“आप धमकी दे रहे हैं।" - सुनील ने परिस्थिति का आनन्द लेते हुए उत्तेजना रहित स्वर में कहा ।


“आप इसे जो जी चाहे समझिये। माना रिपोर्टर बड़े हाजिर जवाब होते हैं, लेकिन मैं अदालत के कठघरे में नहीं खड़ा हूं। मैं जो घर का आरामदेह बिस्तर छोड़कर रात के दो बजे क्लीनिक में बैठा अपनी नींद हराम कर रहा हूं वह इसलिये नहीं कि आप मुझे क्रॉस-एग्जामिन करें। आप किसी गलतफहमी में न पड़ें। रमा के लिये मैं अपने मन में भारी स्नेह रखता हूं। उसका बाप मेरा मित्र था और मेरा भी विश्वास है कि उसके साथ इंसाफ नहीं हुआ है ।"


"आप बाप को भी निर्दोष मानते हैं ?"


"हां। जमनादास बेचारा तो केवल इसलिए फंस गया कि पुलिस और इन्श्योरैन्स वालों को और कोई ऐसा व्यक्ति दिखाई नहीं दे रहा था जिसके सिर पर ये इल्जाम मढा जा सकता था । "


"लेकिन जमना दास के पास चुराया हुआ धन बरामद हुआ था ?"


"देखिये, मिस्टर सुनील, आपको केस की पर्याप्त जानकारी है। इतना तो आप भी अनुभव करते होंगे कि चोरी अगर कोई कर सकता है तो बैंक का ही कोई कर्मचारी । कोई बाहरी व्यक्ति नोटों की जगह भरने के लिए कैन्सल्ड चैक नहीं प्राप्त कर सकता । अच्छा, अब अगर हम ये मान लें कि चोरी खोसला ने नहीं किसी और ने की है तो क्या जो आदमी सबकी आंखों में धूल झोंककर इतना बड़ा बबाल खड़ा कर सकता है वह क्या जमनादास के पर्स में चोरी के कुछ नोट नहीं छुपा सकता था । मिस्टर सुनील, जमनादास के पर्स में चोरी के नोट बरामद होना कोई सबूत नहीं है । यह अधिकारियों की धांधली है कि उन्होंने उसे फंसाया है। "


"ख्याल तो आपका ठीक है।" - सुनील प्रभावित होता हुआ बोला ।


"ख्याल आपके दिमाग में भी आना चाहिए था । " - डाक्टर ने तल्ख स्वर में कहा ।


"खैर, पहले नहीं तो अब आ गया है ।"


"गनीमत है साहब ।" - डाक्टर ने फिर व्यंग्य किया ।


"गनीमत तो है ही, इसीलिए तो मैं यहां बैठा हूं, वर्ना रमा को मैं झोंकता भाड़ में और इस समय यूथ क्लब में नगर की सबसे सुन्दर लड़की के साथ डांस कर रहा होता।"


डॉक्टर चुप हो गया ।


"डाक्टर साहब !" - सुनील एक विजेता के स्वर में बोला- "जब रमा की आय का कोई प्रत्यक्ष साधन नहीं है तो उसे इतना रुपया कहां से मिलता है ? क्या आप देते हैं ?"


"नहीं ।”


"तो फिर कौन ?”


"मैं नहीं जानता। लेकिन काश रमा ने मुझे बताया होता । रमा मेरे ऊपर पूरा-पूरा विश्वास रखती है, लेकिन ये ही एक बात है जो आज तक मुझे नहीं बताई है ।"


"क्यों ?"


"वह कहती है कि वह रुपया देने वाले के प्रति वचनबद्ध है।"


"रुपया देने वाला कोई भी हो, लेकिन प्रश्न तो यह है कि वह रमा को रुपया क्यों दे रहा है ?"


