहाँ मैंने दो झूमर भी खरीदे और मैं गाँव के लिए निकल गया। सोचने लगा कि‍ गुप्ता अंकल मेरे गाँव क्यों आ रहे हैं। मुझसे ऐसा क्या काम पड़ गया या वो मेरी और निधि की शादी की बात तो नहीं करने आ रहे! या बंगला देखने या कोई जमीन खरीदने आ रहे होंगे शायद। इसलिए मैंने निधि के पास फोन लगाया -पर उसने कहा कि उसे कुछ नहीं पता।

फिर मैंने सोचा कि जब आएँगे तब देखा जाएगा।