"कुछ उखड़ी-उखड़ी सी बातें तो मैं बता सकता हूं इस बात में तो कई सन्देह नहीं कि रुपया देने वाला जमनादास की भलाई चाहता है और उसे निर्दोष समझता है और चाहता है कि जमनादास जेल से रिहा हो जाए। लेकिन जब तक तक अधिकारियों को विश्वास है कि जमनादास ने रुपया छुपाया हुआ है और जब तक वह उस रूपये को लौटा नहीं देता वे लोग उसे छोड़ने वाले नहीं हैं। लेकिन यदि उन्हें यह विश्वास दिला दिया जाए कि रुपया जमनादास के पास नहीं, बल्कि उसकी बेटी के पास है, जो उसे अंधाधुंध खर्च भी कर रही है, तो सम्भावना है पुलिस जमनादास को रिहा कर दे । अगर रुपया बेटी के पास है तो रिहा होने के बाद कभी न कभी जमनादास उसे प्रयोग में भी लाएगा। ऐसी सूरत में वे उसे फिर पकड़ लेंगे और बेटी को भी नहीं छोड़ेंगे । शायद रुपया देने वाला इसी लाइन पर काम कर रहा है। वह अधिकारियों के मन में यह विश्वास दिलाना चाहता है कि रुपया लड़की के पास है और इसीलिए वह रमा को खर्च करने के दिए बड़ी-बड़ी रकमें दे रहा है। इसी ग्राउण्ड पर अगर एक बार जमनादास बाहर आ जाए तो बाद में उसके लिये बहुत कुछ किया जा सकता है। तो लड़की को तो रुपये देने वाला जमनादास को छुड़ाने के लिये चारे की तरह प्रयोग में ला रहा है।"


"लेकिन यह कोई वजनी तर्क तो नहीं है। जरूरी थोड़े ही है कि अपराधी इस जाल में फंस ही जाए।"


"मैं भी यही समझता हूं, बल्कि मैं तो इसे भारी मूर्खता मानता हूं। मैंने रमा से इस विषय में बहस की थी, लेकिन उसने अपने रहस्यमय मित्र से प्रतिज्ञा की हुई है कि वह कम से कम एक वर्ष तक उसके कार्य करने के तरीके में टांग नहीं अड़ाएगी ।"


“आपने इस सारी स्कीम पर विश्वास कर लिया है ?"


"हां । "


"आपने कभी अनुमान तो लगाया होगा कि रुपया देने वाला कौन हो सकता है ?"


"मेरे ख्याल से तो वह कोई बैंक का ही कर्मचारी है।"


"आपका ख्याल है कि बैंक के ही किसी कर्मचारी ने पहले तो गर्मजोशी में चोरी कर ली और बाद में अब उसकी अन्तरात्मा ने धिक्कारा तो उसने अप्रत्यक्ष रूप से रमा की सहायता करनी आरम्भ कर दी और जमनादास को छुड़ाने की चेष्टा शुरू कर दी ताकि नैतिक रूप से तो वह अपने अपराध की गम्भीरता को कम कर सके।"


"मेरे दिमाग में भी यह बात तो आयी थी, लेकिन फिर भी मेरे ख्याल से रमा की सहायता करने वाला और कोई नहीं स्वयं बैंक का प्रेसीडेंट ए एल चोपड़ा है।"


"उसे किसी के फटे में टांग अड़ाने की क्या जरूरत पड़ी है ?"


"एक जरा कम तर्कसंगत कारण तो मैं बताता हूं। बैंक के प्रेसीडेंट होने के नाते चोपड़ा साहब का जमनादास को सजा दिलवाने में खास हाथ था। सजा हो जाने के बाद क्या पता उनकी कांशस ने उन्हें कचोटा हो कि कहीं जमनादास निर्दोष ही तो नहीं फंस गया। इसी भावना के अन्तर्गत वह रमा की सहायता को तो शायद तत्पर हो गए हों, लेकिन अपना नाम सामने लाए जाने के लिये शायद वह स्वयं को तैयार न कर सके हों...। यह तो मिस्टर सुनील, आपको मानना ही पड़ेगा कि कोई बहुत ही प्रभावपूर्ण आदमी इस सारे मामले की पृष्ठभूमि में है। "


"आप जानते हैं रमा खोसला इस समय कहां है ?" "भई वह किसी होटल में रहती है, नाम तो मुझे याद नहीं ।"


"रमा लेक होटल में रहती है लेकिन इस समय वह अपने कमरे में नहीं है । "


"क्या !" - डॉक्टर हैरान होकर बोला "कमरे में नहीं है, सच कह रहे हो ?" -


“मेरे जो जासूस रमा की निगरानी कर रहे हैं, अगर उन्होंने सच कहा है तो मैं भी सच कह रहा हूं।"


"ओह !"


“आप जयनारायण को जानते हैं ?"


"खूब जानता हूं। भई, मैं बैक का डॉक्टर हूं । बैंक के कर्मचारी इलाज के लिए मेरे पास आते ही रहते हैं। जब तक जयनारायण बैंक का कर्मचारी रहा, गाहे-बगाहे मेरे पास आता ही रहता था। आजकल तो उसे कम ही देखा है।"


“आपको एक ऐसी खबर, जो आप सुबह अखबार में पढ़ेंगे, मैं अभी बता देता हूं।"


"क्या ?"


"जयनारायण अब से लगभग तीन या चार घण्टे पहले कत्ल कर दिया गया है।"


"कत्ल कर दिया गया है ?"


"जी हां ।"


“हत्यारा कौन है ?"


"शायद आपको यह जानकर अच्छा नहीं लगेगा कि पुलिस इस सिलसिले में रमा को तलाश कर रही है । "


"रमा की तलाश ? हत्या के अपराध में ?"


"जी हां । "


"बकवास !" - डॉक्टर ने होंठ सिकोड़कर कहा ।


"मरने के केवल तीन या चार दिन पहले" - सुनील ने डाक्टर के शब्दों पर ध्यान दिये बिना ही कहा "जयनारायण ने चोरी गए धन में से एक हजार रुपये के नोट का नम्बर पुलिस को बताया था।" -


"उसे कैसे पता चला ?"


"बस याद रह गया किसी तरह।"


"अब अगर जयनारायण का रेफरेन्स आ ही गया है तो" - डॉक्टर ने कहा- "मैं तुम्हें एक बात बताता हूं... मैं काफी अरसे तक यह सोचता रहा हूं कि रमा को जयनारायण से रूपये मिलते हैं।"


"अगर ऐसी बात है तो अब रमा को रूपये मिलने बंद हो जाएंगे।"


"हो सकता है, लेकिन अगर मेरा विचार सत्य है तो बैंक में चोरी भी जयनारायण ने ही की होगी। आखिर उस जैसी मामूली हैसियत के इन्सान के पास इतना रुपया आया कहां से कि वह इतने बड़े पैट्रोल पम्प का मालिक बन बैठे, कोठी खरीद ले और रईसों जैसी जिंदगी गुजारना आरम्भ कर दे।"


"उसने रुपया कमाया है और पुलिस और इनकम टैक्स वाले संतुष्ट भी हैं उससे ।"


"सब बकवास है, वह सबकी आंखों में धूल झोंक रह है।"


“चलो ये ही सही। अपने किए की सजा पा गया।"


"अब एक और बात सुनिए, डॉक्टर साहब !" - सुनील ने कुछ क्षण रुककर कहा- "मेरे पास यह विश्वास करने का कारण है कि रमा के पास कल तक हजार रुपये का एक ऐसा नोट था जिसका नम्बर वही था जो जयनारायण ने पुलिस को बताया था, अर्थात् चोरी गए नोट का नम्बर । मैं उससे इस विषय में पूछताछ करना चाहता हूं। अगर रमा आपको मिले तो क्या आप मुझे सूचित कर सकते हैं ?"